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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १८८ द्रव्यप्रमाणनिरूपणम्
इत्यादि - रूपो यो विशिष्टः प्रकारस्तेन निष्पन्नमिति भावः । तच्च मानोन्मानावमानगणिमप्रतिमानभेदैः पञ्चविधम् । तत्र सानं द्विविधं मज्ञप्तम्, तद्यथा - धान्यमानप्रमाणं च रसमानप्रमाणं च । तत्र धान्यमानप्रमाणम् - मानमेव प्रमाणं - मानप्रमाणम्, धान्यविषयं मानप्रमाणं - धान्यमानप्रमाणम् । तच्च - "द्वे असृती प्रसृति 'रित्यादि है । ये धान्यादिक द्रव्य ' १ सेर है या दो सेर है ' । इस प्रकार से जो इनके वजन आदि रूप स्वरूप का निरूपण करने में आता है वह धान्यादिक द्रव्यगत प्रदेशों के सहारे से नहीं होता है किन्तु १ सेर २ सेर रूप जो विशिष्ट प्रकार रूप विभाग है, तत्साध्य होता है, अर्थात् उससे निष्पन्न होता है इसलिये : स्वगत प्रदेशों को छोड़ कर अपर विभाग से इसकी निष्पत्ति कही गई है। इसी बात को सूत्रकार ने " दो असईओ पसई" इत्यादि रूप से व्यक्त किया है । (विभाग निष्फण्णे पंचविहे पण ते तं जहा-माणे, उम्माणे, ओमाणे, गणिमे, पडिमाणें ) यह विभाग निष्पन्न द्रव्यप्रमाण मान, उन्मान, अवमान, गणिम प्रतिमान के भेद से पांच प्रकार का कहा गया है । (से किं तं माणे ) हे भदन्त ! वह मान क्या है ?
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उत्तर - (माणे दुविहे पण्णत्ते) वह मान दो प्रकार का होता है ( तं जहा ) वे प्रकार ये हैं- ( धन्नमाणप्पमाणे य रसमाणप्यमाणे य) एक धान्यमान प्रमाण और दूसरा रस मान प्रमाण । धान्य विषयक मानरूप जो प्रमाण है वह धान्यमान प्रमाण है । ( से किं तं धन्नमानिष्यन्न थर्ध लय है, या धान्याहि द्रव्यो ' शेर छे! मशेर छे.' आ પ્રમાણે જે એમના વજન વગેરે સ્વરૂપનું નિરૂપણ કરવામાં આવે છે, ते ધાન્યાદિક દ્રવ્યગત પ્રદેશેાના આધારે નહિ પરંતુ ૧ શેર, ૨ શેર રૂપ જે વિશિષ્ટ પ્રકાર રૂપ વિભાગ છે તેના આધારે હાય છે, એટલે કે એનાથી જ નિષ્પન્ન હેાય છે એટલા માટે જ સ્વગત પ્રદેશાને બાદ કરીને અપર ત્રિભાगयी कोनी निष्पत्ति वामां भावी छे. येन वातने सूत्रठारे ' दो असई ओ पसई' वगेरे ३५भां व्यक्त उरी छे. (विभागनिष्फण्णे- पंचविहे पण्णत्तेत'जहा-माणे, उम्माणे, ओमाणे, गणिमे, पडिमाणे) आ विभाग निष्यन्न द्रव्यं પ્રમાણના માન, ઉન્માન, અવમાન, ગણિમ, પ્રતિમાન ભેદથી પાંચ પ્રકાર छ. (से कि त माणे) हे महांत ते भान शु छे ?
उत्तर- (माणे दुविहे पण्णत्ते) ते मानना ये प्रहार (त जहा ) ते प्रकाश भा प्रहारो छे (धन्नमाणप्पमाणे य रसमाणष्यमाणे य) धान्य भान: प्रमाणु अने रस भान प्रभाष (से किं त धन्नमाणपमाणे १ धन्नमाणप्पमाणे
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