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भगवती सूत्र - श. १ उ. १ नारक जीवों का वर्णन
शब्दार्थ- मंते - हे भगवन् ! णेरइयाणं-नैरयिकों की, ठिई-स्थिति, केवइयं कालं - कितने काल की, पण्णत्ता - कही गई है अर्थात् उनका आयुष्य कितना होता है ?
चाहिए ।
गोमा - हे गौतम! जहणणं - जघन्य से दस वाससहस्साइं दस हजार वर्ष की और, उक्को सेणं - उत्कृष्ट, तेत्तीस - तेतीस, साग रोवमाइं- सागरोपम की, ठिई- स्थिति, पण्णत्ता - कही गई है।
भंते - हे भगवन् ! णेरड्या - नैरयिक, केवइकालस्स - कितने काल में, आणमंतिश्वास लेते हैं ? और कितने काल में, पाणमंति - श्वास छोड़ते हैं अर्थात् कितने काल में ऊससंति - उच्छ्वास लेते हैं और कितने काल में, णीससंति - निःश्वास छोड़ते हैं ?
हे गौतम! जहा ऊसासपए - जिस प्रकार उच्छ्वास पद में कहा है वैसा जान लेना
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भंते-हे भगवन् ! क्या, णेरड्या - नैरयिक, आहारट्ठी - आहारार्थी-आहार के अभिलाषी होते हैं ?
हे गौतम! जहा - जिस प्रकार, पण्णवणाए- प्रज्ञापना सूत्र के, पढमए आहारुद्देसएआहार पद के प्रथम उद्देशक में कहा है, तहा - उसी तरह से, भाणियध्वं - कह देना चाहिए । गाथा का शब्दार्थ इस प्रकार है - ठिई-नैरयिकों की स्थिति, उस्सास - उच्छ्वास, आहारे - आहार विषयक कथन, किंवा क्या, आहारति वे आहार करते हैं ? सव्वओ afa -क्या वे सर्व आत्म-प्रदेशों से आहार करते हैं ? कड़भागं - कौनसे भाग का आहार करते हैं ? व अथवा सञ्चाणि-पत्र आहारक द्रव्यों का आहार करते हैं ? और, कीसआहारक द्रव्यों को किस रूप में, भुज्जो - बारम्बार परिणमंति-परिणमाते हैं ?
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिकों की स्थिति कितने काल की कही गई
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है ?
उत्तर - हे गौतम ! जघन्य से दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की स्थिति कही गई है ।
प्रश्न - हे भगवन् ! नैरधिक कितने काल में श्वास लेते हैं और कितने काल में श्वास छोड़ते हैं ? कितने काल में उच्छ्वास लेते हैं और कितने काल में नि:श्वास छोड़ते हैं ।
उत्तर - हे गौतम! पन्नवणा सूत्र के उच्छ्वास पद के अनुसार समझना चाहिए ।
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