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मुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र २०९ कालप्रमाणं निरूपणम्
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अन् एकसमयस्थितिकं द्विसमयस्थितिकं त्रिसमयस्थितिक यात्रत् दशसमयस्थितिकम् असंख्येयसमग्र स्थितिकं तदेतत् प्रदेशनिष्पन्नम् । अथ किं तत् विभागनिष्यन्नम् ? विभागनिष्पन्नं-समयावलिका मुहूर्ता दिवसा होरात्रपक्षमा साथ । संगत्सरयुगपल्यानि सागरावसर्पिषरिवर्त्ताः ॥ सू०२० १ ॥
टीका- ' से किं तं ' इत्यादि
अथ किं तत् कालममाणम् ? इति शिष्यप्रश्नः । उत्तरयति-कालयमाणं प्रदेशनिष्पन्न विभाग निष्पन्नेति द्विविधं प्रज्ञप्तम् । तत्र प्रदेशनिष्पन्नम् - प्रदेशाः = कालस्य निर्विभागा भागास्तैर्निष्पन्नं, तद्धि एकसमयस्थितिकं यावदसंख्येयसमयस्थिति
उत्तर – (एग समपट्टिइए दुसमयडिहए तिसमयडिए जाव दससमपट्टिए संविज्जसमयहिए असंखिजसमपट्टिइए) एक समय की स्थितिवाला, दो समय की स्थितिवाला यावत् दश समय की स्थितिवाला संख्यात समयको स्थितिवाला असंख्यात समय की स्थितिवाला पुद्गलपरमाणु अथवा स्कन्ध (एएसनिष्फले) प्रदेश निष्पन्न काल प्रमाण है । (से तं पएस निष्फण्णे) इस प्रकार यह प्रदेश निष्यन्नकालप्रमाण का स्वरूप है । (से किं तं विभागनिष्कण्णे ?) वह विभाग निष्पन्नकाल प्रमाण क्या है ? ( विभागनिष्फलगे) विभाग निष्पन्नकालप्रमाण इस प्रकार से हैं - (समपावलियमुत्ता दिवस अहोरसपक्वमासा य, संवच्छर जुगपलिया - सागर ओसपिपरिया ) समय, आवलिका, मुहूर्त्त, दिवस, अहोरात्र, पक्ष, मास, संवत्सर, युग, पल्थ सागर, अवसर्पिणी, उत्सर्पिणी और पुद्गलपरावर्तन काल के निर्विभाग जो भाग है
उत्तर- (एमट्ठिए दुसमय दिइए तिस्रमयट्ठिइए जान दस समय संखिज्ज समयट्टिइए असं खिज्ज समय हर ) એક સમયની સ્થિતિવાળા, એ સમયની સ્થિતિવાળા, ત્રણ સમયની સ્થિતિવાળા, યાવત્ દશ સમયની સ્થિતિ વાળા, સખ્યાત સમયની સ્થિતિવાળે, અસખ્યાત સમયની સ્થિતિવાળા युहूगल परमाणु अथवा २५६ (पएस निष्कण्णे) प्रदेश निष्यन्न प्रविप्रभा छे. ( से तं परसनिष्कण्णे) या प्रमाथे या अहेश निष्पन्न ४: सप्रमाधुनु स्व३५ ४. (से किं तं विभागनिष्कण्णे १) ते विभाग निष्पन्न आसप्रभाशु शु छे ? ( विभाग निष्कण्णे ) विलाज निष्पन्न असलप्रभाणु या प्रमाणे हे - ( समयावलियमुहुत्ता दिवस अहोरत्त पक्खमाखाय, संवच्छरजुगपटिया सागर ओसप्पि परियहा).. समय, व्यावसिा, भुहूर्त, द्विवस, अहोरात्र, पक्ष, भास, संवत्सर, युग, पढ्य-सागर, अवसर्पिणी भने युङ्गढ़ - परावर्तन असना ने निন