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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र२०४ पल्योपमादीनां औषमिकप्रमाणनिरूपणम् २६७ गृहीतानि, अत्र तु एकै वालाग्रमसंख्येयखण्डीकृतं गृह्यते इति भावः । एवं सत्येकैकखण्डस्य यन्मानं भवति तनिस्पयितुमाह-वानि खलु वालाग्रखण्डानि दृष्टयागाहनातः असंख्येयभागमात्राणि । दृष्टिः चक्षुद्वारोत्पन्नदर्शनरूपा, साऽव. गाहते-परिच्छेदद्वारेण प्रवर्तते यत्र वस्तुनि तदेव वस्तु दृष्टयवगाहना प्रोच्यते । सा चेह वालायखण्डरूमा तदपेक्षयाऽसंख्येयभागवत्ति प्रत्येकं वालाग्रखण्डं बोध्य. कोडीण) इस पल्य को एक दिन दो दिन तीन दिन यावत् सात दिन तक के चालानों से खूब ठसाठस-लबालब भर देना चाहिये । (तत्थ णं एगमेगे बालग्गे असंखिजा खंडाई कज्जइ) इन में जो एक २बालान है, उसको केवली की बुद्धि की कल्पनासे असंख्यातरखंड करना चाहिये। (ते णं वालग्गखंडा दिही मोगाहणाओ असंखेज्जहभागमेत्ता सुकुमस्स पणगजीवस्स सरीरोगाहणाभो असंखेज्जगुणा) ये प्रत्येक बालानखंड दृष्यवगाहना की अपेक्षो से असंख्यातवें भाग मात्र हैं। चक्षुद्वारा उत्पन्न जो दर्शन रूप . दृष्टि है, वह दृष्टि जिस वस्तु में परिच्छेद करने के लिये प्रवृत्त होती है, वही वस्तु दृट्यवगाहना रूप से यहां कही गई है । अर्थात् जो वस्तु चक्षुर्दर्शन का विषय होती है वही वस्तु दृष्यवगाहना है । इस प्रकार ये प्रत्येक बालाखंड उसके असं. रुपेय भागवर्ती हैं । ऐसा अर्थ जानना चाहिये । तात्पर्य कहने का यह है कि जिस पुद्गलद्रम्प को विशुद्ध चक्षुदर्शनवाला छद्मस्थ प्राणी देखती है, उस दृष्ट्यवगाहना रूप वस्तु के असंख्यातवें भाग मात्र वे प्रत्येक દિવસ, બે દિવસ, ત્રણ દિવસ યાત્ સાત દિવસ સુધીના બાલાશ્રોથી ખૂબ
सी-सी की मां भाव (तत्थं ण एगमेगें बालग्गे असंखिज्जाई खंडाई कज्जइ) सभा २ मे-
छ, तना मीना मुद्धिनी पनi 48 असभ्यात-मसात भ31 ४२१॥ २४से. (तेणं वालग्गखंडा दिदी ओगाहणाओं असंखेज्जइभागमेत्ता सुदुमस्व पणगजीवस्त्र सरीरोगाहणारी असंखेज्जगुणा) मा १२३ ४२४ मादा म च्याइनानी अपेक्षाये અસંખ્યાતમાં ભાગ માત્ર છે. ચક્ષુ વડે ઉત્પન્ન જે દર્શન રૂપ દૃષ્ટિ છે, તે દ્રષ્ટિ જે વસ્તુમાં પરિછેદ કરવામાં પ્રવૃત્ત હોય છે, તે જ વસ્તુ દેવગાહના રૂપથી અહી કહેવામાં આવી છે એટલે કે જે વસ્તુ ચક્ષદર્શનને વિષય હોય છે તેજ વસ્તુ દણ્યવગાહના છે આ પ્રમાણે આ દરેકે દરેક બાલા--ખંડ તેના અસંખ્યય ભાગવતી છે. આ અર્થ જાણવું જોઈએ તાત્પર્ય એ પ્રમાણે છે કે પુદ્ગલ દ્રવ્યને વિશુદ્ધ ચક્ષુદશનવાળું જુએ છે, તે દણ્યવગાહના રૂ૫ વસ્તુના અસંખ્યાતમા ભાગ માત્ર તે દરેકેક ખલી