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अनुयोगसन्द्रिका का सूत्र २४१ क्षेत्रसमवतारादीनां निरूपणम् , ५९९ की अपेक्षा से आलिका में भी रहता है और आत्मभाव में भी रहता है। आवलिका असंख्यात समय की होती है । इसलिये अपनी अपेक्षा वह बृहत् प्रमाणवाली है। अतः समयरूप काल को तदुभय समव. तार की अपेक्षा आवलिका के आश्रित रहना कहा है। तथा ऐसा होने पर भी वह अपने निजरूप का परित्याग नहीं करता है-इसलिये आत्मभाव में भी उसका निवास प्रकट किया है । (एवमाणापाणू, थोवे, लवे, मुहत्ते, अहोरत्ते, पक्खे मासे उऊ, अयणे, संवच्छरे, जुगे, वाससए वास. सहस्से, वाससयसहस्से, पुवंगे, पुन्वे तुडिअंगे, तुडिए, अडगेअडडे अववंगे, अबवे, हुहुअंगे, हुहुए, उपलगे, उप्पले पउमंगे, परमे, णलिणंगे, गलिणे, अच्छनि उरंगे, अच्छनिउरे, अउअंगे, अउए, नउअंगे, न उए, पउअंगे, पउए, चूलिअंगे, चूलिया, सीसपहेलिअंगे, सीसपहेलिया, पलिओवमे, सागरोवमे, आयसमोयारेण आयभावे, समोयरइ) इसी प्रकार आनप्राण, स्तोक, लव, मुहूर्त, अहोरात्र, पक्ष, मास ऋतु, अयन, संवत्सर युग, वर्षशत, वर्षसहस्र, वर्षशतसहस्र, पूर्वाङ्ग पूर्व, त्रुटिताङ्ग, त्रुटित, अटटाङ्ग अटट, अववाङ्ग अवव, हूहूकाङ्ग, हूहूक, उत्पलाङ्ग, उत्पल, पद्माण, पद्म, नलिनाङ्ग, नलिन, अच्छनिकुराङ्ग,
आयभावे य) तलय सभवारनी अपेक्षा ये सालिमा ५५ २७ छ. २ આત્મભાવમાં પણ રહે છે. આવલિકા અસંખ્યાત સમયની હોય છે. એથી તે
અપેક્ષાએ બૂડત પ્રમાણુવાળી છે. એથી સમય રૂપકાળને તદુભય સમવતારની અપેક્ષા આવલિકાના આશ્રિત છે, એવું કહ્યું છે. તેમજ આમ થવાથી પણું તે પિતાના નિજ સ્વરૂપને પરિત્યાગ કરતું નથી. એથી આત્મભાવમાં પણ
न निवासस्थिति स्पष्ट ४२वामा मावल छे. (एवमाणापाणू थोवे, लवे, मुहत्ते, अहोरत्ते, पक्खे, मासे, उऊ अयणे, संवच्छरे, जुगे, वाखसए, वाससह स्से, पुव्वंगे, पुग्वे, तुडिअंगे, तुडिए, अडडंगे अडडे, अवधंगे, अववे, हुअंगे, हुहुए, उप्पलंगे, उप्पले, परमंगे, पउमे, णलिणंगे, णलिणे, अच्छनिउरंगे, बच्छनिउरे, अतअंगें, अउप, नतअंगे, नउए, पउअंगे, परए, चूलिअंगे, चूलिया, सीसपहे. लिअंगे, वीसपहेलिया, पलिओवमे, सागरोषमे, आयसमोयारेण पायभावे समोयरइ) मा प्रमाणे माना, स्ता, सप, मुखत, भडारा, पक्ष, मास, *d, मयन, सत्सर, युग, शत, ११ सस, पूर्ण, पू त्रुहिता, दुहित, भटांग, मटर, भqain, १३, ४in, Gruain, Gya Hin, 4, Hain, नबिन, मक्षानिsil, Aaनिg२, मयुतांश, मयुत,