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छट्ठो उद्देसओ भणियं च- "संमत्तं उवसममाइएहिं लक्खिज्जई उवाएहिं ।
आयपरिणामरूवं बज्झेहिं पसत्थलिंगेहिं" ॥५६॥ [ श्रा.प्र./गा.५३] "एत्थ उ परिणामो खलु जीवस्स सुहो उ होइ विन्नेओ।
किं मलकलंकमुक्कं कुणगं भुवि झामलं होइ" ॥५७॥[ श्रा.प्र./गा.५४] “पयईय व कंमाणं वियाणिउं वा विवागमसुहं ति ।
अवरद्धे वि न कुप्पइ उवसमओ सव्वकालं पि" ॥५८॥[श्रा.प्र./गा.५५] "नरविबुहेसरसोक्खं दुक्खं चिय भावओ उ मन्नंतो ।
संवेगओ न मोक्खं मोत्तूणं किं पि पत्थेइ" ॥५९॥ [ श्रा.प्र./गा.५६] "नारय-तिरिय-नरामरभवेसु निव्वेयओ वसइ दुक्खं ।
अकयपरलोयमग्गो ममत्तविसवेगरहिओ वि" ॥६०॥ [ श्रा.प्र./गा.५७ ] "दट्टण पाणनिवहं भीमे भवसागरंमि दुक्खत्तं ।
अविसेसओऽणुकंपं दुहावि सामत्थओ कुणइ" ॥६१॥ [श्रा.प्र./गा.५८ ] "मन्नइ तमेव सच्चं निस्संकं जं जिणेहिं पन्नत्तं । सुहपरिणामो सच्चं कंखाइविसोत्तियारहिओ" ॥६२॥ [श्रा.प्र./गा.५८] एवंविहपरिणामो संमट्टिी जिणेहिं पन्नत्तो । एसो य भवसमुद्दो लंघइ थेवेण कालेण ॥६३॥ तीसे वि य ठीईए खीणे पलिओवमाण पुहत्तेण ।
सुहपरिणामपगब्भं पडिवज्जइ देसविरइं सो ॥१४॥ सा य-पाणवहालियपरधणथूलाणेयाण विरमणं कुणसु ।
परदारस्स य विरई परिमाणं वा परिग्ग( ग )हस्स ॥६५॥ परिमाणस्सावडिए पडिवन्नाणुव्वए य से एवं ।
देसपरिणामजुत्ते अइयारे नो इमे कुणइ ॥६६॥ तं जहा- बंधवहछविच्छेए अइभारे भत्तपाणवोच्छेए ।
रागेण व दोसेण व न कुणइ एए उ अइयारे ॥६७॥ तहा- सहसा अब्भक्खाणं रहसा य सदारमंतभेयं वा ।
मोसोवएसकरणं कूडं लेहं च वज्जेइ ॥६८॥
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