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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २४२ निक्षेपद्वारनिरूपणम् अध्ययन और स्थापना अध्ययन नाम आवश्यक और स्थापना आव: श्यक के जैसा ही जानना चाहिये । (से किं तं दध्वज्झयणे ?) हे. भदन्त ! द्रव्य अध्ययन का क्या स्वरूप है ?
उत्तर-(दव्यज्झयणे दुविहे पण्णत्ते) द्रव्य अध्ययन दो प्रकार का कहा गया है । (तं जहा) जैसे (भागमओ य जो आगमओ य) एक आगम से और दूसरा नो आगम से (से कि तं आगमओ दव्यज्झयणे) हे भदन्त । आगम से जो द्रव्य अध्ययन कहा गया है उसको क्या स्वरूप है ?
उत्तर--(आगमओ दव्यज्झयणे) आगम से जो, द्रव्य अध्ययन कहा गया है, वह इस प्रकार से है-(जस्स णं अज्झयण त्ति पयं सि. क्खियं ठियं, जियं मियं परिजियं, जाव एवं जावया अणुवउत्ता आग मओ तावइआई दव्यज्झयणाई) जिसने अध्ययन इस पदं का सीखा हैं, अपनी आत्मा में स्थित जित आदिरूप से किया है। (इन स्थित
आदि पदों का स्पष्ट अर्थ द्रव्यावश्यक प्रकरण में लिखा जा चुका है) परन्तु उस जीव का उपयोग वहां नहीं लगा है। इस प्रकार जितने भी अनुपयुक्त जीव हैं, वे सब आगम से द्रव्य अध्ययन हैं। (एवमेव वव. हारस्स वि, संगहस्स णं एगो वा अणेगा वा ) यहां से लेकर (से तं मावश्य भने स्थापन माश्यानी रेभ rangal. (से कि त. दव्वजझयणे १)BRE! द्र०य अध्ययननु २१३५ ३ छ।
उत्तर--(दव्वज्झयणे दुविहे पण्णत्ते) द्रव्य अध्ययन में प्रकार वामी भाव छ. (तं जहा) रभ (आगमओ य णो आगमओय) ४ भागमयों मन द्वितीय नो भागमथी (से किं तं आगमओ) के नत ! भागमा २ દ્રવ્ય અધ્યયન કહેવામાં આવેલ છે, તેનું સ્વરૂપ કેવું છે?
उत्तर-(आगमओ दव्वज्झयणे) भागमयी २ द्रव्य अध्ययन अपामा . साव छ, a मा प्रमाणे छ-(जस्स अज्झयणत्ति पयं सिक्खियं ठिये जियं मियं, परिजिय जाव एवं जावइया, अणुवउत्ता, आगमको वावइआई दव्य जायणाई) 0 अध्ययन मा ५४ने शोभ्यो छे, पाताना मात्मामा स्थित જિત વગેરે રૂપમાં કરેલ છે, (આ સ્થિત વગેરે પદોને સ્પષ્ટ અર્થ દ્રવ્યાવશ્યક પ્રકરણમાં લખવામાં આવેલ છે) પરંતુ, તે જીવને ઉપયોગ ત્યાં બંધ બેસતું નથી. આ પ્રમાણે જેટલા અનુપયુકત જીવે છે, તે સર્વે આગभया द्र०य अध्ययन छे. (एवमेव ववहान वि, संगहरसणं एगो वा अणेगोवा)
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