________________
अनुयोगद्वारसूत्रे
-
७६३ सामायिकं तु आगमतो नो आगमतो भेदेन द्विविधं प्रज्ञप्तम् । तत्र आगमतो भाव सामायिकं-ज्ञायक उपयुक्तो बोध्यम् । नो आगमतो भावसामायिकं यथा भवति बहि-'जस्स सामाणि भो अप्पा' इत्यादि गाथा षटकेन । अयं भावः-यस्य मनुष्यस्य मूलगुणरूपे संयमे उत्तरगुण मूहरूपे नियमे तपसि अनशनादा च इए दुविहे पण्णत्ते) भाव मामायिक दो प्रकार को है । (तं जहा) जैसे (आगओ.य नो आगमओ य) एक आगम से दूसरा नो आगम से (से कितं आग:ो भावलामाइप ) हे भदन्त ! आगम से भाव सामायिक क्या है?
उत्तर--(आगमओ आवसामाइए-जाणए उप-से तं आगभो भावसामाइद) आगम से भावसामायिक ज्ञायक उपयुक्त है। अर्थात् सामायिक.इस पदका जो ज्ञाता है और उसमें उसका उपयोग है, ऐसा वह ज्ञायक आरमा आगम की अपेक्षा भावसामा. यिक है। (से कि तं नो आगमओ भावसामाइए) हे भदन्त ! नो आगम की अपेक्षा भाव सामायिक क्या है ?
उत्तर--(नो आगमो भावसामाइए) नो आगम की अपेक्षा भावसामायिक इसमकार से है-(जस्त सामाणिो अप्पा संजमे. णियमे तवे। तस्स सामाइयं होह, इइ के वलि भासिय १। जिस मनुष्य ४थन छे. (से कि त' भावनामाइए ?) BRa! मापसामायि: छ ? (भावसामाइए दुविहे पत्ते) पावसामायि: मे मारने छे. (तजहा) TA (आगमओ य नो आगमो य) मे सामथी भने द्वितीय ना भासमयी (से कि त आगमओ भावसामाइए) Ra! माथी साप सामायि: शु छ ? ..
उत्तर--(आगमओ भावसामइए-जाणए उवउत्ते-से त' आगमओ भावशामाइए) मागमथा मासामाथि शाय: ५युत छ. मेट है સામાયિક આ પદને જે જ્ઞાતા છે અને તેમાં તેને ઉપગ છે, એ તે જ્ઞાપક मामा मागभनी मामे सावसामायि छे. (से कि त नोभागमओ भावसामाइए) Ra! । मामानी मपेक्षा मा सामावि छ ?
उत्तर--(नो आगमओ भावसामाइए) नो मागभनी अपेक्षा सार सामायि: मा प्रभारी छे. (जस्स सामाणिओ अप्पा संजमे णियमे तवे तरस सामाइयं होइ, इइ केवलिभासियं ॥१॥) मनुष्यनमामा भूखYथ