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प्रो० याकोबी ने उक्त 'परिशिष्टपर्व' का सम्पादन किया तब उनको शायद अन्य जम्बूचरितों का परिचय नहीं हुआ था । इस लिए हेमचन्द्राचार्य रचित जम्बूचरित को ही मुख्य मान कर उनने इसकी अवान्तर कथाओं का ऊहापोह किया है। हमारा अनुमान है कि हेमचन्द्राचार्य का जम्बूचरित प्राय: प्रस्तुत गुणपाल मुनि के 'जंबुचरियं' के आधार पर रचित है
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इस चरियं की भाषा बहुत सरल और सुबोध है । ग्रन्थकार की रचना शैली प्रौढ़ होकर भी बहुत ही सुगम भाषा से अलंकृत है । सारा ग्रन्थ गद्य-पद्य मिश्रित है । कथावर्णन प्रवाहबद्ध है । बीच बीच में जहाँ कहीं कथाकार को उपदेशात्मक कथन करने का प्रसंग प्राप्त हो जाता है वहाँ वह विस्तार के साथ उन उन उपदेशों का कथन करता रहता है । इन उपदेशात्मक कथनों में जैनधर्म के आदर्शभूत सिद्धान्तों और विचारों का यथेष्ट समावेश किया गया है । खास करके मनुष्य जीवन की क्षणभंगुरता, संसार की असारता, एवं धार्मिक जीवन की महत्ता का वर्णन सर्वत्र बताने का प्रयास किया गया है ।
प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रकाशनद्वारा जैनकथा साहित्य एवं प्राकृत भाषा की एक विशिष्ट रचना विद्वानों के कर कमलों में उपस्थित हो रही है जो समादरणीय होगी ।
- मुनि जिनविजय
हरिभद्र कुटीर साधन आश्रम, चन्देरिया (चित्तौड )
वैशाख शुक्ला ३, संवत् २०१५ खिस्त दि. ११-५-५९
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