Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोवन्द्रिका टोका सूत्र १८३ स्थापनाप्रमाणनिरूपणम्
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इति । तत्र - श्रमणाः - निर्ग्रन्थशाक्य तापस गैरिकाऽऽजीवाः पञ्चविधाः । निर्ग्रन्थादीनि पञ्च पापण्डान्याश्रित्य श्रमण इति नाम स्थाप्यते । पाण्डुराङ्गः = भस्मोद्धूलितशरीरः शैत्रः पापण्डिविशेषः । भिक्षुर्बुद्धदर्शनाश्रितः । कापालिकः = चिताभस्मोधूलितशरीरः पाषण्डिभेदः । तापसः - सतरस्को वनवासी पाषण्डिविशेषः । परिव्राजक :- परिवजति गृहाद् गच्छतीति परिव्राजकः - पाषण्डिविशेषः । एतान् श्रमणादीन् पापण्डानाश्रित्य यन्नाम स्थाप्यते तत्पापण्डस्थापनानामे बोध्यम् । अथ गणनाम निर्दिशति - गणः = आयुधजीविनां संघः, तन्नाम्ना यत्कस्यचिन्नाम तावसए । पारिवापगे-से तं पाडनामे) श्रमण, पाण्डुराङ्ग, भिक्षु, कापालिकतापस, परिव्राजक । इनमें जो श्रमण हैं - वे निर्ग्रन्थ, शाक्य, तापस गैरिक और आजीवक ये पांच प्रकार के हैं । इन निर्ग्रन्थादिक पांच पाषण्डों को आश्रित करके श्रमण ऐसा नाम स्थापित होता है । भस्म से जिनका शरीर लिप्त होता है, ऐसे शैव पाण्डुराङ्ग कहलाते हैं । बुद्ध दर्शन को मानने वाले भिक्षु कहलाते हैं । चिता की भस्म को जो अपने शरीर पर लिप्स करते हैं, वे पापण्डविशेष 'कापालिक ' हैं । जो तप करते हैं और वन में रहते हैं, वे पापण्ड विशेष 'तापस' कहलाते हैं । जो घर से चले जाते हैं अर्थात् घर छोड़ देते हैं- वे पाषण्डि विशेष परिव्राजक कहलाते हैं । इन श्रमणादिक पाषण्डों को आश्रित कर जो नाम स्थापन किया जाता है, वह पाषण्ड स्थापननाम है । इस प्रकार यह पाषण्ड नाम है । ( से किं तं गण नामे ? ) हे भदन्त वह गण नाम क्या है ? ( गणनामे) आयुधजीवियों का जो संघ
(समणे य पंडुरंगे भिक्वुकावालिए य तावसए । पारिवायगे-से त पाडनामे) श्रमण, पांडुरंग, भिक्षु, अपसिङ, तापस, परिवाब, आमां ने श्रमाणु छे तेथे निर्थंथ, शास्य, तापस, गैरिस भने आलवा आम पांयारना छे. આ નિગ્રંથાર્દિક પાંચ પાડાને આશ્રિત કરીને શ્રમણ એવુ નામ સ્થાપિત થાય છે. ભસ્મથી જેનું શરીર લિપ્ત હૈાય છે. એવા રૌત્ર પાંડુરાંગ કહેવાય છે, બુદ્ધ દનને માનનારા ભિક્ષુ કહેવાય છે. ચિતા ભસ્મને પેાતાના શરી પર લગાડનારા તે ‘કાપાલિક’ કહેવાય છે. જેએ તપ કરે છે અને વનમાં રહે છે, તે પાપડ વિશેષ ‘તાપસ ’ કહેવાય છે. જેએ ઘરથી જતા રહે છે, એટલે કે ઘરને ત્યાગ કરે છે પાષંડ વિશેષ ‘ પરિવ્રાજક' કહેવાય છે. આ શ્રમદિક પાખડાને આ શ્રત કરીને જે નામની સ્થાપના કરવામાં આવે छे, ते पात्र छे. आ प्रमाये या पापडेनाम है. (से किंव
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