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अनुयोगद्वारस्ते नन्तकं भवति । ततः परम् अजघन्यानुत्कर्ष काणि स्थानानि यावत् उत्कर्षक परीतानन्तकं न प्राप्नोति । उत्कर्षक परीतानन्तक कियद् भवति १, जघन्यकपरीतानन्तकमात्राणां राशीनाम् अन्योन्याऽभ्यासो रूपोनः उत्कर्ष के परीतानन्तक भवति, अथवा जघन्यक युक्तानन्तक रूपोनम् उत्कर्षक परीतानन्तकं भवति । जघन्य युक्तानन्तक कियद् भवति ? जघन्यकपरीतानन्तकमात्रामा जाता है। (तेण परं अजहण्णमणुक्कोसयाई ठाणाई जाव उक्कोसयं परित्ताणतयं ण पावइ) इसके बाद अजघन्यानुत्कृष्ट परीतानंतक के स्थान होते हैं । जघन्य परीतानंतक से आगे एक एक अंक की वृद्धि करते जानी चाहिये-तो यह वृद्धि वहां तक करनी चाहिये कि-'जहां उत्कृष्ट परीतानन्तक का स्थान न आ जावे । (उक्कोसयं परित्ताणतयं केवयं होह) हे भदन्त ! उत्कृष्ट परीतानन्तक का क्या स्वरूप है ?
उत्तर-(जहण्णयपरित्ताणतयमेत्ताणं रासीणं अण्णमण्णभासो रुखूणो उक्कोसयं परित्ताणतय होइ) जघन्य परीतानंन्तक का जितना प्रमाण कहा गया है, उसको आपस में अन्योन्य अभ्यास करना चाहिये और उस राशि में से एक अफ कम कर देना चाहिये-इस प्रकार जितनी राशि का प्रमाग रहे, वह उत्कृष्ट परीतानन्तक का प्रमाण जानना चाहिये। तात्पर्य यह है कि-'जघन्य परीतानन्तक में जितना सर्षपों का प्रमाण होता है-उस प्रमाण का आपस में अन्योन्य अभ्यास के रूप में
२.पाथी धन्य ५रीतनतनु प्रभार भने छ. (तेण परं अजहण्णमणुककोसयाई ठाण इं जाव उकोमय' परित्ताणतय ण पावइ) त्या२ ५७। અજઘન્યાનકૃષ્ટ પરીતાનંતકના સ્થાને હોય છે. જઘન્ય પરીતાનંતકથી આગળ એક એક અંકની વૃદ્ધિ ઉતકૃષ્ટ પરીતાનન્તકનું સ્થાન ન આવી જાય यi as ४२वी २४ (उकोमयं परित्तणतय केवइय होइ ?) 8 ! ઉત્કૃષ્ટ પરીતાનંતકનું સ્વરૂપ કેવું છે?
उत्तर-(
जयपरित्ताणतयमे वाण रासीण अण्णमण्णभाओ रूयूणो उक्कोसय' परित्ताणतय होइ) धन्य परीतान-तनु २९ प्रमा કહેવામાં આવ્યું છે, તેને પરસ્પર વર્ગ કરવો જોઈએ. અને તે રાશિમાંથી એક અંક ઓછો કરી નાખવું જોઈએ. આ પ્રમાણે જેટલી રાશિનું પ્રમાણ બાકી રહે, તે ઉર પરીનાનન્તકનું પ્રમાણ જાણવું જોઇએતાત્પર્ય આ છે કે જઘન્ય પરીતાન-નકમાં જેટલા સર્વપિનું પ્રમાણ હોય છે, તે પ્રમાણુને પરસ્પર અન્ય અભ્યાસના રૂપમાં ગુણાકાર કરવાથી જઘન્ય