Book Title: Jambuchariyam
Author(s): Jinvijay, Chandanbalashree
Publisher: Bhadrankar Prakashan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुणिवरगुणपालविरइयं | जंबुचरियम् • नवीनसंस्करणसम्पादिका • साध्वी चन्दनबालाश्री • सम्पादनकर्ता आचार्य जिनविजयमुनि • नवीनसंस्करणप्रकाशकः . भद्रंकर प्रकाशन अहमदाबाद 2010_02 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुनिवरगुणपालविरइयं जंबुचरियम् [गुणपालमुनिविरचित-प्राकृतभाषानिबद्ध-जम्बूमुनिचरितम् ] 2010_02 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवीनसंस्करणप्रेरकः परमपूज्याचार्यश्रीमद्विजयपुण्यपालसूरिमहाराजः परमपूज्यपंन्यासप्रवरश्रीवज्रसेनविजयमहाराजः नवीनसंस्करणसम्पादिका साध्वी चन्दनबालाश्री 2010_02 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुणिवरगुणपालविरड्यं जंबुचरियम् [प्राकृतभाषानिबद्ध-जम्बूमुनिचरितम्] • सम्पादनकर्ता. आचार्य जिनविजयमुनि • नवीनसंस्करणप्रेरकः . परमपूज्याचार्यश्रीमद्विजयपुण्यपालसूरिमहाराजः पूज्यपंन्यासप्रवरश्रीवज्रसेनविजयमहाराजः • नवीनसंस्करणसम्पादिका . परमपूज्यव्याख्यानवाचस्पतिआचार्यभगवन्तश्रीमद्विजय रामचन्द्रसूरीश्वराणां साम्राज्यवर्ती परमपूज्याप्रवर्तिनी श्रीरोहिताश्रीजीमहाराजस्य शिष्यरत्ना च साध्वी चन्दनबालाश्री • प्रथमावृत्तिप्रकाशनकर्ता • अधिष्ठाता, सिंघीजैनशास्त्रशिक्षापीठ भारतीय विद्याभवन, बम्बई • नवीनसंस्करणप्रकाशकः • भद्रंकर प्रकाशन अहमदाबाद 2010_02 | Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ in. ... 11 ग्रन्थनाम : जंबुचरियम् ग्रन्थकार : परमपूज्यगुणपालमुनिवरः सम्पादक : आचार्य जिनविजयमुनि प्रेरक : परमपूज्याचार्यश्रीमद्विजयपुण्यपालसूरिमहाराजः परमपूज्यपंन्यासश्रीवज्रसेनविजयमहाराजः नवीनसंस्करण सम्पादिका : साध्वी चन्दनबालाश्री प्रकाशक : सिंघीजैनशास्त्रशिक्षापीठ नवीनसंस्करण : भद्रंकर प्रकाशन प्रकाशक प्रथमसंस्करण : वीर सं. २०१४, इ.स. १९५९ नवीनसंस्करण : वीर सं. २५३५, वि.सं. २०६५, इ.स. २००९ मूल्य : रु. २००-०० पत्र : ३२+२८४ : BHADRANKAR PRAKASHAN, 2009 प्राप्तिस्थान) अहमदाबाद : भद्रंकर प्रकाशन ४९/१, महालक्ष्मी सोसायटी, शाहीबाग, अहमदाबाद-३८०००४ फोन : ०७९-२२८६०७८५ अहमदाबाद : सरस्वती पुस्तक भंडार हाथीखाना, रतनपोल, अहमदाबाद-३८०००१ फोन : ०७९-२५३५६६९२ अक्षरांकन : विरति ग्राफिक्स, अहमदाबाद फोन : ०७९-२२६८४०३२ मुद्रक : तेजस प्रिन्टर्स, अहमदाबाद फोन : ०७९-२२१७२२७१ (मो.) ९८२५३ ४७६२० 2010_02 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ શ્રુતભક્તિ-અનુમોદના લાભાર્થી પરમપૂજ્ય, પરમોપકારી, વ્યાખ્યાનવાચસ્પતિ, આચાર્યભગવંતશ્રીમદ્વિજયરામચંદ્રસૂરીશ્વરજીમહારાજના સામ્રાજ્યવર્તી પરમપૂજ્ય ધર્મતીર્થપ્રભાવક, આચાર્યભગવંતશ્રીમદ્વિજયમિત્રાનંદસૂરીશ્વરજીમહારાજના શિષ્યરત્ન પરમપૂજ્ય, વાત્સલ્યનિધિ, આચાર્યભગવંતશ્રીમદ્વિજય મહાબલસૂરીશ્વરજીમહારાજના શિષ્યરત્ન પરમપૂજ્ય, પ્રવચનપ્રદીપ, આચાર્યભગવંતશ્રીમદ્વિજયપુણ્યપાલસૂરીશ્વરજીમહારાજના સદુપદેશથી શ્રીજિનાજ્ઞાઆરાધકશ્વેતામ્બરમૂર્તિપૂજક તપગચ્છજૈનસંઘ મુલુંડ-મુંબઈ-૮૦ આ ગ્રંથ પ્રકાશનનો જ્ઞાનદ્રવ્યમાંથી લાભ લીધેલ છે. આપે કરેલી શ્રુતભક્તિની અમો હાર્દિક અનુમોદના કરીએ છીએ અને ભવિષ્યમાં પણ આપ ઉત્તરોત્તર ઉત્તમકક્ષાની શ્રુતભક્તિ કરતાં રહો એવી શુભેચ્છા પાઠવીએ છીએ. લિ. ભદ્રંકર પ્રકાશન 2010_02 Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - धम्मकहापडिबद्धं जंबुचरियम् - "पणमियजिणाइचलणो, संतोसियखलयणो समासेण । धम्मकहापडिबद्धं, वोच्छमहं जंबुणो चरियं ॥" [जंबुचरिये पढमउद्देशे श्लोक / २१] જિનેશ્વરભગવંતો વગેરેના ચરણને પ્રણામ કરીને, દુર્જનજનને સંતોષીને સંક્ષેપથી ધર્મકથામય જંબુસ્વામીના ચરિત્રને હું કહીશ.” ___ 2010_02 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ પ્રકાશકીય પરમપૂજય ગુણપાલમુનિવરવિરચિત, પ્રાકૃતભાષાનિબદ્ધ આ જંબુચરિયમ્” રાજસ્થાનરાયાન્તર્ગત જેસલમેરદુર્ગમાં રહેલ પ્રાચીન જૈનગ્રંથભાંડાગારમાં ઉપલબ્ધ એક માત્ર તાડપત્રીય પુસ્તકના આધારે આચાર્ય જિનવિજયમુનિએ આ ગ્રંથની પ્રતિલિપિ કરાવીને આ ગ્રંથનું સંપાદનકાર્ય કરેલ છે. આ ગ્રંથની પ્રથમવૃત્તિ અધિષ્ઠાતા, સિંઘીજૈનશાસ્ત્રશિક્ષાપીઠ - ભારતીયવિદ્યાભવન - મુંબઈથી વિ.સં. ૨૦૧૪, ઈ. સ. ૧૯૫૯માં ગ્રંથાંક ૪૪ તરીકે પ્રકાશિત થયેલ છે. જંબૂસ્વામીની જીવનકથા જૈનસાહિત્યમાં અતિપ્રસિદ્ધ છે. જંબૂસ્વામીના જીવન વિષે પ્રાકૃત, સંસ્કૃત, અપભ્રંશ, ગુજરાતી, હિંદી, રાજસ્થાની આદિ અનેક ભાષાઓમાં અનેક ચરિત્રો પ્રકાશિત થયા છે. તેમાં આ ગુણપાલમુનિવરવિરચિત “ જિંબુચરિયમ્ નું આગવું અનોખું સ્થાન છે. આ જંબુચરિયમુની સિંઘર્જનશાસ્ત્રશિક્ષાપીઠથી પ્રકાશિત થયેલ પ્રથમવૃત્તિ જીર્ણ થઈ ગયેલી હોવાથી આના નવીનસંસ્કરણનું સંપાદનકાર્ય પરમપૂજ્ય, પરમારાથ્યપાદ શ્રીમદ્વિજયરામચંદ્રસૂરીશ્વરજી મહારાજના શિષ્યરત્ન પરમપૂજય અધ્યાત્મયોગી પંન્યાસપ્રવર શ્રીભદ્રંકરવિજયજીમહારાજના શિષ્યરત્ન હાલારના હીરલા પરમપૂજય આચાર્યભગવંત શ્રીકુંદકુંદસૂરીશ્વરજીમહારાજના શિષ્યરત્ન પરમપૂજ્ય પંન્યાસપ્રવર શ્રીવજસેનવિજયજીમહારાજની પ્રેરણાથી પરમપૂજય વ્યાખ્યાનવાચસ્પતિ આચાર્યભગવંત શ્રીમદ્વિજયરામચંદ્રસૂરીશ્વરજી મહારાજના સામ્રાજયવર્તી તથા પરમપૂજ્ય સરળસ્વભાવી પ્રવર્તિની સાધ્વી શ્રીરોહિતાશ્રીજીમહારાજના શિષ્યરત્ના સાધ્વી શ્રીચંદનબાલાશ્રીજીમહારાજે પોતાની નાદુરસ્ત રહેતી તબીયતમાં પણ શ્રમસાધ્ય કાર્ય કરીને અમારી સંસ્થાને પ્રકાશિત કરવાનો જે લાભ આપ્યો તે બદલ અમારી સંસ્થા તેમની ઋણી છે. તેમના દ્વારા ભવિષ્યમાં 2010_02 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ પણ આવા ઉત્તમ ગ્રંથો સંપાદિત થઈને પ્રકાશિત થતાં રહે અને અમારી સંસ્થાને પ્રકાશિત કરવાનો લાભ મળતો રહે એવી અમે અભિલાષા રાખીએ છીએ. આ નવીનસંસ્કરણના પ્રકાશન માટે પરમપૂજ્ય ધર્મતીર્થપ્રભાવક આચાર્યભગવંતશ્રીમદ્વિજયમિત્રાનંદસૂરીશ્વરજી મહારાજના શિષ્ય-પ્રશિષ્યરત્ન પરમપૂજ્ય વાત્સલ્યનિધિ આચાર્યભગવંતશ્રીમદ્વિજયમહાબલસૂરીશ્વરજી મહારાજ તથા પરમપૂજ્ય પ્રવચનપ્રદીપ આચાર્ય ભગવંતશ્રીમદ્વિજયપુયપાલસૂરીશ્વરજી મહારાજની શુભપ્રેરણાથી મુલુંડશ્રીજિનાજ્ઞાઆરાધકશ્વેતામ્બરમૂર્તિપૂજક તપગચ્છ જૈનસંઘે આ ગ્રંથ પ્રકાશનનો લાભ લીધેલ છે તે બદલ અમારી સંસ્થા તેમનો આભાર માને છે. આ નવીનસંસ્કરણ પ્રકાશનના સુઅવસરે અમે પૂર્વના સંપાદકશ્રીનો, પ્રકાશકસંસ્થાનો કોબા-કૈલાસસાગરજ્ઞાનભંડારમાંથી મુદ્રિત પુસ્તક અમને પ્રાપ્ત થઈ તેમનો, નવીનસંસ્કરણના પ્રેરકશ્રીનો, નવીનસંસ્કરણપ્રકાશન કાર્ય માટે આર્થિક સહયોગની પ્રેરણા કરનાર આચાર્યભગવંતોનો, આ કાર્યના અક્ષરમુદ્રાંકન માટે વિરતિગ્રાફિક્સવાળા અખિલેશભાઈ મિશ્રાનો અને મુદ્રણકાર્ય માટે તેજસપ્રીન્ટર્સવાળા તેજસભાઈનો ખૂબ ખૂબ આભાર માનીએ છીએ. આવા ઉત્તમ બ્રહ્મચારી જંબૂસ્વામીના ચરિતનું વાચન કરીને સૌ કોઈ ભવ્યાત્માઓ સંવેગને પ્રાપ્ત કરીને રત્નત્રયીની આરાધના કરીને અષ્ટકર્મનો ક્ષય કરીને મુક્તિસુખને પ્રાપ્ત કરે એ જ શુભભાવના !! – ભદ્રંકર પ્રકાશન 2010_02 Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमावृत्तिकी प्रस्तावना गुणपाल मुनि रचित प्राकृत भाषामय इस 'जंबुचरियं' की एकमात्र प्राचीन प्रति हमको जेसलमेर के एक ज्ञानभण्डार में उपलब्ध हुई जो ताडपत्रों पर लिखी हुई है । सन् १९४२ के डीसेंबर मास से १९४३ के अप्रेल तक, हमने जेसलमेर के ज्ञानभण्डारों का निरीक्षण किया और वहाँ पर उपलब्ध सैंकडों ही ग्रन्थों की प्रतिलिपियाँ आदि करवाई एवं उनमें से अनेक अप्रकाशित और अन्यत्र अप्राप्य ग्रन्थों को प्रकाश में लाने का भी यथाशक्य और यथासाधन प्रयत्न प्रारम्भ किया । इनमें से कुछ ग्रन्थ इसी 'सिंघी जैनग्रन्थमाला' में ग्रथित हो कर प्रकट होने जा रहे हैं और कुछ ग्रन्थ, हमारे निर्देशकत्व में प्रस्थापित और प्रचालित जोधपुरावस्थित 'राजस्थान प्राच्यतत्त्वान्वेषण मन्दिर (राजस्थान ओरिएण्टल रीसर्च इन्स्टीट्यूट)' द्वारा प्रकाश्यमान 'राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला' में गुम्फित हो कर प्रकट हो रहे हैं । जिन जम्बू महामुनि के जीवन को उद्दिष्ट कर इस चरित की रचना हुई है उनकी यह जीवन कथा जैनसाहित्य में बहुत प्रसिद्ध है। इस कथा का वर्णन करने वाली सैंकडों ही ग्रन्थरचनाएँ जैन साहित्य के विपुल भण्डार में उपलब्ध होती हैं । प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, प्राचीन हिन्दी, गुजराती, राजस्थानी आदि भारत की आर्यकुल की कई प्राचीन-अर्वाचीन भाषाओं में इस कथा विषयक छोटी-बड़ी अनेकानेक रचनाएँ मिलती ही हैं पर कन्नड और तामिल जैसी द्राविड भाषाओं की साहित्य निधि में भी जम्बू मुनि की अनेक कथाएँ उपलब्ध होती हैं। जैन इतिहास के अवलोकन से निश्चित होता है कि ये जम्बू मुनि एक ऐतिहासिक व्यक्ति हो गए हैं और वे श्रमण भगवान् श्रीमहावीर देव के विशिष्ट शिष्य एवं उत्तराधिकारी गणधर सुधर्म के मुख्य शिष्य थे । ज्ञातपुत्र श्रमण तीर्थंकर वर्द्धमान महावीर के निर्वाण के बाद, उनके अनुगामी निर्ग्रन्थ श्रमणसमूह के नेता के रूप में, जम्बू मुनि का सर्वप्रधान स्थान रहा है । महावीर देव के हजारों ही श्रमणशिष्यों में, जम्बू मुनि अन्तिम केवली माने जाते हैं और इनके बाद किसी श्रमण को निर्वाणपद की प्राप्ति नहीं हुई ऐसा विधान मिलता है । तीर्थंकर महावीर के निर्वाण के बाद, ६४ वर्ष अनन्तर, जम्बू मुनि निर्वाणपद को प्राप्त हुए। JainEducation International 2010_02 Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० उस समय से लेकर, आज तक जो जैन धर्म प्रवर्तमान रहा वह जम्बू मुनि ही के शिष्यसमुदाय के उपदेश और आदेश का परिणाम है । भगवान् महावीर के निर्वाण बाद, बहुत ही अल्प समय में जैनधर्म दो मुख्य सम्प्रदायों में विभक्त हो गया जिनमें एक श्वेताम्बर सम्प्रदाय के नाम से प्रसिद्ध हुआ और दूसरा दिगम्बर सम्प्रदाय के नाम से । पर इन दोनों सम्प्रदायों में जम्बू मुनि का स्थान एक सा ही मान्य और वन्द्य है । दोनों ही सम्प्रदायों के पूर्वाचार्यों ने जम्बू मुनि की कथा को नाना रूपों में ग्रथित किया है । श्वेताम्बर सम्प्रदाय के मान्य प्राचीनतम आगम ग्रन्थों में जम्बू मुनि का सर्वत्र निर्देश मिलता है। भगवान् महावीर जब विद्यमान थे तब जम्बू मुनि दीक्षित नहीं हुए थे । महावीर के निर्वाण के बाद उनने सुधर्म स्वामी के पास श्रमणधर्म की दीक्षा ली थी । गणधर सुधर्म ने भगवान् महावीर के उपदेशों और सिद्धान्तों का सर्वसार, जम्बू मुनि को सुनाया एवं समझाया और इसलिये प्राचीनतम जैन आगमो में सर्वत्र सुधर्म और जम्बू मुनि के नाम निर्देश के साथ ही सब विचार और सिद्धान्त उल्लिखित किये गये हैं। ___ भगवान् महावीर के मुख्य ११ शिष्य थे जो गणधर कहलाते थे। इनमें से ९ तो भगवान् के जीवितकाल ही में निर्वाण प्राप्त हो गये थे । सबसे बड़े शिष्य इन्द्रभूति गौतम और ५ वें शिष्य सुधर्म भगवान् के निर्वाण समय में विद्यमान थे । इन्द्रभूति गौतम भगवान् के निर्वाणगमन के बाद तुरन्त कैवल्य दशा में लीन हो गये, अत: सब श्रमण समुदाय की रक्षा, शिक्षा और दीक्षा का समग्र भार सुधर्म गणधर को वहन करना पड़ा । इन्हीं सुधर्म के पास राजगृह के निवासी अत्यन्त समृद्धिशाली ऋषभदत्त सेठ के एकमात्र पुत्र जम्बू कुमारने अपने जीवन के यौवनारम्भ में ही श्रमण धर्म की कठिनतम दीक्षा ले ली । जम्बू कुमार का यह दीक्षाग्रहण बड़े अद्भुत और रोमाञ्चक प्रसंग द्वारा घटित हुआ इसलिए गणधर सुधर्म के आज्ञावर्ती समग्र निर्ग्रन्थ श्रमण समूह का नेतृत्व जम्बू मुनि को प्राप्त हुआ । भगवान् महावीर के निर्वाण बाद, १२ वर्ष पर्यन्त, सुधर्म गणधर ने श्रमणसमूह का नेतृत्व किया । इसी बीच में जम्बू दीक्षित हुए और अपने विशिष्ट चारित्र्यबल और ज्ञानबल से थोड़े ही समय में वे सुधर्म गणधर के अनुगामी श्रमणगण के विशिष्ट नायक के रूप में प्रतिष्ठित होने लगे । भगवान् महावीर के निर्वाण के १२ वर्ष बाद, सुधर्म गणधर भी कैवल्य दशा में लीन हो गये और उनने अपने समग्र श्रमण गण के नेतृत्व का भार जम्बू मुनि को सौंप दिया । ८ वर्ष कैवल्य अवस्था में लीन रह कर सुधर्म स्वामी ने निर्वाणपद प्राप्त किया। पर्वाण के समय सुधर्म स्वामी की आयु पूरे १०० वर्ष की थी ! उनने अपनी आयु के ५० वें वर्ष में भगवान् महावीर के पास श्रमणधर्म की दीक्षा ली थी । ३० वर्ष तक वे भगवान् महावीर की सेवा उपासना करते रहे । भगवान् के निर्वाण के बाद, ८० वर्ष की आयु में निर्ग्रन्थ श्रमणों के संघ की सम्पूर्ण सुव्यवस्था का भार उनको उठाना पड़ा । १२ वर्ष 2010_02 Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ बाद, अपनी आयु के ९२ वें वर्ष में, वे कैवल्य दशा में लीन हो गये । और फिर ८ वर्ष उस दशा में व्यतीत कर, १०० वर्ष की पूर्णायु में निर्वाण पद को प्राप्त हुए । भगवान् महावीर के निर्वाण के २० वर्ष बाद, सुधर्म गणधर का निर्वाण हुआ और उसके बाद ४४ वर्ष अनन्तर अर्थात् महावीर निर्वाण बाद ६४ पीछे, जम्बूस्वामी का निर्वाण हुआ । इस हिसाब से जम्बूस्वामी ५२ वर्ष तक निर्ग्रन्थ श्रमणसंघ का नेतृत्व करते रहे । उनकी पूर्णायु कितनी थी इसका कोई स्पष्ट उल्लेख देखने में नहीं आया । पर कल्पना से अनुमान किया जाय तो कम से कम ८२-८४ वर्ष जितनी आयु तो उनकी होनी ही चाहिए। भगवान् के निर्वाण बाद, १२ वर्ष अनन्तर, सुधर्म गणधर कैवल्य दशा में लीन हो गये तब उनने अपने श्रमणसंघ का गणभार जम्बू मुनि को सौंप दिया । उस समय कम से कम १० वर्ष जितना दीक्षापर्याय उनका मान लिया जाय तो, दीक्षा लेने के पहले उनकी आयु कम से कम १८-२० वर्ष की तो होनी ही चाहिए । जिस अवस्था में उनने गृहजीवन का त्याग किया और जिन संयोगों का अनुभव किया वह १८-२० वर्ष की कम आयुवाले जीवन में सम्भव नहीं होता । अतः हमारी कल्पना से जम्बू मुनि का आयुष्य कम से कम ८२-८४ वर्ष जितना अवश्य होना चाहिए । जम्बू मुनि के कथानक विषयक प्राचीनतम कुछ उल्लेख श्वेताम्बर सम्प्रदाय मान्य 'वसुदेवहिंडी' नामक बृहत् प्राकृत कथाग्रन्थ में उपलब्ध होते हैं । 'जंबूअज्झयणं' 'जंबूपइन्नयं' आदि कुछ स्वतन्त्र प्राकृत रचनाएँ भी मिलती हैं, पर उनके रचना समय आदि के बारे में विशेष निश्चायक प्रमाण अभी तक संगृहीत नहीं हुए । प्रस्तुत 'जंबुचरियं' इस विषय की एक विशिष्ट और विस्तृत रचना है । इसके कर्ता गुणपाल नामक मुनि हैं जो श्वेताम्बर सम्प्रदाय के नाइलगच्छीय वीरभद्रसूरि के शिष्य या प्रशिष्य थे । प्रस्तुत 'चरियं' की रचना कब हुई इसका सूचक कोई उल्लेख इसमें नहीं किया गया है । पर ग्रन्थ की रचनाशैली आदि से अनुमान होता है कि विक्रम की ११ वीं शताब्दी में या उससे कुछ पूर्व में इसकी रचना हुई होगी। जेलसमेर में प्राप्त ताडपत्र की प्रति के देखने से ज्ञात होता है कि वह १४वीं शताब्दी के पूर्व ही लिखी होनी चाहिए। चरित की ग्रथनशैली उद्योतनसूरि की प्रसिद्ध 'कुवलयमालाकहा' के साथ बहुत मिलती-जुलती है । वर्णनपद्धति भी प्रायः वैसी ही है । सम्भव है कि गुणपाल मुनि के सम्मुख, प्रस्तुत 'चरियं' की रचना के समय, कुवलयमाला की प्रसिद्धि बहुत कुछ रही हो। उद्योतनसूरि ने सिद्धान्तों का अध्ययन वीरभद्र नाम के आचार्य के पास किया था । इन वीरभद्र आचार्य के लिए उनने “दिन्नजहिच्छियफलओ अथावरो कप्परुक्खो व्व' ऐसा वाक्य प्रयोग किया है । जम्बुचरियं के कर्ता गुणपाल ने अपने गुरु प्रद्युम्नसूरि को वीरभद्र का शिष्य बतलाया है। इनने इन वीरभद्र के लिए भी 'परिचिंतियदिन्नफलो आसी सो कप्परुक्खो त्ति' ___ 2010_02 Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ ऐसा वाक्यप्रयोग किया है जो उद्योतनसूरि के वाक्य प्रयोग के साथ सर्वथा तादात्म्य रखता है । क्या इससे यह अनुमान किया जा सकता है कि उद्योतन सूरि के सिद्धान्तगुरु वीरभद्राचार्य और गुणपाल मुनि के प्रगुरु वीरभद्रसूरि दोनों एक ही व्यक्ति हों । यदि ऐसा हो तो 'जंबुचरियं' के कर्ता गुणपाल मुनि का अस्तित्व विक्रम की ९वीं शताब्दी के अन्त में माना जा सकता है । और इस सम्बन्ध से कुवलयमाला कहा का सविशेष परिचय गुणपाल मुनि को होने से उनकी इस रचनाशैली में उक्त कथा का विशेष अनुकरण स्वाभाविक हो सकता है । पर यह विचार कुछ विशेष अनुसन्धान की अपेक्षा रखता है जिसके लिए हमें अभी वैसा अवसर प्राप्त नहीं है । ऊपर हमने इन गुणपाल मुनि को नाइलगच्छीय लिखा है और यह गच्छ बहुत प्राचीन गच्छो से है जिसके उल्लेख पुरातन स्थविरावलियों में मिलते हैं । यद्यपि गुणपाल ने प्रस्तुत चरियं में अपने गच्छ का निर्देश नहीं किया है पर इनकी एक दूसरी रचना हमें प्राप्त हुई है जिसमें इसका उल्लेख किया गया है । चरियं की तरह वह भी प्राकृतभाषा का एक सुन्दर कथाग्रन्थ है | पूना के 'भांडारकर प्राच्यविद्या संशोधनमन्दिर' संस्थित राजकीय ग्रन्थ संग्रह में 'रिसिदत्ताचरियं' की ताडपत्रीय पोथी सुरक्षित है जो पाटण या जेसलमेर के किसी जैन भण्डार में से प्राप्त हुई होनी चाहिए। इस कथा की एक त्रुटित पोथी जेसलमेर में भी हमारे देखन में आई । पूना में सुरक्षित ताडपत्रीय पुस्तक पर से 'रिसिदत्ताचरियं' का आद्यतन्त भाग हमने नकल कर लिया था जिसको यहाँ उद्धृत कर देना उपयुक्त होगा । पूनावाली पोथी के कुल मिलाकर १५६-५७ ताडपत्र हैं जिनमें से पिछले ३ पत्र त्रुटित दशा मैं, अतः उनका अन्तिम भाग खण्डित रूप में मिलता है । ग्रन्थ का प्रारम्भ इस प्रकार है। नमिऊण चलणजुयलं पढमजिणिदस्स भुवननाहस्स । अवसप्पिणी धम्मो पयासिओ जेण इह पढमं ॥ बालत्तणंमि जेणं सुमेरुसिहरे भिसेयकालंमि । वामलचलणंगुलीए लीलाए डोलिया पुई ॥ तं वरकमलदलच्छं जिणचंदं मत्तपीलुगइगमणं । नमिऊण महावीरं सुरंगणसयसंथुयं वीरं ॥ सेसे वय वावीसे नमिऊणं नद्वरागमयमोहे | सुरमयासुरमहिए जीवाइपयत्थओब्भासे ॥ 2010_02 Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३ नमिउं अणाइनिहणे सिद्धिगए अट्ठकंममलमुक्के । सिद्धे सासयनाणे अव्वाबाहं सुहं [ पत्र १, B ] पत्तो ॥ वरकमलसरिसवयणा कमलदलच्छी य चारुकमलकरा । वियसियकमलनिसण्णा सुयमयदेवी नमेऊणं ॥ आयरिय उवज्झाए साहुजणं गुरुजणं च नमिऊणं । वि हुए बहुसो अणेयसाहुहिं आगमे भणियं । तहवि य फुडवियडत्थं संखेवेणं अहं भणिमो ॥ यो सोऊण इमं गुणगहणं कुणड़ जड़ वि ते नत्थि । गुणभूसिए वि कव्वे दोसे गिण्हइ खलो चेव ॥ सुयणाण किं न नमिहह जे वि य दोसो वि [ पत्र २, A ] पेच्छहिं गुणोहे । पियजणविरहे जह कोइ पिअयणं पेच्छइ वणं पि ॥ नहु निम्मला वि किरणा रविणो पेच्छेड़ कोसिओ तमसे । तह चेव गुणा इह दुज्जणो वि पेच्छेइ विवरीए ॥ विहुवीहामि अहं खलाण एमेव तह वि कुवियाण । तहवि महंतं वसणं नो तीरइ छड्डिउं एयं ॥ अह वा जो च्चिय एकस्स खलो सो च्चिय अण्णस्स सज्जणो होइ । कह सुयण- दुज्जणाणं पसंस-निंदा अहं करिमो ॥ जेण भणियं रत्ता पेच्छंति गुणा दोसा पेच्छंति जे विरच्वंति । मज्झत्था पुण पुरिसा [ पत्र २, B] दोसे य गुणे य पेच्छंति ॥ ता मझजत्था तुम्हे दोसे परिहरह तहवि 1 गिuse विरले विगुणे सुयणसहावं पि मा मुयह ॥ एत्थ य चारि कहाओ पण्णत्ताओ जिणेहिं सव्वेहिं । अत्थकहा कामकहा धम्मकहा मीसगकहा य ॥ अत्थकहाए अत्यो कामो तह चेव कामुयकहाए । भण्णइ धम्मकहाए चउव्विहो होइ जह धम्मो ॥ 2010_02 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ सो पण एसो भणिओ जिणेहिं जियराग-दोस [ पत्र ३, A ]मोहेहिं । व - सील- दाण - भावणभेएणं होइ चउहाओ ॥ तव - अणसमाईय तवो सीलं पुण होइ चरण- करणं तु । जीवदयाई दाणं अधुयाई भावणा हुंति ॥ धम्मो अत्यो कामो भण्णइ मोक्खो वि मीसगकहाए । एसा सा मीसकहा भणामि हं जिणवरे नमिउं ॥ २०॥ ग्रन्थ का अन्त भाग इय रिसिदत्ताचरिए पवरक्खरविरइ [ पत्र १५४, A ] ए वरे रंमे । गुणपालविरइयमिमं पंचमपव्वं समत्तं ति ॥ ज सेणिय पुट्टेणं जगगुरुणा साहियं ति वीरेणं । तह किंपि समासेणं मए वि किल साहियं एवं ॥ सोऊण तु एयं पालह जिणवीरभासियं वयणं । पावेह जेण अइरा कंमं डहिऊण मोक्खं ति ॥ इय कुणमाणेण इमं पत्तं जं किंचि एत्थ मे पुण्णं । पुणे ते पावह तुम्हे अरामरं ठाणं ॥ इय वीरभद्दसूरी नाइलवंसं [ पत्र १५४, B]......... इस के आगे का क्रमांक १५५ वाला ताडपत्र आधा तूट गया है । वाम भाग का आधा टुकड़ा उपलब्ध है जिसमें [A पार्श्व में] निम्न क्रम से आधी आधी पंक्तियाँ उपलब्ध होती हैं । पंक्ति १. पंक्ति २. पंक्ति ३. पंक्ति ४. 2010_02 ..[ गुणपा° ]लेणं विरइयं ति ॥ संसारि भमंतेणं जिणवयणं पाविऊण एयं नु । दुक्खहुएण रइ.. ******** . 'वहीणेण तह य लंकारवज्जिएण मए । किल किंपि मए रइयं जिणपवयणभ........ . 'णेण किं पि विवरीयं । तं खमियव्वं मह सुयहरेहिं सुयरयणकलिएहिं ॥ .. जिणपवयणं ताव । वरपउमपत्तयणा पड ...... Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इसी पत्र के B पार्श्व के भाग पर निम्न प्रकार की पंक्तियाँ पढ़ी जाती हैंपंक्ति १. .......... .....................मम नाणं ॥ हाइयउरंमि नयरे वासारत्तंमि विर [ इयं एयं ? ।] पंक्ति २. ........तीसाए अहियाइं गाहग्गेणं तु बारस सयाइं । एयाइं जो निसुणइ सो पाव............. .....॥ पंक्ति ३. संवत् १२८८ वर्षे अद्येह श्रीमदणहिलपाटके श्रीभीमदेवराज्ये प्रवर्तमाने....१ १. रिसिदत्ताचरियं की इस ताडपत्रीय पुस्तिका को जिसने अपने द्रव्य से लिखवाया था उस गृहस्थ के कुटुम्ब आदि का परिचय कराने वाली एक १० पद्यों की संस्कृत प्रशस्ति भी इस पोथी के अन्त के ताडपत्र पर लिखी गई है। इस अन्तिम ताडपत्र का भी दक्षिण पार्श्व का आधा हिस्सा तूट गया है जिससे प्रशस्ति का भी खण्डित आधा भाग ही उपलब्ध होता है। जो भाग उपलब्ध है वह इस प्रकार है - पंक्ति १ A...... प्रभोः पान्तु नखेन्दुद्युतयोऽमलाः प्रणमज्जन्तुसंघातं कर्मतापभयाद् भृशम् ॥१॥प्राग्वाटवंशमाणिक्यं पंक्ति २ A.......वणिक् । सीलुका नामतस्तस्य पत्नी शीलगुणावृत्ता ॥२॥ तत्पुत्री वस्तिणिर्नाम संवणप्रियपल्यभूत् दंप.... पंक्ति ३ A.......जज्ञेऽपत्ययुग्मं मनोहरम् ॥३॥ चाचाभिधः सुतः श्रेयान् विद्यते विपुलाशयः । देहच्छायेव वशगा प्रिया त... पंक्ति ४ A......लक्ष्मणी ॥४॥ पुत्रिका मोहिणि म तपोऽनुष्ठानतत्परा । ___दयादाक्षिण्यदानादिगुणरत्नैलंकृता ॥५॥ पंक्ति १ B अन्येधुश्चिन्तयामास धीमती साऽप्यनित्यता । संसारे शाश्वतं नास्ति विना धर्म जिनोदितम् ॥६॥ पंक्ति २ B.......समाख्यातः श्रुतचारित्रभेदतः । श्रुतं हि दीपकप्रायो वस्तुतत्त्वावलोकने ॥७॥ बिंबं श्रीपार्श्वनाथस्य स्व.... पंक्ति ३ B......विवेकलोचना[द् ज्ञात्वा जीर्णोद्धारे महत्फलम् ॥८॥ अस्य च लेखयामास ___ मोहिणिः श्राविकोत्तमा । चरितं रिषिदत्तायाः पुस्तकं सु मनोहरम् ॥९॥ पंक्ति ४ B.......श्रीनेमिचन्द्रसूरेविनेय.......... ................॥१०॥ इस प्रशस्तिका भावार्थ यह है कि किसी नेमिचन्द्रसूरि के शिष्य का उपदेश प्राप्त कर प्राग्वाट जाति के रांवणि नामक गृहस्थ की पत्नी वस्तिणि की पुत्री मोहिणि नामक श्राविका ने अपने द्रव्य का सदुपयोग करने की दृष्टि से 'रिषिदत्ताचरित' की यह पुस्तिका लिखवाई । इत्यादि । यह पुस्तिका वि.सं. १२८८ में, जब अणाहिल पुर पाटण में भीमदेव राज्य कर रहा था तब लिखी गई थी। 2010_02 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ इस त्रुटित ताडपत्रगत जो खण्डित पंक्तियाँ उद्धृत की गई हैं उनके पाठ से 'रिसिदत्ताचरियं' के कर्ता गुणपाल मुनि का नाम मिल रहा है । इसमें वीरभद्रसूरि का तथा 'नाइलवंश' का भी उल्लेख मिलता है। साथ में 'हाइयपुर' नामक नगर का भी उल्लेख मिलता है जहाँ वर्षावास रहते हुए उनने इस ग्रन्थ की रचना पूर्ण की । सम्भव है कि उनने अपनी रचना के समय का भी इसमें निर्देश किया हो जो खण्डित भाग में रह गया हो । क्योंकि उस काल के कई जैन ग्रन्थकार अपना समयज्ञापक उल्लेख भी प्रायः करते रहे हैं । उद्योतनसूरि ने कुवलयमाला कथा में, सिद्धर्षि ने उपमितिभवप्रपंचा कथा में, जयसिंहसूरि ने धर्मोपदेशमाला कथा संग्रह में ऐसे समयज्ञापक निर्देश स्पष्ट रूप से किये हैं । 'रिसिदत्ताचरियं' की कोई पूर्ण प्रति किसी जैन भण्डार में मिल जाय तो उसका निर्णय हो सकेगा । इस 'जंबुचरियं' की जो ताडपत्रीय प्रति जेसलमेर के बड़े ज्ञानभण्डार में उपलब्ध है उसका क्रमांक, [मुनिवर श्रीपुण्यविजयजी द्वारा संकलित 'जेसलमेरुदुर्गस्थ जैन ताडपत्रीय ग्रन्थभण्डार सूचिपत्र' पुस्तकानुसार] २४५ है । इस पुस्तक के कुछ ३२६ ताडपत्र हैं । ताडपत्र की लम्बाई १३ इंच और चौडाई २ इंच है । बीच-बीच में कहीं-कहीं ताडपत्रों की स्याही खराब हो जाने से कुछ पंक्तियाँ अपाठ्यसी भी हो गई हैं। इनका कुछ सूचन हमने तत्तत् स्थान में-जैसे पृष्ठ .... तथा ...... आदि पर कर दिया है । इस ग्रन्थ की प्रतिलिपि हमने जेलमेर के अपने भण्डार-निरीक्षण के समय (सन् १९४३ के प्रारम्भ में) करवा ली थी पर प्रेस कॉपी का मिलान मूल के साथ ठीक ढंग से नहीं किया गया था। इससे कॉपी में कुछ अशुद्धियाँ रह गई । फिर उसी प्रेस कॉपी को प्रेस में जब छपने दिया तब मूल ताडपत्र के साथ मिलान करने का अवसर नहीं मिला । अतः ग्रन्थ में जो कुछ अशुद्धियाँ रह गई हैं उनका शुद्धिपत्र अन्त में दिया गया है। पाठक गण इस शुद्धिपत्र का उपयोग करें। इस शुद्धिपत्र के बनाने में प्राकृत भाषा के विशेषज्ञ पण्डित और प्राचीन ग्रन्थों की प्रतिलिपि करने में बहुकुशल प्रतिलेख, पाटण निवासी पण्डित श्री अमृतलाल मोहनलाल ने यथेष्ट श्रम किया है अतः हम उनके प्रति अपना कृतज्ञभाव प्रकट करना चाहते हैं । ग्रन्थगत कथावर्णन जैन साहित्य में सुप्रसिद्ध और सुपरिचित है। जम्बूचरित विषयक अनेक प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, राजस्थानी, हिन्दी एवं गुजराती रचनाएँ उपलब्ध होती है। इनमें से अनेक रचनाएँ स्वतन्त्र रूप से प्रसिद्ध भी हो चुकी हैं। सुप्रसिद्ध महान् विद्वान् आचार्य हेमचन्द्रसूरि ने भी अपने त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र नामक पौराणिक पद्धति के विशाल संस्कृत ग्रन्थ के 'परिशिष्ट' पर्व के रूप में 'स्थविरावलि चरित' की सुन्दर रचना की है जिसमें प्रारम्भ के ४ सर्गों में जम्बू मुनि का भी सविस्तर ___ 2010_02 Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ चरित वर्णन किया है। हेमचन्द्राचार्य का यह चरितवर्णन प्रायः प्रस्तुत 'जंबुचरियं' के समान ही है । जर्मनी के संस्कृत-प्राकृत वाङ्मय के सुप्रसिद्ध महाविद्वान् स्वर्गवासी डॉ. हेर्मान याकोबी ने हेमचन्द्राचार्य के इस 'स्थविरावलिचरित' का सुसम्पादन कर कलकत्ता की एसियाटिक सोसाइटी द्वारा प्रकाशित कराया था । प्रो० याकोबी ने अपने उक्त सम्पादन में जंबूचरित का इंग्रेजी भाषा में विस्तृत सार भी सम्मिलित कर दिया है। स्थान स्थान में उनने यह भी बताने का प्रयत्न किया है कि जो कथाएँ जंबूचरित में आई हैं वे अन्यान्य किन ग्रन्थों में और किस रूप में मिलती हैं । इन कथाओं का तुलनात्मक अध्ययन की दृष्टि से प्रो० याकोबी का उक्त सम्पादन एक खास अध्ययन की वस्तु हैं । प्रो० याकोबी के उक्त सम्पादन के तुलनात्मक अध्ययन की विशेषता को लक्ष्य कर, जर्मनी के एक ऐसे ही अन्य प्रख्यात विद्वान् प्रो० योहन्नेस हेर्टेलने जर्मन भाषा में इन कथाओं का सुन्दर अनुवाद किया और उनके विषय में प्रो० याकोबी से भी अधिक तुलनात्मक उल्लेखों का समवलोकन कर, एक विशिष्ट अध्ययन की उपयुक्त सामग्री उपस्थित की। जम्बूस्वामी के चरित के साथ इन कथाओं का संकलन कब से हुआ है यह एक शोध का विषय है । जम्बूस्वामी की प्राचीनतम कथा कितनी है और उसमें फिर कालान्तर में किन किन कथाओं का समावेश होता गया-इसका ठीक अध्ययन तो तब ही हो सकता है जब जैन साहित्य में उपलब्ध जम्बूस्वामी विषयक सभी कथाओं का तुलनात्मक एवं ऐतिहासिक क्रम से पर्यालोचन किया जाय । १. हेर्टेल की इस पुस्तक का नाम है - Ausgewählte Erzählungen ous HĒMACANDRAS Pasiśistaparvan mit Einlaitung und Anmerkungen von Johnnes Hertel Leipzig, 1908. इस पुस्तक के प्रास्ताविक रूप में प्रथम तीन प्रकरण लिखे गये हैं जिनका विषय इस प्रकार है-१. हेमचन्द्र का जीवनचरित, २. हेमचन्द्र का परिशिष्ट पर्व, ३. जैन सम्प्रदाय । इसके बाद परिशिष्ट पर्व का सारा कथाभाग, प्रकरण वार, आलेखित किया है और अन्त में उन उन कथाओं के तुलनात्मक अध्ययन के सूचक अन्यान्य साहित्यिक उल्लेखों का भी संकलन किया है । इन उल्लेखों में, भारत के ब्राह्मण, बौद्ध एवं जैन ग्रन्थों के उल्लेखों के साथ युरोप के भिन्न भिन्न साहित्यगत उल्लेखों का भी समावेश किया गया है। ___ 2010_02 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ प्रो० याकोबी ने उक्त 'परिशिष्टपर्व' का सम्पादन किया तब उनको शायद अन्य जम्बूचरितों का परिचय नहीं हुआ था । इस लिए हेमचन्द्राचार्य रचित जम्बूचरित को ही मुख्य मान कर उनने इसकी अवान्तर कथाओं का ऊहापोह किया है। हमारा अनुमान है कि हेमचन्द्राचार्य का जम्बूचरित प्राय: प्रस्तुत गुणपाल मुनि के 'जंबुचरियं' के आधार पर रचित है I इस चरियं की भाषा बहुत सरल और सुबोध है । ग्रन्थकार की रचना शैली प्रौढ़ होकर भी बहुत ही सुगम भाषा से अलंकृत है । सारा ग्रन्थ गद्य-पद्य मिश्रित है । कथावर्णन प्रवाहबद्ध है । बीच बीच में जहाँ कहीं कथाकार को उपदेशात्मक कथन करने का प्रसंग प्राप्त हो जाता है वहाँ वह विस्तार के साथ उन उन उपदेशों का कथन करता रहता है । इन उपदेशात्मक कथनों में जैनधर्म के आदर्शभूत सिद्धान्तों और विचारों का यथेष्ट समावेश किया गया है । खास करके मनुष्य जीवन की क्षणभंगुरता, संसार की असारता, एवं धार्मिक जीवन की महत्ता का वर्णन सर्वत्र बताने का प्रयास किया गया है । प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रकाशनद्वारा जैनकथा साहित्य एवं प्राकृत भाषा की एक विशिष्ट रचना विद्वानों के कर कमलों में उपस्थित हो रही है जो समादरणीय होगी । - मुनि जिनविजय हरिभद्र कुटीर साधन आश्रम, चन्देरिया (चित्तौड ) वैशाख शुक्ला ३, संवत् २०१५ खिस्त दि. ११-५-५९ 2010_02 Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ સંપાદકીય જંબૂસ્વામી ભગવાન મહાવીરના અંતિમ ગણધર તથા જૈનશાસ્ત્રમાન્ય ૨૪ કામદેવોમાં અંતિમ કામદેવ હતા. આ જંબૂસ્વામીનું ચરિત જૈનકવિઓને એટલું બધું રોચક લાગ્યું કે આ જંબૂચરિત ઉપર તેમણે સંસ્કૃત, પ્રાકૃત, અપભ્રંશ અને દેશીભાષાઓમાં ૧૦૦થી વધુ રચનાઓ કરી છે. અહીં કાળક્રમે સંસ્કૃત, પ્રાકૃતમાં ઉપલબ્ધ સામગ્રી તથા સ્વતન્ત્ર કાવ્યોની સૂચી આ પ્રમાણે છે— ૧. સંઘદાસગણિ—[૫-૬ સદી] વસુદેવહિંડીનું કથોત્પત્તિપ્રકરણ [પ્રાકૃત] ૨. ગુણભદ્રાચાર્ય—[લગભગ સન્ ૮૫૦] ઉત્તરપુરાણનું ૭૬મું પર્વ-૨૧૩ શ્લોક [સંસ્કૃત] ૩. જયસિંહસૂરિ–[સન્ ૮૫૮] ધર્મોપદેશમાલાવિવરણમાં સંક્ષિપ્તરૂપે કેટલીક પંક્તિઓ અને જંબૂરિત સાથે સંબંધ ધરાવતી ચાર કથાઓ પ્રકીર્ણરૂપમાં [પ્રાકૃત] ૪. ભદ્રદેવસૂરિ [ ૧૦-૧૧મી સદી] કહાવલી અંતર્ગત [પ્રાકૃત] ૫. ગુણપાલમુનિ—વિ. સં. ૧૦૭૬ પૂર્વે] જંબૂરિય-૧૬ ઉદ્દેશક [પ્રાકૃત] ૬. રત્નપ્રભસૂરિ–વિ. સં. ૧૨૩૮] ઉપદેશમાલા ઉપર વિશેષવૃત્તિ અંતર્ગત [પ્રાકૃત] ૭. જિનસાગરસૂરિ—પ્રતિષ્ઠાસોમ-કરટીકા અંતર્ગત [સંસ્કૃત] ૮. હેમચંદ્રાચાર્ય–[વિ. સં. ૧૨૧૭-૧૨૨૯] પરિશિષ્ટપર્વ-૪ પર્વ [સંસ્કૃત] [ગુણપાલમુનિકૃત જંબૂચિરય અનુસાર] ૯. શ્રીપ્રભસૂરિ—ઉદયસિંહસૂરિવિવૃત્તિ સહ [વિ. સં. ૧૨૫૩] ધર્મવિધિપ્રકરણ અંતર્ગત૧૪૧૧ શ્લોક [પ્રાકૃત] ૧૦. ઉદયપ્રભસૂરિ–[વિ. સં. ૧૨૭૯-૯૦] ધર્માભ્યુદયમહાકાવ્ય ૮ સર્ગ [સંસ્કૃત] ૧૧. જયશેખરસૂરિ–[વિ. સં. ૧૪૩૬] જંબૂસ્વામિચરિત્રકાવ્ય ૬ પ્રકરણ [સંસ્કૃત] ૧. આ સંપાદકીય લખાણમાં જૈ.‰.સા. ઇતિહાસ ગુજરાતી આવૃત્તિ ભા.૬માંથી કેટલુંક લખાણ સાભાર ઉદ્ધૃત કરીને લીધેલ છે. સંપા. 2010_02 Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨) ૧૨. રત્નસિંહશિષ્ય-[વિ. સં. ૧૫૨૦] જંબૂસ્વામિચરિત [સંસ્કૃત] ૧૩. બ્રહ્મજિનદાસ–વિ. સં. ૧૫૨૦] જંબૂસ્વામિચરિત્ર ૧૧ સંધિ [સંસ્કૃત] ૧૪. ભુવનકીર્તિશિષ્યસકલચ-[વિ. સં. ૧૫૨૦] જંબૂચરિય [પ્રાકૃત] ૧૫. ઉપા. પાસુંદર નાગૌરી-[વિ. સં. ૧૬૨૬-૨૯] જંબૂચરિય [પ્રાકૃત] ૧૬. ૫. રાજમલ્લ–[વિ. સં. ૧૬૨૨] જંબૂસ્વામિચરિત્ર [સંસ્કૃત] ૧૭. વિદ્યાભૂષણ ભટ્ટારક–[વિ. સં. ૧૬૫૩] જંબૂસ્વામિચરિત્ર [સંસ્કૃત] ૧૮. જિનવિજય-વિ. સં. ૧૭૮૫-૧૮૦૯] જંબૂસ્વામિચરિત [પ્રાકૃત] ૧૯. અજ્ઞાતકર્તક–જંબૂસ્વામિચરિત્ર [સંસ્કૃતગā] ૨૦. સકલહર્ષ–જબૂસ્વામિચરિત્ર [૧૧ પત્ર, સંસ્કૃત]. ૨૧. માનસિંહ–જંબૂસ્વામિચરિત્ર ગ્રન્થાઝ ૧૩૦૦ [સંસ્કૃત] ૨૨. અજ્ઞાત–જંબૂસ્વામિચરિત્ર [૧૪ પત્ર, સંસ્કૃત] ૨૩. અજ્ઞાત-જંબૂસ્વામિચરિત્ર ગ્રન્થાગ્ર ૮૧૭ [સંસ્કૃતગā] ૨૪. અજ્ઞાત-જંબૂસ્વામિચરિત્ર ગ્રન્થાઝ ૧૬૪૪ [સંસ્કૃત] ૨૫. અજ્ઞાત–જંબૂસ્વામિચરિયા જંબૂસ્વામીનું સંક્ષિપ્ત કથાનક – શ્રમણ ભગવાન મહાવીરપરમાત્માના સમયમાં જંબૂ રાજગૃહના એક શ્રેષ્ઠિના પુત્રરૂપે જન્મ્યા તેઓ અતિશય રૂપવંત હતા અને અનેક કળાઓમાં પ્રવીણ હતા. એકવાર સુધર્માસ્વામીનો ઉપદેશ સાંભળ્યા પછી તેમણે બ્રહ્મચર્યવ્રત ગ્રહણ કર્યું અને વૈરાગ્યવૃત્તિ ભણી આગળ વધ્યા. તેમને સંસારમાં રોકવા માટે માતા-પિતાએ તેમના લગ્ન આઠ સુંદર કન્યાઓ સાથે કર્યા, પરંતુ તે કન્યાઓ પણ તેમના મનને સાંસારિક સુખોમાં વાળી ન શકી. દીક્ષાની આગલી રાતે તેમના ઘરમાં પ્રભવ નામનો ચોર ચોરી કરવા આવ્યો પરંતુ જંબૂકુમાર તો આખી રાત પોતાની પત્નીઓને સંસારના દુઃખોનું જ્ઞાન કરાવવા દેખાતરૂપે અનેક કથાઓ એક પછી એક કહેતા રહ્યા અને પત્નીઓની દલીલોને તોડતા રહ્યા. પેલો પ્રભાવ ચોર પણ જંબૂકુમારના ઉપદેશો સાંભળી સંસારથી વિરક્ત બન્યો. પરિણામે જંબૂ તેમની પત્નીઓ, પ્રભવ ચોર પોતાના સાથીઓ સાથે, જંબૂકુમારના માતા-પિતા અને આઠ પત્નીઓના માતાપિતાઓ સુધર્માસ્વામી પાસે દીક્ષિત બન્યા. જંબૂસ્વામી તપસ્યા કરી સુધર્માસ્વામી પછી શ્રમણ સંઘના નેતા-ગણધર બન્યા. તેઓ ચમકેવલી હતા અને વીરનિર્વાણ સંવત-૬૪માં તેઓ નિર્વાણપદને પામ્યા. 2010_02 Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ જંબૂચરિયમ્ - મહારાષ્ટ્રી પ્રાકૃત ભાષામાં રચાયેલું આ કાવ્ય ૧૬ ઉદેશામાં વિભક્ત છે. પ્રથમ બે ઉદ્દેશામાં “સમરાઈઐકહાની જેમ કથાઓના ચાર ભેદ-અર્થકથા, કામકથા, ધર્મકથા અને સંકીર્ણકથા-બતાવી ધર્મકથાને જ કાવ્યનો પ્રતિપાઘ વિષય કહ્યો છે અને ત્રીજા ઉદ્દેશાથી કથાનો પ્રારંભ કરવામાં આવ્યો છે. ચોથા અને પાંચમાં ઉદ્દેશામાં જંબૂસ્વામીના પૂર્વભવોનું આલેખન કરવામાં આવ્યું છે. છઠ્ઠા ઉદ્દેશામાં જંબૂકુમારના જન્મ, શિક્ષા, યૌવન વગેરેનું વર્ણન છે. સાતમા ઉદ્દેશામાં જંબૂકુમારની વૈરાગ્ય તરફ ગતિનું તેમ જ માતાપિતાએ તેને સંસારમાં બાંધી રાખવા માટે આઠ કન્યાઓ સાથે કરાવેલા લગ્નનું વર્ણન છે. આગળના ઉદ્દેશામાં તેમણે તેમની પત્નીઓને સંભળાવેલા આખ્યાનો, દૃષ્ટાંતો અને કથાઓ, પ્રભવચોરે પણ તે ઉપદેશોનું સાંભળવું, તે સૌએ સાથે દીક્ષા લેવી, જંબૂકુમારને કેવળજ્ઞાનપ્રાપ્તિ અને તેમનું મોક્ષગમન આ બધી બાબતોનું આલેખન છે. આ કાવ્યમાં કર્તાએ કથાક્રમને એવો તો વ્યવસ્થિત બનાવ્યો છે કે વાચકની જિજ્ઞાસા તથા કુતૂહલ આદિથી અંત સુધી જળવાઈ રહે છે. આ ચરિત્રમાં વર્ણનોનું વૈવિધ્ય છે. આ કાવ્ય પ્રાકૃત ગદ્ય અને પદ્યના સુંદર નમૂના રજૂ કરે છે. કાવ્ય ધાર્મિક કથાનું આદર્શરૂપ રજૂ કરે છે. નાયકને પોતાની વીરતા પ્રગટ કરવાની કોઈ તક જ આવતી નથી. આ કૃતિ પરવર્તી કવિઓનો આદર્શ રહી છે. જંબૂચરિયમ્ વિષયદિગ્દર્શન – ૧. કથાપીઠ નામના પ્રથમ ઉદેશોમાં મંગલ, સજ્જન અને દુર્જનની પ્રકૃતિનું વર્ણન, ચાર પ્રકારની કથાનું વર્ણન અને છ પ્રકારના જીવોનું વર્ણન કરવામાં આવેલ છે. ૨. કથાનિબંધનનામના બીજા ઉદ્દેશામાં મનુષ્યભવ અને સમ્યક્ત્વની દુર્લભતાનો નિર્દેશ, મનુષ્યભવની સાર્થકતાનો ઉપદેશ અને ત્રણ પ્રકારની પર્ષદાનું નિરૂપણ કરવામાં આવેલ છે. ૩. ત્રીજા ઉદ્દેશામાં મહાવીરપરમાત્માનો રાજગૃહીનગરીમાં ધર્મોપદેશ, શ્રેણિકરાજાનું પરમાત્મા મહાવીર પ્રભુને વંદનાર્થે આગમન, શ્રેણિકરાજાકૃત પ્રસન્નચંદ્રરાજર્ષિસંબંધી પૃચ્છા અને પરમાત્માએ તેનો આપેલો ઉત્તર તેનું વર્ણન કરવામાં આવેલ છે. ૪. ચોથા ઉદ્દેશામાં જંબૂસ્વામીના પ્રથમભવ દેવભવનું વર્ણન, ભવદત્ત અને ભવદેવની પ્રવ્રજયા, ભવદત્તસાધુના સ્વર્ગગમન પછી પોતાની પત્ની નાગિલામાં અનુરક્ત ભવદેવસાધુનું પોતાના ગામમાં આગમન, ભવદેવને નાગિલાએ આપેલ વિસ્તારથી ધર્મની હિતશિક્ષા, નાગિલાએ કહેલ રેવાદિત્યબ્રાહ્મણ અને તેના પુત્રનું ઉદાહરણ, ભવદેવમુનિનું વર્ગગમન વગેરે પ્રસંગોનું વર્ણન કરવામાં આવેલ છે. 2010_02 Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૨ ૫. પાંચમા ઉદ્દેશામાં ભવદત્તના જીવનો દેવભવ પછી મહાવિદેમાં વજ્રદત્તચક્રવર્તીના સાગરદત્તનામના પુત્રરૂપે જન્મ, પ્રથમવર્ષાગમનનું વર્ણન, સાગરદત્તની અનિત્યભાવના, અભયસાગર આચાર્યની ધર્મદેશના, પત્ની સાથે સાગરદત્તની પ્રવ્રજ્યા, ભવદેવના જીવનો દેવભવ પછી મહાવિદેહમાં પદ્મરથરાજાના શિવકુમારનામના પુત્રરૂપે જન્મ, શિવકુમાર અને કનકવતીના પ્રથમદર્શનનું વર્ણન, લગ્ન, સાગરદત્તઆચાર્યની ધર્મદેશના, માતા-પિતાએ દીક્ષાની સંમતિ નહિ આપતાં શિવકુમારનું ભાવશ્રમણપણું, અનશન, સ્વર્ગગમન, ભવદેવના જીવનો બીજી વાર સ્વર્ગગમન પછી ઋષભદત્તશ્રેષ્ઠિના પુત્રપણારૂપે અંતિમકેવલી થવાના છે તે જાણીને ભગવાનની આગળ અનાદતયક્ષનું નૃત્ય, તદ્વિષયક શ્રેણિકરાજાની પૃચ્છા અને ભગવાનનો ઉત્તર, વિદ્યુન્માલીદેવ-દેવી દ્વારા પૂછાયેલ પ્રસન્નચંદ્રકેવલીએ તેઓનું જંબૂકુમારની ભાર્યા થવારૂપે કથન વગેરે પ્રસંગોનું વર્ણન કરવામાં આવેલ છે. ૬. છઠ્ઠા ઉદ્દેશામાં રાજગૃહનગરનું વર્ણન યાવત્ સ્વપ્નવગેરે નિરૂપણપૂર્વક જંબૂકુમારનો જન્મ અને યૌવનનું વર્ણન, સુધર્મસ્વામીનું રાજગૃહમાં આગમન, સુધર્મસ્વામીવડે અપાયેલ ધર્મદેશના, જંબૂકુમારે કરેલ શ્રાવકવ્રતનું ગ્રહણ, જંબૂકુમારે કરેલ આજન્મ બ્રહ્મચર્યનો સ્વીકાર, સર્વવિરતિ માટે વિલંબ કરવાનું કહેનાર માતા-પિતાની સમક્ષ જંબૂકુમારે કહેલ લાવણ્યવતીગણિકામાં અનુરાગી પુરુષનું દૃષ્ટાંત, સર્વવિરતિની અનુજ્ઞા નહિ આપનાર માતાપિતાની આગળ જંબૂકુમારે કહેલ કંચનપુરવાસી પાંચમિત્રોનું ઉદાહરણ, તેમાં વચ્ચે કુંથુજિનના સમવસરણનું વર્ણન, કુંથુજિનની ધર્મદેશના અને વિસ્તારથી કાળના સ્વરૂપનું નિરૂપણ, ફરીથી જંબૂકુમારે કરેલ સંસારની અસારતાનું પ્રતિપાદન વગેરે પ્રસંગોનું નિરૂપણ કરેલ છે. ૭. સાતમા વિવાહપરિમંગલ નામના ઉદ્દેશામાં સર્વત્યાગને અભિમુખ જંબૂકુમા૨નો માતાપિતાના મનના સંતોષની ખાતર લગ્ન કરવાનો સ્વીકાર, પૂર્વે જણાવીને જંબૂકુમારનો બ્રહ્મચર્યપાલનપૂર્વક કન્યા આઠની સાથે વિવાહ, પ્રભવરાજકુમારનું વર્ણન, જંબૂકુમારના આવાસમાં પ્રભવનો પ્રવેશ, જંબૂકુમારના પ્રભાવનું નિરૂપણ વગેરે પ્રસંગોનું વર્ણન કરેલ છે. ૮. આઠમા પ્રભવદત્ત-ઉત્તરઅભિધાન નામના ઉદ્દેશામાં સાંસારિકસુખના ભોગનો ઉપદેશ આપના૨ પ્રભવ સમક્ષ જંબૂકુમારે કહેલ મધુબિંદુ દૃષ્ટાંત, પ્રભવ સમક્ષ સંસારની અસારતાનું વર્ણન કરતા જંબૂકુમારે ક્રમથી કહેલ કુબેરદત્તાદૃષ્ટાંત, પ્રભવે કહેલ પિતૃપિંડકર્મનું નિરાકરણ કરતા જંબૂકુમારે કહેલ સમુદ્રસાર્થવાહના પુત્ર મહેશ્વરદત્તનું દૃષ્ટાંત વગેરે પ્રસંગોનું નિરૂપણ કરેલ છે. . 2010_02 Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૩. ૯. નવમા સિંધુમતીદત્ત-ઉત્તરઅભિધાન નામના ઉદ્દેશામાં અસત્ વસ્તુની પ્રાપ્તિ માટે સત્ વસ્તુને છોડવાની ઇચ્છાવાળા કષકકૌટુંબિકના દષ્ટાંતને કહેનાર સિંધુમતી નામની પ્રથમ પત્નીને જંબૂકુમારે હાથી અને કાગડાનું દષ્ટાંત કહેલ તેનું નિરૂપણ કરવામાં આવેલ છે. ૧૦. દસમા દત્તશ્રીદત્ત-ઉત્તરઅભિધાન નામના ઉદેશામાં ભાગીરથીના જલમાં પડવાથી મનુષ્યપણું પામ્યા પછી દેવપણાની ઇચ્છાથી ફરી ભાગીરથીના જલમાં પડવાથી વાનરથવારૂપ ઉદાહરણ કહેનાર દત્તશ્રી નામની બીજી પત્નીને જંબૂકુમારે અંગારદાહકનું દષ્ટાંત કહેલ તેનું નિરૂપણ કરવામાં આવેલ છે. ૧૧. અગ્યારમાં પદ્મશ્રી દત્ત-ઉત્તરઅભિધાન નામના ઉદેશામાં શ્રેષ્ઠિની પત્ની વિલાસવતી નૂપુરપંડિતાના વર્ણનયુક્ત અપ્રાપ્ય વસ્તુની ઇચ્છા અને પ્રાપ્ત વસ્તુનો ત્યાગ કરનાર શિયાળની કથાને કહેનાર પદ્મશ્રી નામની ત્રીજી પત્નીને જંબૂકુમારે ચાંડાલકન્યામાં આસક્ત વિદ્યાધરનું દષ્ટાંત કહેલ તેનું નિરૂપણ કરવામાં આવેલ છે. ૧૨. બારમા પાસેનાદત્ત-ઉત્તરઅભિધાન નામના ઉદેશામાં શંખનો ધ્વનિ સાંભળીને ભયભીત થઈને ચોરથી ત્યાગ કરાયેલ દ્રવ્યગ્રહણના લોભથી ફરી તે જ પ્રમાણે શંખનો ધ્વનિ સાંભળીને ચોર વડે હણાયેલ શંખધમક દૃષ્ટાંતને કહેનાર પદ્મસેના નામની ચોથી પત્નીને જંબૂકુમારે શિલાંજતુમાં ખેંચી ગયેલ વાનરનું દૃષ્ટાંત કહેલ તેનું નિરૂપણ કરવામાં આવેલ છે. ૧૩. તેરમા નાગસેનાદત્ત-ઉત્તરઅભિધાન નામના ઉદ્દેશામાં માકંદીનગરીમાં રહેનાર વૈભવપ્રાર્થનામાં લોભી વૃદ્ધાતિંકના દષ્ટાંતને કહેનાર નાગસેના નામની પાંચમી પત્નીને જંબૂકુમારે કહેલ જાત્ય અશ્વના દષ્ટાંતનું નિરૂપણ કરવામાં આવેલ છે. ૧૪. ચૌદમા કનકશ્રીદત્ત-ઉત્તરઅભિધાન નામના ઉદ્દેશામાં ગધેડાના પૂંછડાના ગ્રાહક ગામડીયા યુવાનની કથાને કહેનાર છઠ્ઠી કનકશ્રી નામની પત્નીને જંબૂકુમારે કહેલ વડવાપાલક સોલકના દૃષ્ટાંતનું નિરૂપણ કરવામાં આવેલ છે. ૧૫. પંદરમાં કમલવતીદત્ત-ઉત્તરઅભિધાન નામના ઉદ્દેશામાં સુતેલાસિંહના મુખમાં રહેલ માંસઆસ્વાદક-“મા સાહસ'પક્ષિના દષ્ટાંતને કહેનાર સાતમી કમલવતી નામની પત્નીને જંબૂકુમારે કહેલ ત્રણ મિત્રમંત્રી ઉદાહરણનું નિરૂપણ કરવામાં આવેલ છે. ૧૬. સોળમા ઉદ્દેશામાં કલ્પિત કથાને કહેનાર બ્રાહ્મણની કન્યાના દૃષ્ટાંતને કહેનાર આઠમી વિજયશ્રી નામની પત્નીને જંબૂકુમારે કહેલ લલિતાંગદષ્ટાંત, જંબૂકુમાર દ્વારા વિસ્તૃત ધર્મોપદેશથી બોધ પામેલ આઠ પત્નીઓ અને પ્રભવરાજકુમાર વગેરેને દીક્ષાનો 2010_02 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૪ અભિલાષ, જંબૂકુમારે કરેલ જિનવરેન્દ્રવર્તમાન સ્વામીની સ્તુતિ, અનાદતદેવે કરેલ જંબૂકુમારની સ્નાનવિધિનું વર્ણન, ગુણશિલનામના ચૈત્યમાં જંબૂકુમારના ગમનનું વર્ણન, બૂસ્વામીની દીક્ષાનું વર્ણન સુધર્મગણધરની હિતશિક્ષા, આર્યસુધર્માસ્વામીનું નિર્વાણ, જંબૂસ્વામીને કેવલજ્ઞાનપ્રાપ્તિનું વર્ણન, જંબુસ્વામીએ આપેલ ધર્મદેશના, જંબુસ્વામીનું નિર્વાણ, ચરિત્રસમાપ્તિ, ગ્રંથકારની પ્રશસ્તિ, ગ્રંથકારે કરેલ વંદનીય પુરુષોને વંદના, આશીર્વાદ વગેરેનું નિરૂપણ કરવામાં આવેલ છે. કર્તા અને રચનાકાળ : આ “જંબુચરિયમ્'ના કર્તા નાઈલગચ્છના ગુણપાલમુનિ છે. તેઓ પરમપૂજય વીરભદ્રસૂરિમહારાજના પ્રશિષ્ય અને પરમપૂજય પ્રદ્યુમ્નસૂરિ મહારાજના શિષ્ય છે. સંભવતઃ કુવલયમાલાના કર્તા પરમપૂજ્ય ઉદ્યોતનસૂરિ મહારાજના સિદ્ધાંતગુરુ વિરભદ્રાચાર્ય અને ગુણપાલમુનિના દાદાગુરુ વીરભદ્રસૂરિમહારાજ બંને એક છે. કૃતિની શૈલિઉપર પરમપૂજ્ય હરિભદ્રસૂરિ મહારાજની સમરાઇશ્ચકહા અને પરમપૂજ્ય ઉદ્યોતનસૂરિ મહારાજની કુવલયમાલાનો પ્રભાવ દેખાય છે. ઉક્ત કથાઓની જેમ જ આ કૃતિ પણ ગદ્યપદ્યમિશ્રિત છે. કર્તાના તેમ જ કૃતિના કાળના સંબંધમાં ક્યાંય કોઈ ઉલ્લેખ નથી મળતો પરંતુ રચનાશૈલી વગેરે ઉપરથી અનુમાન થાય છે કે ૧૦-૧૧મી સદી આસપાસની આ રચના હોવી જોઈએ. આની એક તાડપત્રીય હસ્તપ્રત જેસલમેર જૈન ભંડારમાંથી મળે છે, તે ૧૪મી સદી પહેલાની છે. કર્તાની અન્યકૃતિ : પરમપૂજય ગુણપાલમુનિની અન્ય કૃતિ ઇસિદત્તાચરિય (ઋષિદત્તાચરિત્ર) છે. આ અંગે જૈ.બુ.સા.ઇતિહાસ ગુજરાતી આવૃત્તિ પેજ નં. ૩૪૬ ઉપર જણાવેલ છે કે આ કથા ઉપર સૌથી પ્રાચીન રચના પ્રાકૃતમાં છે, તેનું પરિમાણ ૧૫૫૦ ગ્રન્થાત્ર છે. તેની રચના નાઈલકુલના ગુણપાલમુનિએ ઇસિદત્તાચરિય (ઋષિદત્તાચરિત્ર)ની પ્રાચીન પ્રતિ સં. ૧૨૬૪ યા ૧૨૮૮ની મળે છે. તે ઉપરથી નિશ્ચિત થાય છે કે કૃતિ તે પહેલાંની રચના છે. ગુણપાલમુનિનો સમય પણ ૯-૧૦મી સદીની વચ્ચેનો અનુમાનથી નિશ્ચિત કરવામાં આવ્યો છે. ૨. “ઋષિદત્તાચરિયના અંતભાગમાં રૂચ વીરમદ્ભૂરી નાહ્નવં ....[પત્ર ૨૫૪, B]....ઉપર આ પ્રમાણે નાઇલવંશનો સ્પષ્ટ ઉલ્લેખ કરેલ છે. ૩. સં. ૧૨૬૪ (૧૨૮૮)માં ગુણપાલકૃત પ્રાકૃત ઋષિદત્તાચરિતની પ્રત અણહિલવાટકે ભીમદેવના રાજયમાં (કી. ૨, ૯) લખાઈ. [જૈ.સા.સ.ઈ. નવી આવૃત્તિ પેજ નં. ૨૩૦ | પેરા ૫OO] 2010_02 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૫ પૂર્વપ્રકાશન અંગે - મુનિવર ગુણપાલવિરચિત પ્રાકૃતભાષાનિબદ્ધ આ “જંબુચરિયમ્' રાજસ્થાન રાજય અંતર્ગત જેસલમેરદુર્ગમાં રહેલ પ્રાચીન જૈનગ્રંથભાંડાગારમાંથી પ્રાપ્ત થયેલ એકમાત્ર તાડપત્રીય પુસ્તકના આધારથી આની પ્રતિલિપિ કરાવીને આચાર્ય જિનવિજયમુનિએ સંપાદન-સંશોધન કરીને તૈયાર કરેલ આ “જંબુચરિયમુ” અધિષ્ઠાતા-સિંધીજેનશાસ્ત્રવિદ્યાપીઠ-ભારતીયવિદ્યાભવન-મુંબઈથી વિ. સં. ૨૦૧૪, ઈ. સ. ૧૯૫૯માં આની પ્રથમવૃત્તિ ગ્રન્થાંક-૪૪ તરીકે પ્રકાશિત કરવામાં આવેલ છે. મુનિ જિનવિજય પોતાની પ્રસ્તાવનામાં જણાવે છે કે આ ગ્રંથની પ્રતિલિપિ અમે જેસલમેરના પોતાના ભંડાર નિરીક્ષણનો સમય [સન્ ૧૯૪૩ના પ્રારંભમાં] કરાવેલી પરંતુ પ્રેસકોપીનું મૂળની સાથે સારી રીતે મેળવવાનું થઈ શકેલ નહિ, તેથી આ ગ્રંથની કોપીમાં કોઈ કોઈ અશુદ્ધિઓ રહી ગયેલ, ફરી આ પ્રેસકોપીને પ્રેસમાં છપાવવા આપી ત્યારે મૂળ તાડપત્રની સાથે મેળવવાનો અવસર મળ્યો નહિ, તેથી ગ્રંથમાં જે અશુદ્ધિઓ રહી ગઈ તેનું શુદ્ધિપત્ર અંતમાં આપેલું છે. પાઠકગણ આ શુદ્ધિપત્રનો ઉપયોગ કરે. આ શુદ્ધિપત્રને બનાવવામાં પ્રાકૃત ભાષાના વિશેષજ્ઞ પંડિત અને પ્રાચીન ગ્રંથોની પ્રતિલિપિ કરવામાં બહુકુશળ પ્રતિલેખક પાટણનિવાસી પંડિતશ્રી અમૃતલાલ મોહનલાલે યથેષ્ટ શ્રમ કરેલ છે, તેથી અમે તેમના પ્રત્યે અમારો કૃતજ્ઞભાવ વ્યક્ત કરીએ છીએ. નવીનસંસ્કરણ અંગે – આ નવીનસંસ્કરણના સંપાદનકાર્યમાં હું તો માત્ર નિમિત્તરૂપ છું ખાસ તો મુનિ જિનવિજયે એક માત્ર તાડપત્રીય ઉપરથી અથાક પરિશ્રમ કરી આ ગ્રંથ સંપાદિત કરેલ છે અને સિંઘીજૈનશાસ્ત્રવિદ્યાપીઠ આ ગ્રંથ પ્રકાશિત કરેલ છે તેઓ શતશઃ સાધુવાદને પાત્ર છે. આ જંબુચરિયમ્'ની પ્રથમવૃત્તિ અત્યંત જીર્ણ થયેલી હોવાથી પરમપૂજય પંન્યાસપ્રવર શ્રીવજસેનવિજયમહારાજની શુભપ્રેરણાથી આના નવીનસંસ્કરણનું કાર્ય કરવાનું હાથમાં લીધું. આ નવીનસંસ્કરણમાં અમે પ્રથમવૃત્તિમાં પંડિતઅમૃતલાલ મોહનલાલે તૈયાર કરેલ શુદ્ધિપત્રક પૃષ્ઠ નંબર ૨૦૧થી ૨૧૪ના પાઠોની શુદ્ધિ મૂળગ્રંથમાં કરીને શુદ્ધપાઠ લીધેલ છે તેમજ ૧થી ૭ નવા પરિશિષ્ટો તૈયાર કરેલ છે. તેમ જ યથાશક્ય શુદ્ધિકરણ પૂર્વકનું કાર્ય કરવા માટે પરિશ્રમ કરેલ છે, આમ છતાં પણ મુદ્રણાદિદોષથી કે દૃષ્ટિદોષથી કે અનાભોગથી જે કોઈ ક્ષતિઓ રહી ગયેલ હોય તેનું મિચ્છા મિ દુક્કડ આપવા પૂર્વક વાચકવર્ગ તેનું પરિમાર્જન કરીને વાંચે એવી ખાસ ભલામણ કરું છું. 2010_02 Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ઉપકારસ્મરણ : પ્રસ્તુત નવીન સંસ્કરણ તૈયાર કરવાની પ્રેરણા કરનાર પરમપૂજય પંન્યાસશ્રીવજસેનવિજયમહારાજનો તથા પ્રસ્તુત નવીનસંસ્કરણના પ્રકાશન અંગે શ્રુતભક્તિથી પ્રભાવિત થઈને શ્રતોપાસક પરમપૂજય પ્રવચનપ્રદીપ આચાર્યભગવંત શ્રીપુણ્યપાલસૂરિમહારાજે મુલુંડ-જિનાજ્ઞાઆરાધકશ્વેતામ્બરમૂર્તિપૂજક તપગચ્છ જૈનસંઘને આ ગ્રંથપ્રકાશનમાં લાભ લેવા માટે પ્રેરણા કરી અને તેઓશ્રીની શુભપ્રેરણાથી મુલુંડ જિનાજ્ઞા આરાધકસંઘે પોતાના જ્ઞાનદ્રવ્યમાંથી આ ગ્રંથ પ્રકાશનનો લાભ લીધેલ છે તે બદલ પૂજ્ય આચાર્યભગવંતશ્રીનો તથા મારી શ્રુતોપાસનાના કાર્યમાં અનેક પૂજ્ય મહાપુરુષોના શુભાશીર્વાદ પ્રાપ્ત થયા છે તે પરમોપકારી ગુરુભગવંતોનો, મારી સંયમસાધનામાં અને મૃતોપાસનામાં સહાયક બનનાર સૌ કોઈનો આ ગ્રંથપ્રકાશનના સુઅવસરે કૃતજ્ઞભાવે સ્મરણ કરીને કૃતજ્ઞતા વ્યક્ત કરું છું. પ્રાંતે અંતરની એક જ શુભભાવના વ્યક્ત કરું છું કે જંબુચરિયમ્' ગ્રંથનું વાંચન કરતાં કરતાં મારા હૈયામાં સંવેગગર્ભિત વૈરાગ્યના ભાવો ઉલ્લસિત થયા છે અને સંવેગના માધુર્યની અનુભૂતિ થઈ છે. એ રીતે સૌ કોઈ મુમુક્ષુ ભવ્યજનોને આ ગ્રંથનું વાચન કરતાં કરતાં સંવેગગર્ભિત વૈરાગ્યના ભાવો ઉલ્લસિત થાય અને સંવેગના માધુર્યની અનુભૂતિ થાય અને ભવનિર્વેદ પ્રગટ થાય અને સંવેગ-નિર્વેદ દ્વારા અસાર-અસ્થિર સુખોનો ત્યાગ કરીને શાશ્વત-સ્થિર સુખનો આસ્વાદ કરનારા બનીએ અને સાદિ અનંતભાગે જંબુસ્વામીની જેમ સિદ્ધિસ્થાનમાં વાસ કરીએ એ જ શુભભાવના !! એફ-૨ જેઠાભાઈ પાર્ક, - સાધ્વી ચંદનબાલાશ્રી નારાયણનગર રોડ, પાલડી, અમદાવાદ-૭ શ્રાવણ સુદ-૫, વિ.સં. ૨૦૬૫, રવિવાર, તા. ૨૬-૭-૨૦૦૯. 2010_02 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयः પ્રકાશકીય प्रस्तावना સંપાદકીય विषयानुक्रमणिका १. मङ्गलम् । २. सज्जन- - दुर्जनप्रकृतिवर्णनम् । ३. चतुःप्रकारा कथा । ४. कथापीठनामप्रथमोद्देशसमाप्तिः । ५. मनुष्यभव - सम्यक्त्वदौर्लभ्यनिर्देशः । ६. मनुष्यभवसार्थक्योपदेशः । ७. त्रिप्रकारपर्षन्निरूपणम् । ८. कथानिबन्धनामद्वितीयोद्देशसमाप्तिः । ९. महावीरस्वामिनो राजगृहे धर्मोपदेशः, श्रेणिकराजकृता प्रसन्नचन्द्रराजर्षि सम्बन्धिनी पृच्छा तस्या उत्तरञ्च । १०. तृतीयोद्देशसमाप्तिः । ११. जम्बूस्वामिनः प्रथमभवदेवभववर्णना । १२. भवदत्त - भवदेवयोः प्रव्रज्या । १३. भवदत्तसाधुस्वर्गमनादनन्तरं स्वपत्नीनागिलानुरक्तस्य भवदेवसाधोः स्वग्रामागमनम् । 2010_02 पत्रक्रमाङ्कः ७-८ ९-१८ १९-२६ ३ ४-५ ५ ७ ८ ९ १० ११-२२ २२ २३-२४ २५-२६ २७-२८ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९-३२ ३२-३६ ४१-४२ ४२-४४ ४४-४८ ४९-५० ५१-५२ ५३-६० १४. भवदेवं प्रति नागिलाकृता विस्तरतो धर्मानुशास्तिः । १५. नागिलयोदाहृतं रेवादित्यविप्र-तत्पुत्रोदाहरणम् । १६. भवदेवस्य स्वर्गगमनम्, चतुर्थोद्देशसमाप्तिश्च । १७. भवदत्तजीवस्य देवभवानन्तरं विदेहे वज्रदत्तचक्रवर्तिनः __ सागरदत्तनामधेयपुत्रत्वेन जन्म । १८. प्रथमघनागमदर्शनवर्णनम् । १९. सागरदत्तस्य अनित्यभावना । २०. अभयसागराचार्यस्य धर्मदेशना, सकलत्रस्य सागरदत्तस्य प्रव्रज्याग्रहणम् । २१. भवदेवजीवस्य देवभवानन्तरं विदेहे पद्मरथराज्ञः शिवकुमारा भिधपुत्रत्वेन जन्म । २२. शिवकुमार-कनकवत्योः प्रथमदर्शनवर्णना, उद्वाहश्च । २३. सागरदत्ताचार्यस्य धर्मदेशना, पित्रननुज्ञातस्य शिवकुमारस्य भावश्रामण्यम्, अनशनम्, स्वर्गगमनं च । २४. भवदेवजीवस्य द्वितीयवारस्वर्गगमनानन्तरं ऋषभदत्तश्रेष्ठिपुत्र त्वेनान्तिमकेवलित्वमधिगम्य भगवतः पुरतोऽनादृतयक्षनर्तनम्, तद्विषया श्रेणिकपृच्छा, भगवदुत्तरं च । २५. विद्युन्मालिदेव-देवीपृष्टप्रसन्नचन्द्रषिकेवलिनस्तासां जम्बूकुमार भार्याभवनख्यापनम् । २६. पञ्चमोद्देशसमाप्तिः । २७. राजगृहनगरवर्णनं यावत् स्वप्नादिनिरूपणपूर्वकं जम्बूकुमारस्य जन्म, यौवनवर्णनं च। २८. सुधर्मस्वामिनो राजगृहागमनं तत्कृता धर्मदेशना च । २९. जम्बूकुमारस्य गृहिव्रतग्रहणम् । ३०. जम्बूकुमारस्य आजन्मब्रह्मचर्यस्वीकरणम् । ६१-७३ ७४-७५ ७८-८१ ८१-८८ ___ 2010_02 Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९ ३१. सर्वविरतिविलम्बकारिणोर्मातापित्रोः पुरो जम्बूकुमारेणाख्यातो लावण्यवतीगणिकानुरागिपुरुषदृष्टान्तः । ३२. सर्वविरत्यनुमतिमददतोर्मातापित्रोः पुरो जम्बूकुमारेणाख्यातं कञ्चनपुरवास्तव्यपञ्चसुहृदुदाहरणम् । अन्तरा कुन्थुजिनसमवसरणवर्णना, धर्मदेशना, विस्तरतः कालस्वरूपनिरूपणं च । ३३. पुनरपि जम्बूकुमारस्य संसारासारताप्रतिपादनम् । ३४. षष्ठोद्देशसमाप्तिः । ३५. सर्वत्यागाभिमुखस्य जम्बूकुमारस्य मातृमनस्तोषार्थं परिणयनस्वीकरणम्, पूर्वनिवेदिततद्ब्रह्मचर्यपालनपूर्वकं कन्याष्टकेन सार्धमुद्वहनं च । ३६. प्रभवराजकुमारवर्णनम् जम्बूकुमारावासे प्रभवस्य प्रवेशः, जम्बूकुमारस्य प्रभावनिरूपणं च । ३७. विवाहपरिमङ्गलनामसप्तमोद्देशसमाप्तिः । ३८. सांसारिकसुखभोगोपदेष्टारं प्रभवं प्रति जम्बूकुमारेणोदाहृतो मधुबिन्दुदृष्टान्तः । ३९. प्रभवं प्रति संसारासारतां समालपता जम्बूकुमारेण क्रमेणाख्यातः कुबेरदत्तादृष्टान्तः । ४०. प्रभवप्रतिपादिता पितृतर्पणकर्मनिराकुर्वता जम्बूकुमारेणोपाख्यातः समुद्रसार्थवाहपुत्रमहेश्वरदत्तदृष्टान्तः । ४१. प्रभवोत्तराभिधानाष्टमोद्देशसमाप्तिः । ४२. अविद्यमानवस्तुप्राप्त्यर्थविद्यमानविजहितुकामकर्षककौटुम्बिकोदाहरणप्रतिपादिकां सिन्धुमतीं प्रति जम्बूकुमारेणोक्तो वारण- वायसदृष्टान्तः । ४३. [ प्रथमपत्नी ] सिन्धुमतीदत्तोत्तराभिधाननवमोद्देशसमाप्तिः । ४४. भागीरथीजलपतनजातमानुष्य- देवत्वप्राप्तुकामवानराहरणोपदेष्ट्री दत्तश्रियं प्रति जम्बूकुमारेण समुपदिष्ट इङ्गालदाहकदृष्टान्तः । 2010_02 ९०-९२ ९२-९. ९९-१०९ १०१ १०२-१०६ १०६-११० ११० १११-११६ ११६-१२२ १२२-१२६ १२७ १२८-१३१ १३१ १३२-१३६ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० १३६ १३७-१५६ १५७ १५८-१६३ १६३ १६४-१७१ १७१ ४५. [ द्वितीयपत्नी ] दत्तश्रीदत्तोत्तराभिधानदशमोद्देशसमाप्तिः । ४६. इभ्यस्नुषाविलासवती (नूपुरपण्डिता )वर्णनयुक्ताऽप्राप्तेच्छुप्राप्त परिहारकशृगालकथां कथितवतीं पद्मश्रियं प्रति जम्बूकुमारे णोक्तश्चाण्डालकन्यासक्तमेघरथविद्याधरदृष्टान्तः । ४७. [ तृतीयपली ] पद्मश्रीदत्तोत्तराभिधानैकादशोद्देशसमाप्तिः । ४८. शङ्खस्वनाकर्णनभीतचौरत्यक्तद्रव्यग्रहणलोभात् पुनस्तथैवाकर्णित शङ्खस्वरचौरहतशङ्खधमकदृष्टान्तमुपदिशन्तीं पद्मसेनां प्रति जम्बूकुमारेण समुपदिष्टः शिलाजतुक्षुप्तवानरदृष्टान्तः । ४९. [चतुर्थपत्नी] पद्मसेनादत्तोत्तराभिधानद्वादशोद्देशसमाप्तिः । ५०. माकन्दीनगरीवास्तव्यातिवैभवप्रार्थनालुब्धवृद्धाद्विकदृष्टान्त वकी नागसेनां प्रति जम्बूकुमारेणोक्तो जात्यश्वदृष्टान्तः । ५१. [ पञ्चमपत्नी ] नागसेनादत्तोत्तराभिधानत्रयोदशोद्देशसमाप्तिः । ५२. खरपुच्छग्राहकग्रामीणतरुणोदाहरणमुगिरन्ती कनकश्रियं प्रत्युत्तरयता जम्बूकुमारेणोदाहृतो वडवापालकसोलकदृष्टान्तः । ५३. [ षष्ठपत्नी ] कनकश्रीदत्तोत्तराभिधानचतुर्दशोद्देशसमाप्तिः । ५४. प्रसुप्तसिंहवक्त्रान्तर्गतमांसास्वादकपक्षिदृष्टान्तं कथयन्ती कमलवतीं प्रति जम्बूकुमारेणोदाहृतं त्रिमित्रमन्त्र्युदाहरणम् । ५५. [ सप्तमपत्नी] कमलवतीदत्तोत्तराभिधानपञ्चदशोद्देशसमाप्तिः । ५६. कल्पितकथाप्रतिपादिताद्विजकन्यादृष्टान्तं प्रतिपादयन्ती ___ [अष्टमपत्नी ] विजयश्रियं प्रति जम्बूकुमारेणोक्तो वासनाविडम्बित ललिताङ्गदृष्टान्तः । ५७. जम्बूकुमारोपदिष्टविस्तृतधर्मोपदेशेन प्रबुद्धानां भार्याष्टक प्रभवादीनां प्रव्रज्याभिलाषः । ५८. जम्बूकुमारकृता जिनवरेन्द्रवीरवर्द्धमानस्तवना अनादृतदेवकारित जम्बूकुमारमज्जनविधिवर्णना । १७२-१७७ १७७ १७८-१८४ १८४ १८५-१९६ १९६-२२१ २२२-२२७ 2010_02 Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१ ५९. गुणशिलक चैत्यगमनवर्णना । ६०. सुधर्मगणधरेन्द्रस्य अनुशास्तिः । ६१. आर्यसुधर्मस्वामिनो निर्वाणम् । जम्बूस्वामिनः केवलज्ञानप्राप्तिवर्णना । ६२. जम्बूस्वाम्युपदिष्टा धर्मदेशना । ६३. जम्बूस्वामिनो निर्वाणम्, चरित्रसमाप्तिः, ग्रन्थकारप्रशस्तिश्च । ६४. ग्रन्थकारस्य वन्द्यवन्दना, आशीर्वादश्च । [१] परिशिष्टम्-जंबुचरिये उद्धरणानामकाराद्यनुक्रमः [२] परिशिष्टम् - जंबुचरिये विशेषनाम्नामकाराद्यनुक्रमः [३] परिशिष्टम् - जंबुचरिये अपभ्रंशश्लोकानामकाराद्यनुक्रमः [४] परिशिष्टम् - जंबुचरिये सुक्तीनामकाराद्यनुक्रमः [५] परिशिष्टम् - जंबुचरिये प्रशस्तीनामकाराद्यनुक्रमः [ ६ ] परिशिष्टम्-जंबुचरिये कथानामकाराद्यनुक्रमः [७] परिशिष्टम् - जंबुचरिये देशनादिविषयानामकाराद्यनुक्रमः 2010_02 २२८-२३३ २३५-२३९ २४०-२४२ २४३-२५५ २५६-२५८ २५८-२६० २६३-२६८ २६९-२७३ २७४ २७५ - २७६ २७७ २७८-२७९ २८०-२८३ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुचरिये उद्धरणस्थानसङ्केतसूचिः आवश्यकनियुक्ति आ.नि. आव.नि. आ.सं. उत्तरा० आवश्यकसङ्ग्रहणी उत्तराध्ययन उत्तराध्ययननियुक्ति ऊनि. उत्त.नि. उपदेशमाला ऊमा० उप.मा. नव. प्र.सा. श्रा.प्र. वि०भा० वैराश सं.प्र. नवतत्त्वप्रकरण प्रवचनसारोद्धार श्रावकप्रज्ञप्ति विशेषावश्यकभाष्य वैराग्यशतक सम्बोधप्रकरण 2010_02 Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिमुणिवइगुणपालविरइयं जंबुचरियम् 2010_02 Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2010_02 Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिमुणिवइगुणवालविरड्यं ॥ जंबुचरियम् ॥ ॥ कहावीढो नाम पढमुद्देसो ॥ ॥ ॐ नमो वीतरागाय ॥ नमिउं दुक्खत्तसमत्थसत्तभवजलहितारणसमत्थे । पाए चक्कंकुसकुलिसलंछिए जिणवरिंदाणं ॥१॥ नमिउं पणयामरमउडकोडिसंघट्टथट्टकमकमलं । मिच्छत्तविसविणासं, भत्तीए जुयाइतित्थयरं ॥२॥ संगमयामरबहुज(रपज?)णियबहुविहउवसग्गकरणअक्खुहियं । नमिउं भवभयमहणं, जएक्कबंधू(धुं) महावीरं ॥३॥ मिच्छत्तामयसंघत्थजंतुसिवदाणअगयदुल्ललिए । सेसे बियजिणवज्जे(?), बावीसं भावओ नमिउं ॥४॥ जरमरणरोगरयमलकिलेसजंवालसोगभयरहिए । नमिऊणऽक्खयकेवलनाणसमिद्धे सया सिद्धे ॥५॥ अन्नाणमोहसम्मोहियाण जा देइ उत्तमं नाणं । भव्वाणं जंतूणं, तं सुयदेवि नमेऊणं ॥६॥ खन्ताइधम्मजुत्ते पंचिंदियसंवुडे तिगुत्ते य । पंचसमिए पसत्ते साहू सव्वे नमेऊणं ॥७॥ 2010_02 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ दोजीहं वक्कगईं परछिद्दालोयणम्मि तल्लिच्छं । बहुकोहं भयजणणं पिसुणभुयंगं व संठविडं ॥८॥ संते नासेइ गुणे, आरोवइ अवगुणे असंते वि । विहिविलसियस व खलस्स पुणो किल को न बीहेइ ॥ ९ ॥ खणरत-खणविरत्तं खणेण मम्माणि तह य मग्गंतं । कलत्तं वखलं विवज्जणीयं सयाकालं ॥१०॥ सुग्गेज्झा मत्तगया भुयगा सीहा य तह य वग्घा य । मम्मानेसणपउणं दुग्गेज्झं चेव खलहिययं ॥ ११ ॥ सायरजलपरिमाणं सुरगिरिमाणं च भुयणसब्भावं । जाणंति बुद्धिमंता खलस्स हिययं न याणंति ॥ १२ ॥ तह य - पुरओ जंपइ अन्नं अन्नं पट्ठीए हिययए अन्नं । वेसायणो व पिसुणो न सव्वहा जाइ सब्भावं ॥ १३ ॥ पाणाणंतकराणं जमपुरिसाणं वकज्जकुवियाणं । पिसुणाणुप्पित्थमणो पारेमि न किंचि काऊणं ॥१४॥ तह वि अइधिट्टयाए भव्वाण हियद्रुमिच्छमाणेण । अवहीरिऊण पिसुणे किल किं पि मए वि आरडियं ॥ १५ ॥ जेण तम्हा अन्नं च जेण अओ अहवा जइ मम दोसे गहिऊणं निव्वुई लहइ कोइ । ता किं न कव्वकरणे एत्थ मया जं न पज्जत्तं ॥१६॥ अहवा किं मम तेणं सुणएण व भसणकज्जनिरएणं । कीरउ जं कायव्वं पसंसयिस्संति तं सुयणा ॥१७॥ 2010_02 चइउं दोससमूहं विरलं पि य गुणलवं पि गिति । सुयणा सहावर च्चिय परदोसपरम्मुहा जेण ॥१८॥ जंबुचरियम् भणियं च - "सुयणो न रूसइ च्चिय, अह रूसइ मंगुलं न चिंते । अह चिंतेइ न जंपइ, अह जंपइ लज्जिओ होइ " ॥ १९ ॥ [ ] १. 'हियय' प्रतौ । Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कहावीढो नाम पढमुद्देसो अलमेत्थ वित्थरेणं पज्जत्तं सज्जणेहिं सव्वं पि । जेण गुणगिण्हणरया वेरीण वि नियसहावा ॥ २०॥ पणमियजिणाइचलणो संतोसियखलयणो समासेण । धम्मकहापडिबद्धं वोच्छमहं जंबुणो चरियं ॥ २१॥ तत्थ य सामन्नेणं कहाउ मन्नति ताव चत्तारि । अत्थकहा, कामकहा, धम्मकहा तह य संकिन्ना ॥२२॥ अत्थो अत्थकहाए, भन्नइ, कामो वि कामुयकहाए । धम्मो धम्काए, पुरिसत्था चारि चरिमाए ॥ २३ ॥ धम्मा एत्थ पगयं अहवा मीसाए होइ नायव्वं । उवयारो पुरिसाणं जेण य एयाहिं कायव्वो ॥२४॥ ते पुण पंचविहा इह पुरिसा तित्थयर - गणहरिंदेहिं । संखेवेण भणिया जिणसहिया छव्विहा होंति ॥ २५ ॥ अहममा तह अहमा विमज्झिमा मज्झिमुत्तमा चेव । उत्तमगा पंचमगा छट्ठा पुण उत्तमोत्तमया ॥२६॥ "धम्मत्थ- कामरहिया कूडज्झवसायवट्टिणो पावा । मज्जमंसरिया भिल्लाई हुंति अहमहमा ॥२७॥ इहलोयमेत्ततुट्ठा धम्मियजणमोक्खनिंदणपसत्ता । जूयकरनडाईया एए अहमा वियाणाहि ॥२८॥ धम्मं अत्थं कामं सेवंति विमज्झिमा अबाहाए । ते पुण उज्जयभावा बंभण - कोडुंबियाईया ॥ २९॥ धम्माईसु पसत्ता जहसत्तीए विचित्तवयजुत्ता । घरपुत्तदारनिरया सुसावगा मज्झिमुत्तमया ||३०| मोक्खेगदिन्नचित्ता उम्मूलियमोहवल्लिणो असढा । घरपुत्तदारविरया उत्तमगा साहुणो हुंति ||३१|| 2010_02 ५ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ चडतीस अइसयनिही सुरनरमहिया अणंतनाणी य । घरपाडिहेरजुत्ता तित्थयरा उत्तमोत्तमया" ॥३२॥ एएसिं पुणमज्झे उवयारो होइ तिन्ह पुरिसाणं । काव्वो ऽन्नेसिं असंभवाओ जिणाईणं ||३३|| जेण जिणा कयकिच्चा, भिल्ल-नडाई य न उ भवे जोग्गा । अत्थापत्तीए भवे, जोग्गा इह तिन्नि धम्मस्स ||३४|| उवयाराणवि परमो उवयारो धम्मबोहणं होइ । साहूहिं जेण भणियं फुडवियत्थं निसामेह ॥ ३५॥ "सम्मत्तदायगाणं, दुप्पडियारं भवेसु बहुसु । सव्वगुणमेलियाहि वि उवयारसहस्सकोडीहिं" ॥३६॥ [ उप.मा./गा.२६९ ] " सम्मत्तम्मि उ लद्धे ठड्याइं नरय- तिरियदाराई । दिव्वाणि माणुसाणि य मोक्खसुहाई सहीणाई" ॥३७॥ [ उप.मा./गा. २७०] एसो वि य नियमेणं कायव्वो होइ जिणमयं लहिउं । धम्मुवयारो जेणं जिणवयणमिमं निसामेह ॥ ३८ ॥ जंबु 'सयलम्म वि जीवलोऍ, तेण इहं घोसिओ अमाघाओ । एक्कं पि जो दुहत्तं सत्तं बोहेइ जिणवयणे" ॥३९॥ [ उप.मा./गा. २६८ ] ता एसो परमगुणो दिट्ठो परमत्थनिट्ठियट्ठेहिं । तेण ससत्ती सया परोवयारम्मि जइयव्वं ॥४०॥ एयं पि सवित्थरओ अणेयसाहूहिं पुव्वमक्खायं । तेसिं तु मग्गलग्गो अहं पि संखेवओ नवरं ॥ ४१ ॥ अहवा वि हु कह तीरइ तेसिं मग्गं तु गंतुमम्हेहिं । तह वि किल किंपि भणिमो तेसिं कमकमलभत्ती ॥४२॥ अन्नं च - जाणामि न उण अन्नं तेसिं कव्वाण मज्झिमं भणियं । तह वि अइवसणघत्थत्तणेण मूणं न पारेमि ॥४३॥ 2010_02 Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कहावीढो नाम पढमुद्देसो अन्नं च- वियरंति जत्थ गुणिणो पसरं न लहंति निग्गुणा तत्थ । सूरंसूणं पुरओ खज्जोओ कुणउ किं वरओ ॥४४॥ अहवा गुणवंताणं मग्गच्चारेण होइ गुणनियरो । रविसंगेण पजायइ कसिणं पि हु निम्मलं गयणं ॥४५॥ अह वा - कुडिलसहावे लोए कह व गुणा होंति तं न याणामो । चंदस्स अमयसरिसे किरणे नलिणी न इच्छेइ ॥४६॥ कायव्वो ववसाओ परोवयारम्मि तह वि सुयणेण । हवउ गुणो दोसो वा जाणइ किं को वि परचित्तं ॥४७॥ सो वि य परोवयारो सत्थपबंधेण होइ विक्खाओ । ता तं चिय पारंभइ निसुणंतु जणा पयत्तेणं ॥४८॥ विमल गुण'गणाणं 'पाल'णे भत्तिजुत्ता, तवचरणसमग्गा जे भवंतीह भव्वा । हरिसवसभरा ते 'पीढबंधं' मुणित्ता, धुयमरणकिलेसा सिद्धिसोक्खं लहंति ॥४९।। इय जंबुणामचरिए, पवयन्नपसत्थविविहनिम्मविए । नामेण कहावीढो, पढमुद्देसो समत्तो त्ति ॥५०॥ 2010_02 Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥कहानिबंधो नाम बिइओ उद्देसो ॥ इह हि जंतुणा सुरमणुयतिरियनारयगईसु भममाणेणं कह कह वि भवियव्वयानिओएण किंचूणाए सत्तण्हं कम्माणं कोडाकोडीए सागरोवमाणं संचिटुंतीए, सुरतरुसुरहिकुसुमपवरमंजरिपरिमिलाणत्तऽणुकंपाणाकरणारइविमणपरिचवणविलवणदीणपरिमलणपरपेसणपररिद्धिपलोयणाइअभिदुयसुरा, जरमरणरोगरयमलकिलेसजंवालजरखाससासदाहाऽइसारभगंदरइट्ठवियोगाणिट्ठसंपओगादिपीडियनरा, नेल्लंछणडहणंकणंकुसारकसनासिगवेहणभारारोवणबंधणादिउवद्दवोवदुयतिरिएसु , तारणफाडणमोडणुक्कत्तणाभेयणच्छेयणमुसुमूरणतवियतउयतंबायपेच्छनारएसु , चउगईदुक्खं(क्ख)पाणादिवि(वी)ईतरंगभममाणसयसंकुले तहा कोहमयमाणलोहमोहमायाइविसायगारवाइमयरमच्छकच्छनक्कतंतुयसुंसुमारादिपुच्छच्छडोच्छलियदुग्गमदुरंतदुहसयाउलकरालेजलहिं वाणोरपारे महासंसारे लहिऊणं पवरतरंडयं व सम्मत्तं, अचिंतचिंतामणि व्व अणग्धेयमहारयणं जिणगणहरसिद्धसाहुगुणकित्तणकहासु आयरो कायव्वो अप्पमादो य त्ति । अन्नं च - जाव परदोसगहणं कीड़ बंधस्स कारणं परमं । ताव वरं विमलगुणं सुपुरिसचरियं ति सोयव्वं ॥१॥ कम्माण खओ पुन्नाण संभवो पाववज्जणं तह य । होइ पमायाण जओ, सवणे तह धम्मपडिवत्ती ॥२॥ जओ भणियं - "न य नाणदीवरहिओ कज्जाकज्जाइं जाणई पुरिसो । तो तस्स जाणणत्थं पढमं नाणं वियाणेज्जा" ॥३॥ [ ] नाणं च चरणसहियं, सणसहियं च साहणं भणियं । एत्थ य पंगं-उधाणं, दिटुंतो होइ नायव्वो" ॥४॥ [ ] 2010_02 Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कहानिबंधो नाम बिइओ उद्देसो जओ भणियमागमे नाणं पगासगं सोहओ तवो संजमो य गुत्तिकरो । तिण्हं पि समाओगे मोक्खो जिणसासणे भणिओ॥५॥[वि.भा.गा.११६१] "सव्वेण य सत्तेणं संसारत्येण चउगइनिबंधे । जरमरणरोगसोगाउलेण सययं भमंतेण ॥६॥ नारयतिरियनरामरसंसारनिबंधणाई दुक्खाई । सारीरमाणसाइं बहुप्पयाराई द्रूण ॥७॥ तहा य -छिंदणभिंदणताडणसोसणमोडणभयाइणा गसिए । नरए तमंधयारे नेइए दुक्खसंसत्ते ॥८॥ सीउण्हवासपहए मारणसूडणवहाइणा घत्थे । आरंकुंससंतत्ते तिरिए बहुदुक्खपरिकलिए ॥९॥ जाइजरामरणभवोहुवहुए सोगरोगपरिघत्थे । इटाणिट्ठविओगा जुंजणजुत्ते तहा मणुए ॥१०॥ सारीरमाणसोवद्दवाईणा उवदुए तहा देवे । ईसाविसायगसिए चवणाईदुक्खसंतत्ते" ॥११॥ घेत्तव्वं पच्छयणं नाऊण(णं) दुक्खसंजुए एए । भव्वेणं जंतूणं असेसदुक्खाण निव्वहणं ॥१२॥ सव्वो य जणो नेच्छइ दुहाई इच्छइ य परमसोक्खाई। न य जाणइ मुद्धमणो कह सोक्खाइं समुवयंति ॥१३॥ जेण - विसयासामूढमणो सद्दफर प्फ)रिसेहिं रूवगंधेहिं । एगंतवासियमणो कज्जाकज्जं न याणाइ ॥१४॥ पायं च एस जीवो विभाविओऽणेगसो कुभावणया । न चएइ विसयसंगं परिचइउं भवसमुद्दम्मि ॥१५॥ न य जाणए वराओ जहावसाणे असुंदरविवागा । सुहरसियमेत्तसारा किंपागफलोवमा विसया ॥१६॥ १. ''वोहउवहुए' प्रतौ । २. ''इणो उ' प्रतौ । 2010_02 Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुचरियम् ता एवं नाऊणं गुरुणो पासम्मि विगहरहिएहिं । उवएसो घेत्तव्वो असेसदुक्खक्खयनिमित्तं ॥१७।। भणियं च- "निद्दाविगहापरिवज्जिएहिं गुत्तेहिं पंजलिउडेहिं । भत्तिबहुमाणपुव्वं, उवउत्तेहिं मुणेयव्वं" ॥१८॥ [ पञ्चव./गा.१००६ ] अभिकंखंतेहिं सुहासियाई वयणाई अत्थसाराई । विम्हियमुहेहिं हरिसागएहिं हरिसं जणंतेहिं ॥१९॥ गुरुपरिओसगएणं गुरुभत्तीए तहेव विणएणं । इच्छियसुत्तत्थाणं, खिप्पं पारं समुवएंति ॥२०॥ सो वि गुरू सुविसुद्धो धम्माधम्मेसु गहियपरमत्थो । जिणवयणामयकुसलो नायव्वो होइ निउणेहिं ॥२१॥ भणियं च- "गुणसुट्टियस्स वयणं महुघयसित्तो व्व पाप( य )सो भाइ । गुणहीणस्स न सोहइ नेहविहूणो जह पईवो" ॥२२॥ [ ] तेण य सुहासुहाई गम्मागम्माइं जाणिउं तरइ । वच्चावच्चाई चिय पेयापेयाई अबुहो वि ॥२३॥ तेहिं चिय नाएहि परिहरियव्वाइं परिहरइ पुरिसो । गिण्हइ गहियव्वाइं उवेक्खणीए उवेक्खेइ ॥२४॥ परिसा य होइ तिविहा अयाणिया तह य जाणिया बीया । तइया य दुव्वियड्ढा अहवा पन्नाइया बहुहा ॥२५॥ संविग्गा य कयन्नू थिरा य गुणगाहिणी य तह परिसा । कज्जाकज्जविवेयणसमाउला होइ धन्ना उ ॥२६॥ ता एसा एयगुणोववेइया जेण जिणमयपवन्ना । एत्थ य होइ पयासो सहलो गुरुणो भणंतस्स ॥२७॥ गुणपालणखंतिपरा य नरा, निसुणंति इमं विगहारहिया । तवसंजमनाणससीसुरया, अह हुंति य ते अपवग्गगया ॥२८॥ इय जंबुणामचरिए, पयवन्नपसत्थविविहनिम्मविए । नामेण कहनिबंधो, बीओद्देसो समत्तो त्ति ॥२९॥ 2010_02 Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ तइयो उद्देसो ॥ सुरसेलकंदनालं पुहईधरपवरकेसरभिरामं । भरहाइदलं विउलं दिव्वोसहिसुरहिमयरंदं ॥१॥ लवणोव(द)हिपरिखित्तं जणमहुयरसेवियं सयाकालं । कुमुयं व जंबुदीवं, मज्झे लोयस्स अत्थत्थि वरं ।।२।। तस्स य दाहिणभाए अवसप्पिणि-इयरपयडदोपक्खं । उदुवइदलं व भरहं, वेयड्डससंकियं अत्थि ॥३॥ तस्सत्थि दाहिणद्धे मज्झिमखंडम्मि जणवओ मगहा । सुरलोयसमो रम्मो जो उववणदेवभवणेहिं ॥४॥ जहिं च- गामा सरेहिं नलिणीहिं सरवरा पउमिणीउ पउमेहिं । भमरेहिं पउमसंडा अली विरुइएण रेहति ॥५॥ तियमेहलसुविहत्तं चउक्कवत्तादिवरसिलसमेयं । तुंगट्टालयसिहरं परिखित्तं नंदणवणेण ॥६॥ वरकणयमयं तुंगं अणेयसुरभवणचूलियसमेयं । तत्थऽत्थि पुरं पयडं, रायगिहं मेरुबिंबं व ॥७॥ तं च केरिसं?- आरामवाविदीहियगोउरपायारतोरणसणाहं । बहुवण्णजाइसिप्पियजणनिवहुद्दामरमणिज्जं ॥८॥ वेला इव जलनिहिणो मुत्ताहलरयणसंखसिप्पीहि । रेहति विद्रुमेहि य आवणमग्गा जहिं नयरे ॥९॥ 2010_02 Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुचरियम् तंबोलकुसुमकुंकुंमसन्निहियविडंगदीहनेत्ताओ। जत्थ य पयडनहाओ विवणीओ वेसिणीउ व्व॥१०॥ तत्थ य राया दरियारिमत्तमायंगकुंभनिद्द[ल]णो । सीहो इव पच्चक्खो नामेणं सेणिओ अत्थि ॥११॥ घणथणनियंबपिहला मंथरगइसरलकोमलसरीरा । अवरोहणप्पहाणा अह देवी चेल्लणा तस्स ॥१२॥ तीए संमं पंचविहे भोए सग्गे व्व देवरायस्स । भुंजंतस्स सुहेणं वच्चइ कालो नरिंदस्स ॥१३॥ अहमन्नया कयाई केवलवरनाणदंसणपईवो । सुरमणुयासुरमहिओ भयवं वीरो समोसरिओ ॥१४॥ देवेहिं तओ रइयं चेइयदुमछत्तचामरसणाहं । धयतोरणसीहासपायारजुयं समोसरणं ॥१५।। नमिऊण तओ तित्थं काऊण पयाहिणं सुहनिसन्नो । पुव्वाभिमुहो भयवं धम्म कहिउं अह पवत्तो ॥१६॥ कह - "नारयतिरियनरामरगईसु परिभमइ कम्मसंतत्तो। जीवो धम्मविहीणो पुणो पुणो भवसमुद्दम्मि ॥१७॥ मिच्छत्तमोहियमणो निंदियअहमाइं पावकम्माइं । काऊण नरयकूवे पडइ य जीवो तमंधम्मि ॥१८॥ तत्थ य छिंदणभिंदणफाडणउक्कत्तणाई बहुयाइं । पावेइ णेगकालं दुक्खाइं पावजणियाई ॥१९॥ वहणंकणनत्थणताडणाई तिरियत्तणे वि पावेइ । मणुयत्तणे वि पत्ते, दुक्खाइं अणेगरूवाइं ॥२०॥ देवत्तणे वि जाए किविसिओ होइ मंदरिद्धिल्लो । रिद्धि पत्तो वि पुणो, चवणाईयं लहइ दुक्खं ॥२१॥ 2010_02 Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३ तइयो उद्देसो धम्मेणं पुण एसो सुदेवमणुयत्तणं लहइ जीवो । तम्हा करेह धम्म संसारविमोयणसमत्थं ॥२२॥ रुबिंदखंदगोविंद भासिओ सो वि णेगहा धम्मो । चिंतामणि व्व रेहइ तेसि मज्झे जिणक्खाओ ॥२३॥ सो य - विरई पाणवहालियअदत्तमेहुणपरिग्गहाणं तु । एसो भणिओ धम्मो होइ अहम्मो य विवरीओ ॥२४॥ अहवा खमाइगो "खंती य मद्दवज्जवमुत्ती तवसंजमे य बोधव्वे । सच्चं सोयं आकिंचणं च बंभं च जइधम्मो" ॥२५॥ [आ. सं./गा.३ ] तत्थ - खंती य इमा भणिया सम्मं नाणेण जाणिउं वत्थु । कोहस्स अणुदओ जं उदयस्स व विफ( प्फ)लीकरणं ॥२६॥ मद्दवयाईणेवं मुत्तीपज्जंतगाइ जाणाहि । माणाईण अणुदओ उदयस्स व विफ( प्फ)लीकरणं ॥२७॥ तवो उण दुविहो - "अणसणमणोयरिया, वित्तीसंखेवणं रसच्चाओ। कायकिलेसो संलीनया य बज्झो तवो होइ" ॥२८॥ [सं.प्र./गा.१२६९] "पायच्छित्तं विणओ, वेयावच्चं तहेव सज्झाओ । झाणं उस्सग्गो वि य, अभितरओ तवो होइ" ॥२९॥ [सं.प्र./गा.१२७० ] संजमो उण सत्तरसविहो । भणियं च - "पंचासवा विरमणं, पचिंदियनिग्गहो कसायजओ । दंड[ग]तिगविरई संजमो उइइ सत्तरसभेओ" ॥३०॥[प्र.सा./गा.५५५ ] सच्चमणवज्जवयणं, सोउं जं संजमे निरवलेवो । आगिचणं अमुच्छा, नव गुत्तीओ भवे बंभं ॥३१॥ भणियं च- "वसहिकहनिसेजि(ज्जि )दियकुटुंतरपुव्वकीलियपणीए । अइमायाहारविहूसणा य नव बंभगुत्तीओ" ॥३२॥ [प्र.सा./गा.५५८ ] 2010_02 Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुचरियम् एसो संखेवेणं जइधम्मो वन्निओ दसविहो वि । वित्थरओ णेगविहो नायव्वो आगमन्नूहि" ॥३३॥ एवं च भुयणमंदिरएक्कल्लपईवलोयनाहस्स । धम्म साहेमाणस्स सेणिओ वंदओ चलिओ ॥३४॥ तओ - हयगयरहजोहेहि य बहुजाणसहस्सवाहणाइन्न । चलियं सयलं पि बलं तुरमाणं अह समं तेण ॥३५॥ तं च केरिसं दीसिउं पयत्तं ? । अवि य - उदंडपुंडरीयं चलचामररायहंससोहिल्लं । माणससरं व चलियं हयथट्टचलंतकल्लोलं ॥३६।। तओ पयट्टे नरिंदे लोए वि किं जायं ? इह आगओ जिणिदो जो जत्तो सुणइ केवलं वयणं । सो तत्तो य पयट्टइ, वंदगभत्तीए नयरिजणो ॥३७॥ अइनिब्भरभत्तिभरंतहिययरोमंचकंचुओ तुरियं । अह चलइ वंदणमणो नायरकुलबालियासत्थो ॥३८॥ तओ सो ऊ(उ)ण समूहो नीहरमाणो केरिसो दीसिउं पयत्तो ? । अवि य - जणसयसहस्सपसरंतपूरपडिपुन्नसयलदिसियक्को । मत्तो इव रयणनिही मुत्ताहलरयणचिंचइओ ॥३९॥ तओ महासमुद्दवेलाजलेण विय जणसमूहेण पडिपुन्नासु रच्छानईसु किं सोच्चिउं पयत्तं ?अवि य - जा जाहि देहि मग्गं खामो पंथो त्ति रे करी पत्तो । पुरओ वि तुरयथट्टं न पेच्छसे किं तुमं एयं ॥४०॥ तओ एयं च सयलजणसमूहेण संप(व)तं रायसेन्नं केरिसं पयत्तं ? । अवि य मयगलझरन्तमेहं निसियासिफुरन्तपयडविज्जुलयं । गयघडरवगज्जंतं वासारत्तो व्व विहियदिसं ॥४१॥ 2010_02 Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयो उद्देसो नीहरमाणेण तओ दिट्ठो झाणन्तरम्मि वढ्तो । नयरस्स बाहिरीए, पसन्नचंदो नरिंदेण ॥४२॥ सो य केरिसो दिट्ठो ? । अवि य बीयाससि व्व तणुओ तवसंजमचरणकरणनियमेहिं । उवसंतसोममुत्ती पडिमत्थो कि पि झायंतो ॥४३॥ गंतूण तं मुणिंदं काऊण पयाहिणं च तिक्खुत्तो । भत्तिभरनिब्भरंगो एवं थोउं समाढत्तो ॥४४|| "जय ! नेहनियलमूरण, जय ! तवखग्गग्गनिहयकम्मरिऊ । जय ! नीसंग महाजस, जय ! लोइयमुक्कवावार !" ॥४५॥ थोऊणेवं राया नमिऊणं पायपंकयं सिरसा । मुणिणा अदिन्नवयणो, चिंतेउं एवमाढत्तो ॥४६॥ एसो महाणुभावो महइमहन्तम्मि वट्टए झाणे । मोक्खेक्कदिन्नचित्तो तडट्ठिओ लोयजत्ताए ॥४७॥ एसोऽवस्सं साहइ मोक्खं अचिरेण नत्थि संदेहो । अहवस पढमपुच्छा अज्जं मम जिणसयासम्मि ॥४८॥ जं एसो परममुणी वढ्तो दुक्करम्मि झाणम्मि । एत्थ समयम्मि वीरो किल साहइ कं गई अमलो ॥४९॥ एवं विचिंतिऊणं नरनाहं(हो) तं मुणिं पसंसंतो । पत्तो य समोसरणं बहुदेवसहस्सपडिपुन्नं ॥५०॥ दुंदुहिरवगज्जंतं सुरमउडफुरंतपयडविज्जुलयं । जणमणपूरियआसं बहुजंतुसहस्सपडिपुन्नं ॥५१॥ पायाररयणविप्फुरियकिरणआबद्धपयडसुरचावं । पाउससमउ व्व सुहं गंधोदयसुरहिपवणिल्लं ।।५२।। अह तम्मि पविसिऊणं काऊण पयाहिणं जिणिंदस्स । भत्तिभरनिब्भरंगो एवं थुणिउं समाढत्तो ॥५३॥ 2010_02 Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ "पणयसुरीसरसुंदरिनहमणिसंकंतविमलमुहयंद । जयगुरु ! तुह पयकमलं, नमामि हं पावनिट्ठवणं ॥५४॥ संसारकूवनिवडंतजंतुआलंबलद्धमाहप्पं । भुयणेसर ! पयकमलं, नमामि हं लक्खणपसत्थं ॥ ५५ ॥ सुरविरइयकणयसहस्सपत्तमिउय[ य ]रफंसदुल्ललियं । भवभयमहणं जिणवर !, नमामि तुह पायवरकमलं ॥५६॥ असुरनरीसरकिन्नरसुरिंदनायंदवंदियं तुम्ह । कम्मट्ठगंठिनिट्ठवणपच्चलं जयउ पयकमलं" ॥५७॥ इय भणमाणो राया हरिसवसुब्भिन्नबहलरोमंचो | तिहुयणगुरुणो यतओ पणिवइओ चरणजुवलम्मि ॥५८॥ निव्वज्जि [त्ति ] यकरणिज्जो इंदाईणं च विहियसम्माणो । अवणमियउत्तमंगो उवविट्ठो निययठाणम्मि ॥५९॥ पत्थावं लहिऊणं करयलआबद्धमउलपणएणं । अह पुच्छिओ जिणिंदो नरनाहेणं इमं तत्थ ॥ ६०॥ तवरवितेयविणिग्गयसोसियकम्मट्ठगंठिजलनियरो । भयवं पसन्नचंदो किं जोगे वट्टए झाणे ॥ ६१ ॥ भुवणगुरुणा वि भणियं, जलहरगंभीरमहुरसद्देण । एसो नरिंद ! वट्टइ सत्तमपुढवीए जोगम्मि ॥६२॥ तओ नरिंदो चितिउं पयत्तो; कह ? - तवजलणदड्डुकम्मिंधणस्स समसत्तुमित्तबंधुस्स । कह सत्तमपुढवीए जोग्गं झाणं मुणिदस्स ॥६३॥ किं वा मे विवरीयं निसुयं सम्मं पि भासियं गुरुणा । अह वा न चलइ एयं सच्चं भणियं जिणिदेण ॥ ६४ ॥ एवं च बहुविहं चिय जाव वियप्पेइ नवर नरनाहो । ताव य गयणं जायं बहुजाणविमाणपडिपुन्नं ॥६५॥ 2010_02 जंबुचम् Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयो उद्देसो १७ एत्थंतरम्मि सुरसंघमउडकिरणुच्छलंततेएणं । जायं गयणं सहसा संझारुणकुंकुमच्छायं ॥६६॥ जत्थ य पसन्नचंदो गच्छंति सुरा तहिं सपरितोसा । उक्कुट्ठिजयजयरवं कुणमाणा गयणमग्गम्मि ॥६७॥ वज्जंतसंखकाहलवप्पीसयवंसवीणमुरवेहिं । फुट्टइ व अंबरतलं, सुरहिट्ठपणच्चिरसएहि ॥६८॥ सोऊण नरिंदेणं सुरगणउक्कुठि(ट्ठि)कलयलनिनायं । अह पुच्छिओ जिणिदो-भयवं ! किं एत्थ संजायं ॥६९॥ भणियं तिहुयणगुरुणा-पसन्नचंदस्स केवलं नाणं । उप्पन्नं तत्थ सुरा केवलिमहिमं अह करिंति ॥७०॥ भणियं च नरिंदेणं-सत्तमपुढवीए जोग्गए झाणे । वट्टइ किल एस मुणी मिच्छानिसुयं मए एयं ? ||७१॥ भणियं पुणो वि गुरुणा-नरवइ ! मिच्छा न होइ एयं तु । तम्मि समयम्मि.रुद्दे वटुंतो एस झाणम्मि ॥७२॥ भणियं नराहिवेणं-भयवं ! कहसु त्ति कोउयं मज्झ । कह उप्पन्नं नाणं, कह वा तं तारिसं झाणं ? ॥७३॥ भणियं च जिणिदेणं-तम्मि मुहुत्तम्मि सुमुह-दुमुहेहिं । दटुं पसन्नचंदं, भणियं ता सुम्मुहेणेवं ॥७४॥ जह निक्कंटं रज्जं आसि पुरा पालियं नरिंदत्ते । संपइ पसन्नचंदो तह उग्गं कुणइ तवचरणं ॥५॥ ता एसो कयउन्नो सहलं एयस्स जीवियं लोए । गंतूणं पणमेमो जा भणियं सुम्मुहेणेवं ॥७६।। मा मा गिण्हह नाम इमस्सु पुरिसाहमस्स दुमुहेणं । भणियं, अह पुण पणमइ को एवं कम्मचंडालं ? ॥७७।। 2010_02 Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ जेण जो नियपुत्तं बालं चइऊणं वेरियाण मज्झम्मि । अचयंतो पव्वइओ रज्जभरं उयरपुरपरो ॥७८॥ संपइ सो पुण बालो रज्जं गहिऊण तोहिं निच्छूढो । एवं पजंपमाणा वोलीणा तप्पएसाओ || ७९ ॥ सो दुम्ह वयणं पसन्नचंदेण चिंतियं एयं । को मम सुयस्स रज्जं गिण्हइ मम जीवमाणस्स ? ॥८०॥ उच्छलिओ कोहग्गी पम्हुट्ठो तस्स तक्खणेणऽप्पा । मोत्तूण धम्मझाणं रुद्दज्झाणम्मि संकेतो ॥ ८१ ॥ धम्माधम्मं न याणइ कज्जाकज्जं च सुकयदुकयं वा । कोह (घ) त्यो पुरिसो, भक्खाभक्खं च कुसलो वि ॥८२॥ अवि य कुविओ पुरिसे (सो) न गणेइ अत्थं, नाणत्थं, न धम्मं नाधम्मं, न कामं नाकामं, न जसं नाजसं, न कित्ती नाकित्ती, न कज्जं नाकज्जं, न भक्खं नाभक्खं, न गम्मं नागम्मं, न वच्चं नावच्चं, न पेयं नापेयं, न बलं नाबलं, न दोगई न सोगई, न सुंदरं नासुंदरं, न पंथं नापंथं ति । - जंबुचरियम् अवि य- पयईए अकज्जसमुज्जयस्स पर (रि) निंदियस्स सुयणेहिं । कोहस्स तेण भणियं परिहरणं जिणवरिंदेहिं ॥ ८३ ॥ कोहाइकसायाणं नरिंद ! भणियं च एत्थ सामत्थं । सत्थंतरम्मि जह तह एक्कमणो तह निसामेह ||८४|| "कोहानलपज्जलिओ खणेण चरणिधणं डहइ जीवो । काले सुबहु ण वि जमज्जियं संजमगुणेहिं ॥ ८५ ॥ माणं समुव्वहंता नाणं नार्सेति विणयपरिहीणा । हिंडंति नाणरहिया उड्ढमुहारन्नपसव व्व ॥८६॥ जइ वि न वंचेइ परं मायाविजणम्मि तह व विस्सासो । सप्पो जइ वि न खायइ तहा वि दिट्ठो भयं कुणइ ॥८७॥ 2010_02 Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयो उद्देसो न मुणइ कज्जाकज्जं लोभाओ मुक्कनिययमज्जाओ । जीयं तणं व मन्नइ न गणेइ समं व विसमं वा ॥८॥ कोहाइकलुसियमई पुणो पुणो तासु तासु जोणीसु । उप्पज्ज(ज्ज )ति [ तह] सारीरमाणुसे पावए दुक्खं ॥८९॥ कम्मतरुमूलभूया, चउगइसंसारहेयवो हंति । कोहो माणो माया लोभो य पवड्डमाणो उ ॥१०॥ उवसामिया वि एए पुणो वि वटुंति जइ पमाएणं । ता मोक्खत्थं सव्वायरेण चरणे पयइयव्वं" ॥११॥ कज्जाकज्जहियाहियधम्माधम्माणं(ण) [चिंत] विमुहेणेव । पारद्धं निययमणे जइजणपर(रि)निदियं तेण ॥९२॥ अवियारिऊण अप्पा सत्तुसमूहेण अह समं जुझं । रुद्दज्झाणगएणं विउव्वियं नियमणेणेवं ॥१३॥ "सुहडा सुहडेहिं समं, संभिट्टा रहवरा सह रहेहिं । तुरया तुरंगमेहिं, मत्तगया सह गइंदेहिं ॥९४॥ तओ एवं च संपलग्गे किल जुज्झे एवं चिंतिउं पयत्तो; अवि य करवालपहरनिद्दयविणिहयनररुंडमुंडसंकंता। वसुहा रुहिरचिलविल(ला) नच्चंतकबंधबीभत्था ॥९५॥ खग्गग्गसंगसंभग्गमत्तमायंगकुंभभिडिएहिं । मुत्ताहलतारेहिं नज्जइ रयणि व्व रणभूमी ॥९६।। वेकंसुधरियबहुभडकरिनिहियकरंकसिरकवालेहिं । जाया दुस्संचारा किल वसुहा तक्खणेणेव ॥९७॥ हण हणह छिंद भिंदह, मारे मारेह सुहडसंघायं । एवं सो हियएणं संगामं दारुणं कुणइ'' ॥९८॥ एवं च जुज्झमाणे आभिट्ट नायगाण किल जुझं । तत्थाउहक्खएणं सिरताडणवाहिओ हत्थो ॥९९।। 2010_02 Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुचरियम् जा सो मुंडे लग्गो नाओ अह तेण तक्खणेणऽप्पा । वलिओ पडिवहहुत्तं, मिच्छामिह दुक्कडं भणियं ॥१००॥ तओ एवं च चिंतिउं पयत्तो; अवि य "हा रे जीव अलज्जिर ! जिणवयणं पाविऊण भवमहणं । तत्थ वि जिणमयदिक्खं, तह वि तुमं कह पमाइलो ॥१०१॥ हा पापजीव ! भमिहिसि, अज्ज वि रोद्दम्मि भवसमुद्दम्मि । लहिऊण विरइरयणं जं मूढ ! तुमं पमाइल्लो ॥१०२॥ हा हा लहिऊण इमं जिणवयणं मूढ रज्जसे तह वि । संसारसायरे भमणकारए कह णु रज्जम्मि ॥१०३॥ चइऊण इमं मूढय ! तह वि य जुज्झम्मि वट्टसे कह णु । पहायहसि घडसएणं छिप्पिहसि न बिंदुणा तह वि ॥१०४॥ इच्छिहसि तुमं सोक्खं, रमिहसि पावम्मि निग्घिणो होउं । दुन्नि न हुँति हु मुद्धय !, इंदियसोक्खं च मोक्खं च ॥१०५॥ अन्नं च- को कस्स एत्थ पुत्तो, को व पिया को व सत्तु मित्तो वा । नारयतिरियनरामरगईसु अह हिंडमाणस्स ॥१०६॥ जेण - सव्वे जीवा पुत्ता, सव्वाण वि पुत्तओ अहं जाओ । सव्वे वि आसि वेरी सव्वे वि य बंधवा आसि ॥१०७॥ जेण - पुत्तो वि होइ वेरी, सत्तू वि य पुत्तओ पुणो होइ । माया वि होइ जाया, जाया वि य से भवे माया ॥१०८॥ भइणी वि होइ जाया, सा वि य मरिऊण अह भवे माया । धूया वि पुणो जायइ, जणयत्तं सा वि पावेइ ॥१०९॥ मरिऊण पुणो भायत्तणं पि पावेइ तह य पुत्तत्तं । तम्हा न को वि सत्तू, पुत्तो वा एत्थ संसारे ॥११०॥ अन्नं च-सव्वं इमं अणिच्चं धणधणियापुत्तबंधवं सयणं । देहो वि निओ एसो, मोत्तूणं सिद्धिसोक्खं तु ॥१११॥ अन्नं पि आउमाई सव्वं पि अणिच्छयं समक्खायं । जयजीवबंधुजिणवरमयाणुसारेण, भणियं च- ॥११२॥ ___ 2010_02 Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयो उद्देसो "जलनिबहुल्लसंतडंडीरयविज्जुलयासरिच्छयं, तरुसिहरग्गलपवणाहयपरिणयफलसमाणयं । सरलतणुद्धभायपरिसंठियसिण्हासलिलचंचलं, आउयं जणस्स न विज्जइ कम्मि खणम्मि वच्चए ॥ जं पि य जियंति लोयया दुसहदारिद्दरोयसोएहिं । परिमिएए जियलोए सुहरहियं तं पि बहुकिलेसेहिं ॥११३॥ [ ] जोव्वणयं पि रूवलायन्नसमुब्भडजणियसोहयं, बहुविहरइविलाससंभोयसहं धम्मत्थजोग्गयं । तरुणिसमूहस्स मणमोहणयं जणलोयणूसवं, तं पि दिणावसा(ण)संझारुणरायसमाणभंगुरं ॥ जोव्वणसमयाणंतरं कुणइ जरा सुंदर पि पुरिसाण । रूवं ववगयसोहयं वलिपलियसमाउलं चलंतदिट्ठीयं ॥११४॥ [ ] महरिहभवणरयणचामीयरसहस्ससंजुया, सुरवेसिणिसरिच्छमुद्धायणअंतेउरसणाहिया । पवरतुरंगवग्गिरोवग्गिरवरकुंजरसमग्गया, हत्थच्छाहिय व्व पलट्टइ एरिसया वररिद्धिया ॥ करिकन्नकलहचवलिया न देइ तं मणसुहं पहुंजमाणिया वि । जं देइ दुहं घोरयं खलरिद्धी थिरा मए मणुययाणं ॥११५॥ [ ] गुरुसिणेहबद्धबंधुयणजणणिकलत्तसत्थओ, एक्कोयरनिउत्थभाइयणपरियणजणसमूहओ । समसुहदुक्खसोक्खवसणूसवओ तह मित्तवग्गओ, सो वि तरुट्ठिउ व्व पक्खिगणओ गोसे पलायओ ॥ इय नाउणं सारयसंसारमणिच्चयासमोत्थयं । जे न कुणंति तवोहयं गुरुविणया ते लहंति दुक्खाई" ॥११६॥ [ ] एवं चिंतंतस्स अपुव्वकरणेण केवलं नाणं । जायं सुक्कज्झाणे सहसा अह वट्टमाणस्स ॥११७॥ 2010_02 Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुचरियम् नरनाह ! तेण भणियं आसि मया सत्तमीए पुढवीए । जोग्गे वट्टइ झाणे जेणेयं चिंतियं तइया ॥११८॥ खवंति कम्माई पुरेकडाइं, इहेव पत्ताई सुदारुणाई । नराण जेसिं जिणसासणम्मी, सुभावियं भावणा(णया)ए चित्तं ॥११९॥ इय जंबुणामचरिए तइउद्देसो इमो समत्तो त्ति । पालियगुणाणुराया भविया निसुणंतु सेसं पि ॥१२०॥ 2010_02 Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ चउत्थो उद्देसो ॥ भणियं च पत्थिवेणं पुणो वि-अह कम्मि केवलं नाणं । वोच्छिज्जिही महप्पं, एयं भयवं ! जगुज्जोयं ॥१॥ तम्मि समयम्मि देवो चउहिं देवीहिं संजुओ पत्तो । नामेण विज्जुमाली, वंदणभत्तीए जयगुरुणो ॥२॥ जो य सो केरिसो ? । अवि य मयरद्धउ व्व रूवी इंदो इव सयलसंपयाकलिओ । चंदाइरेयसोमो कंतिल्लो दिवसनाहो व्व ॥३।। तओ तेण आगंतूण भणियं; अवि य "जय ! जय ! जीवाइपयत्थपयडजिप्पंतकेवलपईव !। जह (य) मोहतिमिरनासण !, उज्जोइयसयलजयभवण !" ॥४॥ भणिऊण इमं अहं सो पडिओ गुरुपायपंकए विमले । भणियं च तत्थ गुरुणा-एएणं किज्जिही एयं ॥५॥ भणियं च नरिंदेणं-भयवं ! मणयम्मि साहियं एयं । तुम्हेहिं आसि पुट्वि कह देवो केवली होइ ॥६॥ भणियं च तओ गुरुणा-सत्तमदिवसम्मि एस चविऊण । पावेही मणुयत्तं, तेणेसो केवली चरिमो ॥७॥ भणियं च नरिंदेणं-भयवं ! किर हुति चवणसमयम्मि । परिहीणजुई देवो एसो उण तेयरासि व्व ॥८॥ १. 'लयरजय' प्रतौ । 2010_02 Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ भणियं च लोयगुरुणा - संपइ जाओ य हीणतेयस्सी । एसो देविंदसमो आसि पुराऽयगुणते ||९|| अह भणियं नरवइणा - किं पुण एएण अन्नजम्मम्मि । वयमणुचिन्नं भयवं ! जेणेसो एरिसो जाओ ? ॥१०॥ तओ जयजीवबंधुणा भणियं भगवया वद्धमाणसामिणा जिणवरिंदेण- अत्थि इहेव महाविस सुगामो नाम एक्को गामो जो य सो केरिसो ? अवि य- उद्दामवसहगोमहिसिसंकुलो पवरजुवइरमणिज्जो । धणधन्नहिरन्नजुओ अत्थि सुगामो इहं गामो ॥११॥ 1 तत्थ य आसि अज्जवरट्ठउडो नाम एक्को कुलपुत्तगो । तस्स य रेवइनाम भारिया अहेसि । तीए य दुवे पुत्ता आसि पढमो भवदत्तनामो, बीओ भवदेवाभिहाणो । ते य पत्ता जोव्वणं । वच्चए कालो । अन्नया य कयाई तत्थ विहरमाणो भयवं सुट्ठिओ नाम आयरिओ समागओ, वंदणनिमित्तं च गओ सुगामजणो आयरियाणं सयासे, ते य भवदत्त - भवदेवा वि देव वि भायरो । वंदिओ णेहिं गुरू । आनंदिया य गुरुणा असेसकम्मक्खयकारिणा धम्मलाहेणं ति । उवविट्ठा य सव्वे गुरुचलणंतिए । कहिओ य तेण भगवया जिणयंदपणीओ जीवदयाईओ धम्मो । जंबुचरियम् "सो य इमं नायव्वो, जीवदयाई जिणेहिं पन्नत्तो । धम्मो संखेवेणं, भणियं च जओ निसामेह ॥ १२ ॥ जीवाणमहिंसाए, अलियनियत्तीए परधणे विरई । परदारवज्जणं पिय, तह अप्पपरिग्गहो चेव ॥१३॥ राईभोयणविरई महुमज्जविवज्जणं अमंसं च । एसो भणिओ धम्मो, होइ अहम्मो य विवरीओ ॥१४॥ अन्नं च- तो धम्मो जइ य दया, जइ य तवो जइ य होइ संतोसो । जइ सच्चं जइ बंभं, जइ मद्दवया अमाइत्तं ॥ १५ ॥ जइ खंती जड़ मुत्ती, जइ मणगुत्ती जई य वयगुत्ती । जइ रागाउ नियत्ती, जइ मेत्ती सव्वभूएसु ॥ १६ ॥ 2010_02 Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो उद्देसो जइ परदव्वनियत्ती, न य परतत्ती सरीरगुत्ती य । जइ सुद्धभिक्खवित्ती, न पवित्ती संचए जइ य ॥१७॥ जइ सद्देसु न रज्जइ, रसेसु गंधेसु तह य फासेसु । विसएसु न वि य रज्जइ, न वि मज्जइ कुलबलाईसु ॥१८॥ जइ उवसमो जइ दमो, जइ नियमो जइ य होइ वेरग्गं । जइ साहुपूयणरओ, जइ निरओ होइ सज्झाए ॥१९॥ एमाई धम्मगुणा, जस्सत्थि जयम्मि तस्स धम्मो हि । एयगुणविप्पहीणो न होइ धम्मो अहम्मो सो" ॥२०॥ एवं च गुरुणा कहिए तओ धम्मं सोऊण पडिबुद्धो भवदत्तो पव्वइओ य । विहरिओ य गुरुणा सद्धिं । अन्नया य कयाई आयरिया विन्नत्ता एक्केण साहुणा, जहा-'इच्छामि तुब्मेहिं अणुन्नाओ सयणाणं सयासं गंतुं । तत्थ य ममं दद्रुण कणिट्ठो भाया अईवसिणेहसंबद्धो सो य कइया पव्वि[व्व]यइ त्ति । तओ विसज्जिओ बहुसुयसाहुसमेओ सो गुरुणा । तओ दट्ठण य नायए समागओ थोवदियहेहिं । तओ तेण गुरूणं समालोइयं, जहा तस्स अम्मपियरेहिं वरिया दारिया अओ सो न पव्व[इ]उ त्ति । एयं च सोऊण [भणियं-] भवदत्तसाहुणा-'एसो वि नाम किल सिणेहो जं तुमं पि भाउयं धम्मसारहिं चिरस्स दट्टणं पि न सो पव्वइओ' त्ति । इमं च सोऊण भणियं तेण साहुणा-'तुम्ह वि अत्थि कणिट्ठो भाया, तुमं पि तत्थ गए पेच्छिस्सामो तं पव्वइयं' ति । तओ भणियं भवदत्तेण-'जइ भयवओ आयरिया तमुद्देसं गमिस्संति, तओ सो ममं दट्ठण कयाइ जइ पव्वइय' त्ति । गुरुणा य सद्धिं विहरमाणस्स भवदत्तसाहुस्स वच्चइ कालो । अण्णया य कयाई विहरमाणा आयरिया गया मगहाजणवयं । तत्थ वि सुगामासन्नगामं । तओ विन्नविया आयरिया भवदत्तसाहुणा, जहा- 'भयवं ! तुब्भेहिं अणुण्णाओ इच्छामि दटुं सयणे' त्ति । तओ गुरुणा वि सुसाहुसमेओ विसज्जिओ सो, पत्तो य सुगामं । इओ य तम्मि समए सो भवदेवो तस्स भाया नागदत्तस्स कुलउत्तस्स लच्छिमईए भारियाए धूया नाम नाइला, तीए सह विवाहमंगलनिमित्तं आरूढो वेईमंडवे पगहियकरो करेण भमइ मंडलाइं त्ति । एयम्मि य समए पविट्ठो भवदत्तसाहू तेसिं गेहे । तओ तं दट्टण परितुट्ठा सव्वे सयणबंधवा । तओ कयमुचियकरणीयं, वंदिया य भगवंतो साहवो तेहिं, 2010_02 Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ जंबुचरियम् निसुयं च एवं भवदेवेणं जहा - समागओ भवदत्तसाहू मे जेट्ठसहोयरभाया । तओ मोत्तूण विवाहमंगलसेसकरणीयं निवारिज्जमाणो वि ससुरकुलेहिं धरिज्जमाणो वि समवयवयंसएहिं, वारिज्जमाणो वि लडहतरुणीयणविलयासमूहेण 'आगउ'त्ति भणिउं भत्तिनेहाणुक्कंठियमाणसो गओ भाउणो सयासं । वंदिया य णेण साहुणो । का धम्मदेसणा साहूहिं । भणियं च णेहिं जहा - 'तुब्भेत्थ वावडमणा ता वच्चिमो अम्हे, पुणो वि आगमिस्सामो' त्ति भणिऊण पयट्टा साहवो । तओ निब्बंधेणावि जाहे न ठिया तओ पडिलाहिया विउलेणं आहारपयाणेणं, समप्पियं च भक्खभायणं भवदेवस्स करे साहुहिं, पयट्टा । सव्वो तओ वंदिऊण थेवभूमिभाओ नियत्तो सेसबंधुयणो, न पुण भवदेवो । चितइ य अविराज्जिओ कहमहं नियत्तेमि । तओ नियत्तणनिमित्तं च दंसेइ वप्पपुक्खरणिवणसंडउज्जाणे, जत्थ कीलिया हिंडिया पमज्जिया य । सो य सुन्नहुंकारो 'सुमरामि' त्ति - भणमाणो वच्चए भवदत्तसाहू । गच्छमाणा य पत्ता गुरुणो समीवं । तओ तं दट्ठूण भवदेवजुवाणं अहिणवुव्वाहियवरनेवच्छं चवलत्तणेण भणियं चेल्लएहिं जहा - ' भणियमासि जेटुज्जेहिं जहा 'गम भाया अद्धविवाहिओ वि जइ अहं भणामि तो पव्वयइ' त्ति ता सच्चमिणं कयमिमिणा । तओवदंसिओ आयरियाणं । भणियं गुरुणा - 'किं निमित्तं एस समागओ सावगो ? ।' भवदत्तसाहुणा भणियं - 'पव्वज्जागहणनिमित्तं ।' पुच्छिओ गुरुणा जहा - ' एवं ते अभिप्पाओ ?' तओ भवदेवो चितिउं पयत्तो | कह ? अवि य एक्कत्तो पाणपिया, दइया नवजोव्वणम्मि वट्टंती । अन्नत्तो य सहोयरवायाभंगो कओ होइ ॥ २१॥ एक्कत्तो अहिणवपरिणियाए मुद्धाए सह गुरुविओओ । अन्नत्तो उण भाया, कि सेयं जं पवज्जामि ॥२२॥ तहा विपत्तयालं ताव इमं चेवेत्थ जं एसो मम भाया भणइ ति । ' मा भाउणो साहूणं पुरओ अन्नहावाइत्तणं भविस्सइ' त्ति चितिऊण भणियं एवं' ति । तओ तेणेव मुहुत्तेण पव्वाविओ सो गुरुणा । विहरिओ य सह गुरूहिं, जाणाविओ य सयलं सामायारिं । भाउणोवरोहेण य कुणइ पव्वज्जं, न उण परमत्थबुद्धीए । वहइ य हियएण तं अत्तणो जायं अहिणवपरिणीयं । एवं च वच्चए कालो, गच्छंति दियहा । 1 2010_02 Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो उद्देसो २७ पढमाणस्स य समागयं इमं सुत्तं-'न सा महं नो वि अहं पि तीसे ।' तओ विचिन्तियमणेण-'न एयं सुंदरं ।' अवि य ‘सा महं अहं पि तीसे' एवं पयं घोसिउं पयत्तो । तओ वारिज्जमाणो वि साहहिं न ठाइ । सो वि बहुणा कालेण कयसंलेहणो आउक्खएण मरिऊण भवदत्तसाहू तस्स भाया उववन्नो सोहम्मे कप्पे देवो देवत्ताए त्ति । इयरो वि भवदेवो तम्मि समए तमुव्वहमाणो हियएण निययभज्जं केरिसो जाओअवि य- मुक्कगुरुसाहुविणओ, अवहत्थियनिययजोग्गवावारो । दइयाए दंसणमणो, विबाहिओ कामबाणेहिं ॥२३॥ तओ एवं च तस्स सव्वहा वीसरिओ धम्मोवएसो, परिमुसियं विवेगरयणं, गलिओ गुरुजणविणओ, अवहरियं विन्नाणं, अवहत्थियं कुलाहिमाणं, उक्खडिया लज्जा, अवगयं दक्खिन्नं, पणटुं सीलं, ववगयं पोरुसं, वीसरिया दया, गलिओ वयधारणाहिप्पाओ, सव्वहा अणेयनरिंदसुरिंदसुंदरीपिहुपीणनियंबबिंबयडनिवाससुहदुललिओ भयवं कुसुमाउहो विबाहिउं पयत्तो । तेण य बाहिज्जमाणो कह चिंतिउं पयत्तो ?अवि य- रोगजरभरणरयमलकिलेससंतावियाण संसारे । कत्तो अन्नं सोक्खं, मोत्तुं पियसंगम एक्कं ॥२४॥ एवं ति(वि)चिंतियंतो सो केरिसो जाओ ? अवि य- ता खलइ वलइ झूरइ, सूसइ अह पुलयपरिगओ होइ । जं किंपि नवर पेच्छइ, दइयं दइयं ति वाहरइ ॥२५॥ ता हसइ रुयइ झिज्झइ, झायइ दइयं पढेइ गाहद्धं । उम्मत्तउ व्व नज्जइ, हुं हुं महुरक्खरं भणइ ॥२६॥ तओ एयावत्थस्स गओ सो दियहो, समागया य रयणी । कयमावस्सयं साहूहिं भावओ, तेण उण दव्वओ। कयसज्झाया ठिया सयणीए साहवो । सो वि देहेण न उण चित्तेण त्ति ठिओ य तं मुणंतो दइयं हियएण । पच्छिमजामे जामिणीए केणइ पहिएण इमं दूहयं गीयं सा मुद्धा तहिं देसडइ, दुक्खें दियह गमेइ । जइ न पहुप्पह सुयण तुहूं, अवसिं पाण चएइ ॥२७॥ 2010_02 Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुचरियम् एवं च सुणिऊण सुमरिया इमा कस्स वि पुवकविओ गाहुल्लिया पुव्वपढिया तेण दूरयरदेसपरिसंठियस्स पियसंगमं महंतस्स । आसाबंधो च्चिय माणुसस्स परिरक्खए जीयं ॥२८॥ तओ एयं च सुमरिऊण परिचिंतियमणेणअवि य- दइएण विप्पमुक्का, मुद्धा जइ कहवि धरइ सा जीयं । आसासेमो गंतूण तत्थ ता थेवदियहेहिं॥२९॥ तओ केवलं तीए नाइलाए उवरिं बद्धाणुरायचित्तो मयगहिओ इव गयवरो पयट्टो उप्पहं । तओ वारिज्जमाणो वि गुरुजणेणं, पन्नविज्जमाणो वि उवज्झाएणं, अणुसासिज्जमाणो वि थविरहिं, सिक्खीविज्जमाणो वि साहूर्हि, धरिज्जमाणो वि चेल्लएहिं; केवलं अगणिऊण कज्जाकज्जं, अयाणिऊण हियाहियं, अबुज्झिऊण करणीयं, अमुणिऊण परमत्थत्तं सव्वहा जं होउ तं होउ त्ति चिंतिऊण संचलिओ नियगामाहुत्तं । तहा वि केइ मंदसत्ता एवंविहा भवन्तेव । अवि य- इहलोयमेत्ततुट्ठा, धणधणिया पुत्तसयणसंबद्धा । अमयसरिसं पि नूणं, जिणवयणं ते पमायंति ॥३०॥ ते य अपरमत्थावलोइणो एवं असंतगुणारोयणेण विनडिज्जंति । अवि य- इंदीवरचंदसुवन्नकलससुरसरिपुलीणसरिसाइं । मयणमुहथणयजहणत्थलाई दइयाए मन्नंता ॥३१॥ न उण एवं परमत्थावलोयणेण पेच्छंतिजओ य- जलबुब्बुयलालाविलपिसियासुइअन्तमुत्तठाणाणि । फसफोफसहड्डकरंकचम्मरुहिराचिलमिलाइं ॥३२॥ तओ सो भवदेवो थोवदियहेहिं पत्तो सुगामं । ठिओ उज्जाणजिणाययणे । इओ य सा तस्स जाया नाइला तम्मि समए तस्स तत्थ ट्ठियस्स समागया धूयगंधकुसुमे गहाय तम्मि उज्जाणजिणाययणे । तीए य समं एगा माहणी सह दारगेण समागया । तओ ताहिं 'साहुत्ति भणिऊण वंदिओ भवदेवो । भणियमणेण-'तुब्भे जाणह एत्थ माणसामाणुसं ?' नाइलाए भणियमामं । तेण भणियं-'कुसलं अज्जवरटुउडगेहे ?' 2010_62 Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो उद्देसो २९ तीए भणियं-'तस्स दुवे पुत्ता आसि, ते य पव्वइया । सेसाणं मायाविताणं बहुकालं कालगयाणं ।' इमं च सोऊण मणायं विमणो जाओ सो । तओ तीए भणियं-'किं पओयणं भयवओ तेहिं ?' तेण भणियं-'ताणि मम जणणिजणयाणि, अहं तेसिं पुत्तो भवदेवो नाम, भाउणो उवरोहेण आसि पव्वइओ । संपयं सो मम भाया उवरओ, अहं पि मायावित्ता(ता)णं जायाए य संभरिऊण सिणेहसारयाए समागओ ।' एयं च निसामिऊण चिंतियं नाइलाए-'एस सो मम भत्ता, एसो य पव्वज्जाभारं विमोत्तुकामो इव नज्जइ । ता किमेत्थ करणीयं ? मए पुरिसस्स निवित्ती गहिया, पव्वइउकामा चिट्ठामि'त्ति चिंतयंतीए भणियं-'कस्स पुण गेहे तए परिणीयं ?' तेण भणियं'नागदत्तस्स धुया नाइला नाम सा भए परिणीया । ता ताण पुण गेहे किं कुसलं ?' तीए भणियमामं । तेण भणियं-'किं पडुसरीरा नाइला?' तीए भणियं-'पडुसरीरा ।' तेण भणियं-'किं सा मम समागमसमुच्छुगा पुच्छइ कयाइ पउत्तिं ति? ।' नाइलाए भणियं-'जओ चेव तुमं पव्वइओ तओ चेव तीए साहुणीणं सयासे धम्मो निसुओ, साविगा य जाया, कुलवहु त्ति काऊण पुरिसस्स निवित्ती गहिया । संपय पि पव्वइउकामा चिट्ठइ त्ति । ता तुमे वि बहुकालं तवो चिन्नो पव्वज्जा य पालिया, संपयं पि इमस्स असारस्स एगंताधुयस्स जीवलोयस्स कारणेणं इमाणं च मुहरसियकिंपागफलरसविवायाणं इयरजणबहुमयाणं बुहयणपरिनिंदियाणं पामाकंडुयणमेत्तसुहरसाणं विडंबणामेत्तदिन्नपरमत्थदुक्खसंघायाणं जिणमयपरिनिंदियाणं सिवपहपरम्मुहाणं एगंतओ असारसंसारकारयाणं विसयाणं कारणेणं, इमं च भवसयसहस्सदुल्लहं एगंतेणेव सययसुहदाययं संसारसमुद्दुत्तरणपच्चलं जिणवयणमहारयणमणग्घेयमवमन्निऊण मोहतरुनियरसयलदिसिवहपिहियसमुद्दविवेयनयणचक्खुपसरे दालिद्ददोगच्चतुच्छासारविविहामणोजावलोयणामेत्तजणियदुक्खकडुयफले जरमरणरोगरयमलकिलेसाययणे दप्पियकूरसावयपउरे कोहमयमाणमायासगत्तसयसंकुले दुस्संचारे खलपिसुणसत्तुसमूहनाणाविहतिक्खकंटयाउले भवसयसहस्सगुविलसंचारे संसारमहाकंतारे मा अप्पाणं पाडेसु त्ति' । अवि य- सयलसुहनिहाणं, जिणवयणं दुल्लहं पमोत्तूणं । मा भमसु भवं भीमं, तुच्छाण कएण विसयाणं ॥३३॥ 2010_02 Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुचरियम् पत्ता य इमे बहुसो, परिभममाणेण एत्थ संसारे । कंतारबंभणो वि य, तह वि न तित्तिं तुमं पत्तो ॥३४॥ जह सरिसमुद्दगाणं, कोविह सुविणम्मि घोट्टिओ नीरं । कुसकोडिबिंदुरोहिं, पियइ अतित्तो जलं अयडे ॥३५॥ तह जो तियसविलासिणिसुरालए विविहजणियभोएहिं । पत्तो तुमं न तित्तिं, संपइ कह निव्वुओ होसि ॥३६॥ अन्नं च-तिरियमणुयाण एए, सामन्ना नवर एत्थ लोयम्मि । इयरो व्व अओ तम्हा, मा रज्जसु मूढ विसएसु ॥३७॥ पावन्ति नरयवडणं, विसयामिसमूढमोहिया जीवा । चिंतियमेत्तेहिं चिय, तम्हा विरएसु पाएणं ॥३८॥ इय एवं नाऊणं, विवायकडुयत्तणं ति विसयाणं । गंतूण गुरूणंते, कुणसु पुणो संजमं तत्थ ॥३९॥ सत्थंतरम्मि जम्हा, भणियं केणावि साहुणा एयं । तं सुण जेणुप्पज्जइ, वेरग्गं तुज्झ हिययम्मि ॥४०॥ जा एसा उप्पज्जइ, हियए जीवाण भोगतण्ह त्ति । सा भवसहस्सजणणी, संसारनिबंधणकरी य ॥४१॥ गयकन्नतालसरिसं, विज्जुलयाचंचलं हवइ जीयं । सुविणसमा रिद्धीओ, बंधवभोगा घनेभा य ॥४२॥ खणभंगुरे सरीरे, का एत्थ रयी सभावदुग्गंधे । नरयसरिच्छे घोरे, दुगंछिए किमिकुलावासे ॥४३॥ वसकललसिंभसोणियमुत्तासुइरुहिरकद्दमसहावे । वसिऊण गब्भवासे, पुणरवि तं चेव अहिलससि ॥४४॥ एवंविहम्मि देहे, जे पुरिसा विसयरागमणुरत्ता । ते दुहसहस्सपउरे, घोरे हिंडंति संसारे ॥४५॥ एयं चिय मणहत्थी, वच्चंतं विसयसंकडपहेसु । वेरग्गमग्गलग्गो, धरेह नाणंकुसेण तुमं ॥४६।। 2010_02 Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१ चउत्थो उद्देसो पणमसु जिणिंदयंदे, भत्तिं काऊण वज्जिय कुदिट्ठी । संसारसलिलनाहं, जेण अविग्घेण तं तरसि ॥४७॥ मोहारिमहासिन्नं, हंतूणं संजमासिणा सिग्घं । अद्धासिय सिद्धिपुरं, करेह रज्जं भयविमुक्कं ॥४८॥ अन्नं च इमं सव्वं, भोगाईयं जमिच्छसे किंचि । तं सव्वं चिय पावसि, धम्माओ जेण भणियं च ॥४९।। दीसंति मणहिरामा, जे नयणाणंदणा य नरवइणो । आहरणालंकिय विविहवत्थ तं धम्मलाहेण ॥५०॥ [ ] पडुपडहवीणमद्दल नच्चिज्जइ सुंदरीहिं सयकालं । सूसरकन्नुवलग्गं, तं सव्वं धम्मलाहेण ॥५१॥ [ ] धवलहरतुंगतोरण गयणवलग्ग(ग्गं) [च ] बहुसुहावासं । चित्तंमकम्मकलियं, तं सव्वं धम्मलाहेण ॥५२॥ [ ] जं गयवरकंठ वरघडगल )गज्जियाइं हिंसंति तुरयथट्टाइं । दीसंति सीहवारे, तं सव्वं धम्मलाहेण ॥५३॥ [ ] जं नेउररसणखलन्तहारवेल्लहलमत्तदइयाइं । जोइज्जइ मत्तविलासिणीहिं तं सव्वं धम्मलाहेण ॥५४॥ [ ] कामिणिखंधविलग्गो, विझिज्जइ चामरेहिं सयकालं । पियइ जलं सुसुयंधं, तं सव्वं धम्मलाहेण ॥५५॥ [ ] जइ इच्छसि नेव्वाणं, तियसिंदनरिंदसंतियं सिद्धि । ता पडिवज्जसु धम्मं, गंतु गुरूणंतिए तुरियं ॥५६॥ तओ इमं च निसामिऊण चिंतियं भवदेवेणअवि य- एक्कस्स ताव चुक्को, कहवि तुलग्गेण गुरुजणगहाओ । अन्नं कह आवडियं, अदिट्ठकंडं व मम एयं ॥५७॥ ता किं पुण मए एत्थ कायव्वं ? अहवा किमेत्थ चिंतियव्वं ? सव्वहा गंतूण निययगेहं तीए पियपणइणीए विसयसुहं अणुहवियव्वं, जणयपयं पालणीयं ति । एयं च चिंतिऊण मणिया सा तेण नाइला-'जइ एवं तो वि ताव पासेमि तं नाइलं _ 2010_02 Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुचरियम् निययदइयं, पुणो जहाजोगमणुचिट्ठिस्सामो त्ति । अन्नं च मम ताव विहेसु तीए सहं दंसणं; पुणो जहा सा भणिही तहा करी(रि)हामो' त्ति एयं च निसामिऊण चिंतियं नाइलाएअवि य- मूढो एस वराओ, गहिओ पेम्मग्गहेण दुद्वेण । न याणइ हियमहियं वा, एयं पि हु भन्नमाणो वि ॥५८॥ ता किं पुण मए एत्थ करणीयं ? किं उज्झिऊण वच्चामि ? अहवा न हीनेहि. एयं, मा एसो एवं संसारं पडिही वराओ । 'विसीयमाणो य पाणी सव्वहा थिरीकरणीयो' इह जिणवयणं, ता अत्ताणं पयडिऊण सव्वहा संबोहेमि ताव एयं, पुणो गुरूणं सयासे वयगहणं कारिस्सामि ति । इमं च चिंतिऊण भणियमणाए-'जइ किं पि तुह तीए दंसणेण पओयणं तओ अहं सा नाइला, जा तुह भज्जा आसि, संपयं पुण ममं तुमं गुरू वंदणीउ' त्ति । इमं च सहसा निसामिऊण लज्जाससज्झसो इव मणागं आसंकिओ जाओ, मूणं च अवलंबिऊण ठिओ भवदेवो । भणियं च तीए-'संपयं जइ मह दंसणेण सिद्धपओयणो जाओ ता वच्च तुमं गुरूणंतिए । बहुकालं तए तवो अणुचिन्नो ता मा तं निरत्थयं थोवदियहकारणेण नेहि त्ति । अन्नं च- भीमभवे मा दुक्खं, पावसु जह पावियं पुरा तेण । सामन्नं चइऊण(णं), तिरियत्ते माहणसुएण ॥५९॥ इमं च निसामिऊण भवदेवेण भणियं-'कह तेण सामन्नं परिचइयं ? कहं वा दुक्खं पावियं ? कहसु' त्ति । तओ तीए भणियंअवि य- अत्थि इह भरहवासे, वेल्लहलुल्लावमणहरो निच्चं । लडहविलासिणिमुइओ, विक्खाओ लाडदेसो त्ति ॥६०॥ तत्थ पुरं भरुयच्छं, दइया इव नम्मयाइ संजुत्तं । अहवा नम्मयजुत्तं, दइयाओ कह विमुच्चंति ॥६१॥ वेलाछलेण जस्स य, रयणनिही संपयं पलोएइ । किं मम गुणेहिं अहियं, सासंको नियमणेणेवं ॥६२।। एलालवंगपिप्पलिमि(मी)रियखज्जूरनालिएरेहिं । जलनिहिवेलावणराइय व्व जत्थ य विवणिमग्गो ॥६३॥ 2010_02 Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो उद्देसो रुक्खो पंडरदेहो, पिंगलनयणो जलंतरोमचओ। तम्मि य रेवाइच्चो, नामेणं माहणो आसि ॥६४॥ तम्मि धणकणयजुत्ते, नियविहवोहसियधणयरिद्धिजणे । दालिद्दकंदली जम्मदुक्खिओ सो परं एक्को ॥६५॥ तस्स य आवया नाम गुरुबंभणविदिन्ना जन्नपत्ती भट्टिणी अहेसि । सा य केरिसा? अवि य- उट्ठविणिग्गयदसणा, पिंगलनयणा लडंतगुरुथणया । लंबोयरवंकमुहा, मडहा किण्हा य वन्नेण ॥६६॥ सा य तस्स अईव दुवि(व्वि)णीया भसणसीला वंचणपरा कलहपिया झंखणसहावा उव्वेवजगया अवन्नवायपरायण त्ति । एवंविहाए य तीए भट्टिणीए तेण माहणेण जायाओ पनरसदारियाओ, ताणं च एक्को कणिट्ठो दारओ । तओ सो तेण कुटुंबेण राई दियहं च भक्खणपरेणं ओभूरभविस्समेत्तविज्जो जायणामेत्तलद्धेण अनित्थारयंतो अत्ताणयं सह तीए माहणीए विक्किणेइ दारयं हारए, वहेइ उदयं, कुणइ खंडणं, समायरइ पीसणं, छड्डेइ छाणगं, भमेइ भिक्खं ति । भणियं च "वंसि चडंति धुणंति कर, धूलीधोया हुंति । पोट्टह कारणि कापुरिस, कं कं जं न कुणंति" ॥६७॥ [ ] एवं च सह तीए एरिसं विसयसुहमणुभवंतस्स वच्चए कालो, गच्छंति दियहा । अन्नया य मरणतयाए जीवलोगस्स उवरया सा आवया भिहाणा तस्स भट्टिणी घरिणी। तीए य मयाए सो सुन्नो इव चुन्नो इव हयहिययो इव गहगहिओ इव परायत्तचित्तो इव मूढो इव सव्वहा किंकायव्वदिन्नवावारहियओ जाओ । तओ चिंतिउं पयत्तो । __ अवि य- "अत्थो कामो धम्मो, पुरिसत्था तिन्नि हुंति लोयम्मि । एएहिं विरहियस्स य, होइ निरत्थो नवर जम्मो ॥६८॥ एयाणं पुण मज्झे, नत्थि अउन्नस्स मज्झ एक्को वि । ता पयपूरणमेत्तेण किं मम एएण जम्मेण ॥६९।। ता सव्वजंतुपरिनिदियस्स मम संपयं अउन्नस्स । पियपणइणिरहियस्स य, मरणं सेयं परं एक्कं ॥७०॥ 2010_02 Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुचरियम् अहवा न हि न हि एवं, मयस्स गुरुपावपुंजमलिणस्स । होही पुणो वि जम्मो, एयाओ चेव पावयरो ॥७१॥ ता देवं देवेणं, तित्थं तित्थेण हायमाणो हं । पक्खालितो पावं, भमामि दइयाए परिहीणो ॥७२॥ धणमाणविप्पमुक्का, धणियपहीणा जणम्मि जे पुरिसा । ताण सरणं वि एसो, वणं व लोए न संदेहो" ॥७३।। तओ एवं च चितिऊणं ताओ धूयाओ दाऊण माहणदारगाणं किल गहियकन्नाहलो संचलिओ सुएण सह तेण तित्थयत्ताए त्ति । तओ एवं च सह तेण डहरगदारएणं परिभममाणेण तित्थं तित्थेण रेवाइच्चमाहणेणं लहुयत्तणेण कम्मस्स, थोयत्तणेणं संसारस्स, भव्वत्तणेण तस्स जीवस्स, अणुदएण मिच्छत्तस्स, भवियव्वाए सम्मत्तस्स पत्ता साहवो, निसुओ धम्मो, गहियं सम्मत्तं, उवसामिया कसाया, गहियं वयं सह तेण दारगेणं ति । एवं च कुणइ तवं पालेइ संजमं, चरइ चारित्तं, वच्चंति दियहा, गच्छति कालो । सो वि दारगो संपत्तजोव्वणो वाहिज्जमाणो इंदिएहिं, अचयंतो सोढुं परीसहे, संतो महव्वयगुरुभरभारजावजीववहणेणं, वाहिज्जमाणो निययसंकप्पसमुब्भवेणं कामदेवेणं, अचयंतो वोढुं संजमतवनियमकिरियाकलावं संजमं पइसिउं पयत्तो त्ति । पत्थइ य जइयणविरुद्धाइं, कुणइ य उम्मग्गं । तओ पालिज्जंतो वि पयत्तनयणाए साहूहि विसए पत्थिउं पयत्तो, भणइ य-'खंत ! अविरइयाए विणा न पारेमि अच्छिउं । तओ निद्धम्मो त्ति काउं 'अजोग्गो एस जिणपवयणपव्वज्जाकिरियाए' त्ति परिचत्तो साहहिं । तओ पच्चलयाए अजसोदयस्स, बाहुल्लेणं अविरईए, उदएणं रागदोसाणं, पभूययाए असायोययस्स परिचत्तं विरइरयणं ति । पत्तो गिहत्थकरणीए । तओ विसयनिमित्तं किं काउमाढत्तो? अवि य उदयं कटुं च तिणं, वहेइ सीसेण भोयतण्हालू । अजगोवसहमहीसीण पालणं तह समायरइ ॥७४॥ एवं सियवायधुओ, गिम्हायवताविओ छुहाकंतो । जं जं कुणइ वराओ, तं तं चिय निष्फलं तस्स ॥७५॥ 2010_02 Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५ चउत्थो उद्देसो भणियं च- "वच्चइ जत्थ अउन्नो, अडविं व दरिं गुहं समुदं वा । पावइ तहिं तहिं, सो, पुन्नेहिं विणा परिकिलेसं" ॥७६॥ [] अन्नेहिं वि भणियं "पुव्वभवकम्मकंदुल्लएण जं तस्स किं पि निम्मवियं । निययनिडाले दुक्खं, सुहं व तं को समुप्फुसइ" ॥७७॥ [] एवं च भोयतण्हालुयस्स परपेसणं कुणंतस्स । अट्टज्झाणोवगयस्स तस्स जम्मो दुहं जाइ ।।७८॥ अच्छउ ताव विलासो, भोगाईओ उ तस्स दूरेण । पूरिज्जइ उयरं पि हु, दुक्खेणं मंदभायस्स ॥७९॥ उयरभरणे असमत्थो, इच्छइ एसो विलासिणीसंगं । तं एवं संजायं, जं भणियं केहिं वि कवीहिं ॥८०॥ अवि य- "जइ जाणउं रइसुहं माणउं रोहणहो माणिक्कई आणउं । भवणु करावई सुंदरउं अंतेउर परिणउं लट्ठउं । अंगु न पेच्छइ अप्पणउं विणु खट्टए भूमिहि घट्टउं" ॥८१॥ [ ] एवं अट्टवसट्टो, राइं दियहं च पेसणपसत्तो । दुक्खसयभरियदेहो, अच्छइ लोए विचितंतो ॥८२॥ तओ एवं च भाराइयं वहतो, परपेसणं कुणतो, भोगाहिलासी अट्टज्झाणोवगओ गमेइ दियहे । तओ कइवयदियहेहिं तहाविहभवियव्वयानिओएण य दट्ठो सो अहिणा । तओ थोवयाए आउयस्स, उक्कडयाए विसदंसस्स, अणाहत्तणयाए तस्स, पंचत्तमवगओ सो । मरिऊण य अट्टज्झाणोवगओ उववन्नो तिरिएसु महिसत्ताए त्ति । तओ वड्डिओ देहोवचएणं, वहेइ पुणो वि वोज्झाइं पट्ठीए खंधेण य । अवि य महिसत्तणेण जाओ, वहइ य वोज्झाइं खंधपट्ठीए । तोत्तयपहरपरद्धो, गिम्हत्तो दुब्बलसरीरो ॥८३।। इओ य सो तस्स जणओ काऊण तवं, पालिऊण संजमं, विहरिऊण सामन्नपरियाएण अंतयाले अणसणविहिणा पंचनमोक्कारपरायणो य कालं काऊण उववन्नो देवलोए देवत्ताए त्ति । तओ ओहिनाणेणं तु परिन्नाओ तेण पुव्वभवो, दिट्ठो य सो 2010_02 Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ जंबुचरियम् सुओ महिसत्तणेण उववन्नो भारं वहमाणो । तओ करुणाए सुयसिणेहेण य पडिबोहत्थं समागओ सो देवो । कओ तेण दिसावाणियगवेसो, विउव्विओ सयडसत्थो । अत्थं दाऊण तस्स सामिणो गहिओ सो तेण महिसो, जुत्तो य गुरुभारसयडे । देवसत्तीए विउव्विओ महाभारो । तओ जाहे न सक्केइ परिवोढुं ताहे सो तोत्तयलउडप्पहारं दाऊण अन्नत्तो जणगरूवं विउव्वित्ता एवं भणइ, जहा-'खंत ! न सक्केमि पढमालियाए विणा विरसं उवभुंजिउं, जाव अगारीए विणा न तरामि अच्छिउं' ति एवं भणमाणो य पुव्ववुत्तंतं साहिउं पयत्तो सो देवो । एयं च सुणमाणस्स तं च जणयरूवं देवं पलोएमाणे समुप्पन्नो तस्स महिसगस्स चित्ते वियप्पो ‘कत्थ मन्नेइ एवं (मन्ने एयं?) दिट्ठपुव्वं मया, अणुहूयं च इमं जं एसो साहेइ' । एवं च ईहापोहमग्गणगवेसणं कुणंतस्स तस्स तयावरणिज्जकम्मखओवसमेण जायं जाइस्सरणं । तेण जाणिओ पुव्वभवो, नाओ वुत्तंतो, संविग्गो चित्तेण विरत्तो संसारस्स, अवगओ तिव्वमोहो । तओ एवं चिंतिउ पयत्तो-'अहो दुरन्तो एस संसारो, चलाई चित्ताई, चंचला इंदियतुरंगमा, विसमा कम्मगइ, न सुंदरं मए अणुट्ठियं, अहमा तिरियजोणी, दुल्लहो जिणवरमग्गो; ता सव्वहा जं एस जणगो भणइ तं मए कायव्वं' ति । एवं चितिऊण भणियं तेण हियएण निययभासाए जहा-'भयवं ! किं मए संपयं समायरियव्वं ?' । तओ देवेण जाणिऊण तस्स भावं जहा-'एस संपयं पडिवज्जइ जिणवरमग्गं' ति तओ पयडियं अत्ताणं देवेण कया य धम्मदेसणा, कहियं च जहा-'गओ अहं देवलोयं' महिसगस्स । तओ सो महिसो गहियअणुव्वओ कयभत्तपच्चक्खाणे सुहज्झाणोवगओ य अणसणनमोक्कारेण य तइयदियहे मरिऊण उववन्नो सोहम्मे कप्पे देवत्ताए त्ति । देवो वि गओ नियट्ठाणं ति । ता एवंविहा इमे दुरन्तलक्खणा विसया विसज्जणीया जिणमयकुसलेण जंतुणा । अवि य- ता मा तुमं पि जह सो, तिरियत्ते पाविओ महादुक्खं । भोगपिवासानडिओ, पाविहिसि अणेयसो दुक्खं ॥८४॥ विसयासत्ता य नरा, पडंति बीभत्स(च्छ)भीसणे नरए । साहूहि जेण भणियं, फुडवियडत्थं निसामेह ॥८५॥ "अच्छड्डियविसयसुहो, पडइ अविज्झायसिहिसिहानिवहे । संसारोवहिवलयासुहम्मि दुक्खागरे घोरे ॥८६॥ 2010_02 Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो उद्देसो पय[ कर]कन्नोरत्थलमुहकुहरुच्छलियरुहिरगंडूसे । करवत्तूकत्तदुहाविरिक्कवीवन्नदेहद्धे ॥८७॥ जन्तन्तरभिज्जंतुच्छलंतगुरुसद्दभरियदिसिविवरे । डझंतुफि( प्फि)डियसमुच्छलन्तसीसट्ठिसंघाए ॥८८॥ मुक्कक्कंदकराहा ? )कयंतदुक्कयकयंतकम्मेहं। सूलविभिदुक्खित्तुद्धदोह णिन( णिन्ने? )त्तपब्भारे ॥८९॥ बद्धंधयारदुग्गंधबंधणायारदुद्धरकिलेसे । छिन्नकरचरणसंकररुहिरवसादुग्गमपवर वा )हे ॥१०॥ गंधमुहणिंदगुक्खित्तवद्धणोमुद्धकंदिरकबंधे । दढगहियतत्तसंडासयग्गविसमुक्खुडियजीहे ॥११॥ तिक्खंकुसग्गकट्टियकंटयरुक्खग्गजज्जरसरीरे । निवसन्तरं पि दुल्लहसोक्खे वक्खेवदुक्खम्मि ॥१२॥ अच्छिनिमीलियमेत्तं, नत्थि सुहं दुक्खमेव पडिबद्धं । नरए नेइयाणं, अहोनिसिं पच्चमाणाणं ॥१३॥ इय भीसणम्मि नरए, पडंति जे विविहसत्तवहनिरया । सच्चब्भट्ठा य नरा, जयम्मि कयपावसंघाया" ॥१४॥ अन्नं च- "लब्भंति गुरुपयोहरनियंबपब्भारवहणसुढियाओ । आयंवदीहपम्हललोयणजुयलाओ विलयाओ ॥१५॥ न उण जरमरणरमलकिलेसजंबालवाहिनिट्ठवणा । संसारसायरुच्छंगभमणखिन्नेहिं जिणचलणा ॥१६॥ सियचमरपवरबहुयणतोरणधवलायवत्तपरिकलियं । लब्भइ हयगयदंसणनरवइसयसंकुलं रज्जं ॥९७॥ नारयतिरियनरामरभवसयपरिभव(म)णखेयविज्झवणा । न उणं भवसयदुलहा, जयगुरुणो पायसंपत्ती ॥१८॥ 2010_02 Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुचरियम् उन्नयगरुयपओहरसुरसुंदरिफंसजणियगुरुतोसं । लब्भइ सग्गम्मि धुयं, सुरसंघपहुत्तणं तह य ॥१९॥ पणमन्तसुरीसरमउडकोडिसंघट्टतेयविच्छुरियं । संसारसमुहुत्तरणकारणं न जिणपयकमलं" ॥१०॥ ता सव्वहा दुल्लहं रुबिंदखंदनायंदवंदियजिणयंदपायकमलं ति । विसमो य एस संसारो, बहुदुक्खाओ नरयवेयणाओ, दुलहो जिणवरमग्गो, बंधणयारो घरवासो, नियलाई दाराई, महाभयमत्ताणं, दुक्खिया जीवा, सुंदरो धम्मोवएसो, न सुलहा धम्मायरिया, तुलग्गलग्गं माणुसत्तणं ति । अवि य भणियं च एत्थ पयडं, कविणा केणावि तं निसामेह । जेणुप्पज्जइ निययं, वेरग्गं तुज्झ हिययम्मि ॥१०१।। "रमसु जहिच्छं सुपुरिस !, को नेच्छइ तुज्झ भोगसंपत्ती । किंतु विवत्ती वि धुवं, चिन्तिज्जउ सा पयत्तेण ॥१०२॥ [ ] को नेच्छइ संजोगो, गरुयनियंबाहिं सुयणुविलयाहि । किंतु विओगोऽवस्सं, होही एयाहिं चिंतेसु ॥१०३॥[ ] सच्चं हीरइ हिययं, जुयईयणनयणबाणपहरेहिं । किंतु अणंतो कामो, पावारंभेसु उज्जमई ॥१०४॥ [ ] सच्चं हो हरइ मणं, लीलावसमंथरं गईपवरं । किंतु न नज्जइ एसो, अप्पा अह कत्थ वच्चिहिइ ॥१०५॥ [ ] सच्चं हरंति हिययं, महिलाणं पेमरायवयणाई । किंतु दुरंतं पेम्मं, किंपागफलं व कडुयं ति" ॥१०६॥ [ ] इय जाणिऊण एयं, मा मुज्झसु एत्थ भोगगहणम्मि । संबुज्झसु धीर ! तुमं, विरइं ता कुणसु हिययम्मि ।।१०७।। ता इमं च जाणिऊण तुमं पि कुणसु समभावं, विरज्जसु विसयाणं, विरमसु संसारस्स, पालेसु वयं, कुणसु संजमं, धरसु वयं, कुणसु तवचरणं, गच्छसु गुरुसयासं' ति । एवं च निसामिऊण भवदेवसाहू मणायं भीओ संसाराओ, उव्विग्गो 2010_02 Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थो उद्देसो गिहासमाओ, बीहिओ दुरंतविसयाणं । चिंतिउं च पयत्तो ‘धिरत्थु संसारवासस्स । कुच्छिओ एस जीवो जं महादुक्खपरंपरेण कहकह वि पाविऊण दुल्लहं जिणवयणं पमाओ कीरइ' त्ति । एयम्मि अवसरे भणिया तेण माहणीसुएण नाइलाए सह समागएण सा माहणी, जहा-'अम्मो ! आणेह मल्लयं, मम छड्डी भविउ कामा, जेण जं पायसं भुत्तं तं तत्थ वमिऊण पुणो अइमिटुं भुंजीहामो' त्ति । तीए माहणीए भणियं'पुत्त ! अइमिटुं पि जं वन्तं तं न परिभुंजीयइ, जओ असुइकप्पं तं' । इमं च निसामिऊण भवदेवेण चिंतियं सुटू भणियं माहणीए, वंतं से दुगुंछणीयं असुइसमाणं भाइ । वंता य मए इमे विसया, ता दुट्ठ मए समायरियं इमे पत्थमाणेण, निवाडिओ अप्पा भवसमुद्दे, पवंचिओ उत्तमसोक्खाणं, संजणिओ वयणिज्जभायणं; तहा वि इमं एत्थ पत्तकालं, वच्छामि गुरुसयासं, गिण्हामि भाववयं, करेमि तवं, पालेमि संजमं, उद्धरामि पायच्छित्तं ति । अवि भणियं चिय पयडं, तं चिंतसु जीव तं पयत्तेण । जेणुप्पज्जइ हियए, वेरग्गं तुज्झ रे मूढ ! ॥१०८॥ संसारम्मि असारे, नत्थि सुहं वाहिवेयणापउरे । जाणतो वि हु जीवो, तह वि य धम्मं न य करेइ ॥१०९॥ [ ] अथिरं जीयं रिद्धी य चंचला जोय(व्व)णं छणसरिच्छं । पेक्खंतो पच्चक्खं, तहवि य वंचिज्जए जीवो ॥११०॥ [ ] घरवासे वामूढो, अच्छइ आसासयाइं चिंतंतो । न कुणइ पारत्तहियं, जा निहओ मच्चुसीहेण ॥१११॥ [ ] वाही इट्ठविओगं, दारिदं तह जरा महादुक्खं । एएहिं परिग्गहिओ, तह वि य धम्मं न य करेइ ॥११२॥ [ ] लहिऊण दुल्हं चिय, एयं मणुयत्तणं तुम जीव !। लग्गसु जिणवरधम्मे, अचिंतचिंतामणिसमाणे ॥११३॥ [ ] जं वुत्थो नवमासे, असुईभरियम्मि गब्भवासम्मि । संकोडियंगमंगो. विसहंतो नारयं दुक्खं ॥११४॥ [ ] रे जीव ! संपयं चिय, वीसरियं तुज्झ तं महादक्खं । थेवं पि जेण न कुणसि, जिणिंदवरभासियं धम्मं ॥११५॥ [ ] 2010_02 Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० जंबुचरियम् जं मारेसि रसते, जीवे निद्दय ! निरावराहे वि । उवभुंजसु तं दुक्खं, पत्तो अइदारुणे नरए ॥११६॥ [ ] जं हरसि परधणाइं, विरयासे जं चं परकलत्ताइ । तं जिय ! पावेसि तुमं, नरए अइधोरदुक्खाई ॥११७॥ [ ] अथिराण चंचलाण य, खणमेत्तसुहंकराण पावाण । दुग्गइनिबंधणाई, विरमसु एयाण भोयाणं ॥११८॥ [ ] कोहो माणो माया, लोभो तह चेव पंचमो मोहो । निज्जिणिऊण य एए, वच्चसु अयरामरं ठाणं ॥११९॥ [ ] इय नाऊण असारं, एयं अइदारुणं पि संसारं । तह कुण जिणवरधम्मं, जह सिद्धिं पावसे विरलं ॥१२०॥ इमं चिंतिऊण भणिया तेण नाइला-'इच्छामो अणुसट्ठि, सुटु पडिबोहिओ अहं ते जिणवरमग्गे, संजणियं भावओ विरइमणं । ता वच्चामि गुरुसयासं, गिण्हामि पायच्छित्तं, करेमि तवं, चरिऊण बहुकालं, अणसणनमोक्कारेण य कालं काऊण सोहम्मे देवलोए सक्कस्स सामाणिओ देवो देवत्ताए उव्वन्नो त्ति । देसूणदोसागरोवमाऊ तत्थ य अच्छइ भोए भुंजंतो त्ति ।' सहंति जे घोरपरीसहाई, धरंति नाणं चरणं च संजमं । गुणा य पालिंति इमं सुणित्ता, हवंति देवा सुमहिड्डिया ते ॥१२१॥ इय जंबुणामचरिए, पयरूवयगाहविरइए रम्मे । एस चउत्थोद्देसो, पढमो य भवो समत्तो त्ति ॥१२२॥ 2010_02 Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ पंचमो उद्देसो ॥ इओ य सो तस्स भाया भवदत्तजीवदेवो ठिइक्खएणं चुओ समाणो, इहेव जंबुद्दीवे पुक्खलावइविजए अत्थि पुंडरिगिणी नयरी । जा य सा केरिसा ? अवि य जणनिवहपूरपसरियजलोहदिप्पन्तरयणविच्छड्डा । मयरहरो व्व विसाला, पुहई इव सासया निच्चं ॥१॥ जत्थ य नयरीए पच्च[य]लोवो जइ लक्खणम्मि सूएसु पंजरनिरोहो । कुसुमेसु बंधणं जइ, कंटो जइ कमलनालेसु ॥२॥ सिसिरविरमम्मि महुमाससेवणं पीलणं जइ तिलेसु । जीवेसु विग्गहो जइ, कलहो जइ मंडलग्गेसु ॥३॥ तत्थऽत्थि निययखग्गप्पहारनिज्जियपयंडरिउनिवहो । पणमियनरीसरकमो, चक्कहरो वइरदत्तो त्ति ॥४॥ तस्सासि सीलजोव्वणमणहरलायन्नरूवगुणकलिया । नियपाणाण वि दइया, नामेण जसोहरा देवी ॥५॥ सा य अपुत्ता, तओ विन्नत्तो सुयनिमित्तं तीए राया, जहा-'मम तणयणिमित्तं कुणसु देवयाईणं समाराहणं' ति । अन्नं च नत्थि देवस्स किं पि असझं । जओ भणियं च "जाव य न दिति हिययं, गरुया विहडंति ताव कज्जाई । अव( वि )दिन्नं चिय हिययं, गुरुं पि कज्जं परिसमत्तं" ॥६॥[ ] "तिणमेत्तं पि हु कज्जं, गिरिवरसरिसं असत्तिमंताणं । होइ गिरी वि तिणसमो, अहिओगसक्कसे पुरिसे" ॥७॥ [ ] 2010_02 Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ जंबुचरियम् ___ तओ राइणा चिंतियं 'एवमेयं, सोहणं देवीए भणियं' । जेण भणियं च __ "जस्स किर नत्थि पुत्तो विज्जाविक्कमधणस्स पुरिसस्स । सो तह कुसुमसमिद्धो फलरहिओ पायवो चेव" ॥८॥ [] तओ 'सव्वं सोहणं भविस्सई'त्ति भणिऊण विसज्जिया देवी । तओ तं दियह पभिइ सुयनिमित्तं कीरंति देवयाराहणाइं । विहिज्जंति मंततंतवाइयपूयाओ । निव्वत्तिज्जंति उवाइसयाइं, कीरंति बलीओ, बझंति रक्खाइं, पिज्जंति ओसहाई, दिज्जंति मूलियाओ, उवणिज्जति तंताई, एवं च कीरमाणेसु बहुएसु तंतमंतोवाइएसु, उववन्नो सो (से) तस्स उयरे । तओ गच्छंतेसु दियहेसु पवड्डिए गब्भे, जाओ सो जणणीए दोहलो 'जाणामि जइ समुद्दे मज्जामि' । इमं च नाऊण वइयरं वइरदत्तो राया समुद्दभूय(य) सीयं नाम महानइं गओ । तत्थ य जसोहरादेवी मज्जिया । अवगओ य दोहलो, निव्वुया य जाया । पसूयाय निययसमयेणं सुकुमालपाणिपायं दारगं । निवेइयं च राइणो वद्धावगेणं, दिन्नं च अंगच्छित्तं निवेयगस्स रन्ना, तयणंतरं च आणत्तं वद्धावणयं, वित्तं च महावद्धावणयं । पडिपुन्ने मासे, कयं तस्स दोहलगुणसंसूइयं नामं सायरदत्तो त्ति । तओ पंचधाईपरियरिओ पवडिओ देहोवचएणं कलाकलावेण य, संपत्तो य जोव्वणं । जणणिजणयकुसलत्तणेण जिणमयधम्मस्स पुव्वभवब्भासेण य जाओ सो जिणसासणभावियमई । तओ परिणाविओ पिउणा महासामंताणं रूवजोव्वणविन्नाणकलाकलावकलियाओ दारियाओ । तओ ताहिं समं अभिरममाणस्स सुहंसुहेणं गच्छइ कालो, वच्चंति दियहा । कयाइ जिणवंदणगीयवीणावायणेणं, कयाइ साहुपज्जुवासणेणं, कयाइ पहेलियाहिं, कयाइ अंतिमक्खराहिं, कयाइ वुड्डाहिं, कयाइ वि दुवईहिं, कयाइ पन्होत्तरेहिं, कयाइ अक्खरमत्ताबिंदुचुएहिं, कयाइ गूढचउत्थपाएहिं; एवं च सायरदत्तस्स विसयसुहमणुहवंतस्स वोलीणा अणेयदिवसकोडिलक्खा । अण्णया सव्वसत्तआणंदयारओ समागओ पढमघणसमओ । जो य केरिसो ? अवि य धारावडणनिरंतसमंतओ भरियसलिलनिवहेण । निन्नुन्नया महीए, नज्जति नो जत्थ पहिएहि ॥९॥ अलिगवल[व]कुलअंजणतमालदलनीलिसरिसमेहेहिं । उच्छइयं गयणयलं, समंतओ गहिरसद्देहिं ॥१०॥ 2010_02 Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो उद्देस विज्जुलयाओ खणमेत्तउव्वओ (?) दिट्ठनट्ठरायाओ । न तहा थिरं पयासं, जणंति जह चेव उव्वेवं ॥११॥ सिहुलाकेयाररवो, नवघणसञ्छन्नए गयणमग्गे । सुव्वन्तो संतावइ, पउत्थवइयाण हिययाई ॥१२॥ पहियाण बरहिणरवो, पियाइ सह जंपियाइ सारेइ । विहडियसंकेयदिणा, जाया हिययं डहन्तीओ ||१३|| अवमन्नियतणतण्हं, निब्भरसीएण वेविरसरीरं । वंछइ वासापहयं, निलयं कहकह वि मयजूहं ॥१४॥ गिम्हायवसंतत्तं, कहवि हु संपाविऊण नवजलयं । निच्चमवमन्नियछुहं, सेवइ नीरं महिसवंद्रं ॥ १५॥ छज्जंति धरा घेप्पंति इंधणा अंकुरा वि लूहंति । पयरिज्जंति य सासा, घणसमए अह कुटुंबीहिं ॥ १६ ॥ इय घणसमए जणमणहरम्मि मेहाउलम्मि वोली । वियसंतकमलसंडो, संपत्तो तक्खणं सरओ ॥ १७॥ उप्फुल्लकुवलयच्छी, वियसियसयवत्तपहसिरी सहइ । दट्ठूण सरयदइयं, पुहइवहू गरुयराएण ॥१८॥ पंडुरपओहराओ, वियसियसियकासकुसुमवत्थाओ । घणसमयदइयविरहे, जायाओ दिसाओ तणुयाओ ॥१९॥ सियकासकुसुमदसणुच्छलन्तकिरणाए सरयलच्छीए । सरयागमे पहसियं, तह जह जायं नहं विमलं ॥२०॥ इय एरिसम्मि सरए, पियपणइणिवंद्रपरिगओ ललइ । सायरदत्तो पवरम्मि मंदिरे अह समारूढो ॥ २१ ॥ नाणाविहकीलाहिं, तस्स ललन्तस्स उवरिमतलम्मि । सरए जायं सहसा, दसद्धवन्नं जलयवंद्रं ॥२२॥ 2010_02 ४३ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ विद्दुमसिहिकंठपहाकणयजणरयणिनाहसमयाभा । मेहगणा गयणयले, पियाहिं सह तेण ते दिट्ठा ||२३|| दट्ठूण मेहवंद्र, सायरदत्तेण चिंतियं एयं । मेरुतडा इव रम्मा, मेहा कह सोहणे गय ||२४|| साहूहिं जहा भणिया, मेरुतडा पंचवन्निया समए । गणम्मि तहा एए, मेहा छज्जंति पंचविहा ॥ २५ ॥ एवं चिन्तंतस्स य, ते मेहा तक्खणेण पवणहया । जलबुब्बुउ व्व सहसा, निज्जंति तरु व्व अल्लीणा ||२६|| दट्ठूण अभावं से, गयणे मेहाण राहुणा घत्थो । कमलंको वि य नज्जइ चिंताभरदूमिओ जाओ ||२७|| एवं च चितिउं पयत्तो । अवि य- " सरयघणा इव चवला, सव्वे वि य अत्थसयणसंजोया । पेमं सुमिणसमाणं, तडि व्व खणभंगुरं रूवं ॥२८॥ गिरिनइवेयसरिच्छं च जोव्वणं चंचला इमा लच्छी । सुरवइचावसमाणं, चवलं मणुयत्तणं एयं ॥२९॥ किंपागफलसरिच्छा, मुहरसिया कडुविवागिणो भोगा । गोत्तीओ इव दारा, नियला इव पुत्तभंडाई ॥३०॥ बंध व सयणा, चोरा इव होंति तह य मित्ताइं । होंति जमो व नरिंदा, भिच्चा पेय व्व गणपरा ॥३१॥ सल्लं व होइ वरं, न मुएइ भवंतरे वि संकंते । सुणय व्व होंति पिसुणा, पट्ठीमंसंसिणो निच्वं ॥३२॥ देहं रोगावासं, जीयं मरणाउयं सयाकालं । दुलहा माणुसजाई, नरए दुक्खं महाभीमं ॥३३॥ वित्थिन्नो संसारो, दुरुत्तरो होड़ सायरो व्व सया । जिणसासणम्मि बोही, लब्भइ विउलेहिं पुन्नेहिं ॥ ३४॥ विरईरयणं चिंतामणि व्व न हु होइ थोवपुन्नाणं । तीऍ फलं नेव्वाणं, तस्स य सोक्खं अणाबाहं ॥ ३५ ॥ 2010_02 जंबुचरियम् Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो उद्देसो ता एयं नाऊणं, मा मुज्झसु जीव ! रे तुमं मूढ ! । नरयवडियस्स सरणं, होहिंति न इट्ठदइयाओ" ॥३६॥ अन्नं च- "पीमाइभाइभइणीण पुत्तदाराण बंधुमित्ताण । नरए निवडताणं, ताणं नेक्कं पि एयाणं ॥३७॥ गयसंदणतुरयाणं, नरिंदसंघा य तह य सुहडाणं । नरए निवडताणं, ताणं नेक्कं पि एयाणं ॥३८॥ धणकणयरयणमणिमोत्तियाण तह पवरकोसपुहईण । नरए निवडताणं, ताणं नेक्कं पि एयाणं ॥३९॥ वत्थालंकारविभूसणाण तह पहाणपाणभक्खाणं । नरए निवडताणं, ताणं नेक्कं पि एयाणं ॥४०॥ इय नरयकूवनिवडन्तयाण नेक्कं पि होइ एयाणं । ताणं इह सत्ताणं, मोत्तूणाणं जिणिंदाणं" ॥४१॥ ता जीव ! किं न चिन्तसि, जेण इहं अस्थि किं पि अन्नं पि । सरणं जयम्मि पयडं, भणियं च जओ सुसाहूहि ॥४२॥ "हा हा जीव ! अलज्जिर !, निंदाविरमे वि किं न चिंतेसि । अन्नं पि किं पि मरणं, जह होही एत्थ संसारे" ॥४३॥ [ ] अन्नाणंधेण तए, नारयनरतिरिदेवगइगहणे । भमियं पुणो वि मा भम, भवकन्तारे दुरुत्तारे ॥४४॥ मा मूढ ! मोहमइरामयविभलविसमविसविवाएसु । जाणतो वि भवगई, विसयसुहेसुं मणं कुणसु ॥४५॥ पियजणविरहे अप्पियसमागमे किं न तिव्वदुक्खाइं । न य लक्खेसि अलक्खण !, जेण न चिंतेसि अप्पहियं ॥४६॥ किं मायापणइणिसु य, परियणधणनेहलोहनियलेहिं । दढबंधणेहि बंधसि, बंधवबुद्धीए अत्ताणं ॥४७॥ अव्वो अलज्ज ! निच्चेयणो सि जं गब्भवसहिदुक्खा । भमिऊण अप्पमाणं, जं न चरसि निच्छिओ धम्मं ॥४८॥ 2010_02 . Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुचरियम् तो पाविऊण दुलहं, मणुयभवं पाव ! परिहर ममत्तं । दुग्गइगममल्लंघ, सिग्घमविग्घेण लंघेसि ॥४९॥ इय नाऊणमणत्थं, विसयसुहं कुणसु जीव ! जिणवयणं । वेरग्गमब्भुवगओ, होऊण अणुब्भवो धणियं ॥५०॥ तहा- "हा जीव ! जाणसि च्चिय, जह तुरियं जीवियं अइक्कमइ । तह वि तुह खद्धलज्जय !, न होइ तणुओ वि संवेगो ॥५१॥ किं तुज्झ ते लहुं चिय, पम्हट्ठा दुक्खनिब्भरा निरया । जेणेवं नीसंकं, करेसि भोएसु अहिलासं ॥५२॥ जीव ! मणंतं कालं, भुत्तेसुं देवमणुयभोएसु । कंतारबंभणस्स व, पुणो वि तुह भुंजिउं सद्धा ॥५३॥ न य पावसि भोगसुहं, न य धम्मं भोगकंखओ कुणसि । पत्तिय रे निब्बुद्धिय !, दुण्ह वि लोयाण चुक्किहिसि ॥५४॥ पुव्वकयपावकम्मय ! दुल्लहलंभाई सुट्ठ पत्थितो । हा जीव ! मरिहसि तुमं, अप(प्प )त्तमणोरहो चेव ॥५५॥ दद्रुण परसिरीओ, विलयासत्थं तहेव धणकणयं । पत्थंतेण अयाणुय !, अइरा कालेण किं पत्तं ॥५६॥ इय जाणिऊण निउणं, जिणधम्मं जे कुणंति सइ निरया । जम्मंतरेसु वि [ हु] ते, दुहस्स नामं पि न सुणिति ॥५७॥ ता जा मच्चुमइंदो, जंतुगइंदाण दप्पनिद्दलणो । निवडइ न मज्झ तुरियं, आयकललन्तजीहालो ॥५८॥ ताव सुरीसरकिन्नरनरिंदमहियाण जिणवरिंदाणं । चलणनिसेवपउणो, करेमि उपगं तवच्चरणं" ॥५९॥ तओ एवं च संसारनिव्वहणचिंताभरेण सिसिरसमागमतुसारावडणनिदड्ढकमलिणीसंडं पिव विच्छायं तस्स मुहकमलं दट्टण भणियं सप्पणयं पियपणइणीहिं-'पिययम ! कीस तुमं मुहुत्तमेत्तेणेव उव्विग्गो इव चित्तेण, पराइत्तो इव देहेण, विसन्नो इव हियएण, विरत्तो इव नयणेहिं, निव्विन्नो इव संपयाए, मुणी इव मूणव्वएणं, चित्तपुत्तलयं पिव निच्चलत्तणेणं, दारिद्दकुडुंब इव चिंतासयसंकुलत्तणेणं, जई इव 2010_02 Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो उद्देसो ४७ मज्झत्थयाए, वीयरागो इव गयरागदोसो, समतिणलेटुकंचणो सव्वजंतुहिओ जओ लक्खिज्जसि त्ति । सव्वहा न पढसि गाहं, न भिंदसि पण्होत्तरं, न जंपसि सललियं, न कुणसि परिहासं, न पियसि पाणं, न समाणेसि त्ति तंबोलं ।' अवि य- जाओ सि कहणु पिययम ! मुहुत्तमेत्तेण विगलियप्पणओ । सीसउ अम्हाणेयं, असीसणिज्जं जइ न होइ ॥६०॥ तओ ईसि वियसंतवयणकमलेण भणियं सायरदत्तेण । अवि य तं नत्थि नूण किंपि वि, जयम्मि जं तुम्ह साहिमो नेय । जं पुण विचिंतियं मे, तं निसुणह एत्थ मुद्धाओ ! ॥६१॥ तओ ताहि भणियं-'महापसाओ, कहसु' त्ति । तओ भणियं सायरदत्तेण । अवि य- जाणामि जइ इमेणं, कहवि हु चवलेण नूण देहेण । जिणदिक्खदिक्खिएणं, कीरइ तुंगं तवच्चरणं ॥६२॥ तओ ताहिं ईसिवियसिय[मुह]पंकयाहिं भणियं । अवि य जावेवं चिंतिज्जइ, पिययम ! ता कीस कीरइ न तुरियं । लोए वि जेण सुव्वइ, 'तुरिया धम्मस्स होइ गई' ॥६३॥ अन्नं च देव !-ववसाउ च्चिय धन्नाण होइ एसो न चेवऽहव्वाणं । ता धीर ! उज्जमिज्जउ, इमेण चवलेण देहेणं ॥६४॥ सम्मइ य इमं पयडं, धीर च्चिर(य) केइ विरइवररयणं । गिण्हंति जेण भणियं, साहूहिं इमं निसामेह ॥६५॥ "पवणाहयजलकल्लोलसच्छहं विहवसंपयं दटुं । धीर च्चिय केइ कुंणंति पच्छा( एत्थ? )पुन्नज्जणं पुरिसा ॥६६॥ [ ] खरपवणविहुयतामरसचंचलं जीवियं कलेऊण । धीर च्चिय सुहविमुहं, करेंति तवसंजमुज्जोयं ॥६७॥ [ ] पवणुद्धयजलहितरंगभंगुरं जोव्वणं पि नाऊणं । न हु धीरयरहिया उच्छहंति तवभरधुरुव्वहणे ॥६८॥ [ ] 2010_02 Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुचरियम् घणविवरंतरखणदिट्ठनविज्जूसमम्मि सयणम्मि । रज्जति न सप्पुरिसा, परलोयकएण जे धीरा ॥६९॥ [ ] कुसकोडिबिंदुसंठियसुचंचलं रूवसंपयं नाउं । धीरा गिण्हंति जए, विरईरयणं अणग्धेयं ॥७०॥ [ ] इय जीवियधणजोव्वणसयणसमागमकयाइं सोक्खाइं । मन्नंति असाराइं, धीर च्चिय संजमाभिमुहा" ॥७१॥ [ ] एक्कं पुण विन्नमिमो, देवं इह एत्थ पायवडियाओ । संसारसायरं भो ! अम्हे वि हु तरिउमिच्छामो ॥७२॥ तओ भणियं सायरदत्तेण जुज्जइ भवियाणेयं, जिणिंदवयणम्मि निच्छियमईण । जरमरणरोगपउरं, संसारमहोयही तरिउं ॥७३।। सव्वेण वि सत्तेणं, संसारत्येण जिणमयं लहिउं । उज्जमिउं इह जुज्जइ, सपच्चवायम्मि जियलोए ।।७४॥ अन्नं च- एयस्स इमं सारं, माणुसजम्मस्स नवर लोयम्मि । काऊण जेण धम्म, साहिज्जइ जेण अपवग्गो ॥७५॥ इमं च अइदुल्लहं माणुसत्तणं । जओ "जह रयणं पब्भटुं, समुद्दमज्झम्मि दुल्लहं होइ । तह पब्भटुं इह माणुसं पि कह कहवि जइ लहइ" ॥७६॥ ता एयं नाऊणं, इमेण चवलेण मणुयजम्मेणं । जिणदिक्खागहणेणं, घेप्पउ परलोयपच्छयणं ॥७७॥ तओ ताहिं भणियमेवमेयं न अन्नहा भवइ त्ति । एवं च चरणकयववसायस्स जिणसिट्ठसाहुकहाकरणुज्जुयस्स पियपणइणीवंद्रमज्झगयस्स, तहाविहगुरुआगमणं पलोयमाणस्स जिणसाहुपूयापणामकरणुज्जयस्स सुहंसुहेण वच्चइ कालो । अन्नया य विहरमाणो समागओ तीए पुंडरिगिणीए नयरीए अभयसागरायरिओ नाम आयरिओ सगच्छपरिवारिउ त्ति । समोसढो य नयरीए बाहिरुज्जाणे । तं च समोसरियं नाऊण _ 2010_02 Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो उद्देस ४९ सपरियणो विनिग्गओ वंदणवत्तियाए वइरदत्तचक्कवट्टी, सायरदत्तकुमारो वयंसयपरिवारिओ सह महिलावंद्रेण । पत्ता य सव्वे गुरुसमीवं । वंदिओ भयवं अणेहिं । धम्मलाहिया गुरुणा, पुच्छिया य सरीरपत्ती । विणयपणयोत्तमंगेहिं 'भयवं ! अज्ज कुसलं तुम्ह चलणदंसणेणं' ति भणमाणा उवविट्ठा गुरुचलणंतिए । पत्थुया भगवया धम्मदेसणा " एत्थ नरनाह ! नवरं, चउगइसंसारसागरे घोरे । धम्मो जइ वरसरणं, जिणभणिओ होइ जंतूणं ॥ ७८ ॥ सो य धम्मो इमेण कम्मे (मे)ण अइदुल्लाहो हवइ । जओ भणियमागमे भगवया"माणुस्सखेत्तजाईकुलरूवारोग्गमाउयं बुद्धी । 11 समणोग्गहसद्धा संजमो य लोगम्मि दुलहाई ॥७९॥ [ उत्त.नि./गा. १५९] किमिकीडकुंथुकीलियअणेयभेएसु तिरियनरएसु । उप्पज्जंति मरंति य, जंतू न य जंति मणुयत्तं ॥८०॥ अह कहवि होइ तंपि हु, नवरं मेच्छेसु पुन्नरहियाणं । धम्मरहियाण जम्मो, तिरियाण व जत्थ अहमरो ॥८१॥ पावइ जइ विहु खेत्तं, निंदियअहमासु तिरियजाई । उप्पज्जइ कयपावो, मरिउं नरए जहिं जाइ ॥८२॥ जाइविसुद्धो वि पुणो, उप्पज्जइ तुच्छपक्कणकुले । अहमाण वि अहमयरो, पावपसत्तो सयाकालं ॥८३॥ पत्ते वि कुले जायइ, अंधो बहिरो य पंगुलो लल्लो । कुंटो मंटो मडहो, धम्मस्स न होइ जह जोग्गो ॥८४॥ रूवकलिओ वि जायइ, रोगावासं पुणो वि अह नवरं । वाहिसयदुक्खतविओ, वीरियहीणो सयाकालं ॥८५॥ आमयरहिओ वि पुणो, जायइ बत्तीसलक्खणो जइ वि । आउक्खएण नवरं, विहडइ बालो कुमारो वा ॥८६॥ उक्किआउयस्स य, नरस्स मिच्छत्तमोहियमइस्स । जइ जंतु वच्छलम्मी, जिणधम्मे जायइ न बुद्धी ॥८७॥ 2010_02 Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . . जंबुचरियम् कम्मोवसमेण जई, नायइ बुद्धी जिणिंदवयणम्मि । धम्माधम्मविहन्नू, होइ गुरू दुल्लहो तह वि ॥८८॥ पत्ते वि पुणो तम्मि वि, साहंते जिणमयं वरं धम्मं । नाणंतरायनिरहओ, धम्मम्मि न उग्गहं कुणइ ॥८९॥ पत्ते वि पुणो धम्मे, दंसणमोहेण मोहिओ नवरं । जाणतो वि न जाणइ, सद्धारहिओ सया होइ ॥१०॥ सद्धा वि जइ वि जायइ, संजमजोएण निच्छिओ होइ । अह कुणइ संजमं जइ, अइरा मोक्खं पि साहेइ ॥११॥ इय पत्तं सव्वं मे, संपइ पावेह संजमं तुब्भे । पावेह जेण अइरा, मोक्खे सोक्खं अणाबाहं" ॥१२॥ इमम्मि भणिये गुरुणा, वइरदत्तरायपमुहेहिं सव्वेहिं पि नरीसरनायरएहिं भणियं'भयवं! एवं इमं न अन्नहा भवइ' त्ति । तओ सायरदत्तकुमारेण चिंतियं-अहो भयवया साहियं दुल्लहत्तणं माणुसजाईए, दुल्लहत्तणं खेत्तजाइकुलरूवारोग्गाउयबुद्धिपभिईणं अंते य संजमस्स, तस्स फलं नेव्वाणं ति, ता करेमि इमं संजमं, एयं तं जं मए परिचिंतियं सव्वं संपत्तं ति-चिंतिऊण विन्नत्तं भगवओ पायवडणुट्ठिएण सायरदत्तकुमारेण-'भयवं ! न कज्जं मह इमिआ भवसायरऽरहट्टघडिसरिसेणं जम्मजरामरणनिरन्तरेण संसारवासेणं ति । ता देसु मे सिवसुहसुहयं सव्वदुल्लहाणमवि दुल्लहं इमं संजमरयणं' ति । इमम्मि य भणिए, भणियं गुरुणा-'अविग्धं देवाणुप्पिया, मा पडिबंधं कुणसु' त्ति । तओ सायरदत्तकुमारेण पायवडणुट्ठिएणं विन्नत्तो जणओ जणणी य । अवि य तम्हायत्तो य अहं, जाण पसाएण पाविओ एसो । नरवर ! जिणवरधम्मो, माणुसजम्मे विबोहो य ॥१३॥ संपइ पावेमि जई, तुम्ह पसाएण संजमं कह वि । ता सहलं मह एयं, जम्मं जाई य गोत्तं च ॥९४॥ इमं च निसामिऊण राइणा वज्जप्पहारदलियउत्तमंगेणेव अच्छिऊण मुहुत्तमेक्कं . चिंताभराउलेणं जंपियं । अवि य अच्छिन्नथोरमुत्ताहलाबलीबाहबिंदुपसरेण । कहव सगग्गरकंठं, अह भणियं नरवरिंदेणं ॥९५।। 2010_02 Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो उद्देसो तुह विरहानलतविया, जइ इह [ते] सफरिय व्व सुसिऊण । न मरइ जणणि रुयंती, ता कुण एवं अविग्घेण ॥१६॥ तओ तेण अवलोइयं जणणीए मुहकमलं । तीए भणियं सगग्गयक्खरं । अवि य तुह विरहासणिजालोलिजलियदेहस्स वच्छ ! कह कहवि । पु(फु)ट्टइ न तक्खणं जइ, हिययं तुह चेव जणयस्स ॥९७।। तओ भणिए सायरदत्तेण जणणि-जणए । अवि य न मरइ कोइ विओए, न य कस्स वि फुट्टए फुडं हिययं । जइ पुण एवं होतं, न को वि लोए जणो हुँतो ॥९८॥ सव्वेहिं सह विओओ, सव्वे वि मरंति जंतुओ णिययं । न य कस्स वि अणुमरणं, दीसइ अह एत्थ लोयम्मि ॥१९॥ अन्नं च- जायंति ते वि सत्तू, हवंति ते चेव बंधवा जंतू । कस्स कए अणुमरणं, कीरइ इह बुद्धिमंतेहिं ॥१००॥ एवं बहुप्पयारं, भणिए कहकह वि तेहिं सो मुक्को । पवयणविहिणा सह पणइणीहिं पव्वाविओ गुरुणा ॥१०१।। गहियकिरियाकलावो, पत्तो य सुओयहिस्स सो पारं । सुविसुद्धचरणकरणो, जाओ अह ओहिनाणी य ॥१०२॥ ठविओ य पुणो गुरुणा, पयम्मि निययम्मि सो महासत्तो । विहरइ गणपरियरिओ, बोहेंतो भवियकुमुयाई ॥१०३।। इओ य सो भवदेवसाहुजीवदेवो भुंजिऊण सोहम्मे कप्पे नियमाउयं ठिइक्खएण चुओ समाणो तत्थेव पुक्खलावइविजए अत्थि वीयसोया नाम महानयरी, जा य सा केरिसा ?, अवि य अच्चुन्नयाई जत्थ जिणभवणाई न उण गुरुपणामाई । दीहरवच्चई पेमई न चेव परिसंगइ खलेहिं ॥१०४॥ कुटिलाई केसटमराई जत्थ जुवईण न उण चरियाई । पीइपसाओ य थिरो, न माणबंधो जहिं अत्थि ॥१०५।। 2010_02 Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ जंबुचरियम् निज्जियपयंडरिवुदंडचंडकोदंडलद्धमाहप्पो । परिभुंजइ तं राया, पउमरहो नाम नामेणं ॥१०६।। वणमालानामेणं, गुणगणमालाए निच्चसन्निहिया । तस्सत्थि अग्गमहिसी, तीए गब्भे समुप्पन्नो ॥१०७।। अह देवी तं दियहं, घेत्तुं लायन्नजलपविट्ठ व्व । सरयम्मि पउमिणी विय, अहिययरं रेहिरा जाया ॥१०८॥ तओ केरिसा य सा जाया ? अवि य दाणपरा सत्ताणं, सुपसाया परियणे गुरुविणीया । अणुकूला साहूणं, अणुकंपपरा य जीवाणं ॥१०९।। तओ एवं च नवण्हं मासाणं अट्ठमाणं च राइंदियाणं पडिपुन्नाणं सुहंसुहेण पसूया देवी सोहणतिहिकरणमुहुत्ते सुकुमालपाणि[पायं] दारयं ति । निवेइयं च राइणो वद्धावियाए । तओ परितोसवसरोमंचकंचुउव्वहणगाढइए वि समोयारिऊण कडयकंठनेउराईए आहरणविसेसे पणामिए तीए । तयणंतरं च समाइ8 वद्धावणयं । समागओ य पुरजणो, हरिसनिब्भरो विलासिणीयणो, णच्चंति विलयाओ, गिज्जंति मंगलाइं, दिज्जंति दाणाई, विखिप्पंति थोरमुत्ताहले, पसाहिज्जति कडयकुंडनिहाए(?), पणामिज्जति मायंगमंडलीओ महासामंताणं, उवणिज्जंति तुरयवंदुरमालाओ सेवयाणं । अवि य उद्दामताललयगीयमणहरं तूरघोसपडिपुन्नं । पहरिसनच्चियविलयं, वद्धावणयं अह य जायं ॥११०॥ एवं च विविहखज्जपेज्जदाणविन्नाणपरियणालावहासतोसनिब्भरस्स राइणो अइक्कंतो सो दियहो । एएण य कमेणं सेसदिणा वि ताव, जाव समागओ बारसमो दिणो । कयं बालगस्स नामं गब्भट्ठिएण सिवं जायं तओ सिवकुमारो त्ति । एवं च कयनामो पंचधावीपरिवुडो बद्धिउं पयत्तो । अवि य जुवईयणलोवणकुमुयसंडनवसरयबालचंदो व्व । संवड्डिउं पयत्तो, कलंकहीणो सह कलाहिं ॥१११।। 2010_02 Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो उद्देसो तओ एवं च संपत्तो सो थोवदियहेहिं जोव्वणं । केरिसो य जाओ ? अवि य वंकत्तणदोसकलंकवज्जिओ जडपसंगपरिहीणो। निच्चं चिय कलपुन्नो, अउव्वचंदो व्व निम्माओ ॥११२।। तओ सो एवं जोव्वणभरं संपत्तो । सह वयंसएहि अभिरममाणो नियपुरवरे अच्छइ सुहंसुहेणं ति । ताव य सयलसुरासुरकिन्नरगंधव्वजणमणाणंदो । पत्तो वसंतसमओ, उग्गिज्जंतो महुयरेहिं ॥११३।। सहयारमंजरीकुसुमरेणुसंचलियसयलदिसियक्का । जणमणनयणाणंदा, वसंतलच्छी समोत्थरिया ॥११४।। तओ किं जायं ? नवकुसुमरेणुमयरंदबहलनीसंदबिंदुसंदोहे । पत्ते वसंतसमए, को न वि मयणग्गिणा कविओ ॥११५।। तओ एवं च पयत्ते वसंतसमए महुमासकीलणनिमित्तं चंदकिरणं नाम उज्जाणं, तत्थ कीलणनिमित्तं विणिग्गओ बहुओ नायरजणो, कीलिउं च पयत्तो नाणाविहकीलाहिं । सो सिवकुमारो वयंसयसत्थपरिगओ [गओ] तमुज्जाणं । तत्थ य अवयत्तयकयलीहरनायवल्लीचंदणलयागुमं(म्म) तरेसु परिभमिउं पयत्तो, वियरंतो य संपत्तो अणेयनायवल्लीलयासंछन्नं एक्कं गुम्मवणगहणं । जाव तस्स बहुमज्झपएसे माहवीलयामंडवपरिगया कणयकेउणो राइणो पियंगुसामाए महादेवीए धूया कणयवई नाम नियवयंसियवंद्रपरिगया कलहंसीण व रायहंसिया, कुमुइणीण व नलिणिया, वणलयाण व कप्पतरुलया, तारयाण व रोहिणी, मंजरीण व पारियायमंजरी, अच्छराण व तिलोत्तिमा, जुवईण व मयरद्धयहिययदइया रेहइ त्ति ।। अवि य- दिट्ठा य जलहरोयरविवरविणिक्खन्तचंदरेह व्व । सहितारयमज्झगया, कवोलकिरणाउला सुयणु ॥११६॥ तओ विसेसओ निज्झाउं पयत्तो जाव मिउसण्हकसिणकुडिलेणं केसकलावणं, अट्ठमीचंदपमाणेणं भालवटेणं, दिव्वालंकारविहूसिएहिं पमाणजुत्तेहिं कन्नएहि, बंधूगकुसुमदलसच्छभेणं अहरएणं, समसियमियंककरसमतेयाए दसणकंतीए, रिउउन्नयाए नासिगाए, मिउकसिणसण्हरोमसंगयाहिं सुरिंदचाववंकाहिं च भमुहाहिं, णीलुप्पलदल 2010_02 Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ जंबुचरियम् सरिसेहिं पेरंततणुयतंवएहिं कसिणएहिं [नयणेहिं], संपुन्नमियंकसरिसेणं वयणकमलेणं, कंबुग्गीवसच्छभाए तिमेहलासंकिए निययचउरंगुलपमाणाए गीवाए, असोयपल्लवसरिसेहिं सुपसत्थरेहालंकिएहिं व करहिं, तिणिसलयासच्छभाहिं सुपइट्ठियाहिं वट्टसुजायकोमलतणुयंताहिं बाहूलयाहिं, आवट्टपीणुन्नयकलहोयकलससमाणेणं निरंतरेणं पओहरजुयलेणं, वित्थिन्नेणं वच्छत्थलेणं, लायन्नारुहणसोवाणभूयतिवलीसणाहेणं तणुयमज्झेणं, सहमिउकसिणरोमाए जहणपेसियाए व्व पओहरभारं, पवद्धणणिवारणगयाए विहूसिया रोमराईए, सयलतेलोक्कलाइन्नाइसयनिम्माणेणं नाहिमंडलेणं, वित्थिन्नएणं नियंबएणं, कयलीगब्भसुकुमालेणं निरंतरेणं च उरुजुयलेणं, पसंतसुकुमालाहिं अकयकुंकुमरायपिंजराहिं जंघाहिं, जलहरद्धत्थमियदिणयरबिंबसन्निभसणाहेहिं कुम्मुन्नएहिं चलणेहिं, रत्तुप्पलसन्निहेहिं पायतलेहिं ति । किं बहुणा ? अंगोवंगपइट्ठियलक्खणपडिपुन्नसुंदरसरीरा।। अंडो(दो)लाइ व हिययं, दिट्ठा नूणं मुणीणं पि ॥११७॥ तओ चिंतिउं पयत्तो । अवि य किं एसा वणलच्छी, किं वा रइ मयणविरहिया होज्जा । जुवईनिम्मवणकए, पडिछंदो होज्ज किं विहिणो ॥११८॥ किं देवलोयभट्ठा, सावेण इमा तिलोत्तमा होज्जा । किं वा भुयणस्स सिरी, किं वा लच्छी वसंतस्स ॥११९।। अहवा जा होउ सा होउ । अहं पुण ताव, अवि य दंसणमेत्तेणं चिय, विद्धो मयबाणतिक्खसल्लेहिं । जाव न वच्चइ जीयं, तावुप्पायं विचिंतेमो ॥१२०॥ ता पुण को एत्थ उवाओ ? अहवा जाणियं । अवि य समुहं चिय गंतूणं, उभयकरालिंगियं इमं काउं । देहं मयणविदढे, विज्झमिमो फंससलिलेणं ॥१२१॥ अहवा न एवं । जओ नियमित्ताणं पुरओ, इमीए सहियाण पायडं तह य । आलिंगणं कुणंतो, कह नाम न लज्जिओ होज्जा ॥१२२॥ 2010_02 Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो उद्देसो ता किं पुण करणीयं ? अहवा जाणियं पुरेऔं च्चिय वच्चेमो, जइ कह वि इमा पलोयए बाला । ता नयणामयसित्तं, मयणविसं निव्विसं होज्ज ॥१२४॥ अहवा न हि न हि एवं । जओ भमुहाचावविणिग्गयलोयणबाणेहिं कह णु परिविद्धं । धरिमो इमीए पुरओ, नियदेहं मयणजज्जरियं ॥१२५॥ ता किं पुण संपयं मए करणीयं ? अहवा हुं नायं घोट्टेमि ताव एयं, नियनयणानालकट्टियं नाउं । एत्थेव ठिओ दूरं, ठियं पि जा निव्वुओ जाओ ॥१२६।। अहवा एयं पि न सुंदरं । जओ जह जह निज्झाइज्जइ, तह तह हिययम्मि विसइ मह मुद्धा । जह जह पविसइ हियए, तह तह अंगं डहइ णंगो ॥१२७॥ ता किं अन्नत्थ वच्चामि ? तं पि न । जओ जा डहइ दंसणे वि हु, अंगोवंगाइ निरवसेसाई । तीएँ विओओ नूणं, सहसा पंचत्तणमुवेइ ॥१२८॥ ता एवं नो सेयं, इमीए नियभावदंसणं कह वि । मम उवरि अणुराओ, किं चावि न विज्जए जेण ॥१२९॥ अणुराओ बालाए, ममोवरिं अत्थि कह व जइ सच्चं । ता सच्चमिणं सेयं, विवरीए किमिह सोसेण ॥१३०॥ भणियं च-"अणुरायनेहभरिए, रत्ते रच्चिज्जइ त्ति रमणीयं । __ अन्नहिए उण हिययं, जं दिज्जइ तं जणो हसइ ॥१३१॥ [ ] जावेत्तियं च इमं चिंतेइ ताव सा सहियणसमेया उज्जाणन्तदंसणमणा महुमासूसवहियहियया तं रायसुयं गुविललयासमन्तरियं अपेच्छंती अन्नं पएसंतरं संकंता । अवि य- अणुरायअप्पियं गिण्हिऊण अह तक्खणं समुच्चमि(लि)या । हिययं नज्जइ बाला, पुणरुत्तं गिण्हणरुएण ॥१३२।। तओ सो तिस्से अदंसणेण सव्वंगोवंगपहारपरद्धो कुसुमकेउणा निययबाणेहिं । न 2010_02 Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ जंबुचरियम् सा का वि अवत्था संपावइ जीए अच्छिउं तीरइ त्ति । लक्खिओ य इमो सयलो भावो तस्स बीयहिययभूएणं पहाकराभिहाणेणं वयंसएणं । चिंतियं च णेण-अइगरुओ वयंसयस्स उव्वेवओ य तीए अदंसणेणं; ता विणोएण चिट्ठावेम्ह । कयाइ तेणेव अन्नं पि किं पि संपज्जिही पियपओयणं वयंसस्स । इइ विचिंतिऊण भणियं(ओ) सिवकुमारो-वयंस ! एत्थ ताव वीणाविणोएणं गमेमो कं पि वेलं ति । तओ तस्सावरोहेण हियहियएणावि पडिवन्नं सिवकुमारेण । तओ निसन्ना सव्वे असोगपायवधवलदलघणसीयलच्छायालंकिए कुट्टिमतलसणाहे सुपसत्थे भूमिभाए, सज्जिया य वीणा, पवत्तो वाइउं । अइकुसलत्तणेण वावडियहियओ न चुक्कए लयाईणं । चिंतियं च पहाकरेणं-अहो कुसलत्तणं कुमारस्स जेणऽन्नगयचित्तो न चुक्कइ ठाणस्स । इओ य तीए वियरमाणाए उज्जाणंतराइं निसुओ अव्वत्तो वीणासद्दो । तओ विसेसओ दिन्नो कन्नो जाव अउव्वो तंतीरवो त्ति । तओ चिंतिउं पवत्ता कस्स पुण एरिसो विन्नाणाइसओ भविस्सइ ? हुँ , पच्छन्नवेसधारी मयरकेऊ कहिं पि एत्थ कलं अणुसीलंतो चिट्ठिस्सइ, जओ न अन्नस्स एवंविहो एत्थ विन्नाणाइसओ त्ति । तओ वीणारवाणुसारेण पयट्टा सहियणसमेया । पत्ता य आसन्नमुद्देसं दिट्ठो य चंदणलयाहरअंतरियाए कुमारो । अवि य ___ अंगोवंगपइट्ठियलक्खणसुपसत्थसुंदरसरीरो । दिट्ठो अणंगमुत्ती, विंधंतो मयणबाणेहिं ॥१३३।। तओ अणाइयाइक्खणा अवलोयणासुहाणंतरमेव दिट्ठा(विद्धा?) कुसुमकेउणा निययबाणेहिं हियए । तओ किं जायं ? अवि य-- गाढपहाराणंतरमुच्छावसनीसहा निमीलच्छी। झाणगया इव एक्कं ठिया मुगुत्तं तु निच्चेट्ठा ॥१३४॥ तओ कह कह वि अन्नाओ सेसवयंसियाहिं संठविओ तीए अप्पा । तओ मणायं सत्थावत्था चिंतिउं पयत्ता । अवि य एसो भगवं होज्जा, सिलीमुहो तत्थ आगओ नूणं । नं सो रइसंजुत्तो, एसो उण विरहिओ तीए ॥१३५॥ 2010_02 Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमी सो ता होज्ज सुरवरिंदो नं सो वि सहस्सलोयणो जेण । एयस्स दोन्नि नयणा, लक्खेमो ते वि अन्नमणा ॥१३६॥ हुं, महुमहणो किं एसो, नं सो वि तमालपत्तसंकासो । एसो वि लच्छिनिलओ, विहडइ कणगप्पओ जेण ॥१३७॥ ता केण पुण होयव्वं इमिणा ? हुं पयवइणा भवियव्वं, न हु न हु सो तिव्ववावडो जेण । उप्पायविहडणेहिं, विहडइ सुन्नत्तणेणेसो ॥१३८॥ तओ एवं च नाणाविहवियप्यंतरे वियप्पमाणीए लक्खिओ भावो बीयहिययभूयाए मयणमंजूसाभिहाणाए तीए वयंसियाए; भणियं च - 'ता सहि ! किमेइणा अमाणुसेणं ?' तओ लज्जोणयवयणाए भ ( स ) णियं मंदपयासं महुररवं च भणियं कणगवईए- 'न एस अमाणुओ, जओ विमले कुट्टिमतले निरन्तरं निसन्नो, मेइणीसंबंधं च गया पउमदलकोमलतला इमस्स चलणा, उम्मेसनिमेसजुत्ते य अच्छिवत्ते ।' एत्थंतरम्मि जंपियं सिवकुमारेण । भणियं च कणगवईए- 'दे ! निहुया चिट्ठम्ह, निसुमो एस किं पि समुल्लवइ' ठियाओ य । जाव मग्गिया चित्तफलहियावत्तियाओ य कुमारेण । समप्पिया य से पहाकरेण । तओ तेण कहं कहं पि सेउल्लवेविरकरयलेण [आलिहिया ? ] वसंतलच्छी । तओ पहाकरेण पलोएमाणो य अच्छिउं पयत्तो । दिट्ठा य पहाकरेण सा, जाव पुच्छिओ - ' का एस ?' त्ति । भणियं सिवकुमारेण 'वसंतलच्छी ।' तओ पहाकरेण चिंतियं अक्खित्तं हिययं कुमारस्स तीए कुलबालियाए । तओ घेत्तूण पट्टियं लिहिओ सिवकुमारो इमा य गाहुल्लिया पहाकरेण । अवि य ५७ जुहापहावनिव्ववियतिहुयणो सयलजणमणाणंदो । अवमन्निज्जइ तह वि हु, नलिणीए पेच्छ कह चंदो ॥१३९॥ दिट्टं च इमं सिवकुमारेण । वाइया य गाहुल्लिया । जाणियं च जहनाओ अहमणेणं । तओ भणियं - 'वयंस! को एस तए लिहिओ ?' ईसि पहसियवयणेण भणियमियरेण-‘वसंतो’ । कुमारेण भणियं - ' ता किं पुण एसा गाहुल्लिया'? | भणियं इयरेण - 'कुमार ! जहा उ एसा अणुरत्ते वि वसंते कुसुमाडोयदंसणपरा न उण फलबंध 2010_02 Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुचरियम् पयंसइ । अओ एसा गाहुल्लिय'त्ति । तओ सिवकुमारेण भणियं-'वयंस ! जइ एवं ता जहा कुसुमाडोवो सफलो हवइ तहा अभिउत्तेण होयव्वं । नासो हरो य संपयं सयलो तुज्झ एसो' त्ति । इयरेण भणियं-'वीसत्थो चिट्ठ अवस्स वसंतस्स लच्छीए दंसणं सफलं करेमि । अहवा देवो चेव एत्थ अभिउत्तो'-'भवियव्वेसु घडइ नियमेण अन्नदीवगयं पि पाणियं' । ता एत्थ तुम्हेहि खेओ न कायव्वो त्ति । अन्नं च वच्च तुमं ताव सभवणं । अहं तीए पउत्तिं गवेसामि'त्ति । इमम्मि य भणिए चलिओ कुमारो सह सेसवयंसएहिं । पत्तो य पहाकरो लयाहरेसु गवेसिउं तं रायदुहियं । निसुयं च इमं सव्वं कणगवई-मयणमंजूसाहिं लयाहरंतरियाहिं । तओ भणियं कणगवईए- 'हला मयणमंजूसे ! का पुण धन्ना इमेण कुमारेण लिहिया चित्तफलहियाए ?, अहवा न सा धन्ना जा कमलिनि व्व चंदे इमम्मि न अभिरमेइ' । भणियमियरीए-'एवमहं लक्खेमि, जहा तुमं एत्थ महुमासूसवे अभिरममाणा दिट्ठा कहिं पि कुमारेण । ता तुमं चेवेत्थ लिहिय'त्ति । तीए भणियं-'कओ एत्तियाणि अम्ह भायधेयाणि?, तहावि जाव एयाओ सेसवयंसियाओ महुमासूसवआखित्तमाणसाओ अन्नत्थ चिटुंति ताव तुमं गंतूण तीए नलिणीए व्व नियरूयमयणमरट्टियाए विवरीयइत्थियाए गवेसणत्थवलियं कुमारवयंसयं पहाकरं निरूविऊण, तीए धन्नाए कुमारलिहियविलयाए उहं(दं)तं च लहिऊण सिग्घमागच्छसु त्ति । ममं पुण परायत्ता देहजट्ठी, थरहरइ हिययं, वेवन्ति ऊरुयाणि, उक्कंपणपरं नियंबयडं, परायत्ता य गमणया, अहिओ उवरिहुत्तो सीसो । अवि य अइ दहइ चंदणरसो, हारो पज्जलइ अनिलउण्हाइ(ए) । दीवेइ कामजलणो, धूमाइ कुसुमरउक्केरो ॥१४०।। ता सव्वहा न समत्था अहं गंतुं, इमं च निसामिऊण पयट्ठा तुरियपयनिक्खेवं मयणमंजूसिया । समागया य थोववेलाए, पहट्ठवयणपंकया । वयणवियारेण य लक्खियं कणगवई[ए] जहा लद्धा तीए धन्नाए जुवईए भविस्सइ पउत्ती इमीए । भणियं च तीए-'पियवयंसिए ! परिच(च्च)य विसायं, अंगीकरेसु पमोयं, संपत्तं ते समीहियं सव्वं तं तहा, जहा मए भणियमासि' त्ति । इयरीए भणियं-'सच्चं सव्वं ?' तीए भणियं-'आमं'। कणगवईए भणियं-'कहं चिय ?' तीए भणियं-'गया अहमिओ ठाणाओ, दिट्ठो य सो मए, परियाणिया य अहं तेण तहा 'तीए 2010_02 Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो उद्देसो कुमारहिययावहारिणीए एसा वयंसिय' त्ति । तओ समागयवयणेणमाणंदिया अहं तेण । भणिया य-'सुंदर ! उवविससु' त्ति । उवविट्ठा य अहं । पवत्तो आलावसंलावो ताव जाव तेण भणियं-'कहसु, किं पुण ते निययचलणफंसेण एत्तियं दूरं पवित्तीकया वसुह ?' त्ति । तओ मए चिंतियं-'सोहणं जायं, पायसे चेव घयं पलोट्टं' ति, जमम्ह मणट्ठियं इमिणा तं चेव निम्मवियं, ता साहेमि एयस्स निरवसेसं पयोयणं । साहियं च सव्वं दंसणभयणवियाराइ य ताव जाव पियवयंसियाए अहं पेसिया कुमारपउत्तिनिमित्तं तुह सयासे त्ति । अन्नं च कन्नगा एसा दव्वओ, भावओ उण अज्ज ते वयंसओ णयणेहिं परिणीउ त्ति । तओ विहसिऊण भणियं पभाकरेण-'धन्ना सा जीए कुमारो वरो त्ति, किंतु तु(त)ह उज्जमसु जहा दव्वओ परिणेइ'त्ति । साहियं च तेण सव्वंजहा कुमारेण दिट्ठा तुह वयंसिया, जहा जायअहिलासो, जह इ अहं एत्थडिओ पउत्तिनिमित्तं तुह वयंसियाए त्ति । समप्पिया य मम सा तेण चित्तफलहिया, जीए कुमारेण लिहिया सविलया सा विलया । इई भणिऊण समप्पिया मयणमंजूसाए, कणगवईए वत्थब्भंतरं गोविया ‘एसा सा चित्तफलहिय' त्ति भणिऊण । तओ तं आलेक्खलिहियं कुमारं अप्पाणं च चित्तफलहियाए दट्ठण कणगवई लज्जिया इव भीया इव कंपिया इव विलक्खा इव जीविया इव सव्वहा अणाचिक्खणीयं किं पि अवत्थंतरं पाव(वि)य त्ति । तओ हरिसवसुप्फुल्ललोयणाए लज्जावणयवयणकमलाए भणियं कणगवईए-'पियसहि ! सोहणं तए उवलक्खियं जहा-कुमारेण दिट्ठा तुमं वसंतूसवे अभिरममाणी तुमं चेव विलिहिय त्ति । पेच्छसु दोण्ह वि अइसोहणो संजोओ। अह वा जत्थ तुमं अभिउत्ता तत्थ सव्वं चेय सोहणं भवइ' त्ति भणिऊण सयं चेव आइटुं कडयकमढयकंठाइयं सयलं आहरणमविसेसं मयणमंजूसाए त्ति । तओ भणियं मयणमंजूसाए-'पियसहि ! तओ सो मए भणिओ-कहं पुण कुमारो पियसहीए दव्वओ परिणेयव्वो ?' तेण भणियं-“एयं ताव एत्थ पत्तयालं, कहेह तुमं पियसहीए जहा जाओ तुम्हाणं दोण्ह वि भावओ संजोगो । अभिमया य तुमं कुमारस्स। दव्वओ वुण एस एत्थुवाओ, अच्छउ तुह वयंसिया सयलवावाररहिया सयणीयगया । तुमं पुण ओसरेज्जसु तीए सयासाओ । आवस्सयनिमित्तं च जणणीए समागयाए न तीए दुक्खवियारो कहणीओ। किंतु न किंचि न किंचि बाहइ त्ति भाणियव्वं । तओ तुमं समाहुइज्जसि । पुच्छिया य विवित्तमाइसिय सव्वं साहेज्जसु 2010_02 Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुचरियम् त्ति । दंसेज्जसु य तीए इमं पयत्तगोवियं पि चित्तफलहियं । ताहे सा तं पेच्छिय सोहणो अणुराओ संजोयणपरा य भविस्सइ त्ति । ता गच्छ तुमं साहसु नियसहीए इमं सव्वं ति । अहं पि गंतूण तुह पियवयंसियाहिलासनिवेयणसलिलेण कुमार मयणग्गिणा डज्झमाणं निव्ववेमि" त्ति भणिऊण सो गओ । अहं पि एत्थ समागया। संपयं तुमं पमाणं' ति । तओ कणगवईए भणियं-'जइ एवं ता समाइससु सहीओ जहा भवणं वच्चामो' त्ति । समाइट्ठाओ य तीए । तओ सहीयणसमेया समागया निययमंदिरम्मि । 'मम सीसं बाहइ' त्ति भणिऊण विसज्जियाओ वयंसियाओ कणगवईए । कय च तं सव्वं तहा जहा समाइटुं पहाकरेण । इओ य तेण साहियं सव्वं सिवकुमारस्स ताव जाव समप्पिया चित्तफलहिया मया तीए सहीए त्ति । इमो इमो य समाइट्टो उवाओ दव्वओ परिणयणनिमित्तं ति । तओ हसिओ कुमारो, समप्पियं देहच्छित्तं कुमारेण तस्स त्ति । तं च हियए उव्वहमाणो अच्छिउं पयत्तो कुमारो । इओ य जाणियं कणगवईए जणणीए जहा अपडुसरीरावत्था । गया उवरिमतलं, दिवा य तत्थ सयणीयपसुत्ता, पुच्छिया य सरीरपउत्ति, न जंपियमिमीए । तओ परामुसिया करयलेण, न लक्खिओ वियारो । पुणो पुच्छिया य । तओ भणियमवत्तव्वं 'न किंचि' । तओ नीइकुसलाए जणणीए गहिओ भावोमाणसं से दुक्खं, इमीए आरुहइ य जोव्वणं, अंगेसु ता कयाइ तज्जणिओ वियारो हविज्ज त्ति । ता किं इमाए खेइपाए, पुच्छामि से बीयहिययं मयणमंजूसं ति । तओ समाहूया मयणमंजूसा विवित्तमाइसिय पुच्छिया य-'हला ! जाणसि, किं वच्छाए बाहइ ?' त्ति । तीए भणियं-'न सुटु जाणामि, दिट्ठो य मए उज्जाणकीलणगयाए ईइसो वुत्तंतो, साहिओ य सयलो ताव जाव दंसियं तं चित्तफलहियालिहियं जुवलयं' ति । परितुट्ठा य हियएण । उचिए चेवाणुराओ वच्छाए । अहवा माणससरदुल्ललिए, हंसे मोत्तूण सरलगइगमणे । जम्मंतरे वि बंधइ, पयम्मि किं हंसिया रायं ॥१४१॥ ता सोहणो से अणुबंधो, संपाडेमि समीहियं इमीए । तओ समासासिया सा, भणिया य-'वच्छे ! उचिओ सो तुज्झ, ता मा विसायं करेह । अवस्स संपज्जंति मणोरहा वच्छाए' । एवं भणिऊण गया जणणी । तीए वि य कयमावस्सयं । भणिओ पियंगुसामाए कणगकेऊ राया जहा-कणगवईए वरस्स कालो वट्टइ, ता गवेसह 2010_02 Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमी उद्देस ६१ उचियवरं ति । साहिओ य इमो सयलो वृत्तंतो । तओ कणयकेउणा गंतूण महाराइणो पउमरहस्स गेहं दिन्ना कणगवई सिवकुमारस्स । तओ दुण्ह वि गरुयाणुरायहिययाणं अवरोप्परदंसणमणुच्छुयाणं निरंतरपीईनिब्भरमाणु (ण) साणं सुपसत्थे तिहि - करण - लग्गमुहुत्ते वित्तं वीवाहमंगलं ति । तप्पभिई च वीवाहियाओ अन्नाओ वि कुमारेण महासामंताणं धूयाओ । जाओ य केरिसाओ ? अवि य मुहयंदकंतिपसरियपहसियसंपुन्नचंदसोहाओ । पम्हलतारसमुज्जललोलविरायंतनयणाओ ॥ १४२॥ पीणुन्नयकलपीवरथणकलसविरायमाणवलयाओ । वेल्लहलभुयलयाओ, ललणविरायंतमज्झाओ ॥१४३॥ पिहुलनियंबयडट्ठियरसणाकलघोसमुहलियदिसाओ । करिकरसरिसोरग(सरिसोरूरुग?) नेउररायंतचलणाओ ॥१४४॥ ि इमाहिं एरिसरूवकलियाहिं सह पियपणइणीहिं गच्छइ विसयसुहमणुभवंतस्स देवराइणो इव देवलोए सुहंसुहेण वच्चइ कालो त्ति । अह अन्नया कयाई, विहरंतो समणसंघपरियरिओ । सायरदत्तायरिओ, समागओ तत्थ नयरीए ॥१४५॥ आवासिओ अ अह सो, उज्जाणे लच्छिनंदणे भयवं । मासस्स य पारणए, गोयरचरियं अह पविट्ठो ॥ १४६ ॥ विहरंतो संपत्तो, कामसमिद्धस्स सेट्ठिगेहम्मि | दिट्ठो य तेण भयवं, दट्ठूण य चिंतियं एवं ॥१४७॥ धम्मो हं जस्स घरे, समागओ एस कह वि विहरंतो । भयवं तवसुसियतणू, पारणकए मुणिवरिंदो ॥१४८॥ किं तेण सुबहुएण वि, अत्थेण म्ह व्व किवणपत्तेणं । जो न मुणीणं जायइ, उवओगं तवकिलंताणं ॥१४९॥ अत्थावज्जणलुद्धाण जाइ जम्मं पि मूढहिययाणं । उप्पज्जइ न कयाइ वि, बुद्धी अम्हाण दाणम्मि ॥ १५० ॥ 2010_02 Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुचरियम् दाणं बुद्धी पत्तं, तिन्नि वि एयाई होति धन्नाणं । ता सकयत्थो अहयं, तिन्नि वि जायाइं एयाइं ॥१५१॥ भणियं च- "एयाइं ताई चिरचिंतियाइं तिन्नि वि कमेण पत्ताइ । साहूण य आगमणं, संतं च मणप्पसाओ य" ॥१५२॥ [ ] एवं च चिंतिऊणं, हरिसवसुप्फुल्लरोमनिचएणं । पडिलाहिओ महप्पा, विउलेणं भत्तपाणेणं ॥१५३॥ दव्वाइविसुद्धाण य, गाहग-दायाण अह पभावेण । पडिया फुरंतरयणा, वसुहारा तस्स गेहम्मि ॥१५४॥ सुरही पवणो मेहेहिँ गज्जियं दिव्वकुसुमवरिसणयं । गयणंगणम्मि घुटुं, दाणं दाणं ति देवेहिं ॥१५५॥ अह एयं वुत्तंतं, लोयाओ जाणिउं सिवकुमारो । विम्हियहियओ चलिओ, सायरदत्तस्स गुरुमूले ॥१५६।। गंतूण तस्स मूले, तिउणं च पयाहिणं पकाऊण । भत्तिभरनिब्भरंगो, पण(णि)वइओ पायकमलम्मि ॥१५७|| उवविट्ठो गुरुमूले, गुरुणा वि य सजलजलहररवेण । पारद्धा धम्मकहा, कुमारपमुहाण सव्वेसिं ॥१५८॥ "जीवा पंचपयारा, पन्नत्ता जिणवरेहिं सव्वेहिं । एगिदियमाईया, नेया पंचिंदिया जाव ॥१५९॥ पुढविजलानलमारुयवणस्सई चेव हुंति एगिंदी । पज्जत्तापज्जत्ता बायर-सुहुमाइभेएण ॥१६०॥ किमिकीडगभमराई, कमसो बेइंदियाइणो नेया । पज्जत्ताई तिरिया, सव्वे विगलिंदिया एए ॥१६१॥ पंचिंदियाण भेया, चउरो इह हुंति जिणसमुट्ठिा । नारयतिरियनरामरगईसु पुण सुणह अह कमसो ॥१६२॥ 2010_02 Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमी उद्देस सत्तपयारा नेया, नेरइया नवर एत्थ नरएसु । रयणपाइसु कमसो, बहुबहुदुक्खाउरा नवरं ॥ १६३॥ मूसाईया तिरिया, सव्वे वि हवंति तिरियलोयम्मि | जलथलखहयरभेया, दीवसमुद्देसु णेगविहा ॥१६४॥ मावि बहुपयारा, अड्डाइज्जेसु नवर दीवेसु । के वि अवट्ठियआऊ, अन्ने अणवट्टिणो नेया ॥ १६५ ॥ देवा वि चउवियप्पा, वंतर तह भवणवासिणो हुंति । जोइसिया वेमाणिय, एत्तो निसुणेह जह कमसो ॥ १६६ ॥ भूय-1 - पिसाया जक्खा, य रक्खसा किन्नरा य किंपुरिसा । गंधव्वा य महोरग, अट्ठ अहो वंतरनिकाया ॥१६७॥ असुरा नागा विज्जू, सुवन्न अग्गी य वायु - थणिया य । यही दीव दिसा वि य, दसहा अहो ( हो ) भवणवासीया ॥ १६८॥ चंदा रविणो य गहा, नक्खत्ता तारया मुणेयव्वा । जोइसिया पंचविहा, नायव्वा तिरियलोयम्मि ॥ १६९ ॥ वेमाणिया यदुविहा, कप्पाईया य कप्पजाया य । दुविहा कप्पाईया, वारसहा कप्पसंभूया ॥ १७० ॥ एए पंचपयारा, जीवा अह इंदियाणि आसज्ज । संखेवेण भणिया, अन्नहु( ह) उण हुंति णेगविहा" ॥१७१॥ यत उक्तम्- 'द्विविधाः सुरावराख्या' इत्याद्यार्यात्रयेणेति । एवं गुरुणा भणिए, भणियं पणिवइयउत्तमंगेणं सिवकुमारेणं-' भयवं ! जीवा किं नत्थि केवन्ने ( ? ) ' । तओ गुरुणा भणियं एएसिं वइरित्ता, इंदिय - नोइंदिएहिं परिमुक्का । सिद्धा हवंति मोक्खे, निच्चं चिय सासया नवरं ॥ १७२ ॥ तओ सिवकुमारेण भणियं - भयवं ! किं जे पंचपयारा भणिया तुम्हेहिं तत्थ ते जंति ? । किं वा ते तत्थेव [य] उववन्नाऽणाइकालेण ? || १७३ || ६३ 2010_02 Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ जंबुचरियम् तओ गुरुणा भणियं जे ते पंचपयारा, सिट्ठा तुह कुमर ! आसि मे पुव्वं । ते मणुयगईपत्ता, केविह वच्चंति कयपुन्ना ॥१७४॥ तओ सिवकुमारेण भणियं-अवि य कह ते वच्चंति तहिं, भणियं गुरुणा वि चरण-करणेहिं । सिवकुमारेणं भणियं-भयवं ! ता कहसु ताणेवं ॥१७५।। तओ गुरुणा भणियं-'सुणसु कुमार ! चरणकरणाणि जाइं मोक्खगमणकारणाणि भणियाणि जयगुरूहि जिणयंदेहिं' "वयसमणधम्मसंजमवेयावच्चं च बंभगुत्तीओ। नाणाइतियं तव कोहनिग्गहो इइ चरणभेयं" ॥१७६॥[सं.प्र./गा.७४० ] "पिंडविसोही समिई, भावण पडिमा य इंदियनिरोहो । पडिलेहण गुत्तीओ, अभिग्गहा चेव करणं तु" ॥१७७॥ [सं.प्र./गा.७४१ ] एएसिं पुण गाहाणं इमो अवयवभावत्थो । तत्थ ताव 'वयं' "पाणाइवायविरमण, मण-वइ-काएहिं पढमवयमेयं । इंदिय-बल ऊसासा, आउं च इमे य ते पाणा ॥१७८॥ अलियस्स य जा विरई, मण-वइ-काएहिं अह भवे वीयं । अलियं असच्चवयणं, सव्वं चिय सत्तपीडयरं ॥१७९॥ आ वि]दिन्नस्स य विरई, मण-वय-काएहि तइयवयमेयं । अवि]दिन्नम[ णु णुन्ना(ना)यं, तु सामिणा जं भवे दव्वं ॥१८०॥ एवं मेहुणविरई, मण-वइ-काएहिं वयमिह चउत्थं । मेहुणबंभच(च्च )रियं, इत्थीउवसेवणं तं तु ॥१८१॥ एवं परिग्गहस्स य, विरई मण-वयण-कायजोएहिं । अजोगदव्वच(च्च )रणं, मुच्छाओगे य सा एसा ॥१८२॥ वयमिह भन्नइ नियमो, पंचविहं तं पि वणियं एत्थ । मूलपभेएणेवं, अणेगहा होइ वित्थरओ ॥१८३॥ 2010_02 Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो उद्देसो संपयं 'समणधम्मो' खंती गुत्ती (?) य मद्दवज्जव, मुत्ती तवसंजमे तहा । सच्चं सोयं आकिंचणं च बंभं च जइधम्मो ॥१८४॥ [ नव./गा.२३] पंचासवाणि(ण) विरई, पंचिंदियनिग्गहो कसायजओ । दंडतिगस्स य विरई, अह एसो संजमो भणिओ ॥१८५॥[प्र.सा.गा.५५५] पंचासवाण विरई, आसवदाराइं जेहिं आसवइ । कम्मं अट्ठपयारं, पाणाईवाय........माईणि ॥१८६॥ पंचण्हमिंदियाणमिह सद्दरसरूयगंधफासेसु । विसएसु पवत्ताणं, निरंभणा निग्गहो भणिओ ॥१८७॥ कोहस्स य माणस्स य, माया-लोभस्स भेयभिन्नस्स । सम्मं विफलीकरणं, एसो विजओ कसायाणं ॥१८८॥ मण-वाया-काएहिं, परस्स पीडा उ अह इमे दंडा । एएसिं जमकरणं, विरई एसा उ दंडाणं ॥१८९॥ जं संजमिओ अप्पा, एएहिं कीरइ सयाकालं । तेणेस संजमो इह, अप्पागुत्तत्तणं सो य ॥१९०॥ आयरियाईणं जं, कीड आहारपाणमाईयं । अक्खूणं अह एयं, वेयावच्चं जिणाभिहियं ॥१९१॥ बंभस्स य गुत्तीओ, नव हुँति इमाओ ताओ निसुणेह । इत्थिपसुपंडरहिया, वसही पढमा इमा गुत्ती ॥१९२॥ नेवच्छरूवउल्लावत्थी( त्थि )कहपवज्जणं भवे बीया । थीआसणपरिहरणं, जाव मुहुत्तं भवे तइया ॥१९३॥ इत्थीथणनयणाइएसु , दिट्ठी न य बंधए अह चउत्थी । पंचमिया कुटुंतरमेहुणसंसत्तपरिहरणं ॥१९४॥ जं पुट्वि अभिरमियं, इत्थीहिं समं न सुमरए छट्ठा । सत्तमिया अइपणियं, विवज्जए जमिह आहारं ॥१९५॥ 2010_02 Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ जंबुचरियम् अइमायाहारविवज्जणा य अह अट्ठमा इमा भणिया । नवमा य जं विहूसा, न कीरए निच्चकालं पि ॥१९६॥ एवं होइ चरितं, गुत्तीओ तस्स रक्खणवईओ । भणियाओ अह इमाओ, एत्तो नाणाइयं वोच्छं ॥१९७॥ नाणं पंचपयारं, पन्नत्तं जिणवरेहिँ सव्वेहिं । मइ-सुय-ओही-मणपज्जवं च तह केवलं होइ ॥१९८॥ उग्गह ईह अवाओ, य धारणा होइ एत्थ मइनाणं । सुयनाणं अंगाई, जिणपन्नत्तं मुणेयव्वं ॥१९९॥ खयउवसमियं भवपच्चयं च अह होइ ओहिनाणं तु । जणमणचिंतियमुणणं, नाणं मणपज्जवं होई ॥२००॥ जं सव्वदव्वपरिणामभावविन्नत्तिकारणं परमं । तं सासयं अबाहं, केवलनाणं जिणाभिहियं ॥२०१॥ नाणं वत्थुअवगमो, दिट्ठीए जहपवत्तदव्वाणं । अवबोहो इह हियए, जायइ केसिं चि वत्थूणं ॥२०२॥ नाणुवलद्धपयत्थाण होइ वत्था( तत्ता)ण जा रुई परमा । तं दसणं ति भणियं, सम्मत्तं तस्स पज्जाओ ॥२०३॥ चारित्तमणवाणं, विहि-पडिसेहो य तं जिणक्खाओ । पंचपयारं तं पि हु, साहिप्पंतं निसामेह ॥२०४॥ सामाइछेउवट्ठावणं च परिहारसुद्धियं तइयं । तह सुहुमसंपरायं, अहखायं पंचमं चरणं ॥२०५॥ होइ तवो वि य दुविहो, बाहिर अभितरो जिणक्खाओ । अणसणमाई पढमो, प्रच्छित्ताई भवे बीओ ॥२०६॥ सो य-अणसणमूणोयरिया, वित्तीसंखेवणं रसच्चाओ। कायकिलेसो संलीणया य बज्झो तवो होइ ॥२०७॥ 2010_02 Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७ पंचमो उद्देसो पायच्छित्तं विणओ, वेयावच्चं तहेव सज्झाओ । झाणं उस्सग्गो वि य, अभितरओ तवो होइ ॥२०८॥ संतप्पइ अट्ठविहं, इमेण जं पुव्वसज्जियं कम्मं । तेणेस तवो भन्नइ, भणिओ य इमो सुणसु सेसं ॥२०९॥ कोहग्गहणं चेत्थ य, जाण कसायाण सूयगं एयं । निग्गहणं पुण तेसिं, विफलीकरणं सयाकालं ॥२१०॥ कोहो होइ चऊद्धा, माणो माया य तह य लोहो य । अणअप्पच्चक्खाणा, पच्चक्खाणो य संजलणो ॥२११॥ पव्वयपुढवी-रेणू-जलरेहाए समो भवे कोहो । माणो सेल-ट्ठिय-कट्ठ-वेत्तमयथंभसारिच्छो ॥२१२॥ मयसिंगसमा माया, कीलग-मूलावलेह-खप्पडिया । लोहो किमिरायसमो, कद्दम खंजण-हलिद्दो य ॥२१३॥ जावज्जीवं वच्छर-चउमासय-पक्खगामिणो कमसो । नारय-तिरिय-नरामरगइसाहगहेयवो भणिया ॥२१४॥ चारित्तं इह भन्नइ, विहि-पडिसेहो य जो अणुटाणे । सो गाहाए भणिओ, वयमाईए समासेण ॥२१५॥ संखेवेणं भणियं, चरणं करणं तु अह निसामेह । पिंडविसोहाईए, गाहाए संज( जं स )मुद्दिष्टुं ॥२१६॥ पिंडो इह आहारो, तस्स विसोही उ दोसपरिहरणं । बायावीसं ते वि हु, उग्गम-उप्पायणाईया ॥२१७॥ इरियाभासेसणया, निक्खेवायाण तह परिढवणा । सम्ममियं अप्पाणं, जं कीरइ तेण समिई उ ॥२१८॥ जुगमेत्तनिमि( हि)यदिट्ठी, पयं पयं जं विसोहिउं ठवइ । साहू इह उवउत्तो, इरियासमिइ त्ति सा भणिया ॥२१९॥ 2010_02 Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुचरियम् भासासमिई भन्नइ, अणवज्जं कारणे जमिह भणइ । थी-भत्त-राय-जणवयविगहारहिओ य जं साहू ॥२२०॥ बायालीसं एसण भोयणदोसा य पंच परिहइ । जं साहू उवउत्तो, एसणसमिय त्ति सा भणिया ॥२२१॥ मंचइ वा गिण्हइ वा, पडिलेह पमज्जिऊण जं साहू । आयाणभंडमत्तयनिक्खेवणसमित्ति(ति) सा भणिया ॥२२२॥ उच्चाराई जुज्जइ, पडिलेह पमज्जिउं परिट्ठवइ । उच्चारपासवणखेलसिंघणजल्य सिंघजलमल्ल )समिई सा ॥२२३॥ अधुयत्तमसरणत्तं, एगत्तं तह य होइ अन्नत्तं । असुइत्तं च सरीरे, भावेयव्वो य संसारो ॥२२४॥ कम्मासवसंवरनिज्जरं च लोगस्स तह य वित्थारो । धम्मस्स य प्पभावो, दुलहत्तं तह य बोहीए ॥२२५॥ धणधणियबंधुपरियणअवच्चजीयं च जोव्वणं देहं । सव्वं इमं अणिच्चं, तम्हा मा कुणसु पडिबंधं ॥२२६॥ जम्मजरामरणभवोहवढुए वाहिवेयणापत्थे । नत्थि सरणं जयम्मि वि, मोत्तूणं नवर जिणवयणं ॥२२७॥ एगो छिंदणभिंदणजम्मणमरणाइं लहइ दुक्खाई । गइओ य भवावत्ते, तम्हाऽप्पहियम्मि वट्टेज्जा ॥२२८॥ अन्नो हं सयणाओ, देहाओ विहवपरियणाओ य । एवं विभावयतो, लंघसि संसारकंतारं ॥२२९॥ असुई देहुप्पत्ती, असुई देहो वि देहलग्गं च । असुइम्मि अओ देहे, मा पडिबंधं करेज्जासु ॥२३०॥ संसरमाणो जीवो, मोहंधो भमइ एत्थ संसारे । पावइ किमिकीडत्तं, तम्हा मा रज्जसु इमम्मि ॥२३१॥ 2010_02 Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो उद्देसो रागद्दोसपरत्तो, आसवदारेहिं कम्ममासवइ । जीवो भवकंतारे, तम्हा तं निग्गहं कुणह ॥२३२॥ सुसमाहियअप्पाणो, आसवदाराई तह निरंभेउं । संवरजुत्तो अप्पा, ठावेयव्वो सयाकालं ॥२३३॥ निज्जरणं कम्माणं, पुबुप( प्प)न्नाण संजम-तवेहिं । कायव्वं जइ इच्छसि, विउलाई सिद्धिसोक्खाइं ॥२३४॥ उड्डमहतिरियलोए, सव्वत्थ वि अत्थि जम्ममरणाइं । एवं विचिन्तयंतो, भववेरग्गम्मि वडेज्जा ॥२३५॥ एसो जगजीवहिओ, धम्मो जिणयंदभासिओ विमलो । धन्ना जयम्मि सत्ता, भावेज्जा जे इमं पत्ता ॥२३६॥ भवसायरम्मि अइ दुत्तरम्मि मिच्छत्तमोहपउरम्मि । सायरनट्ठो चिंतामणि व्व इह दुल्लहा बोही ॥२३७॥ भावेड़ अणिच्चाई, अप्पाणं वा वि चरण-करणेहिं । ई भावणाउ अहवा वयवइकप्पा उ पणुवीसं ॥२३८॥ भिक्खुपडिमाउ बारस, साहिप्पंताउ ताउ निसुणेह । मासाई सत्तंता, सत्तेयाओ वियाणाहि ॥२३९॥ सेसाओ सत्त दिणा, पडिमाओ तिन्नि हुंति अह कमसो । तह होइ अहोराई, पडिमा तह एक्कराईया ॥२४०॥ भणियं च- "मासाई सत्तंता, पढमा बिति [या य] सत्त राइदिणा । अहवा इ एगराई, भिक्खूपडिमाण बारसगं" ॥२४१॥ [सं.प्र./गा.७४२] पंचण्हमिंदियाणमिह सद्दरसरूवगंधफासेसु । विसएसु पवन्नाणं, निरंभणा इंदियनिरोहो ॥२४२॥ पडिलेहणा वि भन्नइ, ट्ठिीए पलोयणं जमुवगरणे । त(द)?ण तत्थ जंतू, पमजणा तस्स अवणयणं ॥२४३॥ 2010_02 Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० जंबुचरियम् मणवययकाएहिं, गुत्तत्तं जमिह हुंति गुत्तीओ । जिणयंदभासियाओ, एयाओ कुमर ! जाणाहि ॥२४४॥ नाणाविहा य समए, अभिग्गहा जिणवरेहिं पन्नत्ता । भेसज्जवत्थवीसामणाइया साहुविसयम्मि ॥२४५॥ करणं भन्नइ किरिया, सा भणिया पिंडमाइगाहाए । चरण-करणेण एसो, संखेवत्थो मए भणिओ ॥२४६॥ एयाइं ताई दोन्नि वि, कुमार ! भणियाइं चरण करणाई । मोक्खस्स साहणाई, कहियाइं तुज्झमेयाई" ॥२४७॥ तओ एयं च सोऊणं सव्वेहिं सिवकुमारपमुहेहिं भणियं नायरेहि-'अहो भयवया साहिया एगिदियाइणो जीवा, सिट्ठा य बहुदुक्खा नरएसु नारया, नाणापयारा कहिया तिरिया, उववि(दि)ट्ठा बहुविहा मणुया, अणेयभेया पयंसिया देवा, सासयसोक्खो मोक्खो तस्स य चरण-करणाणि पसाहणाणि पसाहियाणि' त्ति । तओ एवं च कहंतरं जाणिऊण भणियं सिवकुमारेण-'भयवं ! चिरकालविउत्तसहोयरं पिव दट्टण तुमं पवटुंतनेहामएण सिंचमाणं पिव मज्झ हिययं अउव्वं सुहमणुहवइ त्ति, अवियण्हो य तुम्ह दंसणस्स । ता कहसु किं पुण एत्थ कारणं ?' तओ भयवया ओहिनाणेण आभोइऊण भणियं-'कुमार ! अत्थि एत्थ कारणं । जओ, इओ य तइयभवे जंबुद्दीवे भारहे वासे मगहाजणवए सुगामे गामे तुमं मे भाया कणिट्ठो आसि पाणेहिं पि पिय[य]रो । सव्वं च सिटुं जहा पव्वाविओ ताव जाव देवलोयाओ चविऊण एत्थ दो वि उववन्ना । ता कुमार ! एएण कारणेण तुज्झ ममोवरि पीई, मम उण वीयरागाए(गयाए) न तह' त्ति । इमं च निसामिऊण सिवकुमारस्स जायं जाईसरणं, आहोइओ पुव्वभवो, भणियं च णेण-'भयवं ! जहा तुब्भे आणवेह तहा इमं सव्वं न अन्नहा । अ(आ)होइयं मए जाइसरणेणं' ति । अन्नं च केवलपईवपयडिव(य)परमत्थासेसभुयणभावाणं । रोयइ जिणाण वयणं, मज्झं जगजीवबंधूणं ॥२४८॥ ता भयवं !-नारयतिरियनरामरभवसयपरिभमणखेयखिन्नो हं। अम्मापियरं आपुच्छिऊण गिण्हामि पव्वज्जं ॥२४९॥ 2010_02 Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो उद्देसो ७१ तओ भणियं चोद्दसपुव्विणा सायरदत्तगुरुणा-'अविग्धं देवाणुप्पिया मा पडिबंधं कुणसु' त्ति । तओ वंदिऊण गुरुं पविट्ठो नयरिं सिवकुमारो । भणिया य तेण जणणिजणया जहा-'निसामिओ मए अज्ज वइरदत्तचक्कवट्टिणो पुत्तस्स सायरदत्तगुरुसमीवे जिणयंदपहासिओ धम्मोवएसो । विरत्तो य विडंबणामेत्तसाराणं किंपागफलोवमाणं मुहरसियकडुयविवायाणं संसारदुक्खकारयाणं विसयाणं ति । ता विसज्जेह ममं जेण सायरदत्तगुरुसमीवे संसारभयपणासणं गिण्हामि पव्वज्जारयणं' ति । तओ न विसज्जिओ तेहिं, निरुद्धो य तस्स परिभमणपसरो । सो वि परिचत्तसयवावारो सव्वसावज्जजोगविरओ अभिसंधिऊण मणसा-अहं सायरदत्तगुरुणो सीसो ठिओ मूणव्वएणं, परिचत्तं च सव्वं आवस्सयाइयं करणीयं ति । तओ आयत्ताणि जणणिजणयाणि, सद्दाविओ य पउमरहराइणा दढधम्मो नाम सावगो इब्भपुत्तो तन्नयरनिवासी। भणिओ य राइणा-'वच्छ ! पव्वज्जागहणनिरुद्धणं सिवकुमारेणं मोणं पडिवन्नं, परिचत्ता सव्वे आवस्सयाइया वावारा, बहुसो वि भणिओ न कुणइ आहारगहणं, ता तहा वच्छ ! कुणसु जहा सो परिभुंजइ, जइ परं सावगस्स तुह वयणं न लंघइ' त्ति । तओ भणियं तेण दढधम्माभिहाणेण सावगेण-‘एवं करेमि सव्वं तस्स पयत्तं' ति भणिऊण गओ सिवकुमारस्स समीवं । पविट्ठो य निसीहियं काऊणं, पडिक्कंतो य इरियावहियं पमज्जिऊण 'अणुजाणेह'त्ति भणिउं कयकिइकम्मो अणुजाण (?) सिवकुमारस्स चलणंतिए । तओ इमं दट्टण सिवकुमारेण भणियं'कुमार ! न विरुज्झइ, जओ तुमं सव्वसावज्जजोगविरओ जइकिरियाए वट्टमाणो दीससि, अओ एस मए पउंजिओ, अहं च सावगो, अओ पउंजियव्वो एस सावगेहिं'। कुमारेण भणियं-'ता कहसु किं निमित्तं तुमं समागओ ?' तेण भणियं'कुमार ! किं पुण तुमं आहारं पि भोत्तुं नेच्छसि ?' कुमारेण भणियं-'सुणसु, सोहणं तए पुच्छियं । जओ न विसज्जति ममं अम्मापियरो । पव्वज्जाकएण मया वि परिचत्तो जावज्जीवं पि घरनिवासो, पडिवन्ना य भावओ पव्वज्जा । एवं च ठिए कहमेत्थं भुंजामि ?' त्ति । भणियं च दढधम्मेण सोहणं कयं तए जं भावओ पडिवन्ना पव्वज्जा । किंतु न जुत्तं इमं निराहारत्तणं । जओ "आहारो तणुमूलं, तणू वि धम्मस्स होइ तह मूलं । ___ धम्मो मोक्खसुहस्स य, मूलं भणिओ जिणिंदेहिं" ॥२५०॥ [ ] 2010_02 Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ जंबुचरियम् "आहारविरहियस्स य, होइ सरीरस्स नूण परिवडणं । अणवज्जो आहारो, न निसिद्धो जिणवरिंदेहिं" ॥२५१॥ [ ] जओ सो कप्पइ जईणं पि । ता तुमं पि एत्थ ठिओ चेव अणवज्जाहारेण सरीरसंधारणामेत्तं परिभुंजमाणो रागदोसविरहिओ अविराहओ चेव जिणाणणाए, नेव्वाणफलसाहगो य । ता कुणसु एयं' ति । कुमारेण भणियं-'कुओ मम एयं फासुयमेसणिज्जं संपज्जइ इह ट्ठियस्स ?' भणियं च तेण-'कुमार ! मा विसायं वच्च, अहं साहुकिरियाकुसलो अज्जप्पभिई तुम(म्ह) साहुभूयाणं सीसो अणवज्जेणं भत्तपाणेणं सव्वं जहाजोगं पयत्तं करिस्सं, ता पडिवज्जसु इमं आहारगहणं' ति । कुमारेण भणियं-'सोम ! तुमं तावेत्थ कप्पाकप्पविहिकुसलो, जाणसि जहट्ठियं सव्वं; ता जइ मया अवस्स भोत्तव्वं ता छट्ठभत्तस्स आयंबिलेण पारणगं एसो मम जावज्जीवं पि अभिग्गहविसेसो' । पडिवन्नं च इमं दढधम्मेण, निवेइयं च राइणो जहापडिवन्नं कुमारेण भोयणं । तओ हरिसिओ राया, कयं महाविभूईए वद्धावणयं कुमारस्स य उग्गतवनिरयस्स पइन्नामंदिरमहासिहरसमारूढस्स जहापडिवन्नविहीए पारणयं कुणंतस्स जिणवयणं भावेमाणस्स जीवाजीवासवसंवराइणो पयत्थे दढधम्मोवएसिए पइदिणं निसामेमाणस्स अंतेउरमज्झगयस्स । तओ सो निययजायाहिं उवलोहिऊण पारद्धो विसयनिमित्तं । केरिसाहिं य ताहिअवि य- सविलासहसियजंपियविब्भममयचित्तजणियतोसाहिं । उन्नयपीणनिरंतरथणहरगुरुभारसुढियाहिं ॥२५२॥ कप्पूरपउरकुंकुमकुरंगमयवहलरंजियतणूहि । वेल्लहलसरलकोमलकनयप्पहदेहलइयाहिं ॥२५३|| घोलन्तकन्नकुंडलरयणपहापडय(ल)रंजियदिसाहिं । रसणाकलावनेउरकलरववरहंसिगमणाहिं ॥२५४॥ अणवरयविसज्जियघोलमाणसकडक्खनयणबाणाहिं । बहुसो वि पासपरिसंठियाहिं न वि खोहिओ ताहि ॥२५५॥ इय सो लडहविलासिणिनिब्भरराएण लोहविज्जतो । बारसवासाइं ठिओ, ग[य]णं व मलेण न विल(लि)त्तो ॥२५६।। 2010_02 Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३ पंचमो उद्देसो भणियं च- "सा सामग्गी कत्थ व, कहिं पिता होइ कस्स व नरस्स । दुव्विसहमयणसरपहरधोरणी जा पडिक्खलइ" ॥२५७॥ [ ] भीओ संसाराओ, अप्परिवडिओ य तस्स ठाणस्स । धम्मम्मि निच्छियमई, समतणमणिकंचणो सययं ॥२५८॥ भावेंतो जिणवयणं, अणुगुणमाणो य भावणाजालं । इच्छंतो सिद्धिसुहं, काऊण य अणसणं धीरो ॥२५९॥ देहं चइऊण तओ, मुहुत्तमेत्तेण सो महासत्तो । इंदसमो उववन्नो, कप्पे अह बंभलोयम्मि ॥२६०॥ कप्पतरुसुरहिमंदारकुसुमपरिमलसुगंधपल्लंके । उववज्जिउं विउद्धो, उवविठ्ठो ता इमं सुणइ ॥२६१॥ वीणामउंदमद्दलवप्पीसयवेणुसद्दसंवलियं । देवविलासिणिसहरिसकलमंगलसद्दहलबोलं ॥२६२॥ तओ सो दससागरोवमाउओ सुरवरो चिंतिउं पयत्तो । कह ? किं एसो सुरलोओ, किं वा सुमिणंतरं इमं होज्जा ? । किं वा वि इंदयालं, किं वा अच्चब्भुयं किं पि ॥२६३।। ताव सहस त्ति जायं, वित्थिन्नं तस्स ओहिवरनाणं । नायं च तेण सव्वं, जह उववन्नो तवं काउं ॥२६४।। तो पणमिओ जिणाणं, भणिओ य सुरेहिं हिट्ठवयणेहिं । देव ! निसामसु वयणं, साहिप्पंतं तुमं ताव ॥२६५।। तं विज्जुमालिनामो, उववन्नो इह पहाकरविमाणे । एयाओ देवीओ, चत्तारि वि तुज्झ जायाओ ॥२६६॥ अह सहिओ देवीहिं, मज्जणवावीए सो समोइन्नो । मज्जेऊण जहिच्छं, उवागओ चेइयहरम्मि ॥२६७॥ वंदेउं तत्थ जिणे, सासयरूवे पियाहि सहिएण । रयणमयपीढठइयं, पवाइओ पोत्थयं ताहे ॥२६८॥ 2010_02 Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ जंबुचरियम् काऊण एवमाई, सव्वं जं चेव तत्थे करणीयं । उवभुंजिउमाढत्तो, भोए सो तत्थ पंचविहे ।।२६९।। केरिसाहिं य सह दइयाहिं ?, अवि य पीणुन्नयचक्कलथणहरगुरुभारकि(क्कि)लंतमज्झाहिं । ससहरमऊहसन्निभदसणविरायंतजुण्हाहिं ॥२७०॥ दीहरपम्हलनिम्मलधवलविरायंतनयणजुयलाहिं । अइसुरहिपवरनीसासपरिमलुग्गारवयणाहिं ॥२७१।। पिहुलनियंबयडट्ठियरसणावरपुन्नदसदिसिमुहाहि । गंभीरनाहिकुंडलतिवलिविरायंतमज्झाहिं ॥२७२॥ इय एरिसमणहरकामिणीहिं वड्डन्तगरुयरायाहि । सह भुजंतो भोए, गयं पि कालं न याणाइ ॥२७३।। एएण कमेण तओ, कमेण पत्ताइं दस वि अयराइं । तेणेस अहियतेओ, सेणिय ! इंदस्समो जेण ॥२७४॥ तो नरवरिंद सेणिय !, एसो चविऊण सत्तमदिणम्मि । उसहदत्तस्स होही, धारणिजायाए वरपुत्तो ॥२७५।। एसो चरमसरीरो, तवबलसम्मत्तगुणसयाइन्नो । उप्पन्नकेवलवरो, सिद्धिपुरं पाविही अमलो ॥२७६ अवसप्पिणीइमाए, भरहे वासम्मि केवली चरिमो । एसो होही सेणिय !, तेणेणं छिज्जिही नाणं ॥२७७॥ जंबुद्दीवाहिवई, सोऊण इमं अणाढिओ जक्खो । कयबाहुगरुयसद्दो, अहुट्ठिओ सुरवरो सहसा ॥२७८।। काऊण तत्थ तिवलिं, अहो कुलं मज्झ उत्तमं भणिउं । पयपहरकंपियधरो, सहसा नट्टं समाढत्तो ॥२७९॥ तओ सो केरिसो दीसिउं पयत्तो नच्चमाणो ?, अवि य घोलन्तकन्नकुंडलमरगयमणिकिरणमासलकवोलो। रहसवसभारविगलियमुत्ताहलदिन्नखी(न्नरवि)पयरो ॥२८०॥ 2010_02 Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७५ पंचमो उद्देसो वच्छत्थलपिहुलविरायमाणवरहारधवलियदिसोहो । पहरिसवसवियसियरुइरमाणदिप्पंतमुहकमलो ॥२८१॥ अच्चतरुइरअंगयमणिकिरणाबद्धगयणसुरचावो । ईसिवियसन्तउट्ठउडदसणजुइपयडियमयूहो ॥२८२॥ इय नच्चिउं पयत्तो, तह जह देवा वि विम्हयं नीया । जिणवद्धमाणपुरओ, सहरिसउब्भिन्नरोमंचो ॥२८३॥ किंकरदेवेहि तओ, पारद्धं वाइउं महातूरं । सयलदिसिपूरियरवं, सुरलोयाउज्जमहघोसं ॥२८४॥ काणि पुण तत्थ आतोज्जाणि पवायाइं ?, अवि य भंभामउंदमद्दलझल्लरिवरपवणसंखजयघंटा । कंसालभेरिकाहलडक्कावप्पीसवंसा य ।।२८५॥ कंसियकरडहुडुक्का, तिलिमा वीणा य मुरवदडुरडा । दुंदुहिमाई सव्वे, पवाइया देवआउज्जा ॥२८६॥ एवं च नच्चमाणं, पुणो पुणो नियकुलं पसंसंतं । दट्टण सुरं नरनाहसेणिओ पुच्छइ जिणिदं ॥२८७॥ भयवं ! किमेस जक्खो, नच्चइ नियकुलपसंसणं काउं । भणियं च जिणिदेणं, सेणिय ! एत्थेव आसि पुरे ॥२८८॥ गुत्तमइनाम मित्तो(इब्भो?), तस्स सुया उसभदत्त-जिणयत्ता । जिणयत्तो अइवसणी, सेट्ठो उण उसहदत्तो त्ति ॥२८९॥ पउरजणस्स य पउरं, जिणयत्तो बाहिरो कओ तेण । जूयाईसु पसत्तो, अह अच्छइ जूयटिटाए ॥२९०।। अह अन्नया कयाई, जूएणं कह वि सो रमेमाणो । आयविसंवायम्मी, पहओ मम्मम्मि अन्नेण ॥२९१॥ अह भणिओ सयणेणं, पडिवज्जसु उसहदत्त ता एयं । दारुणवसणावडियं, जसभाई जेण तं होसि ॥२९२॥ 2010_02 Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ जंबुचरियम् भणियं च- "वसणविओओ इयरो वि उज्झिउं नेय तीरइ भडाण । किं पुण सहोयरो वच्छलो य जेट्ठो पियातुल्लो" ॥२९३॥ [ ] अन्नेहिं वि भणियं "सुयणस्स विहलियस्स वि, पुणो वि सुयणेण हो इ] उद्धरणं । पंकपु( प )डियं गइंदं, को कड्डइ वरगयं मोत्तुं" ॥२९४॥ [ ] तेण य गंतूणं सो, भणिओ वच्चम्ह तं घरं तेण । अलमेयावत्थस्स य, घरगमणे तेण पडिभणियं ॥२९५।। अन्नं च- आसन्नीभूयं चिय, मम मरणं नत्थि एत्थ संदेहो । परभवपच्छयणणं, ता परमो बंधवो होही ॥२९६॥ नाउं जहा न जीवइ, दिन्नं अह तस्स अणसणं तेण । मरिऊण एस जाओ, जंबूदीवाहिवो जक्खो ॥२९७॥ मम भाउणो य एसो, पुत्तो किर चरिमकेवली होही । एएण कारणेणं, पणच्चिओ एस जक्खवरो ॥२९८॥ भणियं च सेणिएणं, भयवं ! एयस्स सो पुणो भाया । सायरदत्तायरिओ, कत्थुववन्नो तवं काउं ।।२९९।। अह भगवया वि भणियं, उप्पाडेऊण केवलं नाणं । पडिबोहियभव्वजणो, सिद्धिपुरि सो गओ अमलो ॥३००॥ एयम्मि अवसरम्मी, सव्वे वि समुट्ठिया जिणं नमिउं । भयवं पि तिहुयणगुरू, जिणयंदो विहरिओ वसुहं ॥३०१॥ अह ताओ देवीओ, चत्तारि वि विज्जुमालिपत्तीओ । नमिऊण चलणकमलं, पसन्नचंदस्स पुच्छंति ॥३०२॥ इह जम्मविउत्तीणं, भयवं ! ऽम्हं विज्जुमालिदेवेण । सह संबंधो होही, किं वा वि न अन्नजम्मम्मि ॥३०३॥ केवलिणा वि य भणियं, तुम्हे चविऊण देवलोगाओ । एत्थेव य नयरम्मी, होहिह अह वणियधूयाओ ॥३०४॥ 2010_02 Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमो उद्देसो ७७ तत्थ य इमस्स तुम्हे, जायाओ वरजसस्स होऊण । पडिबोहियाउ तेण य, पव्वइउं तह तवं काउं ॥३०५।। होहिहह सुरवरिंदा गेवेज्जेसुं पुणो वि सव्वाओ । एवं केवलिकहिए, नमिऊण गयाउ नियठाणं ॥३०६।। हवंति जे जत्थ दढव्वया नरा, गुणा वि पालिंति दमे रया पुणो । खवंति ते कम्मरयं सुचिक्कणं, हवंति देवाण महिड्डिया सुरा ॥३०७|| इय जंबुणामचरिए, पयरूवयगाहविरइए विमले । उद्देसो पंचमओ, होइ समत्तो सुणसु सेसं ॥३०८॥ 2010_02 Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ छट्ठो उद्देसओ ॥ जम्मो वि होइ केसि, तिहुयणनेव्ववणकारणसमत्थो । उइयंमि चंदबिंबे, भण कस्स न होइ आणंदो ॥१॥ अविरयपवत्तपेच्छणयसोहियं देवलोयसारिच्छं । निच्चछणपमुइयजणं, रायगिहं अत्थि वरनयरं ॥२॥ जत्थ सरूवो सरलो विन्नाणकलावियक्खणो वसइ । महिलायणो विणीओ सुरसुंदरितुलियमाहप्पो ॥३॥ जत्थ परदारविमुहो परछिद्दपलोयणंमि जच्चंधो । परधणगहणविरत्तो गुणन्नुओ वसइ पुरिसगणो ॥४॥ अवि य- निन्नेहो जइ खलो जि तहिं जासु नेहु पीलेवि फेडिउ । खारत्तणु जइ लूणि पर तं पि तत्थु आयरहो आणिउं ॥५॥ कद्दइल्लु जइ पउमनालु तं पि जेण जलमज्झि वड्ढिउ । लंछणु जइ पर चंदि तहिं सो वि निच्चु जइ तेयझिज्जिउ ॥६॥ अवि य- डहणसीलु जइ तत्थ पर जलणु पवसणपरु जइ पर पवणु । भसइ जइ एक्क सुणहो करकरइ जइ कह व वायसु ॥७॥ अवि य- एक्को च्चिय नवर तहिं दोसो नयरंमि गुणसमिद्धमि । जं विहलिओ न दीसइ, उवयरियइ जस्स सुयणेहिं ॥८॥ खग्गग्गपहररिवुहत्थिमत्थउच्छलियबहलरुहिरोहो । जिणवयणभावियमई नरनाहो सेणिओ तत्थ ॥९॥ 2010_02 Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्ठो उद्देसओ नरनाहस्स बहुमओ दीणाणाहाण वच्छली णिच्चं । जिणवयणामयकुसलो तत्थत्थिब्भो उसहदत्तो ॥१०॥ णिम्मलसीलाहरणा जिणवरवरर (व?)यणकन्नलंकरणा । रूयगुणनिज्जियरई, दइया अह धारिणी तस्स ॥११॥ सा य विउत्ता इत्थीसहावत्तणेण य अवच्चत्थं परिझिज्झिउं पयत्ता । तओ उसहदत्तो नायपरमत्थो तीए विणोयणत्थं वेभारगिरिवरे जिणभवणचेइयवंदणेणं रंमुज्जाणकिलाविणोएण य महया विभूईए पवरजाणवाहणसमारूढो पइदिणं गच्छमाणो तं विणोएइ । अन्नया य वेभारगिरिवरउज्जाणसमीवे दिट्ठो उसहदत्त-धारिणीहिं जसमित्तो नाम सावगो, पुच्छियो य-'कहिं तुमं पत्थिओ ? ।' तेण भणियं- 'इहेव उज्जाणे भगवओ महावीरवद्धमाणसामिणो जिणवरस्स पंचमसीसो भगवं सुहंमसामी गणहरो समोसरिओ। ता तस्स वंदणणिमित्तं पत्थिओ'त्ति । इमं च निसामिऊण उसहदत्तो वि सह धारिणीए चलिओ सुहंमसामिणो वंदणणिमित्तं । गंतूण य वंदिओ भगवं सव्वेहिं । भगवया वि पारद्धा अहिंसाइया धंमएसणा । तस्स विरामे पुच्छिओ भगवं जसमित्तसावगेणं-'भगवं जीसे जंबूए नामेण इमं जंबुद्दीवं पसिद्धं तीसे किं परिणामरूवं सरूवं?' भगवया वि सवित्थरं साहियं जहा, जंबुद्दीववन्नत्तिए । एत्थंतरंमि पुत्तजंमाहिकंखिणीए पुच्छियं धारिणीए-'भगवं ! किं मम पुत्तो होही नव' त्ति ? इमं च निसामिऊण सिद्धपुत्तेण भणियं जसमित्तसावगेण-'अहो धारिणिसाविगे! सावज्जं जाणंता वि न साहंति साहुणो। ता अहं तुम्हाणं जिणोवएसेण साहेमो । जहा य तुमे पुच्छियं तहा अवस्सं ते पुत्तो भविस्सइ । जओ अरिहंत-सिद्ध-आयरिय-उवज्झायसाहु-चक्कवट्टि-बलदेव-वासुदेवनामुक्कित्तणाणंतरं, तहा जंबु- महासमुद्द-पव्वयजिणभवणादिपसत्थनामाणंतरं च जा कीरइ पसत्था पण्हा, तीए अत्थि संपत्ती । ता साहूणं पुरओ जंबुदुमनामवन्नणनामगहणाणंतरं च पसत्थसउणेहि य तए पुच्छियं तहा अवस्सं भविस्सइ ते पुत्तो । अन्नं च-एस ते पच्चओ, जंबूफलाइ तुम(मं) सुमिणंतरे दट्ठण विउज्झिहिसि' । एयं च निसामिऊण भणियं धारिणीए-'भयवं! जइ इमं एवं, ता अहं जंबूदेवयाए नामेण अट्ठत्तरसयं अंबिलाणं काहामि । तहा सव्वरयणकंचणमयं जंबुदुमं जिणहरं जिणपडिमाओ य कराविस्सं । तओ वंदिऊण भगवंतं पविट्ठाणि नयरं । एवं च हरिसनिब्भराए धारिणीए पुत्तजंमसूयगसुमिणदसणमणाए य गच्छइ कालो' । 2010_02 Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुचरियम् अवि य- सा अन्नया कयाई पच्छिमजामंमि पेच्छए सुमिणे । सीहं सरं समुदं दामं जलणं च जंबुफले ॥१२॥ इमे य दट्टण पाहाइयतूरजयजयासद्देण विउद्धा 'नमो जिणाणं' ति भणिउं विणएण निवेइए उसहदत्तस्स सुमिणे । तेण भणियंअवि य- धवलच्छि ! तुज्झ होही एसो सो कित्तिनिम्मलो पुत्तो । जो जसमित्तेण पुरा सुमिणयसंसूइओ सिट्ठो ॥१३।। इमंमि य भणिए हरिसवसफुल्ललोयणाए पडिवन्नं तीए जहा-'तुमं आणवेसि तह नत्थि संदेहो' त्ति । तओअवि य- चविऊण सो वि देवो कप्पाओ चेव बंभलोगाओ । __तंमि दिणे उववन्नो तीए कुच्छीए कयपुन्नो ॥१४॥ तओ तं च दियहं घेत्तूण पवड्डिउं पवत्तो तीए गब्भो । जाओ य डोहलो जिणसाहुपूयासंपायणपरो । विहवाओ(णु?)रूयं च पूरिओ । तओ संपत्तडोहला नवण्हं मासाणं अद्धट्ठमाणं च राइंदियाणं [वइक्ताणं] सुहंसुहेण सुकुमालपाणिपायं उत्तत्तकणयप्पहं सयललक्खणालंकियं सरयसमयपडिबुद्धनीलुप्पलदललोयणजुयलं जंबुद्दीवाहिवइअणाढियजक्खकयसंनिज्झा पसूया उज्जोइयवासभ[व]णोयरं दिणयरसमप्पहं दारयं ति। निवेइयं च वद्धावगचेडियाए उसहदत्तस्स । तेण य विदिन्नं तीए पारिओसियं महादाणं कयं च वद्धावणयं । समागओ नयरजणवओ । कयाओ य आययणे सुमणभरविसेसपूयाओ । पयत्ताइं च पइभवणेसु वज्जंतेणं परमपमोयतूरेणं, निज्जंतेणं जममंगलगीएणं, नच्चंतीहिं तरुणरामाहिं, पेच्छंतीहिं सहरिसं वुड्डाहिं, वट्टमाणहल्लुफलायाई, समागच्छंति अच्चु(?)हारविच्छड्डाई महापमोयपिसुणयाई वद्धावणयाई ति । इमेणं य कमेण समागओ बारसमो दिणो । तओ जंबुद्दीवाहिवइकयसंनिज्झत्तेण जंबुफलसुमिणसंदंसणेण य कयं दारगस्स णामं जंबुणामो त्ति । पंचधाईपरियरिओ य सुहंसुहेण वड्डिउं पयत्तो । अवि य- जह जह वित्थरइ तणू तह तह पुन्नो कलाकलावेण । सियपक्खंते व ससी संपुन्नो सव्वहा जाओ ॥१५॥ 2010_02 Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्ठो उद्देसओ तओ एवं च विसिटुं पुन्नफलमणुभवंतो पुव्वभवसुकयवासणागुणेण बालभावे वि अबालभावचरिओ सयलसत्थकलासंपत्तिसुंदरं कुमारभावं अणुभवंतो, पुव्वभवब्भासेण य अणुरत्तो सत्थेसु, बहुमन्नइ य गुणसमिद्धे, पुलइज्जए सुहासिएसु, न बहुमन्नइ विसयासत्ते, भावेइ संसारसहावं, वड्डए सद्धाए निययसहावेण य, करुणापहाणहियओ पियजंपिरो य, ईसिविहसियपुव्वप्पहासणसीलो, सुसाहुजणसेवानिरओ, महापयाणपूरियपणइयणहिययपरितोसो य । तओ सो मित्तबंधुपरिगओ नाणाविहकीलाहिं अभिरममाणो अच्छइ । एवं कयाइ, वीणावेणुमणहरगीयायन्नणेण, कयाइ नाणाविहदुमलयाकिण्णपवरउववणविहारेण, कयाइ तित्थयर-सिद्ध-साहु-चक्कवट्टिबलदेव-वासुदेव-चरियायन्नणेण, कयाइ भवणवाविमज्जणकीलाविणोएण, कयाइ सुसाहुपूयोवयारकरणेणं । किं बहुणा मगहपुरसयलकामिणीयणकुवलयदलसामलाहिं नयणमालंजलीहिं अणुपिज्जमाणो, अवहरंतो य मणहररामायणमणाई, वियरंतो य रायगिहपुरवरे गमेइ कालं ति । वरियाओ य जणणिजणएहि तस्स अट्ठ इब्भ-- दुहियाओ। तओ एयंसि अवसरे किं जायं ? अवि य कोहग्गिसमणमेहो माणवराचलपमेयअसणी य । मायामोत्थवराहो लोहग्गहसिद्धवरमंतो ॥१६॥ निज्जियसयलसुरासुरमयरद्धयमाणमूरणपयंडो । भव्वकुमुयाण चंदो मोहतमविणासणेक्करवी ॥१७॥ सिद्धिवहुनेहनिब्भरसुसाहुगणनिच्चनमियपयकमलो । संपत्तो रायगिहं सुहंमसामी गणहरिंदो ॥१८॥ रायगिहतिलयभूए गुणसिलए चेइए समोसरिओ । नीहरिओ नयरजणो वंदणभत्तीए अह गुरुणो ॥१९॥ नवजलहरगंभीरस्सरेण अह वियसिओ सिहंडि व्व । गुरुणो आगमणेणं जंबुकुमारो नियमणेणं ॥२०॥ पवररहसमारूढो नीहरिओ पुरवराओ अह कुमरो । दूराओ मुक्करहो गुरुणो आसन्नमल्लीणो ॥२१॥ 2010_02 Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुचरियम् काउं पयाहिणं तो नमिऊणं पायपंकयं सिरसा । उवविठ्ठो गुरुपुरओ वंदेउं सेससाहू य ॥२२॥ अह भगवया वि [तइया] जलहरगंभीरमहुरसद्देण । भणियं भो भव्वजणा ! मोक्खं पइ उज्जमेयव्वं ॥२३॥ भणियं च- "सइ सासयंमि थामे तस्सोवाए य [प]वरमुणिभणिए । एगंतसाहए सुवुरिसाण जत्तो तहिं जुत्तो" ॥२४॥ [ ] तओ जंबुणामेण भणियं-'भयवं किं पुण तं सासयं थामं, को वा तस्सोवाओ'त्ति । तओ गुरुणा भणियं, सोम ! निसुण "अ[8]विहकम्ममुक्का गंतुं चिटुंति पाणिणो जत्थ । लोयस्स तिलयभूयं सासयठाणं तमुद्दिढं ॥२५॥ तस्सोवाओ संमत्तचरणतहनाणलक्खणो भणिओ । अप्पडिवाइ य ववत्थिओ य गिहि-साहुधम्मेहिं ॥२६॥ पंच य अणुव्वयाइं गुणव्वयाइं च हुंति तिन्नेव । सिक्खावयाइं चउरो गिहिधम्मो तत्थ बारसहा ॥२७॥ खंती य मद्दवज्जव मुत्ती तवसंजमे य तह सच्चं । सोयं आकिंचणं च बंभं तह [ होइ] जइधम्मो ॥२८॥ एयस्स मूलवत्थु दुविहस्स वि होइ नूण संमत्तं । तं पुण कम्मायत्तस्स जंतुणो दुल्लहं होइ ॥२९॥ तं नाम दंसणस्स य आवरणं वेयणीय-मोहणियं । आउ य नाम गोयं तहंतरायं च पयडीओ ॥३०॥ एयस्स पुण निमित्तं मिच्छत्तं अविरई य अन्नाणं । जोगा तहा कसाया हुंति पमाया य नायव्वा ॥३१॥ एगपरिणामउववज्जियस्स एयस्स ठी भवे दुविहा । उक्कोसिया जहन्ना तत्थुक्कोसिं पवक्खामि ॥३२॥ 2010_02 Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८३ छट्ठो उद्देसओ अइअसुहभावजणिया अयराणं तीसकोडकोडीओ। तिव्वठिई पढमाणं तिण्हं तह अंतिमस्सावि ॥३३॥ सयरिं च मोहणीयस्स नामगोत्ताण होति तह वीसं । तेत्तीसं अयराइं परमठिई आउयस्सावि ॥३४॥ एयं अट्ठपयारं कंमं अह बंधई उ एएहिं । जीवो उ कारणेहिं पवंनियं पुव्वसाहूहिं ॥३५॥ पडणीयमंतराइय उवघाए तप्पओस निण्हवणे । आवरणदुगं भूयो बंधइ अच्चासणाए य ॥३६॥ भूयाणुकंप वय-जोगउज्जओ खंतिदाणगरुभत्तो । बंधइ भूओ सायं विवरीए बंधई इयरं ॥३७॥ अरहंत-सिद्ध-चेइय-तव-सुय-गुरु-साहु-संघपडणीओ। बंधइ दंसणमोहं अणंतसंसारिओ जेण ॥३८॥ तिव्वकसाय( या) बहुमोहपरिणओ राग-दोससंजुत्तो । बंधइ चरित्तमोहं दुविहं पि चरित्तगुणघाई ॥३९॥ मिच्छद्दिट्ठि महारंभपरिग्गह-तिव्वलोहनिस्सीलो । निरयाउयं निबंधइ पावमई रोद्दपरिणामो ॥४०॥ उमग्गदेसओ मग्गनासओ गूढहिययमाइलो । सढसीलो य ससल्लो तिरियाउं बंधए जीवो ॥४१॥ पगईय तण( णु)कसाओ दाणरओ सीलसंजमविहूणो । मज्झिमगुणेहिं जुत्तो मणुयाउं बंधए जीवो ॥४२॥ अणुव्व(व)य-महव्वएहिं बालतवाकामनिज्जराए य । देवाउयं निबंधइ संमद्दिट्ठी य जो जीवो ॥४३॥ मण-वयण-कायवंको माइल्लो गारवेहिं पडिबद्धो । असुहं बंधइ नामं तप्पडिवक्खेहिं सुहनामं ॥४४॥ 2010_02 Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४ जंबुचरियम् अरहंताइसुभत्तो सुत्तरुई पयणुमाणगुणपेही । बंधइ उच्चागोयं विवरीए बंधई इयरं ॥४५॥ पाणवहाईहिं रओ जिणपूया मोक्खमग्गविग्घयरो । अज्जेइ अंतरायं न लहइ जेणिच्छियं लाभं ॥४६॥ इय भेयवत्ति( न्नि? )या मे परमठिई कंमबंधगा जे य । संपइ सुणसु जहन्ना एयमणो तं वरकुमार ! ॥४७॥ इयरा बारस तह [ अट्ठ] अट्ठ वेयणिय-नामगोत्ताणं । जहसंखेण मुहुत्ता भिन्नमुहुत्तं तु सेसाणं ॥४८॥ एवं ठी यस्स जया अहापवत्तेण कह वि करणेण । कोडाकोडि मुत्तुं अयराणं नाउखवियाओ ॥४९॥ तीसे वि थेवमेत्ते खविए घणरागदोसपरिणामो । मोहणियकंमजणिओ हवइ य गंठी सुदुब्भेओ ॥५०॥ भणियं च- "गंठि त्ति सुदुब्भेओ कक्खडघणरूढगूढगंठि व्व । जीवस्स कम्मजणिओ घणरागद्दोसपरिणामो" ॥५१॥ [सं.प्र./गा.८६८ ] तं पत्ते य समाणे अत्थेगे भिदई उ जे जीवे । अत्थेगे नो भिंदइ जे भिंदइ से अउव्वेण ॥५२॥ भणियं च-तं च पत्ते य समाणे अत्थि एगे जीवे जे तं भिंदइ । एत्थि एगो जे नो भिंदइ । तत्थ णं जे से भिंदइ, से अपुव्वकरणेण भिंदेइ । तओ अनियट्टीकरणेणं भिन्ने गंठम्मि नो पुरायत्तं । आयपरिणाणरूवं खयउवसमियं लहइ सम्मं ॥५३॥ . तस्समकालं पावइ मइनाणं चेव तह य सुयनाणं । अह तंमि [य] संपत्ते जीवे बहुकम्ममलमुक्के ॥५४॥ आसन्ननियसरूवो होइ [य] पसमाइलिंगसंजुत्तो । मिच्छत्तस्स य विमुहो जिणवयणरुई य सो होइ ॥५५॥ 2010_02 Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्ठो उद्देसओ भणियं च- "संमत्तं उवसममाइएहिं लक्खिज्जई उवाएहिं । आयपरिणामरूवं बज्झेहिं पसत्थलिंगेहिं" ॥५६॥ [ श्रा.प्र./गा.५३] "एत्थ उ परिणामो खलु जीवस्स सुहो उ होइ विन्नेओ। किं मलकलंकमुक्कं कुणगं भुवि झामलं होइ" ॥५७॥[ श्रा.प्र./गा.५४] “पयईय व कंमाणं वियाणिउं वा विवागमसुहं ति । अवरद्धे वि न कुप्पइ उवसमओ सव्वकालं पि" ॥५८॥[श्रा.प्र./गा.५५] "नरविबुहेसरसोक्खं दुक्खं चिय भावओ उ मन्नंतो । संवेगओ न मोक्खं मोत्तूणं किं पि पत्थेइ" ॥५९॥ [ श्रा.प्र./गा.५६] "नारय-तिरिय-नरामरभवेसु निव्वेयओ वसइ दुक्खं । अकयपरलोयमग्गो ममत्तविसवेगरहिओ वि" ॥६०॥ [ श्रा.प्र./गा.५७ ] "दट्टण पाणनिवहं भीमे भवसागरंमि दुक्खत्तं । अविसेसओऽणुकंपं दुहावि सामत्थओ कुणइ" ॥६१॥ [श्रा.प्र./गा.५८ ] "मन्नइ तमेव सच्चं निस्संकं जं जिणेहिं पन्नत्तं । सुहपरिणामो सच्चं कंखाइविसोत्तियारहिओ" ॥६२॥ [श्रा.प्र./गा.५८] एवंविहपरिणामो संमट्टिी जिणेहिं पन्नत्तो । एसो य भवसमुद्दो लंघइ थेवेण कालेण ॥६३॥ तीसे वि य ठीईए खीणे पलिओवमाण पुहत्तेण । सुहपरिणामपगब्भं पडिवज्जइ देसविरइं सो ॥१४॥ सा य-पाणवहालियपरधणथूलाणेयाण विरमणं कुणसु । परदारस्स य विरई परिमाणं वा परिग्ग( ग )हस्स ॥६५॥ परिमाणस्सावडिए पडिवन्नाणुव्वए य से एवं । देसपरिणामजुत्ते अइयारे नो इमे कुणइ ॥६६॥ तं जहा- बंधवहछविच्छेए अइभारे भत्तपाणवोच्छेए । रागेण व दोसेण व न कुणइ एए उ अइयारे ॥६७॥ तहा- सहसा अब्भक्खाणं रहसा य सदारमंतभेयं वा । मोसोवएसकरणं कूडं लेहं च वज्जेइ ॥६८॥ 2010_02 Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुचरियम् तहा- कूडतुल-कूडमाणं तप्पडिरूयं विरुद्धगमणं च । तक्करयाणपओगं तेनाहडयं च वज्जेइ ॥६९॥ तहा- अपरिग्गहिया इत्तर अणंगकीडा उ परविवाहं वा । तिव्वो तहाहिलासो वज्जेई कामभोएसु ॥७०॥ तहा- खेत्तं वत्थु हिरन्नं तहा सुवन्नं धणं धन्नं च । दुपयं चउप्पयं वा कुवियपमाणं न अक्कमई ॥७१॥ एवंमाई.......जे अन्ने संसारहिंडणनिमित्ते । सुहपरिणामो सययं भावेणं ते विवज्जेइ ॥७२॥ तहा- दिसिवयभोगुवभोगे अणत्थदंडे गुणव्वया सिक्खा । सामाइयदेसवगासियं च पोसहऽतिहिविभागो ॥७३॥ उड्डाहतिरिदिसुगुणव्वयस्स गहियस्स नो अइक्कमइ । उड्ढदिसाइपमाणं वुढेि सइ अंतरखं वा ॥७४॥ भोगुवभोगु गुणवयं दुविहं इह जिणवरेहिं पन्नत्तं । भोयणओ कम्मयओ एक्केक्के सुणसु अइयारे ७५॥ सचित्तमीसप्पउलियदुप्पउलियओसही तहा तुच्छा । भोयणओ अइयारा भोगुवभोगंमि नायव्वा ॥७६॥ इंगाली वण साडी भाडी फोडी विवज्जए कंमे । लक्ख रस केस दंते विसविसए तह य वाणिज्जे ॥७७॥ पीलणकंमं निलंछणं च सर-दह-तलायसोसं च । असईपोसं च तहा वज्जे[य] कंमओ यावि ॥७८॥ अज्झवसाणायरिए पमायचरिए य हिंसदाणे य । पावुवएसे य तहा अणटुटुंडे य चउभेए ॥७९॥ कंदप्पं कुक्कुइयं मोहरियं तह य जुत्तअहिगरणं । उवभोगपरीभोगाहियं च डंडंमि अइयारा ॥८॥ 2010_02 Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८७ छटो उद्देसओ सावज्जजोगपरिवज्जणं तु निरवज्जसेवणं तह य । समभावो सामइयं पन्नत्तं जिणवरिंदेहिं ॥८१॥ दुप्पणिहाणं मणमाइयाण अणवट्ठियस्स करणं वा । सइ सामइयाकरणं सामइए हुंति अइयारा ॥८२॥ आणवणं पेसवणं सदं रूवं च पोग्गलक्खेवं । देसावगासियंमी पंचेए वज्जए दोसे ॥८३॥ आहारे सक्कारे बंभे य तहा भवे अवावारे । अह पोसहोववासे चउहा य इमे य अइयारा ॥८४॥ सेज्जुच्चाराईणं पडिलेह-पमज्जणाण अक्करणं । दुक्करणं वा तेसिं संमं च न पालए गहियं ॥८५॥ आयाणुग्गहट्ठाए जईण नायागयं च कप्पं च । कमजुत्तं भत्तीए अतिहिविभागो य जं दाणं ॥८६॥ सच्चित्ते निक्खेवं पिहणं वा वज्जए सचित्तेण । कालाइक्कमदाणं परववएसं च मच्छरियं ॥८७॥ से एवं गहियवए तीसे कंमट्ठिईइ खविऊण । संखेज्जसागराई तम्मि भवे अह व बहुएसु ॥४८॥ सावज्जजोगअहविरइलक्खणं पावई उ जइधम्मं । उवसमसेटिं च पुणो पावइ अह खवगसेढिं पि ॥८९॥ भणियं च- "सम्मत्तंमि उ लद्धे पलियपुहुत्तेण सावओ होइ । चरणोवसमखयाणं सागरसंखं तओ होज्ज" ॥१०॥ [वि.भा.गा.१२२२] "एवं अपरि प्पडि)वडिए संमत्ते देवमणुयजमेसु । अन्नयरसेढिवज्जं एगभवेणं व सव्वाइं" ॥९१॥ [वि.भा.गा.१२२३] अह खवगसेढिअंते केवलवरनाणदंसणं लहिउँ । भवगाहिखवियकंमे विगयमले से लहे सिद्धि ॥१२॥ एत्थंतरंमि गुरुवयणायन्नणजणियसुहपरिणामानलनिद्दड्डवहुकंमिंधणेण भावओ 2010_02 Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुचरियम् पडिवन्नसंमत्तसावगधम्मेण भणियं जंबुणामण-'भयवं ! धंनो हं जेण मए पावमलपक्खालणं रागाइविघायणं पसमाइगुणंकरं भवचारयविमोयणक्खमं सुयं तुम्ह वयणामयपवित्थरं ति । तो आइसंतु गुरवो, जं मए कायव्वं । अहवा समाइ8 चेव भगवया; ता देहि मे ताव गिहिधम्मसारभूए अणुव्वयाइए गुणट्ठाणे, जाव आउच्छिऊण अम्मापियरं भगवया उवइट्ठउवसमसेढिखवगसेढिकेवलवरनाणदंसणसव्वकम्मविगमाणंतरं सिद्धिसुहकारयं च गिण्हामि तुम्हंतिए खमामद्दवज्जवमुत्तितवसंजमसच्चसोयागिचणबंभचेररूवं जइधम्म' ति । गुरुणा भणियं-'किच्चमेयं तएजा(तवा?)रिसाणं भव्वसत्ताणं'ति । विहिपुव्वयं च दिनाणि से अणुव्वयाणि । अणुसासिओ य बहुविहं । तओ वंदिऊण परमभत्तीए य सपरिवारं गुरुं, पयट्टो रहवरसमारूढो नयराभिमुहं । पत्तो य नयरदुवारं । तं च पडिनियत्तगुरुसमीवनरनाहजाणवाहणसमाउलं नायरजणगुरुवंदणत्थपवेसनिग्गमपडिरुद्धपहं च पेच्छिऊण चिंतियं जंबुणामेण जाव पडिवालेमि एत्थ परिवाडिं ताव अइमहंतो मे कालक्खेवो हवइ, ता वच्चामि अन्नेण दुवारेण-त्ति चिंतिऊण अन्नदारे पवत्ताविओ रहवरो सारहिं भणिऊणं ति । सारहिणा वि पवत्तिओ चोइउं तुरंगमे । पत्तो य अभिसेयदुवाणं(रं) च । जाव तं पि परचक्कभएण रिउबलहणणनिमित्तं सिलाजंतपहरणलंबमालाउलं दद्वृण चिंतिउं पयत्तो । अवि य- एयं जइ निवडेज्ज ममोवरिं कह व सीलरहियस्स । अकयपुन्नस्स तो मे दोगइगमणं धुवं होज्जा ॥९३॥ जओ- "अत्थो होइ अणत्थो सयणो वि य परजणो हियं अहियं । ___ मित्तं पि हवइ सत्तू आसन्ने वसणकालंमि" ॥९४॥ [ ] भणियं च- "अन्नह परिचिंतिज्जइ सहरिसकंदुज्जुएण हियएणं । परिणमइ अन्नह च्चिय कज्जारंभो विहिवसेण" ॥९५॥ [ ] तो एवं च परमसंवेगभावियमइस्स से इंदजालसरिसं जीवलोयं मनमाणस्स धम्मज्झाणजलपक्खालियपावलेवस्स समुपन्ना चिंता-अहो णु खलु एवंगयस्स मे नत्थि पओयणं । जओ नरय-तिरिय-नरामरगईमूलं एवंविहं मरणं न सेयाय भवइ । तो ते धन्ना जे तेलोक्कबंधुभूए चिंतामणिकप्पे परमरिसिसव्वन्नुदेसिए धम्मे कयाणुराआ अगारवासाओ अणगारियं दिक्खं पवन्न त्ति । तओ य, पाणवह-मुसावाय-अदत्तादाण 2010_02 Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८९ छट्ठो उद्देसओ मेहुणपरिग्गहविरया बायालीसेसणादोसपरिसुद्धपिंडगाहिणो संजोयणाइपंचदोसरहियकालभोइणो पंचसमिया तिगुत्ता निरइयारवयपरिपालणत्थमेव इरियासमियाइपणुवीसभावणोववेया, अणसणामोणोयरियाइपायच्छित्तविणयबाहिरब्भंतरतवोगुणप्पहाणा मासाइयाइअणेगपडिमाधारिणो विचित्तदव्वाइअभिग्गहरया, अम्हा(ण्हा?) लोयलद्धावलद्धवित्तिणो निप्पडिकंमसरीरिणो समतणमणिलेटुकंचणा; किं बहुणा अट्ठारससीलंगसहस्सधारिणो, उवसमाईयविबुहजणपसंसियसमसुहसमेया, अणेगगामागरनगरपट्टणमडंवदोणमुहसंनिवेससयसंकुलं विहरिऊण वसुहं मिच्छत्तघणपंकयपडिबद्धे य सद्धमकहणदिवागरोदएण पडिबोहिऊण भव्वकमलागरे महातवचरणपरिकंमियसरीरा जिणोवइटेणं मग्गेणं कालमासे कालं काऊण देहं परिच्चयंति त्ति । तो अहं पि इयाणी गंतूण गुरुचलणंतिए गिण्हामि विसिटुं वयविसेसं । आमरणं पि मे सेयाय भविस्सइ त्ति । इमं च चिंतिऊण भणिओ सारही-'भद्द! पडिप्पहं चोएहि तुरंग-मे, जेण गुणसिलए चेइए गंतूण वंदिऊण य गुरुं तओ पसिद्धपहेण पविसामो' त्ति । तेण य तह त्ति पडिवज्जिऊण तहेव समायरियं । पत्तो य गुरुपायमूलं कुमारो । तओ वंदिऊण य विन्नत्तो गुरू । ___ अवि य- धणियमहं निम्विन्नो जंमजरामरण एत्थ संसारे । ता भयवं आमरणं बंभच्चरियं वयं मज्झ ॥१६॥ गुरुणा भणियं गुरुविक्कमेण ते निज्जिओ मयरचिंधो । तिन्नो च्चिय संसारो ता एयं हो अविग्घेण ॥१७॥ तओ एवं गहिय महादुद्धरवओ पुणो पुणो वंदिऊण गुरुणो चलणारविंदजुयलं समारुहिय रहवरं पविट्ठो नयरं । संपत्तो य अत्तणो भवणवारं । ओयरिओ य रहवराओ कयपणामो य अंमापियरं विन्नविउं पयत्तो । अवि य- ताय मम मए धम्मो निसुओ जिणयंदभासिओ विमलो । सयलदुहक्खयगारी हेऊ जो सयलसोक्खाणं ॥९८॥ सुरसिद्धकिंनरोरगपणमियचलणारविंदजुयलस्स । चरिमजिणयंददिक्खिय सुहंमसामिस्स पासंमि ॥९९॥ तेहिं भणियं- तं धन्नो जेण सुओ सुहंमसामिस्स पायमूलंमि । धंमो जिणवरभणिओ सत्ताण हिओ सुगइमूलं ॥१००॥ 2010_02 Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुचरियम् तेण भणियं-जइ एवं ता निसुणह जंमजरामरणरोगसंतत्तो । सिद्धिवहुदसणमणो भीओ हं भवसमुद्दाओ ॥१०१॥ ता मुंचह मे अज्जं जेण य गिण्हामि दुक्खखयजणणि । पव्वज्जं गुरुमूले मूलं जा सिद्धिसोक्खाणं ॥१०२॥ सोऊण इमं सहसा विगलियअणवरयबाहनियरेहिं(नयणेहिं)। जणणि जणऍहि भणियं सगग्गयं नेहनडिएहि ॥१०३॥ जं नाम वच्छ धंमो निसुओ अच्चंतसोहणं एयं । जं पुण एयं अन्नं तं कालो तुज्झ को एस ॥१०४॥ जिणसासणंमि भत्ता अच्चंतं आसि पुव्वपुरिसा वि । सहसा तेहिं वि न कयं निक्खमणं तुम्ह गोत्तंमि ॥१०५॥ अन्नं च- तुह मुहयंदपयंसणविरहानलजालगाढदड्डाणं । कुमुयाण व कत्थ पुणो अम्हाणं निव्वुई होज्जा ॥१०६।। अन्नं च- अम्हाण वि बहुकालं धम्मं जिणभासियं सुणन्ताण । न य एरिसो अउव्वो एक्कपए निच्छओ जाओ ॥१०७॥ तओ- ईसिवियसंतवयणारविंदपसरंतदसणकिरणेण । अह भणियं कुमरेणं एयं पि न कारणं एत्थ ॥१०८।। जओ- कालेणमणंतेणं तत्तं न मुणंति के वि मूढमणा ।। अन्ने उण थेवेण वि पारं गच्छंति कज्जस्स ॥१०९॥ एत्थ य सुण अक्खाणं इमस्स अत्थस्स सूयगं एक्कं । तेहिं वि भणियं साहसु तो भणियं जंबुनामेण ॥छ। ॥११०॥ आसि वसंतपु[ र व]रे लायन्नवइ त्ति नाम वरगणिया । रूयवई गुणजुत्ता महाधणा तंमि कालंमि ॥१११॥ तीए समं रायसुया पुत्ता इब्भाण अ(इ?)त्थि प(व)रभोगं । काऊण जंति बहवे नाउं गमणूसुए सावि ॥११२॥ 2010_02 Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्ठो उद्देसओ भणइ [य] ते जइ तुब्भे काउं मं निग्गुणं परिच्चयह । ता मम सुमरणहेउं घेप्पउ मह संतियं किं पि ॥११३।। उवरोहेण य ते वि हु गिण्हंति य कडयकुंडलाईयं । आहरणं अह अन्नो समागओ तत्थ इब्भसुओ ॥११४॥ सो रयणविहीकुसलो दिटुं अह तेण तत्थ कणयमयं । पंचमहारयणजुयं एक्कं वरपायपीढं ति ॥११५॥ तं पुण अणायरेणं दीसंतं तत्थ ताहिं गणियाहिं । खिप्पइ इओ तह च्चिय अनायरमत्थसाराहिं ॥११६॥ अह कं पि सो वि कालं तीए सह अच्छिऊण य पयट्रो । देसाहिमुहं तीए सो भणिओ सुहय ! निसुणेसु ॥११७॥ जइ तं चलिओ अवस्सं ता गिण्हसु मज्झ संतियं किंचि । सुमरणहेउ महग्धं आहरणं किं पि जं दिव्वं ॥११८॥ तेण य भणियं धवलच्छि ! निच्छओ तुज्झ एत्थ अइगरुओ । ता एयं पावीढं तुह पयपरिफंसियं गहियं ।।११९॥ तीए भणियं अन्नं गिण्हाहि महग्घमुल्लयं किंचि । किं ते इमेण होही गहिएणं अप्पमुल्लेणं ॥१२०॥ एएण वि पज्जत्तं वरतणु तुह पायर्फसललिएण । अन्नेण मह न कज्जं इह भणियं इब्भपुत्तेण ॥१२१॥ दिन्नं अह तं तीए तेण [य] परिचिंतियं अहो मुद्धा । ते रायसुया सव्वे जाणंति न रयणपरमत्थं ॥१२२।। एयं महग्घमुल्लं परिहरिउं जे य लिंति निसा(स्सा)रे । अन्नाणमोहियमणा आहरणे कुंडलाईए ॥१२३॥ अह सो तं घेत्तूणं पत्तो निययंमि चेव देसंमि । विणिवट्टिऊण रयणे सुहभाई तत्थ संवुत्तो ॥१२४॥ 2010_02 Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुचरियम् कहिओ दिटुंतो भे एयस्स य उवणओ निसामेह । जह गणिया तह जाणसु धम्मसुई जिणसमुद्दिट्ठा ॥१२५।। जह इब्भरायपुत्ता तह जीवा विमलनाणपरिहीणा । इच्छंति ते सुहाइं सुरमणुयभवेसु विउलाई ॥१२६।। जह आहरणा तह देससव्वविरईतवोविहाणाई । जह होइ इब्भपुत्तो भविओ तह मोक्खसुहकंखी ॥१२७॥ जह रयणपरिक्खाकुसलं तं होइ तह संमवरनाणं । कंचणपीढं च जहा होइ तहा दंसणं एत्थ ॥१२८॥ अच्चंतमहग्घाई हुंति जहा एत्थ पंच रयणाई । महसद्दसंजुयाई पंच वयाइं तहा हुंति ॥१२९॥ जह रयणाण विणोए सुहसंपत्तीउ इब्भपुत्तस्स । भव्वाण तहा मोक्खो होइ गयाणं सुहुप्पत्ती ॥१३०॥ ता जह इब्भसुएणं रयणगुणविणिच्छिओ कओ तत्थ । थेवेण वि कालेणं न तहा इयरेहिं बहुणावि ॥१३१॥ एवं च तत्तगहणे न कारणं चे(थे)वकाल-बहुकालो । ता एयं नाऊणं ममं विसज्जेह तायम्ब ! ॥छ। ॥१३२।। तओ तेहिं भणियं - एही पुणो वि भयवं विहरंतो एत्थ गणहरो जइ य । तइया करेसु पुत्तय ! वयगहणं तं अविग्घेणं ॥१३३।। तेण भणियं-एत्थ य सुणेह एक्कं साहिप्पंतं तुमे उ आहरणं । तेहिं वि भणियं साहसु अह कहिउं सो समाढत्तो ॥१३४॥ उत्तुंगधवलपायारवेढियं अत्थि कंचणसमिद्धं । कंचणपुरं पसिद्धं सरिसं जं देवलोएण ॥१३५॥ तत्थ य पंच वयंसा वसंति ते अन्नया समोसरियं । आसन्ने कुंथुजिणं तत्थेव गया सुणेऊण ॥१३६॥ 2010_02 Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९३ छट्ठो उद्देसओ दिटुं च तेहिं सहसा देविंदविणिमियं समोसरणं । कंचणरयणसमिद्धं अवयरियं सग्गखंडं व ॥१३७॥ तओ- ताणं परोप्परं चिय उल्लावो सहरिसाण संवुत्तो । पेच्छह पेच्छह एयं दिव्वं हो जिणसमोसरणं ॥१३८॥ सुरधणुवलयं व इमं अणेयरयणेहिं विविहवन्नई। पेच्छह हो एयं पि य रयणमयं पढमपायारं ॥१३९॥ रविमंडलं च उइयं कणयमयं पेच्छ बीयपायारे । सरयब्भपुंजघडियं व पेच्छ तइयं पि रुप्पमयं ॥१४०॥ नवजलहरपडलं पिव फुरंतविज्जुज्जलं इमं पेच्छ । वहलघणनीलपत्तं रत्तपवालं वरअसोयं ॥१४१॥ पगलियकलंकससिबिंबधवलवरमालिय व्व रेहंती । पेच्छसु जिणिदउवरिं रिछोली आयवत्ताण ॥१४२॥ सरयससिबिंबनिग्गयमयूहसच्छायसोहिरपहालो(? ले)। कणयमयडंडरुइरे पेच्छसु अह चामरकलावे ॥१४३॥ सुरधणुसमसोहेहिं पवणपहोलंतधयवडग्गेहिं । थाहरमाणं व इमं गयणयलं पेच्छ भव्वयणे ॥१४४॥ मयरंदमत्तमहुयरनिब्भररवमुहरजणियझंकारा । ओपेच्छ कुसुमाण( कुसुम )वुट्ठी विंटट्ठियपंचवन्नाहा ॥१४५॥ बहिरंतदिसायक्को जयजयजयघोसघोसणामुहलो । सुरमणुयासुरकिंनरमुहकमलविणिग्गओ पेच्छ ॥१४६॥ मुहलेइ दिसाए( य)क्कं निब्भररवभरियभुयणविवरोहो । सुरकरताडियदुंदुहिपवरनिनाओ इमो पेच्छ ॥१४७॥ तओ अन्नेण भणियं-'अहो वयंस ! पेच्छ पेच्छ किं पुण इमे कुरंगमजूहा मंदगईए समल्लियंति जिणं पइ ?' तेण भणियंअवि य- कंचणतोरणपसरियबहलमयूहोहपूरियदिगंतं । मन्नंता दवजलणं मंदं मंदं इमे लीणा ॥१४८॥ 2010_02 Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुचरियम् तओ अन्नेण भणियं-'ता किं पुण इमे समल्लियंति ? ।' तेण भणियंअवि य- जिणमुहकमलविणिग्गयवायारसलद्धगरुयसुहयासा । अवहत्थियसेसभया जिणवयकमलं इमे लीणा ॥१४९॥ तओ अन्नेण भणियं पणयसुरमउडपसरियमयूहसंकंतकब्बुरच्छायं । जायं जिणपयकमलं ओपेच्छसु कणयवत्तं पि ॥१५०॥ जिणभत्तिपणयसुरसुंदरीयणकवोलतेयपडलेहिं । बालयरवि व्व जाया पेच्छसु सयले वि दिसिनिवहा ॥१५१॥ अन्नं च- इमेसिं चेव सुरसुंदरीणं । अवि य तणुलग्गपवररत्तंसुउच्छलियबहलतेयपडलेहिं । संझारायजुया इव गयणद्धांता इमे पेच्छा ॥१५२॥ अन्नं च- देहट्ठियभूसणमणिमयूहपसरंतपडलविच्छुरियं । सुरतणुमइयं व इमं ओपेच्छसु मेइणीवटुं ॥१५३॥ दीसइ य इमे पेच्छसु ससुरासुरसूरचंदसंकिन्नो । देवमइओ व्व जाओ भूभाओ देवलोओ व्व ॥१५४॥ अन्नं च-दिणयरचंदंगारबिहप्फइबुहसुक्कराहुसणिपमुहा । सव्वे वि गहा सव्वायरेण ओपेच्छ जिणपणया ॥१५५॥ ता सव्वहा वि पत्तं जम्मफलं जं जिणो समोसरिओ । दिट्ठो अज्जम्हेहिं पच्चक्खं सव्वसुरमहिओ ॥१५६॥ मन्ने अज्ज कयत्था नयणा अम्हाण जं जिणो दिट्ठो । अज्जं तिन्नो य इमो रुंदो भवसायरो मन्ने ॥१५७॥ अन्नं च- जं सव्वभाववित्थरपरमत्थविभावयं सुयं वयणं । एयस्स तेण मन्ने सवणाण वि अज्ज सहलत्तं ॥१५८॥ ता पत्तं पत्तव्वं अज्जं अम्हेहिं पुन्नफलमेयं । जं दिटुं पयकमलं कलिमलमहणं जिणिदस्स ॥१५९॥ 2010_02 Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्ठो उद्देसओ ता एयं वो(णे) सेयं असुरिंदसुरिंदवंदियकमस्स । एयस्स पायमूले गिण्हामि(मो) जमिह सामन्नं ॥१६०॥ ताणेक्केण भणियं सच्चमिणं जं जहा तुमं भणसि । किंतु सुओ ता धम्मो दिट्ठो य गुरू जिणवरिंदो ॥१६१।। एयं वा अन्नं वा जइया उण दच्छिमो उ तित्थयरं । तइआ वि य गिहिस्सं पव्वज्जं तस्स पामूले ॥१६२॥ तो भणियं अन्नेणं वा जइया उण दच्छिमो उ तित्थयरं । तइआ वि य गिण्हिस्सं पव्वज्जं तस्स पामूले ॥१६३॥ भवसायरभव(म)णकिलंतएहिं जरमरणरोगतविएहिं । कंमविवरेण पत्तो कत्तो पुण होज्ज संपत्ती ॥१६४॥ अन्नेण तओ भणियं पुच्छामो जिणवरं इमं एत्थ । किं सुलहं दुलहं वा जिणाण इह दंसणं होइ ॥१६५॥ जइ दुलहं ता सेयं इमस्स मूलंमि अम्ह वयगहणं । अह भणइ होइ सुलहं ता इच्छा तुम्ह सव्वेसि ॥१६६।। सव्वेहिं तओ भणियं एवं ही सोहणं तए भणियं । उवसप्पिऊण सव्वायरेण अह पुच्छिओ तेहिं ॥१६७॥ किं भयवं हुंति जिणा संपइणागयअईयकालेसु । पाविज्जइ सुहमेसिं च दंसणं किं व दुक्खेण ॥१६८॥ अह भगवया वि भणियं निसुणह हो सोम भरहेरवएसु । दुविहो वच्चइ कालो विजएसु य होइ एक्कविहो ॥१६९॥ उवसप्पिणी उ एक्का वीया अवसप्पिणी मुणेयव्वा । वीसं कोडाकोडीहिं दो वि अयराण वच्चंति ॥१७०॥ तत्थ अवसप्पिणी छहि अरएहिं वच्चइ । ते य इमे अरया । तंजहा-एगंतसूसमा चाहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं वच्चइ, तत्थ य तिपल्लोवमाउणो तिगाउयप्पमाणा य पुन्नविसेसेण कप्पपायवउवणीयभोयणसेज्जगंधमल्लाइउवगरणा रिजुसहावा विसिट्ठबुद्धि _ 2010_02 Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुचरियम् विरहिया मरणंते देवगइगामिणो जुयलाहमिया मणुस्सा भवंति । बीया य सूसमा तिहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं वच्चइ, तत्थ य दुप्पल्लोवमाउणो दुगाउयप्पमाणा सेसं सव्वं तहा जहा पढमे । किंतु मणायं मंदाणुभाविणो तेसिं ते कप्पडुमा भवंति । तइया य सुसमसमा दुहि सागरोवमकोडाकोडीहिं वच्चइ, तत्थ य एगपल्लोवमाउणो एगगाउयप्पमाणा य जुयलाहमिणो । सेसं सव्वं जहा बीए; किंतु मणायं मंदाणुभाविणो हवंति तेसिं कप्पडुमा। चउत्थी दुसमसूसमा एगाए सागरोवमकोडाकोडीए बायालीसवरिससहस्सूणाएवच्चइ, तत्थ य पुव्वकोडीय पढममंते य वाससयाउणो हवंति । पंचधणुसयपमाणा य पढमं अंते य सत्तरयणीउ पमाणं मणुयाणं ति । एयंमि वोच्छिज्जइ । जुयलाहमो, न होंति चिंतियफलदाइणो कप्पडुमा । उववज्जति चउवीसं तित्थयरा, दुवालसचक्कवट्टिणो, नववासुदेवबलदेवा य । नज्जइ धंमा,मो । हवंति धन्नविसेसा । नजंति कलाओ। पयडीहंति विन्नाणाइं । संगहिज्जंति धन्नविसेसाइं । कीरंति सव्वववहारं ति । तओ एवं च वच्चमाणेसु दियहेसु वोच्छिन्नेसु तित्थयरचक्कवट्टि-वासुदेव-बलदेवेसु होही दूसमा पंचमकालो । एगवीसवरससहस्सेहिं सा वच्चइ । तत्थ य वरिससयसत्तरयणीहिंतो वि परिहीयमाणं आउय[देह? ]पमाणं हवइ । थोवो य से तत्थ धंमो, बहुओ अहंमो । विरला साहुणो, बहुयाओ कुपासंडिणो। दुल्लहं सच्चं, बहुयमसच्चं । थोवा सज्जणा, बहवे दुज्जणा । परिहीलिज्जति विज्जाओ । पम्हुसन्ति विन्नाणाइं । अप्पोयगवरिसणं । बहवे दुक्काला। ताव जाव वोच्छिज्जिही धंमो । भणियं च "एयंमि अइक्कंते वाससहस्सेहिं एक्कवीसाए । फिट्टिहिइ लोगधम्मो अग्गी मग्गो जिणक्खाओ ॥१७१॥ पुव्वाए संझाए वोच्छेओ होइ धम्मचरणस्स । मज्झण्हे रायाणं अवरण्हे जायतेयस्स ॥१७२॥ पच्छिमसंझाए भवे कुलवोच्छेओ उ देस,माणं । सो खलु वोच्छेओ दूसमाए चरिमंमि समयंमि ॥१७३॥ अवसप्पिणीउमीसे चत्तारि अपच्छिमाइं इह भरहे । अन्नंमि दूसमाए संघस्स चउव्विहस्सावि ॥१७४॥ 2010_02 Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्टो उद्देओ दुप्पसहो साहूणं सच्चसिरी होइ साहुणीणं च । सड्डो नाइल नामो फग्गुसिरी सावियाणं तु ॥ १७५ ॥ सव्वाऊ पणवीसं अट्ठ य वासा गिहत्थपरियाओ । कालं काही य पुणो अट्टमभत्तेण दुप्पसहो ॥ १७६ ॥ उववज्जिही विमाणे सागरनामंतु (मि) सो उ सोहं । तत्तो य इत्ताणं सिज्झिहिइ सुनिव्वुओ धीरो" ॥१७७॥ तओ एवं च-तंमि दूसमकाले वोलीणे होही एगंतदूसमानाम छट्ठो कालो । एगवीसवरिससहस्सेहिं सो वि वच्चिही, महादुक्खजणगो मणुयाईणं । तस्स य अंते सव्वं वोच्छिज्जिही । किं पि बीयमेत्तं माणुसमाईणं सव्वेसिं जाईणं होहीइ । आहारो कुणिमं तेसिं । भणियं च- “होही हाहाभूओ दुक्खब्भूओ हल्लप्फलभूओ । कालो अमाइउत्तो गोधंमसमो जणो पच्छा ॥१७८॥ खरफरुसधूसरयरा अणिट्ठफासा दुहावहा वाया । वायंति भयकरा पुण दुहावहा सव्वसत्ताणं ॥ १७९ ॥ धूमायंति दिसाओ रओसला रेणुपंकबहुलाओ । भीमा भयजणणीओ समंतओ अंतकालंमि ॥१८०॥ चंदा य मुयंति हिमं सूरा य तवंति अहियरं तावं । जेण इहं नरतिरिया सीउण्हभया किलिस्संति ॥१८१ ॥ पुणरवि भिक्ख अभिक्खं अरसं विरसं च खार-खट्टं च । अग्गिविसअसणिसरिसं मुंचइ मेहो जलमणिट्टं ॥१८२॥ जेण इहं मणुयाणं खासं सासं भगंदरं कोढं । होहिंति एवमाई रोगा अन्ने य णेगविहा ॥१८३॥ मणुया खरफरुसनहा उब्भडघोडामुहा विगडनासा । नाहिं गुणेहिं य सुनिठुरगिरा भवे सव्वे ॥ १८४॥ रयणीपमाणमेत्तो उक्कोसेणं तु वीस - सोलसमा । बहुपुत्तनत्तुसहिया निल्लज्जा विणयपरिहीणा ॥ १८५ ॥ 2010_02 ९७ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९८ जंबुचरियम् होहिंति य बिलवासी बावत्तरि ते बिलाओ वेयड्ढे । उभयतडाण नईणं नव-नव एक्केक्कए मूले ॥१८६॥ सेसं तु बीयमेत्तो होही सव्वेसु मणुयमाईणं । कुणिमाहारा सव्वे नियगे संपायकालंमि ॥१८७॥ रहपहमेत्तं तु जलं होही बहुमच्छकच्छभाइन्नं । गगासिंधुनईणं रत्ताईणं चउण्हं पि ॥१८८॥ सूरुग्गमणमुहुत्ते ते मणुया मच्छकच्छभ जलाउ । घेत्तुं तडे छुभंती अन्ने अस्थमणकालंमि ॥१८९॥ सीउण्हपउलिएहिं वित्ती तेसिं तु होइ मच्छेहिं । बायालीससहस्सा वासाणं निरवसेसं तु ॥१९०॥ अवसप्पिणीए अद्धं अद्धं उवसप्पिणीए नायव्वं । एयंमि अइक्कंते होही उसमाहलं सव्वं ॥१९१॥ अवसप्पिणि जह एसा उसप्पिणी तह य किं तु विवरीया । नायव्वा अरएहिं एयं तं कालचक्कं तु ॥१९२॥ एएण कारणेणं थोवा होहिंति एत्थ तित्थयरा । पाविज्जह दुहमेसिं च दंसणं सव्वकालेसु ॥१९३॥ विजए उण जुगवं चिय हुति जहन्नेण नवर चत्तारि । बत्तीसं जुगवं चिय उक्कोसेणं मुणेयव्वा ॥१९४॥ ता सव्वहावि दुलहं होइ जिणिंदाण दंसणं एत्थं । दंसणओ वि य वयणं वयणाओ होइ सद्दहणं ॥१९५॥ अह सद्दहिउँ कह वि हु संजमकरणंमि( णे ?) न होइ उच्छाहो । तह वि न जायइ नूणं कंमवसाणं तु जीवाणं ॥१९६॥ तहा य-होइ निरत्थो नूणं दिणयरबिंबोग्गमो व्व अंधाणं । जिणसंगमो वि एवं केसि पि विवेगरहियाणं ॥१९७॥ भणियं च- "दिट्ठो वि अदिट्ठसमो दंसणकज्जफलाइं अकरितो । काणइ अदिट्ठपुव्वो होइ जिणो मोक्खहेउ त्ति" ॥१९८॥ [ ] 2010_02 Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्टो उद्देओ दिट्ठो जिदि किल तं पावपणास जयंमि सुपसिद्धो । गोसाल - संगमाणं तुमं पि भवहेउओ जेणं" ॥१९९॥ ता एवं ताव तित्थगरदरिसणं दुल्लहं । तओ तस्स सुहासियं । तं च सोउं कम्मरुययाए सद्दहिउं । जो वि कम्मविसुद्धीए सद्दहइ, सो वि संजलणकसाओदएणं पडिवज्जइ चरित्तं । जो वा सचक्खुओ निमीलियच्छो चिट्ठेइ, किं तस्स सूररस्सीओ करंति। एवं अरहंतवयणं सोउं न इच्छइ, सुयं वा न सद्दहइ, सद्दहंतो वा न करेइ, तस्स मोहं तित्थगरदरिसणं । 1 ता एयं सोऊणं परोप्परं मंतिऊण निक्खता । तत्थेव समोसरणे कम्मंतकरा य संवुत्ता ॥छ ९९ ता एवं तायंम ! अईव सुदुल्लहं जिणगणहराईण सुदंसणं । दंसणाओ उवएसदाणं । तस्स वि तब्भणियवयणकरणं ति । ता सव्वहा जइ सयं न गिण्हामि सुहंमसामिणो पायकमलमूले सव्वसावज्जविरइलक्खणं जइधम्मं; तो कत्थ पुणो रागदोसमोहमूढमाणसाणं असुहकम्मगरुयभरभारक्कंतदेहाणं चउगइसंसारसायरे अरहट्टघडिय व्व अबद्धमूलं सययं चिय इओ तओ परिभ्रमणमहादुक्खसमक्कंतनासग्गविलग्गनिययपाणाणं अचितचिंतामणितुल्लं गुविलासंचारमहाकंमकंतारमहिंधणपज्जलियजलणभूयं सिवसुहामयपरमेक्कमहानिहाणं, नरयमहंधकूवनिवडण दढमहाबलं बलकप्पं, किं 'बहुणा, सव्वसत्तअणाइक्खणीयपरमसुहपहाणेक्ककारणं तित्थयराईण दंसणं ति । अह कह वितं पि पत्तं, तहा वि विसयविसवेगपरायत्तनिययमाणविगलियविवेगरयणसाराणं, कल(लु)सियकुसत्थअत्थनियमईणं, कुसासणा अवहयसच्छभावाणं, पण्डु ( म्हु) ट्ठ अचिन्तचिंतामणिकप्पं(प्प)जिणोवएसपरमत्थगब्भाणं । कत्तो अम्हाण मणुयासुरसुंदरीवंदियकमकमलजुयलाणं सव्वदरिसीण जिणयंदाणं अमयनिस्संदभूए सव्वसत्तपरमेक्कहियकार तेसिं वयणे धम्मपडिवत्ति त्ति । अह कह वि जाया, तहाविहवीरियन्तरायोदएण कम्मगरुयत्तणेण य तहाविहपावमित्तपसंगेण य कत्तो सव्वसावज्जजोगविरइलक्खणं महापुरिसतित्थयराई अणुचिन्नं असेसपयत्थभावविभावयकेवलवरनाणदंसणलच्छिअणुवहयपरमेक्कमहाकारणभु (भू) यं भाववयगहणं ति । ता सव्वहा वि विसज्जेह ममं ति । 2010_02 Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० जंबुचरियम् ____ अन्नं च, जेसिं विसयाण कारणेणं अभव्वपाणिणो ते पढमं नरयमहंधयारनिवडणकारणं । जओ अच्चंतपाववसगा एए रागद्दोसाण य कारणेणं सोग्गइमग्गग्गलसमभूया, तहा दुग्गइगमणपयडपहभूया य मे णायं च मुहरसियकिंपागफलरससारमेत्ता विवाए उण महाकालकूडविसविवाओवमसमाणा।। भणियं च- "विसयविसं हालहलं विसयविसं उक्कडं पियंताणं । विसयविसाइन्नं पिव विसयविसविसूइया होइ" ॥२००॥[उ.मा./गा.२१३ ] तहा एयाणं च विसयाणं परमेक्ककारणं जो एसो अत्थसंचओ सो वि चंचलसहावो। जओ जलजलणतक्करनरिंददाइयाईणं सामन्नो । ताण चुक्को वि धरणितलनिहओ चेव खयं पगच्छइ । तो सव्वहा चंचलसहावा इमा अत्थलच्छी । अवि य- "अथिरा चंचलराया खणभंगुरदिटुनटुसब्भावा । विज्जुलया इव लच्छी मणयं पि न होइ थिरभावा" ॥२०१॥ [ ] तहा वि सोहणो जइ इमो खलसंसग्गिसमो जणणिजणयसहोयराईहिं सह संबंधो थिरो होइ । इमो य अवस्सं विओयावसाणो, थोवदियहसंपओगलक्खणो य । ठिओ चेव महासोयाभिभूयाणं संसारभमणदुक्खसंतइयसंपायणपरो हवइ त्ति । भणियं च- "अच्छउ ता अपुणागमपरभवसंकमणजणियसंतावो । सुमणे वि बंधुविरहो सुदुस्सहो होइ लोगंमि" ॥२०२॥ [ ] एवमवि सोहणं जइ इमं नियजीयं कइ वि वासरे अविणस्सरसहावं हवइ । इमं च अइचंचलसहावं । तिणकोडिसंठियजललवबिंदुसमाणं । भणियं च- "जललवतरले विज्जुलयचंचले सक्कचायचवलंमि । जीवाण जीविए धयचलंमि कह कीरउ थिरासा" ॥२०३॥ [ ] ता सव्वहावि नत्थि एत्थ विलंबकारणं ति । भणियं च- "जं कल्ले कायव्वं अज्जं चिय तं करेह तुरमाणा । बहुविग्यो य मुहुत्तो मा अवरण्हं पडिक्खेइ" ॥२०४॥ [ वैरा.श./गा.३] "जलबुब्बुयंमि जीए कयलीगब्भोवमेयसामि । जरवाहिसोगपउरे किं अच्छह निव्वुया इण्हि" ॥२०५॥ [ ] 2010_02 Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्ठो उद्देसओ १०१ "धम्मो अत्थो कामो तिन्नि वि एयाइं तरुणजोगाई । गयजोव्वणस्स पुरिसस्स हवंति( होति) कंतारसरिसाइं" ॥२०६॥ [ ] जं पुण एवंठिए वि हु विलंबणाणि कीरंति, तं सव्वहा अणाएयं मूढजंतुविलसियसरूवं । परिहरणीयं सव्वं जंतुणा जिणमयकुसलेणं ति । सव्वन्नूण मएण भावियमणा संसारसंकारये, मोत्तूणं विसये विनिच्छियमणा संमोहसंदायये । जे पालिंति गुणा वरा भुवि नरा संमत्तजुत्ता सया, संसारोवहिअ(5)णोरपारपरमं पारंगया ते चिरं ॥२०७॥ इय जंबुनामचरिए तस्सेवुप्पत्तिविमलबोहिकरो । उद्देसो य समत्तो गिहिधम्मपसाहणो नाम ॥छ॥ ॥२०८॥ 2010_02 Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ सत्तमो उद्देसओ ॥ तओ एवं च अणेगहा भणिए जंबुकुमारेण, नाऊण तस्स निच्छयं अणवरयपयट्टबाहसलिलपक्खालियनिययनिम्मलकवोलयलाए, पक्खलियसगग्गयक्खरगिराए, दीहुण्हाणवरयनीसासझलुसियपवरदेहलट्ठीए, कह कह वि परिमंथरं भणियं जणणीए'वुत्त ! जइ एवं अवस्सं तए निच्छओ कओ, ता पूरेसु मम पुव्वविचिंतिए ताव मणोरहे; सव्वहा वि निव्वत्तेसु इमं मे [मह]त्थं अब्भत्थणं' ति । तओ जंबणामेण भणियं-'अंब ! किं तं महत्थमब्भत्थणं जमम्हेहिं वि किलण कीरइ ?' त्ति । तीए भणियं-'वच्छ ! तुमं तावम्हाणं पढम चिय मणोरहसएहिं जाओ, वद्धिओ य सययं वद्धतमणोरहाणं चेव । संपयं पि जइ अहिणवुव्वाहियवहुयणा अवणयमुहकमललोललोयणा धंना अणवरयनिरिक्खिज्जमाणवरमुहं वच्छ ! पेच्छामि तुमं । तओ अहं पि एवं कए तुमए सह पव्वइस्सं ति । इमंमि य भणिए, भणियं जंबुणामेण-'अंब ! जइ ते एवं निब्बंधो तो पूरेह मम (?) वरमुहालोयणेण य नियमणोरहे । किं पुण तए मममन्नं पि विग्घंतरं विहेयव्वं । अहं च वित्ते विवाहकल्लाणे तयणंतरमेव अप्पहियं समायरिस्सं'ति । तओ हरिसनिब्भररोमंचकंचुयतणुलट्ठीए भणियं धारिणीए-'पुत्त ! एयं ति । अन्नं च-अत्थेत्थ तुह पुव्ववरियाओ अट्ठ कन्नगाओ जिणसासणरंजियमईण महाइब्भाणं धूयाओ । तो परिणेसु तुमं ताओ त्ति । ते य इब्भा तंजहा-समुद्दपिओ समुद्ददत्तो सायरदत्तो कुबेरदत्तो कुबेरसेणो वेसमणदत्तो वसुसेणो वसुपालगो त्ति । ताणं च इमाओ भारियाओ, तं जहा-पउमावई कणगमाला विणयसिरी धणसिरी कणगवई सिरिमई जयसेणा विजयसेण त्ति । ताओ य कंनगाओ एएसिं धूयाओ, तंजहा-सिंधुमई दत्तसिरी पउमसिरी पउमसेणा, एयाओ चत्तारि देवलोगचूयाओ देवभवे वि भारियाओ आसि । सेसा उण नागसेणा कणयसिरी कमलावई विजयसिरी नामाओ त्ति । एयाओ रूव-जोव्वणविलासविन्नाणकलागुणसोहग्गकलियाओ । 2010_02 Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो उद्देसओ १०३ ता वच्छ ! एयवुत्तंतं तेसिं जणणिजणयाणं विभइयं कहामो; जहा विवाहमंगलाणंतरमेव कुमारो दिक्खं पडिवज्जिही । ता एवं च ठिए पओयणे जहा तुम्हाणं रोयइ तहा अणुचिट्ठह' त्ति । निवेइयं च जहावट्ठियं तेसिं । कुमारो वि ठिओ मज्जणकीलाए । तओ सयसहस्सपाएहिं बहुगुणसारेहिं सिणेहपरमेहिं सुमित्तेहिं व अब्भंगिओ तेलेहि विलासिणीयणेण । उव्वट्टिओ य खरफरुससहावेहिं सिणेहाववहरणपडुएहिं खलेहिं व कसायजोएहिं । हाणिओ पयईसत्थसीयलसुहसेवसच्छेहिं कलंकावहारेहिं सज्जणहियएहिं व जलुप्पीलेहिं । एवं च पहायसुइभूओ दिव्वालंकारभूसियसरीरो देवंगवत्थजुयलनियंसणो य पविट्ठो नेमिजिणयंदभवणवरं । तत्थ य परियणोवणीयदिव्वसुरहिपरिमलायड्डियगुमगुमिन्तभमरउलामोडियचरणचुम्बिएहिं गंधमल्लाइएहिं निव्वत्तिया भगवओ नेमिजिणिदस्स महापूया। उप्पाडिओ य कप्पूरहरियंदणमयणकत्थूरियायट्ठो सयलगयणयलमभिवासयंतो धूओ । तओ पणिवइओ भगवओ संखचक्कंकुसंकिए विमले पायकमलजुयले । उवविट्ठो य भगवओ पुरओ सुद्धवसुहावीढे । भगवओ विणिवेसियनयणमाणसो य एवं च थोउं समाढत्तो।। अवि य- जय ! सयलभुवणभूसण ! जय विणिहयपंचबाणसरपसर ! । जय ! सिहिकंठसमज्जुइ जय नेमि सुरिंदपणिवइय ! ॥१॥ जय विमलनाणपयडियसमत्थतइलोयभावसब्भाव ! । जय बालभावभावियपरमत्थपयत्थसमयत्थ ! ॥२॥ तओ, एवं च सहरिसं थोऊण जिणवरिंदं पुणो पुणो नमिऊण पायकमलजुयलं गओ भोयणमंडवं । तत्थ निव्वत्तियसुहभोयणो पवड्डमाणसुहज्झवसाओ सह वयंसएहिं अच्छिउं पयत्तो । इओ य निवेसि(इ)ए तेसिं जणणि-जणएण सब्भावे ते सह भारियाहिं मंतिउं पयत्ता । जहा पेच्छ पेच्छ, केरिसं संजायं । अन्नहा परिचिंतियमिमं, अन्नहा संजायं ति । भणियं च- "अन्नह परिचिंतिज्जइ सहरिसकंदुज्जएण हियएण । परिणमइ अन्नह च्चिय कज्जारंभो विहिवसेण" ॥३॥[ ] तो एवं ठिए किं पुण कायव्वं अम्हेहिं । अहवा अत्थि अन्ने वि सोहणा वरा ता तेसिं दिज्जंतु एयाओ त्ति । इमं च वयणपरंपराए निसामियं वुत्तंतं ताहिं दारियाहिं । तओ ताओ केरिसाओ जायाओ। _ 2010_02 Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ अवि य अणवरयदीहपसरियनीसासुण्हायमाणहिययाओ । तेण तणुयाओ सहसा जायाओ पंडुरमुहाओ ॥४॥ नेहवसनयणपसरियजलनिवहवहंतसित्तथणयाओ । उन्नव (य) णाओ अट्ठ वि मुहु मुहुमुज्झतसासाई (ओ) ॥५॥ तओ, एवं च कह कह वि समासत्थाओ एक्कमेक्कविणिच्छियाओ सव्वाओ वि जणए भणिउं समाढत्ताओ - 'किमेवं तुब्भे अभिमन्तेह' ! अवि य- सहयारमंजरीदिव्वपरिमलं किं कयाइ मोत्तूण | अहिलसइ भसलजूहं सुकुसुमियं जइ वि निंबवणं ॥ ६ ॥ तहा- सव्वन्नुवयणवित्थरपरमत्थपयत्थलद्धसब्भावो । किं रमइ को वि भमिओ कुसासणे मूढदिट्ठी वि ॥७॥ तहा - खरनहरतिक्खदारियकरिकुंभकरंकलिहणदुल्ललियं । सीहं मोत्तूण पई कि सीही जंबुए रमइ ॥८॥ तह जो लडहविलासिणिसमंतओ नयणबाणछन्नो वि । न वियारेणं घेप्पइ तं मोत्तुं कस्स दिज्जामो ॥ ९ ॥ जंबु ता सव्वा विमा एवमभिमन्तेह; किं तस्स दाऊण अम्हे अन्नस्स दिज्जामो ति । जओ लोयसु वि सुव्वह - " सकृत् कन्याः प्रदीयन्ते " इति । अन्नं च जइ सो कह वि मुणालतंतुवलएहिं मत्तदिसागओ व्व सव्वत्थ अपरिखलियपयावो विसयसुहत हानिबंधणेहिं अज्जेव काही पव्वज्जारयणगहणं ता सोहणं, अम्हे वि तेणेव समं अणुपव्वइस्सामो । जइ पुण कइ विदियहे अम्हाणुग्गहं कुणमाणो केण वि अम्ह गुणेणेव विलंबही तहा वि सोहणं चेव त्ति । तओ इमं च तेसिं निच्छओ (यं) नाऊण सहरिसेहिं सव्वइब्भेहिं निवेइयं उसहदत्तस्स । जहाउज्जमसु सयलसामग्गीए । पडिवन्नं च तेण । तओ किं कीरिडं पयत्तं ? - विरइज्जंति मंचसालाओ, उवणिज्जंति महाकुलालाई, मंडिज्जति धवलहराई, मंडिज्जंति ( ? ) महाभवणभित्तीओ, घडिज्जए कलहोयं, कीरंति उल्लोवट्ठी (चा? ), निमंतिज्जइ बंधुयणो, सक्कारिज्जति महाखंडगज्जाइं, उवक्कीरिज्जंति भक्खावेसेसाई ति । सव्वहा वि पगुणीकयं सव्वमुवगरणं ति । समागओ य पूरंतमणोरहहलफडा (ला) णं उभयकुलाणं पि विवाहमंगलदियो । 2010_02 Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तम उद्देओ १०५ तओ कयाइं देसवेसकुंलसमयसूयगाइं असेसाई मंगलकोउयाई ति । तओ इमं य अवसरे अत्थगिरिसिहरमइलंबिओ दिणयररहवरो । अवि य- संकुचियनियपयावो अत्थमणं पेच्छ कमहं पत्तो । साहणहेउं नज्जइ अवइन्नो महियलंमि रवी ॥१०॥ अत्थमिए रविदइए संझा नवरंगपाउयसरीरा । पु(बु)ड्डणहेउं नज्जइ उच्चलिया उयहिसलिलंमि ॥११॥ रविनरनाहेऽत्थमिए भुयणं ओपेच्छ कसिणदेहेहिं । तमभिलेहिं गसिज्जइ व (ध) णियं संरुद्धमग्गेहिं ॥१२॥ असमंजससंगसिए भुवणे रोसेण धमधमेंतो व्व । किरणसरेहिं वहंतो तमवक्खं पसरिओ चंदो ॥१३॥ इयरेसिं [च] पओसे समंतओ चंदकिरणसंपसरे । सज्जणहियए व्वऽमले आणंदियसव्वजंतुज ॥१४॥ तओ सो जंबुणामकुमारो पहायसुइभूओ धवलधोयवत्थजुयलनियंसणो सियचंदणचच्चियसरीरो, वंदियगोरोयणो, सिद्धत्थयरइयपवरतिलओ, खंधरावलंबियसियकुसुमसुरहिदिव्वदामो, सयलसयणपरियरिओ, नयरइब्भजणेण य अणुगंममाओ, वयंसयसत्थसमुववेओ, पढ़तेण बंदियणएणं, पगीयमाणेहिं अविहवकलमंगलसएहि, समंतओ खिप्पमाणाहिं सिज्झियसुरहिकुसुमदामंजलीहिं, पदीयमाणेण य महादाणविच्छड्डेण, रसंतेहिं मुइंगपवणकंसालयसंखकाहलरवेहिं, जंबूदीवाहिवइअणाढियजक्खरायकयसंनेज्झो चलिओ ससुरहरं । सुहदिणलग्गजोयवारमुहुत्ते य आरूढो विवाहवेइमंडववरं । तत्थ य निव्वत्तियसयलकेउयकरणीयविहाणेणं, लज्जोणयवयणकमलवलंतनयणकडक्खपेच्छिरीणं, गहियं तेसिं दारियाणं करं करेणं ति । तओ एवं च विहिणा निव्वत्ते पाणिग्गहणे, पसाहिए य सयलासेसकरणीए, तओ(?) आरूढो जंबुणामकुमारो सह दारियाहिं, कंचणमणिरयणमयगलदसणविणिम्मविए सिवियारयणे त्ति । तओ पलंवधरियसियायवत्तो, निवडंतपदोलायमाणसियचारुचामरजुयलो मंगलवाढयजयजयारवपूरियसयलदियन्तो कमेण य गच्छमाणो संपत्तो जिणभवणं ति । तत्थ य अवयरिओ सिवियाओ । पविट्ठो य विहिपुव्वयं सह मणहरपियाहिं 2010_02 Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ जंबुचरियम् जिणभवणे। तओ निव्वत्तियं पूयोवयाराइयसयलं जिणबिम्बाण करणीयं । थुणिउं च समाढत्तो । अवि य-कंमकलंकविमुक्के जम्मणजरमरणवाहिपरिहीणे । लोअग्गमग्गपत्ते सव्वे वि नमामि जिणयंदे ॥१५॥ अट्ठसयलक्खणधरे पाए सुरविंदचंदपरिसहिए । तित्थयराणं नमिमे( मो) सव्वेहि कम्ममलमुक्के ॥१६॥ इय थोऊण सहरिसं तिहुयणनाहाण जिणवरिंदाण । पणिवइओ पयकमले जंबुकुमारो सह पियाहिं ॥१७॥ तओ एवं च-कयपणामपूयोवयारो सहरिसपईयमाणसयलसमागयलोयमग्गो नीहरिओ जिणभवणाओ । तेणेव य विहिणा संपत्तो नियमंदिरं ति । तत्थ वि सुरहिपइन्नकुसुमदामविलंबियपवराहिरामं, कप्पूररेणुकुंकुमकेसरलवंगकत्थूरियसुरहिगंधट्ठपूरपूरियं, विप्फुरमाणुब्भडपोमरायसमुज्जोइयओवरं नाणावयारचीणंसुयमहासमुल्लोयकयपवरवित्थरं चलमाणमत्तमहुयरझंकारमुहलियमुहरवं पविट्ठो कुमारो वासहरं ति । तत्थ वि नाणामणिरयणमुत्ताहलविहूसिएसु, चामीयरविणिंमवियमहाभद्दासणेसु सह जणणिजणएहि उवविठ्ठो जंबुकुमारो । ताओ वि पोमरायमणिखइयकणयपवरपहासणेसु निसन्नाओ उभयपासेसु कुमारस्स अट्ठ वि दइयाओ । तओ एवं च, सुहासणोवविट्ठाण तत्थ के वि हरिसतोसनिब्भरा गायंति लोया । अन्ने उण सहरिसं पणच्चंति । अन्ने वीणावेणुमुयंगमहुररवाखित्तमाणसा निसुणंति । अवरे य नाणावयारकीलाविसेसवावडा मुइयमाणसा कीलन्ति विविहकीलाविसेसेहि । [प्रभवराजकुमारवर्णनम्] तओ एवं च हरिसि(स)तोसनिब्भरमणे सयलसमागयलोए किं जायं ? विजयउरनिवासिणो वीससेणस्स रन्नो तणओ परक्कमाहिमाणधणो सयलविन्नाणकलाकलावकुसलो पहवो नाम रायकुमारो । तस्स य पहु नाम कणीयसो भाया । पिउणा य वीससेणेण पहवकुमारं विलंघिऊण तस्स दिन्नं रज्जं । पहवो य अभिमाणधणो निग्गओ तस्स रज्जाओ। ___JainEducation International 2010_02 Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमो उद्देसओ १०७ भणियं च- "मन्नइ य तणसमाणं पि परिहवं मेरुमंदरसरिच्छं । को वि जणो माणधणो अवरो अवरो च्चिय वराओ" ॥१८॥[ ] अन्नेहिं वि भणियं-"अवि उ8 चिय फुटृति माणिणो न य सहति अवमाणं । अत्थमणे विय रविणो किरणा उड़े चिय फुरंति" ॥१९॥ [ ] तओ सो समस्सिओ य विंझगिरिं सह भडसमूहेण । तओ तत्थट्ठिओ घाएइ गामे, लूडेइ सत्थे, करेइ चोरियत्तणं, देइ उक्खंदे, वावाएइ पच्चन्तनरवइसमूहे । सव्वहा तत्थट्ठिाओ] असज्झो सो सयलनरवईणं पि । तओ सो खोलपुरिसेहितो णाऊण इमं जंबुणाम विवाहइयरं समागयं च इब्भसमूह, बहुरयणकोडिकंचणविहूसियं जणसमूहं । तओ समागओ पच्चलचोरसमन्निओ सो, अवसोयणितालुग्घाडणविज्जाहिं समंतओ सुपसिद्धकित्ती । पविट्ठो य उसहदत्तभवणं । दिट्ठा य जंबुकुमारपमुहेहिं । केरिसा ते चोरभडा ? । अवि य- उद्धनिबद्धब्भडकेसकलाववियडजूडया, चंदणवहललेवपरियड्डियपवरछेवया। कुवियभुयंगसरिसधणुवावडवामहत्थया, भीसणतिक्खबाणदाहिणकरवरा चोरय त्ति ॥२०॥ अवि य- दिट्ठोयताण मज्झे पीणनिरन्तरविसालवच्छयलो । आयंवदीहपम्हललोयणजुयदीहभुयदंडो ॥२१॥ तओ तेण अउव्वमुत्तिणा पहवाभिहाणेण चोरसेणावइणा अवसोविओ अवसोयणिविज्जाए जंबुकुमारो त्ति । सत्तहत्थवहिववत्थियसयलो जणसमूहो । तओ ते तस्स तक्करभडा घेत्तुं पयत्ता रयणमुत्ताहारवत्था हरणमाईअच्चंतमहग्घे महालंकारे जणस्स । तओ इमं च एवं असमंजसं दट्ठण ताओ दारियाओ केरिसाओ किं काउं समाढत्ताओ?अवि य- वेविरपओहराओ भयतरलतरत्तपुन्नवयणाओ। सरणं ति मग्गिरीओ जंबुकुमारंमि लीणाओ ॥२२॥ तओ भणियाओ जंबुणामेणअवि य- मा भयह मुद्धडाओ इमाण अहमाण चोरपुरिसाण । जिणवयणभावियंमी ममंमि पासट्ठिए एत्थ ॥२३॥ 2010_02 Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ जंबुचरियम् भणिया य ते जंबुकुमारेण । अवि य- भो भो ! अहमा पुरिसा ! निल्लज्जा ! मा छिवेह जणनिवहं । होऊण शिंदणीया कह एत्थ तुमे समल्लीणा ॥२४॥ इमंमि य भणिए समकालमेव थंभिया पभवविरहिया सव्वे वि चोरभडा । दिट्ठा य पभवेण निच्चेट्ठा । अवलोइयं च जंबुणा मुहुत्तंतेण । जाव केरिसो दिट्ठो ? अवि य- पवरविमाणनिसन्नो व्व सुरवरो सुरवहूहिं समवेओ । लीलालसपेसियदीहलोयणो कंतिपडिपुन्नो ॥२५॥ तओ दट्ठण तं चिंतिउं पयत्तो । कह किं होज्ज एस चंदो तारागणपरिवुडो समोइन्नो । नं सो कलंकमलिणो विहडइ सयलो इमो जेण ॥२६॥ ता होज्ज देवराया अच्छरगणपरिगओ विमाणत्थो । विहडइ सो सहसक्खो निमेसकलिओ इमो जेण ॥२७॥ ता महुमहणो एसो हवेज्ज गोवीहिं संजुओ नूणं । विहडइ सो गयपाणी न होइ कसिणो इमो जेण ॥२८॥ रइबहुरूवविणिमियकलिओ किं होज्ज कामदेवो त्ति । विहडइ सो मयरझओ संपुन्नंगो इमो जेण ॥२९॥ अह वा किं मम इमेण विहडणसहावेण वियप्पंतरचिंतणेण । सव्वहा वि इमं एत्थ ताव पहाणं । जं इमस्स पुरिसरयणस्स सयासाओ इमाण थंभणमोहणीणं विज्जाणं गहणं ति । एवं च चिंतिऊण भणियं पभवेण । अवि य- चंदो इंदो व्व तुमं महुमहणो होज्ज चक्कवट्टी व । जो वा सो वा सुपुरिस ! एक्कं विन्नत्तियं सुणसु ॥३०॥ अन्नं च- लज्जामि तुम्ह पुरतो नियकुलकहणेण तह वि साहेमो । पायडकित्तिस्स सुओ रन्नो हं वीससेणस्स ॥३१॥ पभवो नामेण अहं तुह दंसणमेत्तजायसंतोसो । ता तह कीरउ सुवुरिस ! वित्थारं जाइ जह नेहो ॥३२॥ 2010_02 Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०९ सत्तमो उद्देसओ अन्नं च- अकए व्व कए व्व पिए पियकारं ता जणंमि दीसंति । कयविप्पिए पियं जे करेंति ते दुल्लहा हुंति ॥३३॥ भणियं च- "सुयणो सुद्धसहावो अणुसासिज्जंतो वि दुज्जणजणेण । छारेण दप्पणो इव अहिययरं निम्मलो जाओ" ॥३४॥[ ] "दुज्जणजणवयणकिलामिओ वि पयइं न सज्जणो मुयइ । पज्झरइ राहुमुहसंठिओ वि अमयं चिय मयंको" ॥३५॥ [ ] निक्किवकंममुवगओ अहयं चोरो त्ति लज्जिमो तुज्झ । तह वि हु कीरउ एक्कं सुपुरिस ! विन्नत्तियं मज्झ ॥३६॥ देसु ममं एयाओ विज्जाओ थंभ-मोक्खणीयाओ । अवसोवणि-तालुग्घाडणीओ मज्झं गहेऊण ॥३७॥ पसरंतदंतकिरणं भणियं लीलाए जंबुणामेण । पहव ! निसुणेसु पयडं परमत्थं ताव तं एत्थ ॥३८॥ जं नेहो गुरुभावं निज्जइ तं सुपुरिसाण करणीयं । जं पावविज्जगहणं दाणं वा तं निसामेह ॥३९॥ संसारकारणाहिं जम्मणजरमरणसोगभूयाहिं । बहुपावकारगाहिं विज्जाहिं न किंचि मह कज्जं ॥४०॥ गहिया य मए विज्जा जमणजरमरणसोगनिट्ठवणी । मोक्खस्स साहणी जा जिणवयणुवएसमाल त्ति ॥४१॥ नत्थि मम कावि अन्ना विज्जा जा थंभमोहणी पावा । जह थंभिया य चोरा तह एत्थ तुमं निसामेह ॥४२॥ मम सीलतोसियाए पवयणदेवीए थंभिया एए । तुह विज्जाओ वि महं पहवंति न सीलकलियस्स ॥४३॥ अन्नं च- तणमिव विहाय एवं सव्वं धणपरियणं पहायंमि । गिहिस्सं गुरुमूले असिधारसमं वयं घोरं ॥४४॥ चत्ता य मए सव्वे जावज्जीवं पि सव्वआरंभा । गहियं च बंभचेरं जावज्जीवं गुरुसयासे ॥४५॥ ___ 2010_02 Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० जंबुचरियम् जं पुण सेसं पाणिग्गहणं कयं मए सोम ! । तं गुरुयणतोसत्थं वरमुहदंसणनिमित्तं च ॥४६॥ तओ एवं च-निसामिऊणं पभवो विम्हयक्खित्तमाणसो अणेयमणिपहासमूहसमुज्जोइए उवविठ्ठो कोट्टिमतले । चिंतिउं च पयत्तो-अहो पेच्छ पेच्छ इमस्स ललियक्खरालावत्तणं, महुरपियजंपिरी य अमयमया इव इमस्स वाणी । सव्वहा वि इमस्स रूयजोव्वणलायन्नगुणविहवपरियणाण(रिण्णाण) अणण्णसरिसस्स पेच्छ केरिसो चेव इमस्स अणुरूवो । एक्कपएणेव महाविरागयासमन्निओ धंमाणुराओ समुप्पन्नो । इमाओ य रूयजोव्वणविलासलायन्नगुणोहामियसुरासुरसुंदरीओ पवराहिणवुव्वाहियजायाओ वि मोत्तुकामो इव नज्जइ एसो । ता न सुट्ठ सुंदरं इमं । अहवा दे उवइसामि इमस्स उवएसं। कयाइ तमणुचिट्ठइ त्ति चिंतिऊण भणियंअवि य- सुवुरिस ! धम्मस्स फलं पत्ताओ ते इमाओ विलयाओ । माणेसु विसयसोक्खं एयाहि समं तुमं ताव ॥४७॥ पच्छा पुणो वि धंमं विगयवओ गुरुयणस्स पासंमि । जह इच्छियं करेज्जसु वारेमो नो वयं तुब्भे ॥४८॥ इह जंमसुसंपयभोगफलं लहिऊण परत्त सुदेवसुहं । गुणपालणसंजमनाणजुया अइरेण लहंति ते मोक्खपहं ॥४९॥ इय जंबुनामचरिए विवाहपरिमंगलो त्ति नामेण । पहवस्स दंसणकरो उद्देसो इह समत्तो त्ति ॥छ।। ॥५०॥ 2010_02 Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अट्ठमो उद्देसओ ॥ तओ इमं च निसामिऊण भणियं जंबुणामेण-'सोमं ! निसुणसु, जं तए भणियं जहा माणसु ताव विसयसोक्खं तस्स परमत्थं ति । कुओ एत्थ संसारसमावन्नाणं जाइजरामरणरोगसोगपर(रि)पीडियाणं रागदोसगहियाणं विसयपिसाअवहियचेयणाणं च सत्ताणं सुहं ति । न किं पि सुहं, बहुं च दुक्खं ति । एत्थ य सुण एक्कं नायंमि (ति?)' । [जंबुणा कहियो महुबिंदुदितो ।] जह को वि एत्थ पुरिसो अच्चंतं संपयाए परिहीणो । दालिद्ददुक्खतविओ विणिग्गओ निययदेसाओ ॥१॥ परदेसं गंतुमणो गामागरनगरपट्टणसणाहं । लंघेऊण सएसं कहिंचि पंथाओ पब्भट्ठो ॥२॥ तओ इओ तओ भमंतो य पत्तो सो सालसरलतमालतालालिबउलतिलयनिचुल्लंकोल्लकलंववंजुलपलाससल्लइतिणसनिबकुडयनग्गोहखइरसज्जुज्जणंबजंबुयनियरगुविलं दरियमहिसजूहबहिरियमुक्कनायदिसं महाडविं । तीय तण्हाछुहाभिभूएणं दरियवणदुट्ठसावयरवायन्नणओ तत्थ लोललोयणेणं, दीहपहपरिसममुप्पन्नसेयजलधोयगत्तेण, मूढदिसायक्कविसमपहखलंतपायसंचारं परिभमंतेण, दिट्ठो य पलयघणवंद्रसंनिभो तट्ठवियाणेयपहियजणवड्डिउच्छाहो, गद्दभगज्जियरवायू(वू?)रियवियडरन्नुद्देसो सियवसणपरिहाणनिसियकरवालवावडग्गहत्थविगरालरूवदुट्ठरक्खसपायालो मग्गओ तुरियतुरियमवधावंतो दुट्ठवणहत्थि त्ति । तओ य तं दट्टण मच्चुभयवेविरंगो अवलोइयसयलदिसामंडलो पुव्वदिसाए उदयगिरिसिहरसन्निभं निरुद्धसिद्धगंधव्वमिहुणगयणपयारमग्गं महंतं नग्गोहपायवं । अवलोइऊण परिचिंतिउं पयत्तो । कह ? - 2010_02 Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ जंबुचरियम् जइ कह वि आरुहेज्जा रविसंदणतुरयभग्गवेयरसं । वडपायवं महंतं छुट्टेज्ज तओ गइंदस्स ॥३॥ परिचिंतिऊण एवं भीओ कुससूइभिन्नपायालो । वेएणं संपत्तो तुंगं वडपायवं अह सो ॥४॥ दट्ठण तं विसन्नो दुल्लंघं गयणगोयराणं वि । उत्तुंगखंधवित्थिन्नपरिरयं गुहिरनग्गोहं ॥५॥ आरुहिऊण(हिउं) असमत्थो अच्छइ जा दुट्ठगयवरो ताव । संपत्तो वेएणं आसन्नं तस्स पुरिसस्स ॥६॥ भयवेविरंगमंगो समंतओ खित्तनयणतरलच्छो । सहस त्ति नवर दट्ठण भीममयडं तणच्छइयं ॥७॥ अप्पा तेण निहित्तो निरावलंबं धस त्ति धरणीए । वित्थिन्नभित्तिरूढो सरथंभो तत्थ य विलग्गो ॥८॥ पडणाभिघायकुविए पेच्छइ य भुयंगमे य सो भीमे । चत्तारि डसिउकामे विसलवपज्जलियनयणजुए ॥९॥ अन्नं पि डसिउकामं दीहरदाढाललंतदोजीहं । रत्तच्छकसिणदेहं पेच्छइ सहस त्ति सोऽयगरं ॥१०॥ पेच्छइ य तिक्खदाढे पंडर-कसिणा य मूसगे दुनि । घोरे महारउद्दे उम्मूलंते य सरथंभं ॥११॥ अह तेण गइंदेणं कुविएण नरं अपावमाणेण । वेज्झाई वि दिन्नाइं नग्गोहदुमस्स अच्चत्थं ॥१२॥ संचालियस्स सहसा खुडिऊणं वियडसाहसं भूयं । पडियं धस त्ति उवरिं महुजालं तस्स कूवस्स ॥१३॥ अह कुवियमहुयरीण य समंतओ डसियमाणदेहस्स । सीसंमि कह वि पडिया महुबिंदू तस्स पुरिसस्स ॥१४॥ 2010_02 Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११३ अट्ठमो उद्देसओ सीसाओ गलियाणं कह वि हु वयणंमि ते उ संपत्ता । आसाइऊण इच्छइ पुणो वि अन्ने वि निवडते ॥१५॥ अगणेउमुरगऽयगरऽयडकरिंदुरमहुयरीण य भयाइं । महुबिंदुसंदसायणगिद्धो व सो हरिसिओ जाओ ॥१६॥ एयंमि अवसरंमी कुंडलघोलंतकन्नजुयलेण । गयणयलसंठिएणं दिट्ठो विज्जाहरभडेण ॥१७॥ करुणोववन्नएणं भणिओ सो तेण देसु करमेक्कं । अयडाओ भीमाओ उद्धरिमो जेण तं खिप्पं ॥१८॥ भणिओ सो पुरिसेणं मा कड्डसु देव ! कह व मे पत्ता । असणाइएण दुलहा महुबिंदू दिव्वजोएण ॥१९॥ मूढो एस वराओ ममंमि संते इमस्स वसणस्स । उत्तरिऊणं नेच्छइ चिंतेउं सो गओ ताहे ॥२०॥ भणि(वि)याण मोहविहडणनिमित्तमेत्तं पयंसियं एयं । परिगप्पियमक्खाणं, उवसंहारं इमस्सेयं ॥२१॥ "जो पुरिसो सो जीवो अडवी उण चउगई उ संसारे । सो गयवरो य मच्चू निसायरिं तं जरं जाण ॥२२॥ वडपायवो य मोक्खो वणगयमच्चुभयवज्जिओ दूरं । विसयाउरेहि नवरं आरुहिउं सो न सक्को त्ति ॥२३॥ मणुयभवो उण अयडो भुयंगमा जाण हुंति उ कसाया । दट्ठो जो तेहिं नरो कज्जाकज्जं न सो मुणइ ॥२४॥ सरथंभो आउक्खं तमुंदरा किण्ह-सुक्किला पक्खा । उम्मूलयंति दोन्नि वि अहोनिसं पहरदाढाहिं ॥२५॥ महुयरिगणो य जो सो विविहा ते वाहिणो मुणेयव्वा । संतत्तो तेहिं नरो उव्विग्गो भमइ निच्चं पि ॥२६।। 2010_02 Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ जंबुचरियम् रुद्दो य अयगरो जो सो नरओ तिव्ववेयणाकलिओ । निवडियमेत्तो य नरो जत्थ य विविहं लहइ दुक्खं ॥२७॥ महुबिंदू उण भोए विवायकडुए य दारुणे घोरे । मुहरसिए अइतुच्छे किंपागफलोवमे पावे ॥२८॥ विज्जाहरो य जो सो धम्मायरिओ त्ति सो मुणेयव्वो । संसारकूववडियं उत्तारइ जो य पाणिगणं ॥२९॥ तत्थाभविओ नेच्छइ कालं उद्दिसइ दूरभविओ वि । उत्तरइ भणियमेत्तो भणि(वि)ओ जो सिद्धिसुहगामा ॥३०॥ जेत्तियमेत्तं च सुहं नरस्स कूमि निवडियस्स भवे । तेत्तियमेत्तं जइ पर इहेव विसयाउरस्स भवे ॥३१॥ ता विसयाण कए णं अधुवो(बुधो?) जो नवर एत्थ लोयंमि । अयगरसुहसमरूवे नरयंमि [स] खिवइ अप्पाणं ॥३२॥ जो उण होइ सयन्नो मंगुल इयराण जाणइ विसेसं । महुबिंदुविसयलुद्धो नरयंमि न खिवइ अप्पाणं ॥३३॥ पत्ते उद्धरणसहे संसारयडाओ दुक्खपउराओ । आयरिए को मूढो उत्तारइ जो न अप्पाणं ॥३४॥ अह वा तुमं पि साहसु किं सोक्खं तस्स कूवपुरिसस्स । जह तस्स तह इमस्स य संसारपवन्नजीवस्स ॥३५॥ तओ इमं च निसामिऊण चोरसेणावइणा भणियं पभवेण । अवि य- सुपुरिस ! एवं एयं न चलइ तिलतुसतिभायमेत्तं पि । थोवं जइ पर सोक्खं बहुदुक्खं तस्स पुरिसस्स ॥३६॥ किंतु तहा वि सुणिज्जइ लोयसुई जेण भत्तुणा भज्जा । पालेयव्वाअ(5)वस्सं अन्नह कह होउ सा एत्थ ॥३७॥ ता उवभुंजसु भोए निज्जियरइरूवविहवसाराहिं । एयाहिं समं सुवुरिस ! कइय वि संवच्छरे जाव ॥३८॥ 2010_02 Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११५ अट्ठमो उद्देसओ पच्छा करेसु विउलं........ कीरउ एस पसाओ एयाणं निययजायाणं ॥३९।। अन्नं च- इमे य सयणा जणणी जणए य नेहपडिबद्ध । कह मुंचसि दीणमुहे ता मुंचसु एयमसगाहं ॥४०॥ ___ तओ इमं च निसामिऊण भणियं जंबुणामेणजं भणियं-कह मुंचसि जणणी जणए य नेहपडिबद्धे । तं पहव ! तुमं निसुणसु परमत्थं जणणि-जणयाणं ॥४१॥ को कस्स एत्थ जणओ का वा जणणि त्ति को भवे पुत्तो । अरहट्टघडीसरिसे संसारे को हवे सयणो ॥४२॥ जा होइ एत्थ माया भइणी होऊण सा भवे जाया । जणओ वि होइ पुत्तो सत्त मित्तो पुणो भाया ॥४३॥ सव्वे वि जणणि-जणया जणओ( णी?) जणए अहं पि सव्वेसिं । जीवाणं संसारे तम्हा को नेहपडिबंधो ॥४४॥ भणियं च एत्थ जम्हा जिणवरमग्गाणुसारिणा कविणा । केणावि सुण फुडत्थं साहिप्पंतं पयत्तेण ॥४५॥ "एमेव महामोहेण मोहिया माणुसत्तणं लहिउं । परलोयहियं न कुणंति नेहपासेहि पडिबद्धा ॥४६॥ [ ] जो चिंतिज्जइ आसन्नबंधवो एस वसणकालंमि । संपत्ते मह होही सो वि मरंताण किं कुणइ ॥४७॥ [ ] सयणेण धणेण व संचिएण बुद्धीबलेण विज्जाए । किं कीरउ विउलेण वि सहसा य समुट्ठिए मरणे ॥४८॥ [ ] कंममओ संसारो कम्मं पुण नेहबंधणं जाणे । नेहनियलेहिं बद्धा भमंति संसारसागरे जीवा ॥४९॥ [ ] अधुवं चलं असारं दुरत्तयं वाहिवेयणापउरं । तुसमुट्ठि व्व असारं किं न मुणह रित्तयं लोयं ॥५०॥ [ ] 2010_02 Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ जंबुचरियम् जत्तो जत्तो गम्मइ तत्तो तत्तो जरा य मच्चू य । कलुणा य विप्पओगा नत्थि सुहं किं पि संसारे ॥५१॥ [ ] जम्मण-मरण-परंपर-संजोग-विओग-दुक्खसंतत्ता । तिलपीलए व चक्के भमंति संसारचक्कंमि ॥५२॥ [ ] जीयंमि चले पेमंमि चंचले जोव्वणंमि छणभूए । नि(दि ? )वसं पि जं विलंबह तं कालं बंधिया होइ ॥५३॥ [ ] अबुहो जणो न याणइ ससरीरे अत्तणो पडन्ताई। जीवस्स जोवणस्स य दिवस-निसाखंडखंडाइं ॥५४॥ [ ] निसि-दियहतिक्खदंतं तुरियं परिभमइ कालकरवत्तं । छिदइ आउक्खंभं आहारं देहभवणस्स" ॥५५॥ [ ] अन्नेहिं वि भणियं "जीयं जलबिंदुसमं संपत्तीओ तरंगलोलाओ । सुमिणयसमं च पेम्मं जं जाणह तं कुणिज्जाह" ॥५६॥[वैरा.श./गा.४४] ता हो ! संसारंमि पलित्ते जंमजरामरणरोगसंतत्ते । जो बोहेइ अबुद्धं सो तस्स जणो परमबंधू ॥५७।। जं पुण भुंजसु भोए इमाहिं सह ताव ते इमं भणियं । तं सुव्वउ परमत्थो इमाण पावाण विसयाणं ॥५८॥ "विज्जुलया इव चवला विसपरिणामं व दारुणा विसया । वेसित्थिसरूवं पिव बहुसामन्ना इमे विसया" ॥५९॥ [ ] "मोहणवेल्लि व्व इमं मोहिंति नरं सुपंडियं जइ वि । नेहगहिया वि विमुहा पिया वि तह अप्पिया हुंति" ॥६०॥ [ ] अवि य- "अथिरा चवला दुट्ठा घोरा रोद्दा सुदारुणा पावा । नरयगइपंथभूया विवज्जणीया अओ विसया" ॥६१॥ [ ] विसयामिसमूढमणो पुरिसो जणणि पि वच्चए पावो । भइणि पि कुणइ जायं कुबेरदत्ता व्व मूढमणो ॥६२।। 2010_02 Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमो उद्देसओ ११७ तओ पभवेण भणियं-'अहो महाणुभाव जंबुकुमार ! को सो कुबेरदत्तो, कहं च तेण जणणिगमणं कयं, सहोयरा पुण जाया कय त्ति ? तओ जंबुणामेण भणियं निसुणसु' । [कुबेरदत्ताकहाणयं ।] अवि य- उत्तुंगधवलपायारपरिगया पवरगोउरसणाहा । लडहविलासिणिजुत्तो परिकलिया देवभवणेहिं ॥६३॥ अत्थि जएसु पसिद्धा जिणिंदवरथूहमंडियहिरामा । पासजिणजमभूमी नयरी महुर त्ति नामेण ॥६४॥ तीय य नयरीए आसि कुबेरसेणा नामा एक्का गणिया । अन्नया य सा आवन्नसत्ता संजाया । थोवडियहेहिं य बाहिउं पयत्तो तीए सो गब्भो । दंसिया य जणणीए विज्जाणं । तेहिं भणियं-'जमलगब्भदोसेणं इमीए बाहा संजो(जा)य त्ति । न उणं अन्नो को वि वाहिविसेसो' । तओ एवं च मुणियपरमत्थाए जणणीए सा भणिया-'पुत्त ! मा तुह पसूइसमए देहपीडागारी इमो जमलगब्भो हवेज्जा । ता इमं केण वि दिव्वजोएण गालेमो से गब्भं । तओ निरुवहयसरीरा तुमं हविस्ससि, परिभोगारिहा य । पुत्तभंडेण य न किं पि अम्हाण तहाविहं पओयणमत्थि' । तीए कुबेरदत्ता एन पडिवन्नमिमं वयणं ति । भणिया य जणणी-'अंमा ! अन्नो को वि परूढगब्भे विणिवाडिज्जमाणे सरीरविणिवाओ भविस्सइ। ता जायाअ(5)णंतरमुज्झिस्सामो'त्ति । पडिवन्नं च तीए । तओ अन्नया य उचियसमएण पसूया सा दारयं दारियं च । तओ जणणीए भणिया सा-'परिच्चइज्जंतु एयाइं बहुदुक्खकारयाइं । मा तुमं एयाणि(णं?) कामुगपुरिसाणं उवहासणिज्जा होहिसि। जहा दुगुणदुगुणं एसा पसवई' त्ति । तओ तीए भणियं-'जइ ते एवं निब्बंधो ता पालिज्जंतु दसअहोरत्ताई। तओ उज्झिस्सामो' । तओ तीए अवच्चनेहाणुराएण दोमुद्दाओ कुबेरदत्त-कुबेरदत्तानामंकियाओ विणिमवावियाओ । पूरे य दसअहोरत्ते मणिरयणसुवन्नपडिपुन्नासु मंजसासु निहित्तमेक्केक्कं तेसिं दारगदारिगाणं । पवाहियाणि य जमुणानईए । तओ तीए पवाहेण भी(ती)रमाणाणि पत्ताणि सोरियनयरासन्ने । तओ तहाविहभवियव्वयाए किं जायं तेसिं? 2010_02 Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुचरियम् सो पावइ तमवस्सं जइ वि विवक्खे जयं सव्वं " ॥ ६५ ॥ [] " वसणावडिओ वि नरो मच्चुमुहादसणविवरपत्तो वि । पुन्नापुन्नाण फलं पावइ अइरेण सव्वो वि" ॥६६॥ [ ] ११८ अवि य- "जं जेण जत्थ जइया पावेयव्वं सुहं च दुक्खं वा । 1 I भणियं च - "पुव्वकयकंमकंडुल्लएण जं जस्स किं पि उक्किरियं । निययनिडाले दुक्खं सुहं व तं तेण भोत्तव्वं" ॥६७॥ [ ] तओ एवंविहभवियव्वयानिओएण सोरियउरे पच्चूससमुट्ठिएहिं दोहिं इब्भवयंसएहिं दिट्ठाओ ताओ मंजूसाओ । गहियाओ दोहिं वि एक्केक्का । नीयाओ य सगिहेसु । तत्थ य निरिक्खियाओ । दिट्ठाणि य ताणि दारग -दारिगाणि अच्चन्तरूवसमंनियाणि । समप्पियाणि य निययजायाणं । तओ निवेइयं जहा पच्छन्नगब्भाओ एयाओ पसूयाओ । कयं च महाबद्धावणयं दोहिं वि वणिएहिं । तओ कमेण सुहंसुहेण य परिवड्ढियाणि । गहियाओ य कलाओ । संपत्ताणि य जोव्वणसिरिं । तओ तेहिं इब्भेहिं नियसंतइनिमित्तं परोप्परमभिमंतिऊण जहा - जुत्तो एएसिं परोप्परं संबंधो । तओ दिन्ना कुबेरदत्तस्स कुबेरदत्ता । तओ एवं च वर्द्धतमणोरहाणं समागओ कल्लाणदियहो वत्तं च महावि- भूईए तंमि दिणे पाणिग्गहणं । तेसिं च इमो कुलायारो जहा - वत्ते विवाहमंगले वहू-वरेहिं जूयकीलापमोओ कायव्वो । तओ ताण वयंस- वयंसियासहियाहिं दोन्नि वि जूयकीलाए कीलिउं पवत्ताइं । तहाविहभवियव्वयानिओएण निज्जिओ तीए कुबेरदत्तो । तओ सहीहिं घेत्तूण तस्स हत्थाओ कुबेरदत्तनामंकियमुद्दा गहणनिमित्तं समप्पिया तीए कुबेरदत्ता । तओ सा निव्वत्तेउं पवत्ता । तओ सरिसरूवपमाणनामगघडणं च पेच्छिऊण चिंतिउं पयत्ता - अहो किं पुण एयाणं कारणं समरूयत्ते मुद्दाणं ? न य मम इमं पइ भत्तारबुद्धी समुप्पज्जइ । ता भवियव्वमिहेत्थ कारणेण । कयाई एस मम भाया हवइ । इमं च एवं परिचितिऊण समप्पियाओ दो वि मुद्दाओ कुबेरदत्तस्स करे तीए । तओ तस्स वि दट्ठूण ताओ तहेव चिन्ता समुप्पन्ना । लज्जिओ य तीए । तहावि किं पि भावं पयंसिऊण समप्पिऊण य तीए संतियं मुद्दं गओ जणणिसयासं । तओ सहसा वि काऊण महानिब्बंधेण पुच्छिया तेण निययसमुत्थाणं । तीए वि गरुयनिब्बंधं नाऊण जहाभूयं कहियं निरवसेसं । तओ तेण भणिया सा- 'अंब ! न सुटु सोहणं तुब्भेहिं समुट्ठियं । जमम्हाण अणज्जमाणाण संबंधो कओ'त्ति । तीए भणियं - 'वच्छ ! 2010_02 Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमो उद्देसओ ११९ नेहमोहिएहिं कयमम्हेहिं एवमेवं । तहावि मा गच्छसु विसायं । हत्थगहणेण जइ परं दूसियाइं तुब्भे । न उण अकज्जसेवणेणं ति । ता विसज्जेमो नियगेहं इमं वह; तुज्झ पुण अन्नं किं पि तहाविहं अविरुद्धसंबंधं काहामो' । विसज्जिया य निययगेह(हे) दारिया । तीए वि जणणी तहेव निबंधेण पुच्छिया, कहियं च जणणीए जहावत्तं । तओ सा अन्नया य इमेण चेव वेरग्गेण सुव्वयगणिणीसयासे पव्वइया । सा य मुद्दा तीए पवत्तिणीवयणेण न परिचत्ता । वच्चए कालो । पढंतीए आगमं, चरंतीए चरणं, भावंतीए भावणाओ, कुणंतीए गुरुवयणं, समायरंतीए तवनियमसंजमं, भावयंतीए संसारसहावं, निंदतीए विसयसंगं, पसंसंतीए जिणिंदपणीयं धंमं ति । एवं च विसुज्झमाणचारित्तपरिणामाए समुप्पन्नं ओहिनाणं । इओ य सो कुबेरदत्तो अन्नया गओ दिसायत्ताए । तत्थ वि संपत्तो महुरानयरीए । घडिओ यं तत्थ कुबेरसेणाए सह निययजणणीए । अच्छइ य तीए समं तं तारिसं विसयसुहमणुवंतो, पहव ! जं तं तुब्भेहि पसंसिज्जइ । तओ सो एवं तत्थऽच्छमाणो दिट्ठो तीए कुबेरदत्ताए साहुणीए ओहीन्नाणेण । चिंतियं च तीएअहो ! कट्ठमन्नाणं । पेच्छ पेच्छ केरिसं इमाणं संजायं । भणियं च- "अन्नाणंधो जीवो जत्थ भयं तत्थ मग्गए सरणं । अग्गि कीडपयंगा पडन्ति अन्नाणदोसेणं" ॥६८॥ [ ] अन्नेहिं वि भणियं "किं कटुं अन्नाणं........एत्थ निंदियं लोए । ____ अन्नाणंधो जीवो न मुणइ कज्जं अकज्जं वा" ॥६९॥ [ ] ता सव्वहा वि संसारमूलं इममन्नाणं ति । अन्नाणंधा य पुरिसा दुक्खेण विसएसु निरज्जति । भणियं च- "दुक्खं नज्जइ नाणं नाणं नाऊण भावणा दुक्खं । भावियमई वि जीवो विसएसु विरज्जए दुक्खं". ॥७०॥ [ ] ता सव्वहा वि अपसंसणीया इमे विसया । उभयलोयविरुद्धं पि समायरंति पाणिणो इमेहि मोहियमाणसा । ___ 2010_02 Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० अवि य- "गंमागंमं न याणइ वच्चावच्चं अहेयहेयं वा । विसयविसवेयघत्थो पुरिसो पेओ व्व पच्चक्खो" ॥७१॥ [ ] ता पेच्छ केरिसं उभयलोयविरुद्धं इमाण समावन्नं । तहा वि जइ संबोहिज्जंति एयाई ता सोहणं हवइ । इमं च एवं परिचिन्तिऊणं सव्वं साहियं पवत्तिणीए । तओ ताण संबोहणत्थं समुच्चलियाओ अज्जाओ । पत्ताओ य महुरं नयरिं । पविट्ठाओ कुबेरसेणाए गेहं । मग्गियाय ताहिं सा वसही । तीए वि सप्पणयाए होइऊण भणियाओ ताओ एवं - ' भगवईओ ! अहं केवलं जाईए गणिया, न उण समायारेण । जा(ज)ओ संपयं सुकुलवहु व्व एक्कपुरिसगामिणी अहं । ता अच्छह मम अणुग्गहं काऊणं ।' ति । ठियाओ य ताओ तत्थ । तीए य गणियाए एक्को बालो पुत्तो । सा य तं बहुसो साहुणीणं सयासे मोत्तूणं गिहवावारं समणुचिट्ठइ । कुबेरदत्ता वि साहुणी ताइं दारगस्स जणणि-जणयाई निरारंभाई दट्ठूण जहा तेसिं समवणगोयरं समभिगच्छइ, तहा तं बालयं तेसिं संबोहनिमित्तं खेलावणच्छलेण एवं परियं । अवि य- भाया भत्तिज्जो मे पुत्तो तह देयरो तुमं बाल ! । तुझ पिया मम भाया ससुरो पुत्तो पई जणओ ॥७२॥ जंबुचरियम् माया वि तुझ बालय ! मम जणणी सासुया सवक्की य । भाउज्जाया य तहा बहुया इह चेव नायव्वा ॥ ७३ ॥ तओ इमं च एरिसं तेहिं निसामिऊण परिखेलावणं जायकोऊहलेहिं दोहिं वि वंदिऊण पुच्छिया सा अज्जा - 'भयवइ ! किमेरिसमसंबद्धकित्तणं तुमं कुणसि ? किं को वि एत्थ परमत्थो ? किं वा अघडमाणं पि एवमेवं तुमं पयंपसि एयस्स दारगस्स विणोयणत्थं ?' तीए भणियं - 'सव्वमिणं सच्चं' । तेहिं भणियं - 'कहं चिय ?' । तओ तीए ओहिनाणावलोयणेण सव्वं परिकहियं । जहा जउणाए पवाहियाई । जहा सोरियपुरे पत्ताइं । इब्भेहिं गहियाई । पुणो वि दो वि परोप्परं विवाहियाई । पयंसिया य सा मुद्दा कुबेरदत्तानामंकिया तेसिं । जाओ य तेसिं पच्चओ जहा एवमेयं न अन्नहा इमं भवइ त्ति । तओ निंदिउं समादत्तो कुबेरदत्तो अप्पाणं । अवि य- हा हा हो दुट्टु कयं अयाणमाणेण मूढचित्तेण । महइमहंतं पावं दोण्ह वि लोयाण जमपत्थं ॥७४॥ 2010_02 Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमो उद्देसओ १२१ जलणे जले समुद्दे पायाले वावि जइ वि पविसामि । तह वि मम नत्थि सुद्धी निग्घिणकंमस्स पावस्स ॥७५॥ पावाण य पावयरो सव्वाहमाण तह य निद्धंमो । दुट्ठाणमहं दुट्ठो निल्लज्जाणं पि निल्लज्जो ॥७६॥ ता किं मम इह सेयं निग्घिणकंमस्स पावगारिस्स । अहवा जइ परमरणं एवं मम विनडियस्स भवे ॥७७।। तओ इमं च भणमाणो जाव मरणत्थं पहाविऊण घरवावीए अत्ताणं पक्खिविहि ताव घरिओ अज्जाहिं । भणिओ य-'धम्मसील ! किमेयं तए बीयमकज्जं समाढत्तं ? ।' अवि य- एक्कं तावेयं चिय बीयं कह कुणसि सोम ! अप्पवहं । किं बुड्डो बुड्डो च्चिय ताव तलं पेच्छसे मुद्ध ॥७८॥ एक्कं घोरं पावं तं चेव इमं तहा कुणसि मुद्ध । जायंमि पलीवणए तणपूलं खिवसि तं मुद्ध ॥७९॥ एक्कं कयं अकज्जं बीयं पुण निंदियं इमं कुणसि । मालस्स निवडियस्स य एसो उप्पिट्टणपहारो ॥८०॥ अन्नं च-ण कयाइ पावपुंजो पावेण कएण सुज्झए सोम ! । रुहिरविलित्तं वत्थं किं सुज्झइ सोणिएणेव ॥८१॥ सुणएण भक्खियस्स य जरखेडीपिट्टणं कयं तुमए । जइ डसिओ सप्पेणं किं दिज्जइ तस्स विसपाणं ॥८२॥ अन्नं च जं तए भणियं जलाइसु निवडियस्स य नत्थि मम सुद्धी ता किं तत्थ पावसुद्धी दिट्ठा ? अवि य- जल-जलणे य समुद्दे निवडियमेत्तस्स नासए जीयं । पावं पुणो तह च्चिय जीवेण समं परिव्वयइ ॥८३॥ सुज्झइ जह पुण एयं पावकलंकं तहा सुणसु सोम ! । तवसंजमनीरेणं भावण्हाणेण हायस्स ॥८४॥ ता चइऊणं सव्वं गुरुपामूलंमि कुणसु वयगहणं । कुणसु य तह सज्झायं जइ सुद्धि इच्छसे सोम ! |८५॥ 2010_02 Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ जंबुचरियम् विगईपरिहरणपरो वित्तीसंखेवणं तहा काउं । अविउत्तो सज्झाए पालेसु महव्वए पंच ॥८६।। दसविहजइधम्मजुओ अणसणविहिणा उ देहघरमुक्को । पाविहसि परं ठाणं अकलंको जत्थ तं होसि ॥८७॥ तओ इमं च निसामिऊण जायगुरुसंवेगो, भणिऊण य-'इच्छामो सोहणा पडिचोयणा' । परिचइऊण य सव्वं घरविहवसारं दमघोसगुरुपायमूले गुरुकंमिंधणपज्जलियजलणगहियसामन्नो तवनियमसोसियंगो विहरिऊण य सव्वपरियायं अणसणविहिणा कालमासे कालं काऊण गओ देवलोयं कुबेरदत्तो त्ति ॥ छ । कुबेरसेणा वि तस्स जणणी गरुयवेरग्गानलपरिडज्झमाणहियया अज्जाणं सयासे गहियपरमधंमुवएससारा भावियजिणवयणमई गहियसावयधंमवया साविगा जाय त्ति ॥छ।। ता एसो परमत्थो एएसिं पहव ! दुट्ठविसयाणं । जाणंतो को वच्चउ विसयाण वसं नरो एत्थ ॥८८॥ पहवेण तओ भणियं एवं एयं न एत्थ संदेहो । किं तु तहावि सुणिज्जउ जं सुव्वइ लोयसत्थेसु ॥८९॥ जणणिजणयाण जायइ तित्ती किर लोयपिंडदाणाओ । नित्थारिज्जइ जणओ पुत्तेणं कुगइपत्तो वि ॥१०॥ कीरइ विगयरिणो किर जणओ पुत्तेण सग्गगामी य । ता एयं पि पमाणं कीरउ संवच्छरे कइ वि ॥९१॥ एयं निसामिऊणं भणियं वियसन्तवयणकमलेण । अह जंबुणामएणं पहव ! विमूढाण मयमेयं ॥९२॥ जइ तारिज्जइ जणओ पिंडपयाणेण कुगइमग्गाओ । पिंडाभावे य धुवं टालिज्जइ हंति सग्गाओ ॥१३॥ एवं चिय पुव्वकयं पुन्नं पावं च होइ उ निरत्थं । एवं च इमं जायं धम्मकरणं तु....अकयत्थं ॥९४॥ 2010_02 Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२३ अट्ठमो उद्देसओ एयंमि पसंसिज्जइ लोइयसत्थेसु नूण सयलेसु । नाउयाई ताई अह भणसि इमं कहं देयं ।।९५॥ आएयाइं एवं अह भणसि इमं तु हंदि तो जायं । जं जेण कयं कंमं भोयव्वं तेण तमवस्सं ॥९६।। जेण सुहं धारेज्जइ कंमं संसिज्जई सुहं सत्थे । सुहमसुहाणमवस्सं तो जायं नूण कस्स फलं ॥९७।। एवं च पिंडदाणं अकयत्थं नूण एत्थ संजायं । जं पुण तहावि कीरइ तं मूढपरंपरा एसा ॥९८॥ एसा वि अणाएया य मूढसंताणमालिया नूणं । जेणुवएसेणेसिं कट्ठतरागं लहइ मोया(लोओ) ॥१९॥ भणियं च- "किं एत्तो पावयरं संमं अणहिगयधम्मसब्भावो । अन्नं कुदेसणाए कट्ठतरागंमि पाडेइ" ॥१००॥ [ ] अह भणसि तह वि कीरइ होज्ज कयत्थेण हंदि किं तेण । जं जं चिय जेण फलं तं तं चिय विबुहपरिहरियं ॥१०१॥ एत्थ य सुण दिटुंतं जह जणओ घाइ[ओ य] जणयत्थं । दिन्नो सुएण पिंडो मूढेण अयाणमाणेण ।।१०२॥ तओ इमं च निसामिऊण भणियं पभवेण-'अहो जंबुणाम ! को एसो जेण जणओ विणिवाइऊण जणयस्सेव पिंडपयाणं कयं ? कहं वा तं कयं ? ति । तओ जंबुणामेण भणियं-'सोम ! निसुणसु' । अत्थि सुरलोयसरिसा नयरी इह तामलित्तिनामेणं । मणिकंचणरयणजुया धणधन्नसमाउला निच्चं ॥१०३।। तीए समुद्दनामो मायाकुडिलो य निग्घिणो लोही । निच्चं पि असंतुट्ठो आसि समुद्दो व्व सत्थाहो ॥१०४॥ तस्स आसि बहुला नाम एक्का भारिया । ताण य सुओ महेसरदत्तो नाम । गंगिला य नाम महेसरदत्तस्स जाया तेसिं वहू । अन्नया य मरणावसाणयाए 2010_02 Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ जंबुचरियम् जीवलोगस्स समुद्दो मरिऊण तहाविहकंमभवियव्वयाए तंमि चेव विसए महिसो समुप्पन्नो । सा वि तस्स भारिया बहुला मायाकुडिलसहावत्तणओ तीए(?) तहा पइमरणअट्टज्झाणोवगयत्तणओ य मरिऊण अकयपुन्ना तीए चेव तामलित्तीनयरीए सुणिया जाया । तओ सा गंगिला गुरुजणविरहे सच्छन्दासेवणपरा जाया । बहुवावडत्तणओ य महेसरदत्तस्स चंचलरायत्तणओ व जुवइयणस्स । जेण- अथिराइं च(?) चलाइं असंठियाइं सब्भावनेहरहियाइं । __ जुवईणं हिययाई खणे खणे होंति अन्नाइं ॥१०५॥ तओ सा अइचवलत्तणेण सुलहेण इत्थीसहावस्स संपलग्गा परपुरिसे । अच्छइ य तेण समं बहुसो कीलमाणा । अन्नया एगंते कीलंताणि दिट्ठाणि महेसरदत्तेण । तओ दट्टण य पहाविओ तेसिं संमुहं गहियाउहो । संपलग्गं च दोण्ह वि जुझं । तओ संखोहत्तणओ तस्स कयावराहस्स दढपहारेण पहारिओ सो महेसरदत्तेण । थोवंतरे य गंतूण वेयणासमुग्घायविहलो निवडिओ धरणिवढे । तओ महावेयणासंतत्तो चिंतिउं पयत्तो-अहो पेच्छ पेच्छ केरिसं मए समायरियं अकज्जं मूढमइणा । इह लोए चेव जस्स समुवट्टियं फलं ति । तओ एवं च निंदमाणो अत्ताणं मरिऊणं अइकुडिलत्तणओ कंमगईए कत्थुववन्नो ? । अवि य- अप्पा अप्पेणं चिय तक्खस्स(ण) भुत्ताए तीए गब्भंमि । कम्मकुडिलत्तणेणं जणिओ य दुरप्पणा तेण ॥१०६।। जाओ य निययसमएणं । कयं च वद्धावणाइयं सव्वकरणीयं । अन्नया य पिउणो पिंडपयच्छणनिमित्तं कयं तेण महेसरदत्तेण महाभोयणं । सो य जणगमहिसो गहिऊण वावाइओ पिंडपयाणनिमित्तं माहणाणं वयणेणं । सिट्ठो(द्धो?) य बहुप्पयारं । तओ पयच्छियं पिउणो आमिसपिंडपयाणं । निव्वत्तियं होमकंमं दियवरेहिं, परिभुत्ता य माहणा । दिन्नाओ दक्खिणाओ, भुत्तो य सेसजणो । तओ आरोविउं उच्छंगे सुअं उवविट्ठो महेसरदत्तो भोयणत्थं । पढमं चिय जणयउवतप्पणत्थं वित्थरिओ महिसमंसाहारो । समागया य सा जणणिजीवसुणिया । उवविठ्ठा य तस्स पुरओ। खिवइ य तीए वि सो मंसखंडे । अप्पणा य परिभुंजिउं समाढत्तो । एयंमि य अवसरे समागओ जुगमेत्तनिमियदिट्ठी, मासोववासिओ, भिक्खटुं एसणसमीइसमंनिओ गिहपरिवाडीए 2010_02 Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमो उद्देसओ १२५ विहरमाणो भगवं साहू तस्स गेहमि । तओ दट्ठण य तं तहाविहं, उवउत्तो भगवं । नाओ य ओहिनाणेण इमो वइयरो । जाणियं च जहा-भव्वो एसो । होही एत्थ चोयणाए परमोवयारो । तओ एवं चिंतिऊण भणियं साहुणा । अवि य- हा कटुं अन्नाणं पेच्छह संसारविलसियं एयं । जं जाया पइमंसं परिखित्तं भुंजइ सुएणं ॥१०७॥ तओ इमं च निसामिऊण भणियं महेसरदत्तेण-'भयवं ! किमेयं तुमे भणियं ?' तओ साहुणा भणियंअवि य- मारेऊणं जणओ पुरओ जणणीए जणयपिंडत्थ । उच्छंगगहियसत्तू मा भुंजसु जणयमंसाइं ॥१०८॥ तओ इमं च भणमाणो निग्गओ सो भगवं साहू । ठिओ नयरिबाहिरियाए एक्कमि विवित्तपएसे । महेसरदत्तो य चिंतिउं पयत्तो-अहो कहं इमेण साहुणा भणियं ? ता भवियव्वमेत्थ कारणेणं । जओ इमे न भणंति अपरिसुद्धं इमं च । एवं परिचिन्तमाणो गओ साहसयासं अणुमग्गेणं ति । दिवो य भगवं तेण । वंदिओ य भत्तसबहुमाणं । भणिओ स-'भगवं ! किं तुब्भेहिं न गहिया मम गेहे भिक्खा ? कहं वा मंदपुन्नाणं अम्हाणं व घरेसु न पडंति वसुहाराओ? अन्नं च भयवं ! किं तुमे इमं भणियं? जहाअवि य- मारेऊणं जणओ पुरओ जणणीए जणयपिंडत्थं । __उच्छंगगहियसत्तू मा भुंजसु जणयमंसाइं ॥१०९॥ तओ भयवया भणियं, अवि य का सा होज्ज अवत्था संसारुच्छंगपरिगओ जंतू । जा न वराओ पावइ अन्नस्स विडंबणाभूया ॥११०॥ ता सोम ! तुमे रोसो कायव्वो एत्थ नो इमं सुणिउं । भावेयव्वं च तहा विरसं संसारनेउन्नं ॥१११॥ तओ महेसरदत्तेण भणियं-'भयवं ! जहट्ठियपरिकहणे को एत्थ रोसो विन्नायपरमत्थाणं । अजहट्ठियपरिकहणे य किं तुम्ह पओयणं ? | ता भयवं! सव्वं साहसु'त्ति । तओ भगवया वि सपच्चयं साहिप्पायं च जहा जहा तस्स अवगमो भवइ तहा तहा सव्वं परिकहियं । इमं च निसामिऊण जायगरुयसंवेगो संसारभयपरिभीओ जंमणजरमरणवाहि ___ 2010_02 Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ जंबुचरियम् वेयणापरिस्संतो चइऊण घरनिवासं तस्सेव भगवओ समीवे गहिऊण दुद्धरवयं चरिऊण य घोरतवच्चरणं, अणसणविहिणा कालमासे कालं काऊण देवलोगं गओ त्ति ॥छ।। ____ ता पभव ! एवंविहे संसारविलसिए मा मूढपरंपरसमागयासु लोइयकुसुईस परोप्परं विरुद्धासु पुव्वावरविबाहियासु परमत्थबुद्धीए गहणं कुणसु' त्ति ॥छ।। अवि य- अन्नाणंधो लोओ धमं गिण्हइ अहंमबुद्धीए । जं पुण एत्थाहंमं तं गिण्हइ धंमबुद्धीए ॥११२॥ सव्वो च्चिय एत्थ जणो धम्मं किर कुणइ निययबुद्धीए । तस्स य जं परमत्थं तं मूढो न उण जाणेइ ॥११३॥ रागद्दोसपरत्तो नियनियकुग्गाहभाविओ वत्थु । कुमईसु मोहियमणो विवरीओ सव्वहा लोओ ॥११४॥ ता सव्वहा अणाएओ इमो पक्खो । जओ छत्ताइसंठिओ वि हु तण्हाभुक्खाभिभूयहिययो वि । निययघरे वि सुएणं दिन्नं पि न पावए जणओ ॥११५॥ चोद्दसरज्जुपमाणे चउरासीजोणिलक्खगहणंमि । संसरमाणो किं पुण पावउ संसारकंतारे ॥११६॥ जइ सुरवरेसु जाओ महइमहंतेसु रिद्धिपुन्नेसु । ता किं सो पिंडेणं काही असुईसमाणेण ॥११७॥ अह नरए निच्चं चिय दुक्खमहाघोरसंकुले जाओ। ता कत्थ तस्स पिंडो पावउ अहवा वि सो लहउ ॥११८॥ ता सव्वहा वि जाणसु न होइ एसो सुसंगओ पक्खो । मूढजणसत्थविरड्यपरंपरसमागओ नूणं ॥११९॥ अह भणसि तह वि एसो आएओ तह वि बहुमओ पक्खो । बहु-बहुमयपक्खाणं को पक्खो तेसि गहणिज्जो ॥१२०॥ मन्नंति के वि जीवं के वि य संसन्ति पंचभूयमयं । साम( सम ? )तंदुलसारिच्छं धडविडसरिसोवमं के वि ॥१२१॥ अंगुट्ठपव्वरेहाए के वि मन्नंति नूण सारिच्छं । एमाई पक्खाणं को परखो सेसि रमणिज्जो UPPPM ____ 2010_02 Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अम उद्देओ जड़ घडविडयसमाणो तंदुलरेहाए अह समो होज्जा । ता कीस एस वावी हवइ य सयलस्स देहस्स ॥ १२३ ॥ केसनहाइअचेयणठाणं मोत्तूण सेस तणुवावी । [ जीवो ] जिणपन्नत्तो होइ न रेहाइओ तम्हा ॥ १२४॥ पुढविजलानलमारुयआयासविणिमिओ वि नो जम्हा । भावे वि जेण तेसिं देहस्स अचेयणत्त त्ति ॥ १२५ ॥ अह भणसि तत्थ वाऊविनिग्गओ तेण हो अचेयन्नं । सोनू तत्थ विज्जइ लोयव्वावी य सो जम्हा ॥ १२६॥ अह भणसि को वि सुहमो विणिग्गओ तेण तं अचेयन्नं । अम्हेहिं सो वि जीवो भणिओ सव्वन्नुदिट्ठीए ॥१२७॥ तम्हा उ एस सिद्धो परभवगामी य दुक्खसुहभाई । जीवो अणाइनिहणो दिट्ठो सव्वन्नुणा नूणं ॥ १२८ ॥ भणियं च एत्थ जम्हागमभंगपसत्थसत्थनिउणेहिं । सव्वन्नुवयणवित्थरपयाणुसारीहिं साहूहिं ॥ १२९ ॥ सिद्धं जीवस्स अत्थित्तं सद्दादेवाणुमइ । भावइ ( ? ) सरभूइभावस्स सद्दो हवइ केवलो ॥१३०॥ जो चिंतेइ सरीरे नत्थि अहं स इव होइ जीवो ति । नहि जीवंमि असत्ते संसयउप्पायओ अन्नो ॥१३१॥ जीवस्स एस धंमो जा ईहा अत्थि नत्थि वा जीवो । थाणुमणुस्साणुगया जह ईहा देवदत्तस्स ॥१३२॥ जायंते केवि नूणं विमलगुणगणे पालिऊणं सुधीरा, जेसिं सव्वं पि एवं परभवजणियं दिव्वसोक्खं विसालं । संपत्तं तं चएउं विगयरयमला भोक्खसोक्खेक्कचिंता, मोहं हंतूण सिग्घं जिणवरवयणे हुंति ते सुठु लीणा ॥१३३॥ इय जंबुनामचरिए उद्देसो पहवउत्तरभिहाणो । एसो होइ समत्तो एत्तो य परं पवक्खामि ॥१३४॥ 2010_02 १२७ Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ नवमो उद्देसओ ॥ एत्थंतरे य भणियं निब्भरअणुरायसहरिसमणाए । लज्जोणयवयणाए सिंधुमईनामभज्जा ॥१॥ पियसहिओ ! एस म्हं होज्ज पिओ नूण करिसगसमाणो । जह सो पच्छायावं पत्तो तह पाविही एस ॥२॥ निसामिऊण वियसंतवयणपंकएण भणियं जंबुणामेण - 'को सो मुद्धो करिसगो, कहं वा पच्छायावं संपत्तो' त्ति ? । तओ तीए भणियं अवि य- धणधंनगुणसमिद्धो कोडुंबियपवरसेविओ निच्चं । अत्थि इह महविसए नंदणयं नाम वरगामी ||३|| तत्थ य एक्को दालिद्ददुक्खाभिभूओ निवसइ कोडुंबिओ । तस्स य अत्थि सयलकुडुंबभारपरिसहणक्खमा सययं चिय छंदाणुयत्तणपरा य समसुहदुक्खविहवा एक्का भारिति । एवं च तेसिं गरुयनेहाणुरायबद्धहिययाणं करिसगवित्तीए गच्छइ कालो । अन्नयाय सा तस्स भज्जा पसूया दारयं । तओ तस्स जंमेण हरिसतोस - निब्भराई जायाइं दो वि ताई । निबद्धा य आसा - किर एस अम्हाणं वुड्ढभावगयाणं अंधलट्ठियावलंबणभूओ होही, कुलसंतइकरो य । जह य पईवो पयडइ सयलं वि घरोयरं सुपज्जलिओ । तह किर कुलमुज्जोयइ सुयजम्मो एत्थ लोगंमि ॥४॥ तओ एवं च बद्धासेहिं सव्वहा सव्वपयत्तेण विद्धि नीओ सो तेहिं । संपत्तो य जोव्वणं । अन्नया य खणभंगुरत्तणेण दुट्ठसंसारविलसियस्स, मरणपज्जवसाणयाए जीवलोगस्स, तडिविलसियसमचवलत्तणेण आउयस्स, उवरया सा तस्स कोडुंबियस्स भज्जा । गहिया य ते पियापुत्ता महासोएण । कयं च तीए सव्वं मयकंमं । अन्नया य 2010_02 Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमो उद्देसओ १२९ भणिओ सो पुत्तेण-'ताय ! न वहइ ते सरीरं विणा कलत्तेण, सीयइ य सयलं कुटुंबयं । ता कुणसु कलत्तपरिग्गहं तुमं' ति । तओ एवं च बहुसो तेण चोइज्जमाणेण अन्नया भणिओ निययमित्तो-'जहा मम कएणं कं पि दारियं वरसु' त्ति । पडिवन्नं च तेण । पत्थेइ य तस्स कएण कोडुबिए । तओ ते नेच्छंति । भणंति य-'तस्स पुत्तो सव्वघरसामी जोवण्णत्थो । सो य अप्पणो परिणयवओ वट्टइ, अन्नसुयउप्पत्तीए य संसओ । ता कहं तस्स दारियं पयच्छामो ?' । एयं च सव्वं तस्स परिकहियं मित्तेण । तओ सो चिंतिउं पयत्तो-पेच्छ केरिसं जायं? । ता किमेत्थ करणीयं ? । अह वा वावा[ए] मि इमं पुत्तं कलत्तागमविग्घभूयं । अन्ने पुत्ता मम कलत्तसंगहेण भविस्संति । तओ एवं च तस्स मारणोवायं परिचिंतिज्जमाणो गओ सो छेत्तं परिवाहणनिमित्तं सुसंगोइयपत्तलधारपरसू । मारणोवायपरिचिंतणेण य सुन्नहिय-यनयणो परिणयवयसा संपरिवाहिउं च पयत्तो नंगलेण । परिचितइ य कह इमो वावायव्वो, कह वा लोए न होही वयणिज्जं । एवं च पावेक्कअज्झवसाणोवगओ सव्वहा परवसहियओ सो जाओ । इमंमि य अवसरे *......नूणमेस अन्नसासपइरणनिमित्तं इमं निप्फन्नं सालिच्छेत्तं नंगलेण सुभिन्नं इति । तो दुट्टकयमिमेणं । इमं च परिचिंतेमाणेण भणियमणेण-'अहो ताय ! कह तुमे इमं विवरीयं संजायं । अजायस्स कएण जायं विणासियं ति ।' अवि य-संसइयस्स कएणं निस्संसइयं कहं इमं चयसि । मु(मू )ढो तुममच्चत्थं न मुणसि कज्जं अकज्जं वा ॥५॥ इमं च निसामिऊण तेण चितियं-अरे नाओ अहमिमेणं । जओ जाव समागयचित्तो अप्पाणं गोविउं पयत्तो । ताव दिटुं तं सालिच्छेत्तं । परिवाहियं दद्रुण पडिबुद्धो तस्स वयणेण । तओ चिंतिउं पयत्तो हा दुटु मे चिंतियं । कहं पावेण विलित्तो मे अप्पा । सोहणं च इमिणा भणियं, तहा-अजायस्स कए कह सुजायं विणासिहसि । जा पेच्छ कह न इमो सव्वहा मम हियकरणेक्कचित्तो तणओ भविस्सकलत्तसुयकएणं वावाइओ होतो । तओ एवं च महापच्छायावग्गिणा परिडज्झमाणो सो अप्पाणं निदिउं पयत्तो । ता जह सो संतत्तो पच्छायावेण तह तुमं पेच्छि ! । संतमसंतस्स कए चयमाणो नाह ! तप्पिहसि ॥६।। ★ अत्रादर्श कियान् पाठः पतितः प्रतिभाति, ततोऽर्थानुसन्धानं न सम्यग् ज्ञायते । 2010_02 Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० जंबुचरियम् ___ तओ इमं च निसामिऊण भणियं जंबुनामेण-'मुद्धे ! निसुणसु, अवि य' हत्थिकलेवरलुद्धो व्व वायसो नो अहं भवसमुद्दे । अत्ताणं पाडेमो विसयाण कएण तुच्छाणं ॥७॥ तीए भणियं-'कह सामि ! वायसो सायरे गओ निहणं ?' भणियं च जंबुणामेण-'सुण मुद्धे ! एक्कचित्तेण जिणसासणम्मि* ................' विंझधरावरकलिया अडवी विझअ(5)डवी अत्थि..............॥ मेहरवफुरियकेसरिविमुक्कहुंकारसद्दपरिभी..............समंमि वणहत्थी । पडिओ धस त्ति कह वि हु नियंवपहार[ निययमहाराहार?]पहरनिद्दलिओ। परिमुक्को पाणेहिं निवडियमेत्तोत्थ सो तस्स ॥८॥ ...........णेणं सो घणकंदरविवरगब्भसंपत्तो । दिवो य वायसेणं कह वि हु गंधाणुसारेण ॥९॥ दट्ठणं परि........य पुरिसो व्व जह निहिं पत्तो । चिंतेउं च पयत्तो एवं सो वायसो तत्थ ॥१०॥ कह कह वि किलेसेणं पत्तं जंमस्स नूण फलमेयं । ता भुंजामि जहिच्छं एयं वणवारणं एत्थ ॥११॥ परिचिंतिऊण एवं कह वि पविट्ठो अवाणविवरेण । भुंजइ य जहिच्छं से फसफोफसमंसरुहिरोहं ॥१२॥ चिन्तइ य अहो पत्तं सपक्खपरपक्खवज्जियं एयं । सग्गो व्व निरुवसग्गं पुन्नेहिं मए इमं ठाणं ॥१३॥ ता मम एत्थेव सया सेयं ठाणंमि अच्छमाणस्स । एवं विचिंतिऊणं परितुट्ठो सो ठिओ तत्थ ॥१४॥ अगणियपरिणामभओ जावच्छइ वायसो तहिं तुट्ठो । ता सूरकिरणतवियं संकुइयमवाणविवरं ति ॥१५॥ ★ अत्र मूलादर्शभूतताडपत्रस्य कतिपयाः पंक्तयः परिभ्रष्टाक्षराः संजाता:, अतोऽस्पृष्टार्थोऽयं पाठोऽत्रावबोद्धव्यः । 2010_02 Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो उद्दे तह विहु आमिसलुद्धो न गणइ थेवं पि सो भयं तत्थ । जा पत्तो घणसमओ समंतओ तह वि संतावो ॥१६॥ जलहरपरिमुक्कोदगनिन्नुन्नय[ धरणि? ] भरियभुवणयलो । तं जलपवाहखित्तं पत्तं रेवानई सययं ॥ १७॥ वहिऊण तीए खित्तं महासमुद्दे अणोरपारंमि । जलवीइतरंगेहिं हीरइ तं सायरजलेण ॥ १८ ॥ जलकल्लोलनिरंतरविलुप्पमाणे कडेवरे कह वि । पल्हलिऊण अवाणं विणिग्गओ वायसो भीओ ॥ १९ ॥ पेच्छइ अणोरपारं जलवीइतरंगहल्लकल्लोलं । रुद्दं महासमुद्दं समन्तओ नीरपरिपुन्नं ॥२०॥ दण सो विसन्नो दुल्लंघं गयणगोयराणं पि । भीमं महासमुद्दं गज्जंतं जलतरंगेहिं ॥२१॥ भयविभलो य अह सो काउ काउ त्ति वाहरेमाणो । आगयपुणग्गएहिं तत्थेव कलेवरे निलइ ॥२२॥ वीईतरंगपहयं इओ तओ तं पि तत्थ हीरंतं । भीमसमुद्दावडियं झत्ति न नायं कहिं पि गयं ॥ २३ ॥ मयरहरुच्छंगगओ इओ तओ सो वि कह वि भमिऊण । तत्थेव गओ निणं भीमावत्तंमि मयरहरे ||२४|| ता मुद्धे ! वारणवायसो [ व्व] विसयामिसंमि संहिद्धो । वच्चामि न हं निहणं भीमावत्ते भवसमुद्दे ॥२५॥ सव्वं चइऊणं गच्छंति विरागं, पालिंति गुणोहे जे केवि नरा ते ||| ॥२६॥ इय जंबुणामचरिए सिंधुमईदत्तउत्तरभिहाणो । उस परिकहिओ तो य परं पवक्खामि ॥ छ ॥ ॥२७॥ 2010_02 १३१ Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ दसमो उद्देसओ ॥ इत्थंतरे य भणियं सहरिसमणुरायनिब्भरमणाए । लज्जोणयवयणाए दत्तसिरीनामभज्जाए ॥१॥ पियसहिओ एस म्हं होज्ज पिओ नूण वानरसरिच्छो । जह सो पच्छायावं पत्तो तह पाविही एसो ॥२॥ तओ इमं च निसामिऊणं वियसंतवयणकमलेण भणियं जंबुणामेण-'को सो मुद्धे ! वानरो कहं वा पच्छायावसंपत्तो ?' त्ति । तीए भणियंअवि य- मज्जंतथोरवारणकवोलमयदाणसंचलियसलिला । गुरुमहिसवंद्रपमुइयकीलंतुच्छलियकल्लोला ॥३॥ अत्थि जलनियरपुन्ना बहुजलयरसेविया अइमहंता । भागीरहि त्ति सरिया बहुभंगा दुट्ठमहिल व्व ॥४॥ तीए [य] तडे ऽत्थि वरो तुंगो साहापसाहपडिपुन्नो । वंजलदुमो महप्पा कलिओ फलकुसुमनियरेण ॥५॥ एक्कं वानरजुयलं कीलंतं कह व तं समारूढं । पडिओ य पमाएणं कह वि हु सो वानरो तत्थ ॥६॥ जाओ य दिव्वरूवी पडणपभावेण सो वरो पुरिसो । दिट्ठो य वानरीए दिव्वरुई सो वरजुवाणो ॥७॥ तीए वि तओ(?) खित्तो अप्पा जाया सा इत्थिया य वररूवा । दट्ठण हरिसियाई दिव्वकुमारोवमं रूवं ॥८॥ वानरनरेण भणिया सा नियदइया पुणो वि अत्ताणं । खिप्पउ सुयणु ! दुमाओ देवत्तं जेण पावेमो ॥९॥ JainEducation International 2010_02 Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३३ दसमो उद्देसओ अह भणिओ सो तीए माणुसरूवेण भुंज वरभोए । किं ते संसइएणं दिव्वेण वि देवरूवेणं ॥१०॥ एवं निवारिएण वि खित्तो अह तेण तक्खणेणऽप्पा । जाओ वानररूवो निवडियमेत्तो पुणो चेव ॥११॥ पारद्धिनिग्गएण य दिट्ठा सा इत्थिया नरिंदेण । रूवकलिय त्ति काउं निरूविया सा महादेवी ॥१२॥ अट्टज्झाणोवगओ एगागी दिव्वरूवपरिभट्ठो । नियदइयाइ विहीणो कलुणो सो वानरो जाओ ॥१३॥ सो निदिउं पयत्तो पेच्छ मए केरिसं इमं रइयं । अधुयकए [परि]चत्तं पेच्छ धुयं कह निहीणेण ॥१४॥ नियमइविगप्पियमिणं अक्खाणं सुयणु ! जइ वि तुह कहियं । तह वि निसामसु इण्ही उवणयमिणमो परं वोच्छं ॥१५॥ जह मणुयत्तणभट्ठो पत्थितो वानरो अहियलच्छि । एवं तुमं पि पिययम ! पत्थितो सिद्धिसोक्खाई ॥१६॥ धणधन्नपरियणस्स य इमाण तह रूवजोव्वणधरीण । दिव्वाणं विलयाणं चुक्को तप्पिहिसि तं पच्छा ॥१७॥ ता सुयणु ! भुज भोए इमाहिं सह सुंदरीहिं तं ताव । परिणयवयो य पच्छा पव्वज्जं कुणसु तं धीर ! ॥१८॥ तओ इमं च निसामिऊण भणियं जंबुणामेण-'मुद्धे ! निसुणसु'अवि य- इंगालदाहगो विव नाहमतित्तो कुसग्गजलसरिसे । भोए अभिवंछेमो तुच्छे संसारफलभूए ॥१९॥ तीए भणियं इंगालदाहगो कह कुसग्गनीरेण । अहिवंछइ किल तित्ति ? सुण मुद्धे ! भणियमह तेण ॥२०॥ अत्थि कलि( लिं)गा विसए गामो अंबाडयं ति नामेणं । तत्थेक्को किल पुरिसो जीवइ इंगालकंमेणं ॥२१॥ 2010_02 Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ जंबुचरियम् अह अन्नया कयाई संतावियसयलसत्तसंघाओ। पत्तो खलो व्व गिम्हो नि?रखरवायसठूलो ॥२२॥ फरुसो उव्वेवणओ गिम्हो णिद्दहइ सूरकरजलिओ । पलयानलो व्व नज्जइ सयलं भुवणयलजंतुयणं ॥२३।। वाओलिकयवडाओ संतावियसयलभुवणजंतुयणो । गिम्हच्छलेण नज्जइ पत्तो जं रक्खसो एसो ॥२४॥ एयारिसंमि काले समन्तओ सूरकिरणपज्जलिए । मज्झण्हे सो पुरिसो विणिग्गओ निययगेहाओ ॥२५॥ गहिऊणं सो सलिलं पत्तो गिरिपायसंठियं एक्कं । वणसंडमइमहंतं मुक्कं सलिलं तहिं तेण ॥२६॥ पलिछिन्ना तत्थ तरू रइया रासी महंतकट्ठहि । पज्जालिओ हुयासो असोयवरपल्लवसरिच्छो ।।२७।। गिम्हरविकिरणतत्तो उवरिं पासेसु जलणसंदड्डो । तण्हाभिभूयदेहो सलिलं तं जाव संपत्तो ॥२८॥ ता पेच्छइ तो सलिलं वानरजूहेण गिरिनिगुंजाओ । आगंतूणं पीयं नीसेसं कह व चवलेण ॥२९।। अह सो धस त्ति पडिओ मुच्छावसविम्हलो महीवढे । गिम्हखरफरुसमारुयसभंतओ दड्डनियदेहो ॥३०॥ पज्जलियजलणजालावलि व्व संपसरिया अइमहंता । देहं संडहमाणा तण्हा अइदूसहा तस्स ॥३१॥ एवं तण्हायत्तो मुच्छावसम्व(म्भ)लो परायत्तो । संचलिओ घरहुत्तं कह कह वि खलंतसंचारो ॥३२॥ जह जह सो परितप्पइ तह तह खरपवणदाहसंतविओ । तण्हाए बाहिज्जइ वाहीय व लद्धपसराए ॥३३॥ दूसहतण्हापरिसुसियतालुओ मउलियच्छिजुयलिल्लो । निच्चेट्ठो इव पडिओ पुणो वि तत्थेव सो पुरिसो ॥३४॥ 2010_02 Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३५ दसमो उद्देसओ एवं च निवडियस्स [य] समागया सव्वरी तहिं तस्स । जायं च मेहवुटुं पवाइओ सीयलो पवणो ॥३५॥ सीयलवायवसेण य मुच्छाविरमंमि आगया निद्दा । तण्हावसेण पेच्छइ सुमिणं अह तत्थ सो पुरिसो ॥३६॥ सव्वसि(स)रिसायरा[ण] य कूवतलायाण सोसियं नीरं । तह वि न तण्हावगमो जायइ किर तस्स पुरिसस्स ॥३७॥ दूसहतण्हागुरुवेयणुल्लिओ जाव मग्गए नीरं । जुन्नमयडं अरन्ने पेच्छइ ता कह व जुत्तीए ॥३८॥ दट्टण सहरिसं सो वेगेणुद्धाइओ तओहुत्तं । पेच्छइ तत्थावत्तं पायाले किं पि उज्जोयं ॥३९॥ नाउं किल जलमेयं वारयहंडं निरिक्खि(क्ख)ओ ताहे। पत्तं न कि पि रन्ने दीणत्तं उवगओ ताहे ॥४०॥ गहिऊणं किल दब्भं वलिया अह तेण सहरिसं रज्जु (ज्जू) । अन्ने य दब्भमइया बद्धा किल पूलिया तेण ॥४१॥ ओयारिऊण अयडे पगलियसेसं तु दब्भपूलीओ । जीहाए लिहइ जलं तण्हावच्छेयणनिमित्तं ॥४२॥ ता जो सरि-सर-सायर-कूव-तलायाण सलिलनिवहेण । तित्तिं कह व न पत्तो सो पावउ मुद्धि ! किं तेहिं ॥४३॥ तीए भणियं न एयं भाविज्जइ सामि ! नूण जुत्तीए । धवलच्छि ! एवमेयं तो भणियं जंबुणामेणं ॥४४॥ "एयस्स सुयणु ! इण्ही निसुणसु तं उवणयं कहिज्जंतं । जो पुरिसो सो जीवो तण्हा वुण होइ भोगेच्छो(च्छा) ॥४५॥ कूवो पुण मणुयभवो रज्जू पुण भोगसाहणोवाओ । कूवजलं भोगसुहं दब्भं निंदा य मोहणियं ॥४६॥ 2010_02 Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ जंबुचरियम् दुक्कयकम्मं जाणसु जं तं इंगालडहणवाणिज्जं । भोगसुहासानडिओ न गणइ पुरिसो व्व सो डाहं ॥४७॥ वानरजूहं चोरा तं पि जलं होइ तस्सरिच्छं तु । अवहरिय दविणसारो वच्चइ मुच्छावसं जुत्तं ॥४८॥ वाओलीसंतत्तो मुच्छावसमुवगओ जहा पुरिसो । तह दालिद्ददुहत्तो मुज्झइ पुरिसो व्व सव्वजणो ॥४९॥ सव्वसरिसायराण य कूवतलायाण जह जलं पीयं । तह पत्तं जीवेणं देवेसु इमेसु भोगसुहं ॥५०॥ किंनर-किंपुरिस-महोरगेसु गंधव्व-जक्ख-भूएसु । रक्ख-पिसाएसु तहा तह वि न तित्तिं इमो पत्तो ॥५१॥ नागासुरविज्जुसुवन्नग्गिथणिउयहिदिसाकुमारेसु । वाउकुमारेसु तहा दीवकुमारेसु तह पत्तं ॥५२॥ कप्पेसु बारसेसु वि तहा य गेवेज्जवरविमाणेस् । पंचोत्तरेसु वि तहा पत्ताई इमेण सोक्खाई ॥५३॥ सरिसायरोवमेसु य सुरवरभोएसु जो इमो अम्ह । जीवो कह वि न तित्तो गच्छउ कह जललवसमेहि ॥५४॥ इंगालडाहगो वि य नाहं तणकोडिबिंदुसरिसाणं । भोयाण कारणेणं मुद्धे ! निवडामि संसारे ॥५५॥ गरुयगुणगणाणं पालणे निच्चजुत्ता, परभवजणिएणं कंमुणा के वि नूणं । ववगयगुरुकम्मा ते न मोत्तूण मोहं, जिणवरवरमग्गं हुंति लीणा विसालं" ॥५६॥ इय जंबुणामचरिए दत्तसिरीदत्तउत्तरभिहाणो। उद्देसो परिकहिओ एत्तो य परं पवक्खामि ॥छ॥ ॥५७॥ 2010_02 Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ एगारसमो उद्देसो ॥ एत्थंतरे य भणियं सहरिसकलललियमम्मणगिराए । पउमसिरी भज्जाए लज्जोणयवयणकमलाए ॥१॥ पियसहिओ ! एसऽम्हं होज्ज पिओ नूण कोल्हुयसमाणो । जह सो पच्छायावं पत्तो तह पाविही एस ॥२॥ तओ इमं च निसामिऊण वियसंतवयणकमलेण भणियं जंबुणामेण-'को सो मुद्धे ! कोल्हुओ? कहं वा पच्छायावं पत्तो ?' त्ति । तओ तीए भणियंअवि य- अत्थि धणधन्नगोउलगामागरनगरपट्टणसमिद्धो । विमलजलभरियसरवरनिव्वाणुज्जाणवणकलिओ ॥३॥ पिक्कफलसालिमंडवपसरियसुसुयंधपरिमलायड्ढो । कासवजणमणपूरियहेलाए गुरुयसंतोसो ॥४॥ ढेक्कंतथोरपंडरवसहविसाणग्गभिन्नभिउडियडो। निज्जियवम्महसरनियरपसरसज्झाणसाहुगणो ॥५॥ जिणभवणधवलधयवडनहयलअंदोलमाणवरपवणो । अंगा नाम समिद्धो इह भरहे जणवओ रम्मो ॥६॥ जंमि य जणवए कं कं व दीसइ ? अवि य- धम्मपसाहणजुत्ता पवरजुवाणा य तह मुर्णिदा य । सहलाई तरुवर(?)सिहराई जत्थ य सीमंतराइं च ॥७॥ दियवरनिसेवियाओ सालाओ जत्थ तह य वावीओ । भमुयाओ सालीओ जत्थ य कोडुंबिणीओ य ॥८॥ 2010_02 Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ तत्थ त्थि तुंगवित्थिन्नधवलपायारवलयपरिक्खि (ख)त्तं । धवलहरवाविदीहियगोउरसुरभवणकयसोहं ॥ ९ ॥ संचरमाणविलासिणिनेउररवहंससरिसनिग्घोसं । बहुवन्नजाइसिप्पियजणनिवहुद्दामरमणिज्जं ॥ १०॥ दुब्भिक्खडमरचोरारिवज्जियं निच्चमूसवाकलियं । कंचणरयणसमिद्धं नामेण वसंतपुरनयरं ॥ ११ ॥ जंमि य नयरे केसु पुण कमुवलब्भइ कलहो खग्गलयासुं मासाहारत्तणं जइ मुणीसु । चक्कभमो य कुलाले रन्ने जइ मत्तवालत्तं ॥१२॥ भसणं च मंडलेसुं दोजीहत्तं च जइ पर फणीसु । जलएसु जलपसंगो वक्कत्तं चंदरेहाए ॥१३॥ चंदोवगओ सूरो सोमत्तण दाणओ पयावेहिं । तं भुंजइ जियसत्तू जियसत्तू नाम नरनाहो ||१४|| सो केरिसो ? अवि य सामन्नमुग्गदंडो तह वि विसेसेण पारदारीणं । चंडो जमो व्व कुविओ पाणवहारं कुणइ खिप्पं ॥१५॥ तस्स य नरवइणो तंमि पुरवरे सव्वहा बहुसम्मओ सायरदत्तो नाम इब्भो परिवसइ । सिरिसेणा नाम तस्स भज्जा । तेसिं च वसुपालो नाम एगो पुत्तो असि । विलासवई नाम से तस्स भज्जा । सा य सहियणपरिवुडा अणुसुस्समाणा य दासचेडीहिं विमलाभिहाणं नई ण्हाइउं गया । सा मज्जिउं च पवत्ता जलकीलाए । तओ दिट्ठा एगेण तरुणजुवाणेण माहणेण तत्थ कीलमाणा । तओ तीए रुवाइसयक्खित्तमाणसेण परिचितियमणेण - अहो इमीए रूवाइसयं ! अहो मज्जणविन्नाणाइसयं ! अहो गंभीरत्तणं ! । ता किं इमिणा निरत्थएणं मम माणुसजंमेणं जमेवंविहरूवाइसयसमिद्धाए सह विलयाए विसया न सेविज्जंति । किं बहुणा ! तओ सव्वहा परिविद्धो सो मयणसरपसरनियरेहिं वच्छत्थले । इमंमि अवसरे देवच्चणनिमित्तं कुसुमगवेसणमणी (णा) णं दासचेडीणं कुसुमप्पयाणच्छलेण समासन्नीहूओ सो । दिट्ठो 2010_02 जंबुचरियम् Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगारसमो उद्देसओ १३९ य तीए-अणंगो इव रईए, अणंगनासो इव उमाए, महुमहणो इव लच्छीए, सव्वंगसुंदरावयवो । तओ विवरीययाए मयणस्स, अनिरूवियकारित्तणओ महिलासहावस्स, अथिरत्तणओ य पयईए, विलयासरूवं(व)विलसियस्स । तओ सवियारदिट्ठीए अवलोइओ साहिलासं तीए सो । तओ नाऊण साहिलासत्तणं तेण जुवाणेण नियभावसमप्पणत्थं च पढिया इमा गाहुल्लिया । अवि य- सुण्हायं ते पुच्छसु, एस नई मत्तवारणकरोरु ! । एए य नईवच्छा, अहं च पाएसु ते पडिओ ॥१६॥ तओ बहुमायाभंगकुडिलसहावहिययाए दिन्नं उत्तरं तीए सुहया हुतु नईओ, होउ य रुक्खाण दीहरं आउं । पायपणयाण खिप्पं, पूरेमि मणोरहे सव्वे ॥१७॥ एवं च भणिए गहियभावत्थेण तेण चिंतियं-इच्छइ एसा ममं । जणाउलो इमो पएसो। ता केण पुण उवाएण इमीए नामं थामं च नायव्वं । इमं च एवं परिचिंतेमाणेण दिटुं तेण एक्कं डिंभरूवं तरुसिहरफलावलोयणपरं तीए सह समागयं नईतीरासन्ने । चिंतियं च तेण-किर अन्न-पाणेहिं हीरंति बालया । तओ तरुवराओ घेत्तूण पिक्कसाउफलाइं विदिन्नाइं तेसिं । पुच्छिया य तीए उत्थाणपउत्ती । साहिया य तेहिं निरवसेसा । पविट्ठाणि य उचियसमएण पट्टणं । तप्पभिइं च अच्छंति परोप्परं संगमोवायपराइं । न य से संपज्जइ तहाविहो अवसरो जत्थ परिमिलणं हवइ । तओ समोलग्गिया तेण जुवाणएण एक्का परिव्वाइया । दाणसंमाणेण य उवयरिया बहुप्पयारं । अन्नया दाणमहामंतवसीकयाए तीए भणिओ सो-'पुत्त ! अत्थि किं पि ते पओयणं, ता कहसु जेण तं संपाडेमि ।' तेण भणियं-'न किं पि तहाविहं किंतु सव्वहा पूयणीयाओ जोगिणीओ अम्हाणं ।' तीए भणियं-'अस्थि एवमेयं, तहावि अत्थि किं पि ते पओयणं । गहिया य अहं सव्वप्पयारेण ते । ता पुत्त ! सव्वहा कहेसु इमं जं तुह पओयणं' । कहियं च तेण जहा-'तीए सह संबंधं कुणसु' त्ति । पडिवन्नं च तीए परिव्वाइयाए । गया य नियवेसालंकारविरइयसरीरनेवच्छा तीए विलासवईए गेहं । दिट्ठा य सा कुलालाई धोयमाणी भणिया य-'पुत्त ! कुसलं इमस्स सुंदरविसओवभोगसुहलालणासहस्स सयलसुंदरकामिणीयणकामियजुवाणजणकामियस्स । तीए भणियं-'कुसलं तुम्ह पभावेणं' ति । 'अज्जे ! पाएसु ते 2010_02 Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० जंबुचरियम् पडामि' । तीए भणियं-'सिलीमुहसमाणवरजुवाणाहिलसणिज्जा होह माणुसजम्मस्स य सारकामसुहपसाहणपरा य' । तओ विलासवईए भणियं-'उवविस किं निमित्तं ते समागमणं?' उवविट्ठा य सा । पारद्धा कामकहा । तीए भणिया य-'पुत्त ! किं इमेणं माणुसजंमेणं, जइ इमे माणुसजम्मसारभूया विसया अहिणव-अहिणवा अहिप्पेयजुवाणएहिं समं न सेविज्जंति?' । एवं च भणिऊण बहुहा, साहियं तीए परिव्वाइयाए । जं किंचि तेण जुवाणेण संकेयट्ठाणनिमित्तं संदिलृ ति । तओ चिंतियं च तीए-न सोहणं हवइ छक्कं न गुज्झं । ता पओयंतरेण तस्स संकेयं देमि । इमं च परिचिंतेमाणीए पहया सा रूसिऊण पट्ठीए मसिविलित्तकरयलेण । अक्कोसमाणीए य घेत्तूण सिरोरुहेसु निक्कासिया पच्छिमदुवारेणं ति । गया य परिमिलाणवयणा तस्स जुवाणस्स सयासं । साहियं च तहा-'जहा नेच्छइ सा तुमं । इमं इमं च तीए मम समायरियं' । तओ कामसत्थ नीईकुसलेण गहिओ तेण भावत्थो । जहा-जो एस कसिणकरतलप्पहारो सो अंधारपक्खो । पंचंगुलीहिं पुण करतलपहरखुत्तकसिणाहिं कण्हपंचमीए संकेओ । तत्थ य पच्छिमदुवारेण इमीए निक्कासणसूइएण गंतव्वं । अहो पेच्छ तीए चउरत्तणं ! जं इमा वि वंचिया । संकेयं च दिन्नं । इमं च परिचिंतेमाणेण भणिया सा तेण-'भयवइ ! खमसु जं तुमं परिकिलेसिया मम निमित्तं तीए पावाए । जा य एवं धिट्ठा सा न तीए मम किं पि पओयणमत्थि, ता उवविससु तुमं' ति । गया य सा निययट्ठाणं । सो य समागयाए कसिणपंचमीए पविट्ठो पच्छिमदुवारेण तीए गेहं । दिट्ठा य असोगवणियाए तेण सा विलासवई । गिहावहडेप्पडिओ य सह तीए पारद्धं च तं किं पि जुवाणजणपरिमोहणियं साहुजणविणिदियं पओयणं ति । एवं च अच्छिऊण कामकीलाविणोएण कं पि वेलं तत्थेव निंदावसेण पसुत्ताई ति । पच्छिमजामिणीए य सरीरचिंताविणिग्गएण दिट्ठा ससुरेण पसुत्ता । चिंतियं च णेण-अहो ! दुट्ठसीला इमा वहू, पेच्छ कह परपुरिसेण समं पसुत्ता एसा । इमा य पहाए मिच्छं पडिवज्जिही । ता पुत्तपच्चयत्थं गिण्हामि चलणाओ से नेउरंति चिंतिऊण गहियं । नायं च तीए गहिज्जमाणं । भणिओ य सो तीए जुवाणो नास लहुँ, नाओ तुमं । आवयाकाले य मम साहेज्जं कुणसु' त्ति । गओ य सो । साय गंतूण गेहं पसुत्ता सह भत्तुणा । अच्छिऊण थेववेलं भणिओ सो तीए'अज्जउत्त ! अइमहंतो एत्थ उण्हो उव्वेयाउलीहूयं मम सरीरयं । ता सिग्धं पयट्टसु 2010_02 Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गारसमो उद्देओ १४१ 1 कुसुकु (म) मोयपरिवासियसयलदाहावहारिपवणपरिमलायङ्कं असोगवणियं गच्छामो' । गओ य सो तीए उवरोहेण । पसुत्ताइं च तत्थ ताई । समागया य तस्स निंदा । समाउलहिययत्तणओ न उण इयरीए । तओ थोववेलाए तरमाणहिययाए साकुयं च उट्ठावेऊण भणिओ य सो तीए - 'अहो ! पेच्छ पेच्छ निल्लज्जत्तणं ते पिउणो जमेस मम पसुत्ताए चलणाओ नेउरं गहेऊण एस एस वच्चइ । अहो ! जुत्तं किमेवं तुम्ह कुले, जं ससुरो चलणे लग्गइ वहूए ' त्ति ? । तओ तेण भणियं - ' मा कुणह हलबोलं । मम निंदा समागच्छइ । विद्धत्तणसहावेण विवरीयमई एसो संजाओ । ता पभाए समप्पइस्सइ' त्ति । सा वि बहुहा रुंटिऊण ठिया निययसमएण; पहाया जामिणी । समुट्ठिओ सयलो जणो । भणिओ य पिउणा सो पुत्तो - 'वच्छ ! दुस्सीला इमा ते भज्जा' । तओ कोवानलपज्जलिएण भणियं सुएणं - ' निल्लज्ज ! न लज्जसि तुमं इमाणं निययपंडरकेसाणं, जं तीए चलणगहणं काऊण नेउरं परिगिण्हसि ? । इमं च एरिसं पजंपसि । असमंजसं । तेण भणियं - 'परपुरिसेण समं सुवन्नाए मए गहियं' । तओ विसेसेण कुविऊण भणियं सुएण - 'निल्लज्ज ! न लज्जसि तुमं इमाणं निययपंचभूयाणं; जेण एवं वराईं अयसपयाणेण संताविंतो ममं पि परपुरिसं भणसि ?' । तओ थेरेण भणियं - 'पुत्तं ! पच्चक्खं दिट्ठो मए परपुरिसो । न एयं अन्नहा भवइ' । तेण भणियं - 'अहं सो । कहियं च मम इमाए तीए वेलाए जहा एसो ते जणओ मम चलणाओ नेउरं गहेऊण एस वच्चइ' त्ति । इमं च एत्तियं तीए बहूए उल्लावसंलावं तेसिं इओ तओ कम्मवावारसत्ताए निसामिऊण भणियं मायाकुडिलहिययाए - ' किं मे एस एत्तियं पलवइ असमंजसं ?' । तओ कहियं भत्तुणा इमं से- 'इमं च असंबद्धं एसो तुम्होवरिं जंप 'ति । तओ हालाहलमहाविसगंठि व्व विसमहिययाए भणियं तीए - 'अहमत्ताणं सोहेमि चिट्ठर एसो सिरयंमि' । तओ ससुरेण भणियं - ' एवं कुणसु' ति । इमं च कलयलं सोऊण मिलिओ सव्वो सयणो । तेण य सयणेण य ठाविओ पक्खो निबद्धो क(का) रो | तंमि य नयरे अत्थि एक्को जक्खो ससंनेज्झो, तस्स य चलणाणं विवरेणं गच्छइ सव्वो वि जणो विसंवाए सोहिनिमित्तं । तत्थ जं दोसगारिणं तं सो गिण्हइ जंघा । न पुसे । उवट्टिया य सा तस्स पुरओ पहायसुइभूया कयबलिकम्मा य कारदियहे । उवट्ठिओ उभयपक्खेहिं पि बंधवजणो । सो य माहणजुवाणो तं दियहं पइ काऊण गहियउम्मत्तगवेसो केरिसो जाओमसिणा गुंडइ अत्ताणयं, उद्भूलए य 2010_02 Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ जंबुचरियम् छारधूलिणा, धावए दिसोदिसं, नच्चइ चच्चरेसु, अवरुंडए महिलाओ, आरुहइ कडियलेसु, गिण्हइ उत्तरिज्जाई, पकड्ढए नियंसणाई, पहसइ अट्टट्टहासेहिं । तओ एवं च सव्वहा तेण रंजिओ लोओ । बहुडिंभवंद्रपरिवारिओ विगयवत्थो परिभमइ नयरमज्झेणं ति । तंमि उ दिणे जक्खपुरओ पहाइउत्तिन्नाए तीए अइदक्खत्तणेणुद्धाइऊण वेगेण अ ( उ ) वगूढा सा गाढं तेण । तओ भउव्वेविरपओहराए इव ससज्झसं नोल्लिओ इव । तीए अंबाडिओ य लोएण । पहओ य मुट्ठिप्पहारेहिं । गओ य अट्टट्टहासं कुणमाणओ । तओ सा पुणो विण्हाइऊण उवट्ठिया जक्खपुरओ । कया य सावणा एवं तीए - 'भो भो लोगपाला ! अहो जक्ख ! अईव पच्चक्खो तुमं । ता जहट्ठियं पेच्छसु, जइ मह मायापिईविदिन्नं निययभत्तारं मोत्तूण अन्नो को वि कंठेऽवलग्गो इमं च उम्मत्तगं जं तए वि दिट्टं सव्वजणपच्चक्खं विलग्गं तं पि मोत्तूण, ता गिहसु ममं अन्नहा मुंचसु 'त्ति । इमं च भणमाणी जाव जक्खो तं तीए aणं कुडिलहिययविणिग्गयं सव्वप्पयारेहिं परोप्परं विरुद्धं विमंसिउं पयत्तो, ताव सा सहसा विणिग्गया जक्खजंघाविवरंतरालेण । तओ भणियं च सव्वलोएण - 'सुद्धा सुद्ध'त्ति । गहिओ सहत्थतालं थेरो समागयजणेण । हीलिओ य बहुप्पयारं । तओ सो चिंतिउं पवत्तो-सोहणं जमहं पवंचिओ इमीए दुट्ठसीलाए; जं पुण एसो वि जक्खो पवंचिओ तमित्थ अइमहंतो विम्हउ त्ति । भणियं च - "विसमसहावो मयणो, विसमसहावाओ महिलियाओ य । गुरुरागंधमणाओ, कज्जाकज्जं न याणंति" ॥१८॥ [ ] "रोविंति रुयावंति य, अलियं जंपंति पत्तियावंति । कवडेण य खंति विसं, मरंति नो जंति सब्भावं" ॥१९॥ [ ] तओ इमाए य चिंताए पणट्ठा से निद्दा । इमं च सोच्चासवणपरंपराए निसुयं जियसत्तुनरवइणा । जहाइब्भस्स किल पणट्ठा निंदा । तओ चितियं नरवइणा - सोहणो अंतेउरमहल्लगो सो हवइ । तओ हक्काराविऊण य निउत्तो अंतेउरवारवालो । समागया य रणी । सुवन्नो य जामिणीए दुवारपएसे । तस्स य अंतेउरियावासभवणस्स हेट्ठे रायहत्थी आलाणखंभे निबज्झइ । एगा य महादेवी हत्थिमिंठे पसत्ता । चुंवालयाओ हत्थी करेण तं ओयारेइ । उचियसमएण कयकज्जं पुणो वि तत्थेव पडिनियत्तेइ त्ति । एवं च वच्चए कालो । तंमि दिवसे नियओयरगाओ बहुसो निग्गमणपवेसं कुणमाणी उवलक्खिया तेण I 2010_02 Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगारसमो उद्देसओ १४३ थेरेण । जहा न हवइ एसा सोहणा । ठिओ पसुत्तवेड्डेण । जाणियं च तीए । जहा पसुत्तो किर एसो । तओ निहुयपयसंचारं निग्गया सा मत्तवारणए । तओ घेत्तूण करिणा करेण उक्खित्ता तस्स ठाणस्स विमुक्का धरणीए । समाहया य कुविऊण हत्थिलोहसंकलाए मिठेण चिराओ समागय त्ति काऊण । कहियं च तीए जहा एरिसो को वि अज्ज रक्खवालो समागओ जस्स निद्दा वि नत्थि । ता मम किं पि मा रूसह त्ति । तओ उचियसमएण य कयकज्जा तेणेव विहिणा समागया निययवासहरं । इमं च सव्वं दिटुं तेण । अंतेउरमहल्लएण । तओ चिंतिउं च पयत्तो-पेच्छ एवं परिरक्खिज्जमाणीओ वि एयाओ एवं ववहरंति । किं पुण ताओ अम्ह सच्छंदविलयाओ। ता अवस्समेवमेवं गिहे गिहे, न को वि एत्थ विम्हओ, अक्खेवकरणं वा । अवि य- छड्डुति जणणिजणए, भत्तारं तह कुलं च सीलं च । न मुणंति सुकय-दुकयं, मयणपसत्ताओ महिलाओ ॥२०॥ लंघति फुल्लिसयसंकुलाओ अडवीओ सीहपउराओ । रत्तिं दियहे नूणं, कायाण वि हुंति भीयाओ ॥२१॥ मयणानलतवियाओ, निच्चं परपुरिसबद्धरागाओ। लंघंति जलनिहिं पि य, दीसंति य मुद्धवयणाओ ॥२२॥ गिरिसिहरे दुग्गमकंदरे य लंघंति मयणमूढाओ। विसमं पि कयग्घाओ, मन्नंति समं सकज्जंमि ॥२३॥ अह करिमइंदसप्पे, फुल्लिपिसाए य चोरवंद्रे य । न गणंति महारुटे, नारीओ अन्नसत्ताओ ॥२४॥ सव्वहा एरिसाओ इमाओ किमेत्थ चित्तखेएणं । इमं च परिचिंतेमाणस्स समागया तस्स निंदा । निययसमएण विगलिया जामिणी । पबुद्धो य सव्वो लोओ न उण सो इब्भो। निवेइयं च नरवइणो जहा-सो अज्ज(?) अज्ज वि पवड्डइ (न उट्ठइ) जो किल पणट्ठनिदो त्ति । निवारिओ य परियणो राइणा, जहा-'न पडिबोहणीओ एसो । कारणेण एत्थ भवियव्वं' । तओ विउद्धो निंदाखएण । सद्दाविओ नरवइणा, समागओ य। पुच्छिओ य किं निमित्तं समागया ते निद्दा अज्ज ? तओ तेण भणियं-'देव ! न किं पि तहाविहपओयणमत्थि' । राइणा भणियं-'न निक्कारणा एसा ते निंदा । ता सव्वहा कहसु' त्ति । सेट्ठिणा भणियं-जइ एवं ता देव ! निसुणसु । 2010_02 Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ जंबुचरियम् अवि य- इंधणरहिया महिला, नूनं जालावली सुपज्जलिया । सत्थं च सल्लहीणं, पंको घणसमयपरिहीणो ॥२५॥ कसणिरहिया भुयंगी, विज्जुनिवाओ य जलहरविहीणो । गोत्ति व्व अणवराहा, निल्लोही खग्गधारा या ॥२६॥ जेण- महिलाए असंगयसीलयाण अन्नोन्नदिन्नहिययाण । अन्ने कुणंति तत्तिं, अन्ने पुण वल्लहा हुंति ॥२७॥ तहा य एयाओ एवंविहाओ भवन्तेव । जओ भणियं च "घेप्पइ जलंमि मच्छो, पक्खी गयणमि विज्झए राहा । गहियं पि विहडइ च्चिय, दुग्गेझं महिलियाहिययं" ॥२८॥ [ ] "वेसं पि सिणेहेण व, रमंति अइवल्लहं पि निन्नेहा । कारणवसेण नेहं करिति निक्कारणे नेय" ॥२९॥ [ ] "रमयंति विरूवं पि हु रूवं पुण परिहरंति दूरेण । रूयविरूयवियप्पो किं हियए होज्ज एयाण" ॥३०॥ [ ] तहा देव !- दुज्जणमेत्तीओ इव, जाओ निच्चं पि वंचणपराओ । लंघियनियमज्जाओ, संज्झाराउ व्व अथिराओ ॥३१॥ मयणग्गिपलित्ताओ, जाओ निच्चं पि कलुसियमणाओ । बहुमायाभरियाओ, कुललंछणदाणपउणाओ ॥३२॥ बुद्धिमया पुरिसेणं, ताओ निच्चं पि वज्जणीयाओ । जे पुण न बज्झइ च्चिय, तं सो बज्झिज्जइ इमाहि ॥३३॥ इय दिटुनट्टतडिविलसियाण निच्चं पि अथिररायाण । महिलाणं को गच्छइ, सब्भावं वंचणपराण ॥३४॥ तओ राइणा भणियं एवमेयं । साहिओ तेण सव्वो [त्तिवइ]यरो, जहा-'एवं इमेण पओगेण एगा देवी इमं च एवंविहं कम्मं समायरइ सह मिठेण । ता देव ! इमेण कारणेण मे समागया निद्दा' । तओ इमेण य वेरग्गेण पव्वज्जं पडिवन्नो सो सेट्ठी । नरवइणा य समाहूयाओ सव्वाओ देवीओ । ठिओ य एगंतोयरगे । भणियाओ य देवीओ-'अज्ज मे कुसुमिणं दिटुं । ता तस्स पडिहणणनिमित्तं भिंडमयहत्थि होऊण विवत्थाओ य कयबलिकम्माओ य जहा परिवाडीए विलंघेह एयं । तओ विलंघिओ 2010_02 Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गारसमो उद्दे १४५ सो भिंडमयहत्थी सव्वाहिं । न उण महादेवीए । भणइ य सा - 'बीहेमि अहमिमस्स । तओ नरवइणा पहया पउमनालपहारेण । मुच्छाविहला य निवडिया धरणीयले । नायं च राइणा जहा एसा सा कारगारि त्ति । भणिया य' अवि य- आरुहसि निच्चपगलियमयवसघुमंतमत्तकरिनाहं । भिंडकरिणो यत्ती उप्पिच्छमणा कहं जाया ? ॥३५॥ विसहसि वियसियवयणा पावे ! दढलोहसंकलपहारं । संपइ मोच्छं पत्ता तं छित्ता पउमनालेण ||३६|| I तओ एवं च निसामिऊण भीया सा । जाणियं च जहा -नायाहं नरवइणा । तओ राइणा निरिक्खियं सरीरं । दिट्ठो य पट्ठीए संकलापहारसलवट्टो । तओ महाकोवानलपज्जलिएण नरवइणा देवी मिठो हत्थी य समारोवावियाई छिन्नटंके महीहरे । भणिओ मिठो - ' अरे ! चोएसु हत्थि' । चोइओ य तेण । तओ [ कओ ] एगो चलणो आगासे गयवइणा । भणिओ य जणेण नरवई - 'किमेस तिरियजोणिसमुब्भवोऽवजाणइ वराओ । एत्थ इयाइं दो वि कारगारीणि' । नेच्छियममरिसेण नरवइणा । पुणो चोयाविओ । चोइओ य ठिओ दोहिं वि चलणेहिं आयासे । पुणो वि भणिओ जणेण राया । पुणो वि नेच्छियं नरवइणा । तओ ठिओ एगेणं चलणेणं, तिन्नि पुण आयासे । तओ हाहारवगब्भिणं आकंदियं समागयलोएण - 'अहो किमेइणा हत्थिरयणेण विणासिएण' । इमं च हाहारवं निसामिऊण जणसमूहस्स समागयं चित्तं [ राइणो । भणियं च ] 'नरवइणा - किं रे ! तरसि नियत्तेउं वारणं ।' तेण भणियं - 'देव ! तरामि जइ अम्हाणं दोण्ह वि देसि अभयं । राइणा भणियं - ' एवं दिन्नमभयं तुम्हाण' । तओ तेण कुसपओगेण तहा एक्कचलणोवरिं भामिऊण [ चोइओ] जहा समभूमिभायं समागओ इत्थि त्ति । तओ राइणा संपूइओ कुंजरवरो । समप्पिओ अन्नस्स हत्थारोहस्स । ताईं वि निव्विसयाइं समाणत्ताइं । गयाइं च गामंगामेण अणवरयप्पयाणएहिं दूरं संतरं । अणिया य तेण देवी - ' मा वच्चसु विसायं । अहं ते सव्वप्पयारेण भलिस्सामि' त्ति । तीए भणियं को अन्नो तुमं मोत्तूण पडिवन्नवच्छलो ता सव्वहा तुमं मम गइति । एवं च परोप्परं कयववत्थाइं पयट्टाई दक्खिणावहं । तओ अन्नंमि दिणे पहस्समपरिसंताइं वहिऊण सव्वदिवसं संज्झायाले पत्ताइं एगं नयरं, समावासियाई देवउडीए सुत्ताइं य । समागया य निद्दा । मज्झरत्तसमए य रन्नो गिहे खत्तं पाडिऊण तक्करो 2010_02 Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ जंबुचरियम् एगो घेत्तूण य कणयाहरणकरंडियं विणिग्गओ । [पट्ठिपहावियरायपुरिसो] सो य तक्करो तीए देवउडीए इओ तओ परिब्भममाणो समावडिओ पसुत्ताए देवीए सरीरे । चिंतियं च तीए-अहो सुकुमालत्तणं कस्स वि पुरिसस्स ! ता किमिमेण माणुसजमेण दिव्वफासपुरिसेण समं न परिभुंजंति विसया । तओ चंचलत्तणओ महिलासहावस्स, अथिरत्तणओ नेहाणुबंधस्स, विवरीयत्तणओ य मयणस्स । अवि य- एक्कं गिण्हंति इमा, अन्नं मुंचंति तह रमंतनं । अन्नेण समं नेहो, पयडंति य तह य अन्नेणं ॥३७॥ मारिति नियपई पिय, अन्नस्स कएण मूढहिययाओ । तं पि य अन्नस्स कए, अन्नं पुण अन्नकज्जेणं ॥३८॥ मारेउं भत्तारं, मरंति तह अप्पणा पुणो चेव । चरियं न याणिमो च्चिय, एसिं कह निम्मियं विहिणा ॥३९॥ मारिति पइं पुत्तं, पियरं तह भायरं च मायं च । अत्ताणं च परं चिय, विसयाण कएण मूढाओ ॥४०॥ इय वंकं चिय, चरियं महिलाण सप्पगइसरिसं । हिययं दढवज्जसमं, महुरत्तं किं पि वायाए ॥४१॥ तओ, अज्जउत्त जंबुणाम ! किं भणिओ सो तीए महादेवीए तक्करपुरिसो ?'को सि तुमं ?' तेण भणियं-'किं मया पावकम्मेण ते पओयणं ?' । तओ देवीए भणियं-'कीस तं पावकम्मो' । तओ कहिओ तेण सव्वो नियवइयरो । तओ तीए भणियं-'अहं ते देमि जीवियं किंतु मम पइणा भवियव्वं तए' । तेण भणियं-'केण पओएण देसि ?' त्ति । तीए भणियं-'अत्थि मम पसुत्तो एस भत्ता । इमस्स इमं आरोविमो रित्थं । जेण चोरो त्ति काउं इमं गिण्हावेमि अहं । अत्थि य मम निययमाभरणं । तं च गहिऊण गच्छामो पहाए जहिच्छियं ठाणं' ति । तओ पडिवन्नं च तीए वयणं तक्करेण ।। अवि य- मच्चुमुहतिक्खदाढासमूहकोडीविवरप्पडियं पि । जइ रक्खिज्जइ पुरिसं, नूणं जावाउयं दीहं ॥४२॥ भणियं च- "अणुपुंखमावहता [य] अणत्था तस्स बहु गुणा हुँति । सुहदुक्खकच्छपुडओ, जस्स कयंतो वहइ पक्खं" ॥४३॥ [ ] 2010_02 Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगारसमो उद्देसओ १४७ तओ उचियसमएण पहाया रयणी । भणियं च तीए महादेवीए-'भो भो ! पुरिसा एसो सो तक्करो चिट्ठइ पसुत्तो, जो तुम्हाण पणट्ठो । गहिओ य पहाविऊण तेहिं बद्धो य'। भणियं च- "सक्का सीहस्सवणे, पलाइउं हत्थिणो य मत्तस्स । सुकयस्स दुक्कयस्स व, भण कत्थ पलाइउं सक्का" ॥४४॥[ ] "जं जेण पावियव्वं, सुहं व दुक्खं व जीवलोयंमि । अप्पाणेण य वच्चइ, निज्जइ य बला कयंतेण" ॥४५॥ [ ] तओ भणिउं च पयत्तो सो-'किम[णव]गारिणं ममं बंधह ? एसा मम भज्जा अम्हे दो वि पंथियाणि ।' तीए भणियं-'हा हयास ! पत्तं ते असमिक्खियकारित्तणो संपयं फलं; तहावि एवं असंबद्धं पलवसि ?' तओ तेण चिंतियं-एयं पि भवइ एयाए सयासाओ। तओ- एक्कं गिण्हंति इमा, मुंचंतन्नं पुणो रमंतनं । अन्नं अन्नं च पुणो, मुच्चंति गिहं अभव्वाओ ॥४६॥ तओ एवं चिंतंतो पणामिओ राइणो सयासं सो । राइणा वि वज्झो समाणत्तो । सो भिन्नो सूलियाए । अवगोसणीए सा गया सूलिया । न मओ तक्खणं । गहिओ य दूसहतण्हाए । तओ भणिउं च पयत्तो सो-'भो भो लोया ! अणवराही अहमेत्थ गहिओ पुव्वभवकयमसुहकम्मुणा, न पुण चोरो अहं भवामि । ता अणाहं ममं पाएह पाणियं' ति। तओ एवं च कलणं विलवंतस्स गहिया अणुकंपाए बहवे नायरया । न य रन्नो भएण दाउं तरंति उदयं । एयंमि य अवसरे समागओ तेणंते जिणयासो नाम सावगो । तओ नायरएहिं चिंतियं जइ परं एसो इमस्स कज्जस्स समत्थो । तओ आसन्नमागओ [नायरएहिं य सो चोरो भणिओ ?] 'भो ! इमं जिणयासं नाम सावगं नयरपहाणं कारुणियं, ता इमं जायसु जइ परं इमो एयस्स कज्जस्स समत्थो । तओ आसन्नमागओ भणिओ तेण-'भो भो ! जिणयाससावग ! परमकारुणिओ तुमं । अज्जप्पभिइं च पडिवन्नो मए एस तुम्ह धम्मो। ता परितायसु ममं साहमियं जलपाणेणं' ति । तओ परिचिंतियं जिणयासेण-अहो एस एवंविहावत्थगओ साहमियत्तणमवलंबिऊण उदगं पत्थेइ, ता किमेत्थ करणीयं ? एगत्तो मम मरणं 2010_02 Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ जंबुचरियम् अन्नत्तो पवयणाइयारो । ता किं सेयं ? अहवा वरं मरणं मा पवयणाइयारो त्ति । जओ भणियं-‘जिणपवयणस्स अहियं सव्वपयत्तेण वारेई' । ता देमि से उदगं । भणिओ य सो- 'वच्छ ! जइ एवं तुमं मम साहंमिओ ता एयं पंचनमोक्कारं अणग्घेयरयणं घोसंतो चिट्ठ; जाव अहं उदगं समाणेमि' । पडिवन्नं च तेण । दिन्नो य से नमक्कारो । घोसिउं च पवत्तो । तओ थोववेलाए समागओ जिणयासो घेत्तूण उदयं । दिट्ठो य तेण । तओ हरिसिओ चित्तेण - अहो धम्मप्पहावो, अहो जिणसासणपवन्नाण करुणत्तणं, अहो साहम्मियवच्छलया, अहो वंचिया (यो) एत्तियं कालं इमस्स अणग्घेयधम्मरयणस्स । तओ एवं च नमोक्कारपरायणस्स गाढं रोमंचकंचुयसरीरस्स संजाया पमोक्कला ऊसासनीसासा । तओ धस त्ति सा सूलिया निग्गया तस्स सिरेण । तओ विसिट्ठवासणोवगयचित्तो नमोक्कारपभावेण य मरिऊण सोहम्मे कप्पे देवो ववन्नो । पउत्तो य ओही किंफला किल मम एसा देवरिद्धी संजाया । जाव दिट्टं नियसरीरयं सूलाए विभिन्नं, नाओ य पुव्वभवो । जाणियं च नमोक्कारफलमेयं । इओ य दिट्ठो जिणयासो चारगपुरिसेहिं तस्स उदगं पयच्छंतो । तओ गहिऊण य उवणीओ रायउले ताव जाव राइणा समाइट्ठा तस्स सूलिया । इमं च वइयरं दट्ठूण वेगेण समागओ सो देवो । तओ चउद्दिसं अट्टट्टहासपुव्वयं भणियं देवेण - 'अरे रे ! सुमरहट्ठदेव । समागओ अज्ज तुम्हाणं मच्चू' । इमं च भणमाणस्स समागया वडिया पत्थरसंघाया जणोवरिं । पवाइओ य झंझावाओ । ठड्याइं पओलिदुवाराई । विउव्विया य उवरिं ता[व] परिलंबमाणा सिला । इमं च सव्वं दट्ठूण भयविहलो सव्वो नायरजणो राया य निग्गओ अप्पं घेत्तूण । भणियं च राइणा - 'भो भो ! जो को वि अम्हाण एस परिकुविओ देवो वा दाणवो वा सो उवसमं गिण्हउ परिकहउ य जमम्हेहिं अवरुद्धं' । तओ भणियं देवेण - ' हा रे दुरायार ! पावकम्म, पुरिसाहम, निल्लज्ज, अणवेक्खियकारी ! अरे रे अनिरूविऊण जणं वावाएसि । ता एस ते मरणपज्जवसाणो दंडो न अन्नो 'त्ति । राइणा भणियं - 'भो महाणुभाव ! खमसु ममेगवराहं । न पुणो वि एवं समायरिस्सं' । देवेण भणियं - 'रे एक्कं ताव सो पंथिओ विलवंतो अदोसयारी वावाइओ तुमे । बीयं पुण इमो जिणयासो महाणुभावो, जो मणेण वि न समायरइ पावं, सो वि तुमे निक्कारणमेव विडंबिउं समादत्तो । संपयं मरणं ते जइ दंडो । उवभुंजसु दुक्कयफलं ' ति । राइणा भणियं - 'कयं मए 2010_02 Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगारसमो उद्देसओ १४९ अयाणमाणेणेयं मोहंधेण । न उण पुणो समायरिस्सं । ता खमसु एक्कमवराहं'ति । देवेण भणियं-'अत्थि एक्को ते मोक्खोवाओ, जइ तं जिणयासं खमावेऊण, काऊण य हत्थिखंधमारूढं, अहिसिंचिऊण य कणयकलसेहिं, सियचंदणवत्थसुमणसाहरणं काऊण तमप्पणा मिठत्तणं पवन्नो जयजयसद्दमुहलियदसदिसं संखपडहकाहलनंदीघोसपूरियंबरं, तियचउक्कचच्चरेण भमाडेऊण, पाएसु निवडिऊण, निययघरे पुणो मुंचसु त्ति । ता खमियव्वं न अन्नह' त्ति । तओ-'जं तुमं आणवेसि'-भणमाणो चलिओ सपरियणंतेउरो राया । दिट्ठो य जिणयासो नरवइणा । केरिसो ? अवि य- सिंहासणे निविट्ठो, उवरि पलंबंतधरियपुंडरिओ । विज्जंतचमरजुयलो, पुरओ विलुलंतचारुभडो ॥४७॥ तओ निवडिओ राया चलणेसु सव्वजणसमूहसमेओ जिणयासस्स । भणिओ य-'सामि ! खमसु मे एयमणवेक्खियकारिणो अवराहं' । तओ जिणयासेण भणियं'खमियं चेव मए, न अम्हाण सासणे कीरइ रोसो'त्ति । तओ राइणा सव्वं समायरियं जहा उवइटुं तं देवसासणं । भणिओ य परितुद्वेण देवेण राया-'भो भो ! पडिवज्जसु जिणवरमयं, एस सो मग्गो संसारपञ्जवसाणसाहगो न उण अन्नो' त्ति । पडिवन्नं च राइणा जिणसासणं । तओ निरूवियं देवेण कहिं पुण सा दुरायारा देवी जाव पेच्छइ तेण चोरपुरिसेण समं चलिया चोरगामाभिमुहं । वच्चमाणाण य अद्धपहे सलिलपडिपुन्ना सरिया परिवहइ । तओ तक्करेण सा भणिया । चिंतियं च- एगस्थ कह व पडि(इ)मोइयावि अन्नत्थ लग्गइ खणेण । दूरेण होउ सुहिया, महिला कन्थारिसाह व्व ॥४८॥ 'पिए ! समप्पेह मम ताव सयलं वत्थाभरणं जेण इमं परतडे मोत्तूण तओ तुमं सव्वपयत्तेण उत्तारेमि । विसमा य इमा नई । मा ते को वि सरीरपमाओ भविस्सइ ।' समप्पियं च सव्वं तीए । भणिया य तेण सा-'मुद्धे ! इमं ताव बहलपत्तनियरपडिपुन्नं पविससु सरथंभं जावा गच्छामि अहं' । पविट्ठा य सा । तओ गओ सो परतडं । भणियं च तेण । अवि य- भद्दे भद्दे ! निसुणसु मज्झ कए नियपई तुमं हणसि । जा सा मं कह मुंचसि अन्नस्स कएण ता वच्च ॥४९॥ 2010_02 Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० जंबुचरियम् इमं च भणमाणो गओ तुरियपयनिक्खेवं ताव जाव असणं पत्तो । तओ केरिसा पुण दिट्ठा देवेण सा । अवि य- ववगयवत्थाहरणा, बीभच्छा डाइणि व्व पच्चक्खा । किं किं पि निययहियए, कलुणं विमणा वि झायंती ॥५०॥ सा पयडभमिरसावयसंदसणजायगरुयसंतावा । तरलनिवाइयलोयणदसदिसिभयवेविरसरीरा ॥५१॥ भीसणमुहकुहरविणिग्गयग्गिविसनायजायउक्कंपा । घोरभुयंगमफणभोयदंसणुप्पिच्छनियचित्ता ॥५२॥ इय सा भीसणरन्ने, भीया हरिणच्छिजूहपब्भट्ठा । वुन्नमुहतरलनयणा, रुयमाणी कलुणसद्देण ॥५३॥ तओ एवंविहं दट्टण तं देवि जाया अणुकंपा देवस्स । चिंतियं च णेण पेच्छ पेच्छ केरिसं अवत्थंतरं पत्ता वराई ? अह वा भणियं च "जं जेण जत्थ जइया, सुहं व दुक्खं व जीवलोयंमि (जेण पावियव्वं)। तं सोऽवस्सं पावइ, जइ वि सयं देवराओ त्ति" ॥५४॥ [ ] ता संबोहेमि जिणवयणे[ण] इमं वराई । मा संसारकंतारं भममाणी इमाओ वि अहिययरं दुक्खं पाविही एसा । ततो इमं च चिंतिऊण विउव्विओ एगो तेण जंबूओ, गहियमंसपेसिवयणो । दिट्ठो नईतीरासन्ने एक्को मच्छो तेण । तओ मंसपेसि चइऊणं धाविओ तयाहुत्तं । सो वि उप्पईऊणं जले निवडिओ । सा वि मंसपेसी गस(य)णाओ अवयरिऊणं सउणेण अवहरिया । तओ इमं च दद्रुण पहसिरीए भणियं महादेवीए । अवि य- मंसं चइऊण धुवं, अधुवं पत्थेसि कोल्हुया मीणं । धुवमधुवाणं चुक्को, अप्पमई एत्थ तं मुद्ध ! ॥५५॥ तओ जंबुएण भणियं मिठकए नरनाहं, तं पि य वावाइऊण चोरत्थे । पइ-मिठ-चोरमुक्का, अप्पाणं नोवलंभेसि ॥५६॥ 2010_02 Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एगारसमो उद्देसओ १५१ पेच्छसि सुइवेहसमे, परछिड्डे न उण अप्पणो थोरे । अह वा सव्वो वि जणो, परिमुइओ होइ परवसणे ॥५७॥ भणियं च- "अणुसोयइ अन्नजणं, परभवसंकंतमूढबालजणो । न वि सोयइ अप्पाणं, किलिस्समाणं भवसमुद्दे" ॥५८॥ [ ] तओ एवं च भणियमेत्ता विलि(ल)या चिंतिउं पयत्ता-अहो ! पेच्छ एसो जंबुओ कह परिजंपइ माणुसवायाए । ता दिव्वो एस कोइ पओओ । तओ एयंमि अवसरे सो देवो दिप्पंतमउडमणिकिरणो । वरकुंडलरयणमयूहविमलकवोलसंकंतपडिप्पहसमुज्जोइयदिसिवरंतरालो जाओ महारूवेणं ति । कहिओ य सयलो निययवुत्तंतो । अणुसासिया य बहुसो तेण जिणप्पणीयधम्मं पइ । पडिवन्नो य भावओ तीए । उवणी[या] य तेण साहुणीणं सयासे । कहिओ य ताहिं धम्मो । तओ गहियसामन्ना परिसोहिऊण निंदणगरिहणखामणाहिं अप्पाणं कयउग्गतवच्चरणा कालमासे कालं काऊण सुरलोगं गय त्ति ॥ ता जह सो परिचुक्को, आमिस-मीणाण जंबुओ नाह ! । एवं तुमं पि चुक्कसि मोक्खस्स य तह य विलयाणं ॥५९॥ तओ इमं च निसामिऊण भणियं जंबुनामेण-'मुद्धे ! निसुणसु । अवि य-विज्जाहरो व्व नाहं, विसयाण कएण दोण्ह वि भवाणं । परिचुक्को अप्पाणं, नरयंमि खिवामि तुम्ह कए ॥६०॥ तीए भणियं-चुक्को, कह सो विज्जाहरो विसयगिद्धो । दोण्ह वि किल लोयाणं कहसु पसाएण मह सामि ! ॥६१।। तओ जंबुणामेण भणियं । अवि य- इंदो व्व करिसणाहो, निच्चं रंभाविदिन्नहरिसो य । गयणं पिव वित्थिन्नो, निच्चं पि विभंगकलिओ य ॥६२॥ मयणो व्व पत्तलद्धो, सिलीमुहो सरासणविलद्धच्छाओ य । उन्नयवंसो अइरावइ व्व तह दीहदंतो य ॥६३।। सरयब्भतुंगसिहरो, विज्जाहरलोयसेविओ रम्मो । वेयड्ढो अस्थि गिरी, पुव्वावरपत्तमयरहरो ॥६४।। 2010_02 Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ तत्थ परितावरहियं, पडिवक्खविदिन्न तह य परितावं । सयलं पि चउरजणनिवहसेवियं निच्चपरिमुइयं ॥ ६५ ॥ उत्तुंगसालकलियं, पि सालकरगेज्झकुसुमफलनियरं । पुन्नं पि पुन्नकलियं, रुंदं पि य मडहसंचारं ॥६६॥ विज्जाहरजणपुन्नं, नयरं अह गयणवल्लहं नाम । अत्थि जए सुपसिद्धं, मणिकंचणरयणधणकलियं ॥६७॥ गरुयपरक्कमनिज्जियपयंडपडिवक्खलद्धमाहप्पो । भुंजइ तमसणिघोसो नामं विज्जाहरनरिंदो ॥६८॥ अह तस्स अत्थि पुत्ता, विज्जाधणरूवजोव्वणसमग्गा । दो भायरो महप्पा, मेहरहो विज्जुमाली य ॥६९॥ ते अन्नया कयाई, परोप्परं मंतिऊण ते (सं? ) चलिया । मायंगयविज्जाए, साहणहेउं दुवे कुमरा ॥७०॥ ती पुण विज्जाए, एसो पुण ताण साहणोवाओ । तुच्छकुले गंतूणं, परिणयव्वाओ कन्नाओ ॥७१॥ धारेयव्वं च तहा, परिसुद्धं बंभचेरवयघोरं । संवच्छरेण ताहे, सिज्झइ मायंगवरविज्जा ॥७२॥ पत्ता दाहिणभरहे, अवयरिया ते वसंतपुरनयरे । पक्कणवेसं काउं, गया य ते पक्कणकुलंमि ॥७३॥ आराहिया य अह ते, मायंगा तेहिं दोहिं वि जहिं । दिन्नाओ कन्नाओ, तेसिं अह तेहिं पाणेहिं ॥ ७४ ॥ दोहिं वि विवाहियाओ, ताओ कन्नाओ पाणधूयाओ । अइकसिणविरूवाओ, लालाउलवयणनासाओ ॥७५॥ सो विज्जुमालिनामो, विज्जाहरपवरकुमरओ नवरं । महिलाए आसत्तो, विज्जापरिसाहणं मोत्तुं ॥७६॥ 2010_02 जंबुचम् Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५३ एगारसमो उद्देसओ लालाउलवयणाए, निच्चं पगलंतसव्वसोत्ताए । बीभच्छरूवउव्वेवणाए मायंगधूयाए ॥७७॥ अह भुंजइ सो भोए, एरिसरूवे अईव बीभच्छे । इत्थीण अहम्माए, कुच्छियरूवाए आसत्तो ॥७८।। जाओ य तीए गब्भो, पुन्ने संवच्छरंमि मेहरहो । परिसिद्धविज्जरयणो, पभणइ तं भाउयं ताहे ॥७९॥ वच्चामो नियनयरं, सिद्धाओ ताव अम्ह विज्जाओ । वेयड्ढनगवरंमी, कीलामो जेण कीलाहिं ॥८०॥ भुंजामो वरभोए, विज्जाहरबालियाहिं य समेया । पंचपयारे दिव्वे, विज्जाहरसिद्धसारिच्छे ॥८१॥ लज्जोणयवयणेणं, भणियं अह विज्जुमालिणा ताहे । भग्गपइन्नो अहयं, कह गच्छेमो अहं तत्थ ॥८२॥ नो सिद्धा मे विज्जा, एसा य वराइणी गरुयगब्भा । कह वच्चामि पमोत्तुं, एत्थाणाहं इमं वराई ॥८३॥ ता वच्च तुमं भाउय !, पुणरवि संवच्छरंमि संपुन्ने । आगंतुं मं नेज्जसु, कह मुंचेमो इमं बालिं ॥८४॥ मेहरहेणं भणिओ, वच्चसु एयाए किं अहम्माए । विज्जाहरदुहियाओ, गंतूणं तत्थ परिणेसु ॥८५॥ एवं बहुप्पयारं, भणिओ वि न जाव इच्छए गंतुं । मोत्तुं तं मेहरहो, पत्तो नियपट्टणं ताहे ॥८६॥ संवच्छरे य पुन्ने, मेहरहो विज्जुमालिणो पासं । गंतूणं तं पभणइ, वच्चेहि वच्छ ! वेयढें ॥८७॥ भणियं च तेण एसा, एक्कं ता बालवच्छया मुद्धा । बीयं च गब्भवंती, कह मुंचेमो इमं वराइं ॥८८॥ 2010_02 Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ जंबुचरियम ता गच्छ तुमं पुणरवि, आगच्छसु जेण वच्चिमो दो वि । उवलंभिऊण बहुहा, मेहरहो अह गओ ताहे ॥८९॥ पुणरवि समागओ सो, भणिओ अह विज्जुमालिणा ताहे । गच्छ तुमं ता भाउय !, पुणो वि मे देसु दरिसावं ॥९०॥ ताहे मेहरहेणं, भणिओ खरफरुसदुट्ठवयणेहिं । धिद्धि त्ति दुट्ठपावय ! अहमाहम ! जो तुमं मूढो ॥११॥ उववज्जिऊण विमले, विज्जाहरवरकुलंमि रे मूढ ! । आसत्तो कह तुच्छे, मायंगकुलंमि रे मूढ ! ॥९२।। ता गच्छ तुमं पवयं, पढमं चिय किल तुमं न जाओ सि । जो एवं चंडालो, तं जाओ कुलकलंककरो ॥९३॥ मन्नसि दुक्खं पि सुहं, इंदियविसएहिं मोहिओ मूढ ! । खरफरुसतज्जणाओ, सहसि य तं पक्कणकुलंमि ॥९४॥ एवं ठिए वि(?) अज्ज वि मा, मूढ ! तुम अप्पवेरिओ होह । गच्छसु वेयड्डनगं, सुहभाई जेण तं होह ॥१५॥ न कयाइ अहं इण्हि, आगच्छामिह पुणो वि तुह पासं । ता मा मूढऽप्पाणं, वंचसु तुच्छ[य]कुलासत्तो ॥९६॥ एवं बहुहा भणिओ, जाहे सो नेच्छि(च्छु)ओ तहिं गंतुं । ताहे वेयडूनगं, मेहरहो तं गओ मोत्तुं ॥९७॥ पिउणा सो अहिसित्तो, रज्जे उवभुंजिऊण तो भोए । रज्जं च पालिऊणं, पच्छा संजायसंवेगो ॥९८।। दाउं सुयस्स रज्जं, सुट्ठिय अणगारसो(रिणो) सयासंमि । गहिऊणं पव्वज्ज, उग्गं च तवं तहा काउं ॥९९॥ अह आउयक्खएणं, पत्तो सो ! देववासवरठाणं । पावेही मुत्तिसुहं, पुणो वि सो सव्वसुहसारं ॥१००॥ 2010_02 Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५५ एगारसमो उद्देसओ एवं सो मेहरहो, परंपरसुहाण भायणं जाओ । इयरो वि विज्जुमाली, आसत्तो तुच्छविसएसु ॥१०१॥ विज्जाहररिद्धीए, पुणो वि विसयाण तह य रज्जस्स । सुरलोयसुहस्स तहा, तह चेव [य] सिद्धिसोक्खस्स ॥१०२॥ जरमरणरोगपउरं, हिंडेही तह पुणो वि संसारं । एसो ते दिटुंतो, कहिओ सुण उवणयं इहि ॥१०३।। "जह ते दोन्नि कुमारा, दुविहा जीवा तहा समक्खाया । भव्वाऽभव्वा य तहा, जह मेहरहो तहा भव्वा ॥१०४॥ ते चइउं घरवासं, पक्कणकुलसंनिभं विगयमोहा । विज्जासमनाणजुया, पार्विति परंपरसुहाई ॥१०५॥ जे पुण इयरसमाणा, हंति अभव्वा नरा कुगइगामी । पक्कणकुले च गेहे, आसत्ता हुंति व अवत्थू ॥१०६॥ न मुणंति [य] हियमहियं, कज्जाकज्जं व मोहसंतत्ता । मायंगीए समाए, आसत्ता णिययभज्जाए ॥१०७॥ सव्वसुहाणं चुक्का, विज्जाहरदेवरिद्धिमाईणं । पाविति पुणो दुक्खं, जह तं मुद्धे ! निसामेह ॥१०८।। ते जम्ममरणसलिलं, कसायजलयरसमाउलं भीमं । हिंडंत(ति) सुइरकालं, मोहावत्तं भवसमुदं ॥१०९॥ पाविति महाघोरं , दुक्खं कुगईसु तेसु संतत्ता । छिदणताडणमारणफालणउक्कत्तणाईयं ॥११०॥ सोक्खं सरिसवसरिसं, दुक्खं पुण मेरुपव्वयसमाणं । पाविति य नरयाइसु , कुगईसु ते सु(?) पाणिणो पत्ता ॥१११।। उयहिसमाणं दुक्खं, सोक्खं पुण तिलतिभागसममेत्तं । जीवाणं संसारे , वेरग्गं तह वि हु न जंति ॥११२॥ 2010_02 Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ जंबुचरियम् भणियं च एत्थ गुरुणो, जिणवरवसहस्स वद्धमाणस्स । सासणपभावणेणं, कविणा केणावि इयमत्थं ॥११३॥ "सुरनरनिरयतिरिक्खेसु वट्टमाणाणमेत्थ जीवाणं । को संखं पि समत्थो, काउं तिक्खाण दुक्खाणं ॥११४॥ [ ] अच्छंतु तिरियनरएसु जाव अइदूसहाई दुक्खाई । मणुयाण वि जाइँ हवंति ताइँ को वच्चए अंतं ॥११५॥ [ ] जं होइ जियाण दुहं, कलमलभरियंमि गब्भवासंमि ।। एक्कं चिय वच्चइ नवर तस्स तं चेव सारिच्छं ॥११६॥ [ ] जायाण वि जम्मजरामरणेहिं अभियाण किं सोक्खं । पियविरहपवरभ( परब्भ )त्थणपमुहमहादाहगहियाणं ॥११७॥ [ ] जं पि सुरयंमि सोक्खं, जायइ जीवस्स जोव्वणे तस्स । तं पि य चिंतिज्जंतं, दुक्खं चिय केवलं नूण ॥११८॥ [ ] पामागहियस्स जहा, कंडुयणं दुक्खमेव मूढस्स ।। पडिहाइ सोक्खमउलं, एवं सुरयंमि विन्नेयं ॥११९॥ [ ] वंचिज्जइ एस जणो, अचेयणो पमुहमेत्तरसिएहि । खलसंगएहि व सया, विरसेहिं तह य भोगेहि ॥१२०॥ [ ] ता उज्झिऊण एयं, अणवरयं परं परम? )मोक्खसंजणयं । तित्थयरभासियं खलु, पडिवज्जह भावओ धम्मं ॥१२१॥[ ] जओ- "जोव्वणमारोग्गं, चिय पियसंवासा तहेव जीयं च । सव्वाई चंचलाइं जिणधम्मो वज्जियं मोत्तुं ॥१२२॥ ता जो अप्पाणहियं, जाइजरामरणसूडणं धम्मं । न कुणइ अणागयं चिय, सो सोयइ मरणकालंमि" ॥१२३॥ ता गिद्धो कुकलत्ते, नाहं विज्जाहरो व्व मोहंधो । विसयाण करणेयं, संसारं कह पडीहामि ॥१२४।। 2010_02 Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५७ एगारसमो उद्देसओ पालेऊणं गुणोहं विमलजणमणाणंदयारे विसाले, भव्वा जे हुंति जंतू जिणमयकुसला गेहगुर्ति चएउं । नाणं चारित्तसम्मं विविहतवजुयं संजमं संपवन्ना, सिद्धिं गच्छंति धीरा विगयरयमला मोहमलं निहेउं ॥छ। ॥१२५।। इय जंबुणामचरिए, पउमसिरीदत्त-उत्तरभिहाणो । उद्देसगो समत्तो, संपइ सेसं पवक्खामि ॥छ॥ ॥१२६॥ 2010_02 Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ बारसमो उद्देसओ ॥ एत्थंतरम्मि भणियं, सहरिसपडिबुद्धपंकयमुहाए । सललियमिउवायाए, भज्जाए पउमसेणाए ॥१॥ पियसहिओ ! एसऽम्हं, होज्ज पिओ नूण धमगसारिच्छो । जह सो पच्छायावं, पत्तो तह पाविही एस ॥२॥ भणियं च- "जइ वि धमिज्जइ कज्जे, किं पुण सोहेज्ज नेय अइधमिए । धमिएण जं विढत्तं, पणासियं अइधमंतेण" ॥३॥ [ ] तओ इमं च निसामिऊण वियसंतवयणपंकएण भणियं जंबणामेण-'को सो मुद्धे ! धमगो? कहं वा पच्छायावं पत्तो? त्ति । को वा इमस्स अइधमियधमियस्स अत्थो ?' तओ तीए भणियं । अवि य- अत्थि इह भरहवासे, कलिंगविसयंमि नाम वडवई । गामो बहुधणकलिओ, गोमहिस[स]माउलो रम्मो ॥४॥ परिवसइ तत्थ एगो, कुडुंबिओ खेत्तकरिसणपसत्तो । वरिसाले सो छेत्तं, परिरक्खइ सावयाईणं ॥५॥ संखं वाएमाणो, अच्छइ सो तत्थ सव्वरयणि पि । तेणंतेणं चोरा, समागया अन्नदियहमि ॥६॥ सोऊण संखसई, ते भीया गोहणं पमोत्तूण । दिसि-विदिसिं च पलाणा, किल कुढिया आगया एए ॥७॥ दिटुं तं तेण धणं, नायं जह संखसद्दभीएहिं । मुक्कं चोरेहिं इमं, गहियं अह तेण तं सव्वं ॥८॥ ___ 2010_02 Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसमो उद्देओ गंतूण तेण गामं, भणियं अह देवया तुट्ठाए । दिन्नं गोहणमेयं, चिट्ठा परिपालयंतो य ॥ ९ ॥ वाएइ य सो संखं, पइदियहं चिंतए य सो एवं । अन्नं पि संखभीया, चोरा मुंचंति जइह धणं ॥१०॥ अन्नंमि पुणो दियहे, गहणं गहिउं समागया चोरा । निसुओ य संखसद्दो, भणियं अवरोप्परं तेहिं ॥११॥ एसो पुणो वि निसुओ, संखो अम्हेहिं एस वज्जन्तो । ता मा मुंचेह धणं, संकाए एत्थ कुढियाणं ॥१२॥ ताव निरिक्खह एयं संखं को एत्थ वायए रन्ने । समकालं गंतूणं, निरिक्खयं जाव सो दिट्ठो ॥१३॥ दिट्टं च गोहणं तं, जं मुक्कं संखसद्दभीएहिं । परिनायं तं तेहिं, सव्वेहिं वि चोरपुरिसेहिं ॥१४॥ एयं तं अम्ह धणं, भणियं चोरेहिं एस सो चोरो । संखं पवा[इ]ऊणं, अवहरियं जेहिं (ण) अम्हाण ||१५|| एवं भणमाणेहिं, बद्धो सो तक्करेहिं हणिऊण । तं गोहणं च सव्वं, अवहरियं तस्स चोरेहिं ॥ १६ ॥ ता जह सो परिचुक्को, पुव्वविढत्तस्स अइव धमिएन । तह मा तुमं पि चुक्कसि, विसयाणं तह य मोक्खस्स ॥छ|| ||१७|| तओ इमं च निसामिऊण भणियं जंबुणामेण - 'मुद्धे ! निसुणेसु । अवि य' नाहं मुद्धे ! सो वानरो व्व इह मंदबुद्धिओ होउं । बंधावे अप्पाणं, विसयाण कएण तुच्छाणं ॥१८॥ तीए भणियं - ' कह सो इह बद्धो वानरो ? कहसु सामि ।' जंबुकुमारेण तओ, भणियं - सुण एक्कचित्तेण ॥१९॥ विलय व्व तिलयकलियत्थि कुसुमपब्भारनिम्महंता य । नवघणपडलसुसामा, विंझगिरि कडंमि वणराइ ॥२०॥ 2010_02 १५९ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० जंबुचरियम् सच्छंदसुहविहारो, बहुणा कालेण परिणओ जाओ। वानरजूहाहिवई, जूहेण समं तहिं वसइ ॥२१॥ झाडेइ य सो सव्वे, अन्ने बलदप्पवीरियसमिद्धे । जे के वि वानरभडे, जूहाओ दप्पबलकलिए ॥२२॥ बलवइणा अन्नेणं, दिट्ठो सो वानरेण तरुणेण । जुझं च संपलग्गं, दोण्ह वि बलदप्पकलियाण ॥२३॥ कहकह वि निज्जिओ सो, [अइ] कढिणकरचलणप्पहारेहिं । जूहाहिवो बलवया, तरुणेणं वानरभडेणं ॥२४॥ पडिभग्गदप्पपसरो, छड्डेडं कह वि तस्स सो नट्ठी । इयरो वि मग्गलग्गो, दूरं गंतुं पडिनियत्तो ॥२५॥ भयतरलनयणजुयलो, तुरियपयक्खेवनिहियसंचारो । किल मम पत्था(च्छा) पहवइ, सत्तू सो धाविओ दूरं ॥२६॥ निद्दयपहारविहुरो, तण्हाभुक्खाकिलंतनियदेहो । पत्तो महइ महंतं, गुहमेक्कं पव्वयनिगुंजे ॥२७।। तत्थ य सिलायलंमि, परिस्सवंतं सिलाजउं दटुं । भयवसवेविरनयणो, पत्तो सो तस्स तीरम्मि ॥२८॥ परिसुसियवयणकंठो, तण्हावसपरिकिलंतनियदेहो । मन्नंतो जलमेयं, वयणं परिखिवइ जा तत्थ ॥२९॥ ता तं तस्स निविटुं, सिलाजऊ जाव मज्झ संपत्तं । वयणस्स मोयणट्ठा, पसारिया अह करा तेण ॥३०॥ ते वि निबद्धा दोन्नि वि, एवं पाया वि(?) पहाणअंगेसु ॥३१॥ परिखिज्जिऊण पत्तो, तत्थेव सिलाजउंमि सो निहणं । वयणपरिमेत्तबद्धो, कह वि पयत्तं जइ करितो ॥३२॥ ता कह कह वऽप्पाणं, मोयंतो वानरो सिलाजउणो । एयस्स उवणयमिमं, सुण दिटुंतस्स तं मुद्धे ! ॥३३॥ 2010_02 Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारसमो उद्देसओ वानरकप्पो जीवो, सिलाजऊसरिसमोहसंबंधो । पंचसु वि इंदिएहिं, विसयासत्तो इमो पावो ॥३४॥ पावर पुणो पुणो च्चिय, निहणं संसारसायरे घोरे । जूहाहिवई व इमो, बद्धो पंचसु वि अक्खे ||३५|| जइ पुण कुणइ पयत्तं, इंदियविसएस एस दुट्ठजिओ । ता मुंचइ बंधाओ, तडट्ठिओ विसयसंगस्स ॥३६॥ जड़ पण इंदियसत्तो, मज्झे वियसाण वट्टए तेसिं । ता नरय- तिरिय-कुमणुय - किव्विसदेवेसु परिभमइ ||३७|| एक्केक्किदियबद्धा, बहवे निहणं गया इहं जीवा । पंचण्ह वि वसवत्ती, निहणं पावेइ सुट्टुयरं ॥ ३८ ॥ गंधव्ववीणवाइयरामाकलसद्दभूसणक्खेहिं । सवणिदियवसवत्ती, हरिणो इव गच्छइ विणासं ॥३९॥ लीला[ ] ? सविलविलोलनयणविक्खेवक्खि (खि) त्तनयणमणो । चक्खिदियवसवत्ती, सलहो इव जाइ विणिवायं ॥४०॥ कुंकुमकप्पूरागरुहरियंदणबहलपरिमलाखित्तो । गंधिंदियवसवत्ती, भसलो इव नासमुवयाई ॥४१॥ महुरन्नपाणसोणियपिसियमहुरविसयरसगिद्धो । जिब्भिदियवसवत्ती, विणिवायं जाइ मीणो व्व ॥ ४२ ॥ रामाकोमलसंफरिससुरयसुमणसविलेवणक्खित्तो । फासिंदियवसवत्ती, गओ व्व परिबज्झए मूढो ॥४३॥ एवमणेगे दोसा, पणट्ठदिट्ठसिचेद्वाणं । दुव्विहियइंदियाणं, हवंति बाहाकरा बहवे ॥४४॥ एक्क्केण विट्ठा, इंदियदोसेण रागदोसत्ता । एए किं पुण एसो, जीवो पंचिन्दियवसट्टो ॥ ४५ ॥ सोनत्थि अक्खविसओ, जेणब्भत्थेण कह वि एयाई । तित्ताइं मुद्धि नूणं, हवंति निच्चं पि तिसियाई ॥ ४६ ॥ 2010_02 १६१ Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ तम्हा नाऊण इमं, इंदियपडिवक्खवत्तिणा निच्चं । होयव्वं बुद्धिमया, नरेण जिणवयणकुसलेण ॥४७॥ इंदियविसयाण तहा, भावेयव्वं विवायविरसत्तं । आवेइऊण विसए, रागद्दोसाण परिहरणं ॥ ४८॥ एवं चिय कुणमाणो, एसो अइरेण पावए मोक्खं । सव्वकिलेसविमुक्को, जीवो मुद्धे ! न संदेहो ॥४९॥ ता परिमुंचह गाहं, मा मुद्धे ! वानरो व्व पडिबद्धा । निहणं भवकंतारे, पाविस्सह इंदियवसाओ ॥५०॥ अन्नं च - गिण्हह महव्वयाई, होह सया नाणचरणकलियाओ । सम्मत्तभावियाओ, पंचसु समिईसु समियाओ ॥ ५१ ॥ सज्झायझाणतववावडाओ निच्चं विसुद्धलेसाओ । बंभव्वयकलियाओ, उवसग्गपरीसहसहाओ ॥ ५२ ॥ सीलंगसहस्सद्वारसगुरुभरभारमत्तजत्तङ्कं । रागद्दोसविहीणं, महुयरवित्तीए उवलद्धं ॥ ५३॥ नवकोडीपरिसुद्धं, उंछं गिuse देहजावट्टं । सयडक्खडंगकप्पं, भुंजह वणलेवकप्पं वा ॥५४॥ भावेह भावणाओ, णवणवपरिणामसुहविवेयाओ । गुत्तीसु य गुत्ताओ, होह सया नियमकलियाओ ॥५५ ॥ गुरुयणभत्तिपराओ, निच्चं सिद्धंतपढणसीलाओ । विre वेयावच्चे, निच्चं चिय वावडमणाओ ॥ ५६ ॥ पावेह जेण अइरा, सुरवरनरनाहसिद्धिसोक्खाई । सव्वेसिं जंतूणं, होह तहा पूयणीयाओ ॥ ५७ ॥ एयं निसामिऊणं, भणियं अह तीए महुरवायाए । सव्वं पिययम ! एवं, किं तु निसामेसु मम वयणं ॥५८॥ भुंजसु एक्कं वरिसं, इमाहि सह रूवगुणगणधरीहिं । नियभज्जाहिं विसए, मणोरमे मणुयभवसारे ॥५९॥ 2010_02 जंबुचरियम् Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६३ बारसमो उद्देसओ पच्छा तुम्हेहिं समं, जं ते कहियं जिणिदपन्नत्तं । गिहिस्सं पव्वज्जं, गंतुं गुरुपायमूलंमि ॥६०॥ जंबुकुमारेण तओ, भणियं-'सुण जं तुमे इमं भणियं । भुंजसु अम्हेहि समं, विसए किल वरिसमेक्कं तु' ॥६१॥ तत्थ- उन्नयगरुयपयोहरधरीहिं सग्गंमि देवविलयाहिं। सह विसया परिभुत्ता, तह वि न तत्तिं इमो पत्तो ॥६२॥ गुरुपिहुलजहणखामोयरीहिं करभोरुकुंददसणाहि । वियसियकमलमुहीहिं, देवीहिं न पाविओ तित्तिं ॥६३।। वच्छत्थलहारविलोलमाणमुत्ताहलुल्लसियभाओ । सुरकामिणीओ सुइरं, भुत्ताओ[आसि]मए सग्गे ॥६४॥ रसणाकिंकिणिकलरव विरायमाणगुरुजहणभायाओ । सुरसुंदरीओ सुइरं, सुरलोए आसि भुत्ताओ ॥६५॥ तहा- इंदत्ते देवत्ते, चक्ख(क)हरत्ते य जाइं सोक्खाई । परिभुत्ताई ताई, तह वि न तित्तो इमो जीवो ॥६६॥ बलदेव-वासुदेवेसु भवणजोइसियवंतरसुरेसु । वेमाणिएसु य तहा, सोक्खाई इमेण पत्ताई ॥६७॥ सामंतनरिंदेसु य, जुयलाहम्मेसु तह य विजएसु । विसया स( भु)त्ता बहुसो, जीवेण अणाइसंसारे ॥६८॥ एवं च बहुविहेसु वि, जीवो विसएसु जो न संतित्तो । संवच्छरमेत्तेणं मुद्धे ! कह होज्ज सो तित्तो ॥६९॥ ता वानरो व्व नाहं, सिलाजऊसरिसविसयभोएहिं । पंचिदिएसु बद्धो, निहणं गच्छामि संसारे ॥७०॥ सम्मं च नाणं चरणं चरित्ता, कम्मं च सव्वं अह झोसइत्ता । ते जंति सिद्धि भवदुक्खमुक्खा(क्का), पालिंति जे सव्वगुणे पसंता ॥७१॥ इय जंबुणामचरिए उद्देसो पउमसेणभज्जाए । दत्तोत्तराभिहाणो एस समत्तो सुणह सेसं ॥छ। ॥७२॥ 2010_02 Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ तेरसमो उद्देसओ ॥ अहरउडविवरपयडियसमसियदसणंसुधवलियदिसाए । एत्थंतरे य भणियं, भज्जाए नागसेणाए ॥१॥ पियसहिओ ! एसम्हं, होज्ज पिओ नूण थेरिसारिच्छो । पत्थितो गुरुविहवं, चुक्कीही नूण संतस्स ॥२॥ तओ इमं च निसामिऊण वियसंतवयणकमलेणं भणियं जंबुणामेणं-'का सा मुद्धे ! थेरी ? कहं वा गुरुरिद्धिपत्थिता संतस्स परिभट्ठा ?' तीए भणियंअवि य- अत्थि इह भरहखेत्ते, मायंदी नाम पुरवरी रम्मा । तीए वयंसियाओ वसंति दो चेव थेरीओ ॥३॥ अवरोप्परं च तेसिं, दोण्ह वि अइनिब्भरा महापीई । जाया अह थेरीणं, दोण्ह वि समविहववेसाणं ॥४॥ कह कह वि कम्मवित्तीए ताओ नयरीए [नियय] उयरभरं कुणमाणीओ कालं, गर्मिति दालिद्ददड्ढाओ ॥५॥ अह अन्नया य जक्खो, संमज्जणपूयणेण एक्काए । परितुट्ठो तं थेरिं, दिन्ना(व्वा)ए भणइ वायाए ॥६॥ मम पायतलाओ तुमं, दीणारं पइदिणं पगिण्हेज्जा । थेरी वि पइदिणं चिय, तं गिण्हइ जक्खमूलाओ ॥७॥ सा जक्खकयपसाया, अत्थं संचेइ निव्वुयसरीरा । सयणस्स जणवयस्स, य अहिययरं आढिया जाया ॥८॥ 2010_02 Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६५ तेरसमो उद्देसओ गहिया य तीए गोणी, सा दुज्झइ पइदिणं पि थेरीए । गिण्हइ य मुंगचउले, धम्मेण य देइ अन्नेसिं ॥९॥ बीयाए थेरीए, विम्हयखित्ताय पुच्छिया अह सा । कह ते एसा जाया, संपइ सह संपया विउला ॥१०॥ अह तीए सा भणिया, पियसहि ! एएण किं विचारेण । तं मज्झ निव्विसेसा, मम गेहे चिट्ठसु सुहेण ॥११॥ जं किं पि मज्झ खाणं, पाणं वा अत्थि एत्थ गेहंमि । तं सहि ! तुज्झ समाणं, अच्छसु तं निव्वुया एत्थ ॥१२॥ तीए वि य सा भणिया, कह सहि ! चिट्ठामि तुज्झ गेहमि । जा मम सब्भाव पि व, न गच्छए नेहपरिहीणा ॥१३॥ भणियं च- "को जाणइ हिययगयं कइगयसब्भावनेहपरमत्थं । गरुओवयारसारा संववहारा हरंति मणं" ॥१४॥[ ] तीए वि चिंतियमिमं, कयाइ एसा एओसमावन्ना । मम देज्जऽब्भक्खाणं, जेण धणं होइ बहुविग्धं ॥१५॥ न य मच्छरेण गहियस्स पाणिणो किं पि अत्थिऽवत्तव्वं । साहिज्जंते य फुडे, न को वि दोसो इहं दिट्ठो ॥१६।। एवं [वि]चिंतिऊणं, सिटुं तीए जहट्ठियं सव्वं । तीए वि तओ जक्खो, विहिणा आराहिओ अह सो ॥१७॥ भणिया सा जक्खेणं, मग्ग वरं सो य तीए अह भणिओ । जं मम सहीए जायं, मम दुगुणं होउ तं सव्वं ॥१८॥ तीए वि य सा सहिया, काणा अह सा वि अंधला जाया । एवं तीए अप्पा, विणासिओ अत्थलुद्धाए ॥१९॥ भणियं चागमे-"दट्टणं च सहीए, हट्ठपहट्ठाए तीए सव्व( ? )संपत्ती । अइसिरिमिच्छंतीए, थेरीए विणासिओ अप्पा" ॥२०॥ [ ] 2010_02 Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुचरियम् एवं तुमं पि सामि य, चुक्कसि विउलाई सिद्धिसोक्खाई। पत्थेतो थेरी इव, इमाण उवलद्धभोयाण ॥२१॥ तओ इमं च निसामिऊण भणियं जंबुणामेण-'एत्थ निसुणसु ।' अवि य- मुद्धोऽहं जच्चतुरंगमो व्व न हु उप्पहेण तुब्भेहिं । सक्को इह नेऊणं, किमित्थ भणिएण बहुएण ॥२२॥ तीए भणियं-कह सो न सकिओ उप्पहं हरी नेउं ? । जंबुकुमारेण तओ, भणियं - सुण एक्कचित्तेण ॥२३॥ अत्थि मियंककरुज्जलथिरथोर[य]तुंगसालपरिक्खित्तं । सव्वगुणाण निवासं नामेण वसंतपुरनयरं ॥२४॥ जंमि य नयरे केसुं पुण कमुवलब्भइ ठाणेसु ? चंदंमि मओ पउमेसु कंटया करिसणं च छेत्तेसु । वसणसमूहो जइ दोसिएसु जलहिम्मि कुग्गाहो ॥२५॥ तं भुंजइ वरनयरं, असेसपडिवक्खनिज्जियपयावो । सुकयजहट्ठियनामो, जियसत्तू नाम नरनाहो ॥२६॥ जो य सो केरिसो ? अवि य चंदो व(ध)णओ इंदो सूरो तह जो जमो व्व परिकुविओ । सोमत्तदाणविक्कमपयावचंडत्तणेहिं च ॥२७॥ नरनाहस्स बहुमओ जिणयासो तत्थ सावगो अत्थि । जिणयंदभत्तिनिरओ, साहूणं पूयणरओ य ॥२८॥ जो य सो केरिसो? सव्वन्नुवयणदीवयसमत्तसंसारदिट्ठपरमत्थो । उवलद्धपुन्नपावो मिच्छत्तपरम्मुहो निच्चं ॥२९॥ तस्स य राइणो असेसतुरयलक्खणपसत्थालंकियनियसरीरं सुप्पमाणं सुवनं च एक्कं महामहंतं तुरंगमरयणमत्थि । तस्स य पहावेण समब्भहियबलकोसविरियवंता वि नरवइओ तस्साणमुवगय त्ति । तओ अन्नया य राइणा चिंतियं-कस्स पुण एयं तुरंगमरयणं समप्पेमि जो सव्वायरेण इमं पयत्तेण पडिरक्खइ त्ति ? । इमं च 2010_02 Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरसमो उद्देसओ १६७ परिचिंतेमाणस्स सहसा समावडिओ जिणयाससावगो तस्स चित्ते । तओ चिंतियं राइणा-जइ परं एसो इमं तुरंगमं सव्वायरेण परिरक्खिउं समत्थो । जओ सो सम्मत्तावहत्थियपावसमायारायरणट्ठाणो, जेणगहियजिणवयणदिट्ठपरमत्थवित्थरसारसमुदरयणो न पलयकाले वि अकज्जायरणपउणमाणो केण वि महत्थदाणेण भोयाईहिं उवलोहिज्जमाणो वि हवइ त्ति । अन्नं च-सव्वहा सव्वप्पयारेहिं पि सो मम हिययपसाहणेक्कपदिन्ननियमणो वीसासट्ठाणं च । ता सव्वहा सो इमस्स परिपालणे समत्थो त्ति । तओ इमं च परिचिंतिऊण राइणा सबहुमाणं सगोरखं च हक्कारिऊण जिणयासं समप्पिओ सो तुरंगमो । भणिओ य सो राइणा-'ममं च दट्टव्वो एस ते महातुरंगमो'त्ति । पडिवन्नं च राइणो तं वयणं जिणयासेण । तओ महापयत्ते[ण] पडिरक्खिउं पयत्तो तुरंगमं सो । कारावियं च पायारवलयपरिक्खित्तं तुरंगमनिवासट्ठाणं । तत्थ य ठियस्स सयमेव जोगासणाइणा सव्वमक्खूणं सव्वपयत्तेण समायरइ त्ति । जिणिंदवंदणत्थं च तमारुहिउं उभओ तिसंझं चेइयहरं पगच्छइ । तुरंगमारूढो तत्थ य काऊण जिणाययणस्स तिपयाहिणं, तओ पविसिऊण जिणहरं, वंदिऊण य जिणे, पुणो तुरंगमारूढो काऊण तिपयाहिणं, निययमंदिरमागच्छइ त्ति । एवं च गच्छइ कालो। अन्नया य जियसत्तुनरवइणो पडिवक्खभूएणं अन्नेण महामंडलाहिवइणा नरीसरेण नियथाणमंडवनिविटेण परिजंपियं जहा-'सव्वे वि नरवइणो' जियसत्तुनरवइणो महातुरंगमरयणप्पहावेण आणं पगहियपाया वटुंति । न य कस्स वि रज्जे को वि तारिसो मंती भिच्चो वा अत्थि जो तं अवहरिउं समत्थो' त्ति । इमं च निसामिऊण रायकुलपरंपरासमागएण सहसा समुट्ठिऊण पायनिवडियाणंतरं च अच्चंतं सामिहियकारिणा विन्नत्तं एक्केण मंतिणा जहा-'सामि ! जियसत्तुनरवइणो वि समहिओ तं, [परं दुन्भिज्जो] तस्स तुरंगमस्स रक्खणोवाओ, जेण समप्पिओ सो जिणयासस्स सावगस्स परिरक्खणत्थं । सो वि अच्चंतहिओ नरवइस्स । नियदेहाओ वि समहियं तं तुरंगमं पेछइ परिपालेइ य । ता सव्वहा वि दुरावहारो सो तुरंगमो त्ति । एक्को पुण अत्थि उवाओ । जइ परं धम्मच्छलेण तं कह वि छलिऊण तस्सावहरणं कीरइ त्ति । ता कुणसु पसायं, समाइससु आएसं, जेण अवहरामि तुरंगमं छम्मासब्भंतरे । तुरमाणेहि य न तीरइ तं तुरंगमं अवहरिउं । जओ तुरमाणो न को वि कज्जसाहणसमत्थो दिट्टो' । 2010_02 Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ जंबुचरियम् जेण- मउया विज्जइ सिसिरे, सूरस्स वि पेच्छ तेयरासिस्स । गरुओ वेसपयावो, अच्छउ तावन्नपुरिसस्स ॥३०॥ भणियं च- "तुरमाणेहिं न सक्का, अत्थो विज्जा य रायलच्छी य । हियइच्छियरा य भज्जा, विप्पियकरणं च सत्तूणं" ॥३१॥ [ ] राजनीत्यावप्युक्तम्__ "न शक्यं त्वरमाणेन प्राप्तुमर्थांश्च सुदुर्लभान् । __ भार्यां [ च] रूपसंपन्नां शत्रूणां च पराजयम्" ॥३२॥ [ ] तओ राइणा एवं भणियप्पयारेण तस्स बुद्धिकोसल्लं च दद्रुण नाऊण जहा एसो जइ परं तुरंगमअवहरणसमत्थो । न पुण अन्नो अत्थि उवाओ । भणियमेवं कुणसु त्ति । लद्धाएसो य नीहरिओ सो राइणो सयासाओ । गओ जिणयंदभवणं पणिवइओ तिहुयणपरमगुरूणं वंदिया य साहू । पभणिया य तेण ते जहा-'नारयतिरियनरामरभवेसु संसरणमूलमूलस्स, जाइजरामरणरोगरयमलकिलेसवाहीइट्ठविओगाणिट्ठसंपओगसारीरमाणसाइमहादुक्खहल्लकल्लोलवीईतरंगस्स, कोहमाणमायालोभकामरागदोसमहामोहजलयरस्स, भयमोहन्नाणमिच्छत्तकुग्गाहकुडिललयासमोत्थइयस्स दुरंतपंतलक्खणस्स महासंसारसमुद्दस्स उद्धरणसमत्थं भयवं मम जिणवयणबोहित्थं पसाईकरेह' त्ति । पयासियं च संसारभओव्विग्गं तेण साहूणऽप्पाणं । न नायं च साहूहिं तं तस्स मायाकुडिलत्तहिययत्तणं । सव्वहा रंजिया तेण साहवो । भणियं च- "कालन्नुओ विणीओ, पुव्वब्भासी पियंवओ दक्खो । चाई पडिवन्नदढो, भण कस्स न रंजए हिययं" ॥३३॥ [ ] अन्नेहिं वि भणियं "कडुयं पि भन्नमाणो, अणुकूलं भासिउं अयाणंतो । को तस्स गुणे वि....णा उज्जंगलरोसणा होइ" ॥३४॥ [ ] तओ एवं च सत्थभावेहिं तेहिं साहहिं दिन्नो से जिणवयणुवएसो । कहिओ सावगधम्मो । गहिओ य तेण मायाए । जाओ य सो सावगसामायारीए परिकसलो । तओ गामाणुग्गामं पूइज्जंतो साहमिओ त्ति काउं सावगकुलेहिं समागओ वसन्तउरं नयरं ति । तत्थ य गओ जिणाययणं, वंदिया य जिणवरिंदा साहुणो य । दिवो य 2010_02 Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरसमो उद्देसओ १६९ जिणयाससावएणं वंदिया य परोप्परं । पुच्छियं च जिणयासेण-'कुओ य साहम्मियाण समागमणं' । तेण भणियं-'जरमरणरोगरयमलकिलेसायासबहुले संसारमहन्नवे निमज्जमाणाणं जंतूणं नत्थि अन्नं सरणं मोत्तूण जिणप्पणीयं धम्म जिणजम्मनिक्खमणनिव्वाणभूमिपवंदणं च । ता इमं नाऊण तित्थजत्ताए अहं समुच्चलिओ तामलित्तीओ महानयरीओ वंदिऊण य सयलतित्थाई पुणो वि नियपुरवरीहुत्तं संपत्थिओ'त्ति । तओ जिणयासेण भणियं-'सोहणो ते इमो परिस्समो । न थोवपुन्नपब्भारस्स इमो ते धम्मसाहणोवाओ । सुलद्धं ते माणुसजम्म-फलं'ति । एवं च बहुहा पसंसिऊण भणिओ जिणयासेण-'आगच्छ, घरचेइयाइं वंदसु'त्ति । तओ सायरं सबहुमाणं च चलिओ सो । पत्ता य गेहं । वंदिया य तत्थं जिणा । मज्जणभोयणाइं च निव्वत्तियं सयलं करणीयं । भुत्तुत्तरसमए य तित्थयरसाहुकहावावडमणा अच्छिउं पयत्ता । एवं च अच्छमाणाण सभागयं अन्नगामस्स जिणयासबंधवाणं विवाहकल्लाणनिमंतणनिमित्तं हक्कारणं ति । भणिओ य समागयपुरिसेहिं जिणयासो जहा-'सव्वहा वि तुब्भेहिं सपरियणेहिं तत्थ गंतव्वं'ति । तओ जिणयासेण भणिओ सो कवडसावगो-'अज्जेक्कं ते मम गिहे भलणीयं, इमं च तुरंगमरयणं परिरक्खणीयं । नन्नस्स कस्स वि अहं समप्पेमि । तुमं पुण साहम्मिओ मम निव्विसेसो सव्वकज्जेसु वीससणीओ य' । तेण भणियं-'अहं गमणुस्सुओ तहावि जइ तुम्ह न अन्नो को वि वीससणीओ अत्थि ता एवं अच्छामि'त्ति । चिंतियं च णेण । अवि य- सूए पयं पलोटूं, मज्जारो दामिओ [य] मंसेण । जलिए हुयासणंमी, कह पक्खित्तं घियं एयं ॥३५॥ तओ वीससिऊण तस्स गओ जिणयासो।। अवि य- सुयणो सरलसहावो, अप्पाणं पिव परं पि मन्नेइ । न मुणइ कुडिलं पि मणं, परस्स नियसच्छहावेण ॥३६॥ भणियं च- "सुयणो न याणइ च्चिय, खलस्स हिययाई हुंति विसमाइं । अत्ताणहिययसुद्धत्तणेण हिययं समप्पेइ" ॥३७॥ [ ] तमि य दियहे तंमि नयरे को वि महूसवो वट्टइ । तओ सव्वो वि नायरजणो रयणीए रीलिउं पयत्तो । सो य संझासमए तमारुहिय तुरंगमं गंतुं पयट्टो । तओ सो तुरएण पुलाविओ गओ चेइ[य]हरं । तत्थ य तिक्खुत्तो पयाहिणं काऊण पुणो वि 2010_02 Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० जंबुचरियम् उक्कढिऊण गेहं गओ त्ति । एवं च इमेण कमेण कसपहारेहिं ताडिज्जमाणो वि घराओ चेइयहरं, चेइयहरा[ओ] वि घरं पुणो गंतुं पयत्तो, न पुण अन्नं पहं पवज्जइ त्ति । ताव जाव पहाया रयणी । तओ पणट्ठो आसं परिचइऊण सो कवडसावगो । संपत्तो य एयंमि अवसरे जिणयासो गामाओ नियनयरबाहिरियं । भणिओ य कीलाविणिग्गयलोएण जहा-'अज्ज तुब्भेहिं सव्वरयणि पि परिवाहिओ तुरंगमो ?' । तेण भणियमामं ति । तओ सिग्घपयनिक्खेवं सासंकहियओ य गओ तुरमाणो सगेहं । विहाडियं च तत्थ कवाडसंपुडं पविट्ठो तुरंगमावासं दिट्ठो य परिमिलाणदेहो तुरंगमो । तओ परिचिन्तियं च णेण-'अहो ! पेच्छ कहमहं पडिचुक्को अक्खंडिओ तस्स कवडसावगस्स । धम्मवज्जेण कह च्छलिओ तेण डंभपहाणेण । ता अज्ज वि अस्थि मे जिणपणीयधम्मपहावजणियाइं पुन्नाइं जेण एसो परिच्छुट्टो त्ति । तओ सुट्टयरं च परिरक्खणुज्जुओ जाओ । ता जहा मुवेसो (?) तुरंगमो उप्पहेण न पडिवन्नो न य सिक्खापरिच्चाओ कओ तेण । एवमहं पि न जिणप्पणीयं धम्मपहं मोत्तूणं न विसयासानिवडिओ इंदियवसवत्ती तुम्हं कएण कुप्पहं पवज्जामि । जयगुरुपयंसियधम्मसिक्खापरिच्चयं विहेमि त्ति । तहा जं तए भणियं-जहा थेरीए अप्पा विणासिओ अइअत्थलुद्धाए, एवं तुमं वि अन्नं किंपि अणिच्छियविणिवायंतरं पाविहिसि त्ति । तत्थ निसुणसु' । अवि य- चारित्तनाणदंसणवीरियतवनियमसंजमजयस्स । सज्झायझाणभावणणिच्चं चिय वावडमणस्स ॥३८॥ पाणवहालियमेहुणपरिग्गहादिन्नदाणविरयस्स । तह कोहमाणमायालोभिदियभग्गपसरस्स ॥३९॥ तह सद्दरूवरसगंधफासविसयरागदोसनिहयस्स । मणवयणकायदंडा निच्चं परिसंभमाणस्स ॥४०॥ सव्वन्नुवयणवित्थरपरमत्थपयत्थदिट्ठसारस्स । अन्नाणमोहमिच्छत्तकुसुइपरिहार वि]दुरस्स ॥४१॥ किं बहुणा भणिएणं, निच्चं चिय चरणकरणजुत्तस्स । संजमजोएहिं निरंतरं च परिभावियमइस्स ॥४२॥ 2010_02 Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७१ तेरसमो उद्देसओ न हु को वि होइ अन्नो, विणिवाओ एत्थ सुंदरि ! अणिट्ठो । कज्जाकज्जविवेइयमणस्स जिणवयणकुसलस्स ॥४३॥ ता सुंदरि ! जच्चतुरंगमो व्व परमत्थसिक्खपरिमग्गं । विसयाण कए चइडं, कुपहं न कयावि वच्चामि ॥४४॥ सव्वगुणागरपालणजुत्ता, संजमनाणसुए य पसत्ता । मोहभडं हणिऊण सुधीरा, भव्वजणा इह हुंति विरत्ता ॥छ। ॥४५॥ इय जंबुणामचरिए उद्देसो नागसेणभज्जाए। दत्तोत्तराभिहाणो एस समत्तो सुणह सेसं ॥छ।। ॥४६॥ 2010_02 Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ चोद्दसमो उद्देसओ ॥ कंठट्ठियमुत्ताहलमऊहसन्नियरधवलियदिसिाए । एत्थंतरे य भणियं, कणगसिरी नाम भज्जाए ॥१॥ पियसहिओ ! एसम्हं, होज्ज पिओ गामवोद्दसारिच्छो । जह सोअइ गाहाओ, परितत्तो तप्पिहीमो वि ॥२॥ तओ इमं च निसामिऊण वियसंतवय[ण]पंकएण भणियं जंबणामेण-'को सो दइए ! गामवोद्दो, कहं वा सो परितत्तो ?' तीए भणियं । अवि य बंगा नाम जणवओ, इहेव भरहंमि अत्थि विक्खाओ । भद्दालंदो गामो, नामेणं तत्थ अत्थि वरो ॥३॥ तत्थ य एगो गामउडो परिवसइ । अन्नया मरणावसाणयाए जीवलोयस्स, पंचत्तमुवगओ सो । तस्स य अत्थि एगो पुत्तो जोय(व्व)णत्थो, सो य अईव विसयपसत्तो। न कि पि घरवावारं सामायरइ त्ति । तओ सो जणए परोक्खे विसीयमाणं दट्ठण घरं जणणीए भणिओ-'वच्छ ! ते जणओ सव्वायरेण सव्वकज्जेसु समारुहंतो न य किं पि विसूरणं च तइया आसि । तुमं पुण विसयपसत्तो उवेक्खसि विसीयंताई सव्वकज्जाई । न मुणसि एत्थ कुटुंबे किं पि अत्थि नत्थि वा, कहं वा, परिपालेयव्वं'ति ?, भणियं च- "पुव्वपुरिसाणुचरियं, जं कम्ममनिंदियं हवइ लोए । पुत्तेण वि कायव्वं, तं चिय एसो जणे नियस्सु" ॥४॥[ ] इमं च भणमाणी रोविउं पयत्ता । तओ तेण भणिया-'मा अंबे ! अधिई कुणसु । अज्जप्पभिई घेत्तूण अहं पि तायसंतियं वावारं अणुचिट्ठिस्सामि'त्ति । अन्नया य सो गामेल्लयपुरिससमन्निओ अत्थाइयाउवविट्ठो आलावसंल्लावेहिं चिट्ठिउं पयत्तो । एयम्मि 2010_02 Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोद्दसमो उद्देसओ १७३ अवसरे भम्महसत्थाओ एक्को खरो जोत्तयं गहिऊण तेणंतेणं पहाविओ । तओ पिट्ठओ पहावमाणेण तस्स सामिएण ते अत्थाइयपुरिसा भणिया-'अहो ! एत्थ जो तुम्हाणं मज्झे समत्थो सो एयं पहाविऊण गिण्हउ दुट्ठरासहं ' ति । तओ तेण चिंतियं-'मम जणओ वि सव्वकज्जेसु सव्वायरेण समारुहंतो अंबाए कहियं, ता अहं पि एयं गिण्हामि' त्ति चिंतिऊण पहाविओ गहिओ पुच्छे । तओ पच्छिमपहारेण संचन्निया तस्स दसणावली तहा वि न मुंचइ तं खरं । किल जणओ वि मे निच्छिओ आसि । ता कहं विमुच्चामि ? तओ निद्दयचलणपहारेहिं पुणो पुणो पहओ । तओ भणिओ लोएण-'अरे ! मुंच मुंचसु त्ति एयं दट्ठ(दुट्ठ)खरं' ति । तहा वि न मुंचइ । किल मया अंबाए समक्खं इमं जणयसंतियं दढसमारुहणं पडिवन्नं ति । ताव जाव गुरुपहारविहलो निवडिओ धरणीए । गहिओ गुरुपहाराहिं दुक्खसंतावेण । ता जह सो परितत्तो, गाहाओ निवारिओ वि लोएण । तह मा तुमं पि तप्पिसि, पिययम ! अइगरुयगाहाओ ॥छ। ॥५॥ तओ इमं च निसामिऊण भणियं जंबुणामेण-'सुंदरि ! निसुणसु । अवि य- वडवाए पोसओ वि य, नाहं तुम्हाण आभिओगेण । कम्मेण वसवत्ती, विहेमि लुहुडुखु(क्खु)डं जेण ॥६॥ तीए भणियं कह सो, वडवाए पोसगो कहसु अम्ह । किल आभिओगजणियं, लुहुडुखु(क्खु)डमेत्थ संपत्तो ? ॥७॥ तओ जंबुणामेण भणियं । अवि य- अत्थि सरसरियसोहिरनीरपसत्ताणिसरसतामरसो । इह भारहमि वासे, नामेण कलिंगविसओ त्ति ॥८॥ तत्थ य सीहनिवासो नाम एक्को गामो । तत्थ य इक्को भोइओ परिवसइ । तस्स अच्चंतसुंदरी इट्ठा य एक्का वडवा अत्थि । सो य जहा कुडुंब परिवालइ तहा तीए वि जवसजोगासणेण तेल्लघयदाणेण य अक्खूणं कुणइ त्ति । समप्पिया य सा सोलगाभिहाणस्स एगस्स पुरिसस्स परिवालणत्थं । सो य तं जोगासणं कि पि तीए दाऊण सेसं सव्वं जहोच्चियं अप्पणो कुणइ त्ति । अन्नया असारयाए पावसंसारस्स, सपज्जवसाणयाए जीवलोयस्स, मरणंतयाए सव्वपाणिणं कालकलिणा कवलिओ सो _ 2010_02 Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ जंबुचरियम् सोलगाभिहाओ वडवापालगो वडवा य। तओ हिंडिऊण नाणाविहतिरिय......दो वि ताई। तओ कालंतरेण तहाविहकम्मोदएण खिइपण(इ)ट्ठिए नयरे सोमदत्तमाहणस्स सोमसिरीए भट्टिणीए गब्भत्ताए उववन्नो सोलगजीवो । जाओ य कालक्कम्मेण । वड्डिओ देहोवचएण । सा वि वि(व?)डवा बहुं हिंडिऊण संसारं तम्मि चेव नयरे कामपडायाभिहाणाए गणियाए धूयत्तणेण संजाया । पत्ता य जोव्वणं । सो य सोलगबडुओ संपत्तो जोव्वणं । तओ जोयणभरसुलभत्तणेण य मयणस्स गहिओ सो मयणवियारेण । संपलग्गो य तीए गणियादुहियाए । ओइन्नं च तं वच्चणपच्चयं आभिओगियकम्मं । तस्स कुणइ य जलिधणाइसमाणयणं । पमज्जणोवलेवणाइयं च सव्वं घरकम्मं । सा वि नरवइसुयसत्थवाहसेट्ठिसुएसु य सममभिरममाणी चिट्ठइ त्ति । अवमन्नइ य । तओ भणइ य 'हा किमेसो नयणाणिट्ठो परिपेल्लिओ वि न मुंचइ मम गेहं ?' तओ सो तीए दुव्वयणं अमयसरिसं मन्नमाणो सव्वं पेसणाइयं कुणइ त्ति । परिपेल्लिज्जमाणो वि न णिग्गच्छइ । दढयरं च तीए चित्ताराहणपरो संजाओ । एवं सो ताडणधाडणतण्हाछुहाओ परिस्सहमाणो तत्थ निधाडिज्जमाणो वि अच्छिउं पयत्तो । भणिओ य सो जणणिजणएहि-'वच्छ ! मा इमाए आसत्तो अप्पाणं दोण्ह वि लोयाण परिभटुं कुणसु । मुंचसु य इमं । अन्नं ते दारियं वरेमो विसुद्धजाइकुलसमुप्पन्नं । अन्नं च वच्छ ! इमाओ वेसाओ विसिट्ठजणपरिनिंदियाओ विडजणबहुमयाओ य । अणेयपुरिसमग्गणपराओ रज्जंति अत्थवंते, मुंचंति णिरत्थयं, अकुलीणं पि पुरिसं सुकुलुब्भवं पिव समायरंति । अत्थलुद्धाओ गुरुकुलसमुब्भवं पि अवमन्नंति धणपरिहीणं । जओ एयाओ'अवि य- महुयरपंतीओ इव, सदाणमायंगसेवणरयाओ । रत्तायरिसणन(नि)उणाओ जाओ निच्चं जलोय व्व ॥९॥ डाइणिओ इव जाओ, सुंदरनरछलणतग्गयमणाओ । पियमंसाहाराओ, कूराओ रक्खसीओ व्व ॥१०॥ सुरपाणपसत्ताओ, चामुंडाओ व्व निद्दयमणाओ। अत्थावहारिणीओ, दुट्ठाओ चोरसेण व्व ॥११॥ चित्तावहारिणीओ, नडो व्व एयाई हुंति पावाओ । मायंगग(घ)रं व जहा, परिवज्जियसिट्ठलोयाओ ॥१२॥ 2010_02 Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोसमो उद्देसओ जलहरसमओ व्व जहा, जाओ बहुपंकपावमलिणाओ । गिम्हसमओ व्व निच्चं, परिवड्डियगरुयतण्हाओ ॥१३॥ परलोयविम्मुहाओ, लोयाय[य]दिट्ठिओ व्व एयाओ । वेज्जो व्व हुंति जाओ, कोढियवलखयइकलियाओ ||१४|| भणियं च - " चोप्पपडयं ( ? ) मसिमंडियं पि रामंति अत्थलुद्धाओ । सिरिवच्छंकियवच्छं, मुहाए विण्हुं पि नेच्छति ॥१५॥ [ ] अत्थस्स कारणट्ठा, मुहाई चुंबंति वंकविरसाई । अप्पा णो च्चिय वेसो, कह ताण पिओ परो होउ ॥ १६ ॥ [] अन्नेण गहियमुक्का वज्जियनेहा पणट्ठसब्भावा । उच्चिपत्तलिं पिव, भण को वेसं समल्लियइ ॥ १७ ॥ [ ] को नाम नरो चुंबे, वेसामुहपंकयं मणि ( ण )भिरामं । जूयकरचेडतक्करनरभडनिडूहणमल्लं व" ॥१८॥ [ ] ता सव्वहा वि वच्छ ! विवज्जणीयाओ वेसाओ । जओ एयाओ असुइट्ठाणं कोवानलस्स । पढमकारणं मायापवंचस्स । अणुवहयबीयं महादुक्खतरुणो । महाप नरयगईए । उट्ठाणं माणस्स । पभवो लोहस्स । महाविग्घं धम्माहिलासस्स । मूलं संसारनिवासस्स । जम्मभूमीओ सयलाणं पि अणत्थाणं ति । ता वच्छ ! परिच्चयसु वेसापसंगं । अंगीकरेसु महापुरिसचरियं । भवसु य नियघरवावाराभिउत्तो । तओ एवं पि भन्नमाणेण न परिचत्ता सा तेण । तओ एवं च सो तीए घरे किंकरो व्व दुक्कयकम्मपसत्तो निंदिज्जमाणो जणेण, खिंसिज्जमाणो वयंसएहिं खरंट्टिज्जमाणो सयणेण, दुह वि लोयाण परिचुक्को अकयपुन्नो तत्थेव खयं गओ त्ति । अवि य- अत्तो (न्नो) वि जो पसत्तो, वंचेइ परं कुडुंब अत्थंमि । सो अप्पाणं वंचइ, परलोए सव्वसोक्खाणं ॥१९॥ दारसुयाण निमित्ते, सुन्हाधूयाण बंधवाणं च । मूढो करेइ पावं, एक्को च्चिय सहइ तं सव्वं ॥२०॥ १. नास्तिकदृष्टिरिव । 2010_02 १७५ Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ छिंदणभिंदणफालणउक्कत्तणमोडणारं दुक्खाइं । नरयंमि गओ पावइ, जीवो दुहकम्मजणियाइं ||२१|| पज्जलियजलणजालावलीए नरयंमि डज्झमाणाणं । न हुहुंति नवर सरणं, जायाओ वि पियाओ ||२२|| सुटु जाण कए बहु पावं, कीरइ जीवेण सोक्खतण्हाए । ताओ नरयगईए, गयस्स जायाओ न हु सरणं ॥ २३ ॥ भणियं च - " एयाण कमलदलए, चलणे पवराण नूण विलयाण । नए न हुंति सरणं, पुरिसाण निबुडुमाणाणं" ॥२४॥ [ ] कोमलकयलीसरिसं, ऊरूजुयलं पि जाणिमेएसिं । नए न होइ सरणं, पुरिसाण निबुड्डुमाणाणं ॥ २५ ॥ एयाण नियंबडं, पिहुलं कलकणिरकंचिदामिल्लं । नरए न होइ सरणं, पुरिसाण निबुड्डुमाणाणं ॥२६॥ पीणं चक्कलतुंगं, हारावलिसोहियं च थणवद्वं । नरए न होइ सरणं, भणामि धम्मक्खरं तेण ||२७|| वियसियसयवत्तनिभं, मुहयंदं जइ वि होइ जुवईणं । नरए नूण न सरणं, तेण हियं तुम्ह तं भणिमो ॥२८॥ दीहरपम्हलधवलं, नयणजुयं जइ वि नूण जुवईण । नरए न होइ सरणं, चिंता मह तेण हिययम् ॥२९॥ कयलीगब्भसरिच्छं, अईव फासेण कोमलं जइ वि । देहं न होइ सरणं, नरयं निबुड्डुमाणाणं [ मि] ॥३०॥ इय जाणिऊण एयं, ताणं सरणं च नत्थि नरयंमि । तम्हा करेह धम्मं, नरयम्मि य जेण नो जाह ॥३१॥ तम्हा एयाण कए, वंचेऊणं सुहाण सव्वाण । अप्पा नरयगईए, कह निज्जउ बुद्धिमंतेहिं ॥३२॥ 2010_02 जंबुचरियम् Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७७ चोइसमो उद्देसओ ता सुंदरि ! वडवापोसगो व्व न हु किं पि तुम्ह घेत्तूण । उववन्नो एत्थ अहं, वच्चामिह निक्कयंतस्स ॥३३॥ विहडियगुरुकम्मा गेहवासं पमोत्तुं, तवकरणसमग्गा जे य चारित्तलीणा । इय सयलगुणोहं पावि(लि)?ऊणं सुधीरा, सिवसुहवरमग्गं ते पवज्जति लीणा ॥छ। ॥३४॥ इय जंबुणामचरिए कणयसिरीदत्तउत्तरभिहाणो । उद्देसगो समत्तो एत्तो य परं पवक्खामि ॥छ। ॥३५॥ 2010_02 Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ पनरसमो उद्देसओ ॥ सरयसमाग[मससहर? ] वियसियवरकमलसरिसवयणाए । एत्थंतरे य भणियं कमलवई नाम भज्जाए ॥१॥ पियसहिओ ! एसऽम्हं होज्ज पिओ नूण पक्खिसारिच्छो । इच्छइ जेण सुहाई, निंदह पुण कारणं तस्स ॥२॥ तओ इमं च निसामिऊण वियसंतवयणकमलेण भणियं जंबुणामेण-'को सो सुंदरि! पक्खी ? कहं वा सुहमिच्छइ, सुहस्स य कारणं परिनिंदइ' त्ति? तओ तीए भणियं । अवि य- अत्थि इह भरहवासे, गोउरसुरभवणसालपरिखित्तं । अरिजयपुरं पसिद्धं, नयरं सुरलोयसारिच्छं ॥३॥ तम्मि य नयरे अच्छमाणाणं सुहंसुहेण सव्वलोयाणं, अन्नया य समागया अहमा वीसिया । तीए य गओ संवच्छरो । तेण य कया महाअणावुट्ठी । जाओ य दुक्कालो। तओ निवडंति पंसुवुट्ठीओ। धमधमायन्ति महावायाओ। उकंपए मेइणीवीढं । निवडंति निग्घाया। धूमायंति सयलदिसाओ । निवडइ महामुंमुरंगारनिभो दि[ण] यरकरविमुक्को आयवमहासंतावो । तओ एवं च महाउप्पाएसु निवडमाणेसु उच्छन्नाओ ओसहीओ । न रोहंति तणंकुराई । परिसडियपत्ता पायवा न दिति कुसुमफलाई ति । तओ एवं च महारउरवभूयाए मेइणीए कि जायं? विउत्थिया सयले पुहइपाला । उत्थरंति परचक्काई । उव्वसंति गामा । भज्जति महानयराइं । जाव सए जणो(?) सिढि[लि]ज्जंति देवच्चणपूयासक्कारविहाणाइं । न समायरिजंति अतिहिसक्कारा । विसंवयंति गुरुसम्माणपूयणपयाणाई । परिहरिज्जति पणइयणदाणाइं । पमाइज्जति पोरुसाइं । अवमन्निज्जति दक्खिन्नाइं । वंचिज्जंति पुत्तभंडाई पि । आहारगहणवेलाए जोइज्जए जइणो वि पुट्ठी । दुट्ठभज्जाओ य सिढिलिज्जंति भत्तारेहिं । 2010_02 Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७९ पनरसमो उद्देसओ भणियं- "गलइ बलं उच्छाहो, अवेइ सिढिलेइ सयलवावारो । नासइ सुत्तं अरई, पवड्डइ असणरहियस्स" ॥४॥[ ] तओ एरिसम्मि रउरवीभूए काले महादुक्कालपीडिए सव्वजणसमूहे, तस्स य अरिंजयपुरस्स नरय(यर)स्स देवदिन्नो नाम एगो माहणजुवाणो छुहापीडियसरीरो अट्ठिचम्मावसेसदेहो दीणत्तणमुवगओ विणिग्गओ सह पंथियजणसमूहेण जीवणत्थं अन्नं देसंतरं । पत्तो य कालंतरेण एक्कं सुभिक्खनयरं । तत्थ य कुणइ दुग्गयकम्माइं। अन्नया य दारुयनिमित्तं गओ सो एक्कं पव्वयनिगुंजं । तओ इओ तओ पव्वयगुहासु दारुगवेसणपरेण सुओ तेण सद्दो कस्स वि पक्खिणो । माणुसभासाए ‘मा साहसं, मा साहसं' ति एवंरूवो। तओ तेण चिंतियं-को एसत्थ महारन्ने पव्वयनिगुंजे गुहाविवरसंकडे माणुसभासाए समुल्लवइ ? । ताहे निरिक्खामि । को एसागओ य । गओ तओहुत्तं । दिट्ठो तेण गुहामुहविवरपसुत्तो एक्को महाभासुरो मयवई । दिट्ठो य तस्स मुहविवरं पविसिऊण दंतंतरपलग्गाओ मंसपेसिओ गहेऊणं तरुवरसाहाविलग्गो [पक्खी] वाहरमाणो ‘मा साहसं, मा साहसं' ति । पुणो पुणो गहिऊणेयं । तओ तेण माहणजुवाणेण एवं दटुं(ट्ट)णेवं भणियंअवि य- ‘मा साहसं'ति पलवसि, सीहमुहं पविसिउं हरसि मंसं । अइमुद्धडो सि सउणय, जह जंपसि तह न यायरसि ॥५॥ जइ जाणसि ताव इमं, कह एयं मुद्ध तं समायरसि । अह एवं कुणसि तुमं, वाहरसि निरत्थयं कहणु ॥६॥ ता सामि ! तुमं सरिसो, अम्हं पडिहासि पक्खिणा तेण । इच्छसि सुहाई भोत्तुं, निंदसि पुण कारणं तेसिं ॥७॥ ता ताव इमं सोक्खं, उवलद्धं चेव इत्थ पच्चक्खं । भुंजसु एयाहिं समं, सुरकामिणिहसियरूवाहि ॥८॥ मिउसण्हकसिणकंचियसिणिद्धवरचिहुरसोहिरसिराहिं । सरयससिपुन्ननिम्मलसमसोहिरवयणकमलाहिं ॥९॥ दीहरपम्हलनिम्मलधवलविरायंतनयणजुयले(ला)हिं । ससहरमऊहसन्निभदस[ण]विरायंतजोण्हाहिं ॥१०॥ ___ 2010_02 Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० भणियं च सविलासहसियजंपियविब्भममयचिंधजणियसोहाहिं । वेल्लहलसरलकोमलपलंबवरबाहुलइयाहिं ॥११॥ पीणनियकलस[पीणुन्ननिय ? ] थणहरगुरुणा (भा) [रेणं] । पिहुलनियंबत्थलसोहिराहिं करभोरुजंघाहिं ॥१२॥ 44 इयदिणयर(इंदीवर?)दलसमनहसणाहवरचलणजुयलकमलाहिं । भुंजसु भोए पिययम !, एयाहिं समं सुरिंदो व्व ॥१३॥ इय एरिससुंदरमणभिरामविसयसुहसमूहदुल्ललिओ । अच्छसु किं अन्नेणं, अदिट्ठसोक्खेण तुह नाह ! ||१४|| "" 'धणिय कुलीणी घरि सरइ, अन्नु भुयणि जसु पडहु वज्जइ । एत्थ समप्पइ मोक्खसुह, मोक्खि सोक्खु किं कवलेहिं खज्जइ ॥१५॥[ ] ता मा भणिओ वि तुमं, मा साहससउणसन्निभो हो । जं चिय इच्छसि भोत्तुं मा निंदसुं तमिह संलद्धं ॥ | ॥१६॥ तओ इमं च निसामिऊण भणियं जंबुणामेण - ' सुंदरि ! निसुणसु' । अवि य- बीयवयंसयसरिसाण सुयणु ! तुम्हाण कह णु मंति व्व । अहयं विसयासत्तो, वि एस भवसायरं भमिमो ॥१७॥ जंबुचरियम् तीए भणियं वरजस !, को मंती को य एत्थ सो मित्तो ? | कह अम्हाणासत्तो, भमिहिसि भवसायरं तं सि ? ॥१८॥ तओ जंबुणामेण भणियं अत्थेत्थ भरहवासे पुरमेक्कं खिड्पइट्ठियं नाम । उत्तुंगधवलपासायपरिगयं फरिहयसमेयं ॥१९॥ तं भुंजइ नरनाहो, तइया अवराइओ त्ति नामेणं । तस्य सुबुद्धिनामो, काम (कमा?) गओ अत्थि वरमंती ॥२०॥ सोराया वरभोए, भुंजइ नियकामिणीहिं आसत्तो । आरोवियरज्जभरो, अह तम्मि सुबुद्धिमंतिमि ॥२१॥ तस्सऽत्थि तिन्निमित्ता, सुबुद्धिमंतिस्स ताण जो पढमो । सो ण्हाणखाणभोयणवत्थसमालहणएहिं च ॥२२॥ 2010_02 Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ पनरसमो उद्देसओ आईओ घेत्तूणं निययसरीरं व मन्तिणा तेण । परिपोसिओ य सययं, सव्वेसुं चेव कज्जेसु ॥२३॥ बीओ पुण वसणू(पुण छणु?)सवेसु मित्तो भुंजेइ तस्स गेहम्मि । तइए य दिट्ठमेत्ते 'जोकारे'णं तु ववहारो ॥२४॥ सो अन्नया य राया, परिकुविओ कारणेण केणावि । मंतिस्स सो वि भीओ, संपत्तो पढममित्तगिहं ॥२५॥ भणियं च- "सो अत्थो जो अह)त्थे, तं मित्तं जं निरंतरं वसणे । तं रूवं जत्थ गुणा, तं विन्नाणं जहिं धम्मो" ॥२६॥ [ ] "असढहियओ सलज्जो, सुसहावो वच्छलो कयन्नूय । विहलुद्धरणधणो वि हु, मित्तो इह होइ धन्नाणं" ॥२७॥ [ ] "पंथसमा नत्थि जरा, दारिद्दसमो परिभ( ब्भ )वो नत्थि । मरणसमं नत्थि भयं, छुहासमा वेयणा नत्थि" ॥२८॥ [ ] कहियं च तस्स सव्वं, जह राया मित्त ! मज्झ परिकुविओ । ता संपइ तह कीरउ, जहहं गच्छामि परविसयं ।।२९।। मम तं भवसु सहाओ, गच्छसु तं मित्त ! निक्कयं अज्ज । जं मे तुह उवगरियं, तं कीरउ अज्ज इह सहलं ॥३०॥ भणिओ अह सो तेणं, गच्छसु गेहाओ मज्झ तं सिग्घं । कोसि तुमं किं दिट्ठो, जेण य मम आगओ गेहं ॥३१॥ किं तुज्झ कएण अहं, गिण्हामिह राइणा सह विरोहं । ता गच्छसु सिग्धं चिय, मम गेहाओ तुमं को सि ॥३२॥ सोउ(ऊ)णिमं विसन्नो, सो मंती पेच्छ केरिसं एस । परिजंपइ मम भित्तो, जो नियदेहं व मे आसि ॥३३॥ अहवा भणियं "उवयारसहस्सेहिं वि, वंकं को तरइ उज्जुयं काउं । सीसेण वि वुब्भंतो, हरेण वंको चिय मयंको" ॥३४॥ [ ] 2010_02 Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ जंबुचरियम् ता अस्थि मज्झ बीओ, भुंजतो ऊसवेसु जो मित्तो । परिचिंतिऊण एवं, गओ य सो तस्स गेहंमि ॥३५॥ तस्स य सव्वं कहियं, सो विय अब्भत्थिओ गमणहेउं । भणियं च तेण एए, कह सयणा छड्डिमो इण्हीं(हिं) ॥३६॥ रायविरुद्धं च इम, तहाविहं मित्त ! तुज्झ कज्जेण । गच्छामि तुह सहाओ, वसिमंतं जाव नयरस्स ॥३७॥ सोउं(ऊ)णिमं विसन्नो, मंती चिन्तेइ अत्थि मे तईओ। जोकारमेत्तमित्तो, गंतुं अब्भित्थिमो तं पि ॥३८।। स मया संते वि धणे, मणयं पि न किं पि आसि पडियरिओ। एवं विचिंतयंतो, गओ य अह तस्स गेहंमि ॥३९॥ दट्ठण सो वि मंति, दूराओ समागयं ति भणमाणो । अब्भुट्ठिओ य सहसा, कयं च सव्वं पि करणीयं ॥४०॥ सिटुं च तस्स सव्वं, भणिओ तं मित्त ! कुणसु साहेज्जं । वच्चसु मज्झ सहाओ, अन्नं रज्जंतरं जाव ॥४१॥ अह सो वि भणियमेत्तो, घेत्तुं वसुणंदयं च खग्गं च । उप्फुल्लवयणकमलो, मंतिं सो भणइ परितुट्ठो ॥४२॥ निवडइ [य] आवयाकसणवट्टए सुअणुमित्तसब्भावो । आवइपत्ते चंदे, मयरहरो पेच्छ कह खीणो ॥४३॥ भणियं च- "सुयणस्स विहलियस्स वि, पुणो वि सुयणेण होइ उद्धरणं । पंकपडियं गइंदं, को कडूइ वरगयं मोत्तुं ?" ॥४४॥ [ ] अन्नेहिं वि भणियं__"सो च्चिय कीरइ मित्तो, जो च्चिय पत्तंमि वसणसमयंमि । न हु होइ पराहुत्तो, सेलसिलाघडियपुरिसो व्व" ॥४५॥ [ ] जओ भणियं-“सो अत्थो जो हत्थे, तं मित्तं जं निरंतरं वसणे । तं रूवं जत्थ गुणा, तं विन्नाणं जहिं धम्मो" ॥४६॥ [ ] ★ पूर्वेऽपि "सो अत्थो........ ॥ "असढहियओ....... एतद्गाथायुगलमागतमस्ति । 2010_02 Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पनरसमो उद्देसओ १८३ अन्नेहिं वि भणियं "असढहियओ सलज्जो, सुसहावो वच्छलो कयन्नू य । विहलुद्धरणधणो वि हु, मित्तो इह होइ धन्नाण" ॥४७॥ [ ] ता मज्झ एस सहलो, जम्मो अब्भत्थिओ जमिह सुयणु ! । ते आवइपत्तेणं, दुल्लहअब्भणेणेत्थ ॥४८॥ भणियं च- "उक्कत्तिऊण कवयं, दिन्नं कन्नेण तियसनाहस्स । सप्पुरिसपत्थणा जे, करिन्ति ते दुल्लहा हुंति" ॥४९॥ [ ] ता परिमुंच विसायं, पयट्ट सिग्धं तु जत्थ गंतव्वं । अह दो वि ते पयट्टा, पत्ता य जहिच्छियं ठाणं ॥५०॥ दिट्ठो य तस्स राया, कओ पसाओ य तेण मंतिस्स । मंतिपयंमि निउत्तो, जाया ते दो वि सुहभाई ॥५१॥ ता एसो दिटुंतो, कहिओ भे अबुहबोहणनिमित्तं । एयस्स उवणयमिमं, सुण इण्हि तं विसालच्छि ! ॥५२॥ "जह नरवइस्स कोवो जं नृणं होइ तह य इह मरणं । जारिसओ सो मंती तारिसओ होइ पुण जीवो ॥५३॥ जो ण्हाणपाणभोयणवत्थसमालभणलालिओ मित्तो। आवइकालविलोट्टो सो देहो इह [य] नायव्वो ॥५४॥ जओ- सेज्जासणसंवाहणवत्थसमालिहणण्हाणकुसुमेहिं । वेल्लहलविलयकोमलबाहुलयालिंगणेहिं च ॥५५॥ विविहवरपाणभोयणसुयंधतंबोलसुरयदुल्ललिओ। मरणंतं पि निहीणो विलोट्टए एस हयदेहो ॥५६॥ एक्कं पि पयं गंतुं जीवेण समं न होइ एस खमो । तम्हा एयस्स कओ अकयत्थो होइ उवयारो ॥५७।। जो पुण ऊसवमित्तो सो सयणो माइपुत्तवग्गो य । जाया जणओ य तहा नायव्वो बुद्धिमंतेहिं ॥५८॥ 2010_02 Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ जंबुचरियम् जओ सो वि- अइलालिओ वि बहुसो पत्ते मरणंतयंमि सो जेण । गंतुं जाव मसाणं पुणो नियत्तंति सव्वे वि ॥५९॥ न उण पयट्टेण समं मणुयासुरतिरियनारयगईसु । थोवं पि हु साहेज्जं सो तस्स पयच्छइ हयासो ॥६०॥ जो पुण तइओ मित्तो 'जोकारे'णं तु जेण ववहारो । सो जिणवरिंदभणिओ धम्मो इह होइ नायव्वो ॥६१॥ जीवेण समं गच्छइ एसो दुग्गेसु कुणइ साहेज्जं । ता एसो आएओ बुद्धिमया होइ पुरिसेण ॥६२॥ भणियं च- "धम्मो च्चिय चारभडो घेतव्वो पंडिएण पुरिसेण । जो ठाइ अग्गओ मग्गओ य वासे पवासे य" ॥६३॥ [ ] एयं पि मंदबुद्धी केइ पमायंति जंतुणो मूढा । लद्धे वि मणुयजम्मे धम्मसुई सद्धपरिहीणा ॥६४॥ ता मुद्धे ! एक्को च्चिय एसो संसारसायरे घोरे । जंतूण होइ सरणं परलोयपुरं पयट्टाण ॥६५॥ ता एयं मोत्तूणं तुम्ह कए बीयमित्तसरिसीणं । मंति व्व वसणवडिओ होहामि ह कहमहं पच्छा ॥६६॥ तुम्हेहिं परिमुक्को विवज्जिओ धम्ममित्तसंगेण । होहामि कहं अंतोभममाणो भवसमुदंमि ॥६७॥ ता सुंदरि ! एयं चि[य] अहयं सव्वायरेण गिण्हामि । धम्मं जिणपन्नत्तं जं सरिसं तइयमित्तेण" ॥६८॥ इह जे गुणपालण निच्चरया तवसंजमनाणदमे य ट्ठि(ठि)या । उवसंतकसायमहाजलणा अह जंति सिवं परिमुक्कभवा ॥६९॥ इय जंबुणामचरिए, कमलवईदत्तउत्तरभिहाणो । उद्देसगो समत्तो, एत्तो य परं पवक्खामि ॥छ॥ ॥७०॥ 2010_02 Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ सोलसमो उद्देसओ ॥ पिहुलनियंबयउट्ठियरसणामणिकिरणधवलियदिसाए । एत्थंतरे य भणियं विजयसिरी नाम भज्जाए ॥१॥ पियसहिओ ! एसऽम्हं होज्ज पिओ नूण भट्टधूयसमो । सयमइविगप्पिएहिं कुसलो अक्खाणयसएहिं ॥२॥ तओ इमं च निसामिऊण सहरिसं वियसमाणवयणकमलेण भणियं जंबुणामेणका सा सुंदरि ! भट्टधूया ? कहं वा सयमइविगप्पियक्खाणयकुसल त्ति ?' तीए भणियं । अवि य- अत्थेत्थ भरहवासे नयरी वाणारसि त्ति नामेण । गरुयपरक्कमकलिओ राया अवराइओ तत्थ ॥३॥ सो अच्चंतकहापरिसवणाखित्तहिययनिबद्धाणुराओ पइदिणं पि अत्थाणमंडवमुवगओ नायरमाहणयाण कयउवजीवणमहावित्ती अक्खाणगाइं परिवाडीए परिकहावितो उवचिट्ठइ त्ति । अन्नया य एक्कस्स चक्कयरमाहणस्स समागओ अक्खाणगकहणपरिवाडीए दिवसो । तओ सो तम्मि दिणे चिंताभारसमक्कंतो विमणदुम्मणो य दिट्ठो निययधूयाए कन्नकुमारीए। भणिओ य-'ताय ! कि ते पुण चिंतासमुव्वहकारणं?' तओ तेण भणियं-'पुत्त ! अज्ज मम रायत्थाणमंडवसहाए अक्खाणगकहणपरिवाडी समागया । एयनिमित्तं च राइणा कओ अम्ह उवजीवणपसाओ। अहं च सव्वसुईपरिहीणो महाजडो न परिकुसलो इमंमि विसए। ता इमाए मम चिंताए पम्हुटुं भोयणं पि । अच्छउ कहाणगपरिकहणं' । तओ इमं च निसामिऊण भणिओ सो तीए धूयाए-'ताय ! मा वच्चसु विसायं । अहं कहिस्सामि' त्ति । तओ सा पहायसुइभूया धवलवत्थनियंसणा गया य अत्थाणमंडवं । दिट्ठो य नरवई । दिन्नासीसा उवविठ्ठा पुरओ । भणियं च तीए । _ 2010_02 Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ जंबुचरियम् अवि य- नरनाह ! देसु कन्नं सुव्वउ अक्खाणयं जमिह वित्तं । मा गव्विउ त्ति होउं परिभवसु मए तुमं बालं ॥४॥ जओ- बालो वि सुइसयन्नो आएओ होइ बुद्धिमंताण । विद्धो वि होइ हेओ सत्थत्थविवज्जिओ पुरिसो ॥५॥ तओ इमं च निसामिऊण राइणा गरुयविम्हयखित्तमाणसेण-अहो ! पेच्छ इमाए बुद्धिकुसलत्तणं कुमारीए निक्खोभत्तणं च । मम अत्थाणमंडवपुरओ कह सललियक्खरगिराए एसा परिजंपइ-त्ति चिंतिऊण भणिया सा राइणा-'न तुमं बाला जीए ते एरिसो वायाविहवो । ता उवउत्तो अहयं परिकहसु' त्ति । तीए भणियं । अवि य- तुह गुरुविक्कमपसरियजसनिवहदियंतपत्तनियनामा । अत्थि इमा वरनयरी मणिकंचणरयणसंपुन्ना ॥६॥ इमीए वाणारसीए नयरीए अत्थि एगो नागसम्मो नाम चक्कयरो दालिद्दकंदली सयलसुइपरिहीणो । माहणमित्तवेसधारी बि(दि)ओ । सोमसिरी नाम से भज्जा । अहयं च तेसिं धूया । कुमारी अहं । अन्नया य ममं जोव्वणभरे वट्टमाणे दट्टण ताओ गहिओ चिंताए, जहा को इमीए होही वरो । इमंमि य अवसरे समागओ एक्को बडुओ परिब्भममाणो मेइणिमंडलं कस्स वि देसंतराओ अम्ह गेहं । दिन्ना य अहं तस्स समागयबडुयस्स । तओ तंमि चेव दिणे ताओ सह अंबाए मम विवाहनिमित्तं गओ जायणत्थं परिभमणियाए । ममं तं च बडुगं मोत्तूण गेहे । तओ मए चिन्तियं-एयस्स मम दइयस्स कह मए चित्ताराहणं कायव्वं । अहवा उज्झिऊण लज्जं पोढमहिला इव सव्वमुवयारं निव्वत्तेमि त्ति । तओ निव्वत्तियं मए ण्हाणभोयणाइयं सयलं पि तस्स करणीयं । समागया य जामिणी । निव्वत्तियं पुणो वि मए सव्वं तस्स संझायालकरणीयं । अम्ह गेहे एगा चेव खट्टा अत्थुरणगं च । अत्थुरिया य सा मए तस्स । नुवन्नो य सो मम दइओ । मया वि परिचिंतियं अहं पि इत्थेव नुवण्णामि । मा भूमीए पसुत्ताए अन्नो को वि अणत्थो अहिमाईजणिओ भविस्सइ । न य को वि एत्थ तहाविहो अन्नो अत्थि जो ममं एत्थ पसुत्तं दच्छिही । तओ इमं च परिचिंतिऊण तम्मि तस्स सयणीए पसुत्ता अहं । तओ मए हावभावविब्भममयणवियारेहिं कओ सो अवहियहियओ। जाव कामवियारं पयंसिउं पयत्तो । 2010_02 Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमो उद्देसओ भणियं च - " किं न करेज्ज अकज्जं पिएण महिलायणेण भन्नंतो । पुरिसो विसुद्धरूवो वि विसयसंगं समासत्तो" ॥७॥ [ ] तओ किं बहुणा वित्थरेण । भणिया य अहं तेण - 'सुंदरि ! इच्छसु मए समं सुरयपसंगो ?' निच्छियं च मए । अवि य- निव्वत्तयंति तं चिय तं चिय नेच्छंति नूण महिलाओ । वंकं वि वंकचरियं दुल्लक्खं होइ नारीणं ॥८॥ तओ महाराय ! पवत्तो सो वलायारेण ममं परिभुंजेउं । तओ वा (धा) हावियं मए । समागओ सयलो समासन्नलोओ । भणियं च तेण समागयलोएण - 'किमेयं किमेयं ? ' । पसोइओ य सो मए सेज्जाए तुरमाणाए । भणिओ य 'मा भयसु' । पलोट्टियं च धरणीए तहाविहं आसंकाठाणजणगं आहारं । मए भणियं च समागयजणहुत्तं - 'एस एस मम भत्तारो अज्जेव वरिओ, न याणामि केणावि कारणेण उड्डविरेयं काऊण अवडुसरीरो संजाओ ।' तओ लोओ 'मलसु मद्दसु सेवसु य' भणिऊण गओ नियनियट्ठाणेसु । पुणो वि पत्ता अहं तस्स सासे । अवि य- काऊण तं पुणो च्चिय कज्जं विहडाविऊण स (सं) धिन्ति । तत्थुप्पन्नं नारीण न नज्जऍ कह समुप्पन्नं ॥९॥ १८७ भणियं च - " एयाइं असिक्खियपंडियाइं दीसंति एत्थ लोयंमि । कुक्कुडयाण य झुज्झं तत्थुप्पन्नं च नारीण" ॥१०॥ [ ] ता महाराय ! दुल्लक्खहिययाओ एयाओ । भणियं च - " रोयाविंति रुयंति य अलियं जंपिंति पत्तियाविति । कवडेण य खंति विसं मरंति न य जंति सब्भावं" ॥११॥ [ ] गइयह मुइयह दड्डियह निधूम.. ...हूयाह । छारोवाई सहुं रमइ कओ वेसा सुत्तियाह ॥ १२॥ तओ सो महाराय ! मम फासजणियाहिलासनिरोहेण लज्जाभरसमुत्थइयचित्तो ममोवरिं सुरयाभिलासकोऊहलसज्झसेण य संजायमहासूलवेयणो पंचत्तमुवगओ । जओ भणियं च - " परिरुंभइ सोत्तपहे वलेइ हिययं जणेइ मइमोहं । पेमं विसंवसंतं विसं व दंतंतरनिहित्तं" ॥१३॥ [ ] 2010_02 Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८ जंबुचरियम् नाओ मए निच्चेट्टत्तणेण सरीरस्स । हा ! किमेसो एरिसो संजाओ?-ससज्झसाए जाव निरिक्खिओ ताव नाओ निस्संसयं एसो मओ त्ति । तओ महासोआभिभूया विलविउं पयत्ता-हा ! पेच्छ एसो मम दइओ कह मंदभाइणीए पंचत्तमुवगओ । एवं च किल विलविऊण बहुप्पयारं परिचिंतिउं पयत्ता-कह पुण एस मए कायव्वो, कस्स साहेमि, कह करेमि, कह वा न करेमि । किं वा मम एत्थ करणीयं । कत्थ वा इमाए जामिणीए एगागिणी वच्चामि ? तओ एवं च बहुप्पयारं परिचिंतिऊण खणिया मे (मए) गत्ता निहित्तो य सो । थगिऊण य तं गत्तं संमज्जिओवलित्तं कयर मए गेहं । दिन्नो य धूयवासो । एयंमि अवसरे पहाया जामिणी । समुग्गओ विरहानलसंतवियचक्कवायसमोण्हवणसमत्थो अंसुमाली । तओ समागयाणि तायं वाणि । कहिया य तेसिं मए इमा पउत्ती । अवि य- एयं ते परिकहियं नरवइ ! अक्खाणयं जमम्हाण । परिवाडीए दियाणं समागयं परिकहेयव्वं ॥१४॥ तओ इमं च निसामिऊण राइणा सव्वं सव्वहाविरुद्धं गरुयच्छेरयकप्पं च भणिया य सा कुमारी-'किं बाले ! इमं जहा ते परिकहियं तहा सव्वं सच्चं ?' तीए भणियं । अवि य- किं जं नरवइ ! सुव्वइ सव्वं अक्खाणएसु तं सच्चं । चउरमइविगप्पियं तं नरनाह ! इमं च नायव्वं ॥१५॥ एवं तुमं पि पिययम ! कुसलमइविगप्पियत्थमेत्तेहिं । दिटुंते[हऽ]म्हाणं विफलेसि मणोरहे सव्वे ॥छ। ॥१६॥ तओ इमं च निसामिऊण भणियं जंबुणामेण-मुद्धे ! निसुणसु । अवि य- "अच्छउ परभवजणियं दुक्खं देहीण एत्थ लोयंमि । पच्चक्खं चिय दीसइ जं एवं गब्भवासंमि ॥१७॥ पूइजररुहिरकिव्विसमुन्नं(त्त)तपुरीसनियरमज्झमि । जं वसइ तं पि(?) मुद्धे ! विरागचिंधं मुणेयव्वं ॥१८॥ भणियं च जेण पयडं कविणा केणावि तं सुणसु मुद्धे ! । जिणवयणभावियमणा दुक्खं जं गब्भवासंमि ॥१९॥ 2010_02 Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमो उद्देसओ १८९ "असुइमलरुहिरकद्दमवमालिओ गब्भवासमझमि । वसिओ सि संपयं चिय जीव ! तुमे कीस पम्हुटुं ? ॥२०॥[ ] संकोडियंगमंगो किमि व्व जणणीऍ जोणिदारेण । संपइ नीहरिओ च्चिय पम्हुटुं केण कज्जेण ? ॥२१॥ [ ] संपइ बालत्तणए कज्जाकज्जेसु मूढचित्तेण । अवि असियं ते वच्चं पम्हुटुं तुज्झ तं कीस ? ॥२२॥ [ ] नवमासजणणिउयरे असिओ जणणीऍ तह य निस्संदो । जीवेण संपयं चिय तं चिय दुक्खं किमन्नण ? ॥२३॥ [ ] एवं च एत्थ बहसो पत्तं जीवेण गब्भवसहीसु । ता जाणिऊण एयं को संसारंमि रज्जेज्जा ॥२४॥ [ ] जो पुण जाणतो च्चिय जम्मजरामरणगब्भयं दुक्खं । न वि विसएसु विरज्जइ सो गब्भपरं परं] लहइ" ॥२५॥ [ ] इय एवं नाऊणं जम्मजरामरणगब्भयं दुक्खं । गब्भपरंपरमूलं विसयसुहं को हि नंदिज्जा ? ॥२६॥ ता एण य (?)पज्जन्तं सुइसत्थवियक्खणाण पुरिसाण । एत्थ य सुण दिटुंतं ससंकवयणे ! जिणक्खायं ॥२७॥ अत्थेत्थ जंबुदीवे भरहे वासंमि तुंगपायारं । नलिणिवणपुन्नफरिहासणाहदुल्लंघपरचक्कं ॥२८॥ सुविभत्ततिय[य?]चउक्कचच्चरजिणभवणगोउरसणाहं । भवणजियदेवभवणं नामेण वसंतपुरनयरं ॥२९॥ गुरुविणयभत्तिजुत्तो सत्थत्थवियक्खाणो सुहाभिगमो । धम्मपसाहणकुसलो जत्थ जणो गुणनिही वसइ ॥३०॥ एकाउहो वि होउं सयाउहो जो जणंमि उग्घुट्ठो । सुकयजहट्ठियनामो सयाउहो तत्थ नरनाहो ॥३१॥ 2010_02 Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९० जंबुचरियम् अंतेउरप्पहाणा ललियानामेण तस्स वरदेवी । सइवड्डियभोगसुहा इट्ठा य रइ व्व मयणस्स ॥३२॥ तओ एवं वच्चइ कालो राइणो तीए समं विसयसुहमणुहवंतस्स । अन्नया य अवलोयणपासायसंठियाए दिट्ठो तीए देवीए एक्को वरजुवाणो रायंगणंमि। केरिसो य जो? लायन्नरूवजोव्वणसोहग्गसरीरसंपयाकलिओ।। सविलासहसियजंपियजुवईयणनयणमणहरणो ॥३३॥ तओ दतॄण य तं केरिसा संजाया देवी ? अवि य- निप्पंदलोललोयणविम्हयवसमुक्कदीहनीसासा । लेप्पमइय व्व घडिया अवहियहियया खणं जाया ॥३४॥ दिड्डा य अब्भासवत्तिणीए मयणाभिहाणाए चेट्ठी(डी)ए । चिंतियं च णाए-किं पुण एसा अवहियहियया संजाया देवी ? तओ तीए पलोइयं देवीए अवलोयणाणुसारेण रायंगणाहुत्तं । तओ अवि य सुपलंबबाहुजुयलो कोमलसुसिणिद्धदेहसंपुन्नो । कमलदलनयणजुयलो दिट्ठोऽणंगो व्व रइरहिओ ॥३५॥ तओ नायं चेडीए जहा-इमं रइरहियकामदेवं अहिलसइ देवी । तओ तीए विन्नत्ता देवी । इमाए पुव्वपढियगाहुल्लियाए दढसोहियं सलज्जं चाइ(इं) विन्नाणगुणसमिद्धं च । पियजंपिरं च सामिणि ! पडिवज्जसु वच्छलं दइयं ॥३६॥ अन्नं च-देवि ! अवि य- जणमणनयणाणंदे कलपुन्ने तह कलंकपरिहीणे । न रमई य कस्स दिट्ठी अउव्वचंदे व्व एयंमि ॥३७॥ ता देवि ! देसु आएसं जेणं तं सव्वं समीहियं संपाडेमि त्ति । तओ सा देवीए भणिया-साहु साहु सुट्ठ ते नायं मम चित्ताभिप्पायं । किंतु एवं सुम्मइ सुसहावं सुविणोयं समसुहदुक्खं सनेहलं सरलं । पाविज्जइ अच्चंतं पुन्नेहिँ विणा न माणुस्सं ॥३८॥ 2010_02 Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमो उद्देसओ असढहिययं सलज्जं सुसहावं वच्छलं कयन्नुं य । विहलुद्धरणधणं पि हु माणुस्सं होइ धन्नाणं ॥३९॥ अन्नं च मयणे !-मरणं न होइ गरुयं संसारे सव्वलोयसामन्नं । ___ मरणस्स वि गरुययरं जं जस्स पियं पराहीणं ॥४०॥ तओ चेडीए भणियं-देवि ! सुणसु । अवि य- असहायस्स न सिद्धी पुन्नब्भहियस्स सुटु वि पियस्स । किं किलि(ल) तस्स न सिद्धं सुसहायं जस्स माणुस्सं ? ॥४१॥ तओ सा देवीए भणिया-जइ एवं ता मयणिए ! अवि य- को उण हवेज्ज एसो मेइणिवटुंमि पुन्निमायंदो । मम नयणकुमुयपडिबोहवच्छलो हिययआणंदो ॥४२॥ ता जाणसु इमं गंतूण को वेस। गया य चेडी, समागया थोववेलाए। भणियं च णाए। अवि य- सामिणि ! इहेव नयरे समुद्दइन्भस्स सत्थवाहस्स । एस सुओ ललियंगो ललियंगो नाम गुणकलिओ ॥४३॥ तओ इमं च निसामिऊण देवी अहिययरं तस्स समागमुच्छुगा संजाया मयणानलदाहपरवसा य निवडिया सयणीए । तओ तक्खणं चिय केरिसा संजाया । अवि य- परिवड्डमाणमयणग्गिताविया केवलं समूससइ । नीससइ वलइ वेवइ हुं हुं महुरक्खरं भणइ ॥४४॥ अलयवलयाई तीए घोलंति विसंठुलाइँ मुहकमले । मउलिंति लोयणाई रुंभइ सासो खलइ वाणी ॥४५॥ निद्दहइ हारवलयं पि थोरथणवट्टसंठियं तीए । पवणो वि सुसइ देहं कमलिणिदलसिसिरजलकणिरो ॥४६॥ पीलेइ य नियदेहं भुयाहिँ नीससइ दीहनीसासं । पवणं पि समालिंगइ तीए दिसाएँ पवायंतं ॥४७॥ तं चिय दिसं पलोयइ पम्हलमउलिंततारनयणेहिं । संजूरइ नियदेहं रूसइ य [स?]याण पुन्नाण ॥४८॥ 2010_02 Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२ जंबुचरियम् इय सा तमपेच्छंती पुणो पुणो मोहमुवगया हसइ । आसासिज्जइ नवरं पुणो वि सा संगमासाए ॥४९॥ तओ एयावत्थं च तं देविं दट्टण मयणियाए भणियं । अवि य- अवलंबसु धीरत्तं मुंच विसायं च मुज्झ मा देवि ! । आणेमि तुज्झ दइयं नियजीयं जइ वि दाऊण ॥५०॥ तओ ‘आणेमि तुज्झ दइयं' ति समायन्निऊण समासासियहिययाए भणियं देवीए । अवि य- जा जा हि वच्च तुरियं मयणे ! जा जीवियं न निग्गमइ । पच्छा किं लद्धेण वि पिएण मम आउए खीणे ॥५१॥ दिज्जइ हत्थालंबो मयणे ! मा एत्थ तं चिरावेसु । सो च्चिय एक्को सुयणो जो विहुरे होइ निब्भिच्चो ॥५२॥ तओ एवं च भणिया गया तुरमाणा दासचेडी । दिट्ठो य सो जुवाणो । निवेइयं च सव्वं देवीसंदिटुं । दंसणसमुन्भववियाराइयं च साहियं तस्स सयलं । अवि य- सा तुह विरहानलडाहसोसिया सुयणु जं न परिवडइ । तं तुह संगमआसाविलोहिया मज्झ वयणेणं ॥५३।। ता तह कीरउ सुपुरिस ! जह सा मयणाहिणा सुयणु डक्का । तुह संगमागएणं पन्नप्पइ तक्खणं वराई ॥५४॥ इमं च निसामिऊण भणियं ललियंगेणअवि य- आणंदिओ इमेणं देवीनेहेण सुयणु अच्चंतं । तुम्हावलोयणेण य किंतु निसामेहि परमत्थं ॥५५॥ तीए भणियं-किं तं ? तेण भणियं । अवि य- किं धरणिगोयरेणं अहिलसिया सुयणु जह व ससिरेहा । पाविज्जइ अच्चंतं निउणेण वि केण वि नरेण ॥५६॥ तह जीए दंसणं पि हु संपडइ न कह व पुन्नरहियाण । पाविज्जइ अच्चंतं कह सा अम्हेहिं पसयच्छी ॥५७॥ तओ चेडीए भणियं-एवं एयं । किन्तुअवि य-जं सुयणु तुमे भणियं सहायरहियाण होइ तं सव्वं । जो उण सहायसहिओ किं तस्स न एत्थ भण सिद्धं ॥५८॥ 2010_02 Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमो उद्देसओ ता अच्छ तुमं वीसत्थो, मम एसो सलयो वि भारो । पडिवन्नं च तेणिमं । गया य चेडी । कहिओ य चेडी(देवी)ए एस वुत्तंतो । अवि य- अहिलसइ को न तं सुयणु एत्थ भवणंमि जइ वि देविंदो । ता अच्छसु वीसत्था सो तरुणो तुह वसीहूओ ॥५९॥ तओ देवीए भणियं । अवि य- पाविज्जइ अचिरेणं दुलहं पि पियं न सुयणु संदेहो । [तं] मयणे सुपसन्ना जेसिं गोरि व्व अच्चंतं ॥६०॥ तओ इमं च भणिऊण दिन्नं पारिओसियं तीए । जायाओ य तस्स पवेसणोवा[य] पओगपराओ । तओ य एयम्मि य अवसरे समागओ सरयसमओ कोमुइमहूसवो। अवि य- जायम्मि सरयसमए कोमुइवारम्मि को न परिमुइओ । मोत्तूण झाणसज्झायवावडे साहुणो एक्के ॥६१॥ तओ एवं च सरइकोमुइमहूसवे सयलो वि नायरजणो पवत्तो विविहकीलासु कीलिउं। अवि य- सयलो वि नायरजणो कोमुइवारंमि विविहकीलत्थं । __ पमुइयमणसो पत्तो उज्जाणे नंदणवणंमि ॥६२॥ तओ राया वि सअंतेउरो पयट्टो कीलानिमित्तं तमुज्जाणं । अवि य- अंतेउरपरियरिओ सग्गे इंदो व्व पमुइओ मणसा । उब्भिन्नपुलयरोमंचकंचुओ निग्गओ राया ॥६३।। महादेवी वि 'मम सीसे वेयणा बाहिउं पयत्ता, अओ गंतुं न तरामि'त्ति भणिऊण ठिया न पयट्टा कीलत्थं ति । तओ एवं च जाणिऊण विवित्तं पवेसिओ सो महादेवीहिययणंदणानंदणो जुवाणो केणइ पओएण मयणाए देवीए वासभवणं ति । इओ य राया किल महादेवीए ललियाए महासीसवेयणा बाहिउं पयत्ता । तओ महामाणसदुक्खवेयणाभिघाइयहियओ अतक्किओ चेव सयलपरियणेण नियत्तो उज्जाणाओ अविन्नाओ य पवत्तो ललियावासभवणं समारुहिउं । तओ समासन्नीभूओ य कह कह वि नाओ मयणाए। सिटुं च णाए महादेवीए रायागमणं । तओ अन्नो 2010_02 Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४ जंबुचरियम् [न] को वि अप्पसंरक्खणोवाओ, [अओ] भयभीयाहि संरक्खणत्थं च तस्स निहित्तो ताहिं पाउक्खालयकूवे ललियंगो । अवि य- ताव पिओ होइ जणो जाव न वसणं समेइ मज्झेण । वसणंमि समावडिए किं कीड़ सुटु वि पिएण ॥६४॥ भणियं च- "सुनिबद्धबंधणाई सहावघडणाए जइ वि घडियाइं । वसणंमि समावडिए सच्चं विहडंति पेमाइं" ॥६५॥ [ ] ताव च्चिय होइ सुहं जाव न कीरइ पिओ जणो को वि । पियसंगो जेण कओ, दुक्खाण समप्पिओ अप्पा ॥६६॥ असुइचिलिच्चिलमलिणे, किमिसयसंताणफिप्फिसदुगंधे । पाउक्खालयकूवे, पडिओ दुमे(म्मे)ज्झपउरंमि ॥६७|| तओ चितियं पयत्तो । अवि य-हा कह एत्थ अउत्तो दुमे(म्मे )ज्झचिलिच्चिलंमि अयडंमि । बीयं जोणि व्व अहं संपत्तो पुन(न्न )परिहीणो ॥६८॥ अह वा- परदा[स्स? ] फलं मे इहेव जम्मंमि पावियं एयं । ___जं अप्पणा विरइयं तं भुंजसु संपयं जीव ! ॥६९॥ भणियं च- "परदारं चिय अइभीमविसमदोसायरं महापावं । उभओवक्खदुहयरं भवनिग्गमवज्जपायारं" ॥७०॥ [ ] "इह लोगंम्मि य अइदुक्खकारयं बंधवहणसंजणणं । वेराणुबंधजणयं लोगम्मि य गरहियतरं च" ॥७१॥ [ ] अन्नं च- पाउक्खालयसरिसे मुत्तासुइपूइगंधबीभच्छे । को रमइ जाणमाणो इत्थीदेहंमि दुहमूले ॥७२॥ भणियं च- "मंसद्विरुहिरमज्जावसपूइपुरीसपूरियसरीरे । बहिचंदणचच्चिक्कियमुत्तासुइभरियकलसे व्व" ॥७३॥ [ ] "को जाणतो रायं करेइ एवंविहे इह सरीरे । उन्नयपुहन्न( ? )मासे खीणे य सिरावणद्धे य" ॥७४॥ [ ] 2010_02 Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमो उद्देसओ १९५ ता जइ कह वि हु होज्जा इम[स्स] अयडस्स निग्गमे(मो) मज्झ । ता अलमलं ति भोएहि सव्वहा मज्झ पज्जत्तं ॥५॥ तओ इमं च परिचिंतयंतो तत्थ अच्छिउं पवत्तो । ताओ वि तस्स भुत्तसेसं पक्खिवंति आहारं । परिभुंजइ य सो तं छुहाए किलामियसरीरो । जओ-'छुहासमा वेयणा नत्थि' त्ति। भणियं च- "पंथसमा नत्थि जरा, दालिहसमो पर( रा )भवो नत्थि । मरणसमं नत्थि भयं, छुहासमा वेयणा नत्थि" ॥७६॥ [ ] तओ इमेण विहिणा वोलीणा तत्थ बहवे मासा । समागओ पाउससमओ । तओ जलहरपरिमुक्कजलपूरेण य पूरियं काऊण तं पाउक्खालयकूवं । कीलियापओगेण य निच्छूढं तं सव्वं असुइकिब्बिसं नयरनिद्धमणेण य वहिउं पवत्तं । तओ सो वि जलप्पवाहेण निच्छुभमाणो पत्तो फरिहीयातडं । तत्थ य तहाविहभवियव्वयानिओएण समुज्झिओ सो जलप्पवाहेण । वायवसमुच्छा विहलंघलसरीरो य दिट्ठो कह कह वि भवियव्वयानिओएणं तत्थ य समागयधाईए । पच्चभिन्नाओ भणिओ य तीए । अवि य- हा पुत्त ! कह इमं पे पत्तं अइदारुणं महावसणं । नरयब्भहियं मन्ने चिंतिज्जंतं च दुहजणणं ॥७७।। तओ साहियं च तेण सव्वं इमं वुत्तंतं । नीओ य तीए निययगेहं । पउणीकओ य काढयविरेयणवमणाईहिं वेज्जेहिं । तओ पुणो वि बीयतइयवारं पि तेण य विहिणा पत्तो सो तत्थ वच्चाहरकूवे महादुक्खं । अवि य- बीयं तइयं पि पुणो वारं अच्चु(ब्भु)द्वदुक्खसंतावो । पत्तो नरयब्भहियं अयडेयरमज्झसंपत्तो ॥७८॥ । कहिओ ते दिटुंतो एयस्स य उवणयं निसामेहि ।। संखेवेण महत्थं भणामहं गुरू(रु)वएसेण ॥७९॥ "अत्तित्तकामभोओ पुणो पुणो वसइ जह य ललियंगो । तह एस होइ जीवो विसएहिं विमोहिओ निच्चं ॥८०॥ जह देवीए संगो नायव्वा तह [य] विसयसंपत्ती । जह चेडी तह इच्छा नायव्वा होइ विसएसु ॥८१॥ 2010_02 Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुचरियम् जह रायभयं जायं संसारभयं पि होइ तह एत्थ । कूओ य गब्भवासो मुत्तासुइरुद्दिरदुहपुन्नो ॥८२॥ जह असुइप्पक्खेवो जणणीपरिणामियस्स तह होइ । निस्संदो नायव्वो पाणन्नाईण दव्वाणं ॥८३॥ जह निग्गमणं जायं कह वि हु निद्धमणजलसमूहेण । जोणिदुवारेण तहा निग्गमणं होइ जीवस्स ॥८४॥ धाईपडियरणं जह नायव्वा तह य होइ निउणेहिं । देहोवग्गजणणी कम्माणं संतई एत्थ" ॥८५॥ ता- ललियंगो इव नाहं पाउक्खालस्स सुयणु सरिसंमि । गब्भंमि विसामि पुणो तुम्ह कए देविसरिसीणं ॥८६॥ अन्नं च इमं सव्वं धम्माधम्माण जं फलं लोए । पच्चक्खं चिय दीसइ तं मुद्धे जेण भणियं च ॥८७॥ "अविरयडझंतागरुविसंखलुच्छलियधूमपडहच्छे । एक्के वसंति भुवणे निबद्धमणिनिम्मलुल्लोए ॥४८॥ [ ] अन्ने विरड्यफुफुयविणिमधूमोलिपूरिउच्छंगे । जुन्ननिहोतणविवरंतरालपरिसंठियभुयंगे ॥८९॥ [ ] एक्के धवलहरोवरि मियंककरदंतुरे सह पियाहि । लीलाए गमति निर्सि पेसलरयचाडुकम्मेहिं ॥१०॥[ ] अन्ने वि सिसिरमारुयसीयपवेविरसमुटुमि( द्धिसि )यदेहा । कह कह वि पियारा(र)हिया वाइंता दन्तवीणाओ ॥९१॥ [ ] एक्के कंचणपडिबद्धथोरमोत्ताहलुब्भडाहरणा । विलसंति बहलकुंकुमफँसलियवच्छत्थलाभोया ॥१२॥[ ] अन्ने वि विसममहियलनिसम्मणुप्पन्नकिणियवोंगिल्ला । मलिणजरकप्पडोच्छइयविग्गहा कह वि हिंडंति ॥१३॥ [ ] एक्के पूरिति मणोरहाइं जं मग्गिराण पणईण । अन्ने पुण परघरहिंडणेण कुच्छि पि न भरंति" ॥१४॥ [ ] 2010_02 Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९७ सोलसमो उद्देसओ इय पुन्नापुन्नफलं पच्चक्खं चेव दीसए लोए । एत्तो य तव विसेसो लक्खिज्जइ आगमबलेण ॥९५॥ "एक्के दोघट्टघडानि[व]हा जंपाणजाणतुरएहि । वच्चंति सुकयपुन्ना अन्ने अणुवाहणा पुरओ ॥१६॥[ ] एक्के चंदणमयनाहिघुसिणकप्पूरपरिमला निच्चं । अन्ने लायंजणर्टिकयं पि मन्नंति छणभूयं ॥९७॥ [ ] एक्काण वित्थरिज्जइ सिप्पीकच्चोलथालसंघाओ । अन्नाण कह वि दुक्खेण पत्तपुडिया वि संपडइ ॥९८॥[ ] एक्काण पाणभोयणवंजणसंजुत्तविविहमाहारं । अन्नाण नेहरहियं दिज्जइ वरदडवल्लरयं ॥९९॥ [ ] एक्के पटुंसुयविविहवत्थदेवंगसुकयनेवच्छा । अन्ने विसिन्नसाडियजरडंडीखंडपाउरणा ॥१००॥ [ ] एक्काण निसा निज्जइ मणिदीवसणाहचारुसयणेहिं । अन्नाण भूमिकोणे धूलीतणफँसलियंगाण ॥१०१॥ [ ] बोहिज्जति पहाए थुइमंगलवयणगीयसज्जे( हे )हिं । अन्ने साहिक्खेवं खरनिटुरदुटुवयणेहि" ॥१०२॥ [ ] इय पुन्नापुन्नफलं विविहं नाऊण कम्मवसयाण । तह प्प[व]त्तह काउं जह मुंचह सव्वदुक्खाणं ॥१०३।। अन्नं च- "जरमरणरोगउरं संसारे विसयतण्हनडियाओ। मा पावह मुद्धाओ दुक्खाई अणोरपाराई" ॥१०४॥ [ ] ता- "अमयं व गिण्हह इमं जिणवयणं अहव कप्परुक्खं वा । चिंतामणि व्व अहवा सव्वेसिं आयरतरेण" ॥१०५॥ [ ] जओ- "रयणारे व्व नदु(टुं) दुलहं रयणं व होइ मणुयत्तं । जोणिबहुलक्खकिन्ने संसारे णोरपारंमि" ॥१०६॥ [ ] ता एयं नाऊणं गिण्हइ भावेण जिणमयं धम्मं । पावेह जेण अइरा सिवमयलमणंतकल्लाणं ॥१०७॥ 2010_02 Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८ एयं जयंमि सारं परमं पत्तं परंपरं नेयं । सयलसुहाण निहाणं दुक्खाणं छेयसंजणयं ॥ १०८॥ जओ- ‘“नारयतिरियनरामरभवेसु परिभमइ दुक्खसंतत्तो । जीवो जिणमयहीणो पुणो पुणो भवसमुद्दमि ॥१०९ ॥ निच्चंधारे नरए निच्चासुइपूइरुहिरदुग्गंधे । निच्चनिरंतरजलिए बहुदुक्खदवग्गिणा कलिए ॥११०॥ खरतिक्खफरिसदुक्खे निच्चं चिय छेयभेथपरिकलिए । पाविन्ति अणंताई दुखाइं जिणमयविहीणा ॥ १११ ॥ तिरिसु य असुहाई तण्हासीउण्हभुक्खदुक्खाइं । उहणंकणछेयणताडणाई तह मारणाइं च ॥ ११२ ॥ पाविन्ति अगाई पाणी इह के वि नरयसरिसाई । कम्मोदएण नूणं जिणमयपरिवज्जिया मूढा ॥११३॥ दोहग्गसोगकलिया परिभवदारिद्दरोगसंतत्ता । मयत्तणे व पत्ते दुक्खाई अणेगरूवाई ॥११४॥ पाविंति के वि जंतू तिव्वासुहभावकम्मजणियाइं । जिणवयणबाहिरमई घत्था मिच्छत्तमोहेण ॥११५॥ अभिओगियकिव्विसिया सुरसंपयवज्जिया य जायंति । देवा वि धम्मरहिया निच्वं चिय दुक्खपरिकलिया" ॥ ११६ ॥ ता एयं नाऊणं संसारे केवलं परं दुक्खं । घेत्तव्वं पच्छयणं असेसदुक्खाण निव्वहणं ॥११७॥ जिणपवयणभणिएणं विहिणा निच्चं पि उज्जमेयव्वं । जइ इच्छह संसारं तरिउं तुब्भे इमं भीमं ॥ ११८ ॥ नत्थेत्थ इमं मोत्तुं सरणं जंतूण दुक्खतवियाणं । सयलंमि वि तइलोए सदेवमणुयासुरसमिद्धे ॥११९॥ एपिके व जंतू मिच्छत्तन्नाणरागदोसत्ता । जिणयंदभा(भ)णियमत्थं मोहंधा इह न याति ॥१२०॥ 2010_02 जंबुचरियम् Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९९ सोलसमो उद्देसओ अवि य- मन्नंति अहम्मं पि य ते मूढा एत्थ धम्मबुद्धीए । तं तं कुणंति बाला जं जं चिय धम्मपडिकूलं ॥१२१॥ मंसं मज्जं सुरयं धम्मत्थं एत्थ के वि सेवंति । अजयाण दिति दाणं गोनंगलदारमाईयं ॥१२२॥ जाणंति न उण एवं मंसाईयाणि पाणिघाएण । धम्मस्स विरुद्धाइं विसिट्ठजणगरहियाइं च ॥१२३॥ भणियं च- "एत्थ जम्हा दयागुणविसारएहिं धीरेहिं । जिणवयणभाविएहि साहूहि पवरनाणीहिं" ॥१२४॥ [ ] "खइयं वरं विसं पि हु खणेण मारेइ एक्कसिं चेव । मंसं पुणो वि खइयं भवमरणपरंपरं नेइ ॥१२५॥ [ ] मंसासिणो नरस्स हु पारतं आउयं च परिहाइ । परिवड्डइ दोहग्गं दूसहदुक्खं च नरएसु ॥१२६॥ [ ] भेसज्जं पि हु मंसं देई अणुमन्नई य जो जस्स । सो तस्स मग्गलग्गो वच्चइ नरयं न संदेहो ॥१२७॥ [ ] दुग्गंधं बीभच्छं इंदियमलसंभवं असुइअं च । खइए य नरयपडणं विवज्जणीयं अओ मंसं ॥१२८॥ [ ] सव्वजलमज्जणाइं सव्वपयाणाइ सव्वदिक्खाओ । एयाइ अंसासित्तणस( स्स) तणुयं पि न समाई ॥१२९॥ [ ] जे चोरसुमिणसउणावण्हिपियासा भूयग्गहदोसा । एक्केण अमंसासित्तणेण ते तणसमी हुंति ॥१३०॥[ ] मंसस्स वज्जणगुणा दो चेव अलं नरस्स जियलोए । जं जियइ निरुवसग्गं जं च मओ सोग्गइं लहइ ॥१३१॥ [ ] काऊण धम्मबुद्धी जे मंसं दिति जे य खायंति । उभओ वि जंति नरयं तिव्वमहावेयणं घोरं ॥१३२॥ [ ] मंसं पुण पयडं चिय दीसइ सव्वाण एथ्थऽणत्थाणं । मूलं तह वेराण य पढमं चिय कारणं एयं ॥१३३॥ [ ] 2010_02 Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० सुरयं च रागजणणं दोसस्स विवड्डणं तहा भणियं । रागद्दोसा य इमे मूलं संसारचक्कस्स" ॥१३४॥ [ ] इय एवं पयडो च्चिय दोसो एएहिं दीसए एत्थ । के वि पुण एत्थ मूढा धम्मत्थं नवर सेवंति ॥ १३५ ॥ न उण मुणिति वया धम्मो तवनियमचरणकरणेहिं । अपवग्गसाहणो इह पन्नत्तो लोगनाहेहिं ॥ १३६॥ 44 'अजयाण य जं दाणं दिज्जइ तं नो कयाइ तारेइ । उयहिनिहित्ता हु सिला अग्गसिलं उयहिमज्झमि ॥१३७॥ गोनंगलमाईयं दाणं संसारकारणं नेयं । मूलं सव्वदुहाणं मूढा एय न याणंति ॥ १३८॥ तवनियमकिलंताणं सद्धासक्कारदोसपरिहीणं । फासुदाणं भणियं सिवसुहमूलं जिणिदेहिं" ॥१३९॥ जे रागदोसकलिया संसारनिवासमोहिया देवा । परमप्पाबुद्धीए ते मूढा नवर मन्नंति ॥१४०॥ रागद्दोसपराणं जं जं पडणाइयं इहं तेसिं । धम्मत्थं किल कीरइ तं तं चिय नरयगइमूलं " ॥ १४१ ॥ अवि य- “परमप्पा नायव्वो सिद्धो बुद्धो निरंजणो निच्च । निवियअट्ठकम्मो रागाईदोसपरिहीणो ॥ १४२ ॥ तस्स य जं जं कीरइ, वंदणसक्कारपूयसम्माणं । तं तं सिवसुहमूलं पावस्स पणासणं होई ॥१४३॥ भणियं च एत्थ जम्हा दाणं जं लोयसम्मयं किंचि । गोइत्थसुवन्नाई कुईहेऊ महापावं ॥ १४४॥ जे इत्थिभूमिदाणं सुवन्नदाणं च जे पउंजंति । ते पावकम्मरुया भमंति संसारकंतारं ॥ १४५ ॥ बंधताडणदमसु होइ गाईणा दारुणं दुक्खं । हलकुलिसेसु वि पुहई दारिज्जइ जंतुघाएहिं ॥ १४६ ॥ 2010_02 जंबुचरियम् Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०१ सोलसमो उद्देसओ जो विह देह कमारिं सो विह रायं करेड़ गिद्धि च । रागेण हवइ मोहो मोहेण वि दुग्गईगमणं ॥१४७॥ हेमं भयावहं पुण आरंभपरिग्गहस्स आमूलं । तम्हा वज्जंति मुणी चत्तारि इमाइं दाणाइं ॥१४८॥ नाणाभयप्पयाणं फासुयदाणं च भेसजं चेव । एए हवंति दाणे उवट्ठा वीयरागेहिं ॥१४९॥ नाणेण जिव्वनाणी दीहाऊ होइ अभयदाणेण । आहारेण य भोगा पावइ दाया न संदेहो ॥१५०॥ लहड य दिव्वसरीरं साहूणं भेसजस्स दाहा(या)रो । निरुवहयअंग(गु)वंगो उत्तमभोगं [च] अणुहवइ ॥१५१॥ जह खेत्तंमि सुकिटे सुपउत्तं अब्भुयं हवइ वीयं । तह संजयाण दाणं महंतपुन्नावहं होइ ॥१५२॥ जह ऊसरम्मि बीयं खित्तं न य होइ तस्स परिवडी । तह मिच्छत्तमइल्ले पत्ते अफलं हवइ दाणं ॥१५३॥ विविहाउहगहियकरा सव्वे देवा कसायसंजुत्ता । कामरइरागवसगा निच्चं कयमंडणाहरणा ॥१५४॥ जे एवमाइदेवा न हु ते दाणस्स हुंति नेयारा । सयमेव जे न तिन्ना कह ते तारिति अन्नजणं ? ॥१५५॥ जे य पुण वीयराया तित्थयरा सव्वदोसपरिमुक्का । ते हुंति नवर लोए उत्तमदाणस्स नेयारा ॥१५६॥ जे जिणवराण धम्मं करिति पडिमा य छिन्नसंगाणं । पूयासु य उज्जुत्ता ते हंति सुरा महिड्डीया ॥१५७॥ धयपडहपट्टबंधा धूयं दीवं च जे जिणाययणे । दिति नरा सोममणा ते वि य देवत्तणमुर्विति ॥१५८॥ एवंविहं तु दाणं दाऊण नरा परंपरसुहाई । भोत्तूण देव-मणुयत्तणमि पच्छा सिवं जंति ॥१५९॥ 2010_02 Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ तम्हा जिणंमि भत्ती दाणं साहूण होइ दायव्वं । अविरुद्धसो धम्मो धम्मे य मई जिणुद्दिट्ठो (ट्ठा)'' ॥१६०॥ जंबुचम्ि तओ इमं च एत्तियं निसामिऊण भणियं पभवेण - 'अहो जंबुणाम! एवं पुण कहं जं सुव्वइ सोम ! सुईए' । अवि य- " सव्वे वि वंदणीया देवा धम्मा य हुंति आएया । जो जस्स को विधम्मो देवो वा तस्स सो सेओ || १६१ ॥ एयं कह न विरुज्झइ जं सुव्वइ लोयसत्थसूईसु । सव्वण्णुवयणवित्थरभणिएण इमेण धम्मेण ॥१६२॥ तओ जंबुणामेण भणियं - ' निसुणसु एत्थ पभव !' | अवि य- " सव्वे न निंदणीया सेयं भज्जतु वंदणीयाउ । गुण-दोसवियारे उण निंद-पसंसाण को संगो ॥ १६३ ॥ जो राग-दोसमूढा मारिंति मरिति अप्पणा तह य । तेसिं तु वंदणमिमं सेयाय न होइ कीरंतं" ॥१६४॥ जेण - पत्तं तं देवत्तं इमेण जं रागदोसमूढाणं । देवाणं जीवेणं अणेयसो अप्पणा चेव ॥ १६५ ॥ तह य न जातं किंचि वि इमस्स संसारदुक्खसंतरणं । ता एयमप्पमाणं न सव्वहा होइ आएयं ॥१६६॥ धम्मा पुण आया सव्वे वि तुमेत्थ सोम ! जं भणियं । तं म( स ? ) त्थपयाणेण वि मिच्छाणं वन्निओ धम्मो ॥ १६७॥ ता किं सो आएओ एवं अन्ने वि जे विरुज्झति । परलोयं पड़ धम्मा ते किं इह हुंति आएया ॥ १६८ ॥ सव्वे वि जओ एए सरायपुरिसेहिं भासिया सोम ! | जीवोवद्दवहेऊ न सम्मया मोक्खमग्गस्स ॥ १६९॥ ता सव्वा वि एए उवेक्खणीया न सोम ! आया । बुद्धिमया पुरिसेणं भावियजिणवयणसारेणं ॥ १७० ॥ जो जस्स को वि धम्मो, देवो वा हवउ तस्स सो सेओ । जं ते भणियं तत्थ वि न संगओ एस ते पक्खो ॥ १७१ ॥ 2010_02 Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०३ सोलसमो उद्देसओ जेण- जं जस्स अत्थि इहइं तं तं किं तस्स होइ आएयं । अह भणसि एवमे वं] ता सोम ! इमं तुमे जायं ॥१७२॥ कोढं दालिदं वा कह वि हु जइ अत्थि कस्स व नरस्स । तं तस्स होउ एवं आएवं सव्वकालं पि ॥१७३॥ एयं पि न इच्छिज्जइ सव्वेण वि नूण एत्थ लोएण । तम्हा विहडइ एवं ते भणियं सोम ! दूरेण ॥१७४॥ एत्थ य सुण दिटुंतं जह पुरिसा तिन्नि के वि नीहरिया । निययनयराओ तुरियं दालिद्दोवढुया केइ ॥१७५॥ चलिया य दाहिणदिसं दविणत्थं कह व देवजोएण । पत्ता महइमहंते रन्ने ते भीमरोइंमि ॥१७६॥ लोहायरो महंतो दिवो रन्नंमि तेहिं सहस त्ति । गहियं च तेहिं लोहं उव्वहिउं जेत्तियं तरियं ॥१७७॥ गच्छंति जाव दिट्ठीपत्तो रुप्पायरो अह विसालो । लोहं मोत्तूण तओ गहियं एक्केण कलहोयं ॥१७८॥ लोहद्धं चइऊणं गिण्हियमन्नेण किं पि कलहोयं । लोहन्नेण न मुक्कं न गिण्हियं किं पि कलहोयं ॥१७९।। मुंचह एयमसारं भणिया पढमेण दो वि ते पुरिसा । लोहं गिण्हह रुप्पं महन्तमोल्लं इमं जेण ॥१८०॥ भणियं च- "ताणेक्केणं मुक्कं अद्धं अयस्स मे सुयणु ! । अद्धं पुण कह मुंचउ अइदूरं जेण मे बूढं" ॥१८१॥ [ ] तइएण वि सो भणिओ लोहं मुंचामि कहमहं एयं । दूराओ जं वूहं भारकिलंतेण देहेण ॥१८२।। चलिया पुणो वि तिन्नि वि पत्तो अह तेहिं आयरो अन्नो । रन्नंमि भमंतेहिं उत्तत्तसुवन्नपडिपुन्नो ॥१८३॥ गहियं पढमेण तओ रुप्पं कंचणं विउलं । समभायाई तिन्नि वि बीएणं नवरि गहियाइं ॥१८४॥ ___ 2010_02 Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ जंबुचरियम् तइएण पुण न मुक्कं तं लोहं नेय कंचणं गहियं । पढमेण तओ भणिया ते दो वि[य] सायरं पुरिसा ॥१८५।। मुंचह एयारं तुमे गिण्हह एयं सुवन्नपब्भारं । पावेह जेण दोन्नि वि लाहं हियइच्छियं विउलं ॥१८६।। एक्केण तओ भणियं तिन्नि वि गहियाइं मे तिभायाइं । दूरं मे वूहाई मुंचामिह सव्वहा कहणु ॥१८७॥ तइएण पुणो भणियं लोहं मुंचामि कहमहं एयं । दूराओ जं हं भारकिलंतेण देहेण ॥१८८।। एवं बहुहा भणिया ते न य गिण्हंति कंचणं जाहे । ताहे सो निव्वण्णो तेसिं उवएसदाणस्स ॥१८९॥ ते आसाइयलाभा तिन्नि वि वलिऊण निययनयरंमि । पत्ता कालकमेणं नियनियगेहेसु य पविट्ठा ॥१९०॥ पत्तो पढमो रिद्धि बीओ वि य मज्झिमं न उण तईओ । एयस्स उवणयमिमं सुण दिटुंतस्स तं सोम ! ॥१९१॥ "जे ते तिण्णि मणुस्सा जीवा ते हुन्ति एत्थ नायव्वा । नामेहिं पसिद्धेहि इमेहिं जह तह निसामेह ॥१९२॥ पढमा सम्मद्दिट्ठी बीया पुण सम्म-मिच्छदिट्ठी य । तइया य मिच्छदिट्ठी नायव्वा हुंति जहसंखं ॥१९३।। अडवी उण नायव्वा संसारमहाडवी इमा भीमा । हिंडंति कम्मवसगा इमीए एए चिरं जीवा ॥१९४॥ दालिदं नायव्वं कम्मं जीवाण दुक्खसंजणगं । हिंडंति तेण एए संसारमहाडवी(वि) भीमं ॥१९५॥ ते आगरा य तिन्नि वि मिच्छं मीसं च होइ सम्मं च । एएसिं तु फलाई हुंति य लोहाइसरिसाइं ॥१९६॥ 2010_02 Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०५ सोलसमो उद्देसओ सम्मत्तं जिणधम्मे पाउब्भूयंमि होइ जीवस्स । मिच्छत्तं नायव्वं लोइयधम्मेसु सव्वेसु ॥१९७॥ मीसं पुण पडिवज्जइ जिणमइए लोइए य जं भावे । जीवो तं नायव्वं कम्माण गुरुत्तणेणेवं ॥१९८॥ सम्मत्तस्स य भावो सुदेव-मणुयत्तणं लहइ जीवो । अन्ते नेव्वाणसुहं अचिरेणं पावए एसो ॥१९९।। सम्मामिच्छत्तेणं साहेइ इमाइं दीहकालेण । सम्मत्तपुव्वगाइं तेसिं मूलं इमं जेण ॥२००।। मिच्छत्तेणं जीवो विमुहो च्चिय होइ मोक्खमग्गस्स । जेण इमं असुहाणं मूलं कम्माण सव्वेसि ॥२०१॥ जओ जिणवयणं "एयस्स पुण निमित्तं मिच्छत्तं अविरई य अन्नाणं । जोगा तहा कसाया हुंति पमाया य नायव्वा" ॥२०२॥ [ ] ता कह सेओ लोहागरो व्व इह तइयपुरिससरिसाणं । जीवाणेस कुहम्मो होइ कुदेवो व्व जुत्तीए ॥२०३।। ता सोम ! कह विरुज्झउ एवं सव्वन्नुइट्ठदिट्ठीए । सव्वं पि जओ मिच्छा कुदिट्ठदिट्ठीहिं इह दिट्ठी(8) ॥२०४॥ अहवा फुडं विरुज्झइ मिच्छादिटुं कुदिट्ठदिट्ठीहि । सव्वन्नुणा न एवं अविसंवायाओ भावाणं ॥२०५॥ ता मुंचसु असगाहो कुदिट्ठदिट्ठीहिं जो इमो दिट्ठो । पडिवज्ज सम्मभावं जइ इच्छसि अप्पणो सिद्धि" ॥२०६॥ संभूयसम्मभावो विगलियमिच्छत्तदंसणो सहसा । सोऊण इमं पभवो पणिवईओ जंबुचलणेसु ॥२०७॥ परिओसनिब्भरमणो सहरिसपगलंतनयणबाहजलो । रोमंचकंचुयंगो एवं भणिउं समाढत्तो ॥२०८।। 2010_02 Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ जंबुचरियम् सामि ! तए उद्धरिओ भीमावत्तंमि भवसमुइंमि । निवडतो ना(दा)ऊणं जिणवयणालंबणं मज्झ ॥२०९।। मोत्तूण जिणे तह साहुणो य सरणं तुमं पि मोत्तूणं । अन्नो को वि न विज्जइ मज्झं संसारभीयस्स ॥२१०॥ तओ जंबुणामेण-'पभव ! किच्चमेयं भवियाणं जिणवयणदिट्ठीए उबलद्धपुन्नपावाणं । जओ, विसमो एस संसारो । बहुदुक्खाओ नरएसु वेयणाओ । अच्चंतदुल्लहो जिणयन्दपणीओ एस संसारुत्तरणवरमग्गो । दुप्परिपालो संजमगुरुभारभरो बंधणायारो घरनिवासो । नियलाई दाराई महाभयमन्ताणं । बहुदुक्खदुक्खिया जंतूणो । सुसुंदरो धम्मोवएसो । सुलहा धम्मायरिया । तुलग्गलग्गं माणुसत्तणं । विवागदारुणा विसओवमा भोगा। नरयगइमूलं परधणावहरणं । महादुक्खहेऊ पाणिवहो । ता इमं जाणिऊण गिण्हसु सम्मत्तं । पडिवज्जसु साहुदक्खिन्नं । निसेवसु मोक्खपहसाहणाई चरणकरणाई' । तओ इमं च निसामिऊण भणियं पभवेण-'कह पुण जंबुकुमार ! एस मोक्खो अम्हारिसेहिं साहियव्वो । को वा इमस्स पसाहणमग्गो, केरिसं वा तत्थगयाणं सुहं' ति । तओ इमं च निसामिऊण भणियं जंबुकुमारेण-'सोम ! सोहणं ते पुच्छियं, ता निसुणसु इमं' ति । अवि य- अत्थि अवंतीविसए उज्जेणी नाम पुरवरी पयडा । नरनाहो पउमरहो देवी कमलप्पहा तस्स ॥२११॥ तत्थत्थि धणभिहाणो सत्थाहो दसदिसीसुविक्खाओ । कारुणि[यो] दयजुत्तो धम्मिट्ठो सयलगुणकलिओ ॥२१२।। सो अन्नया कयाई भंडं भरिऊण रयणदीवंमि । संपत्थिओ महप्पा नवरं चिंतेइ हियएणं ॥२१३।। इह पुरिसेण सयं चिय नियकुलअहिमाणमुव्वहंतेण । सपरोवयारकरणे पयट्टियव्वं सया कालं ॥२१४॥ दारिद्ददोसदुक्खाभिओगपरिपीडिओ जणो एत्थ । परिवसइ छुहकंतो निच्चं परपेसणासत्तो ॥२१५।। 2010_02 Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०७ सोलसमो उद्देसओ ता मोएमि इमाओ बहुदुक्खदरिद्ददोसनियराओ। आरोवेमि इमं से निरुवहयसुहालए ठाणे ॥२१६॥ भणियं च- "पहमित्थत्थे( ?) जीयं रूवं तारुन्नयं च दइयाए । विहलुद्धरणे य धणं जस्स गयं किं गयं तस्स" ॥२१७॥ [ ] जओ सुव्वइ य "रूवेण किं गुणपरक्कमवज्जिएण, अत्थेण किं किविणहत्थगएण लोए । नाणेण किंबहुजणाणुवगारएण, मित्तेण किं वसणकज्जपरंमुहेण" ॥२१८॥ तहा- तणलग्गविसमसंठियपवणाहयसलिलबबिंदुसरिसेण । विहवेण जइ विढप्पइ थिरो जसो किं न पज्जत्तं ॥२१९॥ चिंतेऊणं एवं कया य उग्घोसणा तहिं नयरे । धणनामसत्थवाहो निवसइ जो एत्थ नयरीए ॥२२०॥ सो एस रयणदीवं मि पत्थिओ सिवउरिं महानयरिं । जो वच्चइ सह तेणं तस्स य सो भलइ सव्वेण ॥२२१॥ सोऊण इमं ताहे बहुओ संपत्थिओ जणो तत्थ । सो तेसिं मिलियाणं परिकहिओ पंथगुण-दोसो ॥२२२॥ भो भो निसुणह लोया ! अववाओ मा भविस्सए मज्झ । मा मा अयाणमाणा वसणं पावेह तुम्हेत्थ ॥२२३॥ अडवी तत्थ महंता सिवउरिनयरीए अंतरालंमि । पंथा य दोन्नि तीए समुज्जओ तह य वंको उ ॥२२४॥ वंकेण तत्थ बहुणा गम्मइ कालेण सुहतरागं च । उव(त्त?)रइ सो वि अंते समुज्जगं नवर जं पंथं ॥२२५॥ इयरेण गम्मइ दुहं लहुं च सो जेण विसमतणुओ य । ओयारे च्चिय घोरा वग्घा सीहा य निवसंति ॥२२६॥ पाएण ते वि दोन्नि वि कह वि पमाएणं पंथभट्ठाणं । लग्गंति न उण पंथे वच्चंति य जाव अवसाणं ॥२२७॥ 2010_02 Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ जंबुचरियम् रुक्खा य तत्थ एगे मणोरमा बहलपत्तलच्छाया । तेसु न वीससियव्वं छाया वि य मारए तेसिं ॥२२८॥ परिसडियपंडुपत्तेसु नवर रुक्खेसु वीसमेयव्वं । एक्कं तत्थ मुहुत्तं पुणो वि पंथंमि गंतव्वं ॥२२९|| बहवे य तडनिविट्ठा रूवस्सी तह य महुरवाया य । सदंति तत्थ पुरिसा तेसिं वयणं न सोयव्वं ॥२३०॥ मोत्तव्वा न सहाया खणं पि एगागिणो अवस्सभयं । अत्थि दुरंतो य तर्हि पंथंमि दवानलो घोरो ॥२३१॥ जयणाए सो दवग्गी पमायरहिएहिं वेझवेयव्वो । अणविज्झाणो नियमा पज्जलिऊणं डहइ पुरिसं ॥२३२॥ पुरओ वि तुंगसेलो पमायरहिएहिँ सो विलंघेव्वो । नियमेण होइ मरणं तमलंघताण पुरिसाण ॥२३३॥ पुरओ वि कुडिलगुहिरा वंसकुडंगी पयत्तजुत्तेहिं । लंघेयव्वाऽवस्सं बहवे अविलंघणे दोसा ॥२३४|| खड्डोलओ य तुच्छो तस्स समीवे मणोरहो नाम । अच्छइ निच्चुवविट्ठो पूरेह इमं भणइ विप्पो ॥२३५॥ सो य न पूरेयव्वो पूरिज्जंतो य जाइ वित्थारं । पंथस्स य पलिभंगो वयणं पि न तस्स सोयव्वं ॥२३६॥ अत्थि पुणो दिव्वाइं किंपागफलाइं सुरहिपिक्काइं । जीयहराई फलाई ताई पि विवज्जणीयाई ॥२३७॥ घोरा महाकराला अत्थि पिसाया य तत्थ बावीसं । निच्चं चिय गसणपरा जेयव्वा ते पयत्तेण ॥२३८॥ विरसं च भत्तपाणं भुंजेयव्वं च जाइडं निच्चं । वोढव्वं दो जामे रयणीए पच्छिमे पढमे ॥२३९।। 2010_02 Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०९ सोलसमो उद्देसओ न कयाइ अप्पयाणं कायव्वं निच्चमेव वोढव्वं । एएण नवर विहिणा खिप्पं लंघिज्जए अडवी ॥२४०॥ पाविज्जइ अच्चंतं गंतुं दोगच्चसयलपरिहीणं । सव्वुत्तमसुहवसहिं सिग्धं चिय सिवपुरि ताहे ॥२४१॥ तत्थ न जरा न मच्चू न वाहिणो नेय सयलसंतावा । अच्चंतव्वाबाहं होइ सुहं सयलकालं पि ॥२४२।। एवं च तेण सिढे उच्चलिया के वि सरलपंथेण । अन्ने पुण ऽन्नयरेण तेण समं पंथिया बहवे ॥२४३।। पुरओ य वच्चमाणा मग्गं दावेइ सयललोयाणं । संलिहइ अक्खरेहि सिलासु पंथस्स दोस-गुणा ॥२४४॥ एवं जे तेण समं सयलसमाएसकारिणो चलिया । ते तेण समं पत्ता अचिरेणं तं पुरिं पवरं ॥२४५॥ पाविति ते वि नूणं जे च्चिय गच्छंति तस्स मग्गेण । लिहियं अणुसरमाणा दोसे वज्जेंति जत्तेण ॥२४६॥ जे उण तस्सुवएसे न वट्टिया नेय वट्टइस्संति । वटुंति नेय अहुणा ते न य पत्ता न पाविति ॥२४७॥ दव्वाडवीए एवं संपइ भावाडवीए जोडेमि । एयं चिय अक्खाणं संखेवेणं जडा कमसो ॥२४८॥ "जो तज्झ सत्थवाहो सो तिहुयणेक्कदिवसयरो । केवलपईवपयडियपरमत्थपयत्थवित्थारो ॥२४९॥ जम्मजरमरणसलिले मिच्छत्ताविरइदूरपायाले । भीसणकसायवत्ते दुल्लंघे सोमगंभीरे ॥२५०॥ रागद्दोससमीरणविक्खोभियवीई(विइ)तरंगकल्लोले । सोगाइदुट्ठमच्छे संजोगविओगविक्खोभे ॥२५१।। 2010_02 Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० जंबुचरियम् पवरमणोहरकूले सुदीहसंसारसायरे घोरे । द₹णं भममाणा दुक्खत्ते पाणिणो बहवे ॥२५२॥ सपरोवयारकरणक्कवच्छलो तिहुयणेक्कहियजुत्तो। गंभीरोदारो वासवो व्व परमत्थकुसलो य ॥२५३॥ एए उद्धरिऊणं इमाओ भीमाओ भवसमुद्दाओ । आरोवेमि सिवपुरिं अच्चंतेगंतसुहठाणं ॥२५४॥ एवं परिकलिऊणं सरिसा उग्घोसणाए धम्मकहा । सव्वेसिं सत्ताणं परिकहइ हियत्थबुद्धीए ॥२५५।। सत्थियपुरिसा जीवा अडवी य भवाडवी इमा नेया । सरलपहो जइधम्मो सावयमग्गो भवे इयरो ॥२५६।। पप्पपुरं पुण मोक्खो हरि-पुल्ली हुँति राग-दोसा य । निहणंति ते वि जीवं मोक्खं पइ पत्थियं दो वि ॥२५७॥ न मुयंति मग्गचारं जा पत्तं केवलं वरं नाणं । इत्थीसंसत्ताओ वसहीओ सीयला रुक्खा ॥२५८।। परिसडियपंडुपत्ता रुक्खा सुद्धाओ हुंति वसहीओ । मग्गतडट्ठा पुरिसा पासंडी ते मुणेयव्वा ॥२५९॥ तह सत्थिगा य साहू कोहो य दवानलो मुणेयव्वो । सेलो य होइ माणो वंक(स)कुडंगी भवे माया ॥२६०॥ खड्डोलगो य लोहो पूरिज्जंतो ज जाइ वित्थारं । इच्छामणोरहादओ किंपागफलोवमा विसया ॥२६१॥ बावीसं पि पिसाया परीसहा विरसभोयणं भिक्खा । दोसेहिं विप्पमुक्का उवलद्धा भमरवित्तीए ॥२६२।। अपयाणगं तु निच्चं नायव्वं संजमे समुच्छाहो । जामदुगे सज्झाओ कायव्वो निच्च कालं पि ॥२६३॥ 2010_02 Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २११ सोलसमो उद्देसओ एवं नित्थरिऊणं भवाडविं सयलकम्मपरिमुक्का । जीवा निव्वाणपुरे पाविति अणोवमं सोक्खं ॥२६४।। जे सद्दरूवरसगंधफासपरिमोहिया इमं पंथं । मोत्तूण उप्पहेणं वच्चंति नरा कुबुद्धीया ॥२६५॥ ते पुण हिंडंति इमं अणोरपारं सुदुत्तरं घोरं । सयलदुहाण निहाणं भीमं संसारमयरहरं ॥२६६॥ एत्थ जिणवयणपोयं मोत्तूण तरंडयं न उण अन्नं । तस्सेय जेण वयणं होइ अवंझं अगाराओ ॥२६७॥ भणियं च- "रागाओ दोसाओ मोहाओ वा भणेइ अलियाई । जस्स न एए दोसा भण अलिए तस्स को जोगो" ॥२६८॥ [ ] ता सव्वहा आएयं सजुत्तिमत्ताओ इमं जिणवयणं । भणियं च- "जुत्तीखमं च वयणं कोहकसायाइसूडणं परमं । हिंसाइदोसरहियं परमपयनिसेवणं गुज्झं" ॥२६९॥ [ ] तहा पहव ! दुल्लहं च इमं जिणवयणं । जओ भणियं "घणघाइचउक्कयंमि भवणमूलभूयए, रागाइसमुन्भवंमि खीणंमि असुहकम्मए । उल्लसिए केवलंमि सयलपयत्थसाहए, उवएसो जो जिणाण तं पावेइ सउन्नओ" ॥२७०॥ [ ] ता एयं नाऊणं संसारमहाडविं दुरुत्तारं । उज्जयपहेण लग्गह जिणभणियविहाणुसारेण ॥२७१॥ परलोयगमणनेव्वाणसाहणं जं जिणेहिं उवइटुं । गिण्हह वरपच्छयणं पुणो वि मणुयत्तणं दुलहं ॥२७२।। भणियं च- "माणुसत्ताओ पब्भट्ठो बुड्डो संसारसायरे । दुक्खेण लहइ पाणी माणुसत्तं पुणो पुणो" ॥२७३॥ [ ] 2010_02 Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ जंबुचरियम् चिट्ठउ ता मणुयत्तं कह वि किलेसेण एत्थ संसारे । जोणिबहुलक्खपुन्ने लब्भइ बेइंदियत्तं पि ॥२७४॥ जओ- एसो पुढविकाए असंखकालं वि नियसए जीवो । चिट्ठइ असंखगुणियं आउक्काए पुणो वेस ॥२७५॥ तेउक्काए वि तहा वाउंमि वणस्सइंमि य अणंते । कायट्ठिईएँ एवं पवाहपेक्खाए अक्खायं ॥२७६॥ कह वि तुलग्गेणेवं इमाण कायाण उप्फडेऊण । संपावइ बेइंदियभावं तसकम्मउदएण ॥२७७॥ परिवाडीए एवं लहई पंचिंदियत्तणं जीवो । लद्धे वि तंमि एवं मणुयत्तं दुल्लहं होइ ॥२७८॥ जह रयणं मयरहरे पब्भटुं दुल्लहं पुणो होइ । एवं पुणो वि जम्मो सुदुल्लहो मणुयजाईए ॥२७९॥ भणियं च- "चोल्लगपासगधन्ने जु( जू )ए रयणे य सुमिणचक्के य । चम्मजुगे परमाणू दस दिटुंता मणुयजंमे" ॥२८०॥ [ उत्त.नि. गा.१६० ] वित्थरभयाओ न मए दिटुंता एत्थ विरइया एए । तह सुयसिद्धंताओ ससूयणीया विमलधिइहिं ॥२८१॥ एवं चिमेण विहिणा दुल्लहलंभं पि कह वि लहिऊण । धम्मस्स साहणाई खेत्ताईयाइं न लभेइ ॥२८२॥ "माणुस्स-खेत्त-जाई-कुल-रूवारोगमाउयं बुद्धी । समणोग्गह-सद्धा-संजमो य लोगंमि दुलहाई" ॥२८३॥[उत्त.नि. गा.१५९ ] नाऊण एवमेवं संसारे दुल्लहं मणुयजम्मं । धंमंमि समुच्छाहो कायव्वो अप्पमत्तेहिं ॥२८४॥ भणियं च- “जोणीसहस्साणि बहूणि गंतुं, चिरस्स लळूण य माणुसत्तं । सहावहं जे न चरंति धंमं, नरा हु ते अप्पयसत्तुभूया" ॥२८५॥ [ ] 2010_02 Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमो उद्देसओ २१३ खेत्ताईसुविसुद्धे लद्धे मणुयत्तणे वि अइदुलहं । संसारसमुद्धरणं जिणिंदवयणामयं एयं ॥२८६॥ भणियं च- "रयणायरं पि पत्तो रयणाइं पवरसोक्खसाराई । जह विरलो च्चिय पावइ, तह मणुयत्ते वि जिणधंमो" ॥२८७॥ [ ] अइदुल्लहे वि य(प)त्ते] इमंमि जइ कुणइ संजगुच्छाहं । ता सहलं चिय सव्वं अन्नह किं तेण लद्धेण ॥२८८॥ लद्धं अलद्धपुव्वं जिणवयणं भवसएहिं बहुएहिं । लद्धं पि अलद्धसमं जं न कयं जं जहा भणियं ॥२८९॥ भणियं च एत्थ कविणा जिणिंदवयणंमि भावियमणेण । तं पहव ! निसामिज्जउ साहिप्पंतं समासेण ॥२९०॥ "एक्के नयणं तच्चिय जिणवरमग्गं न चेव पावंति । अवरे लद्धे वि पुणो संदेहं नवर चिंतिति ॥२९१॥ [ ] अन्नाण होइ संका न याणिमो कह व हो[ ज्ज ]से धम्मो । अवरे भणंति मूढा सव्वो धम्मो समो चेव ॥२९२॥ [ ] अवरे बुद्धिविहूणा रत्ता सत्ता कुतित्थिसत्थेसु । के वि पसंसंति पुणो चरग-परिवायदिक्खाओ ॥२९३॥ [ ] अवरे जाणंत च्चिय धम्माधम्माण जं फलं लोए । तह वि य करिन्ति पावं पुव्वज्जियकम्मदोसेण ॥२९४॥ [ ] अवरे सामन्नं चिय पत्ता घणरागदोसमूढमणा । पेसन्ननियडिकोवेहिं भीमरूवेहि धिप्पंति ॥२९५॥ [ ] अन्ने भवसयदुलहं पावेऊणं जिणिंदवरमग्गं । विसयामिसमूढमणा संजमजोए न लग्गंति ॥२९६॥ [ ] न य हुंति ताण भोगा न य धंमो अलियविरइआसाणं । लोयाण दुन्नि चुक्का न य सग्गे खत्तियकुले य ॥२९७॥ [ ] अवरे उण नाणेणं सव्वं किर जाणियं ति अम्हेहिं । पेच्छंत च्चिय दड्डा जह वंगुलया वणदवेण ॥२९८॥ [ ] 2010_02 Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ जंबुचरियम् अवरे तवगारविया किर किरिया मोक्खसाहणी भणिया । उज्झंति ते विमूढा धावंता अंधला चेव ॥२९९॥ [ ] इय बहवे जाणंता तह वि महामोहपसरभरमूढा । न कुणंति जिणवराणं आणं सोक्खाण संताणं" ॥३००॥ [ ] ता पत्ते मणुयत्ते धम्मे य जिणिंदभासिए विमले । उज्जमियव्वं सव्वायरेण विसए विमोत्तूण ॥३०१॥ मणुयत्तणं च जाणसु ओसाजललवतुसारसमसारं । खणदिट्ठनट्ठविहवं वाहिसयसमाउलं निच्चं ॥३०२॥ बहिरम्मं दीसंतं अभितरअसुइपूइपडिपुन्नं । दुग्गंधं बीभच्छं नवसोत्तचिलिच्चिलचिलीणं ॥३०३॥ खणसोहियरमणीयं खणमणहररूवजोव्वणविलासं । खणरिद्धिदेहजीवियपरिसंठियअसुहपरिणामं ॥३०४॥ नाऊण चंचलमिमं आउं तह जोव्वणं च जीयं च । जुवईण य असुइत्तं देहस्स य भंगुरत्तं च ॥३०५॥ काऊणं समभावं अविहिंसालक्खणं जिणक्खायं । गिण्हह य धम्मरयणं परलोयहियं पयत्तेण ॥३०६॥ मा मुज्झह घरवासे इमाण किपागतरुफलसमाणं । अंतेसु दारुणाणं तुच्छाण कएण विसयाणं ॥३०७॥ जओ- देहस्स उप्पत्ती एवंविहा वन्निया समयन्नूहि "रसरुहिरमंसमेओ अट्ठी मज्जा य सुक्कथाऊ य । . देहस्स य उप्पत्ती एसा किं तत्थ राएणं ॥३०८॥ [ ] पच्चक्खं चिय दीसइ नवसु विसोत्तेसु असुइनिज्जासो । बहिरंतगलंतमलो निच्चं असुभो दुरहिगंधो ॥३०९॥ [ ] जं चिय कुंकुमचंदणकप्पूरसुयंधपरिमलायड्ढे । तं होइ असुइगंधं देहविलग्गं खणद्धेण ॥३१०॥[ ] 2010_02 Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१५ सोलसमो उद्देसओ सिंभो लाला वयणे सिंघाणो नासियाए नीहरइ । नयणे सुदूसियाओ कन्नेसु मलो दुरहिगंधो ॥३११॥ [ ] मुत्तपुरीसाईयं सेफा वाणाइसु (?) सव्वेसु । नीसरइ दुरहिगंधं बीभच्छं लज्जणीयं च ॥३१२॥ [ ] तं पि जराअक्कंतं पयडियवलिपलियनहरसमजालं ।। विगलियदसणं पयडट्ठियं च ओहोइ हासणयं ॥३१३॥ [ ] थरहरइ सिरं कंपंति हत्थया गलइ नासियाविवरं । चुक्कइ दिट्ठी न सुणंति कन्नया खलइ वाया वि ॥३१४॥ [ ] तं चेव इमं देहं अन्नहरूवं जराए संजायं । पायडियकडिक्कपहं पायडवयणं दुगुंछणियं" ॥३१५॥ [ ] भणियं च- "चच्चरनिरंतरुब्भडजच्चंजणजलयसामला जे वि । परिणमिउं कालवसेण ते वि कह पंडुरा जाया" ॥३१६॥ [ ] रत्तंतधवलपम्हलसललियभूभंगतरलताराई । नयणाइं गलंति विहीवसेण जरछज्जगेहं व ॥३१७॥ [ ] जे सव्वसत्थसललियमहरिहगंधव्वकव्वसुइसुहया । कन्ना दुप्पुत्तजुवाणय व्व भणियं पि नि(न) सुणिति ॥३१८॥ [ ] जे वि समसहियनिद्धनिम्मललक्खारसरायरंजियच्छाया( ? )। दीसंति पविरला सज्जण व्व दंता दुरालक्खा ॥३१९॥ [ ] जा विविहकलाकोसल्लपणइयणगुणमणोहरा वाणी । सा मुद्धयकंठपरिक्खलंतखलियक्खरा जाया ॥३२०॥ [ ] जं समयनाभिपुव्वं दिटुं चवलाहि ताहि तरुणीहिं । चलणजुयलं नमिज्जइ तं पिय गुरुभत्तिराएणं ॥३२१॥ [ ] वयणं वाहाजुयलं अणोवमं विणयनेहपडिबद्धं । कह विहिवसेण जायं घुणक्खरुब्भिन्नकट्ठ व" ॥३२२॥ [ ] इय ते सोयंति नरा नारायणसरिसया वि जियलोए । जे पढम चिय न कुणंति मोक्खहेउं तवच्चरणं ॥३२३॥ [ ] ___ 2010_02 Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ अहवा बालाई दुहाई जीवस्स दससु वि दसासु । अच्छउ पुण विद्धत्ते देहेण विगल्लपुरिसस्स ॥ ३२४॥ भणियं च - "बाला किड्डा मंदा बला य पम्हा य हायणिपवंचा । पारमुम्ही सायणी य दसमा य कालदसा ॥ ३२५ ॥ [ ] "जायमेत्तस्स जंतुस्स जा सा पढमिया दसा । न तत्थ सुह- दुक्खाई बहुं जाणइ बालया ॥ ३२६॥ [] बीयं च दसं पत्तो नाणाकीलाहिं कीलई । न तत्थ काम - भोगेहिं तिव्वा उप्पज्जई मही(ई ) ॥ ३२७॥ [ ] तइयं च दसं पत्तो पंचकामगुणे नरो । समत्थो भुंजिउं भोए जड़ से अत्थि घरे धुवा ॥३२८॥ [ ] जंबुचरियम् चउत्थी उ बला नाम जं नरो दसमस्सिओ । समत्तो (त्थो) सत्तिं दंसेउं जइ होइ निरुवद्दुओ ॥ ३२९॥ [ ] पंचमी उदसं पत्तो आणुपुव्वीए जो नरो । इच्छित्थं व चिंतेइ कुटुंबं चाभिकखइ ॥ ३३० ॥[] छट्ठी ओम (उण? ) हायणी नाम जं नरो दसमस्सिओ । विरज्जई य कामेसु इंदियत्थेसु हायई ॥३३१॥ [ ] सत्तमं च दसं पत्तो आणुपुव्वीए जो नरो । नि चिक्कणं खेलं खासई य अणिक्खणं ॥ ३३२ ॥ [ ] संकुइयबलीचम्मो संपत्तो अट्ठमी दसं । नारीणमभिप्पेओ जराए परिणामिओ ॥ ३३३॥ [ ] नवमी उ मुम्मुही नाम जं नारो दसमस्सिओ । जराघरे विणस्ते जीवो वसइ अकामओ ॥ ३३४ ॥ [ ] ही भिन्नस्सरो दीणो विवरीओ विचित्तओ | दुब्बलो दुक्खओवस संपत्तो दसमं दसं " ॥ ३३५॥ [ ] ता सव्वा वि दुक्खं नत्थि सुहं किं पि एत्थ संसारे । इय नाऊणं एवं मा मुज्झह किं पि मुद्धाओ ॥ ३३६ ॥ 2010_02 Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमो उद्देसओ २१७ __ तओ इमं च एत्तियं निसामिऊण संजायगरुयमहाभयसंसारमहन्नववेरग्गाहिं उप्पन्नसव्वविरइमणग्धेयरयणचित्ताहिं करकमलविरइयंजलिउडाहिं भणियं सिंधुमइपमुहाहिं अट्ठहिं वि जंबुणामजायाहिं । अवि य- उत्तारियाओ मन्ने संसारमहासमुद्ददुक्खाओ। दाऊण सव्वविरइं जगुत्तमं सामि ते अम्हे ॥३३७॥ ता पज्जत्तमिमेहिं दुट्ठविवाएहिं अम्ह भोएहिं । निव्विन्नाओ अम्हे इमाण संसारकारीण ॥३३८॥ तुब्भेहिं समं सामिय ! पच्चूसे गणहरिंदपासंमि । गिण्हामो पव्वज्जं सव्वाओ ते अणुन्नाओ ॥३३९॥ एक्कं पुण साहिज्जइ इमेण जं पुच्छियं कुमारेण । पभवेमि (?) सामि ! सोक्खं मोक्खे किल केरिसं होइ ॥३४०॥ तओ इमं च निसामिऊण भणियं जंबुणामेणअवि य- सव्वन्नुवयणवित्थरपयत्थपय(र)मत्थलद्धसारेहिं । भविएहिं किच्चमेयं वयगहणं जिणसमुद्दिढें ॥३४१॥ ता सुट्ट सुंदरो च्चिय ववसाओ एस तुम्ह संजाओ । निव्वाणसुहपसाहणनिच्छियमणसाण सव्वाण ॥३४२॥ जं पुण नेव्वाणसुहं तं कह अम्हेहिं नाणरहिएहिं । साहेऊण तरिज्जइ तह वि य वोच्छं जिणुद्दिटुं ॥३४३॥ "सव्वनरामरसोक्खं भूय-भविस्सं च वट्टमाणं च ।। बुद्धीए कप्पिऊणं कीरइ एगथपिंडोलो ॥३४४॥ [ ] एक्कसमएण सोक्खं उप्पन्नं जं च एक्कसिद्धस्स । तं तेण समं कीरइ बुद्धीए नरामरसुहेण ॥३४५॥ [ ] वडवीय-सुरगिरीणं जेत्तियमेत्तं तु अंतरं तत्थ । तेत्तियमेत्तं तेर्सि दोण्ह वि किं होउ सोक्खाण" ॥३४६॥ [ ] अलियस्स वीहमाणो होउ त्ति न जंपिमो अहं एयं । जेणंतरं महंतं तेसिं सोक्खाण तं दिटुं ॥३४७॥ 2010_02 Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ जंबुचरियम् भणियं च- "न वि अस्थि माणुसाणं, तं सोक्खं न वि य सव्वदेवाणं । जं सिद्धाणं सोक्खं अव्वाबाहं उवगयाणं" ॥३४८॥[आव.नि./गा.९८०] "सुरगणसुहं समत्तं सव्वद्धापिंडियं अणंतगुणं । न विपावइ मोत्तिसुहं अ( ? )णताहि विवग्गवग्गूहि" ॥३४९॥[आ.नि.९८१] "सिद्धस्स हो रासी सव्वद्धा पिंडिओ जइ हवेज्ज । सोऽणंतवग्गभइओ सव्वागासे न माएज्जा" ॥३५०॥[आव.नि./गा.९८२] ता कह तं साहिज्जउ उवमा जस्सेत्थ नत्थि भुवर्णमि । तह वि सुणिज्जउ पयडं जिणभणियं एत्थ दिटुंतं ॥३५१॥ "जह को वि मेच्छपुरिसो विंझधराधरनियंबपरिवासी । विहिजोएणं पत्तो बारवई पुरवरिं रम्म" ॥३५२॥ कणयमयसालवलयं पेच्छइ सो तत्थ तुंगसिहरढें । उत्तत्तकणयघडिए तुंगे य विसालपासाए ॥३५३।। कणयमयसालिभंजियवेइयमाणिक्ककोट्टिमे रम्मे । जिणभवणे उत्तुंगे पेच्छइ वररयणदिप्पते ॥३५४॥ जिणवय(भव)णसिहरसंठियरयणसमुल्लसियकरसमूहेहिं । पेच्छइ गयणनिबद्धे सुरचावे पायडे तत्थ ॥३५५।। लायन्नरूवपोरुसविविहगुणकलाकलावपरिकलिए । पेच्छइ जायवकुमरे देवकुमारोवमे तत्थ ॥३५६।। रयणवरभूसणमयूहजालबद्धिंदविविहचावाओ । जायवविलासिणीओ पेच्छइ सुरविलयसरिसाओ ॥३५७॥ अण्णं च तत्थ सव्वं पेच्छइ असुयं अदिट्ठपुव्वं च । दट्टण विम्हिओ सो सुरलोयसमं पुर्रि दिव्वं ॥३५८॥ तओ चिंतिउं पयत्तो । अवि य- किं एस होज्ज सग्गो मोक्खो वा किं व परभवो एस । किं वा वि इंदयालं किं वा सुमिणंतरं किं पि ॥३५९॥ 2010_02 Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमो उद्देओ एवं च विम्हयमणो जं जं नयरीए पेच्छए किंपि । तं तं अदिट्ठपुव्वं दट्ठूणं विम्हियं जाइ || ३६०|| विहिविलसिएण केण वि पुणो वि सो विंझनगवरं पत्तो । पुच्छि सबहिं किं दिट्ठ भद्द ते तत्थ ॥ ३६१|| केरिसया सा नयरी बारवई जीए तं गओ आसि । सो भइ अहो भद्दा ! पच्चक्खं तीए मम सव्वं ॥३६२॥ किं तु न तीरइ कहिउं तुम्हाण अदिट्ठनयरिरूवाणं । न य अस्थि किं पि विंझे तारिसयं जेण उवमेमि ॥३६३॥ जो तं पेच्छइ नयरिं तीए सो चेव जाणइ सरुवं । सेसो उण न वि याणइ कहिज्जमाणं पि अम्हेहिं ॥ ३६४ ॥ भणियं च - "जह नाम कोइ मेच्छो नयरगुणे बहुवि वियतो । न चएइ परिकहेउं उवमाए तहिं असंतीए " ॥ ३६५॥ [ आव.नि./गा. ९८३] ता- सो तेसिं किं साहउ कह वा तेसि पि होउ पडिवत्ती । कहिए वि तेण तीए नयरीए किल सरूवंमि ॥ ३६६ ॥ एवं नेव्वाणसुहं नीरुवमं कह व साहिमो तुम्ह | तं पुण जिहिं दिट्टं वियाणियं तह सरूवेण ॥ ३६७॥ साहिंतु ते वि कह तं वियाणमाणा वि उयवमा (उवमया) रहियं । कह साहियं पि होज्जा पडिवत्ती होउ कह तस्स ॥ ३६८ ॥ अत्थं (च्चं ) तेगंतसुहं अव्वाबाहं नीरुवमं परमं । अयलमरूवमणतं सिवसासयमक्खयसरूवं ॥ ३६९ ॥ ता एत्थ इमं सारं जं कह वि हु पाविऊण मणुयत्तं । साहिज्जइ अच्वंतं सासयसोक्खं अणाबाहं ॥ ३७० ॥ सोऊण एवमेयं पभवो संसारचारवासस्स । भीओ निययमणेणं चिंतेउं एवमादत्तो ॥ ३७१॥ 2010_02 २१९ Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० जंबुचरियम् "नत्थि सरणं जयंमि वि अम्हाणं मोहमूढहियया[णं] । जरमरणाणं(ई?)हितो भणियं च इमं जओ जीव ॥३७२॥ सम्मोहसंभवुभंतदीहमुच्छानिमीलियच्छिस्स । परिट्ठि(परिरंभि?)यसासपरिक्खलंतखलियक्खरगिरस्स ॥३७३॥ आवद्धउद्धसासानिरुद्धघुरुघुरुपुरंतकंठस्स । किं ते होही सरणं अत्थायं तंमि जियलोए ॥३७४॥ निवडंतदंतसंघट्टगाढसंदट्ठहिययपीडस्स। तम्मि समयंमि जरजिय जइ पर धंमो तुमे सरणं ॥३७५॥ वेज्जपरिच्छ(छोन्नवीसन्नविमणवटुंतहिययसोयस्स । आसन्नपत्तपरियणहलबोलकंतविहलस्स ॥३७६॥ आपंडुरखामकवोलदीणदइयामुहं नियंतस्स । पासट्ठियमुद्धडबालतणयहीरंतहिययस्स ॥३७७॥ माया पिया परियणो सयणो वा गरुयनेहपडिबद्धो । अत्थो वा दुक्खसहस्ससंचिओ कुणइ किं ताणं ॥३७८॥ जस्स य कए अकज्जाइं कुणसि नीसेसरोगनिलयस्स । सव्वासुईनिहाणस्स कायकलिणो कयग्घस्स ॥३७९॥ तं चिय इमं सरीरं सउणा खाहिंति जीयविप्पजढं । अह व किमियाण पुंजो होही कूडं व भूईए ॥३८०॥ इय ते सोयंति नरा अप्पाणं मरणदेसकालंमि । जे पढमं चिय न कुणंति माणतुंगं तवच्चरणं ॥३८१।। अहवा - मा होह रे विसन्नो जीव ! तुमं विमणदुम्मणो दीणो । न हु चिंतिएण फिट्टइ तं दुक्खं जं पुरा रड्यं ॥३८२॥ जइ पइससि पायालं अडविं व दरिं गुहं समुदं वा । पुव्वकयाओ न चुक्कसि अप्पाणं खायसे जइ वि ॥३८३॥ 2010_02 Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२१ जइ रुयसि वि(?)लवसि (?) वेवसि दीणं पुलसि दस वि दिसिचक्के । हाहा पलवसि विलवसि चुक्कसि कत्तो कयंताओ ॥ ३८४॥ सोलसमो उद्देओ जइ गासि वासि दुम्मण मुज्झसि अह लोलसी धरणिवट्ठे । जंपस मूओ व्व ठिओ चुक्कसि न वि तं कयंताओ ||३८५॥ जं चेव कयं तं चेव भुंजसी नत्थि एत्थ संदेहो । अयं कत्तो पावसि जइ वि सयं देवराओ त्ति ||३८६ ॥ मा हो जूरह [ पुरिसा ] विहवो नत्थि त्ति अम्ह हियणं । जं पुव्वं चिय न कयं तं कत्तो पावसे इण्हि ॥ ३८७॥ मा हो मज्जह पुरिसा विभवो अस्थि त्ति उत्तुणा हिय । किं पि कयं सुकयं वा पुणो वि तं चेव भो कुह || ३८८॥ होऊण अम्ह न हुयं मा दीणा होह इय विचितेह | काऊण पुणो न कयं किं पि पुरा सुंदरं कम्मं" ॥३८९॥ 'अहो तओ इमं च एत्तियं चिंतिऊण पहरिसवयणलोयणेण भणियं पभवेण - ' महाणुभावचरियजंबुकुमार ! सोहणो एस जो तए पसाहिओ उज्जयपहो । दुरंता य संसाराडवी बहुपच्चवायसयसंकुला य । दुल्लहो जिणसत्थवाहो कुसलो य। निव्वाणपुरगमणपहस्स पढमं च सिवउरिसुहं बहुपुन्नफलपसाहणं च । अइकडुयविवागा विसया । बहुदुक्खपरिहरणीया य' । भणियं च - " दुक्खं नज्जइ नाणं नाणं नाऊण भावणा दुक्खं । भावियमई वि जीवो विसएसु विरज्जए दुक्खं" ॥३९०॥ [ ] तहा नाणावयारदुक्खाओ नारयतिरियनरामरगाईओ, अइबहुकालनिवसणं च पुढविजलानिलवणस्सइकारसु जीवाणं । दुक्खेण य लब्भइ बेइंजियभावो । इंदियपरिवाडीए पुणो वि अइदुल्लहं पंचिदियत्तणं । तत्थ वि मणुयजाई । पुण खेत्ताइयाइं जिणप्पणीयधम्मोवगरणाई । तत्थ वि जिणवरधम्मो । जिणधम्मे य जहाभणियविहाणुट्टाणकरणं । लोहागरगहणपुरिसत्तिभेयतुच्छफलए कुदिट्ठिपणीए धम्मे जच्चकंचणपुरिससरिसो य सिवसुहपसाहणफलो इमो जिणप्पणीओ धम्मो । ता इमं च एत्तियं निसामिऊण विरत्तं मम भवपंजराओ चित्तं । निव्विन्नो य इमाणं 2010_02 Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ जंबुचरियम् किंपागफलसरिसाणमसुहविवायाण विसयाणं । ता तए सह सामन्नमहं पि गिहि-. स्सामि त्ति । केवलं इमस्स कोणियनरिंदस्स कया मए बहवे अवराहट्ठाणा । तं मम कएण तए सव्वे वि मरिसावणीया । अहं पि गंतूण जणणिजणए आपुच्छिऊणागच्छामि' त्ति भणमाणो निवडिओ चलणेसु जंबुकुमारस्स । विणिग्गओ नयराओ । ताई पि पंचचोरपुरिसा(स)[सया]इं पडिवन्नसम्मत्ताइं विमुक्काइं बंधणायाराओ देवयाए। तओ इमंमि य अवसरे किं जायं ?अवि य- नज्जइ सुणिउं(ऊ)णेवं जायविराएण मुच्चइ नहेण । तमभावो पयडिज्जइ सच्छत्तं मित्तसंगेण ॥३९१॥ वित्थिन्ननहदुमस्स य विलयंति भरेण तारया कुसुमे । निव्वट्टिऊण बद्धं ससिपिक्कफलं पि लंबंतं ॥३९२।। रायंगणे य पहयं पहायपडिसूयगं महातूरं । देवभवणेसु संखा पवाइया गुहिरकलसद्दा ॥३९३॥ तमनिवहं पेल्लंतो उज्जोयंतो य दसदिसाचक्कं । धम्मनिरए य लोए कुणमाणो उग्गओ सूरो ॥३९४॥ इय एरिसे पहाए जंबुकुमारो बहूहिं परिकलिओ । चेइयहरं पयट्टो जिणाण परिवंदणनिमित्तं ।।३९५॥ दिटुं च- विविहधयवडपवणपहोलंतदसदिसानिवहं । ससिकिरणसंगपसरियचंद[य]मणिजलपवाहिल्लं ॥३९६॥ तओ पयंसिउं च पयत्तो निययजायाणं जंबुकुमारो जिणभवणं । अवि य- फलिहमणिभित्तिविरइयगवक्खवरपोमरायपडिमाणं । किरणुल्लसियनिबद्धे ओपेच्छसु विविहसुरचावो(वे) ॥३९७॥ नजंति पलित्ता इव जिणिंदपासेसु चामरकलावा । थंभनिवेसियमणिपोमरायपहपडलनियरेहिं ॥३९८॥ मरगयमणिकिरणेहिं फलिहविणिज्जंतनहमयूहेहिं । सामलधवलं जायं जिणबिंबं कणयवन्नं पि ॥३९९॥ 2010_02 Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमो उद्देसओ २२३ तओ इमं च भणियाहिं अवलोइयं ताहिं तं जिणभवणं । केरिसं दिटुं च ?अवि य- "जोइंदनीलमणिनियरजालकुवलयकओवयारं व । विहुमलयजालेहिं संझाराओं व्व तं दिटुं ॥४००॥ मुत्ताहलनियरेहिं नज्जइ गयणं व तारयाइन्नं । आयंबकणयतेएण बालसूरो व्व दिप्पंतं ॥४०१॥ नज्जइ ससलंछं पिव मरगमणि[ सिय? ]मयूहपडलेहिं । आलंबियवरमुत्तावलीहिं धारानिहायं व ॥४०२॥ सुद्धफलिहभित्तीहि य निरावलंबं व संठियं गयणे । जणि उल्लोचं नज्जइ बहुरयणमिलंतकिरणेहिं" ॥४०३॥ एवं पेच्छंताई काऊण पयाहिणं च तिक्खुत्तं । पणिवइऊण जिणिदं रइया पूया जिणिंदाणं ॥४०४॥ "कप्पूरागरुपूरो दट्ठो(ड्डो) य जिणिंदयाण भत्तीए । भत्तीसु विरइयाओ कत्थूरियबहलचच्चाओ ॥४०५॥ कुंकुमजलेण धोयं कोट्टिमवीढं च दासचेडीहिं । परिमलमिलंतमहुयरदिन्ना कुसुमोवयारा य'' ॥४०६॥ तओ एवं च निम्मविए सयलपूओवयाराइए करणीए विरइयकरकमलंजलिउडो जंबुकुमारो सह जायाहिं भयवं वद्धमाणजिणयंदभवणगुरुं एवं थुणिउं समाढत्तो "भवभयपणासणसहं जिणिंद ! पणमामि तुम्ह पयकमलं । अजलामलामलाणं सुपबुद्धं कंटयविहीणं ॥४०७॥ पणयस्स देसु जयगुरु ! कह वि हु पसिऊण चरिमजिणयंद ! । नियपयकमले विमले भसलत्तं लंपडमणस्स" ॥४०८॥ तस्स य समकालमेव भणियं करकमलंजलिउडाहिं जिणसंथवंताहिं वहूहि । कह?अवि य- "तुम्ह चलणारविंदे केवलमयरंदबहललुद्धाओ । जिणवर ! भवभीयाओ लीणाओ महुयरीओ व्व ॥४०९॥ 2010_02 Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ जंबुचरियम् ता पसिय पसिय जयगुरु ! विहेसु पणईण कह वि तं वीर ! । कम्मकलंकविमुक्कं नियचलणासन्नपरिवासं" ॥४१०॥ एवं थुणिऊण जिणं सहिओ सो पणइणीहिं पणिवइओ । जिणपयकमले विमले पयाहिणं तह पुणो काउं ॥४११॥ काऊणं सयलं चिय जहारुहं तं पि तत्थ करणीयं । परियणसहिओ य गओ जिणभवणं जंबुणामो त्ति ॥४१२।। सहयारमंजरीगंधलुद्धभसलालिगीयसंवलिओ। ताव य माहवमासो समागओ जणमणाणंदो ॥४१३॥ केसुयनिहेण नज्जइ वणलच्छी महुसमागमे मुइया । पयडेइ रायभावं दइयस्स व पोढमहिल व्व ॥४१४॥ परिहरइ निययवावाइयं पि जो केसरी वणुद्देसे । पिसियं च भुक्खियं पिव किंसुयउक्केरसंकाए ॥४१५।। फुल्ली पलाससिहरे पलंबिए कुसुमनियरभारेण । देइ चलप्पं बहुसो असणत्थं मंससंकाए ॥४१६।। पंथियवंद्राई वणे दट्ठण(दटुं) सहयारमंजरीनियरे । ऊसुयमणाई बहुसो सरिउं दइयाण मुझंति ॥४१७।। कप्पूररेणुपरिमलमयरंदामोयनिब्भरसुयंधो । पहियाण दहइ हिययं सिसिरो विय दाहिणो पवणो ॥४१८॥ पहियदइयाण हियए चंदणमयरंदनिब्भरसुयंधो । विरहानलदड्ढाई दाहिणपवणो समुद्धवइ ॥४१९॥ सयराहं मुक्काओ जीएणं पहियदइयदइयाओ । ईसीसि जाव निसुओ कोइलकलकंठउल्लावो ॥४२०॥ दइयावाहजलेण वि पंथे न निवारिओ तहा दइओ । मांसलमयरंदेणं जह पाडलकुसुमगंधेण ॥४२१॥ 2010_02 Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२५ सोलसमो उद्देसओ दइए निवेसियाई दइयाए धवलपम्हलच्छीणि । दोण्ह वि विरहभएणं जायाई. निमेसरहियाइं ॥४२२॥ माणकलिया वि पयडइ रायं दइयस्स पोढवरमहिला । सुरयसुहासापरिखित्तमाणसा पुलयभेएण ॥४२३॥ कवडेणं नासंतं दइयं दट्टण झत्ति मुद्धाए । अवहत्थिज्जइ माणं कंठविलग्गाए दइयस्स ॥४२४॥ विरहग्गिणा वि दड्ढो पहिओ कह कह वि पाविओ दइयं । अणवरयं चिय घुट्टइ तण्हासुसिओ व्व अहररसं ॥४२५।। सव्वो वि जणो सव्वायरेण संलद्धगरुयपसरेण । महुणा मयजज्जरिओ कीरइ मयबाणपहरेहिं ॥४२६॥ सज्झायझाणकलिए जुत्ते चारित्तकवयसंनद्धे । गुरुवयणतग्गयमणे मोत्तूणं साहुणो एक्के ॥४२७।। इय एरिसे वसंते मयणसरा नो मणं पि मउए वि । खुप्पंति जंबुहियए सिद्धिवहूनिब्भरमणस्स ॥४२८॥ गुरुवयणकवयकलिए जंबुकुमारे अलद्धसंपसरे । परिजूरइ पंचसरो विमुहीकयसयलवावारो ॥४२९॥ वयगहणनिच्छियमई जंबुकुमारं वियाणिउं ताहे । ण्हाणेह समाणत्तो जणएहि विलासिणीलोओ ॥४३०॥ माणिक्कवेइयाए कंचणपीढंमि जंबुवरनामो । उवविट्ठो विलयाहिं उवणीया मज्जणविही य ॥४३१॥ ताव य किं जायं ?अवि य- घोलंतकन्नकुंडलकंठविरायंतधवलहाराहिं । बाहुलयारयणवलयकलरवपरिमुहरियदिसाहिं ॥४३२॥ पिहुलनियंबयडट्ठियरसणाकिंककिणिकलप्पवालाहिं । चलचलणरयणनेउररवभरियनहंतरालाहि ॥४३३।। 2010_02 Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ पियकामिणीहिं सहिओ समागओ वइयरं इमं नाउं । जंबूदीवाहिवई अणाढिओ सुरवरो तुट्टो || ४३४|| सो य सहस त्ति भवणे अवइन्नो निययपरियणसमेओ । गीयंतकामिणीयणकलगीयविमाणमारुढो || ४३५॥ आयन्निऊण एवं कलघोसं जंबुनामकुमरेण । भणिओ विलासिणिजणो मज्जणघरसंठिएणेवं ॥४३६ ॥ किं एस अयंडे च्चिय अतक्किओ हंसकलरवो जाओ । परियाणिऊण भणियं चेडीहिं न एस हंसरवो ॥४३७॥ दिव्वजुवईण एसो नेउरउव्विलबाहुवलयाण । रसणाकिंकिणिघोसो दिव्वो भवणंगणगईण ॥४३८॥ एत्तियमेत्तुल्लावो संवुत्तो जाव सुरवरो दिट्ठो । ता दारवालसिट्ठो जंबुकुमारंतिए पत्तो ॥ ४३९॥ आणत्ताओ तेणं ताहे दिव्वाओ निययविलयाओ । निव्वत्तह सिग्घाओ मज्जणमहिमं कुमारस्स ॥ ४४० ॥ पभणियमेत्ताओ च्चिय हल्लप्फलनिययभूसणरवाओ । तुट्टंतहारअंगयमोत्तियपगलंतधाराओ ||४४१॥ समकालं सव्वाओ गंधोदय भरियरयणकलसाओ । कुमरस्सुवट्ठियाओ मंगलकलगीयसद्दाओ ||४४२॥ वज्जंतपवरवव्वीसवीणवरवंसमंगलरवेण । निव्वत्तिया जहिच्छं मज्जणमहिमा कुमारस्स ॥ ४४३ ॥ कयमज्जणस्स ताहे सयमेव अणाढिएण जक्खेण । रइओ सिरंमि मउडो कुमरस्स फुरंतमणिरयणो ||४४४ ॥ कन्नेसु कुंडलाई कंठे हारो ललंतदेवंगो । अंगयरयणे वट्टे रयणललियबाहुलइयासु ॥ ४४५॥ 2010_02 जंबुचरियम् Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२७ सोलसमो उद्देसओ दिव्वं च खोमजुयलं नियंसियं पवरकडियलाहरणं । सव्वंगो(गे?) य विलित्तो पवरहरियंदणरसेण ॥४४६।। एवं सयलाहरणो काऊणं सुरवरेण हितॄण । भणिओ जंबुकुमारो पयडियगुरुनेहपसरेण ॥४४७॥ तित्थयरेण व भुवणं सुरलोओ धीर ! जह सुरिंदेण । सुयनाणं पसमेणं सुकुलवहू जह व सीलेण ॥४४८॥ गयणं व मियंकेणं जंबूदीवं व मेरुणा सहइ । मरगयमणीहि उयहि व्व जलहरो इंदचावेण ॥४४९॥ सोहइ नाणेण जहा जंतुगणो तह तुमे वि अम्हाण । एस विरायइ वंसो कुलभूसणचरमकेवलिणा ॥४५०॥ सिट्ठो य तस्स सव्वो संबंधो जह य चरमजयगुरुणा । वीरजिणेणं कहिओ सेणियनरनाहपुढेण ॥४५१॥ जाव अणाढियजक्खो सोऊणेवं पणच्चियं तत्थ । पुढे च सेणिएणं नच्चइ किं एस परिमुइओ ॥४५२॥ जह भगवया वि सिट्ठो सेणियरायस्स तस्स पुव्वभवो । तह सव्वं परिकहियं कुमरस्स अणाढियसुरेण ॥४५३॥ सोऊण इमं सव्वं जंबुकुमारेण चुल्लबप्पो त्ति । काऊणं पणिवइओ हिटेणं सुरवरो तत्थ ॥४५४॥ ताओ वि तस्स विलयाहिं जंबुकुमरस्स पवरजायाओ । मंडियपसाहियाओ कयाओ वरभूसणभराओ ॥४५५।। जणणि-जणयाओ ताहे पसरियसंदोसनिब्भरा जाया । पव्वज्जाएऽभिमुहा निव्वत्तियसयलसिंगारा ॥४५६।। आणत्तो कुमरेणं व परियणो देह घोसणापुव्वं । तिय-चच्चरेसु दाणं किमिच्छियं सयललोयाण ॥४५७।। 2010_02 Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ जंबुचरियम् उदयधराधरसिहरं व सरयपडिपुन्नमंडलमियंको । आरूढो वरसिवियं सहस्सवोझं अहकुमारो ॥४५८॥ जणणि-जणएहि सहिओ जायापरिवारिओ सयणकलिओ । पुणरवि अणुगम्मतो नीहरिओ निययगेहाओ ॥४५९॥ तओ संचलियाणंतरं च कह पुण पवज्जियं तूरं ?अवि य- संखपडुपडहजयसद्दसंमीसयं मंगलुग्गीयकलसद्दवरकाहलं । विलयनच्चंतअक्खित्तजणमाणसं वज्जियं तूरयं भुवणसंखोहणं ति ॥४६०॥ तओ पसरंतेहिं मंगलपाढयजयजयासद्दहलबोलेहिं, कीरंतेहिं मंगलथुइसंभूयगुणसंथवणेहिं, गिज्जंतेहिं कलमंगलगीयसद्देहि, दिज्जंतेणं महादाणनिहायसंचएणं, पक्खिप्पंतेणं थोरमुत्ताहलनियरेणं, पयच्छिज्जंतेणं कडयकुंडलमणिमेचएणं, अवहत्थिज्जंतेहिं कणयकलहोयथालसमूहेहिं, अवमन्निज्जंतेहिं दुगुल्लजुयलेहि, उब्भिज्जंतेहि रल्लयकंबलएहिं, विक्खिप्पंतेहिं कोमलनेत्तपट्टएहिं, काणच्छिज्जतेहिं वामलोयणवंतकडक्खिएहिं, वइज्जतेहिं दीणारनाणारूवयकरंबकयारुक्केरएहिं ति । अवि य- तं नत्थि जं न लब्भइ भुवर्णमि य नत्थि जं न तत्थ त्थि । मोत्तूण कडुयवयणं जणमणपरिसोसणसमत्थं ॥४६१॥ तओ- वज्जंततूरमंगलजयजयजयसद्दहलहलारावे । बंदियणकीरमाणे अवइन्नो रायमग्गंमि ॥४६२॥ एवं च नीहरते जंबुकुमारंमि पुरजणो सयलो । जो जत्तो च्चिय निसुणइ तहुज्जयं धाइ सो तत्तो ॥४६३।। ताव य पत्तो जंबू लीलाए तुंगभवणपडिपुन्नं । नरय(यर)स्स मज्झदेसं जणसयसंबाहपरिकलियं ॥४६४॥ ताव य को वुत्तंतो नायरयजणस्स संवट्टिउं पयत्तो ?अवि य- मुंचंति गवक्खयसंठियाओ काओ वि सहरिसं तस्स । पुरओ दिप्पंतीओ रयणालंकारवुट्ठीओ ।।४६५॥ महुयररवमुहलाओ दसद्धवरकुसुमपवरमालाओ। पासायसंठियाओ उवरिं मुंचंति अन्नाओ ॥४६६।। 2010_02 Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमो उद्देसओ सच्छं पि हवइ सहसा पइन्नपडवासधूसरच्छायं । सुसुगंधबहलमोयं नहभोयं वीरभवणं च ॥ ४६७॥ सुव्वंति गवक्खयसंठियाण जुवईण मणहरुल्लावा । निज्जियवम्महरूवो हल सहिओ एस सो जंबू ||४६८ ॥ निज्जियरइरूवाओ घेत्तुं सोहम्मगुणसमिद्धाओ । सामन्ननिच्छियमई सुहम्मचलणंतिए चलिओ ॥४६९ ॥ नहभोयं रविरहियं भारहवासं व जिणवरविहीणं । एएण विणा एयं होही सुन्नं व मगहपुरं ॥ ४७०॥ रयणि व्व चंदरहिया कमलिणिसंडं व सिसिरपरिदड्डुं । पेयवणं चिय होही रायगिहं वज्जियमिमेण ॥ ४७१ ॥ एक्का य भइ विलया एसो सो पंचबाणसमरूवो । हल सहि पेच्छसु पेच्छसु मणवयणाणंदणो कुमरो ॥ ४७२ ॥ अन्नेक्का परिमग्गइ पढमं चिय सहियणं समारूढं । पासायवरगवक्खे हत्थालंबो अइतुरंती ||४७३ ॥ अन्ना तुंगनियंबा रूसइ सहियाण दारदेसंमि । अचयंती गंतूणं पढमं संरुद्धमग्गाणं ॥४७४॥ अन्ना गरुयपओहरगुरुभारकिलंतदेहतणुमज्झा । नीससइ च्चिय नवरं असमत्था नीहरेऊण ॥४७५ ॥ अन्ना वि धावमाणी मुत्ताहलहारखुडियसंपसरा । मयबिंदु व्व मुयंती बाला पडिहाइ महिवट्ठे ॥४७६ ॥ एक्का गुरुजणलज्जाएँ तह य कुऊहलनिब्भरत्तेण । दारं बहुसो पत्ता विणिग्गया तह वि न य बाहिं ॥ ४७७॥ कोऊहले अन्ना हियएण गुरुयणस्स पच्चक्खं । बाहिं विणिग्गया से भणिया वि न देइ पडिवणं ॥ ४७८ || 2010_02 २२९ Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० जंबुचरियम् गमणल्हसियकडियलोभयवेविरकरगयाए बालाए । कीरंति पहसिरीओ एक्काए नवर सहियाओ ॥४७९॥ अन्नाए उत्तरिज्जं दाहिणहत्थेण कह वि ल्हसमाणं । धरियं वामेण नियंसणं च परिधावमाणीए ॥४८०॥ अह सुव्विउं पयत्ता आलावा नायरीण तत्थेए । सहि पसिय ! देसु विवरं किं तुह एक्कीए कोहल्लं ॥४८१॥ किं नोल्लसि वज्जसमे इमेण करिकुंभविब्भमेण ममं । नियथणहरभारेणं पट्ठिपएसंमि नसिएणं ॥४८२॥ मणयं वालसु एयं सहि ण य कवाडसंपुडायारं । वियडनियंबपडतडं पसिऊणं जा निरिक्खेमि ॥४८३॥ वज्जसमे वालिज्जउ मम दिट्ठिपहस्स रुब्भणसमत्थं । तड्डवियसिहंडिकलावसच्छहं केसपब्भारं ॥४८४॥ जीवउ जंबुकुमारो हाहा अइनिग्घिणे ! अवट्ठि(हि)यासि । संठवसु उत्तरिज्जं थणोवरिं कह व निल्लज्जे ! ॥४८५॥ उक्खडियहारवलया सुनिट्ठरे निग्घिणे ! मुयसु वत्थं । मुसुमूरियं सुचवले ! एयं ते कुंडलं मज्झ ॥४८६॥ जावेत्तियमुल्लावं वट्टइ विलयाण हरिसियमणाण । ता एत्तो आसन्नं नारीणं जंबुवरनामो ॥४८७।। तओ- एक्कंमि अणेयाओ तस्स सरीरंमि नयणमालाओ । निवडंति नायरीहिं खित्ताओ क्खित्तचित्ताहिं ॥४८८॥ सो नत्थि देहदेसो भमुहाधणुमुक्कनयणवरबाणा । कुमरस्स जंमि तेसिं बहुसो वि न लंपडा पडिया ॥४८९।। उद्दिसिय जंबुकुमरं जुवइजणो भाणिउं अह पवत्तो । होज्ज हला रूवेणं जंबुकुमारो अणंगो व्व ॥४९०॥ 2010_02 Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३१ सोलसमो उद्देसओ अन्नाए भणियं-दीणंमि जुवइसत्थे जइ पहवइ होज्ज मुद्धि ! ताऽणंगो । एसो पुण रागगइंदनिद्दलणपच्चलो सहइ ॥४९१॥ अन्नाए भणियं-वच्छत्थलभोएणं नज्जइ नारायणो व्व सहि ! एसो । अन्नाए भणियं-होज्ज फुडं महुगहणो जइ अंजणसप्पभो हुँतो ॥४९२।। उत्तत्तकणयवन्नो एसो पुण तेण विहडए दूरं । अन्नाए भणियं-होज्ज हला कंतीए संपुन्नो पुन्निमायंदो ॥४९३॥ अन्नाए भणियं-सहि एस होज्ज चंदो खंडिज्जइ जइ य होइ सकलंको । एसो कलंकरहिओ संपुन्नो सहइ निच्चं पि ॥४९४॥ अन्नाए भणियं-सहि सत्तीए नज्जइ पुरंदरो चेव होज्ज पच्चक्खं । अन्नाए भणियं-होज्जा सो देविंदो जइ नयणनिरंतरो हुँतो ॥४९५॥ अवि य- वेल्लहलनिविडदेहो सहि एसो तेण विहडए दूरं । अन्नाए भणियं-अंगेहि नज्जइ इमो उमावई होज्ज पच्चक्खं ॥४९६॥ अन्नाए भणियं-घडइ तिनयणसमाणो जइ हुँतो जुवइघडियवामद्धो । एसो संपुन्नंगो परंमुहो तह य जुवईण ॥४९७।। इय जाव किं पि घडिओ सुराण विलयाहिं ताव अन्नाहिं । विहडाविज्जइ दूरं वियड्डनारीहिं अच्चत्थं ॥४९८॥ ताव य जंबुकुमारस्स रूवलायन्नअवहियमणाओ । आढत्ताओ काउं विलयाओ बहुविहं चेटू ॥४९९।। एक्का भासइ उच्चं अन्ना रुणुरुणइ महुरसद्देण । अन्ना वि पढइ गाहं अन्ना पंचं समालवइ ।।५००॥ अन्ना वंसं वायइ अन्ना वीणं पुणो पुणो छिवइ । जइ कह वि कुवलयच्छी एसो परिनियइ [य] मुहुत्तं ।।५०१।। विलयायणस्स एवं अणेयवावारकरणसीलस्स । अवहियमणस्स सुइरं नयराओ विणिग्गओ जंबू ॥५०२॥ 2010_02 Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ गुरुसेन्नमिलियसहरिसखुररवसंपायदलियभूवीढो । जंबुस्स दंसणत्थं समागओ कोणियनरिंदो ||५०३ || भणिओ नराहिवेणं जंबुकुमारो अहो तए धीर ! | समइक्कंतमहापहुचरियं पयडं कयं अज्ज ॥ ५०४ ॥ उज्जालिओ इमो ते. नियवंसो दुक्करं ववसिऊण । नित्थिन्नो च्चिय एसो भवजलही वट्टए तुज्झ ॥५०५ ॥ ता सकयत्थो जम्मो पसंसणीयं च तुह कुलं अज्ज । छेत्तूण जेण मोहं पडिवन्नो उत्तमं मग्गं ॥ ५०६॥ अन्नं च- गज्जंतचारणभडा तुरंगकल्लोलसंकुला जइ वि । पडिवक्खसुहडसेणा नरेण परिजिप्पइ सुहेण ॥ ५०७ ॥ इंदियतुरंगचवला गरुयमणोरहगइंदघडकलिया । रागाइसुहडसेणा सुदुज्जया होइ लोयम्मि ॥ ५०८ ॥ कीरइ सप्पो वि वसं कोहग्गी दुज्जओ जए होइ । गुरुवारण वि जिप्पड़ माणभडो दुज्जओ एत्थ ॥५०९ ॥ विसगंठीविसरहिया कीरइ माया य दुज्जया सप्पी । वित्थिन्नो मयरहसे लंघिज्जड़ नूण ( न उण ) लोहदहो ॥५१० ॥ एयं पुण ते सव्वं विणिज्जियं दुज्जयं पि गुरुकम्मं । अक्खयसोक्खावासो उवज्जिओ नूण ते धीर ! ॥ ५११ ॥ तुहिं चिय एसो मणहरलायण्णरूवचरियेहिं । भुयणाभोओ सोहइ हेलाजियमयरचिधेहिं ॥५१२॥ जइ गरुयसत्तचरिया न हुंति तुम्हारिसा महापुरिसा । धम्मधुरा जिणभणिया ता खुप्पइ मोहपंकंमि ॥५१३॥ एवं महानरीसरनरिंदसामंतसेद्विपमुहेहिं । अणुमंतो जंबू गओ पसंसिज्जमाणो य ॥५१४ ॥ 2010_02 जंबुचम् Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३३ सोलसमो उद्देसओ धणओ व्व पूरमाणो दविणमहासंचएण पणइयणं । कोणियनरनाहेणं सहिओ य अणाढियसुरेण ॥५१५॥ दूराओ अवयरिया सव्वे वि य जाणवाहणाहितो । गुणसिलए अह पत्ता जिणिंदभवणे मणहरम्मि ॥५१६॥ नमिऊणं तत्थ जिणं सुहम्मसामि च वंदिउं सव्वे । उवविठ्ठा गुरुमूले नरिंदपमुहा महियलम्मि ॥५१७।। नमिऊण पायकमलं सुहम्मसामिस्स जंबुणामेण । निजपरियणसहिएणं भणिओ एवं सहरिसेणं ॥५१८॥ जम्मणमरणपरंपरनारयतिरिमणुयदेववासाओ । बहुगब्भसंकुलाओ भयवं संसारवासाओ ॥५१९॥ जिणदिक्खादाणेणं इमाओ बहुदुक्खसंकडिल्लाओ । उत्तारेसु अणाहं सयणेण समं इमं धीर ! ॥५२०॥ भणियं सुहम्मगुरुणा एवमविग्घं ति मा चिरावेसु । किच्चमिणं भवियाणं अवगयसंसारभावाणं ॥५२१॥ अह कोणियनरवइणा भणिओ जंबू पसन्नवयणेण । आइससु धीर ! इहि जं कायव्वं मए किंचि ॥५२२॥ पंचसयचोरसहिओ समागओ अह इमंमि पत्थावे । पभवो नरनाहसुओ नमिओ य गुरूण चलणेसु ॥५२३॥ जंबुकुमारेण तओ भणियं नरनाह ! खमसु एयस्स । पभवकुमारस्स तुमं अवरद्धं किं पि जमिमेण ॥५२४॥ अज्ज रयणीए एसो समागओ चोरीयाइ मम गेहं । तत्थ मए उवसमिओ सामण्णं गिण्हिही एसो ॥५२५॥ नरनाहेणं भणियं कुणसु अविग्घेण एस सामण्णं । खमियं सव्वं पि मए एयस्स महाणुभावस्स ॥५२६।। ___ 2010_02 Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ " एयंमि अवसरंमि [य] हरिसभरिज्जंतणाढियसुरेण । सज्जावियं जिणहरं रइया पूया बहुपयारा ॥५२७॥ नाणाविहरयणेहिं देवंगविचित्तवत्थकुसुमेहिं । निम्मविया वरपूया लोयगुरूणं जिणिदाणं ॥ ५२८ ॥ विविहाओं ऊसियाओ धयाओ दिप्पंतरयणपउराओ कुंकुमरसेण लित्तं जिणहरमणिकोट्टिमतलं च ॥५२९॥ ण्हवियाओ जिणिंदाणं पडिमाओ तह पुणो विलित्ताओ । आरोवियाई ताहे कुसुमाइं बहुपयाराई" ॥५३०॥ पडुपडहसंखकाहलगुहिरं च पवज्जियं महातूरं । जय जय जय त्ति घुट्टं सव्वेण समागयजणेण ॥ ५३१ ॥ अह एवं च पयट्टे हलवोले बह (हि) रिए दिसाचक्के । जंबुपमुहिं ताहे निक्खित्ते निययआहरणे ॥ ५३२॥ पट्टए य मुक्के गहिये गोखीरहंसहारपभे । दिव्वंसुए पत्थे उवणीए नरवरिंदेण ॥५३३ ॥ तक्कालिओ य वेसो गहिओ य महाजईण जो जोगो । परिसंठिया जिणाणं पुरओ नमिउं जिणं ताहे ॥५३४ || पवणविहिणा गुरुणा सव्वेसिं जंबुसामिपमुहाणं । बहुपावरओहरणे रयहरणे अप्पिए ताहे ॥५३५ ॥ उप्पाडियाओ गुरुणा जुवईहिययं व कुडिलभंगाओ । सुसिणिद्धतरंगाणं साणं तिन्नि मुट्ठीओ ||५३६|| उच्चारियं च भवसयसहस्ससंबद्धपावमलहरणं । वाराओ तिन्नि सामाइयं च अह जंबुपमुहेहिं ॥५३७॥ कयभंते ! सामइओ तिविहं तिविहेण जाव जीवं पि । सव्वं सावज्जं मे जोगं परिवज्जियं इण्हि ॥ ५३८ ॥ 2010_02 जंबुचरियम् Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३५ सोलसमो उद्देसओ आरूढस्स य एवं महापइन्नागिरिस्स मत्थंमि । मंदरगिरिगरुययरो पव्वज्जभरो समुक्खित्तो ॥५३९॥ आरोवियसामण्णो सव्वेहिं पणमिओ मुणिंदेहि । कोणियपमुहेहिं चिय पवंदिओ सव्वराईहिं ॥५४०॥ जणणि-जणएहिं सहिओ पभवपमुहपंचचोरसयकलिओ। जायासमण्णिओ सो उवविट्ठो गहियसामण्णो ॥५४१॥ सव्वंमि तओ लोए सुहासणत्थंमि भव्वकुमुयाणं । पडिबोहणेक्कससिणा भणियमिमं गणहरिदेण ॥५४२॥ "भो भो देवाणपिया ! संसारे दलहं मणुयजम्मं । तत्थ वि जिणवयणसुई सद्धा य जिणिंदवयणम्मि ॥५४३॥ दुलहो पुणो वि एसो संजमजोगंमि वीरिउच्छाहो । एयम्मि य संपत्ते पत्तं जं पावियव्वं ति ॥५४४॥ भणियं च- "चत्तारि परमंगाणि दुल्लहाणिह जंतुणो । माणुसत्तं सुई सद्धा संजमंमि य वीरियं" ॥५४५॥ [उत्तरा./अ.३ गा.१] जुगसमिलादिटुंतो माणुसजम्मोवमो जिणिदेहिं । दुलहत्ते पन्नत्तो भणियं च इमं जओ तेहिं ॥५४६॥ जह समिला पन्भट्ठा सागरसलिले अणोरपारंमि । पविसेज्जा जुगछिडं कह वि भमंति भमंतंमि ॥५४७॥ [ उ.नि.गा.१५९टी.] पुवंते होज्ज जुगं अवरते तस्स होइ समिला उ । जुगछिडुमि पवेसो इय संसइओ मणुयलंभो ॥५४८॥[उ.नि.गा.१५९टी.] अवि चंडवायवीईपणोल्लिया सा लभेज्ज जुगछिड्डे । न य माणुसाओ भट्ठो जीवो पडिमाणुसं लहइ ॥५४९॥ [ उ.नि.गा.१५९टी.] अइदुल्हं पि कह वि हु संपत्तं देसरूवकुलकलियं । मणुयत्तं धम्मसुई सुदुल्लहा होइ जिणवयणे ॥५५०॥ जओ- कुसुइकुमोहियचित्तो मिच्छत्तन्नाणमोहपडिबद्धो । जं जं जिणेहिं भणियं तं तं जीवो न सद्दहइ ॥५५१॥ 2010_02 Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ जंबुचरियम् मिच्छत्ततिमिरवामोहियस्स जीवस्स गरुयकम्मस्स । जलुयस्स व सूरपहा जिणवयणं होइ मोहाय ॥५५२॥ जह खंडखीरजूयं परिमन्नइ पित्तमोहिओ कोइ । महुरं पि कडुयरूवं विवरीयमइ त्ति इह पुरिसो ॥५५३॥ निंबरसं पुण मन्नइ सो च्चिय कडुयं पि महुररसतुल्लं । इंदियदोबल्लाओ किं की तस्स पुरिसस्स ॥५५४॥ तह जिणवयणं परिणामसुंदरं जइ वि महुररसरूवं । मिच्छत्तपित्तपहओ वितहम......अहियं ॥५५५॥ कुगइपहपयडपंथं कडुयविवायं पि निंबरसतुल्लं । महुररसं परिमन्नइ कुसुइपह......वि जीवो ॥५५६॥ भणियं च- "जह तिमिररुद्धदिट्ठी गयणे सं....वि पेच्छए रूवे । सो वि न पेच्छइ फुडवियडे वय......पहरूवे" ॥५५७॥ [ ] तह पावतिमिरमूढो पेच्छइ धम्मं कुतित्थतित्थेसु । पयर्ड पि नेय पेच्छइ जिणधम्मं तत्थ किं कुणिमो ॥५५८॥ इय दुल्ल लोहा होइ सुई जिणिंदभणियस्स विमलधम्मस्स । अह सा वि कह वि पत्ता तत्थ वि सद्धं न सो कुणइ ॥५५९॥ सद्धा भन्नइ भत्ती जिणिंदवयणमि अवितहं सव्वं । जं जं जिणेहिं भणियं तं तं चिय मन्नइ तह त्ति ॥५६०॥ सद्धारहिओ जीवो निसुणइ पर केवलं न सद्दहइ । मन्नइ जिणिंदवयणं पलालपरिभक्खणप्पायं ॥५६१॥ अग्गिव(ध)णजलपमुहं सामग्गि कह वि जइ वि संपत्तो । तह वि न पावइ पारं कंकडुओ निययदोसेण ॥५६२॥ तह जिणवरिंदवयणे जई(?) विच्छत्ती होइ गरुयकम्मस्स । कंकडुयस्स व सद्धा न होइ मणयं वि जीवस्स ॥५६३॥ किं की गुरुकम्मो जाणतो वि य न जाणई जीवो । अहवा दिसिमूढमई सत्थो वि य होइ विवरीओ ॥५६४॥ 2010_02 Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमो उद्देसओ तह जो जिणिदवयणे मिच्छत्तमहंधयाररविकप्पे | लूओं व मन्नइतमं न कुणइ सद्धा तहिं मूढो ॥ ५६५॥ इय सद्धा जिणवयणे दुलहं चिय होइ कम्मरुयाणं । केसि पि जओ जायइ कम्मोवसमेण जीवाणं ॥५६६ ॥ सद्भाकलिओ वि जई संजमजोगं न पावई जीवो । घरपुत्तदारसत्तो निरुज्जमो चरणकरणेसु ॥ ५६७॥ गुरुकम्मवसा जीवा जिणमयदिट्ठीए जाणमाणावि । न य विरमंति अउन्ना पावाओ कुगइमूलाओ ॥५६८ ॥ जह को वि जाणमाणो विसगंठिगुणं तहावि मूढमई । असइपमायवसेणं सो पावइ तस्स विणिवायं ॥५६९॥ तह जो पमायजुत्तो जिणवयणं जाणमाणओ वि नरो । न कुणइ संजमजोगं कुणइ य असमंजसं पावं ॥ ५७० ॥ सो मूढमई पावइ अणोरपारंमि भवसमुद्दमि । विरईरयणविहीणो दुखाइं अनंतकालं पि ॥ ५७१ ॥ जह तक वि याणइ मूलं मरणस्स चोरिया होई । पेच्छइ मारिज्जंते अन्ने जे चोरियासत्ते ॥५७२॥ तह वि न विरमइ पावो एवं जीवो वि जाणमाणो वि । पावस्स फलं मूढो न य गिण्हड़ संजमं तह वि ॥ ५७३ ॥ भणियं च - "जह सयलजलियकाणणवणतणडज्झतभीसणं जलणं । ण जाणइ नरो डज्झिज्जइ न य पलाएइ" ॥५७४॥ [ ] तह सत्तुमित्तघरवासजलणजालावलीविलुद्धो वि । जाणइ डज्झामि अहं न य नासइ संजमं तेण ॥ ५७५ ॥ [ ] अज्जं कल्लं परं परं ( कल्लपरारं) विरमामो जा मिमं निवत्तेमि । एवं चिंततो च्चिय ता जा निहणं पि पावेइ ॥५७६॥ अन्ने वि किल विरत्ता संजमपडिकूलसेविणो पावा । तं तं करिंति मूढा जं जं चिय नरयगइमूलं ॥५७७॥ 2010_02 २३७ Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८ जंबुचरियम् ता सव्वहा वि दुलहं संजमरयणं अउन्नजीवाण । एयंमि पुणो लद्धे दुलहं चिय वीरियं होइ ॥५७८॥ तुमए पुण संपत्तं एयं सव्वं पि वीरियसणाहं । पालेसु जहा भणियं गुरूवएसाणुसारेण" ॥५७९॥ इय एसो चउरंगो सुदुल्लहो मोक्खसाहणोवाओ । अहवा वि पनरसंगो भणियं च इमं निसामेह ॥५८०॥ "भूएसु जंगमत्तं तम्मि वि पंचेदियत्तमुक्कोसं । तत्तो वि य माणुस्सं माणुस्से आरिओ देसो ॥५८१॥ [ ] देसे कुलं पहाणं कुले पहाणंमि जाइ मुक्कोसा । तीए रूवसमिद्धी रूवे य बलं पहाणयरं ॥५८२॥ [ ] होइ बले वि य जीयं जीए य पहाणयं तु विन्नाणं । विन्नाणे संमत्तं संमत्ते सीलपडिवत्ती ॥५८३॥ [ ] सीले खाइयभावो खाइयभावे य केवलं नाणं । केवलिए पडिपुन्ने पत्ते परमक्खरे मोक्खो" ॥५८४॥ [ ] पन्नरसंगो एसो समासओ मोक्खसाहणोवाओ । एत्थ बहू पत्तं ते थेवं संपावियव्वं ति ॥५८५।। ता तह कायव्वं ते जह तं पावेसि थेवकालेण । सीलस्स नत्थि सज्झं जयंमि तं पावियं तुमए ॥५८६॥ लभ्रूणं सीलमेयं चिंतामणिकप्पपायवब्भहियं । इह परलोए य तहा सुहावहं परममुणिचरियं ॥५८७॥ एयंमि अप्पमाओ कायव्वो सइ जिणिंदपन्नत्ते । भावेयव्वं च तहा विरसं संसारनेउन्नं ॥५८८॥ अन्नं च-चरणकरणेसु सत्तो होसु य धंमंमि निच्छियो धीर ! । कुणसु तवं दुविहं चिय बज्झं अभितरं तह य ॥५८९॥ पावंमि होसु विरओ रओ य चारित्तदंसणे नाणे । तग्गयमणो य झाणे किरियाए उक्कडो होसु ॥५९०॥ 2010_02 Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३९ सोलसमो उद्देसओ पंचसमिओ तिगुत्तो पंचमहन्वयधरो य तं होसु । पडिपुन्नसंजमधरो अट्ठारससहस्ससीलंगो ॥५९१॥ भावेसु भावणाओ बद्धसु किरियाकलावनियरेण । निद्दहसु कम्मकिट्टे पच्छा सिद्धि पि पावेसि ॥५९२॥ एयं निसामिऊणं भयवं रोमंचकंचुओ जंबू । गुरुचलणेसु नओ सह पभवाईहिं [च] साहूहि ॥५९३॥ तओ भणियं जंबुसामिणा । अवि य-जं जं चिय कायव्वं भगवं तं तं च अम्ह तुम्हेहिं । आणवणीयं सव्वं सेसं पडिसेहियव्वं ति ॥५९४॥ एवं ति तओ भणिए गुरुणा वि य गणहरिंदचंदेण । चलणपणामं काऊण उट्ठिओ जंबुसामि त्ति ॥५९५।। कोणियपमुहेहिं तओ नमिओ सामंतनायरजणेहिं । कुणमाणा य पसंसं नरवइपमुहा गया नयरं ॥५९६॥ तक्कालियं च किरियं गुरुणा वि य जंबुसामि कारविओ। धारिणिपमुहाओ वि य ताओ सयलाओ अज्जाओ ॥५९७॥ गुरुणा समप्पियाओ विहिपुव्वं जेट्ठमयहरज्जाए । तप्पभिई चिय भयवं गुरुणा सह विहरिओ जंबू ॥५९८॥ कह ? अवि य कायव्वाइं कुणंतो अकुणंतो तह य वज्जणीयाइं । भणियव्वाइं भणंतो[य] अभणियव्वाइं अभणंतो ॥५९९॥ वज्जितो य अगम्मे समायरंतो य तह य सो गम्मे । भुंजंतो भक्खाई अभुंजमाणो अभक्खाइं ॥६००॥ पेयाइं अह पियंतो अपियंतो तह य सो अपेयाइं । इच्छंतो इट्ठाई वज्जितो तह अणिट्ठाइं ॥६०१॥ सोयव्वाइं सुणतो असुणंतो तह विरुद्धवयणाइं। आएयं गिण्हंतो उवेक्खणीए उवेक्खंतो ॥६०२॥ 2010_02 Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० जंबुचरियम् निंदंतो संसारं पसंसमाणो य जिणमयं धम्मं । पालितो सामण्णं अहिज्जमाणो य सुयधम्मं ॥६०३॥ किं बहुणा भणिएणं कज्जाकजं हियाहियं [नि]यमं । विहरइ वियाणमाणो अवसेसियकम्ममलमुक्को ॥६०४।। सामाइयाइयाइं (आयारमाइयाइं) बारसअंगाइं जंबुणामेण । गहियाइं थोवदियहेहिं भयवया सुत्तअत्थेण ॥६०५।। जाओ चोद्दसपुव्वी गुरुणा विय ठावियो गणिपयम्मि । पभवो वि य से सीसो अह दिन्नो गणहरिंदेणं ॥६०६।। "निक्खिविऊणं गच्छं गणहारी जंबुसामिणो ताहे । नित्थिन्नभवसमुद्दो निप्फाइयसीसगणनिवहो ॥६०७॥ निट्ठवियअट्ठकम्मो पडिबोहियभव्वजंतुकमलवणो । केवलनाणदिवायरसुरनरदेविंदपणिवइओ ॥६०८॥ भुयणाभोयपइट्ठियअसेससब्भूयभावभावन्नू । केवलपईवपयडियभव्वाणं पुनपावफलो ॥६०९॥ सव्वजयजंतुपरमेक्कबंधवो तिहुयणेक्कपरमगुरू । जयसरणं पाणिह हि)ओ परमाणंदो य भव्वाणं ॥६१०॥ केवलिपज्जायं विहरिऊण भवगाहिकम्मुणा मुक्को । भयवं सुहम्मसामी सिवमयलमणुत्तरं पत्तो" ॥६११॥ भयवं पि जंबुसामी गोयमपयविमलपालणेक्करओ । सयलगणसंपरिवुडो दंसणचारित्तनाणधरो ॥६१२।। परिविहरिओ य वसुहं गामागरनगरकव्वडसणाहं । सारयससि व्व सययं बोहिंतो भव्वकुमुयाइं ॥६१३।। नाणाविहदेसेसुं एवं सफलं च विहरमाणस्स । निव्वूढो बहुकालो जाया सीसाण निप्फत्ती ॥६१४॥ "अह अन्नया कयाई धम्मज्झाणंमि निच्छियमइस्स । परिभाविन्तस्स सुयं जीवसरूवं गुणितस्स ॥६१५॥ 2010_02 Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४१ सोलसमो उद्देसओ तवसंजमनियमरयस्स जंबुसामिस्स झाणनिरयस्स । निम्मलचित्तस्स सया भावणपरिभावियमइस्स ॥६१६॥ कम्मविवायं विविहं चिंतेमाणस्स भवसरूवं च । जिणवरवयणं च तहा निच्चं चिय अणुगुणंतस्स ॥६१७॥ धुयमायाकलिमलनिम्मलस्स जियसव्वलोहतण्हस्स । खंतिपहाणस्स तहा सययं मज्झत्थचित्तस्स ॥६१८॥ एवं विसुद्धजोगस्स तस्स निद्दड्वकम्मकिट्टस्स । जोगंतरसंकमणं जायं परिणामसुद्धस्स ॥६१९॥ उल्लसियं सुहझाणं ठिओ य सामाइयंमि पवरंमि । परिणयजोगस्स तओ अउव्वकरणं अह पवत्तो ॥६२०॥ जाया य खवगसेढी उल्लसियं जीववीरियं ताहे । निहया य कम्मसत्ती विवड्डिओ तह य झाणग्गी ॥६२१॥ पढम चिय निद्दड्डा चउरो वि अणंतबंधिणो तेण । मिच्छत्तमोहणीयं खवियं मीसं पुणो सम्मं ॥६२२॥ लंघिय नियट्टिठाणं खाइयसम्मत्तकारणं एयं । दड्ढे अट्ठकसाए नपुंसवेयं पुणो भणियं ॥६२३॥ इत्थीवेयं च पुणो द8 हासाइछक्कमन्नं च । खवियं च पुरिसवेयं दड्ढे कोहाइसंजलणे ॥६२४॥ खविये य लोहखंडे पच्छिमखंडं च किट्टियो काउं । सो सुहमसंपराओ तं वेयंतो मुणी जाओ ॥६२५॥ पुण चरणमहक्खायं पत्तो सो तं पि लंघिउं भयवं । वीसमिउं खणमेक्कं निइं पयलं हणइ पढमे ॥६२६॥ नाणस्स य आवरणं पंचविहं दंसणं चउविगप्पे । पंचविहमंतरायं खवेइ अह बीयसमएण ॥६२७॥ अह सव्वदव्वपरिणामभावविन्नत्तिकारणं परमं । सासयमव्वाबाहं केवलनाणं समुप्पण्णं" ॥६२८॥ 2010_02 Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ जंबुचरियम् "लोयालोयपयासे उप्पण्णे केवलंमि वरनाणे । केवलिमहिमनिमित्तं समागया सुरवरा हिट्ठा ॥६२९॥ देववरवंद्रसहिओ एरावणवियडखंधमारूढो । देविंढो सम्पत्तो कयजयजयसद्दहलबोलो ॥६३०।। नच्चंति अच्छराओ गायंति य तत्थ किन्नरा तुट्ठा । उक्कुट्ठिजयजयरवं कुणंति असुरिंदेदेविंदा ॥६३१॥ वायंति दिव्वतूरे परिमुइया वाणमंतरा देवा । हरिसियमणा य सव्वे जोइसिया जयजयाविति ॥६३२॥ सक्केण समाणत्ता अह सव्वे सुरवरा हरिसिएण । केवलिमहिमं सिग्धं निव्वत्तह अह सुरेहिं पि ॥६३३॥ सोहेउं धरणियलं सव्वे संपाडिया निययसमया । गंधोदयं च वुटुं कुसुमुक्केरो कओ दिव्वो ॥६३४॥ मंदं मंदं पवणो पवाइओ सरहिसीयलो ताहे । निव्वत्तियं विसालं कणयमयं दिव्वपउमं ति ॥६३५।। तत्थुवविठ्ठो भयवं मणुयासुरदेवसूरचंदा य । उवविट्ठा गुरुपुरओ नमिउं सव्वे वि पयकमलं" ॥६३६।। "हरिसियमणेहिं ताहे भणियं देविंदपमुहदेवेहिं । निहओ ते मोहतरू भयवं कम्मिधणं दटुं ॥६३७।। पत्तं परमं तत्तं केवलनाणं जगुत्तमं तुमए । अप्पा सासयसोक्खे मोक्खपए ठाविओ धीर ! ॥६३८॥ सयलजयजंतुजम्मणजरमरणभओढुए भवसमुद्दे । जाओ य एस जम्मो भयवं तुब्भेत्थ सकयत्थो ॥६३९।। ता सकयत्थो भयवं भवभमणभयाउराण एस भवो । संजाओ अम्हाण वि जं पत्तं तुम्ह पयकमलं ॥६४०॥ ___ 2010_02 Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४३ सोलसमो उद्देसओ ता उवइससु जगुत्तम ! जमेत्थमम्हेहिं होइ कायव्वं । भुवणुद्धरणसमत्थे संपत्ते तुम्ह पयकमले" ॥६४१।। तओ इमं च भणमाणा सव्वे वि समकालमेव सुरीसरपमुहा जयजयरवाऊरमाणा(ण)सयलदिसिविवरंतरालववत्थियसयलजंतुयण किं किं ति'संजणियनिययभावावन्नसमाउलमाणसुत्तत्थभयविहलवेविरतणुसुरासुरनरीसरकिन्नरोरगाइणो देवमणुयविसेसा पहरिसुद्दामपसरंतहिययभिन्नरोमायमाणपयडिउ[भिन्नबहलरोमंचकंचुइयसरीरा सयललक्खणोववेयविमलपयकमलजुयले पणिवइया । तओ भववया वि जयगुरुणा सयलजयजंतुहिययाणंदयारिणा विमलदसणावलीजुइपडिप्पहामुज्जोइयभुवणयलेण सजलजलजलहरुद्दामनिनाइणा भणियं जंबूसामिकेवलिणा-'भो ! भो ! मणुयासुरदेवदाणवगणा निसुणह, तावेत्थ जिणेहिं भगवंतेहिं वीयरागेहिं सव्वन्नूहि सव्वदरिसीहि सयलजयजंतुपरमहिययब्भुज्जएहिं पणीयस्स परमधम्मस्स पहाणोवएसो' । अवि य- चारित्तनाणदंसणसुहभावसमुज्जयस्स जीवस्स । उवएसो उ जिणाणं रोव(य)इ बहुखवियकम्मस्स ॥६४२॥ दुक्खाहिणंदिणो पुण अहवा जीवस्स गरुयकम्मस्स । मणयं पि न होइ मणे जिणिंदवयणस्स सब्भावो ॥६४३॥ सम्मइंसणनाणं चारित्तं जेण मोक्खवरमग्गा । एएसि विवरीओ संसारपहो अभव्वाणं ॥६४४॥ जओ जिणवयणं "सम्मइंसणसुद्धं जो नाणं विरइमेव पावेइ । दुक्खनिमित्तं च इमो तेण सुलद्धो हवइ जम्मो ॥६४५॥ सम्मत्तविरहिया पुण अविरबहुलाण नाणहीणाणं । लद्धो वि होइ विहलो मणुयभवो अह इमो तेसिं ॥६४६॥ तुम्हेत्थ पुण सुलद्धो एस भवो जेण जिणमयपवन्ना । सम्मत्ताइगुणजुया अरिहा उवएसदाणस्स ॥६४७॥ पाणवहालियविरईअदत्तमेहुणपरिग्गहाणं च । एसो परमुवएसो जिणपन्नत्तो समासेणं ॥६४८॥ 2010_02 Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ जंबुचरियम् पंचेयाई वयाई देसे सव्वे य अणु-महंताई। निस्सल्लो होइ वई सो अणगारी अगारी य ॥६४९॥ पंच य अणुव्वयाइं गुणव्वयाइं च हुंति तिन्नेव । सिक्खावयाई चउरो होइ अगारीणिमो धम्मो ॥६५०॥ अणगारीणं दसहा खंताईओ उ होइ विन्नेओ । मूलगुणुत्तरभेओ निच्छयनयसम्मओ सव्वो ॥६५१॥ खंती य मद्दवज्जवमुत्ती तवसंजमे [य] बोधव्वे । सच्चं सोयं आकिंचणं च बंभं च जइधम्मो ॥६५२॥ एवंविहधम्मजुओ अणगारी बुद्धतत्तपरमत्थो । सत्तहियणुज्जओ वि य अचलियसत्तो सयाकालं ॥६५३॥ धम्मावस्सयजोएसु भावियव्वा(प्पा) पमायपरिवज्जी । उवसमगुणसंपन्नो तह अव्वाबाहसुहकंखी ॥६५४॥ सद्धम्मसुत्थियमई तिदंडविरओ तिगुत्तिगुत्तो य । विसयसुहनिरहिलासो धम्मज्झाणे अभिरओ य ॥६५५॥ जिणवरवयणगुणगणं सचिंत( तं )तोवहादवाए( ? ) य । कम्मविवाए विविहे संठाणविही अणेगा य ॥६५६॥ वासीचंदणकप्पो य निरहियमणो य खंतिकलिओ य । जियसव्वलोयतण्हो धुयमायाकलिमलकलंको ॥६५७॥ समसत्तुमित्तविहवो समतणमणिलेटुकंचणो तह य । सज्झायज्झाणपरायणो य दढमप्पमत्तो य ॥६५८॥ सम्मत्तनाणचारित्तगुणजुओ तवसमाहिबलजुत्तो । सीलंगसयलकलिओ साहुसमायारसत्तो य ॥६५९॥ विहिउँछगहणजुत्तो थीपसुपंडगविवित्तसेज्जो य । सगुणब्भासेक्कमई परदोसपरंमुहो तह य ॥६६०॥ 2010_02 Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४५ सोलसमो उद्देसओ संपुन्नायारविऊ अट्ठारसपयसहस्सपरिपढिओ । भावणविसुद्ध.............त्तो वि उत्तमं पारं ॥६६१॥ परहियकरणेक्करया जेण जिणा हुंति सव्वे वि ॥६६२॥ सो भयवं कयकिच्चो जयजीवहिएक्कउज्जओ सययं । केवलिपरियायं विहरिऊण इह मणुयलोयंमि ॥६६३॥ खविऊण सेसकम्मं संसारनिबंधणं चउवियप्पं । आउयनाम गोयं निस्सेसं वेयणीयं च ॥६६४॥ देहं मोत्तूण तओ समएणेक्केण सिद्धिखेत्तुहूं । लोयग्गे परिसिज्झइ गंतूणं तत्थ सो भयवं ॥६६५॥ साइअपज्जवसाणं निरुवमसुहमुत्तमं अणुहवंतो । सम्मत्तनाणदंसणविसुद्धअप्पा हवइ मुक्को ॥६६६॥ सम्मत्तसीलकलिओ जो य जई नाणगुणगणायड्ढो । वीरियमगूहमाणो नियसत्तीए सया जयइ ॥६६७॥ संघयणाउयबलकालवीरियसमाहिसंपयविगल्ला । कम्माइगरुयओ वा न य नेव्वाणं पसाहेज्जा ॥६६८॥ सोहम्माइविमाणेसु सो वि सव्वट्ठसिद्धिचरिमेसु । उववज्जइ कयउन्नो भासुरबोंदी सुरवरिंदो ॥६६९॥ तत्थ सुरसेलसोक्खं दिव्वं दिव्वाहि सुरवहूर्हि समं । उवभुंजइ चिरकालं अणोवमं मणवहाराहिं ॥६७०॥ दिव्वविलित्तंगवरो दिव्वालंकारभूसियसरीरो । दिव्वनियंसियवत्थो दिव्वजुई दिव्वदेविंदो ॥६७१॥ दिव्वभवणोयरगओ दिव्वे सिंहासणे सुहनिविड्डो । दिव्वविलयाहि कीरइ पुरओ नट्टं मणभिरामं ॥६७२॥ 2010_02 Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ जंबुचरियम् कलगीयवंसवव्वीसतंतिवीणामुइंगरवकलियं । पुरओ मणाभिरामं पेच्छंतो दिव्वपेच्छणयं ॥६७३॥ देवाउयं असेसं एवं सो तत्थ भुंजिउं भोए । ठीइखएणुववज्जइ पुणो वि माणुस्सलोयंमि ॥६७४॥ कुलजाइरूवविन्नाणनाणसंमत्तसंवरसमेओ । विहुणियसंसारपहो भावियजिणवयणपरमत्थो ॥६७५॥ सिज्झइ विगयमलो सो भवत्तएणं च सुरभवंतरिओ । जो पुण होइ अगारी सेसविही होइ तस्सेसा ॥६७६॥ जहसत्तिवयपवन्नो जिणगुरुसाहूय(ण) पूयणरओ य । सम्मत्तभावियमणो भवभवणविरत्तभावो य ॥६७७॥ सद्धासंवेगजुओ 'नमो जिणाणं' ति भणिय पच्चूसे । पडिवुज्झइ विगयमलो सरीरजोगं अह करेइ ॥६७८॥ भत्तिब्भरनिब्भरंगो एक्कमणो अह जिणाण भवणंमि । वच्चइ इरियासमिओ असेसवावारपरिमुक्को ॥६७९॥ अवणेउं निम्मल्ले तत्थ गओ जिणवराण गंधड्ढे । निम्मवइ पवरपूयं दसद्धवन्नं मणभिरामं ॥६८०॥ एसा वि य कायव्वा जओ नियंतस्स गुरुमणपसाओ । धम्मज्झाणं च तओ झाणाओ निज्जरा विउला ॥६८१॥ भणियं च- "मिच्छादसणमहणी जणणी नेव्वाणगमणमग्गस्स । समदंसणसंसोहणी य पूया जिणिदाणं" ॥६८२॥ [ ] तह य जिणागमो "सुणणं दंसणं चेव पूयणं पज्जुवासणं । संकहा य जिणिंदाणं नाधन्नो पावए नरो" ॥६८३॥ [ ] तओ- "पज्जालिउं पईवं धूयं उग्गाहिऊण गंधर्व्ह । अहिसेयसमालहणं कुणइ जिणिंदाण भत्तीए" ॥६८४॥ [ ] 2010_02 Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४७ सोलसमो उद्देसओ भणियं च- "अच्चणमवि बहुभेयं पुष्फसमालहणधूयदीवाई । एवं समायरंतो वि णेज्ज पुन्नं बहुविगप्पं" ॥६८५॥ [ ] "कुसुमाहरणविलित्तं काऊण जिणं पराए भत्तीए । जयजयसहुम्मीसं जिणाण थुइसंथवं कुणइ" ॥६८६॥[ ] जओ भणियं-"सयलावायविमुक्कत्तणओ सिरिरूवअइसयत्तणओ । सोमं वियाररहियं जिणिदइंदाण मइविमलं ॥६८७॥ [ ] निरुवमगुणं निहाणं पयइपसन्नमवि गरुयलायन्नं । ट्रूण देवसोहं तिहुयणनाहत्तणुब्भवणं ॥६८८॥[ ] विमलगुरुभत्तिनिब्भरहरिसवसुब्भिन्नबहलरोमंचो । जयजयसहुम्मीसं करेज्ज एक्कं पि पणिवायं" ॥६८९॥ [ ] जओ- "एक्को वि नमोक्कारो जिणवरवसहस्स वद्धमाणस्स । संसारसागराओ तारेइ नरं व नारिं वा" ॥६९०॥ [सिद्धस्तव/गा.३] तह य जिणवयणं "सज्झायझाणविणया चिइवंदणपूयणाइकिरियाओ । वेयावच्चं च तहा कुणमाणो हणइ संसारं" ॥६९१॥ [ ] अन्नेहि वि भणियं "जिणवंदणं कुणंतो विणएणं वंदणाइ साहूणं । खवइ विविहं सुबहुयं असुहं पुव्वज्जियं कम्म" ॥६९२॥ [ ] तह जिणागमो "वंदणमरिहंताणं तिगरणसुद्धं पराए भत्तीए । जीवपएसनिबद्धं विहुणइ घणचिक्कणं कम्मं ॥६९३॥ [ ] झाएइ वंदणत्थं मणसा वायाए घोसइ पयाई । काएण विणयपणओ वंदंतो सोग्गई लहइ ॥६९४॥ [ ] पूएउं जिणमेयं अहवा पढम पि कुणइ सामइयं । जिणभवणे व घरे वा पुरओ वा अहव साहूणं" ॥६९५॥ [ ] भणियं च- "चेइयसाहुसमीवे पोसहसालाए अहव निययघरे । जत्थ व वीसमइ मणो तत्थ हु सामाइयं कुणइ ॥६९६॥ [ ] 2010_02 Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४८ जंबु रेयम् समभावो सामइयं सव्वेसिं एत्थ होइ जीवाणं । सावज्जाण य जोगाण वज्जणं होइ सामइयं ॥६९७॥ [ ] भणियं च- "जो समो सव्वभूएसु तसेसु थावरेसु य । तस्स सामाइयं होइ इइ केवलिभासियं" ॥६९८॥ [ ] अहव कसायाण समे सम्मत्तणचरणणाणलाभो जो । सामइयं ति तयं इह भन्नइ भणियं जिणिंदेहिं ॥६९९॥ जइ अवरेण समाणं केण वि अह दायगं विवाओ वा । नत्थि हु तया घराओ काउं गच्छेज्ज सामइयं ॥७००॥ पंचसमिओ तिगुत्तो विगयकसाओ विमुक्कभयहासो । परिमुक्कपरममत्तो जाइ स पावं परिहरंतो ॥७०१॥ अह अत्थि को वि दटुं अंछाअंछि करेज्ज जो पंथो । ता नियमा कायव्वं गंतूर्ण तत्थ सामइयं ॥७०२॥ मा गहियमंतराले भज्जीही गाहिएण केणावि । ता गंतूणं कुणइ हु दुविहं तिविहेण जा इच्छा ॥७०३॥ पविसंतो कणइ निसीहियं ति जा अप्पयं निसिद्धेइ । पावाणं कम्माणं नियमा जा पज्जुवासेइ ॥७०४॥ आगंतूण य पच्छा करेइ सामाइयं तओ विहिणा । अरिहंते नमिउं चिय साहुजणं वंदिउं सम्मं ॥७०५॥ कड्ढेइ तओ सुत्तं करेमि भंते ति एवमाईयं । आलोएइ गुरूणं इरियावहियं पडिक्कमिउं ॥७०६॥ वंदइ तओ य साहू विणएणं वंदिऊण आयरियं । पुच्छइ पढइ सुणेइ य झायइ झाणं निसिद्धिप्पा ॥७०७॥ सामाइयंमि [य] कए जइ कह वि करेज्ज सावओ कालं । ता सो हु जहन्नेण य सोहम्मे होज्ज देवो त्ति ॥७०८॥ 2010_02 Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४९ सोलसमो उद्देसओ जओ- "अविराहियसामन्नस्स साहुणो सावगस्स य जहन्नो । सोहम्मे उववाओ भणिओ तेलोक्कदंसीर्हि" ॥७०९॥ [ ] तेणऽइयारविसद्धं पालेयव्वं अवस्स जा गहियं । अइयारे सेवितो निरत्थयं कुणइ सामइयं ॥७१०॥ दुप्पणिहाणं मणमाइयाण अणवट्ठियस्स करणं वा । सइसामइयाकरणं सामइए हुंति अइयारा ॥७११॥ सामाइयंमि उ कए घरचितं जो उ चिंतए सड्ढो । अट्टवसट्टोवगओ निरत्थयं तस्स सामइयं ॥७१२॥ कडसामइओ पुचि बुद्धीओ पेहिऊण भासेज्जा । सइ अणवज्जं वयणं अन्नह सामाइयं न भवे ॥७१३॥ अनिरिक्खियापमज्जिय थंडिल्ले ठाणमाइसेवंतो । हिंसाभावे वि न सो कडसामइओ पमायाओ ॥७१४॥ न सरइ पमायजुत्तो जो सामइयं कया उ कायव्वं । कयमकयं वा तस्स हु कयं पि विहलं तयं नेयं ॥७१५॥ काऊण तक्खणं चिय पारेड़ करेइ वा जहिच्छाए । अणवट्ठियसामइयं अणायराओ न तं सुद्धं ॥७१६॥ एयं नाऊण इमं वज्जेयव्वे इमे हु अइयारे । सुविसुद्धं सामइयं पालेयव्वं पयत्तेण ॥७१७॥ सामाइयं कुणंतो मंचड़ जरमरणरोगपउराओ । संसारओ अवस्सं पावइ य सुहं निराबाहं ॥७१८॥ देसावगासियं तह पुव्वग्गहियस्स गिण्हए निच्चं । अणुदियहं गिण्हतो विसेसलाहं जओ लहइ ॥७१९॥ न य दीहकालियं जं संवच्छरमाइयस्स कालस्स । परिमाणं इह गहियं दिणेण सयलं तरइ गंतुं ॥७२०॥ 2010_02 Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० जंबुचरियम् तं च पहराइभेएण कीरई जाव दिवसदेवसियं । इय एवं जो कुणइ हु पावइ सो निज्जरं विउलं ॥७२१॥ गहियं च इमं सम्मं अइयारविवज्जियं च पालेइ । अइयारे पुव्वुत्ते अइयरियमसुंदरं होई ॥७२२॥ ता तं चेव करेज्जा जस्स हु परिपालणं तरह काउं । अइयारेहिं विसुद्धं बहुप्फलं तं चिय हवेच्चा ॥७२३॥ आहारे सक्कारे अव्वावारे य बंभचेरे य । तह पोसहोववासो गिण्हइ परमाए सद्धाए ॥७२४॥ दविहो एस्थाहारो देसे सव्वे य पोसहोवासो । देसे अमुगा विगई सव्वे सव्वस्स विरओ हं ॥७२५॥ गम्मम्मि य आहारे विरओ तस्सेव एत्थ कायव्वो । जेण विणा जोगाणं हाणी न हु हवइ धन्नाणं ॥७२६॥ विणओ वेयावच्चं झाणं सज्झाओ तह य किइकम्मं । एयाइं न सीयंती कायव्वो पोसहो तस्स ॥७२७॥ जओ- "सो य तवो कायव्वो जेण मणो मंगुलं न चिंतेइ । जेण न इंदियहाणी जेण य जोगा न सीयंति" ॥७२८॥ [ ] वयभंगे उण गरुओ दोसो सो ताव इच्छियविणासी । अन्नं पि बंधइ बहुं असुहं वयभंगदोसाओ ॥७२९॥ तेणागारविसुद्धं पच्चक्खाणं सया गहेयव्वं । ते य जहाविहिरूवं भणिया इह वीयरागेहिं ॥७३०॥ दो चेव नमोक्कारे आगारा छच्च पोरिसीए उ । सत्तेव य पुरिमड्ढे एक्कासणगंमि अद्वैव ॥७३१॥ ठाणंमि सत्त आयंबिले य अद्वैव छच्च पाणंमि । पंचाभिग्गहसत्तट्ठएसु चत्तारि चरिमंमि ॥७३२॥ 2010_02 Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५१ सोलसमो उद्देसओ विगईसुं अटेव य समंतओ ता हवंति एएसु । पत्तेयमणाभोगा सहसाकारो नमोक्कारो ॥७३३॥ पोरिसिपच्चक्खंतो पच्चक्खइ इच्छिए य आहारे । तह उग्गयसूराओ अन्नत्थ इमं मम वयं ति ॥७३४॥ पोरिसिमाईसुं जे पच्चक्खाणेसु वन्नियागारा । तेहिं विसुद्धं गिण्हइ पच्चक्खाणं गुरुसयासे" ॥७३५॥ इण्हि सरीरसक्कारपोसहो सो वि होइ दुविहो उ । देसे सव्वे य तहा देसे अमुग त्ति न करेमो ॥७३६॥ पहाणुव्वट्टणवन्नगविलेवणाहरणगंधपुप्फाणं । तंबोलाईण तहा चागो सव्वंमि कायव्वो ॥७३७॥ तह बंभचेरमइओ देसे सव्वे य पोसहो भणिओ । देसे दिणाइओ खलु एगं दो तिन्नि वा वारो ॥७३८॥ सव्वे य अहोरत्तं बंभच्चेरं चरंति सुविसुद्धं । कुसलाणुट्ठाणं वा भन्नइ तं बंभचेरं तु ॥७३९॥ तक्करणेणं पोसेइ अप्पयं सोहणेण कम्मेण । ता बंभचेरमइओ उ] पोसहो होइ का[ ना? ]यव्वो ॥७४०॥ वावारा पुण रंधण-घरचिंतण-पयणसयडमाईया । तक्करणवारणपरो अव्वावारो इहं भणिओ ॥७४१॥ जे जीवघायणपरा परपीडयरा जुगंछिया पावा । परलोयंमि दुहयरा ते वावारा इहं असुहा ॥७४२॥ ताण निसेहणरूवो अव्वावारो त्ति सावसेहे हो) य । पडिसिज्झए य असुहं जं परभवदुहयरं होइ ॥७४३॥ न य पुण सोहणवावारकरणपडिसेहतप्परो सो हु । सोहणवावाराणं करणं जिणसासणंमि मयं ॥७४४॥ 2010_02 Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ जंबुचरियम् जओ भयवओ वयणं "जिणवंदणच्चणनमंसणाहिं सुहसंपयं समज्जिणहा । किसलयदलग्गसंठियजललवइवचंचलं जीयं" ॥७४५॥ [ ] ता एयं नाऊणं असेसकल्लाणजणणभूएसु । सव्वायरेण जत्तो सुहेसु जोएसु कायव्वो ॥७४६॥ जिणवंदणाइ काउं एवं परमाए गरुयसद्धाए । संघस्स कुणइ पूयं तित्थयराणंतरं संघो ॥७४७॥ जओ भगवओ एवं वयणामयं पवयणं "[चेईय ]कुलगणसंघआयरियाणं तहेव साहूणं । पूयं ससत्तिओ वि हु कुणमाणो हणइ संसारं ॥७४८॥ [ ] गुरुथेरतवस्सिगिलाणबालवसभेसु जो उ भत्तीए । ओसहसयणासणवत्थवसहिआहारपाणं च" ॥७४९॥ [ ] जो देइ सुपरिसुद्धं विहाणओ गरुयविणयपरिकलिओ । निरुवमसंवेगगओ पवड्डमाणाए सद्धाए ॥७५०॥ सम्मत्तनाणचारित्तविणयसज्झायझाणकलियाणं । संजमसोयरयाणं खंतज्जवमद्दवरयाणं ॥७५१॥ वेयावच्चधराणं तिगुत्तिगुत्ताणं समिइजुत्ताणं । समलेढुकंचणाणं निरग्गिसरणाण साहूणं ।।७५२॥ रागाइदोसरहियाण निम्ममत्ताण निरुवमगुणाणं । परपरिवायविमुक्काण असुहवावारहियाण ॥७५३॥ जं दव्वं ठवणं वा आहारो य सयणासणाईयं । उवओगयाए वच्चइ एयाण महाणुभावाए( ण) ॥७५४॥ धन्नाण साहुगहणुज्जयंमि सुविसुद्धवासणिल्लाण । संपज्जइ परिसुद्धं दाणं जोगं जइयणस्स ॥५५॥ धन्ना सम्मद्दिट्ठीविवेयजुत्ता सुवासणोवगया । जाणणुदिनं पहाए जाइ जाउ)वओगं जईण धणं ॥५६॥ 2010_02 Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५३ सोलसमो उद्देसओ एमाइभत्तिजुत्तो दाणमियं देइ जो अणभिसंगो । संघे गणे गुरूणं गिलाणथेराइसाहूणं ॥७५७॥ सो पावइ ता [वि]उलं सुरगणनरनाहनमियचलणजुओ । सोक्खं सयलगुणनिही अनिदियं निग्गयजसोहं ॥७५८॥ तत्तो पुणो वि संपत्तदंसणो निहणिऊण गुरुमोहं । निट्ठवियकम्मरुक्खो संपावियनाणवररयणो ॥७५९॥ काऊण सेसकम्मक्खयं पि अह निरुवमं ति विहुयरओ । सासयमव्वावाहं पावइ अयरामरं सोक्खं ॥७६०॥ एवं चिय अणगारा तह य अगारा य जिणमयपवन्ना । वच्चंति सिद्धिवसहि काउं कम्मक्खयमसेसं ॥७६१॥ तओ एवं च भगवया इह भरहावसप्पिणिनाणदंसणावलद्धासेसलोयालोयपइट्ठियसयलपयत्थवित्थरपच्चक्खापच्छिमकेवलिणा भव्वकुमुयसंडसंबोहणेक्कमयाउव्वसरयससिणा जंबुणाममहरिसिणा भणिए पणिवइया सव्वे वि सुरासुरमणुया भगवओ जंबुपायकमलजुयले भणिउं च समाढत्ता-'भयवं ! एवं इमं जहा तुब्भेहिं समाइटुं । तओ तत्थ के वि सव्वसावज्जजोगविरइलक्खणं साहुकिरियाकलावपरिसेवणपच्चलं च पवन्ना अणगारियं दिक्खं । अन्ने उण विचित्तवयपरिसेवणपरिकुसलं जिणिदगुरुसाहुपूयणकरणेक्क[ ...........*] भावो तहविमुक्कसव्वसंगो य' । एवंविहगुणजुत्तो संवरियप्पा निरासवो साहू । परिसुद्धचरणकरणो छिन्नइ नवकम्मसंताणं ॥७६२॥ पुव्वज्जियं खवितो जहुत्तभणियाहिं खवयहेऊहिं । संसारतूलबीयं मूला उम्मूलए मोहं ॥७६३॥ मोहणियं च खवितो खवेइ एयाइं तिन्नि कम्माइं । नाणघणदसणघणं तहंतरायं च निस्सेसं ॥७६४॥ गब्भयसूइपणासे तालस्स जहा धुवो हवइ नासो । तह कम्माण विणासो मोहणियखए समुद्दिट्ठो ॥७६५॥ ★ अत्र मूलादर्शे क्रियान् पाठः पतितः प्रतिभाति । 2010_02 Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुचरियम् खीणघणघाइकम्मो अहखायं संजमं च संपत्तो । सुद्धो बुद्धो य जिणो सव्वन्नू केवली होइ ॥७६६॥ सो भयवं कयकिच्चो अवगयतत्तो निरंजणो निच्चो । परमप्पा सुद्धप्पा जहत्थवत्ता य सव्वन्नू ॥७६७॥ तेण य सुहासुहाई अरायदोसेण निउणभणियाइं । घेत्तव्वाइं आ ? ]भव्वेण जंतुणा तत्तबुद्धीए ॥७६८॥ तत्तत्थसद्धहाणं सम्मत्तं जेण जिणवरा बिंति । तं होइ निसग्गेणं भव्वाणं अहिगमेणं वा ॥७६९॥ एमेव निसग्गेणं कह व भमंताण भवसमुइंमि । संजायइ जीवाणं सुहाण कम्माण उदएणं ॥७७०॥ दट्टण जिणवरिंदं आयरियं साहु-साहुणिं चावि । अहिगमओ संजायइ तत्तत्थायन्नणपरस्स ॥७७१॥ जीवाजीवा पुन्नं पावासवसंवरो य निज्जरणं । बंधो मोक्खो य तहा नवतत्तत्था जिणक्खाया ॥७७२॥ जीवा मुक्का संसारिणो य संसारिणो य बहुभेया । उवओगो सव्वेसिं जीवाणं लक्खणं भणियं ॥७७३॥ सो अट्टहा य चउहा सागारो तह य चेवणागारो । नाणानाणे पंच-इ(ति)भेए पढमो उ अट्टविहो ॥७७४॥ चक्खुअचक्खुद्दसणा( इंसण अण? )गारो अवहिकेवलं नाणं । एवं एसो चउहा निद्दिट्ठो जिणवरिन्देणं ॥७७५॥ धम्माधम्मागासा य पोग्गला काल अत्थिकाओ य । पंचपयारा जीवा य अत्थिकायामओ लोओ ॥७७६॥ लोयालोएसु गयं आयासं मच्चलोइओ कालो । लोयं भविऊण ठिया चउरो अवसेसया काया ॥७७७॥ आहारो दव्वाणं गइठिइवंताण धम्मकाओत्थ । ठिइउवकिच्चाधम्मो आयासो देइ अवगासं ॥७७८॥ 2010_02 Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमो उद्देसओ पोग्गलका [ अह? ] रूवी सेसा य अरूविणो समक्खाया । उप्पायविगमनिच्चत्तलक्खणं अत्थि जं सव्वं ॥ ७७९ ॥ जं पुग्गलसुहकम्मं तं पुन्नं असुहपोग्गलं पावं । पुंनासवो य जोगो सुद्धो पावस्स य असुद्धो ॥७८०॥ मणवयणकायगुत्तीनिरासवो संवरो समक्खाओ । संवरितवविहाणं तु निज्जरा होइ नायव्वा ॥ ७८१ ॥ कम्मायाणं बंधो मोक्खो कम्माण उवगमो भणिओ । तत्तपयत्था नवहा संखेवेणं समुद्दिट्ठा ॥ ७८२ ॥ तम्हा सुभासियाई केवलिणा उत्तमट्ठवयणाई | घेत्तव्वाइं भव्वेण जंतुणा तत्तबुद्धीए ॥ ७८३ ॥ २५५ सोविय भाइ भयवं सय[ल ]त्थपच्चलं च अणगारियं सुसावगधम्मं ति । तओ एवं च तीयाणागयवट्टमाणवुत्तंताई साहिऊण समुट्ठिओ भगवं जंबुणामचरिमवली । ताव य उवगया निययट्ठाणेसुं देवदाणवनरिंदा । अन्ने उण उप्पन्नधम्माणुरायपरमत्था अणुगया सुरासुरगुरुणो भयवओ जंबुणामकेवलिणो संजाया । भगवं पि अर्चितचिंतामणिकप्पपायवब्भहियसमुप्पन्नासेसतिहुयणघरोयरपइट्ठियपयत्थत्थवित्थरपयडियपरमत्थपयत्थसत्थत्थसब्भावकेवलनाणदंसणपईवो सुहविहारेण विहरिऊण य निस्सेससत्तसुहाणंदयारिणं असेसकेवलिपरियायं पडिबोहिऊण निम्मलसंपुन्नवयणिदुविणिग्गयवायापवित्थरविमलमऊहोहसङ्गपयाए भव्वयणकुमुयसंडनियरसंघाए संपत्तो विमलुत्तुंगगयणंगणसण्णिहं तं वलाहगसेलसिहरं ति । तत्थ य समवसरियं नाऊण भयवमिहावसप्पिणिभरहच्छेत्तचरिमकेवलिं जंबुणामं समागया देवदाणवसिद्धगंधव्वकिन्नरोरगाइणो सुरवसेा बहवे । पत्थुया य भयवया अहिंसाइया धम्मदेसणा । पडिबुद्धा य बहवे पाणिणो । तओ भगवया नाऊण अत्तणो थोवाउयत्तणं कयं सव्वं भत्तपच्चक्खाणं पायवोवगमणाइयं जहाविहिं जहाकरणीयं । ठिओ य तत्थ सिलायलोवगओ मासमेगं पाओवगमणेण । समाणत्ता य तत्थट्ठियस्स भगवओ सुरिंदपमुहेहिं सुरासुरनरीसरेहिं नेव्वाणगमणविसेसपूय त्ति । तओ एवं च महापूयाकरणुज्जएसु सयलसुरासुरेसु भणियं सुरिंदआणाओ हरिणगवेसिणा-‘“अहो हो सुरासुरनरीसरगणा ! एत्थ ताव पढमं चिय भरहच्छेत्ते इमीए 2010_02 Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ जंबुचरियम् अवसप्पिणीए पढमतित्थयरस्स सव्वजयपियामहस्स भगवओ उसहनाहस्स सव्वसुरमणुएहिं निव्वत्तियं महापमोएणं पंचकल्लाणमहामहिमापूयाकरणं । तयणंतरं च मरुदेविसामिणीए पढमसिद्धस्स । तओ जहापरिवाडीए सव्वतित्थयराणं पि अणेयाणं च केवलीणं संपन्नं च सयलतेलोक्केकल्लसरोयरसरसपोंडरीयसिरिसोहियस्स भगवओ महइमहावीरवद्धमाणसामिणो नायकुलसमुब्भवस्स अपच्छिमतित्थयस्स इममि चरिमतित्थे पवहमाणे एस कासवकुलसमुब्भवो महइमहावीरवद्धमाणसामिणो सव्वपहाणसीसस्स गणहारिणो गोयमसामिस्स पहाणसीसो संतइपवाहकारओ अपच्छिमकेवली सव्वपहाणपयसंधारणेक्कलद्धमाहप्पो जंबुनामो भगवं जाओ त्ति । 'इमेण य भगवया सव्वप्पहाणकल्लाणगाणं किल वोच्छेओ होहिई'-इइ भगवया वीरवद्धमाणसामिणा सुरासुरनरीसरपरिसाए गएण समाइट्ठमासि । जओ भगवओ वयणं । "मणपरमोहिपुलाए आहारगखवगउवसमे कप्पे । संजमतियकेवलिसिज्झणा य जंबुमि वोच्छिन्ना" ॥७८४॥ [ ] ता सव्वहा वि पुणेत्थ दुल्लहा केवलिजिणा होहिति । ता सज्जिणेह इमस्स भयवओ नेव्वाणगमणविसेसमहिमसंपूयाकरणेण अत्तणो पुन्नपब्भारं" ति-इमंमि य तेण हरिणगवेसिणा भणिएण (?) सव्वेहिं समकालमेव सुरवरेहिं सुट्ठ समाइटुं ति भणमाणेहिं पवाइयाओ पवरदेवदुंदुहीओ । पमुक्कं सुरहिगंधोदयं । पवाहिओ सुरहिसीयलो पवणो । पमुक्काओ कुसुमसुरहिवुट्ठीओ । पगाइयं देवगणविलासिणीहि । पणच्चियं अच्छराहिं । पवाइए वंसवीणामुइंगमुहे पवरदेवाउज्जविसेसे सुरवरेहिं । तओ एवं च पमुइयमाणसा सुरवरा के वि गायंति, अन्ने वायंति, अवरे नच्चंति, अन्ने पुण कोलंति, तहन्ने बाहुसदं कुणंति, अन्ने थुणंति, अन्ने नमसंति, अन्ने थुइमंगलजयजयासद्दहरिसनिब्भरा पुणो भयवओ पणयउत्तमंगा सब्भूयगुणुक्कित्तणं काउं समाढत्ता। तओ एवं च भत्तिभरसहरिसनिब्भरमाणसेसु सुरवरेसु भगवं पि निड्डहिऊण संदड्डरज्जुसंठाणाणि आउयनामगोयावेयणियकम्माणि सेलेसी संपत्तो, विमुक्को अउव्वकरणेण एक्कसमएणेव विमुक्कबुंदी नेव्वाणपुरवरं संपत्तो त्ति । भणियं च पुव्वसत्थेसु "भयवं पि जंबुणामो बहूणि वासाणि विहरिऊण जिणो । भत्तं पच्चक्खायइ वलाहगसेलसिहरेसु ॥७८५॥ [ ] 2010_02 Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५७ सोलसमो उद्देसओ नक्खत्तेसु पसत्थे सिद्धिसिलायलगयंमि संथारे । मासं पाओवगओ कम्मविमुक्को गओ मोक्खं ॥७८६॥ [ ] खीरोयहिंमि य तहा पवाहियं भगवओ सुरवरेहिं । देहं उक्खिविऊणं पहरिसमणसेहिं सव्वेहिं ॥७८७॥ [ ] ताओ वि तस्स जायाओं सेससाहू य जणणि-जणओ य । देवेसु समुप्पन्ना सिज्झिस्संती विगयमोहा ॥७८८॥ [ ] भगवं पि य गणहारी पभवो परिपालिऊण जंबुपयं । मरिउं देवेसु गओ विगयमलो सिज्झिही सो वि" ॥७८९॥ [ ] एत्थ य इमं समप्पइ चरियं सिरिजंबुणाममहरिसिणो । गुणपालणेक्कनिरयस्स भगवओ कित्तिमाहप्पं ॥७९०॥ [ ] सहरिसपणयसुरीसरसुंदररिमिंदारगलियमयरंदं । मुहलभसलोलिगीयं पणमह जिणयंदपयकमलं ॥७९१॥ पुन्नं सिवं पसत्थं चरियं जो जंबुणाममहरिसिणो । निसुणइ पढइ य वायइ अन्नेसिं वा परिकहेइ ॥७९२॥ कम्मकलंकविमुक्को विसुद्धसन्नाणदंसणचरित्तो । सो पावइ मोक्खसुहं भवत्ताएणं विसुद्धप्पा ॥७९३।। छंदागमपरिहीणं विभत्तिलिंगत्थकयविवज्जासं । एत्थ मए जं रइयं तं तं कुसलेहिं सोहणियं ॥७९४।। एयं विरयंतेणं समज्जियं जं मए विपुलपुन्नं । भव्वा नेव्वाणसुहं तेण अविग्घेण पावितु ।।७९५॥ 2010_02 Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ जंबुचरियम् भव्वकुमुओहपडिबोहपच्चलो पावतिमिरनिट्ठवणो । आसी ससि व्व सयलो सूरी पज्जुन्नवरनामो ॥७९६॥ जो दंसणनाणचरित्तसीलतवसंजमेसु कुसलमई । जइयणगुणगणकलिओ मुत्ती(त्तो) धम्मो य(व) अवयरिओ ।।७९७।। तस्स य पयंमि जाओ आयरिओ वीरभद्द नामो त्ति । परिचिंतियदिन्नफलो आसी सो कप्परुक्खो त्ति ॥७९८॥ सेसेण व भुवणभरं धरियं लीलाए नियगणं जेण । जिणभवणसाहुसावय[एँ] निच्चं चिय वच्छलो जो य ॥७९९।। संदंसणे य जस्स य परिमुइओ होइ जो अभव्वो वि । अमयं व जस्स वाणी सुहजणणी सव्वसत्ताणं ॥८००॥ जस्स य सीसो पयडो पयडियमू(गू)ढत्थसत्थपरमत्थो । दसणचारित्तधरो सूरी पज्जुन्ननामो त्ति ॥८०१।। अन्ने वि जस्स बहवे सीसा जइयणगुणेहिं परिकलिया । संजाया धम्मरया सदसणनाणचरणड्डा ॥८०२॥ गुणपालणेक्कनिउणेण साहुणा पवयणत्थभत्तेण । सीसेण तस्स रइयं चरियमिमं जंबुनामस्स ॥८०३।। पणयामरिंदसुंदरिधम्मेल्लुव्वेलकुसुमकयसोहे। उसभाइजिणिंदाणं सव्वेसिं नमह पयकमले ॥८०४॥ पणमामि सव्वसिद्धे नमिमो तह गणहरे य आयरिए । पणमामि य उज्झाए पणओ तह सव्वसाहूणं ॥८०५॥ संमत्तं च चरित्तं केवलनाणं च दंसणं नमिमो । मइनाणं सुयनाणं मणपज्जव-ओहिनाणं च ॥८०६॥ जिणपन्नत्तं धम्मं, नमामि तह सव्वसत्तसुहजणणं । जणमणजणियाणंदा वाणी य जिणिंदचंदाण ॥८०७॥ 2010_02 Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोलसमो उद्देसओ २५९ सन्नाणदंसणधरा सव्वे वि य केवली पणिवयामि । वंदामि जिणपणीयं जिणिंदइंदाण तित्थं पि ॥८०८॥ सव्वेसिं इंदाणं जिणिदइंदाण पणमिमो तह य । उड्डाहतिरियलोएसु संठियाणं पयत्तेण ॥८०९॥ जे के वि सम्मदिट्ठी देवा मणुया य नारया तिरिया । सिज्झिस्संती भव्वा वंदामिह ते वि भावेण ॥८१०॥ इय एयं पच्चूसे संझासमए य जो य मज्झण्हे । पढइ जिणाणं पुरओ सद्धाए जुओ वि सुद्धप्पा ॥८११॥ सो गहडाइणिरक्खसभूयपिसायारिचोरसप्पाणं । न य भाइ विसुद्धप्पा य कम्मणा सिवसुहं लहइ ॥८१२॥ सव्वे वि सुहसमिद्धा परहियकरणेक्कउज्जया सव्वे । जायं तु जंतुनिवहा मंगलमउलं तु पावितु ॥८१३॥ अह वा - जम्मजरमरणभवजलहिउत्तारए, सिद्धिपुरगमणसुहसंपयागारए । असुरसुरमणुयपरिवंदिए जे जिणे, मंगलं पढमयं हुंतु ते बुहयणे ॥८१४॥ सयलसंसारपरिमुक्कसंवासए, भवियलोयाण सद्दिन्नसुहवासए । कम्मवणगहणयं सोसिउं सिद्धए, मंगलं बीययं हुंतु तुह सिद्धए ॥८१५॥ कुमयवाईकुरंगाण पंचाणणे, ससमयपरसमयसब्भावपंचाणणे । पंचहायारपडिपुन्नसंधारए,मंगलंतइययंहुंतुतहसुहयरे( सुयहारए?)॥८१६॥ सव्वसाहूण उवएससंपदा( संदा? )यए, उभयसुत्तत्थकयपवरसज्झायए । धम्मसुक्काणझाणाणसग्गा( ज्झा )यए,मंगलंचोत्थयंहुंतुवज्झायए॥८१७॥ नाणतवचरणसम्मत्तगुणपुन्नए, कोहमयमाणभयलोहसंचुन्नए । सयलसावज्जवावारकयसंवरे, मंगलं पंचमं हुंतु तह मुणिवरे ॥८१८॥ इय पणिवयासुरिदिंदगोविंदनाइंदराइंदचंदेहि पायारविंदाण पंचाण एयाण तेलोक्कसाराण वावारमुक्काण जीवाण बंधूण जे पायवीढं नमते सया, विमलवरनाणजुत्ताण १. "इय०" इत्यारब्ध "मंगलं पाविरे" ॥ इत्येदन्तपाठात्मको गद्यविभागो दण्डकछन्दोऽवगन्तव्यः । For Private & Personal use only 2010_02 Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० जंबुचरियम् चारित्तधारीण सदसणुप्पत्तिसुन्नायसद्धस्स तत्ताण भव्वारविंदेक्कसंबोहसूराण संसाररुंदं समुदं जिणाणत्थ संतिन्नयाणं सुहेणं सया । तह य विमलमोक्खमग्गं गयाणं च सन्नाणजुत्ताण कम्मेण मुक्काण सिद्धाणणंताण आयारधारीणुवज्झा[य]याणं च सज्झायवंताण साहूण संसारमोहेण संचत्तयाणं तहा, विगयमव(य)कलंका होइऊणं सुराणं ब(?)तेयवंता सया देवलोएसु देवंगणासंघसब्भावसोक्खं चिरं पाविऊणुत्तमं ते पुणो सव्वकल्लाणजुत्तं सुहं मंगलं पाविरे ॥छ।। इय मंगलमालियमुत्तमयं परमेट्ठिमहामुणिकित्तणयं । गुणपालण खंतिसमाहिरया पढिऊण सिवं अह जंति नरा ॥८१९॥ एयाइं मंगलाई पुरिसोत्तमथुइपहाणवयणाई । भवियाणं इंतु सया जिणभणियत्थं सुणताण ॥८२०॥ ॥ इइ महामुणिगुणपालविरइयं जंबुणामचरियं समत्तं ॥ 2010_02 Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टानि 2010_02 Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2010_02 Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१] प्रथमं परिशिष्टम् जंबुचरिये उद्धरणानामकाराद्यनुक्रमः ॥ पद्यांशः अ अच्चणमवि बहुभेयं अच्छंतु तिरियनरएसु अच्छउ ता अपुणागमअणसणमूणोयरिया अणुपुंखमावहता [य] अणुरायनेहभरिए अणुसोयइ अन्नजणं अत्थस्स कारणट्ठा अत्थो होइ अणत्थो अथिरं जीयं रिद्धी य अथिरा चंचलराया अथिरा चवला दुट्ठा अथिराण चंचलाण य अधुवं चलं असारं अन्नह परिचिंतिज्जइ अन्नह परिचिंतिज्जइ अन्नाण होइ संका अन्नाणंधो जीवो अन्ने भवसयदुलहं श्लोक-पत्राङ्कः । पद्यांशः अन्ने वि विसममहियल६८५।२४७ | अन्ने वि सिसिरमारुय११५।१५६ अन्ने विरड्यफुफुय२०२।१०० अन्नेण गहियमुक्का २८।१३ | अबुहो जणो न याणइ ४३।१४६ अमयं व गिण्हह इमं १३१५५ | अवरे उण नाणेणं ५८।१५१ | अवरे जाणंत च्चिय १६।१७५/ अवरे तवगारविया किर ९४८८ अवरे बुद्धिविहूणा ११०॥३९ अवरे सामन्नं चिय २०१।१०० | अवि उ8 चिय फुटृति ६१।११६ | अवि चंडवायवीईपणोल्लिया ११८१४० अविरयडझंतागरु५०।११५ अविराहियसामन्नस्स ९५८८ असढहियओ सलज्जो ३।१०३ | असढहियओ सलज्जो २९२।२१३ | असुइमलरुहिर६८।११९ आ २९६।२१३ | आहारविरहियस्स य श्लोक-पत्राङ्कः ९३।१९६ ९१।१९६ ८९।१९६ १७।१७५ ५४।११६ १०५।१९७ २९८४२१३ २९४।२१३ २९९।२१४ २९३।२१३ २९५१२१३ १९।१०७ ५४९।२३५ ८८।१९६ ७०९।२४९ २७।१८१ ४७११८३ २०११८९ २५१७२ 2010_02 Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ आहारो तमूलं इय जीवियधणजोव्वण इ बहवे जाणता इह लोगंम्मि य अइदुक्ख उक्कत्तिऊण कवयं वारसहस्सेहिं वि एक्कसमएण सोक्खं एक्काण निसा निज्जइ एक्काण पाणभोयण एक्काण वित्थरिज्जइ एक्के कंचणपडिबद्ध एक्के चंदणमयनाहिएक्के दोघट्टघडानि [ व ]हा heat एक्के नयणं तच्चिय एक्के पट्टसूयविवह पूरिति मोरहाई एक्को विमोक्कारो एत्थ उपरिणाम एत्थ जम्हा दयागुणमेव महामो उ एयस्स पुण निमित्तं एयाइं असिक्खियपंडियाई एयाइं ताइं चिरचिंतियाई एयाण कमलदलए एवं अपरि( प्पड ) वडिए एवं च एत्थ बहुसो कडुपि भन्नमाणो 2010_02 क २५०/७१ | कंममओ संसारो ७१।४८ ३००।२१४ | कालन्नुओ विणीओ ७१।१९४ किं एत्तो पावयरं किं कट्ठे अन्नाणं किं न करेज्ज अकज्जं कुसको डिबिंदुठिय कुसुमाहरणवित्तिं को जाणंतो रायं करेइ ३४५।२१७ कोजाइ हिययगयं १०१।१९७ को नाम नरो चुंबे ९९।१९७ | को नेच्छइ संजोगो ९८।१९७ कोहो माणो माया ९२।१९६ ९७।१९७ ९६।१९७ ९०।१९६ २९१।२१३ १००/१९७ ९४ । १९६ ६९०।२४७ ४९।१८३ ३४।१८१ काऊण धम्मबुद्धी कामिणिखंधविलग्गो १२४।१९९ ५७८५ गलइ बलं उच्छाहो | ठित्ति सुदुब्भेओ गंमागं न याइ ४६।११५ २०२।२०५ | गुणसुट्ठियस्स वयणं १०।१८७ | गुरुथेरतवस्सिगिलाण१५२।६२ | गुरुसिणेहबद्धबंधुयण २४।१७६ ख खइयं वरं विसं पि हु |खरपवणविहुयतामरसखंती य मद्दवज्जवमुत्ती खंत्ती गुत्ती ( ? ) य मद्दवज्जव खीरोयहिंमि य तहा ३४।१६८ ९१।८७ | घणघाइचउक्कयंमि २४ । १८९ घणविवरंतरखणदिट्ठघरवासे वाढ घेप्पइ जलंमि मच्छो ग घ जंबु ४९।११५ १३२।१९९ ५५/३१ ३३।१६८ १००१२३ ६९।११९ ७।१८७ ७०।४८ ६८६।२४७ ७४।१९४ १४ । १६५ १८।१७५ १०३।३८ ११९४० १२५।१९९ ६७/४७ २५।१३ १८४/६५ ७८७।२५७ ४।१७९ ५१८४ ७१ ।१२० २२।१० ७४९।२५२ ११६।२१ २७०।२११ ६९।४८ १११।३९ २८।१४४ Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६५ परिशिष्टम्-१ जंबुचरिये उद्धरणानामकाराद्यनुक्रमः ॥ | जं मारेसि रसंते चउत्थी उ बला नाम ३२९।२१६ | जं वुत्थो नवमासे चच्चरनिरंतरुब्भड ३१६।२१५ जं समयनाभिपुव्वं चत्तारि परमंगाणि ५४५।२३५ जं हरसि परधणाई चेइयसाहुसमीवे ६९६।२४७ जं होइ जियाण दुहं [चेईय ]कुलगणसंघ ७४८।२५२ जा विविहकलाकोसल्लचोप्पपडयं (?) मसिमंडियं १५।१७५ जायमेत्तस्स जंतुस्स चोल्लगपासगधन्ने २८०।२१२ जायाण वि जम्मजरा जाव य न दिति हिययं छट्ठी ओम( उण? )हायणी ३३१।२१६ जिणवंदणं कुणंतो जिणवंदणच्चण जीयं जलबिंदुसमं जइ जाणउं इसुहं माणउं ८१।३५ जइ वि धमिज्जइ कज्जे जीयंमि चले पेमंमि जुत्तीखमं च वयणं जत्तो जत्तो गम्मइ ५११११६ जम्मण-मरण-परंपर जे चोरसुमिणसउणा ५२।११६ जरमरणरोगउ जे वि समसहियनिद्धनिम्मल१०४।१९७ जे सव्वसत्थसललियजलनिबहुल्लसंतडंडीरय ११३।२१ जो चिंतिज्जइ जलबुब्बुयंमि जीए २०५।१०० जललवतरले विज्जुलय जो पुण जाणतो २०३११०० जस्स किर नत्थि पुत्तो ८।४२ जो समो सव्वभूएसु जह तिमिररुद्धदिट्ठी जोणीसहस्साणि बहूणि गंतुं ५५७।२३६ जह नाम कोइ मेच्छो जोव्वणयं पि रूवलायन्न ३६५।२१९ जह समिला पब्भट्ठा ५४७१२३५ जह सयलजलियकाणाण ५७४।२३७ झाएइ वंदणत्थं जंकल्ले कायव्वं २०४१०० जं गयवरकंद वरघडगल)- ५३।३१ | तइयं च दसं पत्तो जं चिय कुंकुमचंदण ३१०।२१४ | तह सत्तुमित्तघरवासजं जेण जत्थ जइया ५४।१५० तं पत्ते य समाणे जं जेण जत्थ जइया ६५।११८ तं चेव इमं देहं जं जेण पावियव्वं ४५।१४७ | तं पि जराअक्कंतं जं नेउररसणखलन्तहार ५४।३१ | ता उज्झिऊण एयं जं पि सुरयंमि सोक्खं ११८।१५६ | ताओ वि तस्स जायाओं ११६३४० ११४।३९ ३२१।२१५ ११७।४० ११६।१५६ ३२०।२१५ ३२६।२१६ ११७।१५६ ६४१ ६९२।२४७ ७४५.२५२ ५६।११६ ५३।११६ २६९।२११ १३०।१९९ ३१९।२१५ ३१८।२१५ ४७।११५ २५।१८९ ६९८।२४८ २८५१२१२ ११४।२१ ३।१५८ ६९४।२४७ ३२८१२१६ ५७५/२३७ ५२१८४ ३१५।२१५ ३१३१२१५ १२१११५६ ७८८।२५७ 2010_02 Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ ताणेक्केणं मुकं तिणमेत्तं पि हु कज्जं तुरमाणेहिं न सक्का १८१।२०३ | निद्दाविगहापरिवज्जिएहिं ७।४१ निरुवमगुणं निहाणं | ३१।१६८ निसि-दियहतिक्खदंतं जंबुचरियम् १८।१० ६८८।२४७ ५५।११६ थ थरहरइ सिरं कंपति दट्टण पाणनिवहं दट्टणं च सहीए दिट्ठो वि अदिट्ठसमो दीसंति मणहिरामा दुक्खं नज्जइ नाणं दुक्खं नज्जइ नाणं दुग्गंधं बीभच्छं दुज्जणजणवयणदेसे कुलं पहाणं ध धणिय कुलीणी घरि सरह धम्मो अत्थो कामो धम्मो च्चिय चारभडो धवलहरतुंगतोरण ३१४।२१५ | पच्चक्खं चिय दीसइ पज्जालिउं पईवं ६१८५ पडुपडहवीणमद्दल२०११६५ पयईय व कंमाणं १९८।९८ परदारं चिय अइभीम५०॥३१ परिसंभइ सोत्तपहे ३९०।२२१ पवणाहयजलकल्लोल७०।११९ पवणुद्धयजलहितरंग१२८।१९९ पहुमित्थत्थे( ? ) जीयं ३५।१०९ पंचमी उ दसं पत्तो ५८२।२३८ | पंचासवा विरमणं पंचासवाणि(ण) विरई पंथसमा नत्थि जरा १५।१८० पंथसमा नत्थि जरा २०६।१०१ पामागहियस्स जहा ६३।१८४ | पायच्छित्तं विणओ ५२।३१ पिंडविसोही समिई पुव्वंते होज्ज जुगं ३८ पुवकयकंमकंडुल्लएण २९७।२१३ पुव्वपुरिसाणुचरियं ३४८।२१८ पुव्वभवकम्मकंदुल्लएण ३२।१६८ पूएउं जिणमेयं ७८६।२५७ ५९८५ | बीयं च दसं पत्तो २३।१८९ | बोहिज्जति पहाए ३३४।२१६ ४८ भ ५९ | भयवं पि जंबुणामो ६०८५ भूएसु जंगमत्तं ३०९।२१४ ६८४।२४६ ५१।३१ ५८८५ ७०।१९४ १३।१८७ ६६१४७ ६८।४७ २१७।२०७ ३३०।२१६ ३०।१३ १८५६५ २८।१८१ ७६१९५ ११९।१५६ २९।१३ १७७।६४ ५४८।२३५ ६७।११८ ४।१७२ ७७।३५ ६९५१२४७ न य नाणदीवरहिओ न य हुँति ताण भोगा न वि अत्थि माणुसाणं न शक्यं त्वरमाणेन नक्खत्तेसु पसत्थे नरविबुहेसरसोक्खं नवमासजणणिउयरे नवमी उ मुम्मुही नाम नाणं च चरणसहियं नाणं पगासगं सोहओ नारय-तिरिय-नरामरभवेसु ३२७।२१६ १०२।१९७ ७८५/२५६ ५८११२३८ 2010_02 Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६७ ३४६२१७ ३२२।२१५ १७६६४ २९३७६ ६६।११८ ३२।१३ १२०।१५६ ६९३।२४७ ६७.३३ ११२।३९ ५९।११६ ६८९।२४७ १८।१४२ २००।१०० २९।१४४ परिशिष्टम्-१ जंबुचरिये उद्धरणानामकाराद्यनुक्रमः ॥ भेसज्जं पि हु मंसं देई १२७।१९९ | वडवीय-सुरगिरीणं वयणं वाहाजुयलं मणपरमोहिपुलाए ७८४।२५६ वयसमणधम्ममन्नइ तमेव सच्चं ६२८५ | वसणविओओ इयरो वि मन्नइ य ताणसमाणं १८।१०७ | वसणावडिओ वि नरो महरिहभवणरयणचामीयर ११५१२१ | वसहिकहनिसेजिं(ज्जि )दियमंसं पुण पयडं चिय १३३।१९९ वंचिज्जइ एस जणो मंसट्ठिरुहिरमज्जावस ७३।१९४ | वंदणरिहंताणं मंसस्स वज्जणगुणा १३१।१९९ वंसि चडंति धुणंति कर मंसासिणो नरस्स हु १२६।१९९ वाही इट्टविओगं माणुसत्ताओ पब्भट्ठो २७३।२११ विज्जुलया इव चवला माणुस्स-खेत्त-जाई २८३१२१२ विमलगुरुभत्तिनिब्भरमासाई सत्ता २४१६९ विसमसहावो मयणो मिच्छादसणमहणी ६८२१२४६ विसयविसं हालहलं मुत्तपुरीसाईयं सेफा ३१२।२१५ | वेसं पि सिणेहेण व मोहणवेल्लि व्व इमं ६०।११६ सइ सासयंमि थामे रत्तंतधवलपम्हल ३१७॥२१५ | सक्का सीहस्सवणे रमयंति विरूवं पि हु ३०११४४ सच्चं हरंति हिययं रमसु जहिच्छं सुपुरिस ! १०२।३८ सच्चं हीरइ हिययं रयणायरं पि पत्तो २८७।२१३ | सच्चं हो हरइ मणं रयणारे व्व नदु(टुं) १०६।१९७ | सज्झायझाणविणया रसरुहिरमंसमेओ ३०८।२१४ | सत्तर्मि च दसं पत्तो रागाओ दोसओ २६८।२११ समभावो सामइयं रूवेण किं गुणपरक्कमवज्जिएण २१८।२०७ | सम्मत्तंमि उ लद्धे रे जीव ! संपयं चिय ११५।३९ | सम्मत्तदायगाणं रोयाविति रुयंति य ११।१८७ सम्मत्तम्मि उ लद्धे रोविंति रुयावंति य १९।१४२ सयणेण धणेण व सयलम्मि वि जीवलोएँ लहिऊण दुल्लहं चिय | सयलावायविमुक्त्तणओ ११३।३९ सव्वजलमज्जणाई सव्वनरामरसोक्खं वच्चइ जत्थ अउन्नो ६।३५ | संकुइयबलीचम्मो २४८२ ४४।१४७ १०६।३८ १०४।३८ १०५।३८ ६९१।२४७ ३३२।२१६ ६९७।२४८ ९०८७ ३६६ ३७६ ४८।११५ ३९।६ ६८७।२४७ १२९।१९९ ३४४।२१७ ३३३।२१६ 2010_02 Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ संकोडियंगमंगो संपइ बालत्तणए संमत्तं उवसममाइएहिं संसारम्मि असारे सा सामग्गी कत्थ व सिद्धस्स हो रासी सिंभो लाला वयणे सीले खाइयभावो सुणणं दसणं चेव सुनिबद्धबंधणाई सुयणस्स विहलियस्स वि सुयणस्स विहलियस्स वि सुयणो न याणइ च्चिय २१।१८९ | सुयणो न रूसइ च्चिय २२।१८९ | सुयणो सुद्धसहावो ५६८५ | सुरगणसुहं समत्तं १०९।३९ / सुरनरनिरयतिरिक्खेसु २५७७३ सुरयं च रागजणणं ३५०।२१८ | सो अत्थो जो अ(ह)त्थे ३११।२१५ | सो अत्थो जो हत्थे ५८४।२३८ | सो च्चिय कीरइ मित्तो ६८३।२४६ | सो य तवो कायव्वो ६५।१९४ ४४।१८२ | हा हा जीव ! अलज्जिर ! २९४७६ | हीणभिन्नस्सरो दीणो ३७।१६९ | होइ बले वि य जीयं जंबुचरियम् १९६४ ३४।१०९ ३४९।२१८ ११४।१५६ १३४।२०० २६।१८१ ४६।१८२ ४५।१८२ ७२८।२५० ४३।४५ ३३५१२१६ ५८३।२३८ 2010_02 Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२] द्वितीयं परिशिष्टम् ___जंबुचरिये विशेषनाम्नामकाराद्यनुक्रमः ॥ विशेषनाम पत्राङ्कः । विशेषनाम पत्राङ्कः उसहदत्त | [सेट्ठि] अ ७४, ७५, ७९, अज्जवरटुउड [ कुलपुत्त] २४, २८ | उसभदत्त ८०, १०७ अणाढिअ | [जक्ख] ७४, ८०, १०५, अणाढिय २२६, २२७ | एरवय [खेत्त] अभयसागर [ आयरिअ] ४८ अरिजयपुर। [नयर] १७८, १७९ | कणगमाला [इब्भपत्ती] १०२ अरिंजयपुर | कणयकेउ [ राया] ___ ५३, ६०, ६१ अवंती [ विसय] २०६ कणयवई । [इब्भपत्ती ५३, ५७, ५८, अवराइअ [राया] १८५ कणगवई । -रायधूया ] ५९, ६०, १०२ असणिघोस [विज्जाहरनरिंद] कणयसिरी | [इब्भधुया १०२, १७२ असोग [ वणिया] १४०, कणगसिरी | -जंबुपत्ती] अहया [चक्कयरधूया] कन्नकुमारी [ रायधूया] १८५ अंगा [जणवअ] कमलप्पहा [ देवी] २०६ अंबाडय [गाम] कमलवई । [इब्भधुया १०२, १७८ आ कमलावई| -जंबुपत्ती] आवया [जन्नपत्ती] कंचणपुर [ नयर] ९२ कामपडाया [गणिया] १७४ उज्जेणी [पुरवरी] २०६ | कलिंग | [विसय] १३३, १५८, १७३ उसह [ नाह] | कलिंगा । م १८६ م WW سه س 2010_02 Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७० कुबेरदत्त [ इब्भ- १०२, ११७, ११८, ११९, सहोयर ] १२०, १२२ कुबेरदत्ता [ भइणि] ११६, ११७, ११८, ११९, १२० १०२ ११७, ११९, १२०, १२२ ९२ कुबेरसे [ इब्भ ] कुबेरसेणा [ गणिया ] कुंथु [ जण ] कोणिय [ नरिंद] खिइपट्टिय [नयर ] ग यणवल्लह [ विज्जाहरनयर ] गंगला [ सत्थाहवहू ] गुणपाल [ गंथकर्ता ] सिलअ [ मई [इब्भ ] वेज्ज [ देवलोग ] गोयम [ गणहर] ख १५२ १२३, १२४ ७, २२, ४०, ७७, १०९, ११०, १२७, १३१, १३६, १५७, १६३, १७१, १७७, १८४, २५७, २५८, २६० ८१, ८९ अ ] चेल्ला [ देवी ] चंदकिरण [ अज्जाण ] ज जउणा [ नई ] जमुणा जयसेणा [ इब्भपत्ती ] जसमित्त [ सावग ] जसोहरा [रणी] च 2010_02 २२२, २३२, २३३, २३५, २३९ १७४, १८० ७५ ७७ २४० १२ m जंबु जंबू जंबुरम् [ दीव ] १०, ४१, ७०, ७४, ७६, ७९,८०,१०५, १८९, २२७ जंबु [ दुम ] जंबु ७९ [ सेट्ठिपुत्त- ५, ७, २२, ४०, ७७ जंबुकुमर मुणि- ७९, ८०, ८१, ८२, जंबुकुमार चरमकेवली ] ८८, १०१, १०२, १०५, १०६, १०७, १०८, १०९, ११०, १११, ११५, ११७, १२२, १२३, १२७, १२८, १३०, १३१, १३२, १३३, १३४, १३६, १३७, १४६, १५१, १५८, १५९, १६३, १६४, १६६, १७१, १७२, १७३, १७७, १७८, १८०, १८४, १८५, १८८, २०२, २०५, | २०६, २१७, २२१, २२२, २२३, | २२४, २२५, २२६, २२७, २२८, २२९, २३०, २३१, २३२, २३३, | २३४, २३९, २४०, २४३, २५५, २५६, २५७, २५८, २६० ७९ ७९ ७५ १४७, १४८, १४९, १६७, १६९, १७० १६६, १६७ जंबुववन्नत्ती [ गंथ ] जंबू [ देवया ] जिणयत्त [ इब्भसुय ] जिणयास [ सावग ] जियसत्तु [ नरनाह ] ५३ तामलित्ती [ नयरी ] ११७, १२० दढधम्म [ सावग ] १६६, १०२ ७९, ८० | दमघोस [ गुरु ] ४१, ४२ दाहिणभरह [ खेत्त ] त द ७१ दत्तसिरी [ इब्भधुया - जंबुपत्ती ] १०२, १३२, १३६ १२२ १५२ १२३, १२४, १६९ Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ ३२ १८६ १०३ परिशिष्टम्-२ जंबुचरिये विशेषनाम्नामकाराद्यनुक्रमः ॥ २७१ दुमुह [ पुरिस] १७ पास [जिण] ११७ देवदिन्न [ माहण] १७९ पियंगुसामा [महादेवी ] ५३, ६० पुक्खलावई [विजय] ४१, ५१ धण [ सत्थाह] २०६, २०७|सरिशिप | पुंडरिगिणी [नयरी] ४१, ४८ धणसिरी [इब्भपत्ती ] १०२ धारणी | [सेट्ठिपत्ती] ७४, ७९, १०२, | बहुला [ सत्थाहभज्जा] १२३, १२४ धारिणी| २३९ | बंगा [जणवअ] बंभलोय [ देवलोग] ७३ नम्मया [ नई] बारवई [ पुरवरी] २१८, २१९ नंदणय [गाम] १२८ नाइला [ धूया-पत्ती] २५, २८, २९, ३०, भद्दालंद [गाम] १७२ ३२,४० | भरह । [खेत्त- १०, ३२, ७०, ७४, नागदत्त [कुलउत्त] २५, २९ भारह वास] ९५, १३७, १५८, १६४, नागसम्म [ चक्कयर] १७२, १७३, १७८, १८०, नागसेणा [इब्भधुया-जंबुपत्ती] १०२, १६४ १८५, १८९, २२९, २५३, २५५ नेमि [जिणिंद] भरुयच्छ [पुर] भवदत्त [ पुत्त] २४, २५, २६, २७, ४१ पउमरह [ नरनाह] ५२, ६१, ७१, भवदेव [ पुत्त] २४, २५, २६, २७, २९, २०६ ३०, ३२, ३८, ५१ पउमसिरी। [इब्भधुया- १०२, १३७, भागीरही [ सरिया] १३२ पहसिरी | जंबुपत्ती] १५०, १५७ पउमसेणा [इब्भधुया-जंबुपत्ती] १०२, १५८ मगह | [जणवअ] १०, २४, २५, ७०, पउमावई [इब्भपत्ती] १०२ मगहा ८१, १२८, २२९ पज्जुन्न [ सूरी] २५७, २५८ मणोरह [ खड्डोलअ] २०८ पसन्नचंद [ रायरिसि] १५, १६, १७, मयणमंजूसा [ वयंसिया ] ५७, ५८, ५९, ६० १८, ७६ मयणा [चेडी] १९०, १९१, १९२, पहव [ रायकुमार] १०६, १०७, १०८, |मयणिया | १९३ १०९, ११०, ११४, ११५, ११७, | मरुदेवी [ सामिणी] २५६ १२२, १२३, १२६, २०२, २०५, महावीर [ जिण] ३, ७९, २५६ २०६, २१९, २२१, २३३, २३५, | महुरा [ नयरी] ११७, ११९, १२० २३९ पहाकर [वयंस] ५६, ५७, ५८, १९, ६० / महेसरदत्त [ सत्थाहसुय] १२३, १२४, १२५ पहु [ रायकुमार] १०६ / मायंदी [ पुरवरी] १६४ 2010_02 Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ २७२ जंबुचरियम् मेहरह [ विज्जाहरपुत्त] १५२, १५३, | विजयसिरी [इब्भधुया-जंबुपत्ती ]१०२, १८५. १५४, १५५ | विजयसेण [इब्भपत्ती] विज्जुमाली [ देव- २३, ७३, ७६, युगादि [ पढमजिण] विज्जाहरपुत्त] १५२, १५३, १५४, १५५ रयणदीव [दीव] २०६, २०७ विणयसिरी [इब्भपत्ती] १०२ रायगिह [ पुर] १०, ७८, ८१, २२९ विमला [ नई ] १३८ रेवइ [भारिया] २४ | विलासवइ [इब्भसुयभज्जा] १३८, १३९, रेवा [नई] १३१ १४० रेवाइच्च [ माहण] ३३, ३४ | विंझ [गिरि] १०७, १५९, २१८, २१९ ल वीयसोया [नयरी] लच्छिनंदण [उज्जाण] ६१ वीर [जिण] १२, १५, २२७ लच्छिमई [ भारिया ] वीरभद्द [ आयरिअ] २५८ ललियंग [ सत्थवाहपुत्त] १९१, १९२, १९६ वीससेण [ रन्नो] १०६, १०८ ललिया [ वरदेवी] १९०, १९३ वेभारगिरि [ गिरि] लाड [ देस] . वेयड्ढ [ पव्वय] १०, १५१, १५३, १५४ लायन्नवई [गणिया] वेसमणदत्त [ इब्भ] १०२ ७९ १०२ १०२ वइरदत्त [ चक्कहर] ४१, ४२, ४९, ५०, ७१ | समुद्द [ सत्थाह] १२३, १२४, १९१ वडवद्द [गाम] १५८ समुद्ददत्त [इब्भ] वणमाला [ अग्गमहिसी] समुद्दपिअ [इब्भ] वद्धमाण [जिण] २४, ७५, ७९, २२३, सयाउह [ नरनाह] १८९ २५६ सायरदत्त [ रायपुत्त- ४२, ४३, ४४, ४७, वलाहग [ सेल] २५५ आयरिअ-इब्भ] ४८, ४९ , ५० वसंतउर | [नयर] ९०, १५२, १६६, ६१, ६२, ७१, ७३, वसंतपुर | १६८, १८९ १०२, १३८ वसुपाल [इब्भसुय] १३८ | सिरिमई [इब्भपत्ती] १०२ वसुपालग [इब्भ] १०२ | सिरिसेणा [इब्भभज्जा] १३८ वसुसेण [इब्भ] १०२ सिवउरी [नयरी] २०७ वाणारसी [ नयरी] - १८५, १८६ | सिवकुमारो [ रायकुमार] ५२, ५३, ५६, विजय [खेत्त] ५७, ५८, ६०, ६१, ६२, विजयउर [ पुर] १०६ ६३, ६४, ६५, ७१ ९५ 2010_02 Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टम् - २ जंबुचरिये विशेषनाम्नामकाराद्यनुक्रमः ॥ सिंधुमई [ इब्भधुया जंबुपत्ती ] १०२, १२८, १३१, २१७ सीया [ नई ] सीहनिवास [ गाम ] सुगाम [ गाम ] अ [आयरिय] सुबुद्धि [मंती ] सुमुह [ पुरस] सुहंम | [ सामी ] सुहम्म सेणिअ [राया ] सेणिय ४२ सोमदत्त [ माहण ] १७३ | सोमसिरी [ चक्कयरभज्जा -भट्टिणी ] [ नयर ] 2010_02 २४, २५, २८, ७० २४ सर १८० सोरियउर १७ | सोलग [ पुरिस ] ७९, ८१, ८९, सोहम्म [ कप्प ] २२९, २३३ | सोहम्म [ कप्प ] २७३ १२, १४, ७४, ७५, ७६, ७८, २२७ १७४, १८६ ११७, ११८, १२० १७३, १७४ ४०, १४८ ५१ Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३] तृतीयं परिशिष्टम् ___जंबुचरिये अपभ्रंशश्लोकानामकाराद्यनुक्रमः ॥ पद्यांशः कद्दइल्लु जइ पउमनालु गइयह मुइयह दड्डियह जइ जाणउं सुहं माणउं डहणसीलु जइ तत्थ पर जलणु ता खलइ वलइ झूर ता हसइ रुयइ झिज्झइ धणिय कुलीणी धरि सरइ निन्नेहो जइ खलो जि तहिं सा मुद्धा ताहिं देसडइ वंसि चडंति धुणंतिकिर श्लोक-पत्राङ्कः ६ / ७८ १२ / १८७ ८१ / ३५ ७ / ७८ २५ / २६ / २७ १५ / १८० ५ / ७८ २७ / २७ ६७ / ३३ 2010_02 Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४ ] चतुर्थं परिशिष्टम् जंबुर सुक्तीनामकाराद्यनुक्रमः ॥ सुक्तिः अरिंग कीडपयंगा पडन्ति अन्नाणदोसेणं । अन्नाणंधो जीवो न मुणइ कज्जं अकज्जं वा । असहायस्स न सिद्धी पुन्नब्भहियस्स सुठु वि पियस्स । आसाबंध च्चिय माणुसस्स परिरक्खए जीयं । कविप्पिए पियं जे करेंति ते दुल्लहा हुंति । किं किलि (ल) तस्स न सिद्धं सुसहायं जस्स माणुस्सं ? | कुमईसु मोहिमणो विवरीओ सव्वहा लोओ । कोरमइ जाणमाणो इत्थीदेहंमि दुहमूले । चंदस्स अमयसरिसे किरणे नलिणी न इच्छेइ । जइ डसिओ सप्पेणं किं दिज्जइ तस्स विसपाणं । जं अप्पणा विरइयं तं भुंजसु संपयं जीव ! । जं जं चिय जेण फलं तं तं चिय विबुहपरिहरियं । जामि पीवण तणपूलं खिवसि तं मुद्ध । जलिए हुयासणंमी, कह पक्खित्तं घियं एयं । जो उण सहायसहिओ किं तस्स न एत्थ भण सिद्धं । तं तं कुणंति बाला जं जं चिय धम्मपडिकूलं । तं रूवं जत्थ गुणा, तं विन्नाणं जहिं धम्मा । तावपिओ होइ जणो जाव न वसणं समेइ मज्झेण । तुरिया धम्मस्स होइ गई । 2010_02 श्लोक-पत्राङ्कः ६८।११९ ६९।११९ ४१।१९१ २८।२८ ३३।१०९ ४१ । १९१ ११४।१२६ ७२ ।१९४ ४६॥७ ८२।१२१ ६९।१९४ १०१।१२३ ७९।१२१ ३४।१६९ ५८।१९२ १२१।१९९ ४५।१८२ ६४।१९४ ६३।४७ Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुचरियम् १०४ ३८२१२२० २१८।२०७ ७७।३५ २७६ दुट्ठकलत्तं व खलं विवज्जणीयं सयाकालं । न हु चिंतिएण फिट्टइ तं दुक्खं जं पुरा इयं । नाणेण किं बहुजणाणुवगारएण, मित्तेण किं वसणकज्जपरंमुहेण । निययनिडाले दुक्खं, सुहं व तं को समुप्फुसइ । पज्झरइ राहुमुहसंठिओ वि अमयं चिय मयंको । पंकपु( प )डियं गइंदं, को कड्डइ वरगयं मोत्तुं । पाविज्जइ अच्चंतं पुन्नेहिँ विणा न माणुस्सं । पियसंगो जेण कओ, दुक्खाण समप्पिओ अप्पा । पुव्वकयाओ न चुक्कसि अप्पाणं खायसे जइ वि । बालो वि सुइसयन्नो आएओ होइ बुद्धिमंताण । भावियमई वि जीवो विसएसु विरज्जए दुक्खं । मरणस्स वि गरुययरं जं जस्स पियं पराहीणं । मम्मानेसणपउणं दुग्गेज्झं चेव खलहिययं । मित्तं पि हवइ सत्तू आसन्ने वसणकालंमि । रविसंगेण पजायइ कसिणं पि हु निम्मलं गयणं । रुहिरविलित्तं वत्थं किं सुज्झइ सोणिएणेव । रूवेण किं गुणपरक्कमवज्जिएण, अत्थेण किं किविणहत्थगएण लोए । वसणंमि समावडिए सच्चं विहडंति पेमाई । वसणंमि समावडिए किं कीइ सुट्ट वि पिएण । विद्धो वि होइ हेओ सत्थत्थविवज्जिओ पुरिसो। विहिविलसियस्स व खलस्स पुणो किल को न बीहेइ । वेसायणो व पिसुणो न सव्वहा जाइ सब्भावं । सप्पुरिसपत्थणा जे, करिन्ति ते दुल्लहा हुंति । सीहं मोत्तूण पइं किं सीही जंबुए रमइ । सुयणा सहावउ च्चिय परदोसपरम्मुहा जेण । सुयणो सरलसहावो, अप्पाणं पिव परं पि मन्नेइ । सुयणो न याणइ च्चिय, खलस्स हिययाइं हुंति विसमाई । सूरंसूणं पुरओ खज्जोओ कुणउ किं वरओ । सो अत्थो जो हत्थे, तं मित्तं जं निरंतरं वसणे । ३५१०९ २९४७६ ३८.१९० ६६।१९४ ३८३।२२० ५१८६ ७०।११९ ४०।१९१ ११।४ ९४८८ ४५७ ८११२१ २१८।२०७ ६५।१९४ ६४।१९४ ५११८६ ९।४ १३।४ ४९।१८३ ८।१०४ १८।४ ३६.१६९ ३७।१६९ ४४७ ४५.१८२ 2010_02 Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [५] पञ्चमं परिशिष्टम् जंबुचरिये प्रशस्तीनामकाराद्यनुक्रमः ॥ श्लोक-पत्राङ्कः ८०२-२५८ पद्यांशः अन्ने वि जस्स बहवे सीसा जइयणगुणेहिं परिकलिया। गुणपालणेक्कनिउणेण साहुणा पवयणत्थभत्तेण । जस्स य सीसो पयडो पयडियमू(गू )ढत्थसत्थपरमत्थो । जो दंसणनाणचरित्तसीलतवसंजमेसु कुसलमई। तस्स य पयंमि जाओ आयरिओ वीरभद्द नामो त्ति । भव्वकुमुओहपडिबोहपच्चलो पावतिमिरनिट्ठवणो । संदसणे य जस्स य परिमुइओ होइ जो अभव्वो वि । सेसेण व भुवणभरं धरियं लीलाए नियगणं जेण । ८०३-२५८ ८०१-२५८ ७९७-२५८ ७९८-२५८ ७९६-२५८ ८००-२५८ ७९९-२५८ __ 2010_02 Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [६] षष्ठं परिशिष्टम् जंबुचरिये कथानामकाराद्यनुक्रमः ॥ कथा पत्राङ्कः विषयः इङ्गालदाहकदृष्टान्तः। दतश्रियं प्रति जम्बूकुमारेण समुपदिष्टः। १३३-१३६ कञ्चनपुरवास्तव्यपञ्चसुहृदुदाहरणम् । सर्वविरत्यनुमतिददतोर्मातापित्रोः पुरो जम्बूकुमारणाख्यातम्। ९२-९८ कर्षककौटुम्बिकोदाहरणम् । अविद्यमानवस्तुप्राप्त्यर्थविद्यमान विजहितुकामविषये सिन्धुमतीप्रतिपादितम् । १२२-१२९ कुबेरदत्तादृष्टान्तः । प्रभवं प्रति जम्बूकुमारेणाख्यातः संसारासारताविषये। ११६-१२२ ग्रामीणतरुणोदाहरणम् । खरपुच्छग्राहकगामबोद्रविषये कनकश्रीप्रतिपादितम् । १७२-१७३ जात्यश्वदृष्टान्तः। नागसेनां प्रति जम्बूकुमारेणोक्तः । १६६-१७१ त्रिपुरुषदृष्टान्तः। प्रभवं प्रति जम्बूकुमारेण कथितः । २०३-२०४ त्रिमित्रमन्त्र्युदाहरणम्। कमलवतीं प्रति जम्बूकुमारेणोदाहृतम् । १८०-१८४ द्विजकन्यादृष्टान्तः । कल्पितकथाप्रतिपादनविषये विजयश्रीप्रतिपादितः। १८५-१८८ नूपुरपण्डितादृष्टान्तः। इभ्यस्नुषाविलासवतीवर्णनयुक्ताऽप्राप्तेच्छु प्राप्तपरिहारकविषये पद्मश्रीप्रतिपादितः।। १३७-१५१ प्रसन्नचन्द्रकथा। श्रेणिकराजकृता प्रसन्नचन्द्रराजर्षिसम्बन्धिनी पृच्छा तस्या उत्तरञ्च । १५-२२ मधुबिन्दुदृष्टान्तः। सांसारिकसुखभोगोपदेष्टारं प्रति जम्बूकुमारेणोदाहृतः। १११-११६ 2010_02 Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टम्-६ जंबुचरिये कथानामकाराद्यनुक्रमः ॥ २७९ 'मासाहस'पक्षिदृष्टान्तः। प्रसुप्तसिंहवक्त्रान्तर्गतमांसास्वादनविषये कमलवतीकथितः। १७८-१८० मेघरथविद्याधरदृष्टान्तः । पद्मश्रियं प्रति जम्बूकुमारेणोक्तः । १५१-१५६ रेवादित्यविप्र-तत्पुत्रोदाहरणम् । नागिलयोदाहृतं श्रामाण्यपरित्यागफलविषये। ३२-३६ ललिताङ्गदृष्टान्तः। विजयश्रियं प्रति जम्बूकुमारेणोक्तः। १८९-१९६ लावण्यवतीगणिकानुरागिपुरुषदृष्टान्तः। तत्त्वग्रहणे विलम्बे न कर्तव्य इति विषये। ९०-९२ वडवापालकसोलकदृष्टान्तः । कनकश्रियं प्रति जम्बूकुमारेणोदाहृतः । १७३-१७७ वानरदृष्टान्तः। भागीरथीजलपतनजातमानुष्यदेवत्वप्राप्तुकामविषये दतश्रीप्रतिपादितः । १३२-१३३ वारण-वायसदृष्टान्तः । सिन्धुमती प्रति जम्बूकुमारेणोक्तः । १३०-१३१ वृद्धाद्विकदृष्टान्तः। माकन्दीनगरीवास्तव्यातिवैभवप्रार्थनालुब्धताविषये नागसेनोक्तः । १६४-१६६ शङ्खधमकदृष्टान्तः। शङ्खस्वनाकर्णनभीतचौरत्यक्तद्रव्यग्रहणलाभात् पुनस्तथैवाकर्णितशङ्खस्वरचौरहतविषये पद्मसेनाकथितः। १५८-१५९ शिलाजतुक्षुप्तवानरदृष्टान्तः । पद्मसेनां प्रति जम्बूकुमारेण समुपदिष्टः । १५९-१६३ समुद्रसार्थवाहपुत्रमहेश्वरदृष्टान्तः । प्रभवप्रतिपादिता पितृतर्पणकर्मनिराकुर्वता जम्बूकुमारेणाख्यातः। ११६-१२२ 2010_02 Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [७] सप्तमं परिशिष्टम् जंबुचरिये देशनादिविषयानामकाराद्यनुक्रमः ॥ विषयः अगारिधर्मस्वरूपम्। अतिथिसंविभागस्वरूपम् । अनगारिधर्मस्वरूपम् । अनादिपक्षस्वरूपम् । अनादृतदेवरचितजिणहर-जिणप्रतिमापूजा। अन्यासक्तनारीस्वरूपम् । अभयसागराचार्यधर्मदेशना। इन्द्रियासक्तजीवविपाकदर्शनम् । उत्सर्पिणी-अवसर्पिणीकालषडारस्यस्वरूपम् । क्रोधादिकषायकटुता । गणधरेन्द्रेण अनुशास्तिः। गर्भावासदुःखानि। चतुर्गतिदुःखवर्णनम् । चतुर्गतिदुःखस्वरूपम् । चतुर्विधकथास्वरूपम् । श्लोक - पत्राङ्क ६७७-७६१ / २४६-२५३ ७४८-७५८ / २५२-२५३ ६५१-६७५ / २४४-२४६ ११५-१३२ / १२६-१२७ ५२७-५३० / २३४ २०-२४ / १४३ ७८-९२ / ४९-५० ३७-४५ / १६१ १६९-१९२ / ९५-९८ ८५-९० / १८-१९ ५४३-५९२ / २३५-२३९ २०-२५ / १८९ १०९-११६ / १९८ ६-११ / ९ २२-२३ / ५ 2010_02 Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८१ ५४३-५७९ / २३५-२३८ १७६-२४७ / ६४-७० परिशिष्टम्-७ जंबुचरिये देशनादिविषयानामकाराद्यनुक्रमः ॥ चत्वार्यङ्गानि दुर्लभानि । चरणसित्तरि-करणसित्तरिस्वरूपम् । जम्बुचरितपठन-श्रवण-कथनेन मोक्षसुखप्राप्तिः । जम्बुचरितप्रशस्तिः। जम्बुजायादेवलोकगमनम् । जम्बुमोक्षगमनस्वरूपम्। जम्बुस्वामिकेवलज्ञानप्राप्तिस्वरूपम् । जम्बूकथितइङ्गालदाहकदृष्टान्तोपनयः । जम्बूकथितत्रिपुरुषदृष्टान्तोपनयः। जम्बूकथितमन्त्रीदृष्टान्तोपनयः । जम्बूकथितललिताङ्गदृष्टान्तोपनयः । जम्बूकथितविद्याधरदृष्टान्तोपनयः । जम्बूकुमारकृतजिनमन्दिरे नेमिजिनस्तुतिः । जम्बूकुमारभावना। जम्बूकुमारमातृपितृकथितलावण्यवतीदृष्टान्तोपनयः । जम्बूकुमारविवाहावसरे जिनभवने जिनस्तुतिः । जम्बूकुमारेण सुधर्मस्वामिनं विज्ञप्तिः । जम्बूकृत-जिनचन्द्रस्तवना। जम्बूदीक्षप्रयाणावसरे वनितोद्गारः । जम्बूदीक्षा-'करेमि भंते प्रतिज्ञाउच्चारितम् । जम्बूदीक्षाप्रयाणावसरे नगरजनवर्णनम् । जम्बूदीक्षाप्रयाणावसरे युवतिजनचेष्टा । जम्बूदीक्षाप्रयाणावसरे युवतिजनोद्गाराः । जम्बूदीक्षावसरे कोणिकनृपवचांसि । जम्बूवधूकृतजिनस्तवना। ७९२-७९३ / २५७ ७९६-८०३ / २५८ ७८८ / २५७ ७८५-७८६ / २५५-२५६ ६१५-६२८ / २४०-२४१ ४५-५५ / १३५-१३६ १९२-२०६ / २०४-२०५ ५३-६८ / १८३-१८४ ८०-८५ / १९५-१९६ १०४-१२३ / १५५-१५६ १-२ / १०३ ५१-५७ / १६२ १२६-१३१ / ९२ १५-१७ / १०६ ५१९-५२० / २३३ ४०७-४०८ / २२३ ४७२-४८९ / २२९-२३० ५३२-५३८ / २३४ ४६५-४७१ / २२८-२२९ ५००-५०१ / २३१ ४९०-४९८ / २३०-२३१ ५०४-५१३ / २३२ ४०९-४१० / २२३-२२४ 2010_02 Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबुचरियम् ६४२-७६१ / २४३-२५३ ४०५-४०६ / २२३ ६८४-६९४ / २४६-२४७ २८२ जम्बूस्वामिकेवलिना परमधर्मस्य प्रधानोपदेशः । जिनपूजास्वरूपम् । जिनपूजास्वरूपम् । जिनप्रतिमास्वरूपम् । जिनभवनस्वरूपम् । जिनवचनकुशलस्य न खलु कोऽपि अन्यः विनिपातः । जिनवचनदुर्लभता। जिनसमवसरणवर्णनम् । त्रिविधपर्षदास्वरूपम्। दसविधयतिधर्मस्वरूपम्। दानप्रभावः । दानस्वरूपम्। देव-देवेन्द्रकृतकेवलज्ञानमहिमा । देव-देवेन्द्रकृतजम्बुकेवलिस्तवना । देव-धर्मस्वरूपम् । देवस्य प्रकाराः। देशावगासिकस्वरूपम् । देहस्योत्पत्तिवर्णनम् । देहस्य दशदशावर्णम् । द्रव्याटवीस्वरूपम् । धर्मध्यानस्वरूपम् । धर्माधर्मफलम् । नवतत्त्वस्वरूपम्। नागिलादत्तभवदेवमुन्युपदेशः। पचदशाङ्गः मोक्षसाधनोपायः । ३९७-३९९ / २२२ ४००-४०३ / २२३ ३७-४२ / १७०-१७१ २९१-३०० / २१३-२१४ १३८-१४७ / ९३ २५-२६ / १० २५-३१ / १३ १५४-१५५ / ६२ १३७-१६० / २००-२०२ ६२९-६३६ / २४२ ६३७-६४१ / २४२-२४३ १६३-१७३ / २०२-२०३ ५१-५३ / १३६ ७१९-७२३ / २४९-२५० ३०८-३२२ / २१४-२१५ ३२५-३३५ / २१६ २२४-२४८ / २०७-२०८ ६४५-६८१ / २४३-२४६ ८८-९४ / १९६ ७७२-७८२ / २५४-२५५ ३३-१०७ / २९-३८ ५८१-५८४ / २३८ 2010_02 Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८३ ९६-१०२ / १९७ ७२४-७४४ / २५०-२५१ ७३०-७३५ / २५०-२५१ ७८९ / २५७ १०१-११६ / २० १०९-१२० / ३९-४० २४९-२७० / २०९-२७१ १-२० / १११-११३ परिशिष्टम्-७ जंबुचरिये देशनादिविषयानामकाराद्यनुक्रमः ॥ पुण्य-पापफलम् । पौषधस्वरूपम् । प्रत्याख्यानागाराः। प्रभवदेवलोकगमनम् । प्रसन्नचन्द्रमहर्षिचिन्तनम् । भवदेवसाधुचिन्तनम् । भावाटवीस्वरूपम् । मधुबिन्दुदृष्टान्तः । मधुबिन्दुदृष्टान्तोपसंहारः । मांसादिभक्षणविपाकम् । मोक्षप्रसाधनमार्ग-मोक्षसुखस्वरूपम् । मोक्षसुखवर्णनं श्रुत्वा प्रभवचिन्तनम् । मोक्षसुखस्वरूपम् । वन्द्यवन्दना। विद्युन्मालिकृतजगगुरुस्तुतिः । विषयस्वरूपम् । वीरप्रभुधर्मदेशना। शाश्वतस्थाननिर्देशतत्प्राप्त्युपायस्वरूपम् । श्रेणिकराजकृता प्रसन्नचन्द्रमहर्षिस्तवना । श्रेणिकराजकृता वीरप्रभुस्तवना । षड्विधजीवस्वरूपम् । संसारसुख-निर्वाणसुखस्यान्तरः । संसारस्वरूपम् । सम्यक्त्वस्वरूपम्। सागरचन्द्रनृपचिन्तनम् । २२-३५ / ११३-११४ १२४-१३४ / १९९-२०० २११-३७० / २०६-२१९ ३७१-३८९ / २१९-२२१ ३४८-३५० / २१८ ८०४-८१३ / २५८-२५९ ४ / २३ ५९-६२ / १२५ १७-३३ / १२-१४ २५-९२ / ८२-८७ ४५ / १५ ५४-५७ / १६ २६-३२ / ५-६ ३४४-३४६ / २२७ ४६-५६ / ११५-११६ ७६९-७७१ / २५४ २८-५९ / ४४-४६ 2010_02 Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८४ जंबुचरियम् १५९-१७१ / ६२-६३ ६०-७७ / ४७-४८ ६९६-७१८ / २४७-२४९ सागरदत्तगुरुधर्मदेशना। सागरदत्ततत्पत्नीकृतवैराग्यविषयकसंवादः । सामायिकस्वरूपम् । सुधर्मस्वामीवर्णनम् । सुधर्मस्वामिमोक्षगमनम् । सुस्थिताचार्यधर्मोपदेशः। १६-१८ / ८१ ६०७-६११ / २४० १२-२० / २४ 2010_02 Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ M. 98253 47620 Tejas Printers AHMEDABAD 2010_02