________________
अनुयोगबारसूत्र विज्ञेयं तदीपमिकमुच्यते इति भावः। तद्विविधम्--पल्योपमं च सागरोपमं च । तत्र पस्योपमविषये पृच्छति-अथ किं तत्पल्योपमम् ? इति उत्तरयति-पल्योपमम्धान्यपल्यवत् पल्यंक्ष्यमाणस्वरूपम् , तेन उपमा यस्मिस्तत् पल्योपममित्यर्थः। सत् उद्धारमल्योपमाद्धापल्योपमक्षेत्रपल्योपमेति त्रिविधम् । सत्र-उद्धारपल्योपमम्
उत्तर--जो प्रमाण उपमा से-सादृश्य से-निष्पन्न होता है, वह औपमिक प्रमाण है । काल का प्रमाण, जिनका ज्ञान अतिशय रहित है, ऐसे व्यक्तियों द्वारा विना उपमान के अविज्ञेय होता है-अतःकाल का प्रमाण कहने के लिये उपप्रानका आश्रय लिया जाता है । (ओव. मिए दबिहे पण्णते) यह औपमिक प्रमाण दो प्रकार का कहा है(तं जहा) उसके वे प्रकार ये हैं-(पलिभोवमे य सागरोवमे य) एक पल्योपम और दूसरा सागरोपम .! (से कि तं पलिमोवमे) हे भदन्त ! वह पल्योपम क्या है ?
उत्तर-(पलिओवमे) धान्य के पल्य की तरह पल्य होता है। इस पल्य की जिसे उपमा दी जाती है वह पल्योपम है । यह पल्योपम (तिविहे पण्णत्ते) तीन प्रकार का कहा गया है। (तं जहा) वे ३ तीन प्रकार ये हैं-(उद्धारपलि ओवमे, अद्धापलिओवमे, खेत्तपलिभोवमे य) उद्धार पल्पोपम, अद्धापल्योपम और क्षेत्र पल्योपम। (से कि त उद्धारपलिओवमे ?) हे भदन्त ! उद्धार पल्योपम क्या है ? વગર ઉપમાને સમજી શકાતું નથી. એથી કાલપ્રમાણના કથન માટે ઉપમાनन माश्रय वामां आवे छे. (ओवमिए दुविहे पण्णत्ते) मा मो५मि अमाय मे प्रानु अपामा मा०यु छे. (तंजहा) ते घरे। मा प्रभारी -. (पलिओवमेय सागरोवमे य) मे पक्ष्य:५५ मन भी सागरापम (से कि तं पलिओवमे ?) D Na! ते ५व्यापम शु ?
उत्तर-(पलिओवमे) धान्यना ५६यनी २म यक्ष्य राय छे. या पक्ष्यनी અને ઉપમા આપવામાં આવે છે, તે પોપમ છે. આ પોપમ પ્રમાણ (तिविहे पण्णत्ते) ३ ॥२नु उपाय छे. (तंजहा) ते रे मा प्रभार छ(उद्धारपलिओवमे, अद्धा पलिओवमे, खेत्तपलिओवमे य) द्वा२ पक्ष्यापम, अद्धा ५त्यापम भर ५६।५५ (से कि तं उद्धारपलिओवमे?) 3RE ! द्वार ५श्या५भ शुछ?