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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २३९ अर्थाधिकारद्वारनिरूपणम्
७०३ अथ उपक्रमस्य पञ्चमं द्वारम् अर्थाधिकारं निरूपयतिप्लम्-से किं तं अस्थाहिगारे? अस्थाहिगारे-जो जस्त अज्झयणस्स अस्थाहिगारो, तं जहा-"सावजजोगविरई, उकितण गुणवओ य पडिवत्ती। खलियस्त निंदणा वणतिगिच्छ गुणधारणा चेव ॥१॥” से तं अस्थाहिगारे॥सू०२३९॥
छाया-अथ कोऽसौ अर्थाऽधिकारः ?, अर्थाधिकारः-यो यस्य अध्ययनस्य अर्थाधिकारः, तथा-साद्ययोगविरतिः उत्कीर्तनं गुणवतश्च प्रतिपत्तिः। स्खलित. रय निन्दना व्रणचिषित्सा गुणधारणा चैव' । स एषोऽर्थाधिकारः ॥१०॥ २३९॥ वक्तव्यता ही है-पर समयवक्तव्यता नहीं है । (सेतंवत्तव्वया) इस प्रकार यह वक्तव्यता विषयक कथन है ॥ सू० २३८॥
अब सूत्रकार उपक्रम का पांचवां द्वार जो अधिकार है उसका निरूपण करते हैं-से किं तं अस्थाहगारे १' इत्यादि।
शब्दार्थ-(से किं तं अत्याहिगारे ?) हे भदन्त ! पूर्व प्रकान्त अर्थात धिकार क्या है ?
उत्तर--(अत्याहिगारे) पूर्व प्रकान्त वह अधिकार इस प्रकार से है कि (जो जस्स अज्झयणरस) जो जिस सामायिक आदि अध्य यन का (अत्याहिगारो) अर्थ विषयक अधिकार हैं, वही अथाधिकार हैं। (तं जहा) जैसे (सावजजोग विरई, उक्कित्तणगुणवोय पडिवत्ती, खलियस्स निंदणा, वणतिगिच्छगुणधारणाचेव) इस गाथा का नथी. सन २१समय५२समययता नथी. (सेत्त वत्तवया) ॥ प्रमाणे આ વકતવ્યતા વિષયક કથન છે. | સૂ૦ ૨૩૮ .
હવે સૂત્રકાર ઉપક્રમનું પાંચમું દ્વાર છે. અર્થાધિકાર છે. તેનું नि३५५५ रे छ:-'से किं तं अत्थाहिगारे ?' त्याल
शा--(से कि तं अस्थाहिगारे १) महन्त ! पूर्व प्रान्त अर्थाधि. ३२ शु छ?
उत्तर--(अस्थाहिगारे) पूर्व भाविहार । प्रमाणे (जो जरस अन्झयणास) २२ qwa सामायि वगैरे मध्ययनना (अस्थाहिगारो) मविषय अधिकार छ, ते अधिार छ. (तं जहा) भ (सावज्जजोगविरई, उकित्तणं गुणवओय पडिवत्ती, खलियरसनिंदणा, वणतिगिच्छ