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* नोतियाक्यामृत
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पौन सीने लैटिन नो परती का लगभोग संबंधी सुख छोड़ देना चाहिये ॥ १ ॥
उल्लंघन करनेफा फल निर्देश करते हैं:धर्मातिक्रमाद्धनं परेऽनुभवन्ति, स्वयं तु परं पापस्य भाजनं सिंह इव सिन्धुरवधात् ॥ ४४ ॥
अर्थ:-धर्म-न्यायका उल्लङ्घन करके मंचित किये हुए धनको कुटुम्बीजन ही स्वाते है और कमानेया कैचन पापका ही भागी होता है। जैसे शेर हाथी की शिकार करता है, उससे शृगाल वगैरहको ही .. भोजन मिलता है से कोई लाभ नहीं होता, वह केवल पापका ही मंचय करता है ॥१४॥ Im नीविकार विदुग्ने' कहा है कि 'यह जीव अकेला ही पाप करता है और कुटुम्बीलोग उसफा उपभोग करते हैं ये लोग तो छूट जाने हैं, परन्तु कर्ता दोपस लिन होना है-दुर्गतिके दुःख भोगता है ॥१॥ पापीकी हानि बताते हैं
बीजभोजिनः कुटुम्बिन इव नाम्यधार्मिकस्यायन्यां किमपि शुभम् ।। ४५ ।। • अर्थ-श्रीजस्यानघाल्ने कुटुम्ब युक्त किमानकी तरह पापो मनुष्य का उत्तरकाल-भविष्यमें कुछ भी कल्याए
नहीं होता। जिसप्रकार किमान यदि अपने खेत में चोनेलायक मंचितवीजराशिको बाजावे तो उमका आपमें कल्याण नहीं होता, क्योंकि बीजोंके बिना उमके अन्न उत्पन्न नहीं होगा उनीप्रकार पापी भी
कारल धर्मसे विमुख रहता है अतएव उसका भी भविष्यमें कल्याण नहीं होमकता ।। १५ ।। - भागुरि' विद्वान ने भी उक्तबातया ममर्थन किया है कि 'बीजवानेवाले किसानको जिम प्रकार विश्व सम्स और शरदऋतु प्राने पर मुख प्राप्त नहीं होना, नमी प्रकार पापीको भी परलोकमें सुख ही होसकता ॥ १॥ धाम और अर्थ को छोड़कर केवल धर्ममें प्रवृत्त हुन् व्यक्तिका कथन करते हैं
__ यः कामाविपढ्त्य धर्म मेयोपास्ते स पक्वक्षेत्रं परित्यज्यारण्यं कृपति ।। ४६ ॥ - अर्थ:-जो व्यक्ति काम-न्यायमा कामिनी श्रादि भोगोपभोग सामग्री और अर्थ-धनादिसम्पत्ति
बसके साधन कृषि और व्यापार आदिको छोड़कर केवल धर्मका ही सतत सेवन करता है वह पहुए .. फाटनेयोग्य धान्यादिके खेतको छोड़कर जंगलको जोतता है।
भाषार्थ जिमप्रकार पकीहई धान्यसे परिपूर्ण ग्बेतको छोड़कर पहाड़की जमीन जोतना विशेष सामदायक नहीं है इसीप्रकार काम और अर्थ ( जीविका ) छोड़कर फेवल धर्मका सेवन गृहस्थ के लिये
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तशा च वितुर:एकाकी कुरुले रापं फलं भुषा महाजनः । . भोकरी विप्रनुच्यन्ते कर्ता दोषेण लिप्यते ॥७॥ २ तया द मागुति:
पासक्तस्य नो सौख्यं परलोके प्रजायते। . बीमाशिहालिकस्येव वतन्त शरदि रिश्वत ।