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इस त्रुटित ताडपत्रगत जो खण्डित पंक्तियाँ उद्धृत की गई हैं उनके पाठ से 'रिसिदत्ताचरियं' के कर्ता गुणपाल मुनि का नाम मिल रहा है । इसमें वीरभद्रसूरि का तथा 'नाइलवंश' का भी उल्लेख मिलता है। साथ में 'हाइयपुर' नामक नगर का भी उल्लेख मिलता है जहाँ वर्षावास रहते हुए उनने इस ग्रन्थ की रचना पूर्ण की ।
सम्भव है कि उनने अपनी रचना के समय का भी इसमें निर्देश किया हो जो खण्डित भाग में रह गया हो । क्योंकि उस काल के कई जैन ग्रन्थकार अपना समयज्ञापक उल्लेख भी प्रायः करते रहे हैं । उद्योतनसूरि ने कुवलयमाला कथा में, सिद्धर्षि ने उपमितिभवप्रपंचा कथा में, जयसिंहसूरि ने धर्मोपदेशमाला कथा संग्रह में ऐसे समयज्ञापक निर्देश स्पष्ट रूप से किये हैं । 'रिसिदत्ताचरियं' की कोई पूर्ण प्रति किसी जैन भण्डार में मिल जाय तो उसका निर्णय हो सकेगा ।
इस 'जंबुचरियं' की जो ताडपत्रीय प्रति जेसलमेर के बड़े ज्ञानभण्डार में उपलब्ध है उसका क्रमांक, [मुनिवर श्रीपुण्यविजयजी द्वारा संकलित 'जेसलमेरुदुर्गस्थ जैन ताडपत्रीय ग्रन्थभण्डार सूचिपत्र' पुस्तकानुसार] २४५ है । इस पुस्तक के कुछ ३२६ ताडपत्र हैं । ताडपत्र की लम्बाई १३ इंच और चौडाई २ इंच है । बीच-बीच में कहीं-कहीं ताडपत्रों की स्याही खराब हो जाने से कुछ पंक्तियाँ अपाठ्यसी भी हो गई हैं। इनका कुछ सूचन हमने तत्तत् स्थान में-जैसे पृष्ठ .... तथा ...... आदि पर कर दिया है ।
इस ग्रन्थ की प्रतिलिपि हमने जेलमेर के अपने भण्डार-निरीक्षण के समय (सन् १९४३ के प्रारम्भ में) करवा ली थी पर प्रेस कॉपी का मिलान मूल के साथ ठीक ढंग से नहीं किया गया था। इससे कॉपी में कुछ अशुद्धियाँ रह गई । फिर उसी प्रेस कॉपी को प्रेस में जब छपने दिया तब मूल ताडपत्र के साथ मिलान करने का अवसर नहीं मिला । अतः ग्रन्थ में जो कुछ अशुद्धियाँ रह गई हैं उनका शुद्धिपत्र अन्त में दिया गया है। पाठक गण इस शुद्धिपत्र का उपयोग करें।
इस शुद्धिपत्र के बनाने में प्राकृत भाषा के विशेषज्ञ पण्डित और प्राचीन ग्रन्थों की प्रतिलिपि करने में बहुकुशल प्रतिलेख, पाटण निवासी पण्डित श्री अमृतलाल मोहनलाल ने यथेष्ट श्रम किया है अतः हम उनके प्रति अपना कृतज्ञभाव प्रकट करना चाहते हैं ।
ग्रन्थगत कथावर्णन जैन साहित्य में सुप्रसिद्ध और सुपरिचित है। जम्बूचरित विषयक अनेक प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, राजस्थानी, हिन्दी एवं गुजराती रचनाएँ उपलब्ध होती है। इनमें से अनेक रचनाएँ स्वतन्त्र रूप से प्रसिद्ध भी हो चुकी हैं।
सुप्रसिद्ध महान् विद्वान् आचार्य हेमचन्द्रसूरि ने भी अपने त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र नामक पौराणिक पद्धति के विशाल संस्कृत ग्रन्थ के 'परिशिष्ट' पर्व के रूप में 'स्थविरावलि चरित' की सुन्दर रचना की है जिसमें प्रारम्भ के ४ सर्गों में जम्बू मुनि का भी सविस्तर
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