Book Title: Anuyogdwar Sutra Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 901
________________ अनुयोगद्वारस्वे णाणुमए' इत्यत्र समस्ताध्ययनविषयो नयविचार उक्त एव । तथा च-मत्रसमु. दायरूपमेव समस्ताध्ययनम् , समस्ताध्ययने नयैविचारिते प्रतिसूत्रमपि नयैर्विचारितमेव भवति । इत्थं चापि द्वितीयः पक्षोऽयुक्तः ? इति चेदाह-प्रतिसूत्रं यद् नयविचारः प्रतिषिद्धः सोऽनुमत एव । सोऽपि च 'आसज्ज उ सोयार नए नय. विसारओ बूया' छाया-'आसद्य तु श्रोतारं नया नयविशारदो बयात्' इत्यने नापवादिक एवानुज्ञातः । यत्तु द्वितीयपक्षमाश्रित्य मागुपोद्घातनियुक्तो समस्ताध्ययनविषयस्य नयविचारस्योपपस्तत्वादत्र पुनस्तदुपन्यासो निरर्थक इत्युक्तं नयों से विचार किया जाता है ' सो यह भी अयुक्त ही है, क्योंकि पहिले उपोद्घात नियुक्त्यनुगम में 'नए समोयारणाणुमए' यहां समस्त अध्ययन विषयवाला नविचार कहा ही जा चुका है । तथा-सूत्रों का समुदाय रूप ही. तो समस्त अध्ययन होता है। जब समस्त अध्ययन नयों से विचारित हो जाता है, तो अध्ययन का हरएक सूत्र भी नयों से विचारित. हो ही जाता है। इस प्रकार भी वित्तीय पक्ष अयुक्त ठहरता है। उत्तर--प्रतिसूत्र में नय विचार नहीं होता है क्योंकि वहां प्रति षिद्ध कहा गया है-सो इस बात को तो हम भी मानते हैं। तथा 'आसज्ज उ सोयारं नए नयविसारओ बूया' कहीं २ जो ऐसी बात कही गई कि-'नय विशारद श्रोताजनों के अनुसार नयो का कथन करे सो यह भी अपवादिक कथन ही माना गया है। जो द्वितीयपक्ष को लेकर यह कहा है कि 'पहिले उपोद्घात नियुक्ति में समस्त अध्ययन पात ५y अयुत छ, म ५। पादधात नियुक्त्यनुगममा "नए समोयारणाणुमए" सही समस्त अध्ययनवा नय पियार ४७वामां मावत જ છે. તથા સૂત્રે નો સમુદાય રૂપ જ સમસ્ત અધ્યયન હોય છે. જ્યારે સમસ્ત અધ્યયન નયેના આધારે વિચારિત થઈ જાય છે. આ પ્રમાણે દ્વિતીય પક્ષ અયુક્ત સ્થિર થાય છે. ઉત્તર પ્રતિસૂત્રમાં નય વિચાર થતું નથી કેમ કે તે ત્યાં પ્રતિષિદ્ધ કહેવામાં આવેલ છે. અને એ વાત તો અમે પણ માનીએ જ છીએ. તથા 'आसन उ सोयारं नए नयविसारओ बूया' मे स्थान मा रीतामा આવ્યું છે કે “નય વિશારદા શ્રોતાઓને પોતાની સમક્ષ રાખીને નયનું કથન કરે તે આ વાત પણ આપવાદિક કથન જ માનવામાં આવેલ છે. જે દ્વિતીય પક્ષને લઈને આમ કહેવામાં આવ્યું છે. કે “પહેલાં ઉદ્દઘાત નિર્યુક્તિમાં

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