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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २०९ द्रव्यस्वरूपनिरूपणम् भदन्त ! कतिविधानि बाप्तानि ? गौतम! चतुर्विधानि प्राप्तानि, तद्यथा-स्कन्धार स्कन्धदेशाः स्कन्धप्रदेशाः परमाणुषुद्गलाः। ते खलु भदन्त ! कि संख्येयार असंख्येयाः अनन्ता ? गौतम ! नो संख्येया नो असंख्यया अनन्ताः। तत्. केनार्थेन भदन्त ! एवम् उच्यते-नो संख्येयानो असंख्येयाः अनन्वा ? गौतम। अनन्ताः परमाणुपुद्गला, अनन्ताः द्विषदेशिका स्कन्धा यावत् अनन्ता अनन्तमदेशिकाः स्कन्धा ततेनार्थेन गौतम ! एवम् उच्यते-नो संख्येयाः नो असंअद्धासमय १०, । (रूदी अजीवदव्या णं भंते काविहा पण्णत्ता) रूपी अजीब द्रव्य हे भदन्त ! कितने प्रकार का प्रज्ञाप्त हुआ है ? (गोयमा) है. गौतम ! (च उनिहा पण मसा) वह चार प्रकार का प्रज्ञप्त हुआ है। (तं जहा) वे उसके प्रकार ये हैं (खंचा) स्कन्ध १, (खंघसा) स्कंधदेश २ (खंधप्पएखा) स्कंध प्रदेश ३, (परमाणु पोग्गला) और परमाणु पुद्गल ४ । (ते णं भंते ! कि संखिज्जा, असंखिज्जा, अणंता? ) ये स्कंधादिक द्रव्य हे भदन्त ! संख्यात है ? या असंख्यात हैं ? यो अनंत है ? (गोयमा! नो संखेज्जा नो असंखेज्जा, अर्णता) हे गौतम!ये स्कंधादिक द्रव्य न संख्यात हैं, न असंख्यात है किन्तु अनंत हैं। (से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चद, नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अर्णता) हे भदन्तं ! आप यह किस अर्थ को लेकर ऐसा कहते हैं कि 'स्कंधार दिक संख्यात नहीं हैं, असंख्यात नहीं हैं, किन्तु अनंत हैं ? (गोयमा। अर्णता परमाणुपोग्गला, अर्णता दुप्पएसिया, खंधा जाच अणंता अणंसपएसिया से एएणद्वेणं गोयमा! एवं बुबह नो संखेज्जा, नो असं. मासमय १०, (रूवी अजीवदवाण भैये कइविहा पण्णत्ता) ३था भला द्रव्य के महत! हारनु प्रशस्त यये छ १ (गोयमा !) गौतम । (चविहा पण्णत्ता) या२ १२नु प्रशस ये छे. (तं जहा) a पारे। मा प्रभाव छे. (खधा) २४५ १, (खंध देखा) २४० २, (खंधप्पएसा) २४५ प्रदेश ३, (परमाणुगोग्गला) मन ५२भाशु ya ४. (वेण भंते । कि सखिज्जा, असंखिज्जा, अणता ?) मा २४ : द्रव्ये 3RDI भ्यात ®१ अन्यात मनात १ (गोयमा ! नो संखेज्जा नो असंखेज्जा, अण'ता) = गौतम ! 16 F०ये। सभ्यात नथी, असभ्यात नथी ५६ अनत छ. (से केणट्रेण भंते ! एवं युवइ, नो संखेज्जा, नो पसंखेज्जा, श्रणता) RTI मा५श्री ४५॥ अर्थ ना साधारे मा छ। २४ था. हि यात नथी, अध्यात नथी ५२ मत छ ? (गोयमा ! अणतापरमाणुपोग्गला, अणता दुप्पएसिया, खंधा जाव अणंता अणतषएसियासे एएण
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