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________________ ११४ जंबुचरियम् रुद्दो य अयगरो जो सो नरओ तिव्ववेयणाकलिओ । निवडियमेत्तो य नरो जत्थ य विविहं लहइ दुक्खं ॥२७॥ महुबिंदू उण भोए विवायकडुए य दारुणे घोरे । मुहरसिए अइतुच्छे किंपागफलोवमे पावे ॥२८॥ विज्जाहरो य जो सो धम्मायरिओ त्ति सो मुणेयव्वो । संसारकूववडियं उत्तारइ जो य पाणिगणं ॥२९॥ तत्थाभविओ नेच्छइ कालं उद्दिसइ दूरभविओ वि । उत्तरइ भणियमेत्तो भणि(वि)ओ जो सिद्धिसुहगामा ॥३०॥ जेत्तियमेत्तं च सुहं नरस्स कूमि निवडियस्स भवे । तेत्तियमेत्तं जइ पर इहेव विसयाउरस्स भवे ॥३१॥ ता विसयाण कए णं अधुवो(बुधो?) जो नवर एत्थ लोयंमि । अयगरसुहसमरूवे नरयंमि [स] खिवइ अप्पाणं ॥३२॥ जो उण होइ सयन्नो मंगुल इयराण जाणइ विसेसं । महुबिंदुविसयलुद्धो नरयंमि न खिवइ अप्पाणं ॥३३॥ पत्ते उद्धरणसहे संसारयडाओ दुक्खपउराओ । आयरिए को मूढो उत्तारइ जो न अप्पाणं ॥३४॥ अह वा तुमं पि साहसु किं सोक्खं तस्स कूवपुरिसस्स । जह तस्स तह इमस्स य संसारपवन्नजीवस्स ॥३५॥ तओ इमं च निसामिऊण चोरसेणावइणा भणियं पभवेण । अवि य- सुपुरिस ! एवं एयं न चलइ तिलतुसतिभायमेत्तं पि । थोवं जइ पर सोक्खं बहुदुक्खं तस्स पुरिसस्स ॥३६॥ किंतु तहा वि सुणिज्जइ लोयसुई जेण भत्तुणा भज्जा । पालेयव्वाअ(5)वस्सं अन्नह कह होउ सा एत्थ ॥३७॥ ता उवभुंजसु भोए निज्जियरइरूवविहवसाराहिं । एयाहिं समं सुवुरिस ! कइय वि संवच्छरे जाव ॥३८॥ Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002554
Book TitleJambuchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay, Chandanbalashree
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2009
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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