Book Title: Anuyogdwar Sutra Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 774
________________ अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २४६ नामनिष्पन्ननिरूपणम् यिक और स्थापना सामायिक का स्वरूप नाम आवश्यक एवं स्थापना आवश्यक के जैसे जानना चाहिये । (दव्यनामाइए वि तहेव जाध से तं भवियसरीरदब्वसामाइए) तथा द्रव्य सामायिक का स्वरूप भी द्रव्य आवश्यक के जैसा ही जानना चाहिये । और यह द्रव्य सामायिक का स्वरूप द्रव्य आवश्यक के जैसा वहां तक ही जानना चाहिये कि जहां भव्पशरीर द्रव्यसामायिक का कथन समाप्त होता है। (से कि त जोयसरीरभवियसरीररित्ते दवव. सामाहए?) हे भदंत! ज्ञाय शरीर भत्पशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य सामा. यिक क्या है ? उत्तर--(जाणयसरीरमवियसरीरबहरिते दग्धसामाइए पत्तु चपोस्थय लिहिए) ज्ञायकशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्यसामायिक पत्र पुस्तक में लिखित । 'करेमि भंते सामाइयं' इत्यादि पाठ है । (से तं जाणयसरीरभविपसरीरवहरित्ते दवनसामाइए ) . इस प्रकार यही ज्ञायकशरीर भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्य सामायिक का स्वरूप जानना चाहिये । (से तणो आगमओ दव्वसामाइए) इस प्रकार नो आगम की अपेक्षा यह द्रव्य सामायिक का स्वरूप कथन है। (से किं तं भावसामाइए?) भदन्त ! भावसामायिक क्या है ? (भाव सामाभणियाओ) मामा नामसामयि, अने स्थापना सामायिन स३५ नाम सा११५४ अन स्थापना सापश्यनी म " one वे नये. (दव्व खामाइए वि तहेव जाव से त भवियसरीरदव्वसामाइए) तमश द्रव्य સામાયિકનું સ્વરૂપ પણ દ્રવ્ય આવશ્યકની જેમજ જાણું લેવું જોઈએ, અને આ દ્રવ્ય સામાયિકનું સ્વરૂપ દ્રવ્ય આવશ્યકની જેમ ત્યાં સુધી જ જાણવું. જોઈએ કે જ્યાં સુધી ભવ્ય શરીર દ્રવ્ય સામાયિકનું કથન સમાપ્ત થાય છે. (से कि त जाणयसरिरभवियसरीरवइरित्ते दवसामाइए) 3 Ra! शाय४ શરી૨ ભવ્ય શરીર ધ્યતિરિક્ત દ્રવ્ય સામાયિક શું છે? तर--जाणयसरीरम वेयसरीरवइरित्ते दवसामाइए पत्तयपोग्थय लिहिए) નાયક શરીર ભવ્ય શરીર વ્યતિરિક્ત દ્રવ્ય સામાયિક પત્ર પુસ્તકમાં वजित करे मे भो सामाइयं' इत्याटि. ५४ छे (से त' जाणयसरीरभवियसरीरवरित्ते दासामाइए) मा शायशरीर सव्यशरीर व्यतिक्षित द्रव्य सामायिनु २१३५ meी न. (से तणो आगमओ दवसाम:इए) मा प्रमाणे मागमनी अपेक्षाणे द्रव्य सामायिना २१३५नु अ० ९६

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