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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २०५ अद्धापल्योपमस्वरूपनिरूपणम् २७९ हिक यावद् भृतं वारानकोटीनाम् । तत्र खल्लु एकमेकं वालाग्रम् असंख्येयानि खण्डानि क्रियते, तानि खलु वालाग्रखण्डानि दृष्टयनगाहना: असंख्येयभागमात्राणि सूक्ष्मस्य पनकजीवस्य शरीरावगाहनातः असेख्येयगुणानि । तानि खलु वालाग्रखण्डानि नोऽग्निदहेत, नो परिध्वंसेरन , नो पूतितया हव्पमागच्छेयुः। ततः खलु वर्षशते वर्षशते एकमेकं वालाग्रखण्डम् अपहाय यावता खलु कालेन तत् पल्ले एगाहिय बेचाहिय तेयोहिया जाव भरिए बालग्गकोडीण) यह पल्प पहिले कहे प्रकार से अधिक से अधिक सात दिन तक के ऊगे हुए बालानों से भरना चाहिये। (तत्थ णं एगमेगे बालग्गे असंखेजा खंडाई कज्जा ) अब ये जो बालाप भरे हुए है, इनमें से एक एक बालाग्र के असंख्यात २ खंड करना चाहिये। (तेणं वालग्गखंडा दिवीओगाहणाओ असंखेज्जहभागमेत्ता) ये चालान खंड दृष्टि के विषयभूत बने हुए पदार्थ को अपेक्षा असंख्यातवें भाग मात्र है और (सुहुमस्त पणगजीवस्त सरीरोगाहणाओ असंखेज्जगुणा) सूक्ष्मपनक जीव के शरीरावगाहना की अपेक्षा असंख्यात गुणे है। (ते णं वालग्गखंडा.नो अग्गी डहेज्जा जाच णो पलिविद्धसिज्जा णो पूहत्ताए हेवमागच्छेना)ये चालाग्रखंड उस पल्यमें इस रूप से ठसाके भरना चाहिये कि-जिससे अग्निदाह आदि का भय उनमें न रहे । (तमोणं वाससए वाससंए एगमेगं वालग्गखंडं अवहाय जावइएणंडाय. (से णं पल्ले एगाहिय वेग्राहिय तेयाहिय जाव भरिए बाळगकोडीण) આ પલ્ય પહેલાની જેમ જ સાત દિવસ સુધીના ઉગેલા भोथी सर ने मे. (तस्थणं एगमेगे वालग्गे असंखेन्जाई खंडाई कज्जइ) व २ माथी मरवामां मावा छे, समाथी मे से मासाना मसात मसभ्यात भ3. ४२११ न. (तेणं वालगखंडा दिदीओगाहणाओ असंखेन्जइ भागमेत्ता) मा मासा मष्ट विषयी भूत थये। यहाथ ना अपेक्षा असतi नाम मात्र छ अन (मुहमस्स पणगजीयस्स सरीरोगाहणाभो असंखेज्जगुणा) सूक्ष्भपन नी शरीरासानी अपेक्षाथी मस-यातमा छे. (तेणं वालगाखंडा नो अग्गी डहेजना जाव णो पलिवि«सिज्जा णो पूइत्ताए हबमागच्छेज्जा) taimunामा मेवी शत ials: सीन भRaj२थी पनि मेरे ॥ २ न. (तओणं वाससए वाससए एगमेगं वालगाखंडं अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले खीणे. नीरए निल्ले जिटिए भवइ, से तं सुहमे अद्धा पलिओवमे) त्या२ मत