Book Title: Anuyogdwar Sutra Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 878
________________ अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २४९ सूत्रस्पर्शकनियुक्त्यनुगमनिरूपणम् ८६५ छाया--अल्पाक्षरमसन्दिग्धं सारवद् विश्वतोमुखम् ।। अस्तोभमनवधं च सूत्रं सर्वज्ञभापितम् ।।इति॥ एषां पङ्गुणानां पूर्वोक्तेष्वेवान्तर्भावो भवति । एषामपि व्याख्या उत्तराध्या यनसूत्रे तत्रैवावलोकनीयेति । एवं सूत्रानुगमे समस्तदोषवर्जिते सूत्रे समुच्चारिते सति वतस्तत्रन्त्रे ज्ञास्यते स्वसमयपद स्वसिद्धान्तसम्मतजीवाधर्थपतिपादक पदै वा, परसमयपद-परसिद्धान्तसम्मतप्रधानेश्वरादिप्रतिपावकं पदं वा ज्ञास्यते । अनयोः स्वसमयपरसमयपदयोमध्ये यत्परसमयप्रतिपादकं पदं तत्माणिनां कुवा. प्रकार से हैं-(१) अल्पाक्षर (२). असंदिग्ध (३) सारवत् (४) विश्वतोमुख, (५) अस्तोभ (६) अनबद्य। इन ६ गुणों का अन्तर्भाव पूर्वोक्त गुणों में ही हो जाता है। इसकी व्याख्या उत्सराध्ययन सूत्र में वहीं पर देखनी चाहिये। (तभो तस्थ) सूत्रानुगम में इस प्रकार से समस्त दोषवर्जित सूत्र समुच्चारित होने पर (जिहिति) उस सूत्र में यह बात मालूम देगी कि (ससमयपयं वा परसमयपयं वो बंधपयं वा मोक्खपयं वा सामाइयपयं वा णो सामाहयपयं वा) यह स्वसमयपद है, यह परसमय पद है, यह बन्ध पद है, यह मोक्षपद है, यह सामायिक पद है अथवा नो सामायिक पद है। स्वसिद्धान्त सम्मत जीवादिक पदार्थों का प्रतिपादक णो पद है, वह स्वसमय पद है। परसिद्धान्त सम्मत प्रधान-प्रकृति - ईश्वर आदि का प्रतिपादन करनेवाला जो पद है, वह परसमय पद है। इन स्वसमय और परसमय पद के बीच में जो परसमयप्रतिपादक पद है, वह प्राणियों में कुवा. मा प्रभारी छ. (१) साक्षर, (२) असधि , (3) सारवत् (४) विश्वतोभुभ, (५) मस्तान, (६) सन१५. मा गुणाना अन्तर्भाव पूर्वेति शुभां જ થઈ જાય છે. એમની વ્યાખ્યા ઉત્તરાધ્યયન સૂત્રમાં આપવામાં આવી છે तो त्यांथी ratel देवीन. (तओ तत्थ) सूत्रानुगममा मा प्रमाण समस्त दोष नित सूत्र सभुग्यरित पाथी (णज्जिहिति) मा सूत्रथा मा पाता है (ससमयपयं वा परसमयपयं वा बंधपयं वा मोक्खपयं वा सामाइयपयं वा णोसामाइयपय वा) मा २५समय ५४ छ, मा પરસમય પદ છે, આ બન્મ પદ , આ મેક્ષ પદ છે, આ સામાયિક પદ છે અથવા આ નેસામાયિક પદ છે. સ્વસિદ્ધાન્ત સમ્મત જીવાદિક પદાર્થોનું પ્રતિપાદક જે પદ છે, તે સ્વસમય પદ છે. પરસિદ્ધાતસમ્મત પ્રધાન પ્રકતિ ઇશ્વર વગેરેનું પ્રતિપાદક જે પદ છે, તે પરસમયપદ છે. આ સ્વસમય અને પરસમય પદની વચ્ચે જે પરસમય પ્રતિપાદક अ० १०९

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