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अनुयोगन्द्रिका टीका सूत्र २१७ व्यन्तरादीनामौदारिकादिशरीरनि० ४७३ अनंत होते हैं। (वाणमंतराणं भंते ! केवड्या आयगरीरा पण्णता ?) हे भदन्त ! व्यन्तरदेवों के कितने तैजसशरीर कहे गये हैं ? (गोथमा) हे गौतम ! (जहा एएसि चेव वेउब्धियश्वरीर तहा तेयग. सरीरा आणियवा) जिस प्रकार के इनके वैक्रिय शरीर कहे गयें हैं, वैसे ही इनके तैजस शरीर जानना चाहिये। अर्थात् बद्धवैक्रिय के जैसा इनके बद्ध तैजस शीर असंख्यात होते हैं और मुक्त तैजस शरीर मुक्त क्रियशरीर के जैसा प्रमाण में अनंत होते है । (एवं कम्मय सरीरा वि भाणियचा) इसी प्रकार से कार्मण शरीरों का प्रमाण भी जानना चाहिये। (जोइसियाणं भंते ! केवड्या ओरालियसरीरा: पणता ? गोयामा जहा नेरइयाणं तहा भाणियबा) हे भदन्त । ज्योतिडक देवों के औदारिक शरीर कितने कहे गये हैं ? हे गौतम ! ज्यतिबकों के औदारिक शरीर नारकों के औदारिक शरीरों के जैसा कहे गये हैं-अर्थात्-द्ध औदारिक शरीर तो ज्योतिको के होते नहीं हैं । नुक्त औदारिक शरीर होते हैं, सो वे पूर्वभवों की अपेक्षा होते है, इसलिये इनका प्रमाण अनंत हैं । (जोइसिया णं भंते केवड्या वेउ. भुत मीहारि४ शरीरानी रेस मन त हाय छे. (वाणमंतराणं भंते ! केवइया व्यगसरोरा, पण्णत्ता ?) सन्त ! व्यतर हेवन सशरीर ai .. पामा माया छ ? (गोयमा) गौतम ! (जहा एएसिं चेव वेठब्वियसरीरा तहा खेयगसरीरा भाणियवा) २ प्रमाणे शमन यशरी। अपामा આવ્યાં છે, તે પ્રમાણે જ એમનાં તેજસ શરીર વિશે પણ જાણવું જોઈએ. એટલે કે બદ્ધ વૈકિયની જેમ એમનાં બદ્ધ તૈજસ શરીર અસંખ્યાત હોય છે. અને મુકત તેજસ શરીરે મુક્ત વૈક્રિયશરીરની જેમ પ્રમાણમાં અનંત હેય छ, (एवं कम्मयसरीरा वि भाणियव्या) मा प्रभा शरीरातुं प्रसार ५
मे. (जोइसियागं भंते ! केवइया ओरालियसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा जहा नेरइयाण तहा आणियव्वा) ७ मत ! न्याति हवाना मोहारिक શરીરે કેટલાં કહેવામાં આવ્યાં છે ? હે ગૌતમ ! જતિષ્કના ઔદારિક શરીરે નારકેના ઔદારિક શરીરની જેમ કહેવામાં આવ્યાં છે. એટલે કે બદ્ધ ઔદારિક શરીર તે તિષ્કના હતાં નથી મુકત દારિક શરીરે હોય છે. તે પૂર્વજની અપેક્ષાથી હેય છે. એટલા માટે એમનું પ્રમાણ सनत छ. (जोइसियाणं भंते केवइया वेउव्वियसरीरा पण्णत्ता) . . Rod!
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