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जंबुचरियम् अरहंताइसुभत्तो सुत्तरुई पयणुमाणगुणपेही । बंधइ उच्चागोयं विवरीए बंधई इयरं ॥४५॥ पाणवहाईहिं रओ जिणपूया मोक्खमग्गविग्घयरो । अज्जेइ अंतरायं न लहइ जेणिच्छियं लाभं ॥४६॥ इय भेयवत्ति( न्नि? )या मे परमठिई कंमबंधगा जे य । संपइ सुणसु जहन्ना एयमणो तं वरकुमार ! ॥४७॥ इयरा बारस तह [ अट्ठ] अट्ठ वेयणिय-नामगोत्ताणं । जहसंखेण मुहुत्ता भिन्नमुहुत्तं तु सेसाणं ॥४८॥ एवं ठी यस्स जया अहापवत्तेण कह वि करणेण । कोडाकोडि मुत्तुं अयराणं नाउखवियाओ ॥४९॥ तीसे वि थेवमेत्ते खविए घणरागदोसपरिणामो ।
मोहणियकंमजणिओ हवइ य गंठी सुदुब्भेओ ॥५०॥ भणियं च- "गंठि त्ति सुदुब्भेओ कक्खडघणरूढगूढगंठि व्व ।
जीवस्स कम्मजणिओ घणरागद्दोसपरिणामो" ॥५१॥ [सं.प्र./गा.८६८ ] तं पत्ते य समाणे अत्थेगे भिदई उ जे जीवे ।
अत्थेगे नो भिंदइ जे भिंदइ से अउव्वेण ॥५२॥ भणियं च-तं च पत्ते य समाणे अत्थि एगे जीवे जे तं भिंदइ । एत्थि एगो जे नो भिंदइ । तत्थ णं जे से भिंदइ, से अपुव्वकरणेण भिंदेइ । तओ
अनियट्टीकरणेणं भिन्ने गंठम्मि नो पुरायत्तं । आयपरिणाणरूवं खयउवसमियं लहइ सम्मं ॥५३॥ . तस्समकालं पावइ मइनाणं चेव तह य सुयनाणं । अह तंमि [य] संपत्ते जीवे बहुकम्ममलमुक्के ॥५४॥ आसन्ननियसरूवो होइ [य] पसमाइलिंगसंजुत्तो । मिच्छत्तस्स य विमुहो जिणवयणरुई य सो होइ ॥५५॥
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