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अनुयोगद्वार भणति । कां गाथा भणति ? इत्याह-'जह तुम्भे' इत्यादि । यथा यूर्य सम्प्रतिस्थः तथा वयमपि पुराऽभूम, यथा च सम्मति वयं स्वस्तथा यूयमपि भविष्यथ, इत्थं पतत् किमपि पाण्डकपत्र किसलयेभ्यः= नवोद्गतपत्रेभ्यः 'अप्पा हे' इति संदिशति कथयति । संपूर्वक दिश् धातोः 'अप्पा' इत्यादेशो भवति । अयं भावः-यथा. यूयं सम्मति आरक्तस्निग्धरूपाणि सुकोमळानि सकलजननेत्रानन्ददायीनि स्था, एणं उवमिज्जइ' यह औपम्य का तृतीय प्रकार है-सो इसमें असमस्तु. सबस्तु से उपमित हुई है-जैसे-वसन्त के समय पुराने पत्ते ने कि'जो सर्व प्रकार से बिलकुल जीर्ण हो चुका है, उन्टल से जो टूट चुका है, और इसी कारण जो वृक्ष के नीचे पडा हुभा है, जिसका सार भाग बिलकुल सूख गया है, तथा वृक्ष के वियोग से जो अस्यन्त दुःखी बन रहा है, नवीन पत्ते से इस गाथा को कहा-कि(जह तुम्भे तह अम्हे तुम्हेऽवि य हो हि हा जहा अम्हे अप्पाहेइ पड़त, पंडुयपत्तं किसलया ण) जिस प्रकार तुम. इस समय हो हम भी पहिले ऐसे ही थे । तथा-इस समय हम जैसे हो रहे हैं तुम भी आगे चलकर ऐसे ही हो जाओगे । इस प्रकार से किसी गिरते हुए पुराने जीर्ण पत्ते ने नवो. गत किसलयों से कहा। यहां 'सं' पूर्वक 'दिश्' धातु को 'अप्पाह' यह आदेश हुआ है । इसलिये 'अप्पाहेइ' का अर्थ 'संदिशति' है तात्पर्य "असंतयं संतएणं उबमिज्जई" मा मी५भ्यन। श्रीन २ छ. मामा मस વસ્તુ સદુવસ્તુ વડે ઉપમિત કરવામાં આવેલ છે. જેમ કે–વસન્તના સમયમાં જે સર્વ રીતે એકદમ જીર્ણ થઈ ગયા છે, ડાંખળીથી જે તૂટી ગયા છે અને એથી જ જે વૃક્ષની નીચે પડેલ છે, જેને સાર ભાગ સાવ શુષ્ક થઈ ગયે છે, તેમજ વૃક્ષના વિગથી જે અતીવ દુઃખી થઈ રહ્યા છે એવા Hit न ५ina 0 ४डी , (जह तुब्भे तह अम्हे तुम्हे ऽवि य हे। हि हो जहा अम्हे अप्पाहेइ पडतं, पंडुयपत्तं किसलयाणं) रे मां तमे અત્યારે છેઅમે પણ પહેલાં એવા જ હતા. તેમજ આ સમયે અમે જે સ્થિતિમાં છીએ, તમે પણ એક દિવસ એ સ્થિતિમાં આવશે જ. આ પ્રમાણે કઈ ખરતા જ પાંદડા એ નવદુગત કિસલને કહ્યું. અહીં “સં' પૂર્વક 'दिर' यातुन 'अप्पाहेह' माहेश थये छ. मे 'अप.हेई' ना भय 'संविशति छ. तात्पर्य भानु या प्रमाणे छ ? 9 पांड, नपान ultsi