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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २४८ अनुगमनामानुयोगद्वारनिरूपणम्
छाया - क्षेत्र दिकालगति भविक संयुच्छ्रवास द्दष्टयाहारान् । पर्याप्तमुप्त जन्मस्थिति वेदसंज्ञा कषायायूंषि ॥ १ ॥ ज्ञानं योगोपयोगी, शरीर संस्थान संहननमानानि । लेश्या परिणामं वेदनां च समुद्घात कर्म च ॥२॥ निर्वेष्टनमुद्वर्त्तम् आसकरणं तथा अलङ्कारम् । शयनासनस्थानस्थान् चङक्रमतश्च किं व 'सामायिकम् ॥३॥ इति ।
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अयमर्थ:
क्षेत्रं दिशः कालं गतिं भव्यं संज्ञिनम् उच्छ्रासं दृष्टिम् आहारकं चाश्रित्य क किं सामायिकं भवतीति वक्तव्यम् । तथा पर्याप्तमुप्त जन्मस्थिति वेदसंज्ञाकषायाऽयूषि चाश्रित्य क किं सामायिकं भवतीति वक्तव्यम् । तथा-ज्ञानं योगोपयोगग़ौ शरीरसंस्थान संहननमानानि लेश्यापरिणामं वेदनां समुद्घातकर्म चाश्रित्य किं वा
तथा - 'सामायिक कहां होता है' यह भी कहना चाहिये इसी अर्थ को इन तीन गाथाओं द्वारा स्पष्ट किया गया है-ये गाथाएँ' खेतदिसिकाल गई ' इत्यादि हैं । इनका अर्थ इस प्रकार से हैं- (१) क्षेत्र, (२) दिशा, (३) काल, (४) गति, (५) भव्य, (६) संज्ञी, (७) उच्छ्वास, (८) दृष्टि, और (९) आहारक, को आश्रित करके कहां कौन सा सामायिक होता है ? यह कहना चाहिये । तथा - (१०) पर्यास, (११). सुत, (१२) जन्म, (१३) स्थिति, (१४) वेद, (१५) संज्ञा, (१६) कषाय, और (१७) आयु इनका आश्रय करके कहां कौन सामायिक होता. है ? यह कहना चाहिये । तथा - (१८) ज्ञान, (१९) योग, (२०) उपयोग, (२१) शरीर, (२२) संस्थान, (२३) संहनन, लेइया, (२६) परिणाम, (२७) वेदना, (२९) समुद्घात कर्म.. તેમજ ‘સામાયિક કર્યા હાય છે એ વિષે પણ કહેવુ જોઈએ. એ જ અને આ ત્રણ ગાથાઓ વડે સ્પષ્ટ કરવામાં આવેલ છે. આ ગાથાઓઃ 'खेत्तदिवि काल गई' त्यिाहि थे, मानो अर्थ मा प्रभाछे छे. (१) क्षेत्र (२) दिशा, (3) प्राण (४) गति, (4) अव्य, (६) सज्ञी. (७) २छ्वास (८) दृष्टि અને (૯) આહારકને આશ્રિત કરીને કયાં કયું સામાયિક હોય છે, આ उडे धो. तेभन (१०) पर्याप्त ( ११ ) सुप्त (१२) वन्य (13) स्थिति, (१४) वेঃ (१५) सज्ञान (१९) उपाय भने (१७) आयु या सर्वना आश्रय हरीने या भ्यु सामायिक हाय हो ? भाडेवु लेई थे, तथा (१८) ज्ञान, (१८) थे!ग, (२०) उपयोग, (२१) शरीर, (२२) संस्थान, (२३) संहनन, (२४) भान, (२५) बेश्या (२९) परिश्याम, (२७) बेहना, (२८) समुद्रघात
(२४) मान, (२५)
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