________________
engineerद्रका टीका सूत्र २५० नयस्वरूपनिरूपणम्
८७३
प्रज्ञप्ताः, मूलत्वं चैषामुचरभेदापेक्षया बोध्यम् । ते मूलनयाथ नैगमसंग्रहादयो बोध्याः । तत्र नैगमं व्याख्यातुमाह- 'जेगेहिं माणेहिं' इत्यादि । नैकैः-न एकानि नैकानि मचुराणि तैस्तथाभूतैः मानैः = महासत्तासामान्यविशेषा दिज्ञानैर्मिनो ति= परिच्छिनत्ति वस्तूनीति नैगमः, इतीयं नैगमस्य निरुक्तिर्बोध्या । अथवा-निगमाः= 'लोके वसामि तिर्यग्लो केक्सामि' इत्यादयः पूर्वोक्ता एवं बहवः परिच्छेदास्तेषु मत्रो नैगम इत्यपि नैगमशब्दस्य व्युत्पत्तिर्विज्ञेया । शेषाणाम् = इतोऽवशिष्टानामपि नयानां लक्षणमिदं शृणुत, यदहं वक्ष्ये ॥ १॥ अथ प्रतिज्ञातमेव वक्तुमुपक्रमते'संगहिय' इत्यादि । तीर्थ करगणधरादयो हि संगृहीतपिण्डितार्थं सम्यग् गृहीतःन
उत्तर--(सत्त मूलणया पण्णत्ता) सात मूलनय कहे गये हैं । इनमें मूलरूपता उत्तरभेदों की अपेक्षा जानना चाहिये । (तं जहा) वे सातमूल नव ये हैं | (जेगमे, संगड़े, बबहारे, उज्जुसुए, सदे, समभिरूढे, एवंभूए) नैगम, संग्रह व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्दसमभिरूद, और एवं भूत । जो नय (तस्थ जेगेहिं माणेहिं मिणइति जेगमस्स य निरुती) वस्तूनि नैकैः मानैः मिनोति इति नैगम:' इस निरुक्ति के अनुसार महासत्ता, सामान्य एवं विशेष आदि प्रचुर ज्ञानों द्वारा वस्तु का परिच्छेद करता है, वह नैगम नय है । अथवा 'लोके वसामि, तिर्यग्लो के वसामि' इत्यादि पूर्वोक्त जो परिच्छेद हैं-उनका नाम निगम है। इन निगमों में जो नय होता है, वह नैगमनय है । यह भी नैगम शब्द की व्युत्पत्ति है । (सेसाणं पि नयाणं लक्खणमिणमोसुणह वोच्छं) इसके बाद जो और छह नय बाकी हैं, उनके इस लक्षण को सुनो-मैं
उत्तर-- ( खत्त मूलणया पण्णत्ता) सात भूसनये। वामां आवे छे. या सर्वमां भूस३पता उत्तरलेडोनी अपेक्षाओ लायुवी लेये. (तं जहा ) ते सात भूस नयो भा प्रमाये छे. ( णेगमे, संगद्दे, ववहारे, उज्जुसुए, सद्दे, समभिरूढे. एवंभूए) नैगम, सथडे, व्यवहार, ऋतु सूत्र, शब्दसमलि३ढ याने शोवलून ने नय (तत्थ णेगेहिं माणेहिं मिणइति णेगमस्स य निरुत्तीः ) 'वस्तूनि नैकैः मानैः मिनोति इति नैगमः' मा निरुडित भुभ्ण भहासत्ता, सामान्य એવ' વિશેષ આદિ પ્રચુર જ્ઞાના વડે વસ્તુપરિચ્છેદ કરે છે, તેનૈગમ નય છે. अथवा 'लोके वसामि' तिर्यग्लोके वसामि' इत्यादि यूर्वोस्त ने परिच्छेद छे, તેનુ નામ નૈગમ છે. આ નિગમેામાં જે નય હાય છે તે નૈગમનય છે. આ પ नैगम शब्दनी व्युत्पत्ति छे. (सेसाणं पि नयाणं लक्खणमिणमोसुणहवोच्छं ) त्याश्णाह ने जील ६ नाम शेष छे, तेभना लक्षणो डु उडु
अ० ११०