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अनुयोगचन्द्रिका टोका सूत्र २०८ क्षेत्रपल्योपमनिरूपणम् सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपमम् । तत्र खलु नोदकः प्रज्ञापकमेवमवादी-सन्ति खल्ल तस्य - पल्यस्य आकाशप्रदेशा ये खलु तैर्वालाग्रखण्डैरनास्पृष्टाः १, इन् सन्ति । यथा को दृष्टान्त ? स यथानामकः कोष्ठक: स्यात् कुष्माण्डैभृतः । तत्र खलु मातुलिङ्गानि " प्रक्षिप्तानि तान्यपि मितानि, तत्र खलु विल्वानि प्रक्षिप्तानि तान्यपि मितानि । आगासपएसं अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले खीणे जाब निहिए .... भवइ से तं हमे खेत्तपलिओवमे) अब इसके बाद एक एक समय में एक आकाश के प्रदेश को छोड़कर-अर्थात् उस उस प्रदेश से उन बालाग्र खंडों को निकालकर-जितने समय में उन बालान खंडों से वह पल्थ रिक्त (खाली) हो जाता है उतने समय का नाम एक सूक्ष्म क्षेत्र पल्पोपम है । (तत्थ णं चोयए पण्णवर्ग एवं वयासी) अब इस पर कोई शंका करने वाला शिष्य गुरुदेव से ऐसा पूछता है कि (अस्थि णं तस्स: पल्लस्त आगासपएसा जं गं तेहिं बालग्गखंडेहि अणाफुण्णा) हे गुरुदेव ! क्या उस पल्य के आकाशप्रदेश ऐसे भी हैं, जो उन बालाग्रखंडों से अव्याप्त-अनाकान्त-हो ? (हंता) हां (अत्थि) हैं । (जहा को दिलुतो?) इस विषय को स्पष्ट करने वाला दृष्टान्त कौन सा है-से जहाणामए) जैसे कोई एक (कोहंडाणं भरिए कोहए सिया) कूष्माण्डों से भरा हुआ कोठा हो (तत्थ णं माउलिंगो पक्खित्ता, ते विमाया ! वहां मातुलिंग-बिजोरों को डालो तो वे भी वहां समा जाते हैं। तत्थ
आगासपएसं अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले खीणे जाव निट्रिए भवह से तं. सहमे खेत्तपलि श्रीवमे) हवे,त्यामा । समयमा मायना દેશને ત્યજીને એટલે કે તે પ્રદેશમાંથી તે બાલાખને બહાર કાઢીનેજેટલા સમયમાં તે વાલાથખડેથી તે પલ્ય રિકત (ખાલી) થઈ જાય તેટલા समय नाम मे सूक्ष्म क्षेत्रपक्ष्या५म छे. (तत्थ णं चोयए पण्णवर्ग एवं क्यासी) मा म श ४२ना२ शिष्य ४३वन सा प्रभारी प्र पुरे छ । (अस्थिणं तस्स पल्लस्स आगासपएसा जणं वेहि बालग्गखड़े हि अणाफुण्णा) B Y३हे ! ५६यना अशा वा ५ छ २ a Aथी म०यास-मनन्त डाय ? (हता) हा (अत्थि) छे. (जहा कोविटतो?) मा विषय २५ ४२॥२ दृष्टान्त साप्रमाणे छ. (से जहा णामए)
मे (कोहंडाणं भरिए कोदूपं सिया) भाथी पूरित 8. डाय (तस्थ णं माउलिंगा पक्खित्ता, ते वि माया) त्या भातुलगी-मिन्न. रामा-२ नाभा मा ५ मा समाविष्ट थ य छे. (तत्थ