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अनुयोगन्द्रिका टीका सूत्र २२४ आगमप्रमाणनिरूपणम् शिष्याणां जम्बूप्रभृतीनां सूत्रमनन्तरागमः-गणधरात् साक्षादेव तच्छ्रणा अर्थस्तु परम्परागम:-गणधरव्यवहितत्वेन प्राप्तत्वात् । ततोऽनन्तरं प्रभवादीनां तु सूत्रमर्थश्च परम्परागम एव न तु आत्मागमो न चापि अनन्तरागमः । अनेनागम स्यैकान्तापौरुषेयत्वं निवारितम् । पौरुषत्ताल्लादिव्यापारमन्तरेण नभसीव विशिष्ट निउणा'। यही विषय (तित्थगराणं अत्थस्स असागमे, गणहरार्ण सुत्सस्स अत्तागमे, अस्थस्स अणंतरोगमे ) इस सूत्रपाठ द्वारा कहाँ गया है । (गणहरसीसाणं सुत्तस्स अणंतरागमें अत्थस्स परंपरागमें) गणधरों के शिष्य जो जबस्वामी आदि हुए है उनके लिये सूत्र अनन्त संगम हैं। क्योंकि इन शिष्यों ने उन्हें साक्षात् गणधर से सुना है। तथा इन सूत्रों का जो अर्थ है, वह परंपरागम है। क्योंकि गणधर की व्यवधानता से वह प्राप्त हुआ है। इसके बाद प्रभव आदिको के लिये जो सूत्र और अर्थ है, वह परंपरा आंगम ही है। वह न तो
आत्मागम है और न अनन्तरागम है। यही बात 'तेण परं सुत्तरस वि अत्थस्स वि णो अत्तागमे, णो अणंतरागमे, परम्परागमे इस सूत्रपाठं द्वारा प्रकट की है। (से तं लोगुत्तरिए-सेत्तं आगमे-से ते णाणगुणप्पमाणे) इस प्रकार यह लोकोत्तरिक आगमका स्वरूप है। तीर्थंकर जो आगम के प्रणेता प्रकट किये गये हैं उसका तात्पर्य यह है कि-'आगम में जिन वादियों ने एकान्ततः अपौरुषेयता मानी गति 'गणहरा निउण" " विषय (तित्थंगराणं अत्यस्स अत्तागमें, गणहराण सुत्तस्त्र अत्तागमे, अंत्थस्त्र अणंतरागमे) मा संत्रा 43 ये छ. (गणहरसीखाण सुत्तस्त्र अगंतरागमे अत्थस्स परंपरागमे) धरान . સ્વામી વગેરે જે શિખે થયા છે, તેમના માટે સૂત્ર અનcરાગમ છે. કેમ કે આ શિષ્યોએ સાક્ષાત્ ગણધરના મુખારવિદથી તેમનું શ્રવણ કર્યું છે. તેમજ આ સૂત્રને જે અર્થ છે, તે પરંપરાગમ છે. કેમ કે ગણુપરમી વ્યવધાનતાથી તે પ્રાપ્ત થયેલ છે. ત્યાર પછી પ્રભવ આદિકોના માટે જે સત્ર અને અર્થ છે, તે પરંપરા આગમ જ છે. તે ન આગમ છે અને ન मनन्तराम छ. से वात "वेण परं सुत्रस वि अत्यस वि जो अत्तागमे, णो अणंतरागमे, परम्परागमे" मा सूत्रपा8 43 पट वामां मावा. (से तं लोगुत्तरिए-से तं बागमे-से तं जाणगुणप्पमाणे) साप्रमाणे લેકોરિક આગમનું સ્વરૂપ છે. તીર્થકરને જે આગમના પ્રણેતાઓના રૂપમાં નિરૂપિત કરવામાં આવેલ છે તેનું તાત્પર્ય આ પ્રમાણે છે કે આગમમાં જિનવાદીઓએ એકાન્ત અપૌરુષેયતા માની છે. તેનું