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अनुयोगद्वारसूत्रे
किं वं' इत्यादि । अथ कोऽसौ ज्ञायकशरीर भव्यशरीरव्यतिरिक्तो द्रव्यशङ्खः ? दवि शिव प्रश्नः । उत्तरयति - ज्ञायकशरीर भव्यशरीरव्यतिरिक्तो द्रव्यशङ्ख स्त्रिविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा - एकभविको वद्धायुकोऽभिमुखनामगोत्रश्चेति । तत्र-यो जीवो मृत्वाऽनन्तरभवे शङ्खेषूत्पत्स्यते, सत्तेष्वव द्वायुष्कोऽपि जन्मदिनादारभ्य एकमविकः शङ्ख उच्यते । तथा यः शङ्खप्रायोग्यं कर्म बद्धवान् स बद्धायुष्कः शङ्खः । वश्यक में प्रतिपादित इन्हीं प्रकारों के जैसा जानना चाहिये । अब नोआगम द्रव्यशंख का जो तृनीय भेद है, वह इन से विलक्षण है । इसलिये सूत्रकार उसे प्रश्नोत्तर पूर्वक कहते हैं- (से किं तं जाणयसरीर'भवियसरीर वरितो दव्त्रसंखा ?) हे भदन्त ! ज्ञायकशरीर और भव्यशरीर से व्यतिरिक्त जो द्रव्यशंख है, उसका क्या स्वरूप है ?
उत्तर-- ( जाणय सरीरभविय सरीर वह रिप्ता दव्वसंखा तिविहा पण्णत्ता) ज्ञायक शरीर और भव्यशरीर इन दोनों से व्यतिरिक्त द्रव्य. शंख तीन प्रकार का कहा गया है (ते जहा) उसके वे प्रकार इस प्रकार से हैं - (एग भविए, बद्धाउए, अभिमुहणामगोते य-अ १) एकभविक,
ion अभिमुख नामगोत्र ! जो जीव मरकर अनन्तर भव में शंखपर्याय से उत्पन्न होगा, वह उस पर्याय में अभी तक अबद्धायुष्क है, तो भी जब से वह उत्पन्न हुआ है-तभी से लेकर वह एकभविक शंख कहलावेगा । तथा जिस जीव ने शंख पर्याय में उत्पन्न कराने योग्य कर्म का बंध कर लिया है, ऐसा वह जीव बद्धायुष्क शंख कह
જોઇએ, હવે નાઆગમ દ્રવ્યશખને જે તૃતીય ભેદ છે. તે એના કરતાં વિલક્ષણુ छे. येथी सूत्रकार तेना विषे प्रश्नोत्तर पूर्व ४ यर्या रे छे (से किं तं जाणयसरीरमवियसरी रवइरित्ता दव्त्रसंखा ?) हे लड़ंत ! ज्ञाय शरीर भने भव्य શરીરથી વ્યતિરિકત જે દ્રવ્યશખ છે, તેનુ સ્વરૂપ કેવું છે ?
तिविहा पण्णचा ) દ્રવ્યશ'ખના ત્રણુ
उत्तर- ( जाणयसरीरभत्रिय सरीरवइरित्ता જ્ઞાયક શરીર અને ભળ્ય શરીર એ બન્નેથી प्रा। डेवामां आवे छे. (तं जहा ) तेना प्रकारे या प्रमाणे छे. (एग भविर, बद्धाउर अभिमुहणा मगोत्ते य-अ) थे! लवि षद्धायुष् याने खलिभुज નામ ગેાત્ર, જે જીવ મરણ પામીને અનતર ભવમાં શંખ પર્યાયમાં ઉત્પન્ન થશે, ને શ’ખ પર્યાયમાં હજી સુધી અમદ્ધાયુ... છે. છતાંએ જ્યારથી તે ઉત્પન્ન થયેલ છે, ત્યારથી માંડીને તે એકવિક કહેવાશે. તેમજ જે જીવે શંખ પર્યાયમાં મન્ન થવા ચેાગ્ય ક્રમ બધ કરેલ છે, એવા તે જીવ અંદ્ધાયુષ્કશખ
दव्वसंखा વ્યતિરિક્ત