Book Title: Anuyogdwar Sutra Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 814
________________ अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २४८.. अनुगमनामानुयोगद्वारनिरूपणाम.--- मनु गृहस्थोऽपि सर्वशब्दसहितं सामायिक करोतु, का हानिः इति चेत् । आह-स्वशक्तिसम्पाद्यामेव क्रियां कर्तुं जनः प्रवृत्तो भवति नेतराम् । गृहस्थस्तु पूर्वप्रवृत्ते सावधयोगेऽभिष्वङ्गं मोक्तुं न शक्नोति, अवस्त्रिविधं त्रिविधेन न प्रत्याख्याति । एवं यदि स प्रत्याचक्षीत, तदा व्रतभङ्गः प्रसज्जेत । क्योंकि गृहस्थ के अणुव्रत हो सकता है। महाव्रत नहीं। मन, वचन और काय की कृत, कारित अनुमोदना इन तीन २ कोटियों से सावधः योग का त्याग मुनि अवस्था में होता है-तय कि-गृहस्थावस्था में मन संबन्धी कृतकारित और अनुमोदनारूप विकोटी से सावधयोश का त्याग नहीं होता है। बचन और काय ही की त्रिंकोटियों से सावधयोग का उसके त्याग होता है। इसलिये वह सावधयोग का परित्याग उसका सर्व शब्द से वर्जित है । सर्व शब्द का अर्थ यहां पर... सर्व प्रकार से' ऐसा है । मन वचन और कायकी कृत कारित अनुमोदना रूप नौ कोटि से यदि यह सावधयोग का उसके त्याग होता, तब ही वह त्याग सर्व सावद्यत्याग कहलाता-परन्तु पूर्वोक्तरूप से यह ऐसी नहीं है। इसी बात को टीका में 'सर्वशब्दवर्ज विविधं त्रिविधेनसामायिकं कुर्यात् 'इस पंक्तिद्वारा स्पष्ट किया है । वचन और काये से जन्य सावधयोग का यहां परित्याग त्रिविध-कृम, कारित और अनु. मोदना से है-इंसलिये यह सावधयोग परित्याग सर्वशब्द से वर्जित है। જેમ મુનિ અવસ્થામાં સાવયોગને ત્યાગ થઈ જાય છે, તે પ્રમાણે અહી કરી શકાતું નથી. કેમ કે ગૃહસ્થ અણુવ્રત કરી શકે છે, મહાવ્રત નહિ. મને, વચન અને કાયથી કૃત, કાંતિ અને અનુમોદન આ ત્રણ કટિઓથી સાવલગિને ત્યાગ સુનિ અવસ્થામાં હોય છે, જ્યારે ગૃહસ્થાસ્થામાં મનસંબપી કત કારિત અને અનુમોદના રૂપ ત્રિકટીથી સાવધાગ :- હા તેને સર્વ શબ્દથી વર્જિત છે. સર્વ શબ્દનો અર્થ અહીં “સર્વ પ્રકારંથી આ પ્રમાણે છે. મન, વચન અને કાયની કૃત, કારિત, અનુમોદના રૂપ નવ કેટિણી જે આ સાવગને તેને ત્યાગ હેત તે જ તે ત્યાગ સર્વ સાધથયાંગ કહેવામાં આવ્યું હતું, પરંતુ પૂર્વોક્ત રૂપથી આ પ્રમાણે નથી એ જે વાત wi 'सर्वशब्दवर्जे द्विविधं त्रिविधेन सामायिक कुर्यात् भापति पर ૫ઇ કરવામાં આવેલું છે. વચન અને કાર્યથી જન્ય સાવઘગને હી अ० १०१

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