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अनुयोगद्वारसूत्रे द्रव्याक्षीणम् अक्षीणपदार्थाधिकारज्ञायकस्य यत् शरीक व्यपगतच्युतच्यावितत्यक्तदेह यथा द्रव्याध्ययन तथा भणितव्यं, यावत् तदेतद् ज्ञायकशरीरद्रव्या
और ज्ञायकशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य अक्षीण (से किं तं जाणयसरीरदब्धज्झीणे) हे भदन्त ! ज्ञायकशरीर द्रव्यअक्षीण का क्या स्वरूप है? (जाणयसरीरदव्यज्झीणे-अज्झीणपयत्थाहिगारजाणय. स्स ज सरीरं ववगय, चुयचाविध चत्तदेहं जहा दव्यज्झयणे तहाभाणि यन्वं) ज्ञायकशरीरद्रव्य अक्षीग का यह स्वरूप है कि-'अक्षीण पद के अधिकार का जो ज्ञाता है, उस ज्ञाता का जो शरीर है, चाहे वह व्यपगत हो, च्युन हो, च्यावित हो, त्यक्त हो जैसा कि द्रव्य अध्ययन में कहा है-(जाव से तं जाणयसरीरदव्यज्झीणे) वह ज्ञायक शरीर द्रव्य अक्षीण है । इन व्यपगत आदि पदों का अर्थ द्रव्य आवश्यक के इस भेद को वर्णन करते समय स्पष्टरूप से लिखा जा चुका है। सो यहां से जान लेना चाहिये । यहाँ यावत् पद से 'जीवविष्पजहुँ सिज्जागयं आदि पदों से लेकर महुकुंभे आसी' यहां तक के पदों का संग्रह हुआ है। इन समस्त पदों का अर्थ भी द्रव्यावश्यक के इसी भेद वर्णन में कर दिया है । सो उस अर्थ को ज्ञायकशरीर द्रव्घअक्षीण परक लगा लेना चाहिये । जहां ज्ञायकशरीर द्रव्यावश्यक ऐसा पद आवे, वहां ति द्रव्य भक्षी (से कि त जाणयसरीरदव्वज्झीणे ) 3RE I ज्ञाय शरीर द्रव्य पक्षानु५५३५ यु छ ? (जाणयसरीरदबम्झीणे-अल्झीणपयत्थाहि गारजाणयस्स जं सरीरं ववगयचुयचावियवत्तदेहं जहा दवज्झयणे वहा भाणियव्वं) ज्ञाय शरीर द्रव्य पक्षीनु मा २१३५ छ है 'भक्षी पहना અધિકારને જે જ્ઞાતા છે, તે જ્ઞાતાનું જે શરીર છે, તે ભલે વ્યપગત હોય, ચુત હોય, હોય, ત્યકત હય, જેવું કે દ્રવ્ય અધ્યયનમાં ४ह्यु छ (जाव से त जाणयसरीरत्वज्झीणे) ते ज्ञाय शरीर द्रव्य सक्षी છે. આ વ્યપગત વગેરે પદેને અર્થ દ્રવ્ય આવશ્યકના આ ભેદના વર્ણન વખતે સ્પષ્ટ કરવામાં આવેલ છે.–તે જિજ્ઞાસુઓ ત્યાંથી જાણ લે. અહી यावत् : ५४थी "जीवविप्पजढ सिज्जागय" वगैरे पहाथी भांडशन "महकुम्भे भासी" मही सुधानी पहन यये छ. म स पहाना અર્થ પણ દ્રવ્યાવશ્યકના આ ભેદ. વર્ણનમાં કરવામાં આવેલ છે. તો તે અર્થને જ્ઞાયક શરીર દ્રવ્ય અક્ષણ પરક અર્થ બેસાડી લે જોઈએ જ્યાં જ્ઞાયક શરીર દ્વવ્યાવશ્યક એવું પદ આવે, ત્યાં જ્ઞાયક દ્રવ્ય અક્ષીણ વદ.