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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २४३ सम्प्रत्यक्षीणनिरूपणम्
७४५ क्षीणम् । अथ किं तत् भव्यशरीरुद्रव्याक्षीणम् ?, भपशरीरव्याक्षीणं-यो जीवो योनिजन्मनिष्क्रान्तो यथा द्रव्याध्ययन यावत् तदेतत् भव्यशरीरद्रव्याक्षीगम्। अथ किं तत् ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तं द्रव्याक्षीगम् ?, सर्वाः ज्ञायकद्रव्यभक्षीण पद लगाकर उस अर्थ की सगति बैठा लेनी चाहिये। इसी प्रकार से अन्यत्र भी ऐसा ही जानना चाहिये। (से कि तं भवियसरीरदव्यज्झीणे ?) हे भदन्त ! भव्यशरीर द्रवप्रअक्षीण का क्या स्वरूप है ? (भवियसरीरदवशीणे) भव्य शरीर द्रव्यशक्षीण का स्वरूप इस प्रकार से है कि-(जे जीवे जोणिजम्मणनिक्खंते जहा दब्यज्झयणे-जाव से तं भवियसरीरबहरित्ते दवशिषणे) इन पदों का अर्थ भी भव्यशरीर द्रशआवश्यक में कर दिया गया है-सो उसी माफिक जानना चाहिये। क्योंकि द्रव्य अध्ययन का वर्णन करते समय लिखा है कि द्रव्यअध्ययन में के ज्ञायकशरीरद्रव्यभध्ययन का और भव्यशरीर प्रव्य अध्ययन का स्वरूप द्रव्यावश्यक के इन भेदों के अनुसार ही जानना चाहिये। (से ॐि तं जाणयसरीरभवियसरीर वहरिते दन्धः ज्झीणे ?) हे भदन्त ज्ञायक शरीर और भव्यशरीर इन से व्यतिरिक्त द्रव्यअक्षीण का क्या स्वरूप है ?
उत्तर-(जाणयसरीरभवियसरीरवहरित्ते दवज्झीणे) ज्ञायकशरीर, भव्यशरीर इन से व्यतिरिक्त द्रव्य अक्षीण का स्वरूप इस प्रकारસોજિત કરીને તે અર્થની સંગતિ બેસાડી લેવી જોઈએ. આ प्रभारी भी स्थान पy oned a नये. (से कि त भवियसरीरदबहीणे) ! न०य शरीर द्रव्यमक्षीनु २१३५ यु छ ? (भवियसरीरदव्वज्झोणे) लव्य शरीर द्रव्यमक्षीनु २१३५ मा प्रभारी छ है
ने जीवे जोणिजम्मण निक्खंते जहा दव्यज्झयणे जाव से त' भवियसरीरवइरित्ते दवझीणे) मा पहोन। अथ ५ सय शरी२ द्रव्य मावश्यमा સ્પષ્ટ કરવામાં આવેલ છે. તે તે મુજબ જ જાણું લેવું જોઈએ. કેમકે દ્રવ્ય અધ્યયનનું સ્વરૂપ સ્પષ્ટ કરતી વખતે લખવામાં આવેલ છે કે દ્રવ્ય અધ્યયનમાંના જ્ઞાયક શરીર દ્રવ્ય અધ્યયનનું અને ભવ્ય શરીર દ્રવ્ય અધ્યય नन २१३५ द्रव्यापश्यना सा हा भुस are a नसे. (से कि त जाणयसरीरभवियसरीरवइगित्ते दबज्झीणे १). महत! ज्ञाय शरीर मन ભવ્ય શરીર એનાથી વ્યતિરિક્ત દ્રવ્ય અક્ષણનું સ્વરૂપ કેવું છે?
उत्तर :-(जाणयसरीरभवियसरीरवरित दव्वझीणे) शायर शरीर, ભવ્ય શરીર એમનાથી વ્યતિરિક્ત દિવ્ય અક્ષણનું સ્વરૂપ આ પ્રમાણે છે
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