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अनुयोगद्वारसूत्रे
भक्तवैतनायव्ययसंश्रितांना भूतकः कर्मकरः भृतिः प्रदात्यादीना वृत्तिः, भक्तं भोजनम्, वेतनकं = तन्तुवायच्युतवत्रोपलक्षेऽर्थप्रदानम्, ऐतेषु य आयोव्ययश्च, तसंश्रितानाम् स्तबद्धानां द्रव्याणां रूप्यकादि द्रव्याणां गणितप्रमाण निवृचि लक्षणम् -गणितस्य= गणनाया या प्रमाणनिवृत्तिः प्रमाणनिष्पत्तिस्तस्या लक्षण = परिज्ञानं भवति । सम्प्रश्येतदुपसंहरन्नाह - तंदेवद्र, गणिममिति । सू० १९०॥ 2. अय- प्रतिमानप्रमाणं निरूपयति
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मूलम् - से. किं तं पडिमाणे ? पडिमाणे जपणं पडिमिणि जाइ, तं, जहा- गुंजा कागणी निष्फाओ कम्ममासओ मंडलओ सुवण्णो । पंच गुंजाओ कम्ममासओ, चत्तारि कागणीओ, कस्म, मांसओ, तिपिण, निष्फावा कम्समसओ एवं चउंको "कम्स" मासओ, बारस कम्मैमासया मंडलओ एवं अडवालीस काग:पीओ मंडलओ, सोलसम्ममालया' सुवण्णी, एवं चंस
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(एएणं गणिमप्पमाणेणं किं पओषणं) इस गणिम प्रमाण का क्या प्रयोजन है ? इसके लिये सूत्रकार कहते हैं कि (एएणं गणिमपमाणेणं मिंग भित्तिमत्तवेयणआयव्ययसंसियाणं दव्वाणं गणिमध्यमाणनिव्वित्तिक्खणं भवइ, से तं गणिमे) इस गणिम प्रमाण से भृतककर्मकर, भृति-पाति आदिकों की वृत्ति, भक्त भोजन, वेतन- जुलाहों द्वारा चुने गये वस्त्रों के उपलक्ष में मजूरी देना इनमें जो आयव्यय होता है उस आयव्यय से संबंधित रुपया आदि द्रव्यों के गणना के प्रमाण की निवृत्ति का ये इतने हैं इस प्रकार के प्रमाण की निष्पत्ति का - परिज्ञान होता है। इस प्रकार यह गणिम रूप प्रमाण है । सू० १९०॥
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जैणं भित्तगभित्ति भत्तवेयण आयव्यय संखियाणं देव्वाणं गणिमप्पमाणनिव्वितिलक्खर्ण भवइ, से तं गाणि में) मां गशिम अभाणुथी नृत४-४२४२ – भृति-यहाति वगेरेना, वृत्ति,”लक्ष्त-लेकिन, वेतन-वैर वगेरे बड़े तैयार पुरेसा वस्त्रोना "असक्षम भनुरी आपवी, मानाथी ने आय-व्यय होय छे, ते आय-व्ययश्री સબંધિત રૂપિયા વગેરે દ્રવ્યાના પ્રમાણુનું પરિજ્ઞાન થાય છે.આ પ્રમાણે આ ગમિ રૂપ પ્રમાણ છે, પ્રસૂ॰૧૯૦
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