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अनुयोगद्वारस्त्रे वर्णयामि एकैकं पदं प्रज्ञापयामीत्यर्थः। व्याख्यानमारमेवाह-संहिया य पयं चेव' इत्यादि । तत्र संहिता अस्खलितपदोच्चारणम् , यथा-'करेमि भंते ! सामाइयं' इत्यादि ॥१॥ पदं-सुप्तिडम्तरूपम् , यथा-'करेषि' इत्येकं पदम् , 'भंते' इति द्वितीय पदम् , 'सामाइयं' इति तृतीयं पदम् ।।२।। पदार्थः='करेमि' इत्यभ्युपगमः, 'भंते' इति गुर्वा मन्त्रणम् , 'सामाइयं' इति समस्य आयः रत्नत्रयलाभः ॥३॥ पदविग्रहः= प्रकृतिप्रत्ययविभागरूपो विस्तारः,-यथा समस्य आय:-समायः स एव सामायिकमिति ॥४॥ चालना-मूत्रस्य अर्थस्य वाऽनुपपत्त्युद्भावनम् ॥५॥ प्रसिद्धिा द्वारा अनधिगत अर्थाधिकारों का उन्हें अधिगम हो, इस निमित्त पद से पद का वर्णन करता हूँ । अर्थात्-एक-एक पद की प्रज्ञापना करता हूँ। (संहिया य पयं चेव पयत्थे। पयविग्गहो। चालणा य पसिद्धीय, छवि विद्धि लक्खणं) अस्खलितरूप से पद का उच्चारण करना इसका नाम संहिता है । जैसे-'करेमि भंते सामाइयं' इत्यादि । सुबन्त
और तिङ्गन्त प्रतिपादिक शन्द की पद संज्ञा होती है। जैसे 'करेमि' यह प्रथम तिङ्गन्तपद है, 'भंते' यह द्वितीय सुबन्त पद है। 'सामाइयं' यह तीसरा पद है। पद के अर्थ का नाम पदार्थ है-जैसे करेमि' करता हूँ का अर्थ सामायिक करने का अभ्युपगम होता है । 'भंते' यह गुरुजनों के लिये आमंत्रण है। तथा-सवरूप रत्नत्रय का आय-लाभ-यह सामा. यिक पद का अर्थ हैं । प्रकृति प्रत्यय का विमागरूप जो विस्तार है-- वह पदविग्रह है। जैसे समस्य आयः समाय: समाय एव सामायिकम' सूत्र की अथवा अर्थ की अनुपपत्ति का उद्भावन करना इसका नाम स्वामि) मेथी त भुनिस। १९ मनधिशत अर्थाधिपारे। तभने मधिराम जाय, આ નિમિત્તપદથી વર્ણન કરું છું, એટલે કે એક એક પદની પ્રજ્ઞાપના કરું छु. (संहिया य पयं चेत्र पयत्थो पयविगहो। चालणा य पसिद्धी य छव्विहं विद्धि लक्खणं) मलित ३५थी ५६नुसार ४२ सहिता छ. रेम 'करेमि भंते सामाइयं त्या सुमत सन्ति प्रतिपाहित शहनी ५४ संज्ञा थाय छे. म 'करेमि' मा ५६ तिगत ५६ छे. 'भंते' मा द्वितीय सुत ५६ छे. 'सामाइयं' 24 तृतीय ५६ छ, ५४।। अथर्नु नाम पहाय छे.
म 'करेमि'न। म सामायि ४२१ान मयुगमाय छे. भवे' मा ગુરુજનો માટે આમંત્રણ છે. તથા સમરૂપ રત્નત્રયને આય-લાભ-આ સામાયિક પદને અર્થ છે. પ્રકૃતિ પ્રત્યયના વિભાગ રૂપ જે વિરતાર છે, તે. पहविग्रह २.२ 'समस्य आयः समायः समायः एव सामायिकम्' सूत्रनी અથવા અર્થની અનુ૫૫સિનું ઉદ્દભાવન કરવું તે ચાલના છે. સૂત્ર અને તેના