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ॐ नीतिवाक्यामृत * .
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अथ अरिषड्वर्ग-समुद्देशः। अब राजाओंके अन्तर शत्रुसमूह-काम गौर सोधादिका निहारते है :
भयुक्तितः प्रणीताः काम-क्रोध-लोभ-मद-मान-होः क्षितीशानामन्तरङ्गोऽरिपड्वर्गः ॥शा
अर्थः-अन्यायसे किये गये काम, क्रोध, लोभ, मद, मान और हर्ष ये राजाओंके ६ अन्तरता शत्रुसमूह हैं ॥शा विशवविवेचन :
नीतिकार कामन्दक' लिखता है कि 'सुखाभिलाषी राजाओंको काम, क्रोध, लोभ, हर्ष, मान और मद इन ६ शत्रुवर्गोका सदा त्याग कर देना चाहिये ॥१॥
राजा दण्डको कामके वशीभूत होकर-शुक्राचार्यकी कन्याके उपभोगकी इच्छासे नन हुआ। राजा जनमेजय' ब्राह्मणोपर क्रोध करनेसे उनके शापसे रोगी होकर नष्ट हुआ। राजा ऐ लोभसे और वातापि' नामका असुर अपने अभिमानसे अगस्त्य द्वारा नष्ट हुआ ||२||
पुलस्त्यका बेटा रावण मानसे और दम्भोर राजा मदसे नष्ट हुआ। अर्थात् ये राजा लोग शत्रुषड्वर्ग-उक्त काम और क्रोधादि के अधीन होनेसे नष्ट होगये ॥शा
इसके विपरीत-काम और क्रोधादि शत्रुषवर्ग पर विजय प्राप्त करनेवाले जितेन्द्रिय परशुराम और महान् भाग्यशाली राजा अम्बरीषने चिरकाल तक पुष्पीको भोगा है ।।
जो राजा जितेन्द्रिय और नीतिमार्गका अनुसरण करनेवाला-सदाचारी है उसकी लपमी प्रकारामान और कीर्ति आकाशको स्पर्शकरनेवाली होती है || १ कामन्दकः मार:
कामः कोषस्तया जोमो इर्षो मानो महत्तया। पडवर्गमुत्सृजेवेनमस्मिन् त्यो मुखी नृपः दण्डको नति: कामात् कोषाच जनमेजयः । लोभादेलस्तु राजर्षिर्यातापिर्द पंतोऽसुरः २ पौलस्यो रक्षो मानान्मदारम्भोद्भवो नृपः । प्रयाता निधन में ते शत्रुषश्वगमाभिताः || शत्रुषावर्गमुस्मृज्य नामदग्न्यो जितेन्द्रियः।। अम्बरीषो महाभागो बुभुज ते चिरं महीम् I जितेन्द्रियस्य नृपते मन्तिमार्गानुसारिणः । भवन्ति क्वलिता पारम्यः कीर्तयश्च नभायराः III
कामन्दकीय नीतिसार पृ४ १२-१३॥ २, ३, ४, उस कथानक कामन्दकीय नीतिसार पृष्ठ पर से मान लेनी चाहिये ।