Book Title: Anuyogdwar Sutra Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 883
________________ ८७० अनुयोगद्वारसूत्रे सूत्रालापकनिक्षेपः कृतकार्यों भवति । ततश्च पदार्थपदविग्रहादिः सर्वोऽपि सूत्र स्पर्शकनियुक्त्यनुगमस्य विषयः। तथा-वक्ष्यमाणनैगमादिनयानामपि प्रायः पदार्थादिविचार एव विषयः। उक्तं चान्यत्रापि "होइ कयत्थो वोत्तुं, सपयच्छेयं मुयं सुयाणुगमो । सुत्तालावगनासो, नामाइन्नासविणिभोगं ॥१॥ मुत्तप्फासियनिज्जुतिविणिोगो सेसओ पयत्थाई । पायं सोच्चिय नेगमनयाइ नयगोयरो होइ ॥२॥ छाया-भवति कृतार्थ उक्त्वा सपदच्छेदं मूत्र सूत्रानुगमः। सूत्रालापकन्यासो नामादिन्यासविनियोगम् ॥१॥ सूत्रस्पर्शकनियुक्तिविनियोगः शेषकः पदार्थादिः। प्रायः स एव नैगमादि नयगोचरो भवति ॥इति।। नया अपि पदार्थादीनेव विषयीकुर्वन्ति, इत्थं च ते ततः सूत्रस्पर्शकनियुक्त्यन्तगंवा एष भावनीया इति । अनेन प्रकारेण सूत्रे व्याख्यायमाने सूत्रं सूत्रानुगमः सूत्रालापकों को नाम स्थापना आदि निक्षेपों में वह विभक्त करता है। इसी कार्य से यह कृतार्थ हो जाता है। इसके बाद पदार्थ, पदविग्रह आदि जो और काम बचता है, उसे सूत्रस्पर्शक नियुक्त्यनुगम संपादित करता है। तथा-जिनका कथन आगे आनेवाला है-ऐसे जो नैगम आदि सान नग है, इसका भी प्रायः पदार्थ आदि का विचार करना ही विषय है। यही बात अन्यत्र भी कही गई है-'होईकयत्यो बोत्तुं, इत्यादि इन गाथाओं का अर्थ पूर्वोक्तरूप से ही है.। नैगम आदि नय भी जब पदार्थ आदि को ही विषश करते हैं तय इस दृष्टि से 'वे सूत्रस्पर्शक नियुक्त्यनुगम के ही अन्तर्गत हो जाते हैं। ऐसा जानना નિરિક્ષણ કરે છે, એટલે સૂવાલાપને નામ સ્થાપના વગેરે નિક્ષેપમાં તે વિભક્ત કરે છે. આ કાર્યથી જ આ કૃતાર્થ થઈ જાય છે, ત્યારબાદ પદાર્થ, પત વિગ્રહ વગેરે જે બીજુ કામ બાકી રહે છે તેને સૂચસ્પશક નિર્યુંફત્યનું ગમ સંપન્ન કરે છે. તથા જેમનું કથન આગળ થવાનું છે, એવા જે નગમ વગેરે સાત ન છે, એમને પણ પ્રાયઃ પદાર્થ વગેરે વિષે વિચાર કરે જ छ. र त अन्यत्र ५ मा भावी छ. 'होइ कयत्थो वोत्त इत्यादि आया-माना अर्थ पूर्वरित ३५vir छे. नैसम मा नय पक्ष) જ્યારે પદાર્થ વગેરેને જ વિષય કરે છે. ત્યારે આ દષ્ટિએ તે સૂત્ર સ્પર્શક નિત્યનગમના અંતર્ગત જ થઈ જાય છે આમ જાણી લેવું જોઈએ.

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