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अनुयोगद्वारसूत्रे उन्मानममाणस्य प्रयोजन जिज्ञासायामाह - एतेन उन्मानप्रमाणेन द्रव्याणाम् उन्मानप्रमाणपरिज्ञानं भवति । केषां द्रव्याणां भवति ? इत्याह- पत्रागुरुतगरचोयककुङ्कुमखण्डगुडमत्स्यण्डिकादीनामिति । तत्र - पत्रम् - तेजसादिपत्रम्, अगुरुः== 'अगर' इति भाषाप्रसिद्धः, तगरः- तगरेति नाम्ना प्रसिद्धस्य वृक्षस्य काष्ठम्, पोषक:गन्धद्रव्यविशेषः, कुङ्कुमः प्रसिद्धः, खण्डम् = ' खाँड ' इति भाषा प्रसिद्धम्,
प्रसिद्धः, मत्स्यण्डिका = 'मिसरी' इति भाषा प्रसिद्धा । पत्रादिमत्स्यण्डिकान्तादिद्रव्याणामेतेन उन्मानप्रमाणेन प्रमाणपरिज्ञानं भवतीति भावः । प्रकृतमुपसंहर्तुमाह-तदेवदुन्मानममाणमिति । सू० १८९ ||
है- (दो अद्धकरिसा, करिसो) दो अर्धकर्षो का १ कर्ष होता है। (दो करिसा अद्धपलं) दो कर्षो का १ अर्द्धपल होता है। (दो अद्धपलाई पलं) दो अर्धपलों का १ पल होता है। (पंचपलसइया तुला) पांच सौ पलों की एक तुला होती है। (दस तुलाओ अद्धमारो) दस तुलाओं का १ अर्धभार होता है। (एएणं उम्माणपमाणेणं किं पओयण) हे भदंत ! इस उन्मान प्रमाण से किस प्रयोजन की सिद्धि होती है ?
उत्तर- (एएणं उम्माणपमा जेणं) इस उन्मान प्रमाण से (पत्तागरतगरन्योययकुंकुमखंडगुलमच्छंडिआहूणं दब्वाणं ) तेजपत्र आदि पत्र अगर, तगर, गंधद्रव्य विशेष चोधक कुंकुम, खांड़, गुड़, मत्स्यण्डि ..का-मिसरी, इत्यादि द्रव्यों के (उम्माणपमाण निव्वित्तिल०) इयत्तारूप मान प्रमाण की निष्पति का परिज्ञान होता है। (से तं उम्माणपमा) इस प्रकार प्रमाण है। पन्नादि द्रव्यों के प्रमाण का -परिज्ञान इस उन्मानप्रमाण से होता है । ।। सू०१८९॥
Bाय छे. (दो अद्ध करिया करिसो) में अधर्षो भराभर १ ४५ थाय छे. (वो करिक्षा अद्धपलं) मे हर्षाना भद्ध पक्ष थाय छे. (दो अद्धपळाई पलं) मे अध. १ पक्ष थाय छे. (पंचपलखइया तुला) पांयसेो बोनी थे! तुझा था छे (दस तुलाओ अद्धभारो) रातुसामना १ मध भार थाय छे. (वीसं तुलाओ भारो) वीश सामोनी १ भार
थाय छे (एएणं सम्माणपमाणेणं पत्रयणं) के लडत ! या उन्मान प्रभाथी ध्या प्रयोजननी सिद्धि थाय छे? २- (पणं उम्माणपमाणेणं) मा उन्मान अभाष्यथी ( पत्तागर तगर चोय कुंकुमखं गुल मच्छंडिआइ द તેજપત્ર વગેરે પત્ર, विशेष, न्याय, कुंभ, भांड, गोज, मत्स्य डिठा-भिसरी, अगर, (उम्मानं पमाणनिव्विसिल०) ध्यन्त्ता ३५ मान प्रभाणुनी निष्पत्तितं परिज्ञानाय सेत जम्माणपमाणे) प्रभाव मा उन्मान प्रभालु
वगैर, शौंध, -द्रव्य વગેરે દ્રવ્યાના
છેપત્રાદિ દુબ્યાના પ્રમાણનું પરિજ્ઞાન આ ઉન્માન પ્રમાણથી થાય છે. પ્રસ્૰૧૮૯૫