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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २२३ उपमानप्रमाणनिरूपणम् गोष्पदयोजळवत्वम् , आदित्यखधोतयोराकाशगामित्वमुद्घोतकत्वं च, चन्द्रकुमुदयोश्च शुक्लत्वं साधयम् । अथ प्रायःसाधम्योपनीतमाह-'से किं तं पायसहम्मोवणीए' इत्यादि । प्राय: अधिकावयवव्याप्त्या यस्साधम्य साहश्यं तेन उपनीवम् उपनपविषयीकृतं-पाय:साधोपनीशम् । तच-यथा गौस्तथा इसमें मंदर (मेरु) और सर्षप की गोलाई का लक्ष्य रखा गया है। इसी कारण इन दोनों में समानता कही गई है । (जहा सरिसवो तहा.मंदरो) जैसा सर्षप होता है, वैसा मन्दर होता है इसको भी यही तात्पर्य है। इसी प्रकार (जहा समुद्दो तहां गोप्पयं जहा गोप्पयं तहा समुद्दो, जहा आइच्चो तहा खज्जोओ जहा खज्जोओ तहा आइच्चो, जहा चंदो तहा कुमुदो जहा कुमुदो तहा चंदो) इस सूत्रपाठ का भी तात्पर्य जानना चाहिये-इनमें समुद्र और गोष्पद (जल से भरा हुवा गाय का खुर) में जलवत्ता को लेकर, आदित्य और खद्योत (जूगुन ) में आकाश गामित्व और उद्योतकता को लेकर, चन्द्र और कुमुद में शुक्लताको लेकर समानता प्रकट की है । (से तं किंचि साहम्मोवणीए) इस प्रकार यह किश्चित् साधम्र्योपनीत का स्वरूप है। (से किं तं पायसाहम्मोवणीए) हे भदन्त ! प्रायासाधम्र्योपनीत का क्या तात्पर्य है। (पायसा. हम्मोवणीए) प्रायः साधोपनीत का तात्पर्य इस प्रकार से है(जहा गो तहा गवओ, जहा गवओ, तहा गो) जैसी गाय આમાં મંદર (મેરુ) અને સર્ષપની લાકૃતિને લક્ષમાં રાખીને ઉપમા આપવામાં આવી છે, આકારથી જ બન્નેમાં સમાનતા કહેવામાં આવી છે. (जहा सरिसवो तहा मंदरो) । स५ सय छे. तेव। भ२ सय. भाई ५ त५ मा छे. मा (जहा समुदो तहा गोप्पयं जहा गोप्पयंतहा समुद्दो जहा आइचो, तहा खज्जोओ, जहा खजोमो तहा पाइयो, जहा चंदो तहा कुमुदो, जहा कुमुदो तहा चंदो) मा सूत्रपाइन। म समय લેવો જોઈએ. આમાં સમુદ્ર ૫૯ (જલ પૂરિત ગાયની ખરી)માં જલવત્તાના આધારે આદિત્ય અને ખદ્યોત (આગિયા) માં આકાશ ગામિત્વ અને ઉદ્યોતકતાને લઈને, ચન્દ્ર અને કુમુદમાં શુકલતાને લઈને સમાનતા પ્રકટ १२पामा भावी छ. (से तं किचि साहम्मोषणीए १) मा शत माय. સાધમૅપનીતનું સ્વરૂપ છે.
(से कि त पायसाहम्मोवणीए) 3 1 प्राय:साभ्यापनात तपय छे. (पायसाहम्मोवणीए) प्राय:भ्यापनात तापमा