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इसी पत्र के B पार्श्व के भाग पर निम्न प्रकार की पंक्तियाँ पढ़ी जाती हैंपंक्ति १. .......... .....................मम नाणं ॥
हाइयउरंमि नयरे वासारत्तंमि विर [ इयं एयं ? ।] पंक्ति २. ........तीसाए अहियाइं गाहग्गेणं तु बारस सयाइं ।
एयाइं जो निसुणइ सो पाव.............
.....॥
पंक्ति ३. संवत् १२८८ वर्षे अद्येह श्रीमदणहिलपाटके श्रीभीमदेवराज्ये
प्रवर्तमाने....१ १. रिसिदत्ताचरियं की इस ताडपत्रीय पुस्तिका को जिसने अपने द्रव्य से लिखवाया था उस गृहस्थ के कुटुम्ब आदि का परिचय कराने वाली एक १० पद्यों की संस्कृत प्रशस्ति भी इस पोथी के अन्त के ताडपत्र पर लिखी गई है। इस अन्तिम ताडपत्र का भी दक्षिण पार्श्व का आधा हिस्सा तूट गया है जिससे प्रशस्ति का भी खण्डित आधा भाग ही उपलब्ध होता है। जो भाग उपलब्ध है वह इस प्रकार है - पंक्ति १ A...... प्रभोः पान्तु नखेन्दुद्युतयोऽमलाः प्रणमज्जन्तुसंघातं कर्मतापभयाद् भृशम्
॥१॥प्राग्वाटवंशमाणिक्यं पंक्ति २ A.......वणिक् । सीलुका नामतस्तस्य पत्नी शीलगुणावृत्ता ॥२॥ तत्पुत्री
वस्तिणिर्नाम संवणप्रियपल्यभूत् दंप.... पंक्ति ३ A.......जज्ञेऽपत्ययुग्मं मनोहरम् ॥३॥ चाचाभिधः सुतः श्रेयान् विद्यते
विपुलाशयः । देहच्छायेव वशगा प्रिया त... पंक्ति ४ A......लक्ष्मणी ॥४॥ पुत्रिका मोहिणि म तपोऽनुष्ठानतत्परा ।
___दयादाक्षिण्यदानादिगुणरत्नैलंकृता ॥५॥ पंक्ति १ B अन्येधुश्चिन्तयामास धीमती साऽप्यनित्यता । संसारे शाश्वतं नास्ति विना धर्म
जिनोदितम् ॥६॥ पंक्ति २ B.......समाख्यातः श्रुतचारित्रभेदतः । श्रुतं हि दीपकप्रायो वस्तुतत्त्वावलोकने
॥७॥ बिंबं श्रीपार्श्वनाथस्य स्व.... पंक्ति ३ B......विवेकलोचना[द् ज्ञात्वा जीर्णोद्धारे महत्फलम् ॥८॥ अस्य च लेखयामास
___ मोहिणिः श्राविकोत्तमा । चरितं रिषिदत्तायाः पुस्तकं सु मनोहरम् ॥९॥ पंक्ति ४ B.......श्रीनेमिचन्द्रसूरेविनेय.......... ................॥१०॥
इस प्रशस्तिका भावार्थ यह है कि किसी नेमिचन्द्रसूरि के शिष्य का उपदेश प्राप्त कर प्राग्वाट जाति के रांवणि नामक गृहस्थ की पत्नी वस्तिणि की पुत्री मोहिणि नामक श्राविका ने अपने द्रव्य का सदुपयोग करने की दृष्टि से 'रिषिदत्ताचरित' की यह पुस्तिका लिखवाई । इत्यादि । यह पुस्तिका वि.सं. १२८८ में, जब अणाहिल पुर पाटण में भीमदेव राज्य कर रहा था तब लिखी गई थी।
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