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अनुयोगद्वारसूत्र अथ का सा गणनासंख्या ? इति शिष्यप्रश्नः । उत्तरयति-गणनासंख्यागणनम् एतावन्त इमे इति संख्यानं गगना, तदूपा संख्या, गणनासंख्या । सा च द्विमभृतिसंख्यारूपा बोध्या। एकस्तु गणनां नोति । अयं भाव:- एकस्मिन् घटादौ दृष्टे सति घादिकं तिष्ठनीत्येवमेव मायः प्रतीतिरुत्पद्यते नत्वेकसंख्या विषयस्वेन । यद्वा-आदानप्रदानादिव्यवहारकाले एक वस्तु गणनाविषयवं प्रायो नोपयाति, अतोऽसंव्यवहार्यत्वादल्पत्वाद् वा एको गणनासंख्या विषयत्वेन नोपादीयते ज्ञति । द्विप्रभृतिसंख्यारूपैषा गणनासंख्या संख्येयकासंख्येयका
शब्दार्थ-(से किं तं गणणासंखा ?) हे भदन्त ! गणनासंख्या क्या है ?
उत्तर-(गणणासंखा) गणनासंख्या इस प्रकार से है गणना. संख्या में 'ये इतने हैं' इसरूम से गिना जाता है अतः 'थे इतने है'. इस रूप से जो गिनती है, उसका नाम 'गणना' हैइस गणनारूप जो संख्या है, वह गणनासंख्या है-यह दो आदि संख्या रूप होती है । एक संख्यारूप नहीं, क्योंकि (एक्को गणर्ण न उवेइ) एक गणना को प्राप्त नहीं होता है इसका तात्पर्य यह है-एक घट आदि पदार्थ के दिखने पर घटादिक रखा है, ऐसी ही प्राप्य प्रतीति होती है न कि 'एक संख्या विशिष्ट एक घट रखा है' ऐसी प्रतीति होती है। अथवा-लेने देने के समय एक वस्तु प्रायः गणना की विषयभूत नहीं होती है, इसलिये असंव्यवहार्य होने के कारण अथवा अल्म होने के कारण, एक को गगना संख्या का विषयभूत नहीं कहा गया है। (दुप्प. भिहसंखा) दो आदिरूप यह गणनासंख्पा (संखेज्जए असंखेज्जए . शण्याय:-(से किं तं गणणासंखा), महत! शासच्या शुं ?
उत्तर-(गणणासंखा) शयना या प्रमाणे छे. शनास भ्यामा એ આટલા છે. આ રીતે ગણત્રી કરવામાં આવે છે. એથી એ આટલા છે. આ રૂપમાં જે ગણત્રી છે, તેનું નામ “ગણુના છે. આ ગણુના રૂપ જે सभ्य। छ, a आना सध्या छ, मामे पोरे सध्या ३५ उय छे. ये सध्या ३५ नलिभ (एक्को गणणं न उवेइ) मे नामात्र उपाय નહિ. આનું તાત્પર્ય આ પ્રમાણે છે કે એક ઘટ વગેરે પદાર્થને જેવાથી બટાદિક છેપ્રાયઃ એવી પ્રતીતિ થાય છે, ન કે એક સંખ્યા વિશિષ્ટ એક મકેલ છે એવી પ્રતીતિ થાય છે, અથવા-લેવડ-દેવડ કરતી વખતે એક વરતુની ઘણું કરીને ગણત્રી થતી નથી, એથી અસંખ્યવહાર્યો હોવા બદલ અથવા અલપ હોવા બદલ એકને ગણનાપાત્ર માનવામાં આવેલ નથી. (
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