________________
* नीतिवाक्यामृत
wimminimun.......
लिमिली राजाओं तथा सुखाभिलाषी मनुष्योंको अनुचित स्थान में किये जानेवाले उक्त वि-यानुवर्गों पर विजय प्राप्त करनी चाहिये, क्योंकि इनके अधीन हुए व्यक्तिको कापि
कि मुल प्राप्त नहीं होसकता ||१|| विषम करते हैं :. परपारगृहीतास्वनूढासु च स्त्रीषु दुरभिसन्धिः कामः ॥२॥ परस्त्रियों, वेश्याओं और कन्याओंसे विषयभोग करना यह कामरात्रु प्राणियोंको महादुःख
. विद्यममे लिखा है कि 'जो मनुष्य परस्त्री और कन्याका सेवन करता है उसकी यह मा बस दुस, बंधन तथा मरणको उत्पन्न करती है ॥१॥'
-उक्त नीतिविरुद्ध असत् काम-परस्त्री, वेश्या और कन्याका सेवनकरना दुःखदायक परन्तु धर्मपरम्पराको प्रचुरण चलानेके लिये कुलीन सन्तानोत्पत्तिके उद्देश्यसे अपनी स्त्रीका नाम नहीं है। अतश्य नैतिक व्यक्तिको प्रसस्-नीतिविरुद्ध कामसेवनका त्याग करना चाहिये ॥२॥ समाबुका निरूपण करते हैं :
___ अविचार्य परस्यात्मनो वापायहेतुः क्रोधः ॥३॥ वर्ष:-जो व्यक्ति अपनी और शवकी शक्तिको न जानकर क्रोध करता है, वह क्रोध उसके विनाशका
मारि' विद्वान्ने भी उक्त बासकी पुष्टि की है कि 'जो राजा अपनी और शत्रुकी शक्तिको बिना
कोर करता है वह नष्ट होजाता है ।शा बिरादविमर्श:-राजनीतिके विद्वानोंने विजिगीष राजाको अप्रातराज्यकी प्राप्ति, प्राप्तकी रक्षा और
द्धि करने के लिये तथा प्रजापीड़क कण्टकों-शत्रोंपर विजय पाने के लिये न्याययुक्त-अपनी मानसी शक्तिको सोचविचार कर तदनुकूल-उपयुक्त क्रोध करनेका विधान किया है तथा अन्याययुक्तका पकिया है। इसीप्रकार गृहस्थपुरुष भी चोरों आदिसे अपनी सम्पत्तिकी रक्षार्थ उचित-न्याययुक्त
सकता है, अन्याययुक्त नहीं। परन्तु धार्मिक आदर्शतम अधिसे शास्त्रकारोंने कहा है कि क्रोध
-बार गौतमः
मायामिता च यो नारी कुमाए वा निषेयते। वलमा प्रवासाय वाचाय मरणाय च ||||
मार:विचापात्मनः शक्ति परस्य च समुत्सुकः। को याति भूपालः स विनाशं प्रगम्छति ॥ .