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® जैन-तत्त्व प्रकाश
लोगनाहाणं- प्राप्त गुणों की प्राप्ति और प्राप्त गुणों के रक्षक होने से भगवान् लोक के नाथ हैं।
लोगहियाणं-उपदेश और प्रवृत्ति के द्वारा भगवान् ही समस्त लोक के हितकर्ता हैं। .
लोगपईवाणं-लोक में दीपक के समान। भव्य जीवों के हृदय रूपी सदन में रहे हुए मिथ्यात्व रूपी और अन्धकार का नाश करके, ज्ञान रूपी प्रकाश फैला कर सत्य-असत्य का, धर्म-अधर्म का यथार्थ स्वरूप प्रकट करने वाले भगवान् ही सच्चे देश-प्रकाशक दीपक हैं ।
लोगपज्जोयगराणं-जन्म के समय में तथा केवलज्ञान होने के बाद सूर्य के समान प्रकाशकर्ता होने से भगवान ही सर्वप्रकाशक सच्चे सूर्य हैं।
__(आगे के पदों का अर्थ दृष्टांत द्वारा समझाते हैं)
दृष्टांत-कोई धनाढ्य पुरुष देशान्तर में जा रहा था। रास्ते में उसे चोर मिल गये । चोर रास्ता भुलाकर उसे भयानक अटवी में ले गये । वहाँ उन चोरों ने उस धनाढ्य का धन छीन लिया। आँखों पर पट्टी बाँध दी
और उसे एक पेड़ से बाँध कर चल दिये। कुछ देर बाद उसके सौभाग्य से कोई राजा उसी अटवी में अपनी चतुरङ्गिनी सेना साथ लेकर शिकार खेलने आ पहुँचा । उस पुरुष को दुःखी देखकर, दयाभाव से प्रेरित होकर राजा ने कहा-'डरो मत।" ऐसा कह कर उसे अभय दिया। आँखों की पट्टी खोल कर उसे चक्षदान दिया । इच्छित स्थान पर जाने का मार्ग बतला कर मार्ग-दान दिया। पहुँचाने के लिए सुभट साथ में देकर शरण दिया। आजीविका के लिए द्रव्य देकर जीविका-दान दिया । फिर कभी ऐसे फन्दे में मत फँसना' कह कर बोध-दान दिया और उसे इच्छित मार्ग के स्थान में पहुँचाया।
भावार्थ-प्रकरण में जीव मुसाफिर है। रत्नत्रय (सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यकचारित्र ) आदि गुण रूप धन से वह युक्त है । वह मुक्ति रूपी देशांतर में जा रहा था। संसार रूपी अटवी में, कर्म रूपी चोर उसे