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अनुयोगद्धारसूत्र गवया, यथा गवयस्तथा गौरिति । ककुदखुर्शवषाणलाङ्कलादिमत्त्वेन गोगवयोः सादृश्यम् । अन्यथा तु साहनावान् गौः, वृतकण्ठो गवयः, अतएवानयोः प्राय: साधम्यवत्ता विज्ञेयेति । अथ. सर्वसाधयॉंपनीतं निरूपयति-'से कि तं, सबसाहम्मोवीए' इत्यादि । सर्वतः सर्वप्रकारैः साधयं-सर्वसाधर्म्य, तेन उपनीतं-सर्वसाधयॉंपनीतम् । ननु सर्वसाधम्य तु न केनापि सह कस्यापि संभवति, • सर्वसाधयंसमवे तु एकतामसङ्गः। एवं च उपमानस्य तृतीयभेदोपन्यासो होती है, वैसा गवय (रोझ) होता है-जैसा गवय होता है वैसी गांय होती है। (से तं पायसाहम्मोवणीए) यह प्रायःसाधम्र्योपनीत का तात्पर्य है। प्रायःसाधम्र्शेग्नीत में जो समानता प्रकट की जाती है वह समानता अधिकतर अनेक अवयवों में पाई जाती है। जैसा गवय हैं. वैसी गाय है-आदि वाक्यों में ककुद, खुर, विषाण, और लाङ्ग्ल
आदि अवयवों को लेकर दोनों में समानता प्रकट की गई हैं। (से कि तं.संन्यसाहम्मोवणीए ?) हे भदन्त ! सर्वसाधम्योपनीत का क्या तात्पर्य है ? (सव्वसाहम्मोवणीए) । · उत्तर-सर्वसाधम्र्योपनीत का तात्पर्य ऐसा है कि इसमें सर्व प्रकारों से समानता प्रकट की जाती है। * शंका-सर्व प्रकारों से समानता तो किसी में भी किसी के साथ घटित नहीं हो सकती । क्योंकि यदि इस प्रकार से समानता घटिन होने लगे तो, फिर उन दोनों में एकता के प्राप्त होने का प्रसंग
माय छे. (जहा गो तहा गवओ, जहा गवओ तहा गो) २वी गाय छ, तेव। अषय (2) डाय छे. या १५ डाय छ, तवी गाय छे. (से तं पायसाहमोवणीए) । प्राय:सायभ्यापनातनु तात्पर्य छ.. प्राय:साधभ्यापनातमा २ સમાનતા પ્રકટ કરવામાં આવે છે, તે સમાનતા અધિકાંશતઃ અનેક અવયમાં पास थाय छे. वो अपय छ, ती गाय छ. मेरे पायोमा , , વિધાણ અને પૂંછડું આદિ અવયવને લઈને બનેમાં સમાનતા પ્રકટ કરવામાં सावी. छ. (से कि त सव्यसाहम्मोवणीए) B महत! स साधभ्या५. नीत शु. तात्पर्य छ ? (सव्वसाहम्मोवणीए) .
ઉત્તર-સર્વસાધર્મેનું તાત્પર્ય આ પ્રમાણે છે કે આમાં સર્વ પ્રકારથી સમાનતા પ્રકટ કરવામાં આવી છે,
શંકા-સર્વ પ્રકારથી સમાનતા તે કોઈમાં પણ કેઈની સાથે ઘટિત થઈ શકે જ નહિ. કેમ કે જે આ પ્રમાણે સમાનતા ઘટિત થાય તે પછી તેઓ બનેમાં એકતા પ્રાપ્ત થવાનો પ્રસંગે ઉપસ્થિત થશે ત્યારે તે ઉપમાન