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अनुयोगन्द्रिका टीका सूत्र २४० समवतारद्वारनिरूपणम् .... -७१३ समतारेग तु. चतुर्भागिकाऽष्टाविंशत्यधिकै शतपलमानायाम माणिकायां समवतरति आत्मभावेच । तथा-अर्द्धमाणिकाऽपि आत्मसमवतारेण आत्मभावे समवतरति, उभयसमवतारेण तु षट्पश्चाशदधिकशतद्वयमानायाममाणिकायां समवतरति आत्मभावे चेति । इत्थं तदुभयव्यतिरिक्तो द्रव्यसमवतारो निरूपित इति सूचयितुमाह-स एष ज्ञायक-शरीरमव्यशरीरव्यतिरिक्तो . द्रव्यसमचतार इति । इत्थं नो आगमतो द्रव्यसमवतारस्य त्रिविधोऽपि भेदो निरूपितं इति सूच. यितुमाह-स एंष नो आगमतो द्रव्यसमवतार इति । इत्थं सभेदो द्रव्यसमवतारो निरूपित इति सूचयितुमाह- स एष द्रव्यसमवतार इति ॥५० २४०॥.. है और तदुभय समवनार की अपेक्षा अर्धमाणी में भी रहती है और आत्मभाव में भी रहती है (अद्धमाणी आयसमोयारेणं आयभावे समो. यरइ तदुभयसमोयारेणं अद्धमाणीए समोयरइ आयभावे य) इसी प्रकार से जो अर्धमानी है वह आत्मसमवतार की अपेक्षा से आत्मभाव में रहती है और तदुभयसमवतार की अपेक्षा से मानी में भी रहती है
और आत्मभाव में भी रहती है १२८ पल की अर्धमानी होती है और २५६ पल की मानी होती है । (से तं जाणयसरीरभवियसरीर इ. रित्ते व्वस्तमोयारे) इस प्रकार यह पूर्व प्रक्रांत वह ज्ञायक शरीर भव्य. शरीर से व्यतिरिक्त द्रव्यसमवतार होता है । (से ते नो आगमओ दव्यस०) इस प्रकार से सूत्रकार ने नो आगम की अपेक्षा लेकर द्रव्या समवतार के तीन प्रकार के भेदों का निरूपण किया। इसके निरूपित "हो जाने पर (से तं दधसमोयारे ) द्रव्यसमवतार पूर्णरूप से निरूपित हो चुका ॥ सू० २४०॥ સમવતારની અપેક્ષા અર્ધમાણમાં પણ રહે છે અને આત્મભાવમાં પણ રહે 2. (अद्धमाणी, आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तभयसमोयारेणं अद्ध माणीए समोयरइ आयभावे य) मा प्रभारी ने मधमानी छ तामसभवताना અપેક્ષાએ આત્મભાવમાં રહે છે અને તદુભય સમવતારની અપેક્ષાએ માનીમાં પણ રહે છે. અને આત્મભાવમાં પણ રહે છે. ૧૨૮ પલની અર્ધમાની डाय. सन २५६ ५सनी मानी डाय छे. (से ते जाणयसरीरभषियसरीर वहरिते दव्वसमोयारे) प्रमाणे मा भू त ज्ञाय शरीर मयशशरथी यतित द्रव्य सभवता२ डाय छे. (से तं नो आगमओ न्दवसः) આ પ્રમાણે સૂત્રકારે ને આગમની અપેક્ષાએ દ્રવ્ય સમવતારનાં ત્રણ प्रारना नि३५ यु छ. माना नि३५थी (सेत दविसमायारे) દ્રવ્ય સમવતાર પૂર્ણ રૂપથી નિરૂપણ થઈ ગયો છે. એ સૂત્ર ૨૪૦
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