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* नीतिवाक्यामृत
अब अपात्र को दान देनेकी निष्फलता बताते हैं:--
भस्मनि हुतमिव पात्रेष्वर्थव्ययः ॥ ११ ॥
अर्थः:-अपात्र- - ( नीति और धर्म से शून्य) व्यक्तिको दान देना भरम (राख) में हवन करनेके समान निष्फल है ||२१||
नाव विद्वान' लिखता है कि 'खोटा नौकर, वाहन, शास्त्र, तपस्वी, ब्राह्मण और खोटा खामी इनमें धन खर्च करना भस्म में हवा के समाविष्ट है।
यशस्तिलक में लिखा है कि विद्वानों ने सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र से शून्य पुरुष को पात्र कहा है उसमें दिया हुआ अन वगैरहका दान ऊपर जमीनमें बीज बोने के समान निष्फल €11311
पात्र में दिया गया अनादिका दान श्रावकों की पुण्य वृद्धिका कारण होता है, क्योंकि बादलोंका पानी सीपमें ही मोती होता है ||२||
जिनके मन मिथ्यात्व से दूषित हैं और जो हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह इन पाप कियाओं में प्रवृत्ति करते हैं उनको दान देनेसे पाप बन्धही होता है जिस प्रकार सापको दूध पिलानेसे विष हो जाता है ||३||
अथवा यदि श्रावक दयालुतासे उन्हें कुछ देता है तो अन्न दे देना चाहिये परन्तु अपने गृह में भोजन नहीं कराना चाहिये ||४||
क्योंकि उनका सन्मानादि करनेसे श्रावक का सम्यग्दर्शन दूषित होता है; जिस प्रकार स्वच्छ पानी भी विषैले वर्तन में प्राप्त होनेसे विषैला होजाता है ||
निष्कर्ष :- इसलिये अपात्रोंको दान देना निरर्थक है ||११||
पात्रोंके भेद बताते हैं: -
पात्र च त्रिविधं धर्मपात्रं कार्यपात्र कामपात्रं चेति ॥ १२॥
अर्थ:- पात्रों (दान देने योग्य) के ३ भेद है ।
धर्मपात्र, कार्यपात्र और कामपात्र ।
(२) धर्मपात्र* : - जो बहुश्रुत विद्वान् प्रयन और निर्दोष युक्तियोंके द्वारा समीचीन धर्मका व्याख्यान करते हैं और माताके समान कल्याण करनेवाली शिक्षाका उपदेश देते हैं उन्हें साधुपुरुषोंने धर्मपात्र कहा है ||१||
1 तथा च नारद -
कुभृत्ये च कुयाने च कुशास्त्रे कुनः स्विनि । कुवि कुलनाथे व्ययो भस्मकृतं यथा ॥ ॥ २ देखो नीतिवाक्यामृत संस्कृत का पृ० ११ १