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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २२८ वसतिष्ठान्तेन नयप्रमाणम् ५७७
छाया-अथ किं तत् वसतिदृष्टान्तेन ?, वसतिदृष्टान्तेन स यथानामका कोऽपि पुरुषः कश्चित् पुरुषं वदति, कुत्र स्वं वससि ?, तम् अविशुद्धो नैगमो भणति-लोके बसामि । लोकः त्रिविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-ऊलोकः अधोलोको तिर्यक्लोकः, तेषु सर्वेषु त्वं वससि ? विशुद्धो नैगमो भणति-तिर्यकुलोके वसामि । तिर्यक्लोके जम्बुद्वीपादिकाः स्वयंभूरमणपर्यवसानाः असंख्येयाः द्वीप
इस प्रकार प्रस्थक के दृष्टान्त से नय का स्वरूप निरूपण करके अष वसति के दृष्टन्त से उसका निरूपण सूत्रकार करते है. 'से किं तं वसहिदिटुंतेणं' इत्यादि।
शब्दार्थ-(से कितं वसहिदितण) हे महन्त वह वसति दृष्टान्त क्या है ? कि-'जिससे नय के स्वरूप का ग्रहण होता है ? (वसहिदि तेणं) वसतिदृष्टान्त से नय स्वरूप का प्रतिपादन इस प्रकार से है-(से जहा नामए केइपुरिसे कंचिपुरिसं वएज्जा कहिं तु वससि ?) जैसे किसी पुरुषने किसी एक पुरुष से पूछा कि तुम कहां रहते हो ? (तं अविसुद्धो णेगमो भणइ)तष उसने अविशुद्ध नैगमनय के मतानुसार होकर कहा कि (लोगे वसामि) मैं लोक में रहता हूं।(लोगेतिविहे पण्णत्ते) तब पूछनेवालेने फिर पूछा कि लोक तो तीन प्रकार का है । (तं जहा) जैसे-(उडलोए, अहोलोए,तिरियलोए) उर्ध्वलोक, अधोलक, तिर्यक्लोक (तेसुसव्वेसुतुवं
આ પ્રમાણે પ્રસ્થાના દુષ્ટાન્તથી નયના સ્વરૂપનું નિરૂપણ કરીને હવે વસતિના દૃષ્ટાન્તથી સૂત્રકાર તેનું નિરૂપણુ કરે છે.
'से कि त वसहिदिद्रुतेणं' इत्यादि ।
Awar-(से कि त वसहिदिद्रुतेणं) 3 महन्त! 3 नय २१३५नु थाय छे. ते सति हटान्तनु २१३५ यु छ १ (वसहिदि,तेणे) वसतिष्टान्तथी नय २१३५नु प्रतिपान मा प्रभारी छ. (से जहा नामए केडरिसे कंचि पुरिसं वएज्जा कहिं तुवं वससि ?) भई ५२. ४ १२पने प्रश्न ये त य २७ छ। १ (त' अविसुद्धोणेगमो भणइ) त्यारे तर भविश नैरामनयन मतानुसार १५ माव्य (लोगे वसामि) Qawi २६. छ.. (लोगे तिविहे पण्णत्ते) त्यारे प्रति भीलवार प्रश्न यो । त | प्रा२ना छे. (त' जहा) रेम (उड्ढलोए अहोलोए तिरियलोए) Berals अघोर, म तिय४५ (तेसु सम्बेसु तुवं वससि) तो तमे भा aawi से छ। १ (विसुद्धो णेगमो भणइ) त्यारे विशुद्धनय भु तणे
(तिरियलोए पसामि) नियमांछु: (तिरियलोए जंबू दीवाइया अ०७३