________________
अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १९९ वाणमंतरादीनां शरीरावगाहनानिरूपणम्२०७ धारणीया जघन्येन अंगुलस्य असंख्येयभागम् , उत्कर्षेण तिस्रो रत्नयः, उत्तरक्रिया यथा सौधर्मे । अवेयकदेवानां भदन्त ! कियन्महती शरीरावगाहना प्रज्ञप्ता, गौतम ! एकं भाधारणीयं शरीरकं प्रज्ञप्तम् , तत् जघन्येन अंगुलस्य असंख्येयभागम् उत्कर्षेण द्वे रस्नी । अनुत्तरोपपातिकदेवानां भदन्त ! कियन्महती शरीरामंकल्प के जैसा है। अर्थात् लाख योजनकी है। (आणयपाणय आरण अच्चुएसु वि भरधारणिजा जहण्णेगं अंगुलस्त असंखेजहभागं उक्कोलेणं तिणि रयणीभो) आनत, प्राणन,आरण और अच्युत इन। कम्पों में भरधारणीय शरीरावगाहना जघन्य से अंगुलके असं. रूपातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट से तीन रस्निप्रमाण है। (उत्तरवेशिया जहा सोहम्मे) उत्तरवैक्रिरूप शरीरावगोहना यहां पर जैसी सौधर्म स्वर्ग में है वैसी है। अर्थात् लाखयोजन की है । (गेवेज्जगदेवाणं भंते ! के महालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता) हे भदन्त । प्रैवेयक देवों की शरीरावगाहना कितनी है ?
उत्तर :-(गोयमा ! एगे भवारणिज्जे सरीरगे पण्णत्ते) हे गौतम! यहां पर एक अवधारणीयशरीर ही प्रज्ञाप्त हुआ है। (से जहण्जेणं अंगुलस्ल असंखेज्जहभागं उक्कोसेणं दुन्नि रयणीओ) वह जघन्य से अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है और उस्कृष्ट से दो रहिनप्रमाण है। इसीलिये यहां पर उत्तरक्रियारूप शरीराઉત્તરક્રિય રૂ૫ શરીરવગાહના સૌધર્મકલ્પની જેમ છે. એટલે કે લાખ योरन टी छ. (आणयपाणयआरणअच्चुपसु वि भवधारणिज्जा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं तिण्णि रयणीओ) मानत, प्रात, मार અને અશ્રુત આ કપમાં ભવધારણીય શરીરવગાહના જઘન્યથી અંગુલના અસંખ્યાતમાં ભાગ પ્રમાણ અને ઉત્કૃષ્ટથી ત્રણ પત્નિ (હાથ) પ્રમાણે છે. (उचरवे उम्विया जहा सोहम्मे) त्त या ३५ थरीपालना मही सीधम सावी . ट है ! सास न २ . (गेवेज्जगदेवाण भंते । के महालिया सरीरोगाहणा पण्णता) 8 त ! अवय हेवानी शरीराવગાહના કેટલી છે ?
अत्तर-(गोयमा! एगे भवधारणिज्जे सरीर गे पण्णत्ते) गौतम! मही से अवधारणाय शरी२५ प्रज्ञH छ. (से जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जद भाग उकोसेणं दुन्निरयणीओ) धन्यथा अYखना असभ्यातमा मास પ્રમાણુ છે અને ઉત્કૃષ્ટથી બે રનિ પ્રમાણ છે એટલા માટે અહીં ઉત્તર