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भगवती सूत्र-श. १ उ. १ चलमाणे आदि प्रश्न
करके यावत् अन्तिम समय पर्यन्त प्रतिसमय क्रम से असंख्यात गुणवृद्ध कर्म पुद्गलों के दहन को 'दाह' कहते हैं । यह 'दाह' शैलेशी अवस्था में होने वाले शुक्ल-ध्यान के चतुर्थ पाद (चौथा पाया) समुच्छिन्न-क्रिया-अप्रतिपाती नामक ध्यानाग्नि द्वारा होता है ।
पहले समय में जितने कर्म पुद्गल दग्ध होते हैं उससे असंख्यातगुणा दूसरे समय में दग्ध होते हैं । इस प्रकार तीसरे समय में दूसरे समय की अपेक्षा असंख्यातगुणा कर्मों को दग्ध किया जाता है । इस प्रकार दग्ध करने का क्रम बढ़ता जाता है । इसका कारण यह है कि ज्यों ज्यों कर्म पुद्गल दग्ध होते जाते हैं त्यों त्यों ध्यानाग्नि अधिकाधिक प्रज्वलित होती जाती है और वह अधिकाधिक कर्म पुद्गलों को दग्ध करती है।
____इस प्रकार भिद्यमान और दह्यमान पदों का अर्थ अलग अलग है। - चौथा पद है 'मिज्जमाणे मडे' । इस पद से आयुकर्म के क्षय का निरूपण किया गया है । यद्यपि प्रत्येक. संसारी प्राणी जन्म मरण करता है तथापि यहाँ पर वह अन्तिम मरण लिया गया है जो मोक्ष प्राप्त करने से पहले होता है । पहले बंधे हुए आयु कर्म
का क्षय हो जाय और नया आयुकर्म न बंधे यही मोक्ष का कारण है। 'आयुकर्म के पुद्- गलों का क्षय करना मरण है, इस अपेक्षा से इस पद का अर्थ अन्य पदों से भिन्न है।
पांचवां पद है 'णिज्जरिज्जमाणे णिज्जिणे' अपने समस्त कर्मों को अकर्म रूप में परिणत कर देना ही यहां 'निर्जरा' शब्द का अर्थ लिया गया है। यह स्थिति संसारी जीव ने कमी प्रप्त नहीं की है। उसने कभी कुछ कर्मपुद्गलों की निर्जरा की और कभी कुछ की, परन्तु समस्त कर्मों की निर्जरा कभी नहीं की । इसलिए यह स्थिति आत्मा के लिए अपूर्व है । अतएवं इस पद का अर्थ अन्य पदों से भिन्न है । इस प्रकार अन्त के ये पांचों पद भिन्न भिन्न अर्थ वाले हैं।
'चलमाणे चलिए' आदि चार पदों से केवलज्ञान की उत्पत्ति रूप एक ही कार्य होता है। अतः वे एकार्थक कहे गये हैं। 'छिज्जमाणे छिण्णे' आदि अन्त के पांच पद 'विगत पक्ष की अपेक्षा से भिन्न अर्थ वाले कहे गये हैं । 'विगत' का अर्थ है 'विनाश' । वस्तू की एक पर्याय का नाश होकर दूसरी पर्याय का उत्पन्न होना 'विनाश' है अर्थात् एक अवस्था से दूसरी अवस्था होना 'विनाश' कहलाता है । एकान्त नाश किसी भी वस्तु का नहीं हो सकता । इस प्रकार वस्तु विनाश की अपेक्षा से पांच पदों को भिन्नार्थक माना गया है।
प्रश्न यह था कि इस शास्त्र के प्रारम्भ में 'चलमाणे चलिए' इत्यादि प्रश्न क्यों किये गये ? इस प्रश्न का उत्तर इस व्याख्या से हो गया कि केवलज्ञान की उत्पत्ति और
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