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* नीतिघाक्यामृत *
अब सच्चे लोभीकी प्रशंसा करते हैं :
स खलु लुब्धो यः सत्सु विनियोगादात्मना सह जन्मान्तरपु नयत्यर्थम् ॥१८॥
अर्ध : जो मनुष्य सज्जनोंको दान देकर अपने साथ परलोकमै धन लेजाता है, वहीं निश्चयमे सच्चा लोभी है।
भावार्थ :-धनका लोभी लोभी नहीं है किन्तु जो उदार है उसे सच्चा लोभी कहा गया है क्योंकि पायदानके. प्रभावसे उसकी मम्पत्ति अजय होकर उसे जन्मान्तर--स्वर्गादिमें 'अक्षय होकर मिल जाती है ।।१।।
वर्ग' नामके विद्वान्ने भी कहा है कि 'इसलोकमें दाताके द्वारा दिया गया पात्रदान अक्षय हो जाता है जिससे उसके सभी दूसरे जन्मों में उसके पास रहता है ।।१।।' अय याचकको दूसरी जगह भिक्षा मिलने में जिस प्रकार यिघ्न होता है उसे बताते हैं :
अदातुः प्रियालापोऽन्यस्य लाभस्यान्तरायः ॥१६॥
अर्थ :-जो व्यक्ति याचकको कुछ नहीं देता केवल उससे मीठे वचन बोलता है वह उमे दुसरे : स्थानमें भिक्षा मिलनेमें विघ्न उपस्थित करता है; क्योंकि यह चारा उपके श्राश्वामनमें फैमकर इमरी जगह भिक्षा लेने नहीं जासकता ||
वर्ग नामके विद्वान्ने' भी लिखा है कि 'जो मनुष्य याचक्रको कुछ नहीं देता और स्पष्ट मनाई करके उसे लोड़ देता है, गदापि समस्या यापकली मात्रा भंग होजाती है परन्तु भविष्यमें उसे दुःम्म नहीं होता ॥१॥ अब दरिद्र की स्थितिका वर्णन करते हैं :
सदैव दुःस्थितानां का नाम बन्धुः ॥२०॥ अर्थ :-सदा दरिद्र रहनेवाले पुरुषोंका लोकमें कौन बन्धु है ? अर्थान् कोई नहीं।
भावार्थ :-जो लोग कृषि और व्यापार आदि साधनोंसे धन संचय नहीं करते और मदा आलस्यमें पड़े रहने से दरिद्र रहते हैं उनकी लोक में कोई सहायता नहीं करता ॥२०॥
जैमिनि नाम के विद्वान्ने लिखा है कि 'दरिद्र व्यक्ति यदि किसी गृहस्थके मकान पर उपकार करनेकी
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१ तथा च वर्ग:दत्तं पात्रेऽत्र यहानं जायते चाक्षय हि तत् । जन्मान्तरेषु सर्वेषु दानुश्चेवोपत्तिष्ठते ॥६॥ २ मु. मू० पुस्तक में "श्रदानुः प्रियालापोऽन्यत्र लाभान्तरायः" ऐठा पाठहै। ३ तथा च वर्ग :प्रस्याख्यानमदाता ना याचकाय करोति यः। तत्क्षणाच्चैव तस्याशा श्यान्नव दुःखदा 115) ४ तथा व जैमिनि :--- उपकमपि प्राप्तं नि:स्वं ष्टया मन्दिरे। गुतं करोति चात्माने गृहीचमाइया ।।51)